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जुड़वा 2 : वरुण धवन के लिए देखी जा सकती है ये फिल्म

कई फिल्मकार व कलाकार सिक्वअल और रीमेक फिल्मों के खिलाफ हैं. फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ के बाद अब एक बार फिर यह बहस जोर पकड़ सकती है कि किसी भी सफल फिल्म का रीमेक नहीं बनना चाहिए. डेविड धवन 1997 की सफल फिल्म ‘जुड़वा’ का रीमेक ‘जुड़वा 2’ लेकर आए हैं. शायद फिल्म के निर्देशक डेविड धवन दर्शकों को बिना दिमाग वाला मानते हैं अथवा वह दर्शकों को संदेश देना चाहते हैं कि वह हास्य फिल्म देखने के लिए अपना दिमाग घर पर रखकर आएं. फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ को लोग महज वरुण धवन की वजह से ही देखना चाहेंगे. कम से कम ‘आंखें’’ या ‘राजा बाबू’ जैसी फिल्मों के फिल्मकार डेविड धवन से इस तरह की फिल्म की उम्मीद तो नहीं की जा सकती.

विदेश से मुंबई आ रहे तस्कर चार्ल्स (जाकिर) हवाई जहाज में बैठे बैठे मुंबई के व्यवसायी मल्होत्रा (सचिन खेड़ेकर) के साथ दोस्ती कर लेता है और अपने पास छिपाए हुए हीरे बड़ी चालाकी से मल्होत्रा की बैग में डाल देता है. एअरपोर्ट पर बाहर निकलते समय कस्टम आफिसर चार्ल्स को पूछताछ के लिए रोकते हैं, जबकि मल्होत्रा आराम से बाहर आ जाते हैं. मल्होत्रा सीधे अस्पताल पहुंचते है, जहां उनकी पत्नी अंकिता ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया है. डाक्टर बताता है कि एक कमजोर तो दूसरा ताकतवर है. जब यह दोनों नजदीक होंगे, तो दोनों एक ही तरह से प्रतिक्रिया देंगे. तभी अपना तस्करी का सामान लेने के लिए चार्ल्स अस्पताल पहुंचता है, पर तब तक मल्होत्रा ने कस्टम आफिसर और पुलिस को बुला रखा था.

खुद को बचाने के लिए चार्ल्स, मल्होत्रा के एक नवजात बच्चे को लेकर भागता है. उससे वह बच्चा रेलवे ट्रैक पर गिर जाता है. इस बच्चे को काशीबाई नामक महिला पाती है और वही उसे राजा (वरुण धवन) नाम देकर पालती है. इधर चार्ल्स को 22 साल की जेल हो जाती है. चार्ल्स की धमकी के चलते मल्होत्रा पूरे परिवार के साथ लंदन चले जाते हैं और अपने बचे हुए बेटे को प्रेम (वरुण धवन) नाम देते हैं.

यानी कि मुंबई में पल रहे राजा और लंदन में पल रहे प्रेम जुड़वा भाई हैं. कुछ समय बाद चार्ल्स के बेटे एलक्स से झगड़ा होने पर राजा भी अपने दोस्त नंदू (राजपाल यादव) के साथ जाली पासपोर्ट की मदद से लंदन पहुंच जाता है, जहां पुलिस अफसर संधू (पवन मल्होत्रा) उसकी खोज में है. यहां पर राजा को पिज्जा डिलीवरी करने का काम मिल जाता है. लंदन में राजा की जिंदगी में अलिस्का शेख (जैकलीन फर्नांडिस) आ जाती है. जबकि अलिस्का के पिता (अनुपम खेर) अपनी बेटी की शादी विक्रम मल्होत्रा के बेटे प्रेम से करना चाहते हैं.

उधर प्रेम को अपने साथ कालेज में पढ़ने वाली लड़की समारा (तापसी पन्नू) से प्यार हो गया है. पर अलिस्का से कभी प्रेम तो कभी राजा और समारा से कभी राजा और प्रेम मिलते हैं. परिणामतः गलतफहमी पैदा होती रहती है. इधर राजा जब किसी को पीटता है, तो डरपोक प्रेम भी किसी को पीट देता है. कई तरह की गलत फहमियों के बीच एक दिन राजा और प्रेम आमने सामने आ जाते हैं. फिर दोनों मिलकर अलिस्का और समारा की गलतफहमी को दूर करते हैं. चार्ल्स जेल से छूटकर लंदन पहुंचता है और विक्रम मल्होत्रा को धमकी देता है.

एक दिन चार्ल्स, विक्रम मल्होत्रा को मारने का प्रयास करता है, पर मल्होत्रा को बचाकर राजा अस्पताल पहुंचा देता है. वहीं पता चलता है कि एलेक्स भी उसी अस्पताल में है. कुछ दिन में एलेक्स को होश आता है. एलेक्स, राजा को पीटते हुए अपने पिता चार्ल्स के पास लेकर पहुंचता है. जहां चार्ल्स उससे कहता है कि वह मल्होत्रा को लेकर आए और अपने दोस्त नंदू को ले जाए. राजा, मल्होत्रा के घर पहुंचता है, जहां प्रेम मिलता है. फिर यह राज खुलता है कि राजा और प्रेम जुड़वा हैं. उसके बाद मारधाड़ होती है. चार्ल्स व एलेक्स मारे जाते हैं. राजा और प्रेम को उनकी प्रेमिकाएं मिल जाती हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो वरुण धवन एक बार फिर खुद को बेहतरीन अभिनेता साबित करने में सफल हुए हैं. वरुण धवन के प्रशंसक निराश नहीं होंगे. वरुण ने 1997 की फिल्म ‘जुड़वा’ में सलमान खान के अभिनय के साथ कदम ताल मिलाकर उन्हे ट्रिब्यूट देने का सफल प्रयास किया है. फिल्म पूरी तरह से वरुण धवन की फिल्म है. जैकलीन फर्नांडिस ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर इस फिल्म में तापसी पन्नू निराश करती हैं. उन्हे हास्य भूमिकाओं में खुद को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

फिल्म की शुरुआत ठीक ठाक है. लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म बिखर जाती हैं. फिल्म में विलेन का होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता. हास्य के नाम पर फूहड़ता परोसी गयी है. घटिया व घिसे पिटे जोक्स का सहारा लेकर लोगों को हंसाने का असफल प्रयास है. फिल्म में इमोशन का घोर अभाव है. महज हास्य पैदा करने के लिए अफ्रीकन के कुछ सीन भी रखे गए हैं, जो कि पैबंद लगाते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया है. फिल्म के अंत में जुड़वा सलमान खान के आने से फिल्म के स्तर में बढ़ोतरी होने की बजाय पतन ही होता है. इसके लिए लेखक व निर्देशक पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.

फिल्म का गीत संगीत साधारण है. ‘ऊंची है बिल्डिंग’ और ‘तन तना तन’ गाने जरुर आकर्षित करते हैं. दो घंटे 40 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘जुड़वा 2’’ का निर्माण नाड़ियादवाला ग्रैंड संस इंटरटनमेंट के बैनर तले साजिद नाड़ियादवाला ने किया है. फिल्म के निर्देशक डेविड धवन, पटकथा लेखक युनुस सजावल, संवाद लेखक साजिद फरहाद, कैमरामैन अयंका बोस, संगीतकार अनू मलिक तथा कलाकार हैं-वरुण धवन, जैकलीन फर्नाडिस, तापसी पन्नू, सचिन खेड़ेकर, पवन मल्होत्रा, अनुपम खेर, उपासना सिंह, अली असगर, विवान भटेना, विकास वर्मा व अन्य.

इस फोन और ऐप का करेंगे इस्तेमाल तो आसपास नहीं भटकेंगे मच्छर

अगर आपको मच्छर अगरबत्ती के धुएं से एलर्जी है या लिक्विड की गंध से दिक्क्त है तो मच्छरों को भगाने का जिम्मा अपने स्मार्टफोन पर छोड़ दें. आज की दुनिया में तकनीक इतना तरक्की कर चुका है कि महज एक स्मार्टफोन या ऐप से आप मच्छर को भगा सकते हैं. आपको केवल एक स्मार्टफोन खरीदना होगा या फिर अपने गूगल प्ले स्टोर पर जाकर अपनी पसंद का एक एंटी मौस्किटो रीपलेंट एप डाउन लोड कर सोते समय इसे औन करना होगा.

एंड्रायड फोन के लिए ऐसे कई ऐप्स उपलब्ध हैं जो मच्छरों को पास भटकने नहीं देते. बहुत कम स्पेस घेरने वाले ये ऐप्लीकेशन औफलाइन काम करते हैं. एक बार औन करने पर इनसे निकलने वालीं ध्वनि तरंगें मच्छरों और मक्खियों को भागने पर मजबूर कर देती हैं. सबसे खास बात ये है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और न ही कोई खर्चा.

सिर्फ ऐप ही नहीं LG ने एक नया स्मार्टफोन K7i पेश कर दिया है जो मच्छरों को आपके आसपास फटकने नहीं देता. एलजी इलेक्ट्रोनिक्स इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि इस फोन में मच्छर भगाने वाली टेक्नोलाजी है जो कि हमारे कुछ टीवी और एसी में पहले से ही आ रही है. कंपनी इस फोन के प्रति ग्राहकों के रुख के मुताबिक अपने बाकी स्मार्टफोन्स में इसे शामिल करने के बारे में फैसला करेगी.

