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इस डिवाइस की मदद से अब अपने लैपटौप में लगाइये दो डिस्प्ले

क्या आप भी चाहते हैं कि आपके एक ही लैपटौप में दो स्क्रीन हो? अगर आपका जवाब हां में है तो यह खबर आपके लिए ही है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस रिपोर्ट में हम आपको एक ऐसी डिवाइस के बारे में बताएंगे जिसे आप अपने लैपटौप में लगाकर दो डिस्प्ले का मजा ले सकते हैं. चौकिए नहीं क्योंकि ऐसा होना बिल्कुल संभव है और यह एक खास डिवाइस की मदद से किया जा सकती है.

आपका जानकारी के लिए बता दें कि इस खास डिवाइस का नाम डुओ (Duo) है जिसे मोबाइल पिक्सल नाम की कंपनी ने तैयार किया है. इस डुओ को किसी भी लैपटौप के पीछे लगाकर एक साथ दो डिस्प्ले का इस्तेमाल किया जा सकता है.

डुओ को लेकर कंपनी को 4 घंटे से कम में ही 35,000 अमेरिकी डालर यानी करीब 23,95,575 रुपये का फंड भी मिल गया है. वहीं पिछले 266 दिनों में कंपनी को 358,666 अमेरिकी डालर की फंडिंग मिली है.

डुओ को किसी भी लैपटौप या डेस्कटौप में पीछे से 2 चुंबक के सहारे लगाया जा सकेगा और फिर इसे एक यूएसबी प्लग के जरिए कनेक्ट किया जा सकेगा.

डुओ मैक, विंडोज, लाइनक्स, एंड्रायड और क्रोम डिवाइस पर काम करेगा. डुओ के जरिए आप अलग से 12.5 इंच की डिस्प्ले का इस्तेमाल कर सकेंगे. डिस्प्ले का रिजाल्यूशन 1080 पिक्सल है.

डुओ स्क्रीन को आप घूमा भी सकते हैं. इसकी कीमत 12,251 रुपये के करीब होगी और इसकी इसे 2019 में जनवरी में बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा.

मुंबई एयरपोर्ट पर देर रात हाथों में हाथ डाले दिखे प्रियंका और निक

जैसा कि आप सभी जानते हैं प्रियंका का अमेरिकी टीवी शो खत्म हो चुका है और अब वो दो साल बाद एक बार फिर से वह अपनी पहली बौलीवुड फिल्म ‘भारत’ की तैयारी में जुटने वाली हैं. अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म में सलमान खान उनके हीरो हैं. बौलीवुड और हौलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा जब से अमेरिका से इंडिया लौटी हैं वो लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. जहां प्रियंका अपनी फिल्म ‘भारत’ को लेकर चर्चा में हैं तो वहीं दूसरी तरफ वह निक जोनास के साथ अपने रिलेशनशिप की खबरों को लेकर भी सुर्खियों में छाई हुई हैं.

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प्रियंका चोपड़ा और निक जोनास अपनी भारत यात्रा के दौरान लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. इस बीच इनकी लेटेस्ट तस्वीरें मुंबई एयरपोर्ट से आई हैं, जिनमें एक बार फिर इन दोनों सितारों की नजदीकियां नजर आ रही हैं. प्रियंका और निक जोनास की देर रात एयरपोर्ट पर हाथो में हाथ डाले खी तस्वीरें सामने आईं हैं. इन तस्वीरों में दोनों की केमिस्ट्री भी साफ देखी जा सकती है. निक ने बड़े ही कौन्फिडेंट के साथ प्रियंका का हाथ थामा हुआ है, जबकि प्रियंका ने कैमरा देखकर अपनी निगाहें नीचे कर ली हैं.

जाहिर है यह तस्वीरें बहुत कुछ कह रही हैं! बहरहाल, तस्वीरों से तो यही लग रहा है कि निक अब अपने देश वापस लौट रहे हैं लेकिन, जब तक वो यहां रहे लगातार मीडिया कैमरे की नजर में रहे! इस बीच यह भी खबर है कि प्रियंका अमेरिकन सिंगर और एक्टर निक को अपनी मां से मिलवाने के लिए ही इंडिया लायी थीं.

गौरतलब है कि निक जोनास और प्रियंका के अफेयर की खबरें काफी दिनों से चल रही हैं. कुछ दिनों पहले जब प्रियंका चोपड़ा निक के साथ उनके कजन की शादी में पहुंची थीं तभी से इनके रिलेशनशिप को लेकर लगातार चर्चा हो रही है. कुछ दिन पहले ये दोनों मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के बड़े बेटे आकाश अंबानी की प्री एंगेजमेंट की ग्रैंड पार्टी में भी पहुंचे थे. वहां भी यह दोनों स्टार्स किसी कपल की तरह ही नजर आये और यह दोनों पार्टी में छाए रहे.

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25 साल के निक और 35 की प्रियंका चोपड़ा के बीच उम्र के अंतर पर भी सोशल मीडिया में काफी कुछ लिखा जा रहा है. इन सबके बीच प्रियंका चोपड़ा ने इस पूरे मुद्दे पर अभी तक कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है. प्रियंका जो अपने बिंदास और बेबाक बयानों के लिए जानी जाती हैं, उम्मीद है कि वो जल्द ही अपने और निक को लेकर कोई बड़ा बयान देंगी!

