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शाहरुख की परेशानी

बौलीवुड बादशाह शाहरुख खान निर्देशक आनंद एल राय की फिल्म ‘बंधुआ’ में मुख्य किरदार निभाएंगे. वे फिल्मकार आनंद एल राय के निर्देशन में पहली फिल्म करने जा रहे हैं. इस प्रेमप्रधान फिल्म की कहानी में शाहरुख खान एक बौने के किरदार में नजर आने वाले हैं. कहा जा रहा है कि शाहरुख खान फिल्म ‘बंधुआ’ में 1990 में प्रदर्शित कमल हासन की फिल्म ‘अप्पू राजा’ की नकल करते हुए नजर आएंगे. इस चर्चा से घबरा कर शाहरुख सफाई दे रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं है.

शाहरुख खान कहते हैं कि ये सारी बेवकूफी वाली अफवाहें हैं. लोग बेवजह गलत चर्चाएं कर रहे हैं. हमारी फिल्म और कमल हासन की फिल्म ‘अप्पू राजा’ में कोई समानता नहीं है. मैंने अपनी फिल्म के लिए लुक टैस्ट भी कर लिया है. कमल हासन की फिल्म ‘अप्पू राजा’ से मेरा लुक बहुत अलग है.

नरगिस बनेंगी मनीषा

कुछ समय पहले मनीषा कोइराला ने फिल्ममेकर राजकुमार हिरानी के साथ एक तसवीर पोस्ट की थी और उन की प्रशंसा में कुछ शब्द लिखे, ‘अनोखे डायरैक्टर और शानदार इंसान.’ जनवरी से राजकुमार हिरानी संजय दत्त की बायोपिक में व्यस्त हैं, जिस में रणवीर कपूर, संजय दत्त की भूमिका में नजर आएंगे और दीया मिर्जा उन की पत्नी मान्यता दत्त की भूमिका में होंगी. संजय दत्त की मां नरगिस का किरदार मनीषा कोइराला निभाएगी.

राजकुमार हिरानी का मानना है कि नरगिस इंडियन सिनेमा की खूबसूरत महिला थीं और उन के किरदार को निभाने के लिए उतनी ही खूबसूरत महिला का होना बहुत जरूरी है. हालांकि,मनीषा वाकई प्यारी और शानदार ऐक्ट्रैस हैं लेकिन उन्हें इस फिल्म में लेने की मुख्य वजह उन का कैंसर से लड़ना था, क्योंकि नरगिस भी कैंसर से लड़ती रही थीं.

एक्टिंग टाइम टेकिंग होती है : रश्मि सचदेवा

मिसेज यूनिवर्स रश्मि सचदेवा को देख कर कोई नहीं कह सकता कि उनकी 21 साल की बेटी है. शादी के बाद फैशन की दुनिया में वह सब कुछ हासिल किया जा सकता है जो किसी प्रोफेशनल मॉडल का सपना होता है. रश्मि सचदेवा ने इस बात को साबित करके दिखा दिया.

दिल्ली एनसीआर से शुरू हुआ यह सफर मिसेज यूनिवर्स तक पहुंचा. आज वो बड़ी मॉडल की तरह सेलिब्रेटी हैं. लखनऊ में मिसेज यूपी के जजमेंट पैनल में शामिल होने आई रश्मि ने कहा, 'फोटो का शौक शुरू से था. पहली बार मुझे सरिता पत्रिका में यह मौका मिला. उस समय सरिता में अंदर छपने वाली शायरी के साथ मेरी फोटो छपी थी. मैं ग्रेजुएट के पहले साल में थी तब शादी हुई. शादी के बाद बेटी हुई. मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. मिसेज दिल्ली एनसीआर में मेरी एक दोस्त हिस्सा ले रही थी. मेरी बेटी ने देखा तो वह बोली कि मैं भी इसमें हिस्सा लू. बेटी की बात का समर्थन पति ने भी किया. वहां से दोबारा मैने फैशन की फील्ड में कदम रखा. यह सफर मिसेज इंडिया और मिसेज यूनिवर्स तक पहुंच गया.'

रश्मि के पति चाटर्ड एंकाउडेट हैं. बेटी अंग्रजी ऑनर्स की पढ़ाई कर रही हैं. रश्मि को सीरियल, फैशन शो, मॉडलिंग के बहुत सारे ऑफर भी आ रहे है. इसके बाद भी वह एक्टिंग में आगे जाना नहीं चाहती. वह कहती हैं कि 'मेरे लिये परिवार को समय देना सबसे जरूरी है. उसके साथ जो मैं कर सकती हूं वही करना चाहती हूं. एक्टिंग में समय बहुत लगता है. सीरियल और फिल्म दोनों ही टाइम टेकिंग काम है. इस लिये मैं उसमें नहीं उलझना चाहती. मोडलिंग और फैशन शो बहुत समय नहीं लेते घर परिवार के साथ इसको मैनेज किया जा सकता है.'