उन्होंने कहा कि इस टेक्नोलाजी में अल्ट्रासोनिक फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल होता है जो कि इंसानो के लिए सुरक्षित है लेकिन मच्छरों को दूर भगाती है. उन्होंने दावा किया कि इसका दायरा लगभग एक मीटर का है और इसमें कोई हानिकारक एमीशन नहीं होता.

कंपनी के इस k7i स्मार्टफोन की कीमत 7,990 रुपये है. इसमें 2GB रैम, 16GB इंटरनल स्टोरेज दिया गया है. इसमें 8 मेगापिक्सल रियर कैमरा और 5 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा मौजूद है. साथ ही पावर के लिए इसमें 2500mAh की बैटरी दी गई है.

यह फोन क्वाड कोर प्रोसेसर पर काम करता है.  इससे पहले LG ने स्मार्टफोन LG V30 लान्च किया है. इसे बर्लिन में चल रहे IFA 2017 इवेंट में लान्च किया गया है. LG V30 में 6 इंच की डिस्प्ले दी गई है. इसके अलावा इस स्मार्टफोन में कंपनी ने Bang & Olufsen  आडियो फीचर दिया है.

अब इस भारतीय क्रिकेटर के नाम पर अमेरिका में खोला गया स्टेडियम

क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ टेस्ट बल्लेबाजों में शुमार किए जाने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान और सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर की उपलब्धियों में एक और अध्याय जुड़ गया है. अमेरिका के केंटकी में बन एक क्रिकेट स्टेडियम का नाम इस महान भारतीय बल्लेबाज के नाम पर “सुनील गावस्कर फील्ड” रखा गया है.

लुईसविले में स्थित इस स्टेडियम से पहले मुंबई के  वानखड़े स्टेडियम में “लिटिल मास्टर” के नाम से मशहूर गावस्कर के नाम पर दर्श दीर्घा का नाम रखा गया था. एक रिपोर्ट के अनुसार गावस्कर ऐसे तीसरे क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिसके नाम पर पूरे स्टेडियम का नाम रखा गया है. रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले एंटीगुआ में सर विवियन रिचर्ड्स के नाम पर और सेंट लूसिया में डैरेन सैमी के नाम पर नेशन क्रिकेटर स्टेडियम का नाम रखा गया था. हालांकि रिचर्ड्स और सैमी के नाम पर उनके अपने देश में स्टेडियम बने जबकि गावस्कर के नाम पर विदेश में.

गावस्कर ने इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए रिपोर्ट में कहा, “ये बहुत ही सम्मान की बात है और खासकर ऐसे देश में जहां क्रिकेट प्रमुख खेल नहीं.” भारत में क्रिकेट स्टेडियम के नाम नेताओं के नाम पर रखने के सवाल पर गावस्कर ने कहा कि खिलाड़ियों के अलावा भी खेलों के विकास और बेहतरी के लिए बहुत से लोग काम करते हैं और उनके नाम पर स्टेडियम के नाम रखे जा सकते हैं. हालांकि गावस्कर ने ये भी कहा कि आदर्श तौर पर खेल के मैदानों के नाम उन्हीं लोगों के नाम पर रखे जाने चाहिए जिन्होंने उसमें योगदान दिया है.

गावस्कर ने अपने क्रिकेट करियर में 125 टेस्ट मैचों की 214 पारियों में 34 शतक और 45 अर्ध-शतकों की मदद से कुल 10122 रन बनाए. उनका औसत 51.12 रहा. उनका अधिकतम स्कोर नाबाद 236 रन रहा. गावस्कर ने टेस्ट की तुलना में वनडे मैच कम खेले. उन्होंने कुल 108 वनडे मैच खेले जिनकी 102 पारियों में 3092 रन बनाए. वनडे में उनका बल्लेबाजी औसत 35.12 रहा. वनडे में उनका अधिकतम स्कोर नाबाद 103 रहा. वनडे मैचों में गावस्कर ने एक शतक और 27 अर्ध-शतक बनाए.

अंधश्रद्धा की ओर तेजी से दौड़ रहा देश, ये है धर्म के पाखंडियों का नया शगूफा

रात को सोती महिलाओं की चोटियां किसी परलौकिकता के कारण काट लेने पर कुछ लिखना व कहना बेकार है. 21वीं सदी में भी यह देश उलटा जा रहा है और तर्क, वैज्ञानिकता, स्वाभाविकता, संभव के सत्य को गहरे गड्ढे में फेंक कर छद्म इतिहास, चमत्कारों, अंधविश्वासों, पूजापाठों, हवनों, दानपुण्य में भारी विश्वास कर रहा है.

आदिम युग में भी आदमी तर्क और उपलब्ध जानकारी के अनुसार जीवित रहा है और उसी आधार पर उस ने अपने खाने का जुगाड़ किया, जानवरों से सुरक्षा की और प्रकृति का मुकाबला किया. आज समझदारी को छोड़ कर पूरा देश, राष्ट्रपति से ले कर अनपढ़, दलित तक एक लहर में डूब रहा है जिस में विज्ञान और तर्क की गुंजाइश ही नहीं.

चोटी काटने का मामला गणेश को दूध पिलाने की तरह है, जिस के पागलपन में हजारोंलाखों लोगों को बहकाया जा सकता है. खिलंदरी को दुष्ट आत्मा का नाम दे कर धर्म के दुकानदारों ने हवन, पूजापाठ, मंत्रजंतर का उपाय बताया और अपना उल्लू सीधा कर लिया. हैरानी की बात तो यह है कि देश की उच्चशिक्षित जनता भी इस का शिकार है.

जहां चंद्रयान भेजने वाला इसरो का मुख्य अधिकारी तिरुपति का आशीर्वाद मांगने जाए, जहां गणेश के सिर की तुलना आधुनिक सर्जरी कला से की जाए, जहां लंबे पुलों का निर्माण वास्तु के आधार पर और

2 करोड़ रुपए की गाड़ी की सुरक्षा के लिए लालकाले कपड़े टंगे हों, वहां चोटी काटने की घटनाओं पर क्या आश्चर्य किया जा सकता है.

यह देश अंधश्रद्धा की ओर तेजी से दौड़ रहा है. इस बार कांवडि़यों को आदेश दिया गया कि वे भगवे तिकोने झंडे न फहराएं, तिरंगा राष्ट्रीयध्वज फहराएं यानी यह घोषित कर दिया गया है कि भारत इसलामिक स्टेट के काले झंडे वाला नहीं, तिरंगे झंडे वाला भगवा देश है. इस देश में कोई भी अगर भगवा से भिन्न विचार रखता है, तो वह देशद्रोही है.

ऐसे वातावरण में चोटी काटने पर उन्माद फैलाने का काम बहुत कारगर होता है. इस के नाम पर हवनकर्ताओं की बन आती है और इस में मंदिरों के दुकानदार ही सब से आगे होते हैं. ये पाखंड और अंधविश्वास ही राजनीति को आज विटामिन दे रहे हैं. गौरक्षा का एक रूप ही चोटी काटना है, जिस के चलते किसी निरीह महिला के नाम पर गलीगली, गांवगांव में आतंक का वातावरण फैलाया जा रहा है. यह जनता के प्रति द्रोेह है जबकि इसे राष्ट्रभक्ति, देशभक्ति, धर्मभक्ति के सुनहरे वरकों में लपेट कर प्रस्तुत किया जा रहा है. नतीजा अंधविश्वास और पक्की सरकार दोनों हैं.

आपकी जेब पर होगा इन 5 बड़े बदलावों का असर

एक अक्टूबर से देश में कई बड़े बदलाव होने वाले हैं. ये सारे बदलाव हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़े हुए हैं. इन बदलाव की जानकारी रखकर आप न सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाएंगे, बल्कि आपको भी इसका फायदा होगा.

अगले महीने से एसबीआई के सेविंग बैंक अकाउंट पर नया नियम लागू हो जाएगा. साथ ही, कोई भी दुकानदार पुराने एमआरपी पर सामान नहीं बेच पाएंगे. इसके अलावा अक्टूबर में आपको सस्ते काल रेट्स की सौगात भी मिल सकती है. जानिए ऐसे 5 नियम, जो 1 अक्टूबर से बदल जाएंगे.

पुराने एमआरपी पर नहीं बिकेगा सामान

कोई भी दुकानदार 1 अक्टूबर से पुराने एमआरपी पर सामान नहीं बेच सकेगा. 1 तारीख से सभी को नई एमआरपी के साथ सामान बेचना होगा. ऐसा न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

दरअसल सरकार ने पुराने एमआरपी पर सामान बेचने की आखिरी तारीख 30 सितंबर तय की थी. अब सरकार ने साफ कर दिया है कि इसके बाद नए एमआरपी पर सामान बेचना होगा और ऐसा न करने वालों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा.

एसबीआई का नया नियम होगा लागू

देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक ने हाल में सेविंग अकाउंट पर न्यूनतम चार्ज घटाने का ऐलान किया था. बैंक ने अब मिनिमम बैंलेंस लिमिट 5000 से 3000 रुपये कर दी है. यह नियम 1 अक्टूबर से लागू हो जाएगा.

इन बैंकों के चेक नहीं होंगे वैध्य

एसबीआई के सहयोगी बैंकों का एसबीआई के साथ मर्जर हुआ है. 1 अक्टूबर से उन बैंको के चेक नहीं चलेंगे. इन सहयोगी बैंकों के ग्राहकों को एसबीआई के नए चेक लेने होंगे. अगर आपने ऐसा अभी तक नहीं किया है तो 1 अक्टूबर से पहले-पहले इस काम को जरूर निपटा लें.

