इन दिनों इस बात पर काफी बहस हो रही है कि अच्छी परवरिश करने, बच्चे को अच्छा इंसान बनाने व पढ़ाई के लिए बच्चे को कितना पीटना चाहिए. हम आए दिन खबरें सुनते हैं कि माता पिता द्वारा हर दिन की जाने वाली पिटाई से तंग आकर बच्चा घर से भाग गया. यानी कि हमारे देश में लड़कियों से बलात्कार के अलावा बच्चे के साथ हिंसा की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ी हैं, जिनका बच्चे के कोमल मनमस्तिष्क पर काफी गहरा असर पड़ता है.

उसी पर मूलतः भारतीय मगर अमरीका के लॉस एंजेल्स शहर में बसे फिल्मकार, एक मनोवैज्ञनिक रोमांचक फिल्म ‘‘गली गुलियां’’ लेकर आए हैं. पुरानी दिल्ली की पृष्ठभूमि पर बनी और पुरानी दिल्ली में ही फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘गली गुलियां’’ में मनोज बाजपेयी, नीरज कबि, शहाना गोस्वामी, ओम सिंह ने अभिनय किया है. इस फिल्म को बुसान, लंदन, मेलबॉर्न सहित 27 से अधिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कृत किया जा चुका है.

फिल्म निर्देशक बनने का ख्याल कैसे आया?

मैं मूलतः भारतीय हूं, मगर अमरीका के लौस एजेंल्स शहर में रहता हूं. बचपन से फिल्मों का शौक रहा है और बचपन से फिल्म बनाने का सपना देखता आया हूं. मगर हमारा परिवार व्यवसाय को महत्व देता है. इसलिए पहले मैने चार्टड एकाउंटेंंसी की पढ़ाई पूरी की फिर अमरीका में नौकरी की. काम करते हुए मेरी समझ में आया कि यह मेरे लिए नहीं है. तो मैंने नौकरी छोड़ दी. चेक रिपब्लिक के प्राग शहर जाकर  फिल्म विधा की पढ़ाई की. फिर लौस एंजेल्स में मैने ‘यूएसए फिल्म स्कूल’ से सिनेमा में मास्टर की डिग्री हासिल की. उसके बाद कई लघु फिल्में व डाक्यूमेंटरी बनायी.

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