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इक्विटी लिंक्ड स्कीम प्रभावी बचत योजना

इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम यानी ईएलएसएस ऐसी प्रभावी बचत योजना है जो इनकम टैक्स में छूट के साथसाथ अच्छा रिटर्न देने में भी सहायक हो सकती है. ये एक प्रकार से म्यूचुअल फंड हैं जो विविधकृत इक्विटी पर आधारित होते हैं. इन में किया गया निवेश शेयर बाजार में सूचीबद्घ कुछ निश्चित कंपनियों के शेयरों आदि में किया जाता है जिस से उन कंपनियों के शेयरों के मूल्यों में होने वाली वृद्घि का लाभ मिल जाता है. जो व्यक्ति सीधे शेयर बाजार में निवेश करने की क्षमता व विशेषज्ञता नहीं रखता है उस के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है.

ईएलएसएस में निवेश सिप यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान द्वारा भी किया जा सकता है और एकमुश्त भी. जो व्यक्ति अपना कर बचाने के लिए वित्तीय वर्ष में एकमुश्त राशि का विनियोग करने में समर्थ नहीं हो, उस के लिए सिप बहुत उपयोगी है. इस से कर बचत के लिए निवेशित यूनिटों को मूल्यों में उतारचढ़ाव के औसत का लाभ मिल जाता है. साथ ही, व्यक्ति में नियमित व अनुशासित तरीके से बचत की प्रवृत्ति का विकास होता है. इस तरह से उसे निवेश के लिए एकमुश्त राशि का प्रबंध करने की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है.

इस में कर बचत की अन्य योजनाओं जैसे पीपीएफ, एफडी, पोस्टऔफिस की सेविंग स्कीमों आदि की तुलना में लौकइन पीरियड भी कम होता है. ईएलएसएस में लौकइन पीरियड 3 वर्ष होता है जबकि अन्य योजनाओं में 5 वर्ष या इस से भी अधिक अवधि तक राशि निकालने की सुविधा नहीं होती. ईएलएसएस में 3 वर्ष की अवधि के बाद आवश्यकतानुसार राशि को निकाल कर आगामी वर्षों में कर बचत के लिए दोबारा भी निवेश किया जा सकता है और कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

अच्छे रिटर्न का प्रभावी माध्यम

यह योजना उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जिन्होंने अपनी नईनई नौकरी शुरू की है और उन की आय कर योग्य है. इस से एक तरफ उन में नियमित बचत की आदत बनती है वहीं वे मध्यम अवधि के वित्तीय लक्ष्यों जैसे कार की खरीद, बच्चों की शिक्षा, नए फोन की खरीद, घर के लिए टिकाऊ उपभोक्ता सामानों की खरीद आदि को भी पूरा कर सकते हैं.

ये फंड मोटे तौर पर 2 प्रकार के होते हैं. पहली श्रेणी में वे फंड शामिल होते हैं जिन में लाभांश का समयसमय पर भुगतान किया जाता है. यह लाभांश कर मुक्त होता है. जो व्यक्ति इन फंडों में कर बचत के साथसाथ नियमित आय भी चाहती हैं उन के लिए यह विकल्प उपयोगी होता है. दूसरी श्रेणी में ग्रोथ फंड होते हैं जिन में लाभांश का भुगतान नहीं किया जाता पर राशि मूल निवेश में जोड़ दी जाती है. इन में पूंजी वृद्घि का लाभ मिलता है.

ईएलएसएस सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए उपयोगी है. कई बार यह धारणा होती है कि 60 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए यह योजना उपयोगी नहीं होती है लेकिन यह धारणा गलत है. यदि कोई व्यक्ति

60 वर्ष से ऊपर है और उस की आय या पैंशन आदि सब मिला कर कर योग्य है तो उन के लिए भी यह उपयोगी है. इस में जोखिम अपेक्षाकृत कम है लेकिन रिटर्न काफी अच्छा है. बहुत सी ईएलएसएस ने विगत वर्षों में काफी अच्छा रिटर्न दिया है. उदाहरण के लिए, ऐक्सिस लौंग टर्म इक्विटी फंड ने विगत 3वर्षों में 24.55 प्रतिशत वार्षिक रिटर्न दिया है.

