‘‘शुक्रवार को फिल्म रिलीज होती है तो उस की ओपनिंग फिल्म के बड़े स्टार्स, पीआर ऐक्टिविटीज, स्टेट्स टूअर्स और अखबार, टीवी के इंटरव्यू के आधार पर तय होती है. उस के बाद सोमवार से फिल्म चलती है चरित्र किरदारों की बेहतरीन परफौर्मेंस की बदौलत. यानी मंडे से फिल्म की सर्वाधिक कमाई अच्छी कहानी और अच्छे किरदारों के बलबूते होती है.’’ यह कहना है अभिनेता पंकज त्रिपाठी का, जो फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ सीरीज में सुलतान खान, ‘फुकरे’ सीरीज में पंडितजी के किरदार से चर्चित हैं. इस के अलावा वे फिल्म ‘गुड़गांव’, ‘मसान’, ‘निल बटे सन्नाटा’ और कुछ अंगरेजी फिल्मों समेत टीवी पर भी नजर आ चुके हैं. बहरहाल, पंकज त्रिपाठी का यह बयान, दरअसल, उस तरह की फिल्मों की ओर इशारा कर रहा है जो किसी बड़े स्टार के बजाय चरित्र अभिनेताओं की अभिनय क्षमता या किरदारों से याद की जाती हैं. अब वह समय नहीं रहा जब फिल्म में हीरोहीरोइन के अलावा बाकी के भाईबहन, सासससुर, दोस्त आदि किरदार खानापूर्ति करते से लगते थे. अब तो इन के किरदार कई बार मुख्य अभिनेता पर भारी पड़ते हैं.

फिल्म ‘जौली एलएलबी’ सीरीज में मुख्य अभिनेता भले ही अक्षय कुमार रहे हों या अरशद वारसी, लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार और दर्शकों की तालियां जज के किरदार में रहे सौरभ शुक्ला को ही मिलीं. सौरभ शुक्ला अपने पूरे कैरियर के दौरान चारित्रिक भूमिका ही निभाते आए हैं. फिल्म ‘सत्या’ के कल्लू मामा से ले कर ‘जौली एलएलबी’ के जस्टिस सुंदर लाल त्रिपाठी तक के सफर में उन का कद लीड ऐक्टर सरीखा हो गया है यानी अब वे चरित्र अभिनेता होते हुए भी स्क्रिप्ट में पूरी तवज्जुह पा रहे हैं. यह बदलाव सकारात्मक माना जा सकता है.

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