रश्मि आज भी किसी मॉडल कि तरह स्लिम दिखती हैं. अपनी फिटनेस के बारे में वह कहती हैं, “मैं जिम के बजाये मॉर्निंग वॉक पर ज्यादा फोकस करती हूं. रोज कम से कम 40 मिनट की वॉक लेती हूं. क्रश टाइट पर यकीन नहीं करती. हेल्दी और क्वालिटी फूड लेती हूं. 40 के बाद महिलाओं में तमाम तरह की हेल्थ प्रॉब्लम होती है. जिसमें थायराइड और विटामिन की कमी सबसे ज्यादा होती है. ऐसे में जिम करने से बौडी को नुकसान हो सकता है. ऐसे में वाकिंग सबसे बेहतर लगती है. जब प्रेगनेंसी होती है. प्रेगनेंसी के बाद बढ़े हुये वजन को कम करन सबसे जरूरी होता है. एक बार वह कम हो जाये तो फिटनेस को हासिल करना सरल हो जाता है. मैंने उस समय अपना 12 किलो वजन कम किया था.”

रश्मि थैलेसिमिया फांउडेशन के साथ जुडकर काम कर रही है. वह आगे भी समाजसेवा के लिये अपना वक्त निकालती रहेगी. रश्मि को झूठ से बहुत नफरत है. परिवार के साथ सबसे अधिक खुशी का अनुभव करती है. रीडिंग, कुकिंग और म्यूजिक उनकी पसंददीदा हॉबी है. रश्मि ने कई पंजाबी म्यूजिक एलबम में काम किया है. बेटी के लिये मलाई कोफ्ता और पति के लिये पराठे बनाना उनको पसंद है. अगर उनकी बेटी फैशन की फील्ड को करियर के रूप में चुनती है तो उनको कोई परेशानी नहीं होगी. रश्मि कहती हैं, ‘फैशन की फील्ड को लेकर खुलेपन और शोषण की जो बातें होती है वह उतनी सही नहीं है. अगर कोई बिना किसी तरह के समझौते के काम करना चाहता है तो वह भी काम कर सकता है. परेशान वही लोग होते है जो शॉर्टकट सफलता चाहते हैं.’

शून्य पर आउट होने को यूं ही नहीं कहते ‘डक’

हर क्षेत्र की तरह ही खेलों के क्षेत्र की भी अलग शब्दावली और परिभाषाएं होती हैं. खेलों में भी अगर क्रिकेट की बात करें तो इस खेल में कुछ ऐसे शब्द सुनने को मिल जाते हैं, जिनका उपयोग सिर्फ इसी खेल में किया जाता है.

क्रिकेट आम लोगों के बीच इतना मशहूर है कि इसकी शब्दावली भी बहुत आम है. अगर आप अक्सर ही क्रिकेट देखते हैं, तो आपने इसमें 'डक' शब्द भी सुना होगा.

असल में जब कोई खिलाड़ी बिना खाता खोले ही आउट हो जाता है, तो उसे 'डक आउट' होना कहते हैं. आप में से कई लोगों को यह बात पता होगी. लेकिन क्या आपको पता है आखिर शून्य पर आउट होने को 'डक' ही क्यों कहते हैं और इसके पीछे क्या कहानी है? नहीं तो आज हम आपको बताते हैं डक शब्द का मतलब क्या है और इसका नाम डक ही क्यूं पड़ा.

इसलिए बोलते हैं 'डक'

दरअसल, बत्तख के अंडे का आकार 0 अंक की तरह ही होता है, इसलिए शून्य पर आउट होने को 'डक आउट' होना कहते है.

1866 में पहली बार हुआ था 'डक' शब्द का इस्तेमाल

इस 'डक' शब्द के पीछे इतिहास से जुड़ी बेहद रोचक कहानी है. 17 जुलाई 1866 को प्रिंस ऑफ वेल्स, शून्य पर आउट हो गए थे. इस मैच के बारे में एक अखबार ने 'The prince had retired to the royal pavilion on a duck's egg' शीर्षक के साथ खबर छापी थी. बस इस घटना के बाद से 'डक' शब्द का क्रिकेट में इस्तेमाल होने लगा.

क्या आपको पता है कि डक आउट भी कई तरह के होते हैं. नहीं, तो जानिए.

गोल्डन डक

अगर कोई बल्लेबाज अपनी इनिंग की पहली गेंद का सामना करते हुए आउट हो जाता है तो इसे 'गोल्डन डक' कहते हैं.

डायमंड डक

अगर कोई बल्लेबाज नॉन-स्ट्राइकर एन्ड पर हो और बिना कोई बॉल फेस किए ही आउट हो जाए तो इसे 'डायमंड डक कहते हैं.

