नाट्य भूषण से सम्मानित और 14 सामाजिक नाटकों के लेखक व निर्देशक सचिन गुप्ता कई लघु फिल्में भी लिख चुके हैं. 2014 में बतौर लेखक व निर्देशक उनकी पहली फीचर फिल्म ‘‘पराठे वाली गली’’ प्रदर्शित हुई थी. कुछ दिन पहले प्रदर्शित लघु फिल्म ‘‘पिहू’’ ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की थी. अब वह ‘‘पाखी’’ लेकर आए रहे हैं. दस अगस्त को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘पाखी’’ चाइल्ड ट्रैफीकिंग पर आधारित है. फिल्म की कहानी के केंद्र में 10 साल की लड़की पिहू की सत्य घटना है, जिसकी शादी एक 60 वर्ष के बुढ़े के साथ होती है और फिर उसे देह व्यापार के लिए बेच दिया जाता है.

स्वतंत्रता के 73 वर्षों के बाद भी विवाह की आड़ में लड़कियों का व्यापार किया जा रहा है. बचपन की मासूमियत और स्कूल जाने की उम्र में बाल तस्करी के जरिए वेश्यावृत्ति की अंधेरी गुफा में कम उम्र की लड़कियां लगातार फंस रही हैं. पाखी को उसके प्रेमी ने यौन व्यापार में फंसा दिया है. वह खुद को वेश्यावृत्ति की अंधेरे गुफा में पाती है.

फिल्म ‘‘पाखी’’ के लेखक व निर्देशक सचिन गुप्ता कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म ‘पाखी’ सामाजिक संकट की गहराई के साथ मानवीय जीवन मूल्यों की पड़ताल करती है. प्राकृतिक संघर्ष से जूझ रही चाइल्ड ट्रैफीकिंग में फंसी बच्चियां अपने अस्तित्व की तलाश करते हुए मानव तस्करी के पीछे की अंधेरी दुनिया की कटु सच्चाई को उजागर करती है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 27 मिलियन वयस्क और 14 मिलियन छोटी बच्चियां मानव तस्करी के कारण पीड़ित हैं. परिस्थितियों के साथ संघर्ष, अस्तित्व व जीत के साथ साजिश को रेखांकित करती ‘पाखी’ ऐसा सामाजिक दर्पण है, जिसे देखकर कोई भी इंसान आत्म विवेचना करने से बच नहीं सकता.’’

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