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बाल विवाह की बढ़ती सनक

देशभर में 26.8 फीसदी लड़कियों और 20 फीसदी लड़कों की शादी आज भी कच्ची उम्र में की जा रही है. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में 21 साल से पहले 40 फीसदी लड़कों और 18 साल से पहले 39 फीसदी लड़कियों की शादी करा दी जाती है, वहीं उत्तर प्रदेश में 28.8 फीसदी लड़कों और 21 फीसदी लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले ही कर दी जाती है.

सर्वे में कहा गया है कि गांवदेहात में बड़े लैवल पर धड़ल्ले से बाल विवाह किए जा रहे हैं. गांवों में 24 फीसदी लड़कों और 37 फीसदी लड़कियों की शादी कानून द्वारा तय की गई शादी की उम्र्र से पहले ही कर दी जाती है.

साल 1929 में बनाया गया बाल विवाह निरोधक कानून कहता है कि लड़की की शादी 18 साल और लड़के की शादी 21 साल की उम्र से पहले नहीं की जा सकती है.

साल 2006 में बाल विवाह निरोध अधिनियम को नए सिरे से लागू किया गया. बाल विवाह प्रतिरोध अधिनियम, 2006 की धारा-2(ए) के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़कों और 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग करार दिया गया है.

इस कानून के तहत बाल विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. बाल विवाह की इजाजत देने, शादी तय करने, शादी कराने या शादी समारोह में हिस्सा लेने वालों को भी सजा दिए जाने का कानून है.

कानून की धारा-10 के मुताबिक, बाल विवाह कराने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा दी जा सकती है, वहीं धारा-11 (1) कहती है कि बाल विवाह को बढ़ावा देने या उस की इजाजत देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है.

बाल विवाह पर रोक लगाने की हकीकत यह है कि बिहार में पिछले 11 सालों में बाल विवाह के कुल 15 केस ही दर्ज किए गए हैं, जबकि भारी पैमाने पर बाल विवाह जारी हैं.

सरकार और अफसरों की लापरवाही का यह नतीजा है कि राज्य के जिन जिलों में सब से ज्यादा बाल विवाह होते हैं, वहां एक भी केस दर्ज नहीं हुआ है.

साल 2006 से ले कर अगस्त, 2017 के बीच गोपालगंज में 4, नालंदा में 3, पटना, सहरसा और कटिहार में 2-2 और जहानाबाद व शिवहर में एकएक केस दर्ज किए गए.

बेगुसराय में 53.2, मधेपुरा में 56.3, सुपौल में 56.9, जमुई में 50.8 फीसदी बाल विवाह होते हैं, इस के बाद भी इन जिलों में बाल विवाह का एक भी केस दर्ज नहीं किया जा सका.

14 जून, 2017 को जहानाबाद के काको में मासूम 12 साल की बच्ची टिकुलिया की शादी हो रही थी. वह फूटफूट कर रो रही थी. उसे शादी के बारे में कुछ पता नहीं था. वह इस बात के लिए रो रही थी कि अब उसे अपने घर से दूर किसी दूसरे के घर में रहना पड़ेगा.

परंपरा की जंजीरों में जकड़े उस के मांबाप और रिश्तेदार जबरन उस की शादी की रस्म अदा कराते रहे. उस की सिसकियों के बीच शहनाइयां बजती रहीं और परिवार वाले तरहतरह के पकवान खाने का लुत्फ उठाते रहे.

कच्ची उम्र में जबरन बेटियों और बेटों की शादी करने वाले मांबाप अपने मासूम बच्चों को जिंदगीभर के लिए दर्द के दलदल में फंसा कर छोड़ देते हैं.

बिहार के कटिहार जिले के समेली गांव की रहने वाली निशा की शादी उस के मांबाप ने 11 साल की उम्र में कर दी थी. उस समय वह जानती भी नहीं थी कि शादी किस चिडि़या का नाम है? आज वह 24 साल की हो चुकी है.

शादी के बाद के 5 सालों में वह 4 बच्चों की मां बन गई. वह जिस्मानी रूप से इतनी कमजोर है कि ठीक से चलफिर नहीं पाती है. कच्ची उम्र में शादी कर के उस के मांबाप ने एक तो उस का बचपन छीन लिया और जवानी में जिस्मानी व दिमागी तौर पर कमजोर बना कर उसे समय से पहले ही बूढ़ा कर डाला.

डाक्टर राजीव पांडे बताते हैं कि कम उम्र में शादी होने से लड़के और लड़कियां दिमागी और जिस्मानी रूप से कच्चे होते हैं. उन्हें न तो सैक्स के बारे में कुछ पता होता है, न ही परिवार की जिम्मेदारियों की जानकारी होती है. कम उम्र में उन पर ढेर सारा बोझ डाल कर उन के मांबाप अपनी बेटियों को मौत के मुंह में धकेल देते हैं.

कम उम्र में मां बन जाने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान को खतरा होता है. यह लड़के व लड़कियों के मांबाप और समाज को समझना चाहिए.

राष्ट्रीय परिवार सैंपल सर्वे के मुताबिक, देशभर में 22 साल से 24 साल की उम्र वर्ग की 47.4 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जिन की शादी 18 साल से पहले कर दी गई थी. इस में 56 फीसदी औरतें गांवों की और 29 फीसदी शहरी इलाकों की हैं.

देशभर में बाल विवाह के मामले में बिहार अव्वल है. यहां 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले कर के मांबाप अपने ‘बोझ’ को हटा डालते हैं. वहीं राजस्थान में 57.6, उत्तर प्रदेश में 54.9, महाराष्ट्र में 40.4, मध्य प्रदेश में 53.8, छत्तीसगढ़ में 45.2, आंध्र प्रदेश में 54.8, पश्चिम बंगाल में 54.8, गुजरात में 35.4, असम में 38.6, ओडिशा में 37.5, तमिलनाडु में 23.3, गोवा में 12.1 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले कर दी जाती हैं. परंपरा की दुहाई देते हुए मांबाप अपनी मासूम बेटियों की जिंदगी खुद ही तबाह कर डालते हैं.