इसी प्रकार, एसबीआई मैग्नम टैक्स गेन रैग्युलर ने पिछले 3 वर्षों में 14.23 प्रतिशत तथा टाटा इंडिया टैक्स सेविंग फंड रैग्युलर ने 3 वर्षों में 17.35 प्रतिशत का रिटर्न दिया है. ये रिटर्न बैंक एफडी व अन्य परंपरागत बचत साधनों के जहां 8-9 प्रतिशत ब्याज मिलता है, की तुलना में काफी आकर्षक हैं. यद्यपि इन में कुछ हद तक जोखिम भी अधिक है.

ईएलएसएस अन्य म्यूचुअल फंडों की तरह बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं. इसलिए इन में निवेश करते समय सावधानी की जरूरत होती है. निवेश से पहले कंपनी के औफर डौक्यूमैंट को पढ़ना और कंपनी के विगत ट्रैक रिकौर्ड को देखना चाहिए. साथ ही, किसी अच्छे निवेश सलाहकार से सलाह ले कर निवेश करना चाहिए.

ईएलएसएस में प्रतिमाह न्यूनतम 1 हजार रुपए का निवेश किया जा सकता है तथा एकमुश्त कम से कम5 हजार रुपए का. इस योजना में निवेशित राशि आय कर की धारा 80 सी के अंतर्गत कुल 1.50 लाख रुपए तक के निवेश की सीमा में आती है.

इस प्रकार, ईएलएसएस कर बचत के साथसाथ अच्छा रिटर्न देने वाला एक प्रभावी माध्यम है. यदि नियमित रूप से इस में निवेश किया जाए तो लंबी अवधि में एक अच्छी राशि प्राप्त हो सकती है, साथ ही प्रतिवर्ष आय कर में भी अच्छी छूट प्राप्त हो सकती है.       

कोहली का विराट कद

हर क्रिकेट प्रेमी की जबान पर इन दिनों भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी विराट कोहली का ही नाम है. ऐसा इसलिए क्योंकि विराट कोहली आएदिन नया इतिहास रच रहे हैं. वे जीत की बुलेट ट्रेन पर सवार हैं.

विराट की सब से बड़ी खासीयत यह है कि वे क्रिकेट के हर फौर्मैट में फिट हैं फिर चाहे वह टेस्ट मैच हो या टी-20. जब कप्तानी की बारी आती है तो कप्तानी की भूमिका भी बखूबी निभाते हैं. टेस्ट क्रिकेट में वे धैर्य दिखाते हैं तो एकदिवसीय और टी-20 में तेजी से रन बनाते हैं.

एक समय था जब किसी खिलाड़ी के लिए सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर ही आदर्श हुआ करते थे पर अब इनकी जगह विराट ले रहे हैं.

विराट कोहली जिस तेजी से रन बटोर रहे हैं उस से यही लगता है कि एक दिन वे सचिन के शतकों की संख्या को पार कर देंगे. उन की गिनती दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में होती है. 49 टेस्ट में उन्होंने 46.11के औसत से 3,643 रन बनाए. इन में 13 शतक भी शामिल हैं. वहीं 171 एकदिवसीय मैचों में उन्होंने7,212 रन बनाए जिन में 25 शतक बना चुके हैं.

वैस्टइंडीज टीम के खिलाफ टेस्ट मैच में पदार्पण करने वाले विराट ने उस टेस्ट मैच में पहली पारी में मात्र 4रन बनाए थे वहीं दूसरी पारी में भी कुछ नहीं कर पाए थे. उस समय टीम इंडिया को मध्यक्रम के बल्लेबाजों की तलाश थी. तब विराट कोहली और सुरेश रैना को टेस्ट क्रिकेट में खेलने का मौका दिया गया था. उस के बाद विराट ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. विराट को अभी काफी लंबा सफर करना है और वे जिस तेजी से रन बना रहे हैं उस से तो यही लगता है कि एक दिन क्रिकेट के रिकौर्ड्स की हर लिस्ट में सब से ऊपर उन्हीं का नाम होगा.

