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औफिस के कंप्यूटर पर करते हैं ये काम तो हो जाएं सावधान

अगर आप कहीं नौकरी कर रहे हैं और यदि आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं जो औफिस में कंप्यूटर या लैपटौप पर काम करते हैं. तो यह खबर आपके लिए ही है. इसपर एक बार जरूर अपनी नजर डाल लें. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि Babies On The Brain के सीईओ Jena Booher (M.S. MHC; ACC) ने औफिस के कंप्यूटर पर इन 6 कामों को करने से मना किया है.

कंप्यूटर में पर्सनल फाइल सेव ना करें

औफिस के लैपटौप में किसी भी प्रकार के अपने डाक्यूमेंट या पर्सनल फाइल को सेव ना ही करें तो बेहतर होगा. क्योंकि ऐसा करने से यह संभव है कि आपने भविष्य के लिए कोई शानदार प्रोजेक्ट तैयार किया हो और वह औफिस में लीक हो जाए. तो इस तरह कि चीजो से बतने के लिए आपको थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है.

औनलाइन सर्चिंग और औनलाइन शौपिंग

जितना हो सकें औनलाइन सर्चिंग औनलाइन सर्चिंग से बचें, बेवजह की चीजे सर्च ना करें. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बड़ी कंपनियों में कुछ लोगों को सिर्फ कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए रखा जाता है. ऐसे में आप क्या सर्च कर रहे हैं, कौन-सी वेबसाइट पर विजिट कर रहे हैं इसके बारे में आपकी कंपनी को पता चल जाता है. इसलिए कपनी में सिर्फ काम करें बेवजह के सर्च और औनलाइन शौपिंग करने से बचें, क्योंकि ऐसा करना आपकी नौकरी के लिए ठीक नहीं है.

औफिस के चैट पर निजी बातें ना करें

आजकल प्रत्येक कंपनी में गूगल हैंडआउट और व्हाट्सऐप जैसे ऐप पर कर्मचारियों के बीच चैटिंग हो रही है. ऐसे में आपको सावधान रहने की जरूरत है, नहीं तो कई बार पर्सनल मैसेज भी औफिस के चैट ग्रुप में जा सकते है. साथ ही ग्रुप में सिर्फ काम की बातें ही करें.

जौब के लिए सर्च ना करें

औफिस के कंप्यूटर पर भूलकर भी दूसरी नौकरी के लिए सर्च ना करें. क्योंकि अगर किन्हीं कारणों से इसके बारे में एचआर या मैनेजमेंट को पता चल जाता है तो आपको आगे दिक्कत हो सकती है. साथ ही इससे आपकी इमेज भी खराब हो सकती है.

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ऐसा बल्लेबाज जिसने एक या दो नहीं बल्कि तीन दोहरे शतक लगाए

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने जब वनडे क्रिकेट में पहला दोहरा शतक लगाया, तो कहा गया कि भविष्य में इस रिकौर्ड को तोड़ पाना बड़ा मुश्किल होगा. लेकिन इस शतक के दस साल के भीतर ही वनडे क्रिकेट में एक दो नहीं बल्कि कई दोहरे शतक लगा दिए गए. इसमें से एक बल्लेबाज ने तो वनडे क्रिकेट में अकेले ही 3 दोहरे शतक जड़ दिए. हम बात कर रहे हैं हिटमैन रोहित शर्मा की.

आज भारतीय टीम के ‘हिटमैन’ रोहित शर्मा का जन्मदिन है. रोहित आज यानि 30 अप्रैल को 31 साल के हो गये हैं. रोहित शर्मा लिमिटेड ओवर्स के बेहतरीन बल्लेबाज माने जाते हैं. वनडे इंटरनेशनल में रोहित के नाम एक या दो नहीं, बल्कि तीन दोहरे शतक लगाने का दिलचस्प रिकौर्ड है ये ऐसा रिकौर्ड है जिसे तोड़ पाना किसी भी बल्लेबाज के लिए आसान काम नहीं होगा. इसके अलावा एकदिवसीय मैचों में सबसे लंबी पारी खेलने का रिकौर्ड भी रोहित के नाम दर्ज है. बता दें कि रोहित ने 13 नवंबर साल 2014 को श्रीलंका के खिलाफ खेलते हुए यह रिकौर्ड बनाया था.

गौरतलब है कि रोहित ने अब तक 180 वनडे मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 3 दोहरा शतक, 17 शतक और 34 अर्धशतक लगाए हैं. इस दौरान रोहित ने कुल 6594 रन बनाए हैं. इन मैचो में रोहित का औसत 44.55 रहा है और स्ट्राइक रेट 86.96 का रहा है. वहीं टी20 मुकाबलों की बात करें तो यहां भी रोहित ने अपने बल्ले से कई यादगार पारियां खेली हैं 79 इंटरनेशनल टी20 मैचों में रोहित ने 1852 रन बनाए हैं. जिसमें उनका स्ट्राइक रेट 135.7 का रहा है रोहित ने इस दौरान 2 शतक और 14 अर्धशतक लगाए हैं.

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कहीं आपको भी तो नहीं यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान से जुड़ी ये गलतफहमियां

हाल के दिनों में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) के प्रति लोगों का आकर्षण काफी बढ़ा है. इससे पहले यूलिप को उच्च लागत और कम रिटर्न वाला निवेश विकल्प माना जाता था और इसमें पैसा लगाने को लेकर ग्राहकों की सोच अलग-अलग थी. लेकिन वास्तव में यूनिट लिंक्‍ड इंश्‍योरेंस प्‍लांस (यूलिप) की मौजूदा समझ कुछ और नहीं बल्कि इससे जुड़ी विभिन्‍न गलत धारणाओं का मिलाजुला रूप है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसे लेकर उत्पाद के उद्देश्य, कीमतें, फायदे, आसान लिक्विडिटी और काम करने के तरीके के बारे में लोगों के मन में लंबे समय से कई सारी गलतफहमी बनी हुई है. जिन्‍हें खत्‍म करना जरूरी है.

यूलिप में अब कोई बात छिपी नहीं है. यूलिप के विभिन्‍न फीचर्स बीमा कंपनियों की आधिकारिक वेबसाइट और इंश्‍योरेंस एग्रीगेटर्स की वेबसाइट पर उपलब्‍ध हैं. पिछले कुछ वर्षों में लगातार हुए सुधारों ने यूलिप को एक सर्वोत्तम निवेश विकल्‍प बना दिया है, क्‍योंकि इसमें पूंजी निर्माण और इंश्‍योरेंस कवर के दोहरे फायदे शामिल हैं. यहां यूलिप से जुड़े कुछ आम गलतफहमियों की चर्चा की जा रही है.