बाल विवाह को रोकने और इसे बढ़ावा देने वालों पर कड़ी कार्यवाही के लिए ढेरों कानून बने हुए हैं और सरकार इस पर रोक लगाने के लिए अकसर नएनए ऐलान करती रहती है. इस के बावजूद देशभर में बाल विवाह का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है.

समाजसेवी अनिता सिन्हा कहती हैं कि जब तक औरतें पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं, तब तक वे जागरूक नहीं हो सकती हैं. बाल विवाह को रोकने के लिए औरतों का पढ़ालिखा होना बहुत ही जरूरी है. इस के बाद ही वे बाल विवाह के खतरों को समझ सकेंगी और अपने बच्चों का बाल विवाह नहीं होने देंगी.

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं.

4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’

दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे.

दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने.

दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला.

ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं.

महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’

बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं. बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे.

पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरीगोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरीगोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं.

इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’

भारतीय रेल हादसे : मुसाफिरों का विनाश

भारतीय रेल यात्रा में जिस तरह से जानमाल का खतरा बना हुआ है और उस के ‘बुरे दिन’ हैं, ऐसे में किसी शायर की ये चंद लाइनें व भाजपा का नारा ‘सब का साथ सब का विकास’ के बजाय ‘स्टाफ का विकास, मुसाफिरों का विनाश’ बहुत मौजूं है.

यहां की रेल व्यवस्था राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नकारा स्टाफ की वजह से भारी बुरे दौर से गुजर रही है, मगर फिर भी बुलेट ट्रेन चलाए जाने का थोथा शोर है. मुसाफिरों की जान की हिफाजत का कोई खास जोर नहीं है, क्योंकि सरकार और उस के मुलाजिम दोनों मन, कर्म और वचन से चोर हैं.

सरकारी आंकड़े चीख रहे हैं कि रेलवे में होने वाले हादसों में आधे से भी ज्यादा हादसे सिर्फ स्टाफ की लापरवाही से होते हैं, फिर भी सरकार है कि उन कुसूरवार रेल अफसरों, मुलाजिमों पर कोई आपराधिक कार्यवाही करने से बचती रहती है. महज अनुशासनात्मक कार्यवाही कर अगली बार फिर मौत पर मातम मनाती है, आखिर में मौत के मुलाजिमों को छोड़ देती है. यही वजह है कि अब तक स्टाफ की कमी से हुए रेल हादसों में कार्यवाही का कोई बड़ा उदाहरण नहीं दिखा है, जिस से स्टाफ सहमा हो और रेल हादसे रुके हों.

सरकार संसद के भीतर तो यह स्वीकार करती है कि रेल हादसों में रेलवे मुलाजिम कुसूरवार हैं, मगर उन को गिरफ्तार किए जाने, कठोर सजा दिलवाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाती.

ध्यान देने वाली बात यह है कि रेलवे के कुसूरवार अफसरों, मुलाजिमों पर कोई कठोर कार्यवाही न करने के चलते हादसों के साथ इस से होने वाला माली नुकसान भी बढ़ता चला जा रहा है, जो जनता की गाढ़ी कमाई है.

संसद में हुई बहस के दौरान जो आंकड़े बताए गए हैं, उन के मुताबिक, रेल हादसों के चलते साल 2014-15 में 70.07 करोड़ रुपए का माली नुकसान हुआ है, वहीं 2016-17 में हुए कुल सौ हादसों में 59.06 करोड़ रुपए का माली नुकसान हुआ है.

मोदी सरकार ‘अच्छे दिन’ के जुमलों से जोरशोर से सत्ता में तो आ गई, मगर रेल के सफर के दौरान होने वाले मौतरूपी मर्ज को जड़ से न दूर कर के ट्वीट करने पर दूध और दवा मुहैया कराने की वाहवाही लूटने में लग गई. इस के साथ ही बुलेट ट्रेन चलाने और ट्रेनों में वाईफाई मुहैया कराने और अब तो ट्रेन में ही शौपिंग कराने का दावा करने में लगी है, जबकि मुसाफिर ट्रेन में बैठेंगे तो महफूज अपनी मंजिल तक पहुंच पाएंगे, इस की कोई गारंटी नहीं है.

6 महीने में रेल हादसे

* 26 सितंबर, 2017. मुंबई के एलफिंस्टन रोड उपनगरीय रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर हुई भगदड़ में 22 लोगों की मौत हो गई और 32 लोग घायल हो गए.

* 6 सितंबर, 2017. नए रेल मंत्री पीयूष गोयल की ताजपोशी के बाद एक ही दिन में देश के अलगअलग हिस्सों में 4 रेल हादसे हुए. पहली घटना में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में ‘शक्तिपुंज ऐक्सप्रैस’ के 7 डब्बे बेपटरी हो गए, वहीं दूसरी घटना में मिंटो पुल के निकट ‘रांचीदिल्ली राजधानी’ का इंजन और पावर कार उतर गया. तीसरी में महाराष्ट्र में खंडाला के निकट मालगाड़ी पटरी से उतर गई. चौथी में फर्रुखाबाद और फतेहगढ़ के पास ‘दिल्लीकानपुर कालिंदी ऐक्सप्रैस’ बड़ा हादसा होने से बालबाल बच गई.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के निकट खतौली में ‘पुरी उत्कल ऐक्सप्रैस’ के हादसे में 23 लोगों की जानें चली गईं, जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए.

* 22 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के औरैया में ‘कैफियत ऐक्सप्रैस’ के एक डंपर से टकराने के चलते 9 कोच पटरी से उतर गए और दर्जनों मुसाफिर घायल हो गए.

* 21 मई, 2017. उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्टेशन के पास ‘लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट’ ट्रेन के 8 कोच पटरी से उतर गए, जिस में 20 मुसाफिर घायल हो गए.

* 15 अप्रैल, 2017. ‘मेरठलखनऊ राजरानी ऐक्सप्रैस’ के 8 कोच रामपुर के पास पटरी से उतर गए. इस में तकरीबन एक दर्जन मुसाफिर घायल हो गए.