देश को कैसे मिला जीएसटी, जानिये पूरी कहानी

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए एक साल होने जा रहा है. नोटबंदी के बाद जीएसटी केंद्रीय सरकार का दूसरा बड़ा फैसला था. भारत जैसे जटिल संरचना वाले देश में जीएसटी ने टैक्स सिस्टम को एकीकृत करने का काम किया. जीएसटी ने करीब एक दर्जन से अधिक इनडायरेक्ट टैक्स की जगह ली है. हालांकि यह प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल रही. करीब दो दशक से अधिक समय की लंबी प्रक्रिया के बाद आखिरकार देश को 1 जुलाई, 2018 को नया टैक्स सिस्टम मिला.

इस पूरी प्रक्रिया को आसान टाइमलाइन में समझा जा सकता है.

GST टाइमलाइन

  • वर्ष 2002 में एनडीए की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री और यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री थे. इन्होंने सितंबर 2002 में विजय केलकर के नेतृत्व में दो समिति- केल्कर कमेटी औन डायरेक्ट टैक्सेस और केल्कर कमेटी औन इनडायरेक्ट टैक्सेस बनाईं.
  • वर्ष 2000 में एक कमेटी का गठन किया था जिसका नाम एम्पावर्ड कमेटी (ईसी) रखा गया था. इस कमेटी से पूछा गया कि वे बताएं कि इस मसले पर क्या करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि केल्कर कमेटी ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की सिफारिश की थी.
  • इसके बाद वर्ष 2003 से नए कानून की दिशा में प्रयास शुरू कर दिया गया. अगले साल 2004 में एनडीए की सरकार चली गई.
  • वर्ष 2006-07 की बजट स्पीच के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री ने जीएसटी पर बात बढ़ाई और बताया कि इसे 1 अप्रैल 2010 से लागू करने का प्रयास किया जाएगा.

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  • वर्ष 2009 में एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया गया.
  • वर्ष 2011 में संविधान संशोधन बिल तैयार कर सरकार ने इसे बिल को लोकसभा में पेश किया. यह 115वां बिल था.
  • जब इस बिल को वित्त मामले की स्थाई समिति के पास भेजा गया तो ईसी ने इस पर संशोधन की बात कही.
  • यह बिल मार्च 2014 में लोकसभा में आया लेकिन लोकसभा भंग होने के चलते पारित नहीं हो पाया. इसके बाद चुनाव आ गए और ये बिल भी लैप्स हो गया.
  • वर्ष 2014 की 26 मई को भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने.
  • अगले महीने जून 2014 में ही सरकार ने बिल को सदन में पेश करने की अनुमति दी और फिर इसे ईसी के पास भेज दिया गया.
  • एम्पावर्ड कमेटी (ईसी) ने काम किया और दिसंबर 2014 में लोकसभा में ये संशोधित बिल पेश हो गया.
  • लोकसभा में इस पर विचार विमर्श होने के बाद और मई 2015 में इसे लोकसभा में पारित कर दिया गया.
  • इसके बाद इसके राज्यसभा में भेजा गया. यहां पर राज्यों ने इसपर अपनी सिफारिशें दीं.
  • इस बिल पर काफी बहस होने के बाद इसे राज्यसभा ने सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया.
  • 3 अगस्त 2016 को बिल राज्यसभा में कुछ संशोधन के साथ पास किया गया.
  • आर्टिकल 368 (संविधान का संशोधन कैसे हो) के तहत दोनों सदनों के विशेष बहुमत और कुल संख्या के आधे बहुमत के अलावा आधे राज्यों के विधानमंडल की सहमति भी जरूरी होती है.
  • दिल्ली और पुडुचेरी को राज्य मानने के बाद कुल राज्यों की संख्या 31 हो गई. इस तरह 16 राज्यों के समर्थन की जरूरत हुई. राज्यों से कहा गया कि वे अपने अपने यहां संकल्प पारित करें. इस पर सबसे पहले असम और फिर बिहार ने सहमति दिखाई.
  • 2 सितंबर, 2016 को 16वें राज्य के रूप में राजस्थान ने इसे विधानसभा में पारित कर दिया.
  • इसके बाद 8 सितंबर, 2016 को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किये और यह अधिनियम बन गया. यह 101वां संविधान संशोधन अधिनियम था.
  • 12 सितंबर 2016 को धारा 12 को लागू किया गया और GST काउंसिल का गठन हुआ.
  • एक्ट में स्पष्ट किया गया था कि कानून के लागू होने से ठीक एक साल बाद सभी कानून जो कि जीएसटी से जुड़े हैं उन्हें खत्म कर दिया जाएगा.
  • इस तरह इसे 16 सितंबर 2016 को लागू कर दिया गया. यदि 16 सितंबर 2017 तक जीएसटी लागू नहीं होता तो सभी कानून (अप्रत्यक्ष) खत्म हो जाते.
  • इसके बाद एक जुलाई, 2017 को आखिरकार सरकार ने इसे देशभर में लागू कर दिया.

सुशांत ने खरीदी चांद पर जमीन

चकाचौंध से भरी फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले लगभग हर बड़े सेलिब्रिटी के पास करोड़ो की संपत्ति है. इन्हीं कलाकारों में एक कलाकार ऐसा भी है जिसे इंडस्ट्री में आये ज्यादा समय तो नहीं हुआ है लेकिन फिर भी उसने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो आज तक इतने सालों में अक्षय, सलमान और आमिर खान जैसे बड़े अभिनेता भी नहीं कर पाए हैं.

