66 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले अभिनेता ओमपुरी ने अभिनय जगत में न सिर्फ एक मिसाल पेश की थी, बल्कि बौलीवुड में ‘‘फिल्मी हीरो’’ की चरिपरिचत पहचान को धता बताते हुए खुद को न सिर्फ हीरो के रूप में बौलीवुड में पेश किया, बल्कि दूसरे प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए राह खोली भी.

यह एक कटु सत्य है. बौलीवुड में आम धारणा यही रही है कि बौलीवुड में अभिनेता बनने के लिए चिकना चुपड़ा अति खूबसूरत चेहरा चाहिए. जबकि खुद ओम पुरी चिकने चेहरे की बजाय खुरदरे चेहरे के मालिक थे, मगर अपनी अभिनय क्षमता के बल पर उन्होंने सिर्फ बौलीवुड ही नहीं बल्कि हौलीवुड और अमरीकन फिल्मकारों को भी अपने साथ काम करने पर मजबूर किया था.

इन दिनों गैर फिल्मी परिवारों से आकर बौलवुड में कार्यरत कई कलाकार इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उन्हे तो अभी भी बौलीवुड में ‘बाहरी’ होने का अहसास कराया जाता है. पर ओम पुरी ने ऐसा कभी नहीं कहा. जबकि जिस वक्त ओम पुरी ने अपने करियर की शुरुआत की थी, उस वक्त भी सिनेमा से जुड़ना हर किसी के लिए आसान नहीं था. उस वक्त भी बौलीवुड पर चंद फिल्मी परिवारों का ही कब्जा था. मगर एक बार ओम पुरी ने हमसे कहा था-‘‘कौन बाहरी..हम बाहरी कैसे हो सकते हैं...मैं तो वह इंसान हूं जो कि दूध में शक्कर की तरह घुल जाता है. हमें तो कभी किसी ने बाहरी नहीं कहा..’’

ओम पुरी के अभिनय करियर में भी काफी विविधता रही है. जिन दिनों मुंबई में स्व. बाल ठाकरे की नई नई गठित पार्टी ‘शिवसेना’ के चलते ‘मराठी वाद’ व ‘आमची मुंबई’ का नारा बुलंद था, उन्ही दिनों अंबाला, पंजाब वासी ओम पुरी ने मुंबई पहुंचकर 1976 में विजय तेंडुलकर लिखित राजनीति व्यंग प्रधान मराठी भाषी नाटक ‘‘घासीराम कोटवाल’’ पर आधारित मराठी भाषा की फिल्म ‘‘घासीराम कोटवाल’’ में घासीराम का किरदार निभाकर सिनेमा में कदम रखा था. इस फिल्म में ओम पुरी ने मोहन अगाशे के साथ अभिनय किया था. के हरिहरन निर्देशित इस फिल्म की भी पटकथा विजय तेंडुलकर ने ही लिखी थी. इससे पहले वह सिर्फ थिएटर ही कर रहे थे.

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