होते होते टला हादसा

* 27 सितंबर, 2017. इलाहाबाद के निकट एक ही पटरी पर ‘दूरंतो ऐक्सप्रैस’ समेत 3 ट्रेनें एकसाथ टकराने से बालबाल बच गईं.

* 29 सितंबर, 2017. उन्नाव में गंगा घाट रेलवे स्टेशन से मालगाड़ी को बिना गार्ड के ही रायबरेली के लिए भेज दिया गया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार में 3 साल तक रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु के कार्यकाल में छोटेबड़े कुल 3 सौ रेल हादसे हुए, जिस में सिर्फ साल 2017 में जनवरी से अगस्त महीने तक 31 रेल हादसे हो चुके थे.

पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इन हादसों के बाबत नैतिक आधार पर इस्तीफा देने की पेशकश की, जिस के बाद तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को यह मंत्रालय मिला, मगर फिर भी हादसे हैं कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.

* 19 जुलाई, 2017. संसद में पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेल स्टाफ की लापरवाही की वजह से हुए हादसों के बाबत बताया था कि साल 2015-16 में हुए कुल 107 रेल हादसों में 55 हादसे और साल 2016-17 में 85 हादसों में से 56 हादसे सिर्फ स्टाफ की लापरवाही से हुए हैं.

इसी तरह नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 से साल 2016-17 तक हर 10 रेल हादसों में से सिर्फ 6 हादसे स्टाफ की चूक की वजह से हुए हैं.

नीति आयोग की एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में 31 मार्च तक 104 हादसों में से 66 हादसे स्टाफ की लापरवाही से हुए हैं.

गुनाहगारों को सजा नहीं

दरअसल, रेलवे के बड़े हादसों की जांच के लिए संसद ने एक कानून बना कर रेलवे संरक्षा आयोग बनाया है. निष्पक्ष जांच के लिए इस आयोग को केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत रखा गया है. इस आयोग का मुखिया संरक्षा आयुक्त होता है, जो रेलवे के अलगअलग जोन का काम देखने वाले 5 आयुक्तों के साथ काम करता है.

संरक्षा आयोग के पास इतना काम होता है कि लंबे अरसे तक जांच ही चलती रहती है. अब तक का इतिहास बताता है कि इस आयोग के आयुक्त ज्यादातर रेलवे के ही लोग होते हैं. इस से भी जांच का काम काफी हद तक प्रभावित होता है. कभी अगर कार्यवाही होती भी है, तो छोटे अफसरों पर हो जाती है, बड़े अफसर साफसाफ बचा लिए जाते हैं.

रेलवे के एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर ने बताया कि भारतीय रेलवे की नियम पुस्तिका के मुताबिक, ट्रैक के रखरखाव के लिए रोजाना 3 से 4 घंटे तय हैं, मगर ऐसा हो नहीं पाता. ज्यादातर नियम स्टाफ की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं. कभीकभी ट्रैक के खाली न होने या फिर ट्रेन के देरी से आने की वजह से भी ऐसा होता है.

वे आगे बताते हैं कि इस की असल वजह नियमों के न होने की नहीं है, बल्कि उन नियमों के सही से लागू न हो पाने की है.

इधर रेलवे ने हाल ही में टिकट में फ्लैक्सी रेट जैसे नएनए शिगूफे छोड़ कर जम कर आमदनी बढ़ाई है. अकसर रेल मुसाफिर यह कहते हुए मिल जाते हैं कि फर्स्ट क्लास के सफर का खर्च उतनी ही दूरी के हवाईजहाज के सफर के खर्च के तकरीबन बराबर है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब मुसाफिर का अहम मकसद एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचना है, तो क्या रेलवे उस जगह तक महफूज पहुंचाने की गारंटी भी गंभीरता से देती है?

इस बाबत रेलवे से जुड़े एक रिटायर्ड अफसर बताते है कि रेलवे को मिलने वाले एक रुपए में से महज 7 पैसे ही रखरखाव के लिए लगाए जाते हैं, बाकी दूसरे कामों में इस्तेमाल हो जाते हैं.

हालांकि साल 2014-15 के मुकाबले हिफाजत पर खर्च होने वाली रकम को साल 2017-18 में 42.430 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 65.241 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

रेल का राजनीतिकरण

वैसे तो रेलवे देश की ‘लाइफलाइन’ कहलाती है, मगर इस के राजनीतिकरण ने उसे तकरीबन ‘किलर लाइन’ में तबदील कर दिया है.

देखने में आता है कि गठबंधन सरकारों में यह मंत्रालय किसी मजबूत दल की झोली में ही रहा है और ज्यादातर काम देश के लैवल पर न हो कर केवल इलाकाई लैवल पर ही किए गए.

पहले तो अलग से पेश होने वाले रेल बजट में पश्चिम बंगाल, बिहार, रायबरेली, अमेठी जैसे इलाकों को खास सौगातें मिलती रही थीं.

ऐसे में हाल ही में हुए रेल हादसों पर अगर लालू प्रसाद यादव यह तंज कसते हैं कि खूंटा बदलने से नहीं, बल्कि संतुलित आहार देने व खुराक बदलने से भैंस ज्यादा दूध देगी, तो इसे महज एक राजनीतिक बयान नहीं समझना चाहिए, बल्कि इस को गंभीरता से देखना चाहिए. सत्ता बदलने से या किसी मंत्री का मंत्रालय बदल देने से रेलवे का कोई भला नहीं हो पाएगा.

बेहतर होगा कि रेलवे का भ्रष्टाचार, काम करने का गैरजिम्मेदाराना रवैया खत्म हो और रेलवे स्टाफ व मंत्रालय जनता के प्रति जवाबदेह बनें.

जीएसटी से हुआ ब्यूटी बिजनेस ठप

ब्राइडल सीजन आने पर भी ब्यूटीपार्लरों को पहले जैसा बिजनेस नहीं मिल रहा है, जिस से ब्यूटी का बिजनैस ठप्प सा हो रहा है. जीएसटी से महिलाओं का ब्यूटी ऐक्सपैंस भी बढ़ गया है.

