नोटबंदी के बाद देश का आम नागरिक जब नकदी की कमी से परेशान था तो सरकार ने इस के विकल्प के रूप में डिजिटल भुगतान की सुविधा का सुझाव दिया था. आरंभ में विपक्षी दलों के साथ ही कई सामाजिक संगठनों ने इसे बेतुका सुझाव बता कर सरकार का मजाक उड़ाया था. उन का कहना था कि जिस देश की लगभग पूरी आबादी नकदी में लेनदेन करने की आदी है वह डिजिटल भुगतान का रुख नहीं कर सकती. अपने सुझाव से सरकार ने सिर्फ जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का प्रयास मात्र किया है.

नोटबंदी से जब नकदी का अभाव बढ़ने लगा मोबीक्विक तथा पेटीएम जैसी डिजिटल भुगतान कंपनियों के कारोबार बढ़ने लगे. चाय की दुकानों पर चाय का डिजिटल भुगतान होने लगा.

भारतीय भुगतान परिषद के  अनुसार, देश में भुगतान कारोबार नोटबंदी के पहले के 20 फीसदी से बढ़ कर 60 फीसदी के आसपास पहुंच गया है. मतलब 1 साल पहले डिजिटल भुगतान 20 से 50 प्रतिशत के बीच  था जो अब 40 से 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है. इस बीच, औनलाइन फ्रौड की खबरें भी तेजी से आ रही हैं. एटीएम कोड ले कर लोगों के खातों में सेंध लगाए जाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. सरकार को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है ताकि औनलाइन बैंकिंग व अन्य कारोबार के प्रति लोगों को ज्यादा आकर्षित किया जा सके.

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