रॉयल डक या प्लैटिनम डक

जब कोई बल्लेबाज मैच या इनिंग की पहली ही बॉल पर अपना विकेट गवां दे तो इसे 'रॉयल डक या प्लैटिनम डक' कहा जाता है.

पेअर डक आउट

अगर कोई बल्लेबाज टेस्ट मैच की दोनों इनिंग में शून्य पर आउट हो जाए तो इसे 'पेअर आउट' कहते हैं.

किंग पेअर डक आउट

अगर कोई बल्लेबाज दोनों ही इनिंग में पहली खेली गई बॉल पर आउट होकर, पवेलियन लौट जाए तो यह 'किंग पेअर' कहते हैं.

किस खिलाड़ी के नाम है सबसे ज्यादा डक आउट

कॉर्टनी वाल्श के नाम है टेस्ट क्रिकेट के सबसे ज्यादा 'डक आउट'. 1984 से 2001 तक वेस्टइंडीज के लिए क्रिकेट खेलने वाले अंतरराष्ट्रीय बल्लेबाज कॉर्टनी वाल्श के नाम 43 'डक' रिकॉर्ड है.

बॉम्बे डक : अजित अगरकर

भारतीय क्रिकेट टीम के फास्ट बॉलर अजित अगरकर को 'बॉम्बे डक' के नाम से जाना जाता है. अगरकर को 1999 के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार 7 बार 'डक' का सामना करना पड़ा था, जिस वजह से उन्हें यह मजेदार नाम दिया गया है. 

कालेज में मैं एक लड़की से प्यार करता था. पर उसने दूसरे लड़के से शादी कर ली. मैं क्या करूं.

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवक हूं. कालेज में मैं एक लड़की से प्यार करता था. लगता था कि वह भी हमारे रिश्ते को ले कर गंभीर है. पर कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही उस ने अपने घर वालों की पसंद के लड़के से शादी कर ली. उस की बेवफाई से मैं पूरी तरह टूट गया. बहुत चाहता हूं कि उस की यादों को दिल से निकाल दूं पर ऐसा हो नहीं पा रहा. जब भी उस की याद आती है मेरा किसी काम में दिल नहीं लगता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

जब किसी से प्यार करते हैं, तो उस की यादों को एकाएक भुला पाना बहुत ही मुश्किल होता है. पर जैसेजैसे समय बीतता है यादें भी धूमिल पड़ने लगती हैं. किसी को दिल से निकालना कठिन जरूर है पर नामुमकिन नहीं खासकर उस स्थिति में जब दूसरा शख्स बेवफा हो.

अपने को व्यस्त रखेंगे तो ऐसा करना आसान होगा. फिर कल को आप की भी शादी होगी. तब अतीत की यादें स्वत: विस्मृत हो जाएंगी.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

मेरे पति की सैक्स के प्रति रूचि कम हो गई है. कोई उपाय बताएं, जिससे उनकी दिलचस्पी बढ़ जाए.

सवाल

मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 वर्ष हुए हैं और मेरे पति की सैक्स के प्रति अभी से रूचि कम हो गई है. कोई उपाय बताएं, जिस से उन की सैक्स में दिलचस्पी बढ़ जाए. क्या कोई दवा कारगर होगी?

जवाब

सैक्स करने की इच्छा (कामेच्छा) हर व्यक्ति की अलग अलग होती है. इस का कोई निश्चित मानदंड नहीं है. यह व्यक्ति की इच्छा और क्षमता पर निर्भर करती है.

ऐसी कोई दवा नहीं है, जो व्यक्ति की यौनेच्छा को बढ़ा सके. अलबत्ता इस बात पर गौर करें कि आप के पति को अपनी नौकरी या व्यवसाय को ले कर कोई परेशानी तो नहीं है या फिर औफिस में काम का बोझ ज्यादा तो नहीं, क्योंकि कई बार ऐसी किसी परेशानी के कारण भी व्यक्ति का सैक्स करने को मन नहीं करता. थकान की वजह से नींद जल्दी आ जाती है. सैक्स के लिए प्रवृत्त होने के लिए व्यक्ति का तन और मन दोनों का स्वस्थ और सक्रिय होना आवश्यक होता है.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

सरकार बदलने के साथ ही बदल गयी फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की कहानी

देश की सरकार बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा किस तरह बदलता है, इसका अहसास पिछले दो सालों से प्रदर्शित हो रही फिल्मों से लगाया जा सकता है. लगभग हर दूसरा फिल्मकार अपनी फिल्म में देशप्रेम अथवा उन कुछ मुद्दों को अपनी फिल्म का हिस्सा बना रहा है, जिनकी चर्चा हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं. फिर चाहे वह नारी उत्थान हो, बेटी बचाओ हो या स्वच्छता अभियान हो या फिर हाल ही में उठा शिक्षा का मुद्दा. इतना ही नहीं एक फिल्मकार ने तो सरकारें बदलने के साथ ही अपनी फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की कहानी तक बदल डाली और यह एक कड़वा सच है.