काल रेट हो सकते हैं कम

1 अक्टूबर से आपको सस्ते काल रेट्स की सौगात भी मिल सकती है. टेलिकाम रेग्युलेटर ट्राई ने 1 अक्टूबर से इंटरकनेक्शन चार्जेस (आईयूसी) घटाने की घोषणा की है. 1 अक्टूबर से इस फैसले के लागू होने पर टेलिकाम कंपिनयां आपको सस्ते काल का तोहफा दे सकती है. दरअसल यह वह चार्ज होता है, जो एक टेलिकाम कंपनी उस कंपनी को पे करती है, जिसके नेटवर्क पर काल खत्म होती है.

खाता बंद करने के लिए चार्ज नहीं

अगर एसबीआई में आपका खाता है और आप इसे बंद करवाना चाहते हैं, तो 1 अक्टूबर से इसके लिए आप से कोई चार्ज नहीं वसूला जाएगा. हालांकि यह सुविधा खाता खोलने के 14 दिन तक और 1 साल बाद खाता बंद करने पर मिलेगी. 14 दिन के बाद और 1 साल से पहले बंद करने पर 500 रुपये प्लस जीएसटी लगेगा.

इस तरह से धरा गया चैक क्लोनिंग का मास्टरमाइंड

साइप्रस में वह नूरुद्दीन के नाम से जाना जाता था, तो जौर्डन में चार्ल्स ब्रोकलिन. माल्टा में उस की पहचान बिट्टू के रूप में थी, तो दुबई में रेहान खान. तुर्की में वह सफी अहमद के नाम से जाना जाता था. वह इन देशों में बेरोकटोक आताजाता था.

लेकिन उस शख्स का असली नाम प्रसन्नजीत था और वह चैक क्लोनिंग का माहिर खिलाड़ी था. चैक क्लोनिंग कर के उस ने कई कंपनियों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया और उस पैसों से वह विदेशों में ऐशमौज करता रहता था.

प्रसन्नजीत की धोखाधड़ी का खुलासा 4 जून, 2017 को तब हुआ, जब पटना के कदमकुआं थाना क्षेत्र के कारोबारी अजीत कुमार जगनानी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उन के खाते से एक लाख, 95 हजार रुपए फर्जी तरीके से निकाल लिए गए हैं. पुलिस ने जब मामले की जांच शुरू की, तो एक के बाद एक खुलासे होने लगे.

अजीत कुमार जगनानी के खाते से निकाली गई रकम चार्ल्स ब्रोकलिन के यूनियन बैंक के खाते में जमा हुई थी. उस के बाद उस रकम को नैटबैंकिंग के जरीए लोहानीपुर की रहने वाली नरगिस के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया था.

पुलिस ने नरगिस को दबोचा, तो उस की निशानदेही पर पहले कदमकुआं इलाके से पिंटू को गिरफ्तार किया गया. उस के बाद पिंटू और नरगिस ने प्रसन्नजीत के नाम का खुलासा कर उसे भी पुलिस के जाल में फंसा दिया.

चैक की क्लोनिंग कर बैंकों से करोड़ों रुपए निकालने वाले प्रसन्नजीत को 5 जुलाई, 2017 को गर्दनीबाग थाना पुलिस ने रात को सरिस्ताबाद इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरोह के 3 लोगों को भी धरदबोचा गया.

उन के पास से 4 सौ एटीएम कार्ड, 150 सिम कार्ड, अलगअलग बैंकों की 150 मुहरें बरामद की गईं.

इस के अलावा 6 देशों की करंसी, पासपोर्ट और दर्जनों बैंकों की चैकबुक और पासबुक जब्त की गईं. प्रसन्नजीत के खिलाफ पटना के कई थानों में पहले से ही कई केस दर्ज हैं.

पुलिस ने प्रसन्नजीत के मोबाइल फोन को खंगाला, तो किसी इरफान का नंबर मिला. प्रसन्नजीत उस के साथ चैटिंग भी किया करता था. इरफान साइप्रस का रहने वाला है और प्रसन्नजीत ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि इरफान पिछले कुछ दिनों से भारत में ही है.

इरफान को ही इस कारिस्तानी का मास्टरमाइंड माना जा रहा है. पटना में प्रसन्नजीत ने अपने असली नाम के अलावा नूरुद्दीन, चार्ल्स ब्रोकलिन, बिट्टू, रेहान खान और सफी अहमद के नाम से कई सरकारी बैंकों के अलावा प्राइवेट बैंकों में खाते खुलवा रखे हैं. उन्हीं खातों के जरीए वह चैक क्लोनिंग का खेल खेलता रहा.पटना के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि प्रसन्नजीत से पूछताछ के बाद कई बैंकों के मुलाजिमों के भी इस जालसाजी में फंसने के पूरे आसार हैं.

चैक क्लोनिंग के जरीए करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले प्रसन्नजीत के पास से जब्त लैपटौप को पुलिस ने एफएसएल की जांच के लिए भेजा है.

पटना से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर मसौढ़ी ब्लौक के रहने वाले प्रसन्नजीत ने पुलिस को भरमाने के लिए पहले बताया था कि वह केवल मुहरा है, असली सरगना कंकड़बाग का रहने वाला शाह नाम का आदमी है.

पुलिस प्रसन्नजीत के बताए पते पर गई, तो पता चला कि वहां शाह नाम का कोई आदमी नहीं रहता है. पुलिस अब उसे ही मास्टरमाइंड मान कर छानबीन कर रही है.

शुरुआती जांच में ही पता चला है कि प्रसन्नजीत ने तकरीबन 2 सौ लोगों के नाम से बैंक खाते खुलवा रखे हैं. चैक से उड़ाई गई रकम को इन्हीं खातों में डाला जाता रहा है. अकाउंट में रुपए ट्रांसफर होने के बाद एटीएम कार्ड के जरीए उन्हें निकाल लिया जाता था.

प्रसन्नजीत ने बताया कि 3 साल पहले उसे एक चिट्ठी मिली थी. उस चिट्ठी में लिखा था कि धर्म प्रवचन और धर्म की बातों को कहने के लिए उसे साइप्रस से बुलावा आया है.

चिट्ठी पढ़ने के बाद वह साइप्रस जाने के लिए तैयार हो गया. उसे गिरजाघर जाना था, इसलिए उस ने अपना नाम चार्ल्स ब्रोकलिन रख लिया. उस नाम से उस ने फर्जी आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस और पहचानपत्र भी बनवा लिया. गिरजाघर जा कर उस ने प्रवचन देना चालू कर दिया. इतना ही नहीं, मोहम्मद नूरुद्दीन के नाम से वह साइप्रस की एक मसजिद में भी जाने लगा था.

प्रसन्नजीत के घर वाले उसे ‘गुड्डू’ कह कर बुलाते हैं. उस ने साल 2010 और साल 2013 में पासपोर्ट बनवाया और दोनों में उस का नाम प्रसन्नजीत दर्ज है. वह पटना के साइंस कालेज में पढ़ता था. कालेज में पढ़ने वाली एक लड़की रानी से उसे इश्क हुआ. कुछ दिन बाद उस ने प्रेमिका रानी को बताया कि उस ने अपना धर्म बदल लिया है और अपना नाम रेहान खान रख लिया है.

प्रेमिका को यकीन दिलाने के लिए प्रसन्नजीत ने रेहान खान के नाम का आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस और पहचानपत्र भी बनवा लिया था.

प्रेमिका से वह कहता था कि वह बहुत बड़ा आदमी बन गया है. काम के सिलसिले में वह कई देशों का दौरा कर चुका है.

पुलिस की जांच में पाया गया कि प्रसन्नजीत ने 2 पासपोर्ट बना रखे थे. एक पासपोर्ट उस ने साल 2007 में बनवाया था और दूसरा साल 2010 में. पुलिस ने जब इस बारे में पूछताछ की, तो उस ने बताया कि उस का पासपोर्ट खो गया था, इसलिए दूसरा पासपोर्ट बनवाना पड़ा.

पुलिस ने उस की इस दलील को खारिज कर दिया कि अगर गुम होने के बाद पासपोर्ट बनाया है, तो दोनों पासपोर्ट के नंबर अलगअलग कैसे हो गए? पुलिस ने क्षेत्रीय पासपोर्ट दफ्तर से इस बारे में पता किया, तो प्रसन्नजीत पूरी तरह झूठा साबित हुआ.

ठगी का खेल शुरू करने से पहले प्रसन्नजीत एक प्राइवेट बैंक में नौकरी भी कर चुका था. इस वजह से उसे बैंक की सारी तकनीकों और नियमों के बारे में पता है.

पुलिस ने बताया कि उस के टारगेट पर कंपनी का अकाउंटैंट होता था. बैंक मुलाजिम की मिलीभगत से किसी भी बड़ी कंपनी के खाते का चैक वह आसानी से कैश करवा लेता था.

वह अपने घर से सारी करतूतों को अंजाम देता रहता था. वह चैक की क्लोनिंग करता और बैंक के मुलाजिम को मिला कर उसे भुना लेता.

प्रसन्नजीत के पास तकरीबन हर बैंक की पासबुक और चैकबुक थी. उस के गिरोह में 25 लोग शामिल थे. उस ने सभी लोगों के 8-10 बैंक खाते खुलवा रखे थे. किसी कंपनी को चूना लगाने के बाद वह रुपयों को फर्जी खातों में ही डालता था. इस के लिए वह बैंक मुलाजिम को मोटी रकम देता था.crime story in hindi

बैंक मुलाजिम का यह भी काम होता था कि अगर किसी कंपनी का मुलाजिम पैसे गायब होने की शिकायत करे, तो उसे कैसे चलता करना है. फर्जी दस्तखत और चैक दिखा कर कंपनी के मुलाजिमों को भगा दिया जाता था.

पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा ने बताया कि चैक क्लोनिंग कर बैंकों से रुपए निकालने वाले गिरोह को पकड़ लिया गया है. गिरोह का साथ देने वाले कई बैंकों के मुलाजिमों की पहचान की जा रही है.

प्रसन्नजीत ने जब बैंकों के चैक क्लोनिंग के तरीके के बारे में बताया, तो पुलिस की आंखें भी फटी रह गईं. जब किसी कंपनी का स्टाफ अपनी कंपनी की चैकबुक ले कर बैंक के काउंटर पर पहुंचता, तो काउंटर पर बैठा बैंक मुलाजिम उस चैक का फोटो ले कर गिरोह के सरगना प्रसन्नजीत को दे देता था.

चैक पर किए गए दस्तखत को देख कर प्रसन्नजीत उस की नकल करता था. कई दफा प्रैक्टिस करने के बाद वह दस्तखत की हूबहू नकल कर लेता था. उस के बाद पहले से अपने पास रखी गई अलगअलग बैंकों की चैकबुक का सीरियल नंबर फोटो वाले चैक नंबर एकदो डिजिट आगे की डालता.

चैक पर कंपनी के मुलाजिम का दस्तखत कर लेता और चैक नंबर बदल कर अपने फर्जी नाम वाले खाते में डाल देता था. चैक क्लियर होने के बाद वह एटीएम कार्ड से पैसे निकाल लेता था.

पुलिस की जांच में यह भी पता चला है कि प्रसन्नजीत के हर फर्जी खाते से लाखों रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ है. उस की प्रेमिका रानी और उस के दोस्तों के खातों को भी खंगाला जा रहा है.

अपनी प्रेमिका का बैंक खाता प्रसन्नजीत ही चलाया करता था. वह साल 2011 में 2 बार और साल 2013 में एक बार साइप्रस घूम चुका है.

आईबी ने प्रसन्नजीत से पूछताछ के बाद यह शक जताया है कि प्रसन्नजीत का आईएसआई से कनैक्शन भी हो सकता है.

शातिर प्रसन्नजीत गिरोह के 2 सौ बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया है. उस के और उस के साथियों के पटना समेत दिल्ली, ओडिशा, हैदराबाद, मैसूर, मुंबई, कोलकाता समेत कई शहरों में बैंक अकाउंट हैं.

पुलिस यह जानकारी जुटा रही है कि किसकिस खाते में कबकब कितनी रकम किस खाते से ट्रांसफर की गई और उसे कब निकाला गया.

प्रसन्नजीत के सरिस्ताबाद के घर से सैकड़ों सीडियां भी मिली हैं, जिन में से ज्यादातर ब्लू फिल्मों की हैं.

पटना के सुलतानगंज इलाके की रहने वाली प्रसन्नजीत की प्रेमिका शैली उर्फ शफकत फाखरा ने पूछताछ के दौरान पुलिस को ऐसी बातें बताई हैं, जिस से पुलिस के कान खड़े हो गए हैं. आईबी के बाद एटीएस और एनआईए भी उस से पूछताछ कर सकती है. खातों से धोखाधड़ी पर 10 दिनों में रकम वापस भारतीय रिजर्व बैंक ने ग्राहकों को यकीन दिलाया है कि अगर वे औनलाइन बैंकिंग की धोखाधड़ी के शिकार होने के 3 दिनों के अंदर शिकायत दर्ज कराते हैं, तो उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक ने 6 जुलाई, 2017 को साफ किया कि समय सीमा के अंदर शिकायत करने पर 10 दिनों के भीतर रकम वापस कर दी जाएगी. गैरकानूनी लेनदेन में अगर सूचना देने के 4 से 7 दिन की देरी होती है, तो ग्राहकों को 25 हजार रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ेगा.

साथ ही, यह भी कहा गया है कि ग्राहक गोपनीय बैंकिंग जानकारी किसी से साझा करता है यानी खाताधारक की गलती से नुकसान हुआ हो और वह बैंक को सूचना भी नहीं देता है, तो उसे पूरा नुकसान उठाना पड़ेगा.

डेबिटक्रेडिट कार्ड के गैरकानूनी लेनदेन की बढ़ती शिकायतों के बाद आरबीआई ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.

गंवाने का का चसका लगने से पहले आप भी हो जाएं सावधान

रिंकू ने कौंट्रैक्ट पर एक नई नौकरी हासिल की थी. 6 महीने में 10 लाख रुपए की आमदनी होनी थी. एक महीना बीततेबीतते रिंकू के बीवीबच्चों ने नई कार की फरमाइश कर डाली. 10 लाख रुपए आने के पहले ही रिंकू ने नौकरी के 2 महीने पूरे होतेहोते 8 लाख रुपए की नई कार ले ली. भले ही कार को फाइनैंस कराना पड़ा.

आज की नई पीढ़ी खर्च करने में माहिर है. आयुष के पुलिस अफसर होने का उस के बच्चों पर यह असर पड़ा कि बेटी कृति ने सिंगापुर जाने का और बेटे ने आस्ट्रेलिया जाने का मन बना लिया.

अब पुलिस अफसर होने के बावजूद आयुष के सामने हमेशा लाखों रुपए कमाने का टारगेट होता है. बच्चों को विदेश भेजना था, तो पुश्तैनी जमीन भी बेच दी. क्या करें, आज की पीढ़ी के पास खर्च करने की लंबीचौड़ी लिस्ट जो होती है.

बच्चा बाद में पैदा होता है, उस के कैरियर की प्लानिंग आज के मांबाप पहले ही कर लेते हैं, इसलिए वे उस की परवरिश अपनी जमापूंजी से भी ज्यादा की हैसियत से करते हैं.

पहले के जमाने में भले ही यह फार्मूला अपनाया जाता था कि आमदनी एक रुपया हो, तो अठन्नी ही खर्चना और अठन्नी बचा लेना. पर आज यह सोच जैसे खत्म हो चुकी है. यही वजह है कि बच्चों के खर्चों को दरकिनार करने की हिम्मत आज के मांबाप में नहीं है. हर कोई अपनी औकात से ज्यादा बच्चों पर खर्च कर रहा है.

आज से कुछ साल पहले तक एक केक ला कर और रिकौर्ड प्लेयर पर गाना बजा कर बच्चे का जन्मदिन मना लिया जाता था, पर आज की पीढ़ी के पास होटल बुक करने और पार्टी करने का चसका है. डांस फ्लोर पर थिरके बगैर पार्टी पूरी नहीं होती है. नए कपड़े लिए जाते हैं. मतलब, सबकुछ स्पैशल होता है.

आज ‘सादा जीवन उच्च विचार’ निहायत ही बोरिंग किस्म का विचार है. लोगों में अपनी साख बनाने के लिए ब्रांडैड चीजों का इस्तेमाल जरूरी है. सोडा हब और बीयर पार्टी आम बात है. ‘टी पार्टी’ को तो लोग पुराना फैशन मानते हैं.

नौकरी लगते ही नीलेश ने पहले नई कार का और्डर किया. आखिर फ्लैट से भी पहले कार जरूरी है. जिस के पास कार होगी, उस की ही तो चलेगी.

लोग दूसरे की शानोशौकत से प्रभावित होते हैं. उस के पास अपनी काम की जानकारी कितनी है, इस की किसी को परवाह नहीं है. बैंक बैलैंस हो और आलीशान कोठी हो, तो आप को बोलने की जरूरत नहीं. जिस की खर्च करने की औकात जितनी ज्यादा होगी, वह उतना बड़ा हिट होगा.

किस ने अपने जन्मदिन पर कितनी बड़ी पार्टी दी, इस से उस के रसूख का अंदाजा लगाते हैं लोग. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि आप बैंक में कितना पैसा जमा करते जा रहे हैं. मगर आप की पार्टी करने में दिलचस्पी नहीं है, तो लोगों की आप में दिलचस्पी खत्म होते देर नहीं लगेगी.

एक बेटे ने अपनी नाकामी का ठीकरा मांबाप के सिर पर यह कह कर फोड़ा, ‘‘आप ने तो मुझे कभी ‘पौकेटमनी’ दी नहीं. मैं पैसे खर्च नहीं कर सका, तो मेरे दोस्त नहीं बने. मैं हमेशा अकेला रहा, इसीलिए आज नाकाम हूं.’’

उसी लड़के ने अपनी मां को यह कह कर लताड़ा, ‘‘तुम ने मुझे कभी किसी लड़के के साथ जाने नहीं दिया, दोस्ती करने नहीं दी, पैसे नहीं देती थीं. यहां तक कि मुझे गालियां तक नहीं देने दीं, इसीलिए मैं इंजीनियरिंग नहीं कर सका.’’

आजकल कोई आदर्श नहीं बनना चाहता. सब चाहते हैं कि मांबाप का पैसा खर्च कर अपना स्टैंडर्ड बनाएं. इमेज प्लेबौय की हो. लड़कियों को गिफ्ट दे सकें. दोस्तों को पार्टी दे सकें वगैरह.