गलतफहमी 1: यूलिप महंगे और अविश्वसनीय होते हैं

जब यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान पहली बार बाजार में आए थे, तब इन्‍हें इस प्रकार से पेश किया गया था कि ये ग्राहक से ज्‍यादा डिस्ट्रिब्‍यूटर्स को फायदा पहुंचाएंगे. 2010 में इंश्‍योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथौरिटी आफ इंडिया (आईआरडीएआई) के हस्‍तक्षेप से पहले, ग्राहक द्वारा चुकाए जाने वाले प्रीमियम का एक बड़ा हिस्‍सा पौलिसी एडमिनिस्‍ट्रेशन, प्रीमियम एलोकेशन और फंड मैनेजमेंट के पास चला जाता था.

लेकिन अब बीमा कंपनियों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्‍न शुल्कों को सीमित कर दिया गया है. पहले जहां इसमें 6-10 फीसदी चार्ज लगते थे, वहीं अब इंश्‍योरेंस कंपनियां 1.5 से 2 फीसदी चार्ज वसूले जाते हैं. इसके अतिरिक्‍त, डिजिटाइजेशन के विस्‍तार के चलते पालिसी ए‍डमिनिस्‍ट्रेशन और प्रीमियम एलोकेशन जैसे मध्‍यस्‍थ शुल्क अब पूरी तरह खत्‍म हो चुके हैं. इस प्रकार यूलिप एक ऐसा बेहतरीन प्रोडक्‍ट बन गया है जिस पर ग्राहक अपने पैसे को लेकर विश्‍वास कर सकते हैं.

गलतफहमी 2: यूलिप का रिटर्न बहुत कम है

ज्‍यादातर लोग कम रिटर्न के डर से वे यूलिप में पैसा लगाने से बचते हैं. यहां यह समझना बेहद जरूरी है कि आज यूलिप में प्रीमियम का केवल एक छोटा सा हिस्‍सा इंश्‍योरेंस कवर के लिए प्रयोग किया जाता है, वहीं एक बड़ा हिस्‍सा रिटर्न प्राप्‍त करने के लिए निवेश किया जाता है. रिटर्न की मात्रा, हालांकि निवेश की जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है.

गलतफहमी 3: यूलिप में जोखिम अधिक होता है

बहुत से लोगों को मानना है कि यूलिप में जोखिम अधिक होता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. ऐसा वे ये नहीं जानते कि यूलिप में निवेश किया गया पैसा ग्राहक की जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर विभिन्‍न फंड में बांटा जाता है. यहां निवेशकों से पूछा जाता है कि वे कितना जोखिम ले सकते हैं. इसके साथ ही उन्‍हें फंड बदलने के विकल्पों के बारे में भी जानकारी दी जाती है, जिसकी मदद से बाजार की अस्थिरता के बीच सही फैसला लिया जा सकता है. कम जोखिम लेने वाले ग्राहक डेट इंवेस्‍टमेंट, सरकारी सिक्‍योरिटीज और कौरपोरेट डेट विकल्‍पों में से अपने लिए बेहतर विकल्‍प चुन सकते हैं, जिसमें जोखिम कम है और ये सामान्‍य रिटर्न देते हैं.

गलतफहमी 4: बाजार के उतार-चढ़ाव से इंश्‍योरेंस कवर प्रभावित होता है

चूंकि प्रीमियम का एक हिस्‍सा मुद्रा बाजार में निवेश किया जाता है, ऐसे में कुछ ग्राहकों को इस बात डर रहता है कि कहीं बाजार के उतार चढ़ाव के चलते उनसे बीमा कवर की राशि का जो वादा किया गया था वह कम न हो जाए. वास्‍तविकता यह है कि बाजार के उतार चढ़ाव के बावजूद लाइफ कवर की राशि पूरी पौलिसी अवधि के दौरान एक समान रहती है. आईआरडीएआई द्वारा 2010 में निर्धारित नियमों के अनुसार, यूलिप में न्‍यूनतम लाइफ कवर या सम एश्‍योर्ड की राशि पॉलिसी धारक द्वारा अदा किए गए वार्षिक प्रीमियम का 10 गुना होता है. बीमित व्‍यक्ति की मृ‍त्‍यु की दशा में, बीमा कंपनी वादा की गई लाइफ कवर की राशि या फंड वैल्‍यू, जो भी ज्‍यादा हो उसे अदा करने के लिए बाध्‍य होगी.

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मुझे कमर्शियल फिल्म करने की इच्छा नहीं है : राजीव खंडेलवाल

फिल्म ‘आमिर’ से कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता राजीव खंडेलवाल राजस्थान के हैं. बचपन से ही अभिनय की इच्छा रखने वाले राजीव को कभी लगा नहीं था कि वे अभिनय के क्षेत्र में इतना आगे बढ़ जायेंगे. छोटे पर्दे पर वे काफी सफल रह चुके हैं. उनका पहला शो ‘क्या हादसा क्या हकीकत’ था, जिसमें दर्शकों ने उनके काम को काफी सराहा, इसके बाद आया मेजबानी वाला कार्यक्रम ‘सच का सामना’ जो काफी लोकप्रिय रहा, जिससे वे लोगों के बीच में पोपुलर हुए. उन्होंने केवल शो होस्ट ही नहीं किया बल्कि कई धारावाहिकों और फिल्मों में भी काम किया. वे काम की हड़बड़ी कभी नहीं करते और सोच समझकर काम चुनते हैं. उनके हिसाब से काम भले ही कम हो, पर उसकी पहुंच दर्शकों तक होनी चाहिए. यही वजह है कि उनके फैन फोलोवर्स आज भी बहुत अधिक हैं. उनके इस सफर में साथ दिया, उनकी पत्नी मंजरी काम्तिकर ने, जो हमेशा उन्हें सहयोग देती हैं. इस समय राजीव टीवी पर ‘जज्बात, संगीन से नमकीन तक’ में सूत्रधार का काम कर रहे हैं, जिसे लेकर वे बहुत खुश हैं. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

इस कांसेप्ट को चुनने की वजह क्या है?