यहां हम बात कर रहें है सुशांत सिंह राजपूत की जिन्होंने धरती पर नहीं बल्कि चांद पर संपत्ति खरीदी है. बाकि लोगो की तरह आप भी इस खबर को सुनकर हैरान हो गये होंगे और ये ही सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे हो सकता है? लेकिन ये सच है. सूत्रों की माने तो सुशांत सिंह राजपूत ने चांद पर प्लाट खरीद लिया है और अब तो इसका सबूत भी सामने आ गया है.

सुशांत ने चांद पर अपना प्लाट ‘सी आफ मसकोवी’ में खरीदा है. सुशांत ने 25 जून को चांद पर प्रौपर्टी अपने नाम करवायी है. हालांकि सुशांत ने चांद के जिस हिस्से पर जमीन खरीदी है वो हिस्सा धरती पर से नहीं दिखता है. वैसे आपको बता दें सुशांत पहले ऐसे एक्टर नहीं हैं जिन्होंने चांद पर जमीन खरीदी हो बल्कि शाहरुख खान की भी चांद पर जमीन हैं. शाहरुख खान को उनके किसी फैन ने चांद पर जमीन खरीदकर गिफ्ट की थी.

इंग्लैंड के औलराउंडर खिलाड़ी बेन स्टोक्स की भारत के खिलाफ वनडे सीरीज में वापसी

भारत और आयरलैंड का टी20 सीरीज दौरा खत्म हो चुका है. अब सभी की नजरें आगामी भारत- इंग्लैंड दौरे पर है जिसकी शुरुआत तीन टी20 मैचों की सीरीज पर है जो कि मंगलवार 3 जुलाई को होने जा रही है. इस सीरीज में इंग्लैंड के चर्चित हरफनमौला खिलाड़ी बेन स्टोक्स पहले ही बाहर हो चुके हैं लेकिन अभी तक  इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने उनके वनडे सीरीज पर खेल पाने की स्थिति में कोई निर्णय नहीं लिया था.

अबईसीबी ने अगले माह भारत के साथ होने वाली तीन मैचों की वनडे सीरीज के लिए  बेन स्टोक्स को 14 सदस्यीय टीम में शामिल किया है. वेबसाइट ईएसपीएन क्रिकइंफो की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टोक्स मई में पाकिस्तान के खिलाफ दूसरे टेस्ट में हार्मस्ट्रिंग चोट का शिकार हो गए थे. इसके बाद वह स्कौटलैंड और औस्ट्रेलिया के खिलाफ सीमित ओवरों की सीरीज में टीम का हिस्सा नहीं थे.

दस दिन पहले ही खबर आई थी कि स्टोक्स और तेज गेंदबाज क्रिस वोक्स चोट के कारण औस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा एकदिवसीय सीरीज के अंतिम दो मैचों से बाहर हो गए हैं उसके बाद उनके भारत दौरे के  लिए उपलब्ध होने बारे में इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड को बयान देना पड़ा.

ईसीबी को स्पष्टीकरण देते हुए बताया था कि स्टोक्स की मांसपेशियों में खिंचाव आ गया है और उम्मीद जताई गई थी कि वह भारत के खिलाफ अगले महीने होने वाली टी 20 सीरीज के लिए फिट हो जाएंगे. वहीं वोक्स भारत वनडे सीरीज तक बाहर रहेंगे. लेकिन उसके बाद स्टोक्स को टी20 इंग्लैंड टीम में शामिल नहीं किया गया.

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इंग्लैंड दौरे पर भारत 12 जुलाई से तीन मैचों की वनडे सीरीज खेलेगा. लेकिन स्टोक्स इससे पहले पांच जुलाई को हेडिंग्ले में यौर्कशायर के खिलाफ डरहम के लिए मैच खेलकर अपनी फिटनेस साबित करेंगे. स्टोक्स ने घर में अपना आखिरी वनडे सितंबर 2017 में खेला था. स्टोक्स अगर वनडे सीरीज शुरू से पहले पूरी तरह से फिट हो जाते हैं तो वह भारत के खिलाफ तीन मैचों की टी-20 में भी वापसी कर सकते हैं. स्टोक्स के वापसी करने से सैम बिलिंग्स को बाहर बैठना पड़ा है जिन्होंने पिछले दो मैचों में 12 और 18 रन बनाए थे.

इंग्लैंड ने अपने 14 सदस्यीय टीम में तेज गेंदबाज क्रिस को मौका नहीं दिया है जो अभी भी चोट से उबर रहे हैं. वहीं आस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे में पदार्पण करने वाले सैम कुरेन को भी टीम में शामिल नहीं किया गया है, जबकि उनके भाई टौम कुरेन सीरीज का हिस्सा होंगे.

टीम इंडिया के लिए काफी अहम दौरा माना जा रहा है इंग्लैंड दौरा

टीम इंडिया के लिए इंग्लैंड दौरा कड़ा इम्तिहान माना जा रहा है. विराट कोहली को साबित करना है कि उनकी टीम के खिलाड़ी खासतौर पर दिग्गज बल्लेबाज घर के शेर नहीं हैं. टीम इंडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती इंग्लैंड की परिस्थितियों में ढलने की है. वहीं दूसरी ओर भारत के गेंदबाजों के लिए इंग्लैंड की स्विंग गेंदबाजी के लिए मिलने वाले अनुकूल माहौल का फायदा उठाने की भी चुनौती होने वाली है. उम्मीद की जा रही है कि भुवनेश्वर कुमार को इन हालातों का लाभ मिल सकता है और वे शानदार गेंदबाजी कर सकते हैं. भारत के रिस्ट स्पिनर्स भी आयरलैंड के खिलाफ अपने प्रदर्शन से काफी उत्साहित हैं.