होटल, मल्टीप्लैक्स वगैरह के इस जमाने में आप अपने बच्चों को पुराने ढर्रे से आगे नहीं बढ़ा सकते. उन्हें आज की लाइफ स्टाइल से ही कामयाबी मिलती है, इसलिए उन्हें ‘कड़का’ नहीं, बल्कि खर्चे का ‘तड़का’ चाहिए.

इस में बुरा क्या है : एक जवान लड़की का खूबसूरत होना क्या गुनाह है

एक जवान लड़की का खूबसूरत होना उस के लिए इतना घातक भी हो सकता है… और अगर वह दलित हो, तो कोढ़ में खाज जैसी हालत हो जाती है. आज बेला इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी. बौस के चैंबर से निकलतेनिकलते उस की आंखें भर गई थीं.

भरी आंखों को स्टाफ से चुराती बेला सीधे वाशरूम में गई और फूटफूट कर रोने लगी. जीभर कर रो लेने के बाद वह अपनेआप को काफी हलका महसूस कर रही थी. उस ने अपने चेहरे को धोया और एक नकली मुसकान अपने होंठों पर चिपका कर अपनी सीट पर बैठ गई.

बेला टेबल पर रखी फाइलें उलटनेपलटने लगी, फिर उकता कर कंप्यूटर चालू कर ईमेल चैक करने लगी, मगर दिमाग था कि किसी एक जगह ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा था. रहरह कर बौस के साथ कुछ देर पहले हुई बातचीत पर जा कर रुक रहा था.

तभी बेला का मोबाइल फोन बज उठा. देखा तो रमेश का मैसेज था. लिखा था, ‘क्या सोचा है तुम ने… आज रात के लिए?’

बेला तिलमिला उठी. सोचा, ‘हिम्मत कैसे हुई इस की… मुझे इस तरह का वाहियात प्रस्ताव देने की… कैसी नीच सोच है इस की… रसोईघर और पूजाघर में घुसने पर दलित होना आड़े आ जाता है, मगर बिस्तर पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता…’

मगर यह कोई नई बात तो है नहीं… यह तो सदियों से होता आया है… और बेला के साथ भी बचपन से ही… बिस्तर पर आतेआते मर्दऔरत में सिर्फ एक ही रिश्ता बचता है… और वह है देह का…

बेला अपनेआप से तर्क करते हुए तकरीबन 6 महीने पहले के उस रविवार पर पहुंच गई, जब वह अपने बौस रमेश के घर उन की पत्नी को देखने गई थी.

बौस की 3 महीने से पेट से हुई पत्नी सीमा सीढि़यों से नीचे गिर गई थी और खून बहने लगा था. तुरंत डाक्टरी मदद मिलने से बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ था, मगर डाक्टर ने सीमा को बिस्तर पर ही आराम करने की सलाह दी थी, इसीलिए बेला उस दिन सीमा से मिलने उन के घर चली गई थी.

रमेश ने बेला के सामने चाय का प्रस्ताव रखा, तो वह टाल नहीं सकी.

बौस को रसोईघर में जाते देख बेला ने कहा था, ‘सर, आप मैडम के पास बैठिए. मैं चाय बना कर लाती हूं.’

रमेश ने सीमा की तरफ देखा, तो उन्होंने आंखों ही आंखों में इशारा करते हुए उन की तरफ इनकार से सिर हिलाया था, जिसे बेला ने महसूस कर लिया था.

खैर… उस ने अनजान बनने का नाटक किया और चाय रमेश ही बना

कर लाए. बाद में बेला ने यह भी देखा कि रमेश ने उस का चाय का जूठा कप अलग रखा था.

हालांकि दूसरे ही दिन दफ्तर में रमेश ने बेला से माफी मांग ली थी.

उस के बाद धीरेधीरे रमेश ने उस से नजदीकियां बढ़ानी भी शुरू कर दी थीं, जिन का मतलब अब बेला अच्छी तरह समझने लगी थी.

उन्हीं निकटताओं की आड़ ले कर आज रमेश ने उसे बड़ी ही बेशर्मी से रात में अपने घर बुलाया था, क्योंकि सीमा अपनी डिलीवरी के लिए पिछले एक महीने से मायके में थी.

क्या बिस्तर पर उस का दलित होना आड़े नहीं आएगा? क्या अब उसे छूने से बौस का धर्म खराब नहीं होगा?

बेला जितना ज्यादा सोचती, उतनी ही बरसों से मन में सुलगने वाली आग और भी भड़क उठती.

सिर्फ रमेश ही क्यों, स्कूलकालेज से ले कर आज तक न जाने कितने ही रमेश आए थे, बेला की जिंदगी में… जिन्होंने उसे केवल एक ही पैमाने पर परखा था… और वह थी उस की देह. उस की काबिलीयत को दलित आरक्षण के नीचे कुचल दिया गया था.

बेला की यादों में अचानक गांव वाले स्कूल मास्टरजी कौंध गए. उन दिनों वह छठी जमात में पढ़ती थी. 5वीं जमात में वह अपनी क्लास में अव्वल आई थी.

बेला खुशीखुशी मिठाई ले कर स्कूल में मास्टरजी को खिलाने ले गई थी. मास्टरजी ने मिठाई खाना तो दूर, उसे छुआ तक नहीं था.

‘वहां टेबल पर रख दो,’ कह कर उसे वापस भेज दिया था.

बेला तब बेइज्जती से गड़ गई थी, जब क्लास के बच्चे हंस पड़े थे.

बेला चुपचाप वहां से निकल आई थी, मगर दूसरे ही दिन मास्टरजी ने उसे स्कूल की साफसफाई में मदद करने के बहाने रोक लिया था.

बेला अपनी क्लास में खड़ी अभी सोच ही रही थी कि शुरुआत कहां से की जाए, तभी अचानक मास्टरजी ने पीछे से आ कर उसे दबोच लिया था.

बेला धीरे से बोली थी, ‘मास्टरजी, मैं बेला हूं…’

‘जानता हूं… तू बेला है… तो क्या हुआ?’ मास्टरजी कह रहे थे.

‘मगर, आप मुझे छू रहे हैं… मैं दलित हूं…’ बेला गिड़गिड़ाई थी.

‘इस वक्त तुम सिर्फ एक लड़की का शरीर हो… शरीर का कोई जातधर्म नहीं होता…’ कहते हुए मास्टरजी ने उस का मुंह अपने होंठों से बंद कर दिया था और छटपटाती हुई उस मासूम कली को मसल डाला था.

बेला उस दिन आंसू बहाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकी थी. बरसों पुरानी यह घटना आज जेहन में आते ही बेला का पूरा शरीर झनझना उठा. वह दफ्तर के एयरकंडीशंड चैंबर में भी पसीने से नहा उठी थी.

स्कूल से जब बेला कालेज में आई, तब भी यह सिलसिला कहां रुका था. उस का सब से पहला विरोध तो गांव की पंचायत ने किया था.

पंचायत ने उस के पिता को बुला कर धमकाया था, ‘भला बेला कैसे शहर जा कर कालेज में पढ़ सकती है? जो पढ़ना है, यहीं रह कर पढ़े… वैसे भी अब लड़की सयानी हो गई है… इस के हाथ पीले करो और गंगा नहाओ…’ पंचों ने सलाह दी, तो बेला के पिता अपना सा मुंह ले कर घर लौट आए थे.

उस दोपहर जब बेला अपने पिता को खेत में खाना देने जा रही थी, तब रास्ते में सरपंच के बेटे ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘बेला, तेरे शहर जा कर पढ़ने की इच्छा मैं पूरी करवा सकता हूं… बस, तू मेरी इच्छा पूरी कर दे.’

बेला बड़ी मुश्किल से उस से पीछा छुड़ा पाई थी. तब उस ने पिता के सामने आगे पढ़ने की जिद की थी और ऊंची पढ़ाई से मिलने वाले फायदे गिनाए थे.

बेटी की बात पिता को समझ आ गई और पंचायत के विरोध के बावजूद उन्होंने उस का दाखिला कसबे के महिला कालेज में करवा दिया और वहीं उन के लिए बने होस्टल में उसे जगह भी मिल गई थी.

हालांकि इस के बाद उन्हें पंचायत की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी. मगर बेटी की खुशी की खातिर उन्होंने सब सहन कर लिया था.

शहर में भी होस्टल के वार्डन से ले कर कालेज के क्लर्क तक सब ने उस

का शोषण करने की कोशिश की थी. हालांकि उसे छूने और भोगने की उन की मंशा कभी पूरी नहीं हुई थी, मगर निगाहों से भी बलात्कार किया जाता है, इस कहावत का मतलब अब बेला को अच्छी तरह से समझ आने लगा था.

फाइनल प्रैक्टिकल में प्रोफैसर द्वारा अच्छे नंबर देने का लालच भी उसे कई बार दिया गया था. उस के इनकार करने पर उसे ताने सुनने पड़ते थे.

‘इन्हें नंबरों की क्या जरूरत है… ये तो पढ़ें या न पढ़ें, सरकारी सुविधाएं इन के लिए ही तो हैं…’

ऐसी बातें सुन बेला तिलमिला जाती थी. उस की सारी काबिलीयत पर एक झटके में ही पानी फेर दिया जाता था.

मगर बेला ने हार नहीं मानी थी. अपनी काबिलीयत के दम पर उस ने सरकारी नौकरी हासिल कर ली थी.

पहली बार जब बेला अपने दफ्तर में गई, तो उस ने देखा कि उस का पूरा स्टाफ एकसाथ लंच कर रहा है, मगर उसे किसी ने नहीं बुलाया था.

