सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया (एसबीआई) ने 70,000 कर्मचारियों (पूर्व सहयोगी बैंकों के) से कहा है कि वो उस मुआवजे को वापस करें जो उन्हें नोटबंदी के दौरान ओवरटाइम करने के एवज में मिला था. यह जानकारी एक मीडिया रिपोर्ट के जरिए सामने आई है. गौरतलब है कि नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की गई थी.

पब्लिक सेक्टर के इस बैंक ने इन सभी कर्मचारियों को अपने वर्कफोर्स में शामिल कर लिया है क्योंकि साल 2017 में स्टेट बैंक में स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक औफ हैदराबाद, स्टेट बैंक औफ मैसूर, स्टेट बैंक औफ पटियाला और स्टेट बैंक औफ त्रावणकोर का विलय हो गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी, जिसके बाद 9 नवंबर से ही 500 और 1000 रुपये के नोटों को प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि सरकार ने लोगों को अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए कुछ समय दिया था, जिस वजह से लोगों को अपने नोट बदलवाने के लिए कई दिन तक बैंकों के बाहर लंबी लंबी लाइनें लगानी पड़ी थीं.

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नोटबंदी की अवधि के दौरान बैंक कर्मचारियों को दिन में 14-14 घंटे तक काम करना पड़ा था. यह स्थिति नोटबंदी के बाद अगले तीन महीने तक देखने को मिली थी. इस दौरान काफी सारे कर्मचारियों की छुट्टियां भी कैंसिल कर दी गई थी क्योंकि पुराने नोट बदलवाने के लिए सरकार की ओर से लोगों को सीमित समय दिया गया था.

एसबीआई क्यों कर रहा है ऐसा?

दरअसल नोटबंदी के दौरान ओवरटाइम करने वाले कर्मचारियों से बैंक प्रबंधन ने वादा किया था कि उन्हें ओवरटाइम के लिए भत्ता दिया जाएगा. इन 70 हजार कर्मचारियों को नोटबंदी के दौरान ओवरटाइम ड्यूटी के लिए भुगतान कर दिया गया था, लेकिन अब उसे वापस मांगा जा रहा है. एसबीआई ने अपने सभी जोनल हेडक्वार्टर को भेजे गए एक पत्र में कहा है कि सिर्फ 'अपने कर्मचारियों (ब्रांच में काम करने वाले)' को ही अतिरिक्त काम के लिए पैसा दिया जाए, न कि पूर्व एसोसिएट बैंकों के कर्मचारियों को जिनका अब एसबीआई में विलय हो चुका है.

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