औरतों की माहवारी/मासिक धर्म को लेकर चली आ रही भारतीय संस्कृति व सामाजिक परंपरा  पर चोट करने के साथ ही मासिक धर्म के दौरान औरतों की स्वच्छता और उनके अच्छे स्वास्थ्य की चिंता करने वाली फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी यूं तो पैडमैन कहे जाने वाले तमिलनाडु निवासी अरूणाचलम मुरूगनाथन की कहानी है. पर इसमें काल्पनिक कहानी व काल्पनिक पात्रों को ज्यादा तरजीह देकर इंटरवल से पहले इसे कुछ ज्यादा ही मेलोड्रामैटिक बना दिया गया है.

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माहवारी के पांच दिन औरतों द्वारा गंदा कपड़ा, राख, पत्ता आदि का उपयोग करने की बजाय सैनेटरी नैपकीन पैड के उपयोग की वकालत करने वाली फिल्म ‘पैडमैन’ में दावा किया गया है कि सिर्फ 12 प्रतिशत भारतीय महिलांए ही सैनेटरी नैपकीन पैड का उपयोग करती हैं. यदि यह आंकड़ा सही है, तो चिंता का विषय है.

फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी महेश्वर, मध्यप्रदेश में रह रहे वेल्डिंग का काम करने वाले युवक लक्ष्मी कांत चौहान (अक्षय कुमार) की गायत्री (राधिका आप्टे) संग शादी से होती है. शादी के बाद अपनी पत्नी से प्यार करने वाला लक्ष्मी काफी खुश है. लेकिन उसे यह पसंद नहीं कि माहवारी के पांच दिन उसकी पत्नी घर से बाहर बैठे और गंदे कपड़े का उपयोग करे. वह दवा की दुकान पर जाकर अपनी पत्नी गायत्री के लिए 55 रूपए में सैनेटरी नैपकीन पैड खरीदकर लाता है.

उसे पैड मांगने में कोई शर्म नहीं महसूस होती. पर गायत्री इतना महंगा पैड उपयोग नहीं करना चाहती. उसका मानना है कि इससे घर में दूध नहीं आ पाएगा. गायत्री अपने पति लक्ष्मी को समझाती है कि वह औरतों के मसले पर अपना दिमाग न खपाए. पर पत्नी की तकलीफ लक्ष्मी को बर्दाश्त नहीं. ऊपर से डौक्टर उसे बताता है कि जो औरतें माहवारी के पांच दिनों में पत्ता, गंदा कपड़ा या राख का उपयोग करती हैं, वह बीमारी को दावत देती हैं. तब लक्ष्मी प्रसाद एक पैड को खोलकर देखता है, तो उसे पता चलता है कि मलमल के कपड़े के अंदर कुछ रूई/कापुस/कपास लपेटा गया है.

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