बेला ने स्टाफ के साथ रिश्ता मजबूत करने के लिहाज से एक बार तो खुद ही उन की तरफ कदम बढ़ाए, मगर फिर अचानक कुछ याद आते ही उस के बढ़ते कदम रुक गए थे.

बेला के शक को हकीकत में बदल दिया था उस के दफ्तर के चपरासी ने. वह नादान नहीं थी, जो समझ नहीं सकती थी कि उस के चपरासी ने उसे पानी डिस्पोजल गिलास में देना शुरू क्यों किया था.

क्याक्या याद करे बेला… इतनी सारी कड़वी यादें थीं उस के इस छोटे से सफर में, जिन्हें भूलना उस के लिए नामुमकिन सा ही था. मगर अब उस ने ठान लिया था कि वह अब और सहन नहीं करेगी. उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी सरकारी नौकरी छोड़ देगी और दुनिया को दिखा देगी कि उस में कितनी काबिलीयत है. अब वह सिर्फ प्राइवेट नौकरी ही करेगी और वह भी बिना किसी की सिफारिश या मदद के.

बेला के इस फैसले को बचकाना फैसला बताते हुए उस के पिता ने बहुत खिलाफत की थी. उन का कहना भी सही था कि अगर दलित होने के नाते सरकार हमें कोई सुविधा देती है, तो इस में इतना असहज होने की कहां जरूरत है… हम अपना हक ही तो ले रहे हैं.

मगर, बेला ने किसी की नहीं सुनी और सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

बेला को ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. उस का आकर्षक बायोडाटा देख कर इस कंपनी ने उसे अच्छे सालाना पैकेज पर असिस्टैंट मैनेजर की पोस्ट औफर की थी. रमेश यहां मैनेजर थे. उन्हीं के साथ रह कर बेला को कंपनी का काम सीखना था.

शुरूशुरू में तो रमेश का बरताव बेला के लिए अच्छा रहा था, मगर जब से उन्होंने कंपनी में उस की पर्सनल फाइल देखी थी, तभी से उन का नजरिया बदल गया था. पहले तो वह समझ नहीं सकी थी, मगर जब से उन के घर जा कर आई थी, तभी से उसे रमेश के बदले हुए रवैए की वजह समझ में आ गई थी.

औरत के शरीर की चाह मर्द से कुछ भी करवा सकती है, यह सोच अब बेला की निगाहों में और भी ज्यादा मजबूत हो चली थी. पत्नी से जिस्मानी दूरियां रमेश से सहन नहीं हो रही थीं, ऐसे में बेला ही उसे आसानी से मिलने वाली चीज लगी थी. बेला का सालभर का प्रोबेशन पीरियड बिना रमेश के अच्छे नोट के क्लियर नहीं हो सकता और इसी बात का फायदा रमेश उठाना चाहते हैं.

‘जब यहां भी मेरी काबिलीयत की पूछ नहीं है, तो फिर सरकारी नौकरी कहां बुरी थी? कम से कम इस तरह के समझौते तो नहीं करने पड़ते थे वहां… नौकरी छूटने का मानसिक दबाव तो नहीं झेलना पड़ेगा… ज्यादा से ज्यादा स्टाफ और अफसरों की अनदेखी ही तो झेलनी पड़ेगी… वह तो हम आजतक झेलते ही आए हैं… इस में नई बात क्या होगी…

‘वैसे भी जब आम सोच यही है कि दलितों को सरकारी नौकरी उन की काबिलीयत से नहीं, बल्कि आरक्षण के चलते मिलती है, तो यही सही…

‘इस सोच को बदलने की कोशिश करने में मैं ने अपने कीमती 2 साल बरबाद कर दिए… अब और नहीं… यह भी तो हो सकता?है कि सरकारी पावर हाथ में होने से मैं अपनी जैसी कुछ लड़कियों की मदद कर सकूं,’ बेला ने अब अपनी सोच को एक नई दिशा दी.

इस के बाद बेला ने अपने आंसू पोंछे… आखिरी बार रमेश के चैंबर की तरफ देखा और इस्तीफा लिखने लगी.

पिछवाड़े की डायन : ओझाओं और पुजारियों की ऐशगाह क्यों था वह गांव

इस वीरान घाटी में रहते हुए मुझे तकरीबन एक साल हो गया था. वहां तरहतरह के किस्से सुनने को मिलते थे. घाटी के लोग तमाम अंधविश्वासों को ढोते हुए जी रहे थे.

तांत्रिक और पाखंडी लोग अपने हिसाब से तरहतरह की कहानियां गढ़ कर लोगों को डराते रहते थे. वह घाटी ओझाओं और पुजारियों की ऐशगाह थी. पढ़ाईलिखाई का वहां माहौल ही नहीं था.

जब मैं घाटी में आया था, तो लोगों द्वारा मुझे तमाम तरह की चेतावनियां दी गईं. मुझे बताया गया कि मधुगंगा के किनारे दिन में पिशाच नाचते रहते हैं और रात में भूत सड़क पर खुलेआम बरात निकालते हैं.

एकबारगी तो मैं बुरी तरह से डर गया था, लेकिन नौकरी की मजबूरी थी, इसलिए मुझे वहां रुकना पड़ा. बस्ती से तकरीबन सौ मीटर दूर मेरा सरकारी मकान था. वहां से मधुगंगा साफ नजर आती थी. मेरे घर और मधुगंगा के बीच 2 सौ मीटर चौड़ा बंजर खेत था, जिस में बस्ती के जानवर घास चरते थे.

मेरे घर से एकदम लगी कच्ची सड़क आगे जा कर पक्की सड़क से जुड़ती थी. अस्पताल भी मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर था.

मैं एक डाक्टर की हैसियत से वहां पहुंचा था. जाते ही डरावनी कहानियां सुन कर मेरे होश उड़ गए. कुछ दिनों तक मैं वहां पर अकेला रहा, लेकिन मुझे देर रात तक नींद नहीं आती थी.

विज्ञान पढ़ने के बावजूद वहां का माहौल देख कर मैं भी डरने लगा था. रात को जब खिड़की से मधुगंगा की लहरोें की आवाज सुनाई देती, तो मेरी घिग्घी बंध जाती थी. आखिरकार मैं ने गांव के ही एक नौजवान को नौकर रख लिया. वह भग्गू था. बस्ती के तमाम लोगों की तरह वह भी घोर अंधविश्वासी निकला.

मेरे मना करने के बावजूद वह उन्हीं बातों को छेड़ता रहता, जो भूतप्रेतों और तांत्रिकों के चमत्कारों से जुड़ी होती थीं.भग्गू के आने से मुझे बड़ा सुकून मिला था. वह मजेदार खाना बनाता था और घर के तमाम काम सलीके से करता था. वह रहता भी मेरे साथ ही था. उसे साथ रखना मेरी मजबूरी भी थी. उस बड़े घर में अकेले रहना ठीक नहीं था.

कहीसुनी बातों से कोई खौफ न भी हो, तो भी बात करने के लिए एक सहारा तो चाहिए ही था. भग्गू ने मेरा अकेलापन दूर कर दिया था.

वहां नौकरी करते हुए एक साल बीत गया. इस बीच मैं ने पिशाचों की कहानियां तो खूब सुनीं, पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी भूतपिशाच या चुड़ैल का सामना करना पड़ा हो.

अब तो मैं वहां रहने का आदी हो गया था. इलाके के लोग मुझ से खुश रहते थे. दिन हो या रात, मैं मरीजों को हर समय देखने के लिए तैयार रहता था. मुझे इन गरीब लोगों की सेवा करने में बड़ा सुकून मिलता था.

आमतौर पर मेरे पास मरीज तब आते थे, जब बहुत देर हो चुकी होती थी. पहले वे लोग झाड़फूंक कराते थे, फिर तंत्रमंत्र आजमाते थे और आखिर में अस्पताल आते थे. इसी वजह से कई लोग भयानक बीमारियों की चपेट में आ गए थे.

मैं ने महसूस किया था कि तांत्रिक, ओझा और नीमहकीम जानबूझ कर लोगों का सही इलाज न कर अपने जाल में फंसा लेते हैं और फिर उन का जम कर शोषण करते हैं. घाटी में मैं इलाज के लिए मशहूर हो गया था. मुझ से उन पाखंडी लोगों को बेहद चिढ़ होती थी.

स्वोंगड़ शास्त्री की अगुआई में उन्होंने मेरी खिलाफत भी की, लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए. यहां तक कि उन्होंने मुझे नीचा दिखाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए. आखिरकार उन्होंने हार मान ली.

स्वोंगड़ शास्त्री के लिए मेरे मन में ऐसी नफरत भर गई थी कि मैं ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था. उस धूर्त से शायद मैं कभी नहीं बोलता, मगर एक घटना ने मेरा मुंह खुलवा दिया. वह पूर्णिमा की रात थी. धरती चांदनी की दूधिया रोशनी में नहा रही थी. घर के पिछवाड़े की खिड़की से मैं मधुगंगा की मचलती लहरों को साफ देख सकता था. धरती का यह रूप कभीकभार ही देखने को मिलता था. उस रात को मैं ने जो कुछ भी देखा, वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला था.

रात के 10 बज चुके थे. बस्ती के लोग गहरी नींद में सो रहे थे. पिछलीरात भयंकर तूफान आया था, इसलिए बिजली गुल थी. मैं चारपाई पर बैठा पिछवाड़े की खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था.