ये एक बहुत ही साधारण सी अवधारणा है, जो किसी व्यक्ति के दिल से जुडी हुई है. इसमें न तो ह्यूमर है और न ही कुछ बनावटी, यही बात मुझे अच्छी लगी थी. मैंने इसमें कुछ अधिक तैयारियां नहीं की है, क्योंकि जितना कम आप इस बारें में सोचेंगे, उतना ही अच्छा निकल कर आएगा. इसमें सेलेब्रिटी से उनके साधारण जीवन के बारें में बात होगी, जो अलग होगी. इसमें कोई फोर्मेट नहीं है केवल एक साधारण बातचीत का आलम होगा. जो प्रेरणादायक होगी.

क्या आप अपनी जर्नी से संतुष्ट हैं?

मैं अपनी जर्नी से बहुत खुश हूं. मैंने फिल्म, टीवी, वेब सीरीज और होस्टिंग सब कर लिया. मुझे खुशी होती है जब मैं सोचता हूं कि मैं जब यहां आया था तो मैं ट्रेंड एक्टर नहीं था. पहला शो ‘क्या हादसा क्या हकीकत’ पोपुलर रहा, फिर मैंने ‘लेफ्ट राईट लेफ्ट’ किया, आगे सच का सामना, आमिर, शैतान आदि किये. मैंने हर तरह की विधा में काम कर लिया है, जो बहुत है. लोगों का प्यार और सम्मान भी बहुत मिला है. मैं शुरू से ही जानता था कि क्या करना है और मैंने किया. मैं सोशल नेटवर्क पर एक्टिव नहीं, पार्टियों में नहीं जाता. फिर भी काम कर रहा हूं और यही मेरी ताकत है.

शुरू से लेकर अब तक की जिंदगी में क्या बदलाव पाते हैं?

मैं अपने पर्सनल लाइफ में कोई बदलाव महसूस नहीं करता मुझे अभी भी लगता है कि मैं वही राजीव हूं, जो 15 साल पहले इस शहर में आया था. काम ढूंढ़ता था और जो भी काम मिलता था उसी में खुश रहता था. असल में मुझे छोटी-छोटी चीजो में खुशियां मिलती है. जैसे कि गोवा के बने घर में जहां मैं आर्गेनिक खेती करता हूं, वहां जब मैं अपने बगीचे के फल और सब्जियां देखता हूं, तो खुश होकर उसे खाने चला जाता हूं. हालात और लाइफस्टाइल बदले हैं, पर बाकी सब वैसा ही है. अभी भी मैं साइकिल उठाकर कहीं भी भाग सकता हूं.

जिंदगी के उतार- चढ़ाव को कैसे देखते हैं?

ये बताना मुश्किल है, क्योंकि मैंने अपनी जिंदगी के उतार को देखा नहीं और चढ़ाव अभी तक आया नहीं. कई बार मुश्किलें आई, पर मैं उसे सामान्य तरीके से लेता हूं.

आप के कम काम करने के पीछे की वजह क्या है?

मैं मानता हूं कि मैं कम काम करता हूं, पर ढंग का काम करना चाहता हूं. मुझे काम से परहेज नहीं, पर उसके बारें में अधिक नहीं सोचता. इसलिए मैं बीच-बीच में ब्रेक भी ले लेता हूं. इस शो के लिए मैंने एक फोन कौल पर हां कह दी थी.

क्या आपको ऐसा लगता है कि फिल्मों में आपके पोटेंसियल का सही प्रयोग नहीं हुआ?

ऐसा नहीं लगता, क्योंकि फिल्म ‘आमिर’ में इससे अधिक कुछ हो नहीं सकता था. जब मैंने इस तरह का अभिनय किया, तो ऐसी ही वजन वाली फिल्म को खोजता रहा, जो मुझे मिला नहीं. मेरी फिल्मों की तादाद भी धीरे-धीरे बढ़ रही हैं. मुझे कमर्शियल फिल्म करने की इच्छा नहीं है.

आपकी सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं?

हर व्यक्ति की सफलता का श्रेय उसी को जाता है, क्योंकि उसकी मेहनत ही उसे सफल बनाती है, लेकिन इसमें उनके साथ चलने वाले लोग होते हैं, जो उनको हमेशा सहयोग देते रहते हैं. यहां मेरी पत्नी का बहुत सहयोग है, जिसे मेरे सफल होने और न होने पर फर्क पड़ता है. ये मेरे लिए बहुत बड़ी ताकत है.

समय मिलने पर क्या करना पसंद करते हैं?

मैं अपने ससुर के साथ साइकलिंग करने निकल जाता हूं. इसके अलावा मैं और मंजरी कही घूमने भी निकल जाते हैं.

आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं अपने आप को फिट रखने के लिए हर काम सोच-समझकर करता हूं. खाना-पीना, दौड़ना, व्यायाम सब नियम से करता हूं. मैं मानता हूं कि अगर मैं फिट रहूंगा तभी मैं किसी और के लिए कुछ कर सकूंगा.

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मां बाप की शादी की गवाह बनी बेटी

25 अक्तूबर, 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपनेअपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाताधमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसावैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

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घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए एक अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया.  अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक अनु की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के अटूट प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मां और बाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा कुछ गणमान्य लोग भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

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सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क थे. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. इसलिए यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित थी.

अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

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97 करोड़ की पुरानी करेंसी का खेल

आनंद खत्री का नाम पूरे कानपुर क्या देश भर के कारोबारी लोगों के बीच जानापहचाना है. उन की कई पीढि़यां कपड़ा कारोबार से जुड़ी रही हैं. कपड़ा व्यापार के साथ आनंद ने होटल और रियल एस्टेट का बिजनैस भी शुरू कर दिया था.

बीती 16 जनवरी की सुबह जब आनंद के सभी ठिकानों पर पुलिस की टीम के साथ आयकर और रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने छापेमारी की तो पूरा कानपुर सकते में रह गया. शहर भर में यह बात तेजी से फैली.

हर आदमी यही सोच रहा था कि ऐसा क्या हो गया, जिस से आनंद खत्री के यहां पुलिस ने इतनी बड़ी काररवाई की है. कानपुर वासियों की आंखें तब खुली की खुली  रह गईं, जब उन्हें पता चला कि आनंद खत्री के यहां से 97 करोड़ की पुरानी करेंसी वाले नोट मिले हैं. पुलिस ने जब गाडि़यों में बक्से लादने शुरू किए तो छापे का सच सामने आ गया.

नोटबंदी के एक साल बाद उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कानपुर में 97 करोड़ की पुरानी करेंसी मिलना आश्चर्य की बात थी, क्योंकि पूरे देश में इतनी बड़ी संख्या में पुराने नोट बरामद होने का यह पहला मामला था.