टीम इंग्लैंड : इयोन मोर्गन (कप्तान), मोइन अली, जौनी बेयरस्टो, जैक बाल, जोस बटलर (विकेटकीपर), टौम कुरेन, एलेक्स हेल्स, लियाम प्लंकेट, आदिल राशिद, जो रूट, जेसन रौय, बेन स्टोक्स, डेविड विली, मार्क वुड.

भारत आयरलैंड सीरीज जीतने के बाद बढ़ी कोहली की टेंशन

भारत ने दूसरे टी-20 मैच में आयरलैंड पर 143 रन की बड़ी जीत दर्ज की. ये टी-20 क्रिकेट में भारत की सबसे बड़ी विजय रही. इसी के साथ भारत ने दो मैचों की सीरीज़ में मेजबान टीम का क्लीन स्वीप करते हुए श्रृंख्ला भी अपने नाम कर ली. लेकिन इस जीत ने भारतीय कप्तान विराट कोहली की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

सीरीज जीतने के बाद कप्तान कोहली ने कहा कि  ‘अब तो मेरा सिरदर्द शुरू हो गया है. इसकी वजह है कि किस खिलाड़ी को टीम में शामिल करूं और किसे नहीं. सभी ने शानदार बल्लेबाजी की हैं, वैसे यह अच्छी समस्या है. यह भारतीय क्रिकेट का अच्छा दौर है, जहां युवा खिलाड़ी मिले हुए मौके को दोनों हाथों से भुना रहे हैं.’

उन्होंने कहा, टीम में सभी खिलाड़ी समान रूप से मेहनत कर रहे हैं और कोई भी खिलाड़ी अपनी जगह को पक्की मानकर नहीं चलता है. सभी खिलाड़ी जिम्मेदारी उठा रहे है जो सबसे अच्छी बात है. मुझे किसी भी खिलाड़ी को प्रेरित नहीं करना होता है, सभी अपने आप बेहतर प्रदर्शन के लिए कटिबद्ध हैं.

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इसी के साथ कोहली ने कहा, हमारी बेंच स्ट्रैंथ ने दिखा दिया कि वो कितनी मजबूत है, विपक्षी टीम हमारे लिए मायने नहीं रखती है और इंग्लैंड के साथ भी ऐसा ही होगा. वहां पिचें अच्छी होगी और हमारे बल्लेबाज उनके गेंदबाजों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेंगे. हमारे पास दो कलाई के स्पिनर हैं जो लाभदायक साबित होगा. यदि हमने क्षमता के अनुरुप प्रदर्शन किया तो यह सीरीज बहुत रोमांचक रहेगी. इंग्लैंड बहुत मजबूत टीम है, लेकिन हमारे पास उन्हें चुनौती देने की क्षमता है.

दूसरे टी20 मैच में भारत ने केएल राहुल को मौका दिया और राहुल ने शानदार पारी खेलते हुए 36 गेंदों में 70 रन ठोक दिए. रैना ने 69 रनों का योगदान दिया तो अंत में हार्दिक पांड्‍या ने 9 गेंदों में तूफानी अंदाज में 32 रन बनाए. वहीं गेदबाज़ी में भी टीम इंडिया ने बदलाव किया और इस मैच में उमेश यादव को  मौका दिया. उन्होंने भी बेहतरीन गेंदबाज़ी करते मेजबान टीम को दो शुरुआती झटके दिए. उमेश ने 2 ओवर में 19 रन देकर 2 विकेट लिए.

काले धन को सुरक्षित रखने के लिये इस तरीके से खोला जाता है स्विस बैंक अकाउंट

स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का पैसा वर्ष 2017 में 50 फीसदी बढ़कर 1.01 अरब सीएचएफ यानी स्विस फ्रैंक (7 हजार करोड़ रुपए) हो गया. हालांकि, वर्ष 2006 के अंत में भारतीयों का जमा पैसा 650 करोड़ स्विस फ्रैंक (23,000 करोड़ रुपए) के अपने रिकौर्ड हाई पर था. इसे देखते हुए यह सवाल उठना लाजमी है कि ऐसा क्या है, जिसकी वजह से सभी पैसे वाले लोग स्विस बैंक में ही खाता खोलते हैं.

काले धन और स्विस बैंकों को लेकर कई खबरें तो पढ़ी होंगी, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह कैसे काम करता है. सवाल यह भी है क्या केवल बड़े धन कुबेर ही स्विस बैंक में खाता खोल सकते है? जी नहीं, स्विस बैंक में कोई भी अपना खाता खोल सकता है. आइए जानते हैं स्विस बैंक में कैसे खुलवाया जा सकता है खाता.

ऐसे खुलवा सकते हैं खाता

आप स्विटजरलैंड में स्थित किसी भी बैंक में खाता खोलने के लिए औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए बैंक आपके पहचान संबंधी दस्तावेजों को कौरेस्पोंडेंस के जरिए मंगाता है. इसे आप ई-मेल के जरिए भी भेज सकते हैं. केवल बिना नाम वाला खाता खोलने के लिए ही आपको स्विटजरलैंड जाना जरूरी होता है.