अभी मैं मस्ती में डूबा ही था कि सामने बंजर खेत में झाडि़यों के बीच एक चेहरा दिखाई दिया. सफेद धोती में लिपटी एक औरत घुटनों के बल बैठी थी. उस के सिर का पल्लू पूरे मुंह को ढके हुए था. उस का दायां हाथ नहीं हिल रहा था, लेकिन बायां हाथ लगातार हिलता जा रहा था. ऐसा लगता था, मानो अपना हाथ हिला कर वह मुझे अपनी तरफ बुला रही है.

मेरी रगों में दौड़ता खून जैसे जम कर बर्फ बन गया. मेरे माथे पर पसीने की बूंदें निकल आईं. काफी देर तक मैं उस चेहरे को देखता रहा.

वह अपनी जगह उसी तरह बैठी हाथ हिला रही थी. मैं टौर्च जला कर भग्गू के कमरे की ओर गया. वह सो रहा था. मैं ने उसे जोर से हिला कर जगाना चाहा, पर वह बारबार ‘घूंघूं’ करता और करवट बदल कर मुंह फेर लेता था हार कर मैं ने उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘उठो भग्गू, पिछवाड़े में देखो तो क्या है?’’

‘‘क्या है…?’’ उस की नींद उड़ गई. वह सकपका कर उठ बैठा.

‘‘चलो मेरे साथ… अपनी आंखों से देख लो…’’ कहते हुए मैं भग्गू को अपने कमरे तक ले आया.

भग्गू ने ज्यों ही उस चेहरे को देखा, वह कांपता हुआ मुझ से लिपट गया. सामने का नजारा देखते ही वह देर तक हांफता रहा और फिर बोला, ‘‘आज तो मौत सामने आ गई, साहब. डायन है वह. उस ने हमें देख लिया है, इसलिए हाथ हिला कर बुला रही है.

‘‘अब स्वोंगड़ शास्त्री ही हमें बचा सकते हैं. पर उन के घर जाएं कैसे? बाहर निकलते ही दुष्ट डायन हमारा खून पी जाएगी. मर गए आज…’’

अचानक बाहर सड़क से खांसी की आवाज सुनाई दी. मेरी जान लौट आई. जान बचाने को आतुर भग्गू ने लपक कर दरवाजा खोला और बाहर झांका. अचानक उस का चेहरा खिल उठा. कंधे पर झोला लटकाए स्वोंगड़ शास्त्री आते हुए दिखे.

उन्हें देखते ही भग्गू जोर से चिल्लाया, ‘‘बचाओबचाओ… शास्त्रीजी, इस दुष्ट डायन से हमें बचाओ…’’

मैं ने पिछवाड़े की ओर देखा. वह डायन अभी भी हाथ हिला कर हमें बुला रही थी. इसी बीच स्वोंगड़ शास्त्री भी वहां आ गया.डरा हुआ भग्गू उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘किस्मत से ही आप इतनी रात को दिख गए, शास्त्रीजी. आप नहीं आते, तो डायन हमें मार डालती…’’

‘‘मैं तो पास वाले गांव से पूजा कर के लौट रहा था, भग्गू. तू चिल्लाया तो चला आया, वरना साहबों की चौखट लांघना मेरे जैसे तांत्रिक की हैसियत में कहां…?’’

शास्त्री मुझे ही सुना रहा था, लेकिन मेरी समस्या यह थी कि उस समय मुझे उस की मदद चाहिए थी. मैं ने मुड़ कर पिछवाड़े की ओर देखा. डायन अभी भी हाथ हिलाए जा रही थी.

मैं डर गया और माफी मांगते हुए बोला, ‘‘माफ करना, शास्त्रीजी. भूलचूक हो ही जाती है. इस समय आप ही हमें बचा सकते हैं. वह देखिए पिछवाड़े में. 2 घंटे बीत गए, पर वह डायन अभी भी वहीं बैठी है. आप कुछ कीजिए.’’

पिछवाड़े में बैठी डायन का चेहरा देख कर एकबारगी स्वोंगड़ शास्त्री भी डर गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. डर के मारे उस का हलक सूख गया. भग्गू से एक लोटा पानी मांग कर उस ने पूरा लोटा गटक लिया.

फिर स्वोंगड़ शास्त्री बोला, ‘‘पहली बार मैं इतनी अनाड़ी चुड़ैल को देख रहा हूं. आज यह यहां तक आ पहुंची है. बहुत भयंकर है यह… लेकिन, तुम चिंता न करो. मैं मंत्र पढ़ता हूं.’’स्वोंगड़ शास्त्री मंत्र पढ़ने लगा. मंत्र पढ़ते हुए उस का चेहरा इतना भयानक हो रहा था कि डायन से कम, उस से ज्यादा डर लग रहा था. उस ने आंखें मूंद ली थीं और मंत्रों की आवाज के साथ हाथों से अजीबअजीब इशारे भी कर रहा था.

अचानक जोर की हवा चली और पिछवाड़े में बैठी डायन ने दिशा बदल ली. उस ने सिर झुका लिया और उस का हिलता हाथ भी थम गया. भग्गू के चेहरे पर मुसकान तैर गई, लेकिन मेरा माथा ठनक गया.

‘‘धन्यवाद शास्त्रीजी, आप ने बहुत मंत्र पढ़ लिए, लेकिन यह डायन अपनी जगह से हिल नहीं रही है. अब मैं खुद जा कर इस से निबटता हूं,’’ कहते हुए मैं बाहर को लपका.

‘‘पगला गया है क्या? खून चूस डालेगी वह तेरा…’’ शास्त्री ने गुस्से में आ कर कहा, लेकिन मैं बाहर निकल कर डायन की ओर बढ़ा.

‘‘रुक जाओ साहब…’’ भग्गू चिल्लाया, मगर तब तक मैं डायन के एकदम सामने जा पहुंचा था.

एक सूखी झाड़ी पर पुरानी धोती कुछ इस तरह से लिपटी थी कि दूर से देखने पर वह घुटनों के बल बैठी किसी औरत की तरह लगती थी. टहनी पर लटका पल्लू जब हवा के झोंकों से डोलता, तो ऐसा लगता था जैसे वह हाथ हिला कर किसी को बुला रही हो.

सचाई जान कर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी आने लगी. मैं ने झाड़ी पर लिपटी वह पुरानी धोती समेटी और वापस लौट आया. मुझे देखते ही स्वोंगड़ शास्त्री का चेहरा उतर गया. सिर झुकाए चुपचाप वह अपने घर को चल दिया.

‘‘इस निगोड़ी झाड़ी ने कितना डराया साहब, मैं तो डर के मारे अकड़ ही गया था,’’ भग्गू ने कहा.

‘‘तुम ने अपने मन को इस तरह की किस्सेकहानियां सुनसुन कर इतना डरा लिया है कि तुम्हारी नजर भूतप्रेतों के अलावा अब कुछ देखती ही नहीं. तुम्हारे इसी डर के सहारे स्वोंगड़ शास्त्री जैसे लोग चांदी काट रहे हैं,’’ मैं ने भग्गू को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो साहब…’’ घड़ी की ओर देख कर भग्गू ने कहा.

रात के 12 बज चुके थे. मैं रातभर यही सोचता रहा कि भूतों का भूत इन सीधेसादे लोगों के दिमाग से कब भागेगा? स्वोंगड़ शास्त्री जैसे तांत्रिकों की दुकानदारी आखिर कब तक चलती रहेगी?

हैरान कर देगी ये कहानी : बीवी की जुदाई में जान देते शौहर

मध्य प्रदेश में भोपाल के रातीबड़ इलाके का 24 साला राजू कुशवाहा प्राइवेट स्कूल में टीचर था. इसी साल फरवरी महीने में उस की शादी भोपाल के ही छोला मंदिर इलाके की रहने वाली आस्था नाम की लड़की से हुई थी.

खूबसूरत और पढ़ीलिखी बीवी पा कर राजू बेहद खुश था और आस्था को भी खुश रखने की हरमुमकिन कोशिश करता था.

राजू ने भी शादीशुदा जिंदगी के कई ख्वाब संजो रखे थे, लेकिन ये ख्वाब एक झटके में उस की मौत की वजह भी बन गए.

हुआ यों कि न मालूम किन वजहों के चलते आस्था शादी के कुछ दिन बाद ही मायके चली गई और वापस नहीं आई. राजू ने कई दफा बीवी की बेरुखी की वजह जानने की कोशिश की, पर उस ने कुछ नहीं बताया, तो वह परेशान हो उठा.

अप्रैल महीने की 10 तारीख को राजू घर वालों के कहने पर आस्था को लेने ससुराल पहुंचा, तो भी उस ने साथ जाने से इनकार कर दिया और वजह भी नहीं बताई.

दुखी राजू खाली हाथ घर लौट आया और बीवी के गम में जहर पी लिया. इतना ही नहीं, मरने का जुनून उस के सिर पर इस तरह सवार था कि जहर पीने के बाद उस ने अपने गले में फांसी का फंदा भी लगा लिया.

घर वालों को शक हुआ, तो उन्होंने राजू के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर मरा आदमी भला क्या दरवाजा खोलता, इसलिए घबराए घर वालों ने दरवाजा तोड़ा, तो देखा कि वह फांसी के फंदे पर झूल रहा था. अस्पताल में डाक्टरों ने उस की मौत पर अपनी मुहर लगा दी.

ये करते हैं बीवी से प्यार

राजू जैसे शौहर कितने जज्बाती होते हैं, इस की एक और मिसाल 23 जून, 2017 को मध्य प्रदेश के ही सतना जिले से सामने आई थी, जब 40 साला भगवान सेन ने रेल से कट कर खुदकुशी कर ली थी.