लखनऊ  की पौश मार्केट के ब्रैंडेड ब्यूटीपार्लर में एक महिला कस्टमर ने हेयर कटिंग और हेयर स्पा कराया. जब उस ने बिल देखा तो गुस्से से बोली कि कुछ अरसा पहले उस ने ये दोनों सेवाएं बहुत कम खर्च में ली थीं. यह सुन काउंटर पर बैठी लड़की ने समझाया कि पहले सर्विस टैक्स 12% था अब जीएसटी 18% हो गया, टैक्स बढ़ने की वजह से ही बिल अमाउंट बढ़ा है. उस महिला को यह बात समझ में नहीं आई. वह बढ़े बिलकी पेमैंट नहीं करना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘आप बिल मत दो. मुझे टैक्स नहीं देना.’’

इस पर सैलून वालों ने कहा, ‘‘बिना बिल के हम काम नहीं करते, आप को टैक्स देना ही होगा.’’ काफी झिकझिक के बाद महिला ने बिल की पेमैंट कर दी पर सैलून से जातेजाते कह गई कि अगर आप टैक्स बंद नहीं करेंगे तो आगे से वह आप के यहां सर्विस लेने नहीं आएगी.

जीएसटी से बढ़ी मुश्किल

सैलून वालों से बात करने पर पता चला कि जीएसटी लागू होने के बाद से रोज ग्राहकों से इस तरह की झिकझिक होती है. ऐसे में कुछ ग्राहक ऐसे ब्यूटीपार्लरों में चले जाते हैं जहां किसी तरह का टैक्स नहीं लिया जाता है. असल में ये लोग ग्राहक को किसी तरह की रसीद नहीं देते. पर जीएसटी लगने के बाद से इन पार्लरों ने भी अपने रेट बढ़ा दिए हैं. मगर ब्रैंडेड पार्लरों के मुकाबले इन का रेट कम रहता है. अपने ठप्प होते बिजनैस को बचाने के लिए ब्रैंडेड पार्लरों ने नए तरीके से ग्राहकों को समझाना शुरू किया है. जीएसटी लगने के बाद पार्लर की सर्विस के रेट्स रिवाइज हो गए हैं. इन रिवाइज रेट्स में केवल ग्राहक के द्वारा ली जाने वाली सर्विस का रेट लिखा होता है. इस के ऊपर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लिया जाता.

मसलन, अगर हेयर कटिंग और हेयर स्पा का चार्ज पहले 500 और टैक्स देना पड़ता था तो रेट को रिवाइज कर के 600 लिया जाने लगा. इन 600 पर किसी तरह का टैक्स ग्राहक से नहीं लिया जाता है. इस से उसे लगता है कि अब उसे टैक्स नहीं देना पड़ रहा है. उस के पूछने पर पार्लर वाले समझाते हैं कि अब खुद कंपनी टैक्स भुगतान कर रही है. आप के द्वारा ली जाने वाली सर्विस पर टैक्स नहीं लिया जा रहा. ग्राहक के साथ झिकझिक तो कम हो गई पर उसे यह एहसास हो जाता है कि पार्लर ने अपनी सर्विस के रेट बढ़ा दिए हैं. ग्राहक की परेशानी यह है कि अगर वह अलगअलग सर्विस लेना चाहता है तो उसे टैक्स देने के लिए कहा जाता है. और अगर वह 2-4 सर्विस को मिला कर बनाया गया एक पैकेज लेता है तो उस पर टैक्स नहीं लिया जाता.

ग्राहकों में आक्रोश

ग्राहक कहते हैं कि ऐसे पैकेज उन की जेब पर भारी पड़ते हैं. ज्यादातर ग्राहक हेयर कटिंग, फेशियल के लिए आते हैं. अगर वे दोनों सर्विस अलगअलग लेते हैं तो टैक्स देना पड़ता है और अगर इन में 1-2 और सर्विस जोड़ कर पैकेज बना दिया जाता है तो टैक्स न लेने की बात जरूर की जाती है. पर इस पैकेज का खर्च दोगुना हो जाता है.

सैलून चलाने वालों के अपने अलग तर्क हैं. वे खुल कर जीएसटी पर आवाज उठाने से बचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि पार्लर के द्वारा दी जाने वाली सर्विस पर वे केवल 18% ही टैक्स देते हैं. इस के बाद भी उन्हें कुछ प्रोडक्ट्स पर 25% या उस से भी अधिक कर देना पड़ता है. ऐसे में उन्हें अपने रेट बढ़ाने पड़े हैं.

सैलून चलाने वाले मानते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद ब्यूटी सर्विस ही नहीं हैल्थ सर्विस भी महंगी हो गई है.

इस के 2 तरह के प्रभाव ग्राहकों पर पड़े हैं. एक तो कम पैसे देने के लिए वे ऐसे पार्लर में जाने लगे हैं, जो हाईजीन के हिसाब से ठीक नहीं है और दूसरा वह नौनब्रैंडेड ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रयोग करता है, जो हैल्थ और ब्यूटी दोनों के लिए सुरक्षित नहीं.

पार्लर ने बढ़ा दिए चार्ज

नौनब्रैंडेड पार्लर वालों ने अपने रेट पहले से बढ़ा दिए पर सर्विस में सुधार नहीं किया. अपर क्लास ग्राहक कुछ ही दिनों में वापस ब्रैंडेड पार्लरों में आने लगे हैं. वे महंगा पैकेज लेने के लिए मजबूर हैं. ब्यूटी पर होने वाला खर्च पहले के मुकाबले बढ़ गया है.

लगातार ऐसे पार्लर में जाने वाली नेहा त्रिपाठी कहती हैं, ‘‘जीएसटी के अंतर्गत भले ही 12% से बढ़ कर ब्यूटीपार्लर में टैक्स 18% हुआ हो पर इस की आड़ में पार्लरों ने अपने सर्विस के रेट बढ़ा दिए जिस से ग्राहकों का खर्च बढ़ गया. जहां हम पहले नौर्मल तौर पर ढाई हजार रुपए 1 माह में खर्च करते थे अब 4 हजार तक खर्च करने पड़ रहे हैं. इन में मेकअप का खर्च शामिल नहीं है.’’