‘उड़ान’ और ‘लुटेरा’ जैसी फिल्मों के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावानी ने 2011 में सिस्टम के खिलाफ लड़ने वाले व सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले एक गुस्सैल युवक की कहानी पर फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ का निर्माण शुरू किया था, जिसमें उन्होने अभिनय करने के लिए हर्षवर्धन कपूर को चुना था. मगर बाद में यह फिल्म नहीं बनी. पर 2016 के अंतिम माह में इसकी शूटिंग शुरू हुई और अब यह फिल्म आधे से ज्यादा बन भी चुकी है, पर 2011 में इस फिल्म की जो कहानी थी, वह अब नहीं रही.

वास्तव में इस सच से सबसे पहले परदा पिछले दिनों ‘‘सरिता’’ पत्रिका से खास बातचीत करते हुए खुद हर्षवर्धन कपूर ने ही उठाया था. हषवर्धन कपूर ने उस वक्त कहा था कि उन्होने खुद ‘भावेश जोशी’ करने से मना किया था. ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए हर्षवर्धन कपूर ने कहा था ‘‘मैं अपना अभिनय करियर फिल्म ‘भावेश जोशी’ से शुरू करने वाला था. मेरी पहली बातचीत विक्रमादित्य मोटावानी के साथ फिल्म ‘भावेश जोशी’ के लिए हुई थी. उस वक्त इस फिल्म की पटकथा कांग्रेस सरकार की पृष्ठभूमि में लिखी गयी थी थी, क्योकि उस वक्त केंद्र और महाराष्ट् में कांग्रेस की सरकार थी और उस वक्त मैं 21 साल का था और कहानी 26 से 28 साल की उम्र के युवक की थी, तो मुझे लगा कि मैं बहुत युवा हूं, इसलिए नहीं वो फिल्म मैंने नहीं की.’’

मगर हर्षवर्धन कपूर के इस बयान के विपरीत फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावानी ने इस संबंध में ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए कहा ‘‘जी हां ! हमने हर्षवर्धन कपूर का ऑडीशन लिया था, पर उस वक्त वह परिपक्व नहीं थे. यानि कि वह उस वक्त किरदार में फिट नहीं बैठे. मैंने उससे कहा कि, ‘तुम अभी पूरी तरह से तैयार नही हो, पहले तैयार हो जाओ.’ इस बीच उसने फिल्म ‘मिर्जिया’ कर ली, जिसमें उसने जबरदस्त परफार्मेस दी. जब हमने दोबारा ‘भावेश जोशी’ शुरू की, तो हमने हर्षवर्धन को ही याद किया. वैसे अब उनमें मैच्योरिटी आ गयी है. अब वे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.’’

लेकिन अब ‘‘भावेश जोशी’’ से जुड़ने की चर्चा करते हुए हर्षवर्धन कपूर कहते हैं ‘‘पहले फिल्म की पटकथा में कांग्रेस शासन का मसला था और अब भारतीय जनता पार्टी का मसला है, तो कुछ बदलाव किया गया है मगर समस्याएं तो होनी हैं. कांग्रेस के शासन में अलग समस्याएं थी, अब भाजपा के शासन में अलग समस्याएं हैं. फिल्म में जो कुछ है, उस पर मैं अभी विस्तार से बात नहीं कर सकता हूं. पर यह फिल्म एक युवक और उसके यकीन की कहानी है. वह समाज में बदलाव के लिए एक लड़ाई लड़ता है. फिल्म ‘भावेश जोशी’ इस बारे में भी है कि शहरी युवा पीढ़ी किस तरह की एक बंदिश वाली जिंदगी जीती है. उसकी आउटडोर गतिविधियों के लिए कोई जगह या साधन नहीं है. फिल्म ‘भावेश जोशी’ पूरी तरह से मुंबई के बारे में है. इसकी पटकथा मुझे बहुत पसंद आयी. मेरा दावा है कि अब तक आपने इस तरह की फिल्म देखी नहीं होगी. यह बहुत रिलेवेन्ट कहानी है.’’