आम लोगों से दूर गोल्फ

हाल ही में आई फिल्म ‘फ्रीकी अली’ हालांकि बौक्स औफिस पर धराशाई हो गई, लेकिन यह फिल्म इतना तो बता ही गई कि गोल्फ रइसों का खेल है और यदि किसी के अंदर इस खेल के प्रति रुझान है तो उसे इसका खर्च भी खुद ही उठाना होगा.

इसी वर्ष रियो ओलिंपिक में गोल्फ को शामिल किया गया तब बेंगलुरु की18 वर्षीय अदिति अशोक ने शानदार खेल का प्रदर्शन किया था. तभी लग गया था कि गोल्फ में एक और युवा खिलाड़ी आगे अपने जौहर दिखाएगी. अदिति ने बहुत ज्यादा समय नहीं लिया और हाल ही में हीरो महिला इंडियन ओपन गोल्फ टूर्नामैंट का खिताब अपने नाम कर लिया.

भारत में गोल्फ यूरोप की तरह लोकप्रिय नहीं है. यह महंगा खेल है जो सब के बूते की बात नहीं है. फिर यहां सुविधाओं की कमी है. गोल्फ कोर्स बनाने में बहुत खर्च करना पड़ता है.

खर्चीला होने के कारण भारतीय युवाओं का रुझान गोल्फ की तरफ कम है इसलिए भारतीय गोल्फ खिलाडि़यों का नाम जेहन में नहीं आता. भारतीय गोल्फ खिलाड़ियों में अर्निबन लाहिरी, गगनजीत भुल्लर, चिक्करंगप्पा और राशिद खान जैसे खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई है.

जहां तक महिला गोल्फ खिलाडि़यों की बात है तो भारत में महिला गोल्फ की शुरुआत 10 वर्ष पहले दिल्ली में हुई थी लेकिन इन 10 वर्षों में भारत को अदिति अशोक को छोड़ कर कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं मिला है जो गोल्फ को अंतर्राष्ट्रीय मंच में पहचान दिला सके.

यहां गोल्फ की सुविधाओं के बारे में बात करना ही बेमानी है क्योंकि इस देश में जहां हौकी, फुटबौल, तीरंदाजी, मुक्केबाजी, रैसलिंग और कबड्डी आदि खेलों में किसी प्रकार की सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जाती हैं तो गोल्फ जैसे खर्चीले खेल में भला शासनप्रशासन कहां माथा खपाएंगे. हां, गोल्फ जिस दिन दुधारु गाय बन जाएगी उस दिन इस का भी कायाकल्प हो सकता है पर इस की उम्मीद फिलहाल दिख नहीं रही है.

खास लोगों का यह खेल आम लोगों का खेल बन पाएगा ऐसा लगता नहीं. फिर भी अदिति अशोक ने एक उम्मीद जगाई है तो वे वाकई बधाई की पात्र हैं.

तलाक को तलाक

जब पत्नी से प्यार न रह जाए और उस से छुटकारा पाना हो तो तलाक के अजीबोगरीब कारण भी अदालतों तक पहुंच जाते हैं. दिल्ली के एक मामले में पति ने तलाक की दुहाई देते हुए कहा कि पत्नी सुबहसुबह चाय की मांग करती है और जिद करती है वह उसे बिस्तर पर चाय ला कर दे. पति ने यह भी कहा कि गर्भावस्था के दौरान पत्नी ने उस से संबंध बनाने से इनकार कर दिया और ये दोनों बातें क्रूरता की श्रेणी में आती हैं, इसलिए उसे तलाक दिलाया जाए. न निचली अदालत ने और न ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पति को पत्नी से छुटकारा दिलाया क्योंकि अदालत की राय में ये दोनों बातें कू्ररता नहीं हैं. पति बेचारा विवाहित रह गया.