नोटबंदी लागू होने के दिन 500 रुपए के 1716.6 करोड़ नोट और 1 हजार के 8 करोड़ नोट बाजार में थे. इस तरह से 15.44 लाख करोड़ के नोट प्रचलन में थे. इन में से 15.28 लाख करोड़ के नोट रिजर्व बैंक के पास वापस आ गए पर करीब 1 फीसदी नोट वापस नहीं आए. मतलब 16050 करोड़ रुपए के हजार और 5 सौ के नोट वापस नहीं आए.

रिजर्व बैंक इन नोटों को कालाधन मान कर चल रही थी. रिजर्व बैंक, आयकर विभाग सहित कुछ दूसरे विभागों के साथ मिल कर इन पैसों को तलाशने का काम कर रही है. मनी चेंजर व मल्टीनेशनल कंपनियों पर नजर रखने के दौरान आयकर विभाग को पता चला कि हैदराबाद और कानपुर में एनआरआई के जरिए पुरानी करेंसी को बदलने का काम हो रहा है.

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यह जानकारी मिलने के बाद रिजर्व बैंक के 4 अफसरों की अगुवाई में आयकर और पुलिस विभाग ने कानपुर में खोजबीन शुरू की. पुलिस को यह पता चल गया था कि मनी चेंजर के इस गेम में कानपुर के नामी उद्योगपति आनंद खत्री की भूमिका संदेह के घेरे में है.

आनंद खत्री कानपुर के बड़े उद्योगपति हैं. कपड़े के बिजनैस के अलावा वह होटल संचालन और बिल्डर का काम भी करते हैं. प्रभावशाली आनंद खत्री के ऊपर हाथ डालना आसान नहीं था. ऐसे में पुख्ता जानकारी मिलनी जरूरी थी.

आनंद खत्री का परिवार कई पीढि़यों से कानपुर में कपड़ों का कारोबार करता आ रहा है. उन के पिता श्यामदास खत्री कानपुर में कपड़ा कमेटी के सदस्य रह चुके थे. उन का विभिन्न तरह के कपड़ों का थोक कारोबार था.

आनंद खत्री के 6 भाई हैं. आनंद अपने 3 भाइयों गोवर्धन, तुलसीदास और हरीश के साथ मिल कर काहू कोठी में कपड़ों का कारोबार देखते हैं. यहीं से वह प्रौपर्टी रीयल एस्टेट और होटल का कारोबार भी देखते हैं. पुलिस पूरे मामले में पक्की खबर होने के बाद ही आनंद खत्री पर हाथ डालने का साहस कर सकी.

आयकर विभाग के पास पुख्ता सबूत थे कि आनंद खत्री अपने साथियों के साथ मिलीभगत से मनी चेंजर का काम करते हैं. आनंद खत्री के नेटवर्क में कई ऐसे ब्रोकर थे, जो कमीशन ले कर उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश में रीयल एस्टेट कारोबारियों और बिजनैसमैन से पुराने नोट ले कर उन्हें नए नोटों में बदलने का काम कर रहे थे. इस के बदले वह मनी चेंजर ब्रोकर को कमीशन देते थे.

दिल्ली और हैदराबाद से भी पुराने नोटों को नए में बदला जाना था. पुराने नोटों को दिल्ली और हैदराबाद ले जाने के 3 रास्ते थे. पहला रूट कानपुर से वाराणसी-कोलकाता-हैदराबाद का था, दूसरा रास्ता वाराणसी-बागपत-मीरजापुर वाया दिल्ली का था और तीसरा रूट दिल्ली से कोलकाता का.

पुलिस ने बताया कि नोट बदलने के इस खेल में नेपाल का कनेक्शन भी सामने आया है. पुलिस को आनंद खत्री के साथ काम करने वाले हैदराबाद निवासी कुटेश्वर के मोबाइल संदेश भी मिल गए, जिस में नोट बदलवाने संबंधी कई मैसेज थे. अब पुलिस के पास पुख्ता सबूत थे कि मनी चेंज का बड़ा खेल कानपुर में खेला जा रहा है.

16 जनवरी, 2018 को कानपुर पुलिस, आयकर विभाग और रिजर्व बैंक की टीम ने संयुक्त रूप से आनंद खत्री के कई ठिकानों पर छापेमारी की तो 96.44 करोड़ के पुराने नोट पकड़ में आ गए. ये नोट 80 फीट रोड और गुमटी नंबर 5 स्थित होटलों और आनंद खत्री के घर में बक्सों में भरे मिले.

पुलिस टीम की अगुवाई आईजी आलोक कुमार, एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी पश्चिम डा. गौरव ग्रोवर, एसपी पूर्व अनुराग आर्या सहित कई अधिकारियों ने की. पुलिस ने स्वरूपनगर थाने को अपना औफिस बना लिया था.

टीम को पुरानी करेंसी का तो पता चल चुका था, पर यह बात समझ नहीं आ रही थी कि इस करेंसी को कहां और कैसे खपाया जा रहा था. ऐसे में पुलिस ने नेपाल पुलिस के साथ मिल कर इस मामले को हल करने का प्रयास किया. पुलिस को लग रहा था कि नेपाल के जरिए ही पुरानी करेंसी नई करेंसी में बदली जा रही होगी.

आनंद खत्री के पास 40 से ज्यादा प्रौपर्टीज के दस्तावेज मिले. जबकि कैश में 3 करोड़ की जगह केवल 2 लाख रुपए ही मिले. शोरूम में कपड़े का भारी स्टौक मिला, जिस का मिलान करना कठिन काम था.

पुलिस ने आनंद खत्री के परिवार के लोगों से भी पूछताछ की. प्रौपर्टी के 40 दस्तावेज में से कई दूसरों के नाम पर निकले. पुलिस को बताया गया कि आनंद प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम करते हैं. ये दस्तावेज उन लोगों के हैं, जिन्होंने अपनी प्रौपर्टी बेचने के लिए दस्तावेज उन्हें दिए थे. पुलिस को यह बात समझ नहीं आई, इसलिए वह इस की तहकीकात में लग गई.

पुलिस ने इस मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में आंध्र प्रदेश की रहने वाली महिला राजेश्वरी सहित लखनऊ के अनिल यादव, आनंद, मोहित, संतोष, संजय, संतकुमार, ओंकार, अनिल, रामाश्रय, संजय कुमार, धीरेंद्र गुप्ता, संजीव अग्रवाल, मनीष अग्रवाल और अली हुसैन प्रमुख थे.