सरकार बदलने के साथ ही फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की कहानी में बदलाव की बात स्वीकार करते हुए विक्रमादित्य मोटावानी ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा ‘‘सरकारों के बदलने के साथ ही माहौल भी बदल गया. जो मुद्दे थे, वो मुद्दे सरकार बदलने के साथ अतीत के पन्ने हो गए थे, तो हमें अपनी फिल्म को वर्तमान व ताजी बनाए रखने के लिए पटकथा बदलनी पड़ी. 2011 में मैने पहली बार ‘भावेश जोशी’ की पटकथा लिखी थी. उस वक्त हमारी फिल्म में जमीन पर जबरन कब्जे, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे थे, यानि कि उस वक्त मेरी फिल्म का विषय बहुत अलग था. उस वक्त आम लोगों की सोच भी अलग थी. उन दिनों आम लोगों में अलग तरह का गुस्सा था. लेकिन सरकारें बदलने के बाद ऐसा लग रहा था कि वह सारे मुद्दे पुरानी पृष्ठभूमि में चले गए. अब आम लोगों के गुस्से की वजह बदल गयी. फिर 2015 में मैं, अनुराग कश्यप आदि ने बैठकर निर्णय लिया कि इस फिल्म को कुछ समय के लिए बंद कर देते हैं. हमें लगा कि जो मुद्दे अब अतीत हो गए हैं, जो मुद्दे आउटडेटेड हो गए हैं, उनका हम कोई हल नहीं ला सकते, तो ऐसे मुद्दों पर फिल्म बनाने का क्या औचित्य रहा.

हम नहीं चाहते थे कि फिल्म देखते समय दर्शक सोचे कि यह कैसा फिल्मकार है, पांच साल पहले की बात कर रहा है. 2016 में हमें नई आईडिया आया, हमनें उसे अब इस फिल्म का हिस्सा बनाकर फिल्म की है. आधे से ज्यादा शूटिंग भी हम कर चुके हैं. कहानी के स्तर पर अब यह एकदम नई फिल्म होगी, बस सोच व स्क्रिप्ट के आधार पर फिल्म वही है. देखिए, इंसान का गुस्सा ही है. एक परिस्थिति में इंसान की जो प्रतिक्रिया होगी, वह तो नहीं बदलने वाली. आम इंसान को 2011 में भी गुस्सा आता था और आज भी आता है, पर अब गुस्से की वजह बदल गयी हैं.’’

पर अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ की कहानी मुंबई के बारे में है और हाल ही में मुंबई महानगर पालिका के चुनाव में हालात बदले हैं, इन बदले हुए राजनीतिक समीकरण से माहौल बदलेगा, तो अब इसका असर फिल्म ‘‘भावेश जोशी’’ पर क्या होगा?

कृषि जगत से जुड़े मार्च के जरूरी काम

मस्ती और धूमधाम से भरपूर त्योहार होली के रंगों से सराबोर मार्च का महीना खेती के लिहाज से काफी खास होता है. किसान होली के नशे में चूर हो कर अपने खेती के जरूरी कामों को नजरअंदाज नहीं कर सकते. हकीकत तो यह है कि होली के सुरूर और जोश से किसानों के काम करने की कूवत में काफी इजाफा हो जाता है.

इसी महीने रबी की तमाम खास फसलें पक रही होती हैं, तो दूसरी ओर जायद मौसम की तमाम फसलों की बोआई का सिलसिला भी चालू हो जाता है.

एक ओर गेहूं की फसल में दाने बनने लगते हैं, तो दूसरी ओर गन्ना कटाई के लिए तैयार हो जाता है. खेती की हरीभरी गतिविधियां किसानों को निहाल किए रहती हैं.

आइए डालते हैं एक तीखी सी नजर मार्च महीने के दौरान किए जाने वाले खेती के खासखास कामों पर:

– बात मीठे से शुरू करें तो लहलहाते हुए गन्ने नजर आने लगते हैं. पिछली फसल के गन्ने कटाई के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके होते हैं, लिहाजा सहूलियत के मुताबिक यह काम निबटाएं.

– गन्ने की नई फसल की बोआई का सिलसिला भी मार्च में ही शुरू हो जाता है, लिहाजा इस काम को वरीयता दे कर निबटाना चाहिए. गन्ने की बोआई के लिए 3 आंखों वाले गन्ने के टुकड़ों को इस्तेमाल करें.

– बोआई करने से पहले गन्ने के टुकड़ों को उपचारित करना न भूलें.

– गन्ना बोने के लिए शुगरकेन प्लांटर का इस्तेमाल करना बेहतर रहेगा. इस के जरीए बोआई करने से बोआई का काम बेहद करीने से और बराबरी से होगा.

– खेत में गन्ना बोने से पहले अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद जरूरत के मुताबिक अच्छी तरह मिलाएं. खेत में खाद मिलाने से पहले तमाम तरह के खरपतवार निकालना न भूलें.

किसान चाहें तो मरजी के मुताबिक गन्ने के 2 कूंड़ों के बीच लोबिया, मूंग या उड़द बो सकते हैं. चारे के लिहाजा से बोया जाने वाला मक्का भी 2 कूंड़ों के बीच लगाया जा सकता है. इस तरह गन्ने के साथ अतिरिक्त फसलें बो कर किसान ज्यादा फायदा उठा सकते हैं.

– इस महीने के दौरान गेहूं की बालियों में दूध तैयार होने लगता है और साथ ही दाने बनने शुरू हो जाते हैं, लिहाजा फसल का खासतौर पर खयाल रखना चाहिए.