भगवान सेन की तकलीफ यह थी कि कुछ महीने पहले ही उस की बीवी उसे छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ रहने लगी थी, जिस से दुखी हो कर उसे अपनी जिंदगी खत्म कर लेना ही बेहतर लगा.

7 जून, 2017 को फैजाबाद के बाबा बाजार के मवई थाना इलाके के गांव दीवाना मजरे भवानीपुर में एक दीवाने रामसूरत ने बीवी के मर जाने पर खुद भी खेत में आम के पेड़ पर फांसी लगा कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

गांव वालों के मुताबिक, रामसूरत अपनी बीवी को बहुत चाहता था और उस की मौत के बाद गुमसुम रहने लगा था. बच्चा जनने के दौरान हुई बीवी की मौत ने उसे भीतर तक हिला कर रख दिया था.

रामसूरत चाहता तो कुछ दिनों बाद दूसरी शादी कर सकता था, लेकिन बीवी की जगह जो दिल में बन गई थी, उसे किसी और के देने की बात शायद ही उस ने सोची होगी, इसलिए फांसी लगा कर अपना दुख जता दिया.

प्यार और चाहत की ऐसी मिसालें कम ही देखने में आती हैं, जिन में शौहर मरने की हद तक बीवी को चाहता हो. ऐसा ही सोचने के लिए मजबूर कर देने वाला मामला 9 फरवरी, 2017 को बिहार से सामने आया था.

पूर्णिया जिले के गांव रामडेली का लड्डू शर्मा भी अपनी बीवी कोमल पर लट्टू था. राजस्थान की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले लड्डू शर्मा को कोमल नाम की एक लड़की से मुहब्बत हो गई थी. दोनों ने शादी कर ली, तो जिंदगी मानो जन्नत सी हो गई.

चंद महीने बाद ही कोमल पेट से हो गई, तो लड्डू शर्मा की खुशियों को तो मानो पंख लग गए. पर अकेला लड्डू शर्मा पत्नी की जचगी नहीं करा सकता था, इसलिए उस ने कोमल को रामडेली गांव भेज दिया, जिस से जचगी घर वालों की निगरानी में अच्छे से हो सके.

लेकिन जचगी का वक्त उन दोनों की खुशियों पर ग्रहण बन कर आया. कोमल की मौत हो गई.यह खबर सुन कर लड्डू शर्मा भागाभागा रामडेली गांव पहुंचा. वहां उस ने जहर खा लिया और श्मशान घाट में अपनी जान दे दी, जहां कोमल की लाश जलाई गई थी.

इंदौर, मध्य प्रदेश के 54 साला सोमाजी पटेल ने अपनी बीवी बेबी बाई की मौत के 6 साल बाद फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी.

कुलकर्णी का भट्टा इलाके के रहने वाले सोमाजी पटेल अपनी बीवी बेबी बाई की मौत के बाद से ही तनाव में थे और उन की कमी महसूस कर रहे थे. जैसेजैसे वक्त गुजरता गया, वैसेवैसे पत्नी की यादें और ज्यादा बढ़ती गईं. 6 साल तो उन्होंने बेटेबहुओं और नातीपोतों के साथ जैसेतैसे गुजार दिए, पर प्यार को यों ही प्यार नहीं कहा जाता, यह सोमाजी पटेल की खुदकुशी से भी साबित हुआ.

खटकती है कमी

इन कुछ मामलों से साफ महसूस होता है कि बीवी की अहमियत एक शौहर की जिंदगी में क्या होती है. साथ ही, यह भी साबित होता है कि सिर्फ औरतें ही जज्बाती नहीं होतीं, बल्कि कई मामलों में मर्द भी उन से कहीं ज्यादा जज्बाती होते हैं.

आमतौर पर मर्दों के बारे में कहा यह जाता है कि वे बीवी के मरते ही या अलग होते ही दूसरी शादी कर के चैन से गुजरबसर करने लगते हैं. यह बात पूरी तरह सच नहीं है.

दूसरी शादी कर के वही लोग सुखी रह पाते हैं, जो दूसरी बीवी में पहली बीवी देखते हैं और दूसरी बीवी भी उन्हें पहली बीवी सरीखा प्यार और सहारा देती है.

यह भी होता है

बीवी की जुदाई में जान देने वाले या घुटघुट कर जीने वाले जरूरी नहीं है कि बीवी को बहुत प्यार करते हों. कई मामलों में तो बीवी शौहर की चाहत र जज्बात को नजरअंदाज करती रहती है, पर मर्द उसे चाहना नहीं छोड़ पाता. भोपाल का राजू कुशवाहा इस की मिसाल है.

वैसे, बीवी की ज्यादतियों से तंग आ कर भी जान देने वाले शौहरों की तादाद कम नहीं है. 1 जुलाई, 2017 को राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले

30 साला इंजीनियर दिनेश मांकड़ ने अपनी बीवी की धमकियों और ज्यादतियों से तंग आ कर खुदकुशी कर ली थी.

शादी के 7 साल तो ठीकठाक गुजरे, पर एकाएक ही बीवी ने गिरगिट की तरह रंग बदला और दिनेश पर घर से अलग रहने का दबाव बनाने लगी. घर वालों से अलग होने की कोई मुकम्मल वजह नहीं थी, इसलिए दिनेश ने बीवी को समझायाबुझाया, जिस का कोई असर नहीं हुआ. उलटे बात न मानने पर वह मायके जा कर रहने लगी.

यह दिनेश जैसे शौहरों के लिए बेहद मुश्किल वक्त होता है, जब बीवी अलग होने की जिद पर अड़ जाती है. ऐसे में शौहर की पहली कोशिश यह होती है कि वह बीवी को समझाए कि उस की भी अपने घर वालों के प्रति कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं.

बीवियां जब इस बात से इत्तिफाक नहीं रखतीं, तो वाकई शौहरों की जिंदगी नरक हो जाती है. कई दफा तो लोग उन की मर्दानगी तक पर भी उंगली उठाने लगते हैं.

बीवी मायके में क्यों है? कलेजे पर नश्तर से चुभते इस सवाल का जवाब दुनिया को न केवल शौहर, बल्कि उस के घर वालों के लिए भी दे पाना मुश्किल हो जाता है.

अकसर बीवी के मायके वाले भी आग में घी डालने का काम करते हुए अपनी लड़की की गलती छिपाते हैं कि उसे ससुराल में दहेज के लिए मारापीटा जाता था या दूसरी तरह की तकलीफें दी जाती थीं, इसलिए वह ससुराल नहीं जा रही है.

ऐसे लोगों को यह समझाने वाला कोई नहीं होता कि बात अकेले पेट की नहीं होती, बल्कि शादीशुदा जिंदगी की जिम्मेदारियां व कुछ उसूल भी होते हैं, जिन्हें उन की बेटी ढंग से नहीं निभा पा रही है, इसलिए वापस जाने से कतरा रही है.

कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि बीवियों पर जुल्म नहीं होते. उन पर जुल्म होते हैं और कहर भी ससुराल वाले ढाते हैं, पर रिश्तेदारी और समाज में ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं. कौन गलत और कौन सही के फैसले के लिए अदालतें हैं, जिन में तलाक के करोड़ों मुकदमे चल रहे हैं.

यहां यह कहना भी बेमानी है कि आज की औरतें ससुराल के जुल्मोसितम घूंघट ढक कर बरदाश्त कर लेती हैं. रोजाना लाखोें शिकायतें शौहर और उस के घर वालों के खिलाफ दर्ज होती हैं और उन पर कार्यवाही भी होती है.

दिनेश ने अपने सुसाइड नोट में जो बातें लिखीं, उन से जाहिर होता है कि समाज, धर्म और कानून के फंदे में शौहर की हालत अधर में लटके शख्स जैसी हो जाती है. वह इन तीनों चक्रव्यूहों को नहीं भेद पाता, इसलिए खुदकुशी कर लेता है.

दिनेश ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि अगर सरकार और समाज मर्दों के लिए कोई कानून बनाए, तो कुछ बेकुसूरों की जान बच सकती है. हर बार औरत मासूम नहीं होती. वह अकसर औरतों के लिए बने कानून का फायदा उठाती है और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए हमदर्दी हासिल करती है.

शौहर को समझें

दिनेश बहुत कम लफ्जों में अपनी तकलीफ और दर्द बयां कर गया, जिसे हर बीवी को समझना चाहिए कि यह शौहर का प्यार ही है, जो सालोंसाल वह उस के घर वापस लौटने का इंतजार करता रहता है. उस के दिल में एक आस होती है कि आज नहीं तो कल बीवी को अक्ल आ जाएगी.

बीवी के मर जाने और मायके जाने की जुदाई में फर्क इतना भर होता है कि पहले मामले में शौहर एकदम नाउम्मीद हो उठता है, जबकि मायके में रह रही बीवी के मामलों में उसे उम्मीद बंधी रहती है.

इसलिए बीवियों को चाहिए कि वे बेवजह छोटीमोटी बातों, खुदगर्जी या सहूलियत के लिए उन शौहरों की परेशानी का सबब न बनें, जो उन्हें प्यार करते हैं. मियांबीवी गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए बेवजह नहीं कहे जाते, इसलिए अपने हिस्से की जिम्मेदारी बीवी को उठानी आनी चाहिए और इस के लिए कुछ समझौते करने हों, तो करने चाहिए. इस से उन्हें अपने शौहर का सौ गुना प्यार मिलेगा.

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