शादी के सीजन में भी फीका

नौनब्रैंडेड पार्लर में जाने वाली प्रियंका राजपूत कहती हैं, ‘‘हमें पता है कि नौनब्रैंडेड पार्लर टैक्स नहीं देते. इस के बाद भी वे हाथ से लिख कर कच्ची रसीद दे देते हैं. इस रसीद पर पार्लर का नाम तक नहीं छपा होता.’’ ब्रैंडेड और नौन ब्रैंडेड पार्लर में चलने वाली सर्विस में डेढ़ से 2 गुना तक का अंतर होता है. पहले के मुकाबले दोनों ही जगह सैलून की सर्विस लेने पर ज्यादा पैसा देना पड़ता है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि सरकार द्वारा लाए जाने वाले टैक्स से उन्हें क्या लेनादेना? वे यह नहीं समझतीं कि किसी भी तरह का टैक्स हो उस का प्रभाव महिलाओं पर भी पड़ता है. जीएसटी इस का सब से प्रबल उदाहरण है. जीएसटी के लागू होने से ब्यूटी खर्च बढ़ गए हैं, जिस का प्रभाव ब्राइडल सीजन पर भी पड़ा है. पहले ब्राइडल सीजन में ग्राहक बड़ी संख्या में आते थे, मगर अब उन की संख्या बहुत कम हो गई है.

महिला व्यापार महासंघ लखनऊ पश्चिम विधानसभा की अध्यक्षा अनीता वर्मा कहती हैं, ‘‘500 ग्राम के वैक्स के पैकेट पर 25 से 30 कीमत बढ़ गई. ऐसे में वैक्सिंग का रेट जो पहले 150 था वह भी बढ़ गया. इस के चलते ग्राहक अब घर में खुद ही वैक्सिंग करने का प्रयास करता है. कई बार उसे सही परिणाम नहीं मिलता है. हर ब्यूटी सर्विस में इसी तरह से रेट बढ़े हैं, जिस से ग्राहकों की संख्या में कमी आई है. जो ग्राहक आ रहे हैं उन्हें ज्यादा दाम चुकाना पड़ रहा है. महिला वर्ग का कहना है कि जीएसटी के गलत फैसले का प्रभाव उन के निजी जीवन पर पड़ रहा है.’’

जाने इस साल की बेस्ट फोटो एडिटिंग ऐप्स

सुपरफास्ट और स्मार्ट हो चुकी तकनीक ने भले ही आपके फोन को डीएसएलआर में बदल दिया हो, लेकिन बेहतर कैमरे से बेहतर फोटो खींचना भी हर किसी के बस की बात नहीं होती. ऐसे में आप फोटो एडिटिंग ऐप्स की मदद ले सकते हैं. ये ऐप्स आपके लो क्वालिटी  फोटो को भी बेहतरीन बना देते हैं. जानें उन ऐप्स के बारे में जिसने इस साल काफी धमाल मचाया है.

एडोब फोटोशौप लाइटरूम

यह ऐप फोटोग्राफर के लिए सबसे बेस्ट ऐप है. फोटोग्राफर ज्यादातर इसका डेस्कटौप एप्लिकेशन इस्तेमाल करते हैं. यह ऐप मोबाइल वर्जन आईफोन, आईपैड और एंड्रायड डिवाइस पर उपलब्ध है. इसमें क्लाउड के जरिए फोटोग्राफर फोटो को डायरेक्ट और फोटो लाइब्रेरी से फोटो का एक्सेस ले सकता है. इसमें कई तरह के एडिटिंग टूल्स उपलब्ध हैं. इस ऐप को इस्तेमाल करने के लिए आपके पास आईफोन 6s, आईपेड प्रो, सैमसंग गैलेक्सी S7 और गूगल पिक्सल स्मार्टफोन होगा जरूरी है. आप लाइटरूम मोबाइल HDR फक्शन को भी इस्तेमाल कर सकते हैं जिसमें अलग-अलग एक्सपोजर के साथ, एचडीआर इमेज में संयोजित कर सकते हैं, जिसमें सामान्य तस्वीर की तुलना में बहुत अधिक टोनल डिलेट होती है.

गूगल स्नेपसीड

स्मार्टफोन फोटो पर टचिंग देने के लिए स्नैपसीड काफी बेहतर ऐप साबित हुआ है. यह इमेज एडिटर आइओएस और एंड्रायड दोनों में उपलब्ध है. इस ऐप में वाइड रेंज के फिल्टर्स विंटेज, ग्लैमर ग्लो और ग्रन्ज जैसे ग्रुप्ड अंडर हैडिंग्स मौजूद हैं. यह सभी फुली कस्टमाइजेबल हैं. इन्हें इस्तेमाल करके आप फोटो में बेहतर नतीजा पा सकते हैं.

एडोब फोटोशौप एक्सप्रेस

अगर आप एक तस्वीर को जल्दी से पंच करना चाहते हैं तो फोटोशौप एक्सप्रेस आपके लिए है. इसके जरिए फोटो में लुक्स को फिल्टर्स और इफेक्ट को कंट्रोल कर सकते हैं. वहीं ज्यादातर लुक्स को विचित्र, सबसे सूक्ष्म, फ्लैटरिंग इफेक्ट्स, से अपनी तस्वीरों को नया रूप दे सकते हैं. इसमें करीब 11 मैनुअल एडिटिंग टूल्स हैं, जैसे एक्सपोजर, डिफोग और हाइलाइट्स शामिल हैं. इसके साथ ही इसमें ब्लेमिश रिमोवल, रेड आई रिडक्शन और फ्रैम के कई वेराइटी उपलब्ध हैं. यह ऐप एंड्रायड और आइओएस दोनों में उपलब्ध है.