– गेहूं की बालियों में दूध बनने के दौरान पौधों को पानी की ज्यादा दरकार होती है, लिहाजा खेत में नमी कायम रखना जरूरी है. ऐसे में खेतों की सिंचाई का खास खयाल रखें.

– मार्च में अकसर तेज हवाओं और अंधड़ों का दौर चलता रहता है. यह दौर दिन के वक्त ज्यादा चलता है. ऐसे आलम में सिंचाई करना ठीक नहीं रहता, लिहाजा गेहूं के खेतों की सिंचाई का काम रात के वक्त निबटाएं.

– दलहनी फसल उड़द की बोआई का काम पहली से 15 मार्च के बीच निबटाना सही रहेगा. बोने से पहले उड़द के बीजों को राइजोबियम कल्चर या कार्बंडाजिम से उपचारित करें. बोआई के लिए 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. उड़द की बोआई लाइनों में करीब 25 सेंटीमीटर का अंतर रखते हुए करें.

– दलहनी फसल मूंग की बोआई का इरादा हो, तो इस काम को 15 मार्च के बाद कर सकते हैं. आमतौर पर मूंग की बोआई का काम 15 मार्च से 15 अप्रैल के दौरान निबटाना मुनासिब होता?है. मूंग की बोआई के लिए भी 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई करने से पहले बीजों को उपचारित करना न भूलें. बोआई लाइनों में करें और लाइनों के बीच का फासला 25 सेंटीमीटर रखें.

– मार्च में सरसों की फसल पक कर तैयार हो चुकी होती है. जब सरसों की 75 फीसदी फलियां पक कर सुनहरेपीले रंग की हो जाएं, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए.

– पिछले महीने बोई गई सूरजमुखी के खेतों पर नजर डालें. यदि खेतों में नमी कम दिखाई दे, तो जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें. यदि खेत में पौधे ज्यादा घने दिखाई दें, तो अतिरिक्त पौधे उखाड़ कर मवेशियों को खिला दें. आमतौर पर 2 पौधों के बीच 2 फुट का फासला रखना सही रहता है.

– मवेशियों को चारे की दरकार हमेशा रहती है, लिहाजा उस का बंदोबस्त करना भी निहायत जरूरी है. चारे के लिहाज से मार्च में ज्वार, बाजरा व सूडान घास बोई जा सकती है.

– अपने प्याज व लहसुन के खेतों का मुआयना करें. उन की पनपती फसलों को देखभाल की काफी दरकार रहती है. इस बीच खेतों में खरपतवार काफी हो गए होंगे, लिहाजा खेतों की बाकायदा निराईगुड़ाई करें. कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर सही मात्रा में यूरिया का छिड़काव करें. यूरिया की खुराक मिलने से फसल काफी बेहतर हो जाती है.

– अपने आलू के खेतों का मुआयना करें. यदि फसल पूरी तरह तैयार हो चुकी हो, तो जल्दी से जल्दी उस की खुदाई का काम खत्म करें. खुदाई करने के बाद खेतों को आगामी फसल के लिए तैयार करें.

– मार्च का महीना गुणकारी हलदी और अदरक की बोआई के लिए भी मुफीद होता है. सब्जी और मसाले से जुड़ी अदरक और मसालों की दुनिया की रंगत हलदी की फसलें बो कर किसान काफी कमाई कर सकते हैं.

– बोआई करने के लिए हलदी व अदरक की एकदम स्वस्थ गांठों का इस्तेमाल करें. इन की बोआई 50×25 सेंटीमीटर के फासले पर करें.

– पिछले महीने बोई गई भिंडी, राजमा व लोबिया के खेतों का जायजा लें. अगर खरपतवार दिखाई दें, तो खेतों की निराई गुड़ाई करें. निराई गुड़ाई के बाद खेतों की सिंचाई कर के टाप ड्रेसिंग के रूप में यूरिया डालें.

– ज्यादातर तो बैगन की रोपाई का काम फरवरी में कर लिया जाता है, मगर अभी भी बैगन लगाने का इरादा हो तो मार्च में भी इस की रोपाई कर सकते हैं. रोपाई के बाद हलकी सिंचाई करना न भूलें, इस से पौधे सही तरीके से लग जाते हैं.

– पिछले महीने लगाए गए बैगन के पौधों की निराईगुड़ाई करें व तमाम खरपतवार निकाल दें. इस के बाद जरूरी लगे तो हलकी सिंचाई करें.

– सब्जी वाली मीठी हरी मटर का दौर जाने के बाद मार्च में दाने वाली मटर की फसल तैयार हो जाती है. मटर की फलियां सूख कर पीली लगने लगें, तो कटाई का काम निबटाएं. मटर के दानों को गहाई के बाद इतना सुखाएं कि उन में सिर्फ 8 फीसदी नमी बाकी रहे.