अदालती फैसले और समाचार से तो यह पता नहीं चलता कि वह अपनी पत्नी के पास लौट गया होगा पर इतना अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो पति छोटीछोटी बातों पर पत्नी पर मुकदमा करे वह पत्नी के साथ एक छत के नीचे नहीं रहेगा. कू्ररता असल में मामले को अदालत में ले तो जाती है पर भारतीय कानून कहता है कि तलाक गलती करने वाले को नहीं मिलेगा, दूसरे पक्ष को मिलेगा. पत्नी चाहती तो शायद वह मामले को अदालत में ले जाने पर तलाक मांग सकती थी हालांकि अब तक ऐसे फैसले न के बराबर हुए हैं. तलाक कानून भारत में ही नहीं और कई देशों में भी जटिल हो गया है. यदि विवाह बाद पतिपत्नी साथ नहीं रहना चाहें, चाहे जो गलत हो, तो कोई सामाजिक, धार्मिक, रस्मी या संसदीय कानून उन्हें फिर एक बिस्तर पर नहीं ले जा सकता. यदि मतभेद गहरे हो जाएं तो ही हार कर दोनों या दोनों में से एक अलग रह कर तलाक मांगता है. हालांकि दूसरा पक्ष अकसर तलाक का विरोध करता है क्योंकि उस के पास विवाहित होने का ठप्पा तो रहता ही है भले दोनों अलगअलग रह रहे हों.

इस तरह के मामलों में अदालतों को मुखर होना चाहिए और जब तक कानून सरल न हो जाए, तलाक की अनुमति देनी चाहिए. औरतों की सुरक्षा के लिए हो सकता है जरूरी हो कि पति को बंधन में बांधे रखा जाए पर यह बंधन बोझ ही रहता है. जब तलाक आसान हो जाएंगे तो तलाकशुदा के साथ विवाह किया जाना भी आम होने लगेगा. मुसलिम पृष्ठभूमि पर बनी ‘सौदागर’ फिल्म में अमिताभ बच्चन पद्मा खन्ना के लिए नूतन को तलाक दे देता है पर जल्द ही नूतन को नया पति मिल भी जाता है जो उस का अमिताभ से ज्यादा ही खयाल रखता है. यह घरघर में हो सकता है.

आरजू

जिंदगी रोज घटती जाए है

आरजू है कि बढ़ती जाए है

बुझ गईं आरजू की कंदीलें

अब तमन्ना भी थकती जाए है

फिर सरेशाम कौन याद आया

दिल में फिर आग लगती जाए है

जलते सीने पे किस ने हाथ रखा

आग पर बर्फ जमती जाए है

उस ने जुल्फें संवार लीं शायद

गर्दिशे वक्त थमता जाए है.

 

– डा. तेजपाल सोढी ‘देव’

 

सासूजी का परहेज

धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभीकभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं. उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’

‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’

‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी.

‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं.

हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’

‘‘अस्पताल ले चलते हैं,’’ हम ने सरल विकल्प चुना. डाक्टर घर आ कर 500-1000 रुपए पीट लेता. हमारी राय से सासूजी सहमत नहीं थीं, फिर भी दिल रखने को तैयार हो गईं. हमारी धर्मपत्नी ने मेकअप किया और नई डिजाइन की साड़ी पहन कर आटोरिकशे में अपनी अम्मा को ले कर चढ़ गईं. पहला अस्पताल सरकारी था. हम आगे बढ़ने लगे तो सासूजी ने कराहते हुए कहा, ‘‘यहीं ले चलो, दर्द बहुत है.’’ हम वहीं उतर गए. अस्पताल बड़ा था. थोड़ी देर म ही काफी मरीज भी आने शुरू हो गए थे. केवल डाक्टर नहीं आए थे. सासूजी लोटपोट हो रही थीं. तब ही एक कमसिन सी लड़की गले में आला लटकाए अपने चैंबर में गई. हमारा क्रमांक 1 पर ही था. सो, हम सासूजी को ले कर अंदर गए. सासूजी को उस ने देखा और बीपी देख कर नाम पूछा.

‘‘सविता.’’

