पर्यावरण संरक्षण, बिजली व पानी बचाओ, शिक्षा आदि की बात करने वाली बाल फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते उतनी बेहतरीन फिल्म नहीं बन पाई, जितनी बन सकती थी. फिल्म ‘‘हमारी पलटन’’ की शुरुआत होती है बड़ी संख्या में हरे भरे पेड़ों के काटे जाने व पृथ्वी पर पानी के अभाव में सूखा पड़ने के दृश्यों के साथ. फिर कुछ वर्ष पहले बारिश के मौसम में उत्तराखंड में हुइ तबाही के टीवी समाचार के साथ फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है. एक शिक्षिका नंदिता गांव के बच्चों को इकट्ठा कर उन्हें पढ़ाती हैं. वह समाज सेविका हैं. जबकि मास्टरजी (टौम आल्टर) के नाम से मशहूर उनके पति भी नंदिता के बच्चों के लिए स्कूल की किताबें व नोटबुक आदि उपलब्ध कराते रहते हैं.

एक दिन कुछ असामाजिक तत्व नंदिता की हत्या कर देते हैं. उसके बाद से मास्टर जी अपनी दत्तक बेटी भावना (प्रगति मंगला) के साथ समाज सेवा के कार्य को आगे बढ़ाते हैं. वह हर दिन साइकल पर घूमते हुए बड़ी बड़ी इमारतों में रहने वाले अमीरों के बच्चों को पानी व बिजली बचाने की सीख देते रहते हैं. मास्टर जी अपनी पत्नी के जन्मदिन पर हर साल अलग अलग कालोनियों में पेड़ पौधे बच्चों के हाथों से लगवाते हुए उन्हें समझाते हैं कि पेड़ों के होने से कितने फायदे हैं. पेड़ों की वजह से हम इंसान जिंदा हैं. पड़ोसी सोनपुर गांव के किसान हीरा के बेटे चैतन्य (मास्टर हेमंत) को अच्छा क्रिकेट खेलते व पढ़ाई में अच्छा होने पर वह शहर के एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश दिला देते हैं.

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