– अपने आम के बागों का मुआयना करें, क्योंकि मार्च के दौरान हापर कीट व फफूंद से होने वाले रोगों का खतरा बढ़ जाता है. बीमारियों या हापर कीट का अंदेशा लगे, तो कृषि विज्ञान केंद्र के माहिरों से सलाह ले कर दवाओं का इस्तेमाल करें.

– अपने अमरूद के बाग का भी जायजा लें. इस दौरान अमरूद के पेड़ों में तना बेधक कीट का खतरा ज्यादा होता है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिक से पूछ कर माकूल दवा का इस्तेमाल करें.

– अंगूर के गुच्छों को फूल खिलने की अवस्था में जिब्रेलिक अम्ल के 50 पीपीएम वाले घोल में पेड़ में लगी हालत में ही थोड़ी देर के लिए डुबोएं. ऐसा करने से अंगूर बिल्कुल सुरक्षित रहते हैं.

– अंगूर की फसल को कीटों व रोगों से बचाने के लिए कृषि वैज्ञानिक की सलाह ले कर दवाओं का इस्तेमाल करें.

– इस महीने पपीते के पौधे तैयार करने के लिए नर्सरी में बीज बो सकते?हैं. यदि पहले बोए गए बीजों से पौधे तैयार हो चुके हों, तो उन की रोपाई करें.

– अपने अमरूद, आम व पपीता वगैरह के पुराने बागों की सही तरीके से सफाई करें. बीच-बीच में फालतू पौधे निकल आए हों, तो उन्हें जड़ से निकाल कर नष्ट कर दें.

– अगर फूलों की खेती में दिलचस्पी है, तो मार्च में रजनीगंधा और गुलदाउदी की रोपाई करें. रोपाई के बाद पौधों की हलकी सिंचाई जरूर करें.

– जाती ठंड व आती गरमी के इस मार्च महीने में गाय भैंसों को अकसर अफरा की तकलीफ हो जाती है, लिहाजा उन्हें फूली हुई बरसीम खाने को न दें.

– पशुओं के रहने की जगह पर ध्यान दें और जरूरत के मुताबिक उम्दा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें ताकि हानिकारक कीड़ों से बचाव हो सके.

– होली में अकसर बच्चे मवेशियों को भी रंगों व कीचड़ वगैरह से पोत कर सराबोर कर देते हैं, लिहाजा उन की सफाई का खास खयाल रखें. भैंसों व उन के बच्चों के फालतू बाल नाई बुला कर कटवा दें. बिलकुल छोटे बच्चों के बाल न काटें, क्योंकि उन्हें कैंची या ब्लेड लगने से नुकसान हो सकता है.

– गाय भैंसें अगर हीट में आएं तो बगैर वक्त गवांए उन्हें समय रहते अस्पताल ले जा कर या डाक्टर बुला कर गाभिन कराएं.

– मवेशी डाक्टर से पूछ कर अपने तमाम मवेशियों (गाय, भैंस, भेड़, बकरी वगैरह) को पेट के कीड़े मारने वाली दवा जरूर खिलाएं.

– मुर्गियां नाजुक होती हैं, लिहाजा उन की देखभाल ढंग से करें. उन के दरबों की सफाई का पूरा खयाल रखें.

 

विराट कोहली : वर्ष के सर्वश्रेष्ठ कप्तान

भारतीय टेस्ट कप्तान विराट कोहली को 10वें सालाना ईएसपीएन क्रिकइंफो पुरस्कारों में वर्ष का सर्वश्रेष्ठ कप्तान चुना गया. कोहली ने भारतीय टीम की अगुवाई करते हुए पिछले साल 12 टेस्ट में से नौ में जीत दिलाई.

इंग्लैंड के बेन स्टोक्स को केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 198 गेंद में 258 रन की शानदार पारी के लिए टेस्ट में साल का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी प्रदर्शन करने का पुरस्कार जीता. स्टोक्स के साथी स्टुअर्ट ब्रॉड के तीसरे टेस्ट में 17 रन देकर 6 विकेट चटकाने वाले प्रदर्शन ने इंग्लैंड के लिए सीरीज में जीत सुनिश्चित की जिसकी बदौलत उन्हें लगातार दूसरे साल भी सर्वश्रेष्ठ टेस्ट गेंदबाज चुना गया.

पूर्व महान क्रिकेटरों, ईएसपीएन क्रिकइंफो के वरिष्ठ संपादकों, लेखकों और वैश्विक संवाददाताओं की स्वंतत्र ज्यूरी ने विजेताओं का चयन किया जिसमें इयान चैपल, माहेला जयवर्धने, रमीज राजा, ईसा गुहा, सम्बित बाल, कर्टनी वॉल्श, मार्क बुचर और साइमन टफेल शामिल हैं.

सेंचुरियन में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्विंटन डि कॉक की 178 रन की पारी किसी दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत स्कोर है और इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ वनडे बल्लेबाजी प्रदर्शन चुना गया.