एफिनिटी फोटो फौर आईपैड

एफिनिटी फोटो आईपैड के लिए उपलब्ध है. इस एप्लिकेशन को इंस्टौल होने में 2GB की स्टोरेज चाहिए. यह लगभग मैक पीसी और विंडो वाली डेस्कटौप की तरह ही है. इसमें लेयर और ब्लेंड मोड्स के जरिए फोटो एडिट कर सकते हैं. इस ऐप के जरिए फोटो में हाइड पिक्सल और तरह-तरह के इफेक्ट्स एप्लाई कर सकते हैं.

एनलाइट

यह फोटो एडिटिंग की क्रिएटिविटी के लिए सबसे बेहतर है. यह सिर्फ आइओएस वर्जन में उपलब्ध है. इनलाइट इंटरफेस में फोटो के पैरामीटर्स को अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं जैसे फोटो को लेफ्ट और राइट में खींच सकते हैं. वहीं इसमें मौजूद रेडियल फिल्टर्स की मदद से फ्रेम एरिया का एडजस्ट कर सकते हैं. इसके साथ ही इसमें तीन ग्रेडुएट फिल्टर रेडिअल, लीनियर और मिरर दिए गए हैं जिनकी मदद से मास्क फीचर को इस्तेमाल कर सकते हैं.

ऐसे लें सस्ता होम लोन

देश के ज्यादातर शहरों में प्रौपर्टी की ऊंची कीमतों को देखते हुए घर खरीदना बेहद ही मुश्किल है. इसके लिए आपको होम लेना पड़ता है पर कई बार होमलोन लेने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन क्या आपको पता है कि बैंक एक ही घर को खरीदने, कंस्‍ट्रक्‍शन और री-कंस्‍ट्रक्‍शन के लिए परिवार में कमाने वाले दो इंडिविजुअल को एक साथ ज्वाइंट होम लोन देते हैं.

ज्वाइंट होम लोन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोन देते वक्‍त बैंक दोनों की इनकम को ध्‍यान में रखकर लोन का अमाउंट तय करते हैं. इससे आपको इंडिविजुअल के मुकाबले अधिक लोन मिल सकता है. वहीं आपका ईएमआई बोझ दोनों के बीच बंट जाता है. इसके अलावा यह टैक्‍स सेविंग के लिए भी आपके लिए काफी मददगार साबित होता है.

अगर आप नये साल पर घर खरीदने का सोच रहे हैं तो एक बार इस खबर पर नजर डालिए यहां हम आपको होमलोन लेने के कुछ तरिके बता रहे हैं जिन्हे अपनाकर आप आसानी से सस्ता होमलोन ले सकेंगे.

किन रिश्तों में मिलता है ज्वाइंट होमलोन

अगर एक परिवार में दो लोग कमाने वाले हैं तो बैंक दोनों के दस्तावेजों के आधार पर ज्वाइंट होम लोन देता है. इसके तहत पति-पत्नी, पिता पुत्र, पिता-पुत्री, मां-बेटा और मां-बेटी जैसे रिश्तों को ज्वाइंट होमलोन दिया जाता है. लेकिन अधिकांश मामलों में सामाजिक संरचना के मद्देनजर बैंक भाई-बहन को एक साथ लोन नहीं देता.

ज्वाइंट होम लोन के जरिए बचाएं टैक्स

शहर में अधिकतर परिवारों में पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होते हें. ऐसे में टैक्स सेविंग भी दोनों अलग अलग करते हैं. लेकिन अगर दोनों ज्वाइंट होम लोन के लिए अप्लाई करें तो टैक्स सेविंग का फायदा मिल सकता है. इनकम टैक्स एक्ट 24(बी) के तहत होम लोन के ब्याज पर दो लाख तक छूट क्लेम किया जा सकता है, जबकि इनकम टैक्स एक्ट 80सी के तहत प्रिंसिपल अमाउंट पर 1.5 लाख तक का क्लेम किया जा सकता है.

किन बातों का रखें ख्याल

बैंक लोन देने से पहले आवेदक का सिबिल स्कोर जांचता है. ज्वाइंट होम लोन के लिए आवेदन करने से पहले बैंक दोनों आवेदकों का सिबिल स्कोर देखता है. सिबिल स्कोर अच्छा न होने की स्थिति में लोन मिलने में परेशानी हो सकती है. साथ ही टैक्स छूट पाने के लिए जरूरी है कि दोनों आवेदक ईएमआई का एक साथ भुगतान करें. आपको बता दें कि यदि एक व्यक्ति ईएमआई का भुगतान करता है तो दूसरा आयकर में छूट का दावा नहीं कर सकता है.

ज्वाइंट होम लोन के नुकसान

हर बात की तरह ही ज्वाइंट होम लोन के भी अच्‍छे और बुरे पहलू हैं. अगर आपने किसी के साथ मिलकर होम लोन लिया है और आपका पार्टनर होम लोन का भुगतान नहीं करता या किस्त डिफौल्ट कर देता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी आप पर होगी और आपको आगे होम लोन लेने में परेशानी आ सकती है. इस केस में आप ज्वाइंट होम लोन को सिंगल होम लोन में तब्दील करवा सकते हैं, लेकिन यह करना पूरी तरह से बैंक पर निर्भर करेगा.

टीवी से जुड़े कलाकारों के नए साल का जश्न ऐसा होगा

टीवी कलाकारों के लिए हर दिन शूटिंग करना अनिवार्य सा होता है. इसके बावजूद टीवी जगत के कई व्यस्त कलाकारों ने नए साल का जश्न मनाने के लिए अपनी अपनी योजनाएं बना रखी हैं. टीवी कलाकारों ने नए साल के स्वागत को लेकर जो योजनाएं बना रखी है, आइये जाने वह योजनाएं उन्ही की जुबानी-

मानव गोहिल :

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न्यूजीलैंड में रोड ट्रीप की योजना बनायी है. मैं उत्साहित हूं क्योंकि यह मेरी बेटी की पहली रोड ट्रीप होगी.

