‘‘बांबे वेल्वेट’’ की असफलता के साथ ही अनुराग कश्यप और नए तरह का सिनेमा हाशिए पर चला गया था. मगर अब अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘‘मुक्काबाज’’ से एक बार फिर उनकी वापसी होगी, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन ‘‘मुक्काबाज’’ से अनुराग के अंध प्रशंसकों को निराशा होगी. ‘‘मुक्काबाज’’ भीं अनुराग की चिर परिचित शैली के अनुसार सिस्टम के खिलाफ बात करती है, पर इस बार शैली व अंदाज कुछ अलग है. ‘मुक्काबाज’ महज बाक्सिंग/मुक्केबाजी के खेल पर आधारित फिल्म नहीं है. बल्कि अनुराग कश्यप ने अपने अंदाज में इस फिल्म में खेल जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार व सिस्टम पर उंगली उठाने के साथ ही जातिगत भेदभाव आदि का भी सटीक चित्रण किया है.

उत्तर प्रदेश के बरेली शहर की पृष्ठभूमि में ‘‘मुक्काबाज’’ की कहानी के केंद्र में बरेली शहर के बाहुबली राजनेता व कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष भगवान दास मिश्रा (जिम्मी शेरगिल) और कुश्ती बाज श्रवण कुमार (विनीत कुमार सिंह) के इर्दगिर्द घूमती है. इसी के साथ इसमें भगवानदास मिश्रा की भतीजी सुनयना मिश्रा (जोया हुसेन) और श्रवण कुमार की प्रेम कहानी भी है.

फिल्म की कहानी के अनुसार नीची जाति के बाक्सर/मुक्केबाज श्रवण, भगवान दास मिश्रा के जिम में ट्रेनिंग लेते हैं और उनके शागिर्द हैं. भगवान दास मिश्रा अपने यहां के सभी बाक्सरों से अपने घरेलू काम करवाने से लेकर अपने शरीर की मालिश भी करवाते हैं. भगवान दास की गूंगी भतीजी सुनयना पर नजर पड़ते ही वह अपना दिल उसे दे बैठते हैं और फिर एक दिन गरीब व खुद्दार श्रवण, भगवान दास के शरीर की मालिश करने से मना कर देता है. वह भगवान दास की इस आव्हान का ‘‘हम ब्राम्हण है, हम आदेश देते हैं’’ को तवज्जो नहीं देता. इस पर भगवान दास को गुस्सा आता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...