काले धन रखने के लिए ‘नंबर अकाउंट’

इकोनौमिक टाइम्स के मुताबिक, काला धन रखने वाले जो अकाउंट खुलवाते हैं, उसे नंबर अकाउंट कहा जाता है. स्विस बैंक में अकाउंट 68 लाख रुपए से खुलता है. इसमें ट्रांसजैक्शन के वक्त कस्टमर के नाम के बजाय सिर्फ उसे दी गई नंबर आईडी का इस्तेमाल होता है. इसके लिए स्विट्जरलैंड के बैंक में फिजिकल तौर पर जाना जरूरी हो जाता है. 20,000 रुपए हर साल इस अकाउंट की मेंटनेंस के लिए जाते हैं.

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तीन तरह के खुलते हैं अकाउंट

आपके पहचान संबंधी दस्तावेजों का किसी सरकारी एजेंसी से प्रमाणित होना जरूरी है, जिसके आधार पर स्विटजरलैंड के बैंक में आप पर्सनल अकाउंट, सेविंग्स अकाउंट और इन्वेस्टमेंट अकाउंट सहित दूसरे खाते खुलवा सकते हैं. बैंक रिकौर्ड के लिए कई तरह के डौक्युमेंट्स मांगते हैं. इनमें पासपोर्ट की औथेन्टिक कौपी, कंपनी के डौक्युमेंट, प्रफेशनल लाइसेंस जरूरी होता है.

बिना नाम के भी खुलते हैं खाते

स्विट्जरलैंड में करीब 4003 बैंक हैं. ये सभी बैंक गोपनीयता कानून की धारा 47 के तहत बैंक अकाउंट खुलवाने वाले की गोपनीयता रखते हैं. अपनी गोपनीयता की वजह से दुनिया भर में लोकप्रिय स्विस बैंक ग्राहकों को नंबर के आधार पर भी खाता खोलने का मौका देते हैं, यानी कि खाते पर आपका नाम नहीं होगा.

नंबर से ही होता है सारा लेन-देन

सारा लेन-देन नंबर के आधार पर होगा, लेकिन इस तरह का खाता खोलने की प्रक्रिया काफी सख्त है. खाता खोलने वाले को खुद बैंक में जाकर अपनी पूरी जानकारी देनी पड़ती है. इसके अलावा यह खाता न्यूनतम 1 लाख डौलर की पूंजी से खोला जा सकता है. खाता धारक के नाम की जानकारी केवल बैंक के कुछ चुनिंदा वरिष्ठ अधिकारियों के पास होती है.

कोई भी वयस्क खोल सकता है खाता

कोई भी व्यक्ति, जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है, वह स्विस बैंक में अपना खाता खोल सकता है. भारतीय भी इसी कड़ी में अपना खाता खोल सकते हैं. हालांकि, खाता खोलने का अंतिम अधिकार दूसरे बैंकों की तरह स्विस बैंक के पास होता है. बैंक खाता खोलते वक्त खास तौर से पूंजी के स्रोत आदि पर कड़ी पड़ताल करता है, जिसमें राजनीतिक शख्सियत आदि का खाता खोलते वक्त खास पड़ताल की जाती है.

स्विटजरलैंड में हैं 400 बैंक

स्विटजरलैंड में करीब 400 बैंक हैं, जो स्विस बैंक के रूप में जाने जाते हैं. इसमें से दुनिया भर में यूनाइटेड बैंक औफ स्विटजरलैंड (यूबीएस) और क्रेडिट सुईस समूह सबसे लोकप्रिय बैंक हैं. इन बैंकों के पास स्विटजरलैंड के कुल बैंकों की 50 फीसदी से ज्यादा बैलेंसशीट है.

भारतीयों पर लगते हैं RBI और FEMA कानून

रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक, जिस भारतीय का विदेशी बैंक में खाता है, वह उसमें साल में 1.25 लाख डौलर तक जमा कर सकता है. इसके अलावा कंपनियों के खातों पर फेमा कानून लागू होता है. खाते में लेन-देने को लेकर प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को छूट मिलती है.

अब इंस्टाग्राम स्टोरीज होंगी और भी दिलचस्प

इंस्टाग्राम यूजर्स के लिए एक खुशखबरी है क्योंकि फोटो और वीडियो शेयरिंग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इंस्टा पर एक नया फीचर आने वाला है. यह फीचर खासतौर पर स्टोरीज के लिए है जिसमें फेसबुक ने पिछले कुछ महीनों में काफी बदलाव किए हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक या इंस्टा हर जगह स्टोरी फीचर तेजी से पौपुलर हो रहे हैं.

इंस्टाग्राम ने अपने आफिशियल ब्लौगपोस्ट में कहा है कि अब यूजर्स स्टोरी में मोमेंट्स के हिसाब से साउंडट्रैक भी ऐड कर सकते हैं. कंपनी के मुताबिक हर दिन 400 मिलियन इंस्टाग्राम स्टोरीज इस्तेमाल की जाती हैं.