सचिन पारिख :

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मेरे लिए नए वर्ष का मतलब अपने परिवार के साथ समय बिताना है. मैं 2018 में अपने प्रशंसकों की सुख शांति, प्यार व समृद्धि की कामना करता हूं और चाहता हूं कि वह दूसरों तक यही संदेश पहुंचाएं.

रोहन गंडोत्रा :

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नए साल का जश्न मनाने के लिए मैं पार्टी में राब पीने नहीं जाता. इस बार नए वर्ष पर मैं कुछ रचनात्मक और प्रोडक्टिव काम करना चाहता हूं. इस बार मैंने अपने दोस्तों के साथ लवासा के नजदीक टेमगढ़ पर ट्रैकिंग करने और पहाड़ पर चढ़ाई करने की योजना बनायी है. यहां पर हम रात में बोनफायर कर नए साल का जश्न मनाएंगे.

डेलनाज ईरानी :

entertainment

अपने प्रेमी व मशहूर डी जे पर्सी के साथ पुणे में जश्न मनाउंगी. क्योंकि नए वर्ष के उपलक्ष्य में पुणे में उसका इवेंट है.

स्मृति कालराः

entertainment

मेरी योजना हमेशा विफल हो जाती है, इसलिए मैं योजना बनाकर कोई काम नहीं करती. मुझे सिर्फ इतना पता है कि 31 दिसंबर की रात मैं भोजन और मिठाई के आस पास ही रहूंगी.

सौरभ पांडे :

हाल ही में मेरी शादी हुई है. शादी के बाद यह मेरा पहला नववर्ष होगा, जिसे मैं अपने परिवार के साथ ही मनाना चाहूंगा. हमने सोचा है कि नए वर्ष का जश्न कैसे मनाया जाए, इसका निर्णय मेरे परिवार के सभी सदस्य ही करें. नए साल की सुबह हम मुंबई के इस्कौन मंदिर में भगवान का आशीवार्द लेने जरुर जाएंगे.

श्रेय पारीकः

entertainment

हम नए साल का जश्न दोस्तों के साथ मनाने वाले हैं. हम सोच रहे हैं कि किसी एक दोस्त के घर पर इकट्ठा होकर पूरी रात पार्टी की जाए. मेरे लिए 2017 काफी अच्छा बीता. हमने काफी कुछ पाया है. इसलिए पार्टी तो बनती है.

रोमित राजः

अच्छे भोजन और संगीत के साथ हमारा पारिवारिक मेल मिलाप का वक्त होगा. फिर एक जनवरी को हम सिद्धविनायक मंदिर और महालक्ष्मी मंदिर जाएंगे.

शीबाः

entertainment

हम अपनी सहेलियों के साथ गोवा जा रहे हैं. जहां हम अपने परिवार के साथ जश्न मनाएंगे.

सौरभ राज जैनः

हम तो इस बार घर के अंदर ही अपने बच्चों के साथ खुशी खुशी नए साल का स्वागत करेंगे.

गावी चेहलः

मेरे लिए हर त्योहार को मनाने का असली मजा तो परिवार के साथ समय बिताना ही है. नए साल के दिन पूरे परिवार के संग हम गुरूद्वारा जाते हैं और सुख शांति की मांग करते हैं.

 

स्नेहा वाघ :

entertainment

मुझे घर से बाहर जाना पसंद ही नही है. तो मैं घर पर ही स्वादिस्ट व्यंजन बनाकर नए साल का स्वागत करती हूं. परिवार के साथ टीवी देखती हूं.

ऋषिकेश पांडेः

हम तो 16 दिसंबर से ही अपने दोस्तों के साथ गोवा में पार्टी कर रहे हैं.

प्रियम्वदा कांतः

entertainment

नए साल का मेरे लिए कुछ ज्यादा ही महत्व होता है. क्योंकि एक जनवरी मेरा जन्म दिन है. पर इस बार मुंबई में ही मनाउंगी.

 

 

शरद मल्होत्राः

entertainment

मुंबई में ही रहूंगा. क्या करना है, कुछ सोचा नहीं. पर 2018 के लिए नए सिरे से कुछ योजना बनाने का इरादा है.

करण वाहीः

entertainment

इस बार मैं अपने माता पिता के साथ दुबई में रहूंगा.

विपुल रायः

entertainment

मुंबई में दोस्तों के साथ मनाउंगा. इस बार कई अलग अलग देशों से मेरे कई दोस्त मेरे साथ नए साल का जश्न मुंबई में मनाने के लिए आ रहे हैं.

अबीर सूफीः

entertainment

दिन में सीरियल‘मेरे साई’ की शूटिंग करुंगा, उसके बाद रात में दोस्तों के साथ जश्न मनेगा.

समीक्षा भटनागरः

घर पर दोस्तों के साथ मौज मस्ती के खेल खेलूंगी. उसके बाद मरीन ड्राइव पर रेाशनी देखने जाउंगी. नए साल का जश्न मनाने के नाम पर पार्टी में जाना, शराब पीना या दोस्तों को शराब पीते हुए देखना और फिर शराब के नशे में गिर रहे दोस्तो को संभालना मुझे पसंद नहीं.

अंकुश बालीः

घर पर ही जश्न मनेगा.

जस्मीन भसीनः

31 दिसंबर को मैं दिन में शूटिंग करने वाली हूं. शूटिंग खत्म होने के बाद दोस्तों के साथ रात्रि भोजन होगा.

खान कलाकार इस बार भारत में करेंगे नए साल का स्वागत

आमीर खान, शाहरुख खान, सलमान खान और सैफ अली खान हर वर्ष नए साल का जश्न मनाने के लिए विदेश चले जाते थे. लेकिन इस बार काफी कुछ बदला हुआ है. यह पहला मौका होगा, जब आमीर खान विदेश नहीं जाएंगे, बल्कि गोवा में नए साल का आगाज करेंगे.

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वास्तव में ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्म ‘‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’’ की शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से आमीर खान ने इस बार विदेश जाने की बनिस्बत गोवा जाकर नए साल का स्वागत करने का निर्णय लिया है.

