मणिरत्नम की फिल्म ‘युवा’ में जब युवा दल का नेता अपने साथियों के साथ चुनावी जीत हासिल करने के बाद संसद प्रांगण में दाखिल होता है तो वहां पहले से मौजूद वरिष्ठ व वृद्ध नेताओं और मंत्रियों के हावभाव देख कर युवा बनाम वृद्ध के बीच के अहं, संघर्ष, वैचारिक असमानता और तल्खियोेंभरे रिश्ते बखूबी जाहिर होते हैं. भारतीय सिनेमा में उम्र के इस फासले के टकराव को वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और आपराधारिक मोरचे पर मिर्चमसाले के तड़के के साथ पेश करना बेहद कामयाब फार्मूला रहा है.

कभी नायक नायिका के अमीरी के नशे में चूर वृद्ध पिता से टकराता है तो कभी युवा नायक पुलिस या सैनिक की वरदी में उम्रदराज विलेन से दोदो हाथ करता नजर आता है. कई दफा रोमांस की पिच पर एक हसीना के प्यार में पागल युवा और वृद्ध नायक मजेदार चूहेबिल्ली का खेल खेलते दिखते हैं. कभीकभी तकरार चुनावी पगडंडियों से गुजरती हुई पार्लियामैंट तक पहुंच जाती है. और इस सारे क्रम में जैनरेशन गैप के चलते दोनों के बीच की भिड़ंत का इमोशन प्रभावी तरीके से उभरता है. यही वजह है कि बदलते दौर के सिनेमा में सबकुछ बदला लेकिन यंग गन को ओल्ड बैरल के सामने हमेशा दोदो हाथ कर दिखाया गया.

ऐसा नहीं है कि दोनों हमेशा टकराते ही रहते हैं. फिल्म ‘पिंक’ में एक नए तरीके से युवावृद्ध को संवेदनशील तार में पिरोते देखा गया. युवा अपराधी 3 लड़कियों से न सिर्फ छेड़छाड़ करते हैं बल्कि उन में से एक लड़की के साथ बलात्कार भी करते हैं. जब लड़कियां राजनीतिक रसूख के सामने घुटने तोड़ रही होती हैं तभी एक बुजुर्ग वकील उन के लिए अदालत की चौखट पर इंसाफ की बहस करता है और उन्हें न्याय दिलाता है.

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