रहस्यमयी स्पिनर सुनील नारायण को वनडे में साल का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज चुना गया, उन्होंने गुयाना में ट्राई सीरीज में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 27 रन देकर छह विकेट चटकाए थे.

कालोर्स ब्रैथवेट टी-20 में साल के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज चुने गए, उन्होंने कोलकाता में विश्व टी-20 फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाद 34 रन बनाए जिसमें उन्होंने अंतिम ओवर में लगातार चार चौके जड़कर वेस्टइंडीज को मैच में जीत दिलाई.

बांग्लादेश के बाएं हाथ के तेज गेंदबाज मुस्तफिजुर रहमान को टी-20 में साल का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी प्रदर्शन करने वाला आंका गया, उन्होंने कोलकाता में न्यूजीलैंड के खिलाफ विश्व टी-20 के दौरान 22 रन देकर पांच विकेट प्राप्त किए.

बांग्लादेश की राष्ट्रीय टीम के सबसे चमकदार युवा स्टार मेहदी हसन मिराज को इंग्लैंड के खिलाफ दो टेस्ट मैचों में 19 विकेट झटकने के लिये साल का पदार्पण करने वाला सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया.

इस साल ईएसपीएन क्रिकइंफो ने सभी तीनों अंतरराष्ट्रीय प्रारूपों में महिला क्रिकेट के लिए भी पुरस्कार शुरू किए. वेस्टइंडीज की हेयले विलियम्स को तीन बार की चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विश्व टी-20 फाइनल में 45 गेंद में 66 रन की मैच विजेता पारी के लिए साल का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी प्रदर्शन करने का पुरस्कार दिया गया.

न्यूजीलैंड के प्रतिभाशाली ऑफ स्पिनर लेघ कास्पेरेक साल की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज चुनी गईं. उन्होंने टीमों के विश्व टी-20 ग्रुप मैचों में 13 रन देकर तीन विकेट प्राप्त किये जिससे ऑस्ट्रेलियाई टीम हार गई.

एयरटेल अब नहीं लेगा रोमिंग के दौरान शुल्क

खबर है कि भारती एयरटेल भी अपने ग्राहकों के लिए खुशखबरी लेकर आया है. भारती एयरटेल ने अपने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग शुल्क में बदलाव किया है. एयरटेल अब देशभर में रोमिंग के दौरान इनकमिंग कॉल के लिए अपने ग्राहकों से कोई शुल्क नहीं लेगा. इसके साथ ही, कंपनी रोमिंग के दौरान आउटगोइंग कॉल के लिए प्रीमियम चार्ज भी नहीं लगाएगी. कम्पनी की खबर के अनुसार 1 अप्रैल 2017 से अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग पर ग्राहकों को भारी-भरकम बिल नहीं चुकाना होगा.

एयरटेल कम्पनी की रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग शुल्क पर 3 रुपये प्रति मिनट की दर के साथ अब शुल्क में 90 प्रतिशत तक की कटौती कर दी गई है. वहीं मशहूर रोमिंग डेस्टिनेशन पर प्रति एमबी के लिए 3 रुपये चुकाने होंगे. डेटा शुल्क में 99 प्रतिशत तक की कटौती की गई है.

कंपनी ने रोमिंग शुल्क में बदलाव करते हुए 'डेथ ऑफ नेशनल रोमिंग' का नाम दिया है. कम्पनी के नए रोमिंग योजना के तहत रोमिंग के दौरान इनकमिंग कॉल और एसएमएस सुविधा पूरी तरह से मुफ्त होगी. एयरटेल ने दावा किया है कि देश से बाहर रोमिंग में अब लोगों को बड़े बिल का झटका नहीं लगेगा. क्योंकि अब कंपनी रोमिंग पैक ना खरीदने पर भी ग्राहक के बेसिक डे पैक के साथ प्रतिदिन के हिसाब से अपने आप बिल एडजस्ट करना शुरू कर देगी.

टेलीकॉम कंपनी एयरटेल के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग पैक किस तरह काम करेगा. कंपनी के अनुसार, अगर कोई ग्राहक बिना किसी रोमिंग पैक के अमेरिका की यात्रा कर रहा है और वह अमेरिका के लिए बने एक दिन के 649 रुपये के बिल पर पहुंचता है तो वह ऑटोमेटिकली एक दिन के पैक पर स्विच हो जाएगा. इस पैक के तहत यूजर को मुफ्त इनकमिंग कॉल और एसएमएस, भारत और स्थानीय आउटगोइंग कॉल के लिए 100 मिनट, 300 एमबी डेटा और दूसरे फायदे मिलेंगे. इसी तरह, सिंगापुर का यात्रा कर रहे एयरटेल ग्राहक 499 रुपये के बिल तक पहुंचने पर एक दिन के पैक पर स्विच हो जाएंगे.

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