गोविंदा का दावा है कि वह धर्म कर्म में यकीन करते हैं. वह अक्सर अपनी मां के पदचिन्हों पर चलते रहने का दावा करते हैं. जबकि बॉलीवुड के सूत्र दावा करते हैं कि गोविंदा की कथनी व करनी में जमीन आसमान का अंतर है. बहरहाल, गोविंदा के ही शब्दों में कहें तो गोविंदा अपने कर्मों का फल भुगत रहे हैं. जब गोविंदा स्टार बन गए थे, तो वह इस कदर अहम के शिकार व आत्ममुग्ध हो गए थे कि जिसने भी उनकी प्रशंसा नहीं की, वही उनका दुश्मन हो जाता था. राजनेता बनने और कॉग्रेस की लहर के दौरान सांसद बन जाने पर तो वह अपने आपको ईश्वर से भी बड़ा मानने लगे थे. परिणामतः अपने प्रशंसको को थप्पड़ रसीद करना, शूटिंग के लिए सेट पर छह से आठ घंटे देरी से पहुंचना उनकी आदत का हिस्सा था. हर जगह उनके साथ तमाम चमचे चिपके रहते थे. बॉलीवुड के बिचैलियों की माने तो उन दिनों गोविंदा किसी से भी सीधे मुंह बात नहीं करते थे. मगर गोविंदा के ही शब्दों में कहें तो अब जब उन पर ईश्वर की लाठी चली है, तो अब उनका करियर संवर ही नहीं पा रहा है. वह अपनी बेटी का भी करियर नहीं बना सके.
गोविंदा ने अपनी बेटी के करियर को संवारने के लिए ही फिल्म ‘‘अभिनय चक्र’’ की शुरूआत की थी, पर वह इस फिल्म को नहीं बना सके. फिर उनकी बेटी ने अन्य निर्माता की फिल्म से करियर शुरू किया था. पर उस फिल्म की बॉक्स आफिस पर बड़ी दुर्गति हुई. अंततः गोविंदा ने फिल्म ‘‘अभिनय चक्र’’ के कथानक में थोड़ा फेरबदल कर ‘‘आ गया हीरो’’ की नए सिरे से शुरूआत की, जिसमें वह खुद हीरो बन गए. मगर हालात ऐसे हैं या यूं कहें कि उनके कर्म ऐेसे हैं कि यह फिल्म थिएटरों में पहुंच नहीं पा रही है.