अनिल यादव लखनऊ में रहता था. उस ने खुद को समाजवादी पार्टी के एक बडे़ नेता का करीबी बताया. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. ये लोग आपस में मिल कर इस खेल को अंजाम देते थे. नोटों की गिनती करना और कहानी का राजफाश करना सरल नहीं था.

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ऐसे में नोटों की गिनती के काम को पूरा करना पहली जरूरत थी. मंगलवार 16 जनवरी से रिजर्व बैंक के 4 बड़े अधिकारियों के साथ यह काम शुरू हुआ.

2 बड़ी मशीनों से 4 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद नोटों की गिनती शुरू हुई, जिस में कुल 96 करोड़ 62 लाख रुपए के नोट निकले. सीओ कोतवाली अजय कुमार ने सारे नोट अलगअलग बक्सों में बंद करा दिए. पकड़े गए लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, षडयंत्र रचने की धारा और एबीएन एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई. आरोपी 17 जनवरी की शाम कोर्ट में पेश किए गए, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

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खुशी के लिए मासूम खुशी का खून

दोपहर का एक बज चुका था, लेकिन खुशी अभी तक घर नहीं आई थी. घर के कामकाज निपटाने के बाद मिथिलेश की नजर घड़ी पर पड़ी तो वह चौंकी, क्योंकि खुशी एक बजे तक स्कूल से लौट आती थी. परेशान सी मिथिलेश भाग कर यह देखने दरवाजे पर आई कि शायद बेटी स्कूल से आ रही हो, लेकिन वह दूरदूर तक दिखाई नहीं दी तो वह और ज्यादा परेशान हो गई.

मिथिलेश मां थी, इसलिए उस का चिंतित होना स्वाभाविक था. खुशी स्कूल छूटने के बाद सीधे घर आ जाती थी. मिथिलेश सोच रही थी कि क्या किया जाए कि तभी उस के ससुर रामसावरे आते दिखाई दिए. उन के नजदीक आते ही मिथिलेश ने कहा, ‘‘बाबूजी, एक बज गया, खुशी अभी तक स्कूल से नहीं आई.’’

रामसावरे चौंके, ‘‘खुशी अभी तक नहीं आई? कोई बात नहीं बहू, बच्ची है, सखीसहेलियों के साथ खेलनेकूदने लगी होगी. तुम चिंता मत करो, मैं स्कूल जा कर देखता हूं.’’ कह कर रामसावरे खुशी के स्कूल की ओर निकल गए. यह 12 अक्तूबर, 2017 की बात है.

उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की कोतवाली बाकीपुर का एक गांव है असकरनपुर. मास्टर विजयशंकर यादव इसी गांव में रहते थे. वह शिक्षामित्र थे. उन के परिवार में पत्नी मिथिलेश, बेटा संजय कुमार, बेटी खुशी तथा उस से छोटा बेटा शिवा था. रामसावरे भी उन्हीं के साथ रहते थे.

उन का भरापूरा परिवार था. अध्यापक होने के नाते विजयशंकर की गांव में इज्जत थी. वह भले ही शिक्षामित्र थे, लेकिन उन्हें सब मास्टर साहब कहते थे.

विजयशंकर का बड़ा बेटा संजय बीएससी कर रहा था. उन की बेटी खुशी गांव से ही 2 किलोमीटर दूर कोछा बाजार स्थित एमडीआईडीयू स्कूल में कक्षा 4 में पढ़ती थी. वह औटो से स्कूल आतीजाती थी, इसलिए घर वालों को उसे स्कूल से लाने या पहुंचाने का कोई झंझट नहीं था.

विजयशंकर के यहां सब ठीक चल रहा था. लेकिन 12 अक्तूबर, 2017 का दिन उन के परिवार के लिए विपत्ति ले कर आया. खुशी का पता करने रामसावरे स्कूल पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा हुआ था.

सभी बच्चे अपनेअपने घर जा चुके थे. स्कूल में 2-4 मास्टर बचे थे, वह भी जाने की तैयारी कर रहे थे. रामसावरे ने उन से खुशी के बारे में पूछा तो पता चला कि छुट्टी होते ही खुशी घर चली गई. उन्होंने यह भी बताया कि खुशी औटो से जाने के बजाय स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका विमलेश कुमारी के साथ गई थी.

विमलेश के साथ जाने की बात सुन कर रामसावरे के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. वजह यह थी कि खुशी रोजाना औटो से स्कूल आतीजाती थी. फिर वह विमलेश के साथ क्यों गई? जबकि बच्चों को लाने ले जाने वाला औटो अपने समय पर स्कूल आया था और बच्चों को ले गया था.

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रामसावरे तेज कदमों से चलते हुए सीधे विमलेश के घर पहुंचे, पता चला कि विमलेश घर में नहीं है. वह स्कूल तो गई पर लौट कर नहीं आई. यह जानने के बाद रामसावरे को चिंता होने लगी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर विमलेश खुशी को ले कर कहां चली गई?

खुशी के गायब होने की खबर पा कर खुशी के पिता विजयशंकर भी गांव आ गए. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वह खुशी की तलाश में निकल पड़े. सब से पहले वह खुशी के स्कूल गए. इस बार स्कूल के कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि खुशी घर जाने के लिए स्कूल के औटो के बजाए स्कूल की अध्यापिका विमलेश कुमारी के साथ निकली थी. स्कूल के बाहर एक लड़का मोटरसाइकिल लिए खड़ा था, विमलेश खुशी को ले कर उसी के साथ गई थी.

सवाल यह था कि उस लड़के के साथ विमलेश खुशी को ले कर कहां गई? वह लड़का कौन था? इस से लोगों को आशंका हुई कि कुछ गड़बड़ जरूर है, वरना खुशी को मोटरसाइकिल से क्यों ले जाया जाता. तब तक शाम हो गई थी. अब विजयशंकर के सामने पुलिस के पास जाने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचा था. वह गांव वालों के साथ कोतवाली बीकापुर की ओर चल पड़े.

अभी वे रास्ते में ही थे कि पता चला, विमलेश खुशी को मोटरसाइकिल से मोहम्मद भारी तक आई थी. उस के बाद वहां खड़ी सफेद रंग की एक पुरानी मार्शल जीप में बैठ कर कहीं चली गई थी. इसी के साथ ही यह भी पता चला कि विमलेश खुशी को जिस लड़के की मोटरसाइकिल से मोहम्मद भारी तक लाई थी, वह लड़का मुमारिजनगर के रहने वाले सुबराती का बेटा मोहम्मद अनीस था.