‘‘गुड,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’

‘‘कमर में चोट लगी है और चक्कर आ रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कह कर उस ने उन की कमर पर हाथ से टटोला फिर गंभीर स्वर में उन की बेटी से कहा, ‘‘देखिए, दुर्घटना से सुरक्षा बड़ी चीज है.’’

‘‘मतलब?’’ पत्नी ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे शक है सिर में चोट है, कहीं कोई हैमरेज न हो, इसलिए सीटी स्कैन करवा लें तथा सोनोग्राफी व एक्सरे भी करवा लें. ब्लड, यूरिन स्टूल टैस्ट भी लिख रही हूं. सब फ्री में हो जाएगा. रिपोर्ट ले आएं फिर दवा देंगे.’’

‘‘थैंक्यू डाक्टर,’’ पत्नी ने कहा.

‘‘अरे, जैसी आप की मां वैसी हमारी मम्मी,’’ उस डाक्टरनी ने हंस कर कहा. हमारे दिल में एक मीठा व शरारती सा खयाल आया कि काश, हम बीमार होते तो वह पत्नी को क्या कहती? जैसे आप के पति वैसे हमारे पति. इस कल्पना से ही मन गदगद हो गया.

हम सासूजी को ढो कर इधरउधर ले जाने के पहले एटीएम से रुपए निकलवा कर लाए. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी और एक्सरे, खून सब की जांच करवाई. सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, खून की जांच फ्री थी. सब होतेहोते दोपहर हो गई थी. सासूजी को भूख लग आई थी. खानेपीने में कभी कोई समझौता नहीं करने के परिणामस्वरूप ही वे थोड़ी ओवरवेट भी थीं. उन्होंने नीबू, मसालेदार भेलपूरी, खाने की इच्छा जाहिर की और यदि नहीं मिले तो गरम पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ खाने की फरमाइश की. हम नौकरों की तरह बाजार में मारेमारे घूमते हुए उन के लिए गोभी और आलू के गरमागरम पकौड़े ले आए जो वे हरीमिर्च और टमाटर की चटनी के साथ चटकारे लेले कर खाने लगीं. दर्द कहीं भी चेहरे पर प्रकट नहीं हो रहा था. खाखा कर उन्होंने एक जोरदार डकार ली और हमें आदेश दे कर कहा, ‘‘जाओ, हमारी रिपोर्ट ले आओ.’’

हम जा कर भीड़ में सासूजी की रिपोर्ट ले आए. तब तक वह कमसिन डाक्टर भी आ गई थी. उस ने रिपोर्ट देखी, फिर सासूजी को देखा और कहा, ‘‘सब ठीक है, थोड़ा परहेज करना होगा.’’

‘‘आप को स्टोन की शिकायत है, हाई बीपी भी है, शुगर भी है.’’

‘‘तो क्या खाना है?’’

‘‘आप को पत्तागोभी, पालक, दूध की बनी कोई भी वस्तु, मीठा, मिठाई, नमकीन, भजिए, पकौड़े, तीखी मिर्च वाली वस्तुएं नहीं खानी हैं,’’ डाक्टर ने पूरी लिस्ट थमा दी.

‘‘अरे, फिर मैं खाऊंगी क्या?’’

‘‘देखिए अम्माजी, आप दूध, पालक, पत्तागोभी, टमाटर खाएंगी तो पथरी की तकलीफ होगी. अधिक चटपटे मसालेदार खाने पर हाई ब्लडप्रैशर हो कर ब्रेन हैमरेज का अधिक खतरा है. खट्टी वस्तुएं खाएंगी तो अल्सर की परेशानी होगी. आप को डायबिटीज निकली है, मिठाई और मीठी वस्तुएं खाएंगी तो  कभी भी कुछ भी हो सकता है,’’ डाक्टरनी ने कहा.

‘‘मेरी कमर का दर्द?’’

‘‘देखिए, दर्द तो सैकंडरी चीज है, अभी तो महत्त्वपूर्ण है कि आप का बीपी कंट्रोल हो, शुगर कंट्रोल हो, स्टोन की तकलीफ न हो वरना ब्रेन हैमरेज होने का खतरा है.’’

