श्रीलंका ब्रौडकास्टिंग कौर्पोरेशन लिमिटेड यानी एसएलबीसी के विदेश विभाग से जुड़े रहे 3 वरिष्ठ उद्घोषकों मनोहर महाजन, विजयलक्ष्मी डिसेरम और रिपुसूदन कुमार ऐलावादी का शुमार प्रसारण जगत की शीर्ष हस्तियों में किया जाता है. इन उद्घोषकों ने लोकप्रियता का वह दौर भी देखा और भोगा है जब इन के पीछे करोड़ों श्रोताओं की जमात होती थी. इसे एक सुखद संयोग कह सकते हैं कि इन तीनों हस्तियों से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मिलने का मौका मिला. इसी मुलाकात में उन्होंने रेडियो के उन सुनहरे पलों को याद कर कई ऐसी बातें बताईं जिन्हें सुन कर उस दौर की यादें ताजा हो जाती हैं. 13 फरवरी ‘वर्ल्ड रेडियो डे’ के रूप में मनाया जाता है. तो आइए, हम आप को उन सुनहरे पलों की यादों के सफर में ले चलते हैं.

मनोहर महाजन जब भी रेडियो पर अपनी आवाज बिखेरते थे तो श्रोता सारा कामधाम छोड़ कर उन की आवाज सुनने लगते थे. जब उन से रेडियो सीलोन की बात शुरू की तो वे अपने पुराने साथियों के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘मेरे गुरु अमीन सयानी, उन के बड़े भाई हमीद सयानी, दलबीर सिंह परमार, ज्योति परमार, पद्मिनी, परेरा, विजयलक्ष्मी, सुभाषिनी, नलिनी परेरा, विमल धर्म, मेरे बौस जामलडीन, गोपाल शर्मा, ब्रज किशोर दुबे, कुमार और सरदार प्रीतपाल सिंह सहित ढेर सारे नाम हैं. वाकई वह बहुत यादगार दौर था.’’

अमीन सयानी बनने का ख्वाब

रेडियो की दुनिया के शुरुआती सफर को याद करते हुए मनोहर बताते हैं, ‘‘मैं प्रसारण की दुनिया में बाइचांस आया. बचपन से मैं सांस्कृतिक रुझान वाला हूं. पोस्टगे्रजुएशन पूरा कर मैं सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संगीत व नाटक प्रभाग से जुड़ गया. तभी रेडियो सीलोन में 2 उद्घोषकों की आवश्यकता का एक विज्ञापन दिल्ली के अखबारों में आया. रेडियो सीलोन की उस जमाने में तूती बोलती थी. आलम यह था कि लोग रेडियो खरीदते थे तो पहले देखते थे कि सीलोन साफ पकड़ता है कि नहीं. फिर अमीन सयानी साहब को सुनतेसुनते हम लोग सोचते थे कि यार, अगर वहां पहुंच जाएंगे तो स्टार बन जाएंगे. ऐसे बहुत से ख्वाब लिए मैं ने अपना आवेदनपत्र भेज दिया और उस के बाद दिल्ली में इंटरव्यू हुआ जिस की एक लंबी कहानी है. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा यह जानकर कि मैं सैलेक्ट हो गया था. खुशी की बात यह थी कि मुझे अमीन सयानी साहब ने 1 माह प्रशिक्षित किया और फिर मैं कोलंबो जा कर रेडियो सीलोन से जुड़ गया.

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