इस के बाद रामसावरे ने अपनी 10 वर्षीय पोती खुशी के अपहरण की तहरीर कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार सिंह को दे दी. उन के आदेश पर उसी दिन अपराध संख्या 436/2017 पर भादंवि की धारा 363 के तहत विमलेश और मोहम्मद अनीस के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया.

मुकदमा दर्ज होते ही सुनील कुमार सिंह ने इस मामले की जांच एसआई घनश्याम पाठक को सौंप दी. जब इस मामले की जानकारी एसपी (ग्रामीण) संजय कुमार को मिली तो उन्होंने इस केस में दिलचस्पी लेते हुए एसओजी टीम को भी खुशी के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

14 अक्तूबर, 2017 को पुलिस को मुखबिर से पता चला कि अनीस और विमलेश थाना कुमारगंज के गांव बवां में ठहरे हैं और वहां से कहीं जाने की फिराक में हैं. सूचना मिलते ही पुलिस टीम थाना कुमारगंज पुलिस को साथ ले कर बवां पहुंच गई. लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही विमलेश और मोहम्मद अनीस वहां से निकल चुके थे.

फलस्वरूप पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा. इस बीच पुलिस को विमलेश और अनीस के मोबाइल नंबर मिल गए थे. पुलिस ने उन्हें सर्विलांस पर लगा दिया था. सर्विलांस से उन के हरियाणा के गुरुग्राम में होने का पता चला.

इस पर घनश्याम पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गुरुग्राम भेज दी गई. लेकिन वहां भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. वहां पुलिस टीम को पता चला कि वे दिल्ली चले गए हैं. पुलिस टीम दिल्ली पहुंची, लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं मिले.

विमलेश और अनीस की तलाश में पुलिस दिल्ली में भटकती रही, लेकिन वे पकड़े नहीं जा सके. पुलिस टीम दिल्ली में ही थी कि वे दोनों फैजाबाद आ गए. इस के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम भी फैजाबाद आ गई.

दूसरी ओर खुशी के बारे में पता न चलने से दुखी घर वाले अधिकारियों के यहां चक्कर लगा रहे थे. इस से स्थानीय लोगों का गुस्सा बढ़ता गया. पुलिस पर दबाव भी बढ़ रहा था. परिणामस्वरूप रविवार 22 अक्तूबर, 2017 को सुनील कुमार सिंह ने मोहम्मद अनीस और विमलेश को फैजाबाद रेलवे स्टेशन से उस वक्त गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों ट्रेन पकड़ कर कहीं भागने की फिराक में थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के कोतवाली बीकापुर लाया गया. पूछताछ में पहले तो दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने उन के सामने सबूत रखे तो दोनों ने सच्चाई उगल दी.

विमलेश ने बताया कि मोहम्मद अनीस, जो उस का प्रेमी था, की मदद से उस ने खुशी को ठिकाने लगा दिया है. उस की लाश को उन्होंने जंगल में फेंक दिया था. उन्होंने खुशी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के कोछा बाजार में वैसे तो कई निजी स्कूल हैं, लेकिन एमडीआईडीयू की अपनी अलग पहचान है. यही वजह है कि इलाके के ज्यादातर बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं. खुशी के ही गांव असकरनपुर की रहने वाली 24 साल की विमलेश कुमारी इस स्कूल में अध्यापिका थी. खुशी वहां कक्षा-4 में पढ़ती थी. गांव के रिश्ते से खुशी विमलेश की भतीजी लगती थी.

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कुंवारी विमलेश मोहम्मद अनीस से प्यार कर बैठी थी. जबकि वह शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. एमडीआईडीयू स्कूल में पढ़ाने से पहले विमलेश एक अन्य स्कूल में पढ़ाती थी. मोहम्मद अनीस वहां बस चलाता था. साथ आनेजाने में दोनों में प्यार हो गया. जब इस बात की जानकारी स्कूल वालों को हुई तो दोनों को नौकरी से निकाल दिया गया ताकि स्कूल का माहौल खराब न हो.

वहां से निकाले जाने के बाद विमलेश एमडीआईडीयू स्कूल में पढ़ाने लगी, अनीस वहां  भी अकसर उस से मिलने आता था. अनीस से मिलने के लिए ही विमलेश स्कूल खुलने से पहले आ जाती थी, इसलिए उसे अनीस से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

एक दिन खुशी ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो यह बात उस ने अपने घर वालों को बता दी. इस के बाद तो विमलेश और अनीस के संबंधों की जानकारी पूरे गांव वालों को हो गई.

इस से विमलेश की काफी बदनामी हुई. इसी बात से नाराज हो कर विमलेश ने खुशी को सबक सिखाने का मन बना लिया. इस के बाद उस ने अनीस से सलाह की.

उसी सलाह के अनुसार गुरुवार 12 अक्तूबर, 2017 को विमलेश ने मार्शल गाड़ी बुक कराई. यह गाड़ी अनीस के मामा साकिर की थी. स्कूल से छुट्टी होने के बाद विमलेश खुशी को बरगला कर अनीस की मोटरसाइकिल से मार्शल तक ले आई.

वहां वह खुशी को ले कर उस में बैठ गई. अनीस उस के साथ ही था. अनीस खुशी को ले कर थाना कुमारगंज के गांव बवां पहुंचा, जहां वह अपनी एक रिश्तेदार जुलेखा के यहां पहुंचा. जुलेखा के घर के बगल में ही उस के बहनोई का पुराना मकान खाली पड़ा था. खुशी को ले कर वह उसी मकान में छिपा रहा.

शाम होते ही दोनों खुशी को बवां गांव के जंगल में ले गए और वहां उस की हत्या कर के उस की लाश वहीं एक गड्ढे में फेंक दी.

खुशी को ठिकाने लगा कर विमलेश और अनीस रुदौली रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली चले गए. दिल्ली से दोनों गुरुग्राम गए, जहां इधरउधर घूमते रहे. 22 अक्तूबर को दोनों फैजाबाद लौटे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

विमलेश और अनीस से पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों की मदद करने वाली जुलेखा और मार्शल गाड़ी लाने वाले अनीस के मामा साकिर को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने अनीस की मोटर साइकिल तथा उस के मामा साकिर की मार्शल गाड़ी भी बरामद कर ली थी.