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जबकि शाहरुख खान इस बार अपने परिवार के साथ मुंबई में अपने मन्नत बंगले में ही नए साल का जश्न मनाने वाले हैं.

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मगर सैफ अली खान अपनी पत्नी करीना कपूर खान व बेटे तैमूर अली के संग स्विटजरलैंड पहुंच चुके हैं.

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लेकिन सलमान खान कहां नए साल का जश्न मनाएंगे, यह अभी तक राज बना हुआ है.

अपनाएं ये ट्रिक, पासवर्ड जानकर भी कोई नहीं कर पाएगा आपका फोन अनलौक

आज हर किसी के पास स्मार्टफोन है. अपने फोन को दूसरों से बचाने और सुरक्षित रखने के लिऐ आजकल हर कोई पासवर्ड या फिंगरप्रिंट लौक लगाकर रखता है. लेकिन कई बार आपका पासवर्ड आपकी लापरवाही के कारण भी चोरी हो सकता है. कई बार हम अपने दोस्त या अन्य व्यक्ति के सामने अपना फोन अनलौक करते हैं तो उसे आपका पासवर्ड पता चल जाता है.

इसके बाद आपका दोस्त या दूसरा व्यक्ति आपकी निजी जानकारी को ऐक्सेस करने की कोशिश कर सकता है. इस स्थिति से बचने के लिऐ हम आपको ऐक ट्रिक बताने जा रहे हैं जिससे अगर कोई आपका पासवर्ड जान भी जाता है तो वो आपके फोन की जानकारी ऐक्सेस नहीं कर पाऐगा.

ऐप करेगी मदद

इस काम में आपकी मदद Screen Lock- Time Password ऐप कर सकती है. इसके जरिऐ अगर आपका पासवर्ड कोई देख भी लेता है तो भी आपके फोन वह अनलौक नहीं कर पाऐगा. इसका इंटरफेस काफी आसान है.

कैसे करती है काम

इसके लिऐ सबसे पहले गूगल प्ले स्टोर से आपको Screen Lock- Time Password ऐप डाउनलोड करनी होगी.

सबसे पहले आपको Change Security Setting पर क्लिक करना होगा. यहां से आप पासवर्ड का कोई भी पैटर्न चुन सकते हैं.

इसके बाद आपको Disable System Lock के तहत पासवर्ड के औप्शन दिऐ गऐ होंगे. यहां से आप पासवर्ड का फौर्मेट सेलेक्ट कर सकते हैं.

ध्यान रहे अगर आपने करंट टाइम सेलेक्ट किया है तो आपके मोबाइल का करंट टाइम ही आपका पासवर्ड होगा. जैसे जैसे टाइम चेंज होता रहेगा. वैसे वैसे पासवर्ड भी बदलता रहेगा.

इसके बाद आपको Enable recovery passcode पर क्लिक करना होगा. यहां आपको रिकवरी पासवर्ड एंटर करना है. अगर आप पासवर्ड भूल जाते हैं तो यह पासवर्ड काम आऐगा.

इसके बाद enable lock screen पर क्लिक कर दें.

ऐसा करने से आपके फोन में लौक लग जाऐगा और करंट टाइम डालकर ही उसे खोला जा सकेगा. इससे किसी को भी आपका पासवर्ड पता नहीं चलेगा.

कहीं आपका बैंक भी अनुचित शुल्क तो नहीं वसूल रहा, सतर्क रहें

आपका खाता निजी बैंक में हो या सरकारी में आपको कुछ बाते ध्यान में रखने और सतर्क रहने की जरूरत है. ज्यादातर जगहों पर आपको अपने बचत खाते में न्यूनतम बैलेंस रखना अनिवार्य होता है. यह दर आपके खातों और बैंकों के मुताबिक अलग-अलग होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ बैंक आप से खाते में न्यूनतम बैलेंस दर के नाम पर अनुचित शुल्क वसूल रहे हैं.

मौजूदा समय में भारतीय स्टेट बैंक न्यूनतम बैलेंस न रखने पर 24.96 फीसदी का जुर्माना लगाता है. कहीं आपका बैंक भी आप से अनुचित चार्ज तो नहीं वसूल रहा, इसको लेकर सतर्क रहें.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी-मुंबई) के एक प्रोफेसर ने यह दावा किया है कि देश के कुछ प्रमुख निजी और सरकारी बैंक अपने ग्राहकों से खातों में न्यूनतम बैलेंस रखने के नाम पर अनुचित शुल्क वसूल रहे हैं. कुछ बैंक औसतन 78 फीसदी का वार्षिक जुर्माना लगा रहे हैं तो वहीं कुछ बैंक अपने ग्राहकों पर 100 फीसदी से ज्यादा का सालाना जुर्माना भी लगा रहे हैं. ये बैंक ऐसा कर आरबीआई की तरफ से न्यूनतम बैलेंस के लिए तय मानकों की दज्ज‍ियां उड़ा रहे हैं.

न्यूनतम बैलेंस को लेकर आरबीआई ने साफ किया है कि न्यूनतम बैलेंस न रखने पर बैंक जो चार्ज लगा रहे हैं, वे किफायती हों. ये चार्ज सेवा मुहैया करने के लिए लगने वाली लागत से ज्यादा न हो.

इन बातों का खयाल रखें

हमेशा ये जानकारी जरूर रखें कि आपको अपने खाते में न्यूनतम बैलेंस रखना है कि नहीं. अगर नहीं, तो आप से किसी भी तरह का चार्ज इसके लिए नहीं वसूला जा सकता और अगर ऐसा है तो तुरन्त इसकी शिकायत करें.

अगर न्यूनतम बैलेंस की शर्त आप पर लागू होती है, तो कोशिश करें कि आप इस शर्त को हमेशा पूरा करें, ताकि किसी भी तरह आपको ज्यादा चार्ज न देना पड़े.

न्यूनतम बैलेंस पर लगने वाले चार्ज को लेकर आप अपने बैंक से जानकारी हासिल करें, क्योंकि ऐसे मामलों में जानकारी रखना ही आपको नुकसान सहने से बचा सकता है.

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