स्टोरीज में साउंडट्रैक ऐड करने के लिए यूजर्स को फोटो या वीडियो के बाद add sticker पर क्लिक करना होगा. यहां आपको एक नया म्यूजिक आइकान दिखेगा. इसे टैप करना और आपको हजारों गानों की लाइब्रेरी दिखेगी. आप चाहें तो गाने सर्च भी कर सकते हैं. पौपुलर टैब भी है जिनमें से आप लोकप्रिय गाने चुन सकेंगे. यहां प्रीव्यू का भी विकल्प मिलेगा ताकि आप इसे यूज करने से पहले सुन सकें. एक बार साउंड ट्रैक सेलेक्ट कर लिया है तो आप स्टोरी के बेस्ट पार्ट के लिहाज से गाने को फास्ट फौर्वर्ड और रिवाइंड भी कर सकते हैं.

फेसबुक की सहायक कंपनी इंस्टाग्राम ने कहा है कि कंपनी हर दिन म्यूज़िक लाइब्रेरी में गाने ऐड कर रही है. फिलहाल ये फीचर दुनिया भर के 51 देशों में शुरू किया जा रहा है. वीडियो कैप्चर करने से पहले गाने चुनने वाला फीचर फिलहाल आईफोन यूजर्स के लिए ही है और जल्द ही एंड्रायड में भी दिया जाएगा. कंपनी ने कहा है कि जल्द ही इसे दुनिया भर के यूजर्स को दिया जाएगा.

इतना ही नहीं इस नए फीचर के तहत अगर आप चाहें तो वीडियो कैप्चर करने से पहले ही गाने चुन सकते हैं. इसके लिए कैमरा ओपन करके रिकार्ड बटन के नीचे स्वाइप टू न्यू म्यूजिक करना है. यहां से गाने सर्च करें और जिस पार्ट को सेलेक्ट करना है उसे चुने और वीडियो रिकौर्ड करें गाना बैकग्राउंट में चलता रहेगा. यानी अगर कोई आपकी स्टोरी देख रहा है तो उसे वीडियो या फोटो के बैकग्राउंड में वो म्यूजिक भी सुनाई देगा जिसे आपने रिकार्ड किया है. गाने का टाइटल भी उन्हें उस वीडियो या फोटो पर स्टीकर्स के शक्ल में दिखेगा.

शर्मनाक : लाठीतंत्र की ओर लौटता देश

देश में ऐसी बहुत सारी घटनाएं घट रही हैं जिन को देख कर यह साफ हो जाता है कि लोकतंत्र अब लाठीतंत्र की ओर बढ़ता जा रहा है. इस के पीछे धर्म के पाखंड को मजबूत करने की सोच साफतौर पर नजर आती है. इस को धार्मिक अंधविश्वास के डंडे के जोर पर तरहतरह से थोपा जा रहा है.

साल 2012 की एक घटना है.  म्यांमार में बौद्धों और मुसलिम संघर्ष की प्रतिक्रिया उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देखने को मिली थी. कट्टरपंथियों के उकसावे पर सैकड़ों की भीड़ लखनऊ के पक्का पुल पर जमा हुई थी. लोग लाठी, लोहे की छड़, छुरे और तमंचों से लैस हो कर आए थे.

लाठीतंत्र की अगुआ बनी भीड़ ने सब से पहले बुद्धा पार्क में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ा. इस के बाद शहीद स्मारक पर तोड़फोड़ हुई. वहां से लोग विधानसभा के पास आए और वहां धरना दे रहे बौद्ध समाज के अशोक चंद्र से मारपीट की.

देखा जाए तो म्यांमार की घटना में न तो लखनऊ के लोग शामिल थे, न ही यहां लाठीतंत्र अपनाने से म्यांमार में कोई असर पड़ने वाला था. पक्का पुल से विधान सभा भवन की दूरी महज 6 किलोमीटर है. भीड़ इतनी दूर बाजारों में तोड़फोड़ करते हुए बढ़ रही थी और प्रशासन मजबूर था.

भीड़ ने न केवल तोड़फोड़ की बल्कि पार्क में खेल रहे बच्चों और औरतों से बदतमीजी भी की. इस मामले के 6 साल बीत जाने के बाद भी कोई इंसाफ नहीं मिल सका है.

एससीएसटी आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद बृज लाल ने इस घटना को संज्ञान में लिया और लखनऊ के एसएसपी से घटना के बाद उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी.

घटना के समय प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी. उन पर भी घटना को दबाने का आरोप है. देखने वाली बात यह है कि अब इस मामले में क्या होता है? सरकार किसी की भी हो, लाठीतंत्र हमेशा हावी होता है. पूरे देश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.

इस तरह की ज्यादातर घटनाओं में धार्मिक और जातीय वजह अहम होती हैं. 1-2 घटनाओं के घटने से बाकी लोगों के हौसले बढ़ते हैं जिस से धीरेधीरे अब ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं.

बढ़ता है हौसला

इतिहास गवाह है कि लाठीतंत्र के आगे सरकारें झुकती रही हैं. वे किए गए वादों से मुकर जाती हैं. कानून अपना राज स्थापित नहीं कर पाता और प्रशासन लाचार हो जाता है. इस तरह की घटनाओं में इंसाफ नहीं मिलता. अगर मिलता भी है तो आधाअधूरा.

साल 1992 के बाद राम मंदिर का आंदोलन इस तरह के भीड़तंत्र का एक उदाहरण है. उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दे कर कहा था कि अयोध्या में कुछ नहीं होने पाएगा, पर भीड़तंत्र ने लाठीतंत्र के जोर पर विवादित ढांचा ढहा दिया.