विमलेश और अनीस की निशानदेही पर पुलिस ने बवां के जंगल से खुशी का कंकाल और स्कूल ड्रेस बरामद कर ली थी. खुशी की लाश को शायद जंगली जानवर खा गए थे. पुलिस ने कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद पहले से दर्ज मुकदमे में धारा 367, 302, 201 दफा 34 भी जोड़ दी गई थी. सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस तथा मीडिया सूत्रों पर आधारित

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खुलेपन में बुराई नहीं : अंजना सिंह

भोजपुरी फिल्मों की खास बात यह है कि इन में छोटे शहरों की लड़कियों के लिए भी दरवाजे खुले हुए हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले की रहने वाली अंजना सिंह आज भोजपुरी फिल्मों की सब से महंगी हीरोइनों में से एक हैं. अंजना सिंह पिछले 5 साल में 50 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. उन्हें भोजपुरी फिल्मों की हौट और सैक्सी हीरोइन माना जाता है. वे तकरीबन हर बड़े हीरो के साथ काम कर चुकी हैं.

फिल्म ‘जिगर’ की कामयाबी के बाद अंजना सिंह की एक और फिल्म ‘नागराज’ आने वाली है जिस में वे खूबसूरत सैक्सी नागिन का रोल अदा कर रही हैं. पेश हैं, अंजना सिंह के साथ हुई बातचीत के खास अंश :

आप का अब तक फिल्मों का सफर कैसा रहा है?

मैं ने फिल्मों में हर कामयाब स्टार के साथ काम किया है. सभी के साथ हिट फिल्में दी हैं. भोजपुरी फिल्मों ने मुझे बहुतकुछ दिया है. मैं फैशन की दुनिया से ऐक्टिंग में आई. यहां आ कर काम सीखा और कामयाबी हासिल की. मैं अब तक के अपने सफर से खुश हूं.

मैं ने दिनेशलाल के साथ फिल्म ‘जिगर’ की थी जो बहुत कामयाब रही थी. अब फिल्म ‘नागराज’ सिनेमाघरों में आने वाली है जिसे लोग जरूर पसंद करेंगे.

आप ने फिल्मों में आने का फैसला कैसे लिया था?

मैं बहराइच के एक साधारण परिवार से हूं. 4 भाईबहनों में मैं दूसरे नंबर पर हूं. मेरा बचपन से ही हीरोइन बनने का सपना था. जब मैं 12वीं क्लास में थी उसी समय लखनऊ में ‘मिस यूपी शो’ हो रहा था. उस में हिस्सा लेने के लिए मुझे ‘मिस बहराइच’ का खिताब जीतना जरूरी था. मैं ने ‘मिस बहराइच’ का खिताब जीता और लखनऊ पहुंच गई. ‘मिस यूपी’ में मैं रनरअप रही थी. वहां से मुझे लगा था कि फैशन प्रतियोगिताओं के जरीए मैं हीरोइन बनने का अपना सपना पूरा कर सकती हूं. मैं मुंबई गई. वहां कुछ शो किए और फिर मुझे एक टैलीविजन सीरियल में काम करने का मौका मिला.

सीरियल में मेरा काम देख कर रविकिशन के साथ फिल्म ‘फौलाद’ मुझे मिली. इस के बाद मैं ने वापस मुड़ कर नहीं देखा. एक साल में सब से ज्यादा फिल्में साइन करने वाली हीरोइन के रूप में भी मुझे जाना जाता है.

भोजपुरी फिल्मों में आप को बोल्ड सीन करने के लिए ज्यादा जाना जाता है. इस की वजह?

मैं फिल्मों में अपने रोल के हिसाब से काम करती हूं. भोजपुरी फिल्मों में दर्शक थोड़े अलग होते हैं. उन में से ज्यादातर गांवदेहात के मजदूरकिसान ही होते हैं. वे मनोरंजन करने के लिए हमारी फिल्में देखते हैं. वे चाहते हैं कि उन के खरीदे गए टिकट का पूरा पैसा वसूल हो. ऐसे में भोजपुरी फिल्मों में उन की पसंद की कहानीऔर गाने रखे जाते हैं. मुझे लगता है कि फिल्म देखते समय हमारे गाने, डांस और ऐक्टिंग देख कर अगर दर्शक सीटी बजाने लगते हैं तो हम उन का मनोरंजन करने में कामयाब हो जाते हैं. दर्शक मुझे ज्यादा पसंद करते हैं, इसीलिए मुझे ज्यादा फिल्में मिली हैं.

भोजपुरी फिल्मों में खुलेपन की बहुत बुराई होती है. आप इसे कैसे देखती हैं?

भोजपुरी फिल्मों से ज्यादा खुलापन तो हिंदी फिल्मों में होता है. वहां काम करने वाले कलाकारों को अलग नजर से देखा जाता है, इसलिए उन की बुराई कम होती है. भोजपुरी फिल्मों का बड़ा दर्शक वर्ग गांवों में रहता है. गंवई बोली होने के चलते इन में कही गई हर बात लोगों को देहाती लगती है. हमारे समाज में छोटे आदमी की बुराई करने का रिवाज भी है पर मुझे भोजपुरी फिल्मों के खुलेपन में कोई बुराई नजर नहीं आती.

आप अपना खाली समय कैसे बिताती हैं?

मैं घुड़सवारी करना पसंद करती हूं. इस के अलावा ड्राइविंग, पढ़ना और घूमना मुझे अच्छा लगता है. मुझे अपने घर को सजाना पसंद है और डांस करने का भी शौक है. जब मैं फिल्मों में काम नहीं करती थी तब खूब स्टेज शो करती थी. मैं ने देशविदेश में बड़ेबड़े स्टेज शो और फैशन शो किए हैं.

मुझे लगता है कि हर लड़की को खुद पर यकीन होना चाहिए. लड़कियां जो भी काम करें मजबूत इरादे के साथ करें. समाज हमारे इसी यकीन की कद्र करता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पकौड़े का गणित

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकौड़े बेचने वालों को कारोबारी बताया, तो पूरी भारतीय जनता पार्टी यह साबित करने में जुट गई कि पकौड़े बेचने से अच्छा कोई कारोबार नहीं है. वहीं विपक्ष इस बात पर जोर देने लगा कि प्रधानमंत्री ने पकौड़े को कारोबार से जोड़ कर कारोबारियों की बेइज्जती की है.