26 साल बीत जाने के बाद भी इस का फैसला नहीं आ पाया है. ऐसी घटनाओं से लाठीतंत्र को बढ़ावा मिलता है. साल 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा इस का सब से बड़ा उदाहरण है जिस में उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गुजरात के मुख्यमंत्री को ‘राजधर्म’ का पालन करने की सीख देनी पड़ी थी.

धीरेधीरे इस तरह की घटनाओं ने तेजी पकड़नी शुरू की. इन का दायरा बढ़ने लगा. लोग एकजुट हो कर इस तरह की घटनाआें को अंजाम देने लगे.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में एक समुदाय को मारने की घटनाएं लाठीतंत्र का ही उदाहरण हैं. जहां पर एक समुदाय के खिलाफ हिंसा होती रही और बाकी समाज चुप्पी साधे रहा.

पहले इस तरह की गिनीचुनी घटनाएं घटती थीं, पर अब इन की तादाद बढ़ती जा रही है. गौरक्षा के नाम पर ऐसी तमाम घटनाएं घटी हैं जिन में लाठीतंत्र का असर देखने को मिला.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अखलाक की हत्या इस का प्रमुख उदाहरण है. उत्तर प्रदेश की ही तरह राजस्थान, हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं. इन में सरेआम लोगों की पिटाई और हत्या तक की गई.

साल 2008 में गुर्जर समाज ने पिछड़े तबके के बजाय खुद को दलित जाति में शामिल किए जाने को ले कर आंदोलन किया था. तब पुलिस और आंदोलन करने वालों के बीच हिंसक झड़पों में तकरीबन 37 लोगों की मौतें हुई थीं.

साल 2015 में गुजरात में पाटीदार समाज ने आरक्षण पाने के लिए आंदोलन किया था. 25 अगस्त को अहमदाबाद में हुए सब से बड़े प्रदर्शन में जनजीवन ठप हो गया था.

अगस्त से सितंबर तक की घटनाओं में 14 लोगों की मौतें हो गई थीं. 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. बहुत सारी बसें जला दी गई थीं. केवल अहमदाबाद शहर में ही 12 करोड़ रुपए से ऊपर का नुकसान हुआ था.

आरक्षण पाने के लिए जाट समुदाय ने साल 2016 में आंदोलन किया था. हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में 340 अरब रुपए का नुकसान हुआ था. रेलवे का तकरीबन 60 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था. तकरीबन ढाई दर्जन लोग मारे गए थे.

आंध्र प्रदेश में कापू आंदोलन हुआ. कापू समुदाय ने खुद को पिछड़ी जाति में शामिल किए जाने की मांग को ले कर आंदोलन छेड़ा और रेलवे लाइन और हाईवे को बंद कर दिया. ‘रत्नाचंल ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी की कई बोगियों में आग लगा दी गई थी. इतना ही नहीं, सिक्योरिटी में लगे आरपीएफ के जवानों पर भी हमला किया गया.

अगस्त, 2017 में हरियाणा के पंचकूला में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरुमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद उपजी हिंसा में 29 लोगों की मौत और 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए.

इसी तरह फिल्म ‘पद्मावत’ के विरोध में राजस्थान में करणी सेना ने फिल्म के सैट पर तोड़फोड़ की. जनवरी, 2018 में जब यह फिल्म रिलीज हुई तो विरोध में हिंसक घटनाएं हुईं.

अप्रैल, 2018 में दलित ऐक्ट में संशोधन के विरोध में हिंसा हुई. वह भी लाठीतंत्र का ही उदाहरण है.

क्यों नहीं बदल रहे हालात

देश की आजादी के बाद भारत को एक लोकतांत्रिक देश का दर्जा मिला. शांति और अहिंसा को देश का मूल स्वरूप रखा गया. आजादी की लड़ाई के समय महात्मा गांधी ने अहिंसा का सहारा ले कर अंगरेजों को देश छोड़ने पर मजबूर किया था. गांधीजी ने कई ऐसे आंदोलन को वापस लिया जिस में हिंसा होने लगी थी.

आजादी के समय अहिंसा ने अपना काम किया और आजादी के बाद जब देश को ज्यादा संविधान का पालन करना चाहिए था तब हिंसक घटनाएं घटने लगीं. इन में देश में होने वाले चुनावों का रोल भी काफी असरदार होता है.

अगर 1977 और 1984 के चुनावों को छोड़ दें तो हर चुनाव में जातिधर्म का ही बोलबाला रहा है. राजनीति धर्म और जाति पर केंद्रित होती है. जीत के लिए जाति और धर्म का सहारा लिया जाने लगा. इस की वजह से खेमेबंदी शुरू हो गई और लाठीतंत्र के खिलाफ कदम उठाना मुश्किल हो गया.

धर्म की कहानियों से शिक्षा लेने वाले समाज को दिखता है कि धर्म में ऐसी बहुत सी घटनाएं घटी हैं जहां पर अपनी बात को मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया.

देश के सब से लोकप्रिय पौराणिक ग्रंथ ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ इस से भरे पड़े हैं. ‘रामायण’ में राजा बलि का उदाहरण देखें तो पता चलता है कि अपनी बात को मनवाने के लिए राम ने उस से युद्ध किया और उस को मार कर बलि का राज्य उस के छोटे भाई सुग्रीव को दे दिया. शूर्पणखा ने जब लक्ष्मण के सामने प्रणय निवेदन किया तो लक्ष्मण ने  सबक सिखाने के लिए उस की नाक काट ली.