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि अगर पकौड़े बेचने वाले कारोबारी हैं तो भीख मांगना भी रोजगार है. उत्तर प्रदेश में तो समाजवादी पार्टी के नेता और कुछ दूसरे संगठन सड़कों पर आ कर पकौड़े बेचने लगे. खबरें तो यह भी बनने लगीं कि इंजीनियरों द्वारा बनाए गए पकौड़े हाथोंहाथ बिक गए.

पूरे देश में अलगअलग तरह के पकौड़े बेचे जाते हैं. हर जगह पर इन को बेचने के तरीके अलग होते हैं. ज्यादातर पकौड़े सड़क किनारे बनी दुकानों, फुटपाथों पर बेचे जाते हैं. दफ्तर, स्कूल, कचहरी, अस्पताल, रेलवे स्टेशन और मेले वाली जगहों पर ये ज्यादा बिकते हैं. ज्यादातर इन को चाय के साथ खाया जाता है.

कुछ जगहों पर रसेदार सब्जी भी पकौड़ों के साथ परोसी जाती है. कुछ दुकानदार तीखीमीठी चटनी का इस्तेमाल करते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी में लहुरावीर चौराहे पर दिन में पकौड़े बेचने की एक दुकान चलती है. यहां ब्रैड के जले हुए किनारे को बेसन में घोल कर पकौड़े बना दिए जाते हैं.

पकौड़े बेचने वाले ज्यादातर सही क्वालिटी का बेसन इस्तेमाल नहीं करते हैं. कई लोग आटे में पीला रंग मिला कर उस को बेसन जैसा तैयार कर लेते हैं. बेसन के मुकाबले आटा सस्ता पड़ता है.

पकौड़े की लागत की बात करें तो 3 चीजों पर सब से ज्यादा खर्च होता है: गैस या भट्ठी, बेसन और जिस चीज का पकौड़ा बनना हो. ज्यादातर दुकानदार सीजन की सस्ती चीजों का इस्तेमाल कर के पकौड़े तैयार करते हैं, जिस से लागत कम और मुनाफा ज्यादा हो सके.

अच्छी दुकान वाला भी 200 से 250 पकौड़े ही पूरे दिन में बेच पाता है. ऐसे में वह रोज के 2 हजार से 4 हजार रुपए कमा पाता है.

एक दुकानदार के पास पकौड़े बनाने से ले कर बेचने तक 4 से 6 लोगों की जरूरत होती है. ये लोग पकौड़ा बनाने की सामग्री तैयार करने, पकौड़ा बनाने, ग्राहक को देने और बरतन साफ करने तक में लगे होते हैं. इन पर आने वाला खर्च अगर निकाल दिया जाए तो 2 हजार से 4 हजार रुपए के पकौड़े रोज बेचने वाला अपने लिए 3 सौ से 4 सौ रुपए भी बड़ी मुश्किल से बचा पाता है.

पकौड़े बेचने वालों को भले ही सरकार को टैक्स न देना पड़ता हो, पर पुलिस, नगरनिगम और इलाकों के गुंडों को टैक्स देना पड़ता है. इसी वजह से ये लोग परेशान रहते हैं. शहरों में भट्ठी का इस्तेमाल कम होता है, गैस का इस्तेमाल ज्यादा होता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही यह कहें कि पकौड़ा बेचना आसान काम और मुनाफे का काम है, सचाई यह है कि आज भीड़भाड़ वाली जगह पर पकौड़े की दुकान खोलने की जगह ही मिलना मुश्किल है.

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धर्म की आड़ में ताने अब बरदाश्त नहीं

उन लड़कियों की हिम्मत ही कही जाएगी जिन्होंने तरबूज की कटी फांकों को ले कर खुलेआम जुलूस निकाला और एक भद्दे सैक्सिएस्ट कमैंट कहने वाले कट्टर मुसलिम प्रोफैसर को शर्मिंदा किया. इन श्रीमान ने धर्म की रक्षा के नाम पर कहा था कि लड़कियों की ड्रैसें ऐसी होती हैं कि हिजाब पहनने के बावजूद वे अपनी छातियां कटे तरबूज की तरह दिखाती फिरती हैं.

जैसे ही इस महान प्रवचन का वीडियो लौंच हुआ लड़कियों का एक हुजूम कटे तरबूज ले कर केरल के कोझिकोड में फारुक ट्रैनिंग कालेज में जमा हो गया और मांग की कि जौहर मुनव्वर के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए.

हर धर्म के कट्टरपंथी अपनी मर्दानगी को जताने के लिए औरतों के अंगों को ले कर कटाक्ष करते रहते हैं और उन पर औरतें अकसर सिर झुका कर चुप हो जाती हैं. यही चुप्पी उन दकियानूसी आदमियों को प्रेरित करती है कि वे औरतों को गुलामी की जंजीरों में बांधे रखने के लिए धर्म का सहारा लें. चूंकि धर्म का हस्तक्षेप हर घर में बचपन से ही शुरू हो जाता है इसलिए धार्मिक आदेश हर कदम पर लोगों को हड़का कर रखते हैं. इस प्रकार के कमैंट औरतों का जीना हराम कर देते हैं.

अब लोगों का मुंह बंद तो नहीं करा जा सकता पर यह अवश्य संभव है कि उन्हें इस तरह की बातों के लिए नेमिंग व शेमिंग की जाए और उन्हें अफसोस करने के लिए मजबूर किया जाए. हिजाब एक तरह से इसलाम की अपने मर्दों को काबू में न रखने की असफलता का प्रतीक है. अगर इसलाम ने मर्दों को जताया होता कि वे किसी औरत को उस की अपनी मरजी के खिलाफ घूर भी नहीं सकते तो हिजाब की जरूरत ही नहीं होती. घूंघट भी उसी परंपरा का हिस्सा है.

धर्म कहने को तो बखान करता है कि वही समाज को नियंत्रित करता है पर हर धार्मिक समाज में उसी तरह के अपराध, औरतों की बेइज्जती, बलात्कार, चोरियां, हत्याएं होती हैं जैसी अधार्मिक समाजों में हो सकती हैं.

अब तो दुनिया भर में धर्म ने अपराधों की सजा देना ही बंद कर दिया है. वह काम तो सरकारों की बनाई गई अदालतें करती हैं. धर्म तो अपनी दकियानूसी बातें थोपता है. इन बातों का विरोध करना जरूरी है.

इन कोझिकोड की लड़कियों की हिम्मत की दाद दी जानी चाहिए कि उन्होंने एक गलत बयान की जम कर खिल्ली उड़ाई.

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