धार्मिक ग्रंथों में कई ऐसी कहानियां हैं जिन में यह पता चलता है कि अपनी बात को मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया जाता है. इन कहानियों को पढ़ कर लोगों ने अब हिंसा का ही सहारा ले लिया है. उन को जब भी राज्य से शिकायत होती है वे हिंसा का सहारा लेते हैं.

यह बात और है कि हिंसा का सहारा ले कर चले आंदोलन कभी कामयाब नहीं होते. साल 2012 का अन्ना आंदोलन वर्तमान समय में इस का उदाहरण है.

कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय में लोकपाल बिल को ले कर यह आंदोलन इतना प्रभावी हुआ कि कांग्रेस पूरी तरह से सरकार से बाहर हो गई. भाजपा कांग्रेस के विकल्प के रूप में सरकार बनाने में कामयाब हो गई.

सत्ता में आने के बाद भाजपा इस बात से अनजान है. उस के राज में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं जिन में हिंसा का सहारा लिया गया था.

भाजपा चाहती तो इन को रोक सकती थी. पर उस ने वोट बैंक का फायदा लेने के लिए ऐसा नहीं किया. आज सोशल मीडिया का दौर है जिस में किसी भी घटना की प्रतिक्रिया बड़ी तेजी से सामने आती है. इस से हिंसा और भड़क जाती है. भीड़ और लाठीतंत्र एकदूसरे के पूरक हो गए हैं.

संविधान के मुताबिक, लोकतंत्र में सभी को इज्जत और इंसाफ मिलना चाहिए. इस की हिफाजत तभी मुमकिन है जब राज करने वालों की मनमानी पर रोक लगे या उन की नीयत साफ हो. जब तक वोट बैंक और उस से होने वाले नफानुकसान को देख कर फैसले होंगे तब तक इंसाफ नहीं मिलेगा. भीड़ लाठी ले कर आएगी और अपने हिसाब से काम करने को मजबूर कर देगी. ऐसा लाठीतंत्र किसी के भी फायदे में नहीं है.

ट्रंप-किम भेंट

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बिगडै़ल देश उत्तर कोरिया को मेज पर बुला व बैठा कर उस से परमाणु नियंत्रण समझौता कर के सिद्ध कर दिया है कि आज भी अमेरिका की चल रही है और उस के जैसे सिरफिरे, बचकाने व्यवहार वाले राष्ट्रपति भी कई बार अनूठे काम कर जाते हैं. किम इल सुंग के पोते किम जोंग उन ने सिंगापुर आ कर न केवल समझौतों पर हस्ताक्षर किए, बल्कि अपने देश उत्तर कोरिया को दूसरों का खतरा न बनने देने का वादा भी किया. उत्तर कोरिया कई दशकों से परमाणु बम बना रहा था और पाकिस्तान, ईरान आदि की सहायता से दुनियाभर में हर समय एक खतरा बना हुआ था कि कहीं उस का खब्ती, जिद्दी शासक न जाने कब इन बमों का दुरुपयोग कर डाले. अमेरिका उस का दुश्मन बना हुआ था क्योंकि 1953 में उसी ने कोरिया का विभाजन किया था जब अमेरिकी सेनाओं ने उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया को जबरन कम्युनिस्ट बनाने से रोका था.

उत्तर कोरिया के शासक तभी से दक्षिण कोरिया समेत अमेरिका और पश्चिमी देशों को अपना दुश्मन मानते आ रहे हैं पर चीन से उन की लगातार बनती रही. पिछले साल तक बयानों के बमों से उत्तर कोरिया और अमेरिका सारी दुनिया को परमाणु युद्ध के खतरे से डराते रहे थे. पर इस साल के शुरू में न जाने क्यों और कैसे किम जोंग उन का हृदयपरिवर्तन हुआ और उन्होंने अमेरिकी बंदियों को छोड़ा, चीन की यात्रा की, बेहद सौहार्दपूर्ण तरीके से सीमा के निकट दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाकात की और सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत कर अहम फैसला लिया. ट्रंप व किम की सिंगापुर में 12 जून को हुई मुलाकात दुनियाभर में फुटबौल मैचों से ज्यादा रुचि से देखी गई. अब दुनिया राहत की सांस ले सकती है. तानाशाह सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी, ओसामा बिन लादेन की मौतों के बाद कठोर व कट्टर शासक किम का दोस्ताना हाथ बढ़ाना एक सुखद आश्चर्य की बात है. यह दिन बहुत सालों तक याद रहेगा.

उत्तर कोरिया के लिए यह समझौता वरदान साबित हो सकता है. उत्तर कोरिया के निवासी दक्षिण कोरिया में रह रहे अपने सगेसंबंधियों की तरह विकास की दौड़ में शामिल हो सकते हैं. वे हालांकि हमेशा ही पीछे रहेंगे पर फिर भी जिस 19वीं सदी में वे रह रहे हैं, वह स्थिति अब ज्यादा समय तक नहीं रहेगी. डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अपने पर लगे बहुत से धब्बों को धो लिया है और शायद वे अमेरिका में अब और ज्यादा स्वीकारे जाने लगेंगे.

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