ब्रेन हैमरेज की बात सुनते ही हमारी पत्नी वहीं साड़ी का पल्लू मुंह में दे कर रोने लगी. मन में आया कि उन्हें क्या समझाऊं? अरी बेगम, अम्मा जिंदा हैं, परहेज करेंगी तो ठीक हो जाएंगी. अभी दुनिया से थोड़ी ही गई हैं. लेकिन कौन दीवार से सिर फोड़े. हम ने ऊपरी मन से पत्नी को सांत्वना दी और कहा, ‘‘दर्द के इलाज से पहले अम्मा से परहेज करवा लेते हैं फिर आ कर बताते हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मैं भी यही चाहती हूं,’’ डाक्टरनी ने कहा, ‘‘सौ बीमारियों का एक इलाज परहेज है. आप इन का परहेज करवाएं और 5 दिनों बाद लाएं. फिर मैं दवाएं लिख दूंगी. अम्माजी, आप चिंता मत करें, जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

हम ने मन ही मन विचार किया, ‘जल्दी ठीक हो जाएंगी या इतना परहेज कर के जल्दी ही मरखप जाएंगी.’ सासूजी को बीमारी और चोट का दुख उतना नहीं था जितना परहेज का था. हम ने फाइल को वहीं जमा किया और लौट आए. धर्मपत्नी भारी दुखी थीं. फ्रिज में चीज, पनीर, चिकन, अंडे, मक्खन जो रखा था उस का क्या होगा? हम अपनी खुशी बिलकुल जाहिर नहीं कर पाए थे. सासूजी का परहेज रात से ही प्रारंभ हो गया था. सादा भोजन, सादा जीवन, उबली सब्जी, थोड़ा सा करेले का सूप, नीम के पत्तों का सलाद, थोड़ी सी छाछ. फ्रिज में रखा सामान खराब न हो जाए, इसलिए मजबूरी में पत्नीजी ने हमें खिलाया. हम मन ही मन बहुत खुश थे कि ‘हे सासूजी, आप की चोट लगने पर मुझे ये सब खाने को मिला. काश, आप हमेशा ही चोटिल होती रहें.’

एक रात लगा कि घर में चोर घुस आए. हम ने हिम्मत की और जैसे ही ड्राइंगरूम की बत्ती जलाई तो देखा सासूजी फकाफक खा रही थीं. हमें देख कर शरमा गईं. तभी पत्नी भी आ गईं. पूरा सामान फ्रिज में से निकाल कर बैडरूम में रख दिया और फ्रिज में ताला लगा दिया. सासूजी की सूरत देखने लायक थी. 8-10 दिनों में सासूजी के कमरे यानी कमर में भी आराम हो गया था. पहले से वे स्वस्थ भी दिखाई देने लगी थीं. हमारी पत्नी ने कहा, ‘‘परहेज करवाते हुए 15 दिन हो गए हैं, अब दवाएं लिखवा लाते हैं.’’ हम क्या विरोध करते? हम फिर उसी सरकारी अस्पताल में गए. अस्पताल के कर्मचारी ने सासूजी से नाम पूछा, उन्होंने बताया, सविता. अपनी फाइल ले कर हम डाक्टरनी के पास गए. वह बिलकुल खाली बैठी थी. हमें आया देख खुश हो कर कह उठी, ‘‘और अम्माजी कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं.’’ कह कर उन्होंने फाइल उन की टेबल पर रखी. डाक्टरनी ने फाइल देखी, रिपोर्ट देखी, ब्लड रिपोर्ट देखी, फिर अम्माजी को ध्यान से देखा.

 सासूजी ने कहा, ‘‘मैं पूरे परहेज से रह रही हूं. लेकिन ऐसी जिंदगी से तो मौत भली, जहां सब खानापीना बंद करना पड़े.’’ डाक्टरनी ने फिर उन के चेहरे को देखा और फाइल देख कर कहा, ‘‘मेरी पर्ची कहां है?’’ हम ने अपने पर्स में से निकाल कर दी. डाक्टरनी ने पर्ची देखी, फिर फाइल देखी और पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘सविता.’’

‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘क्या हो गया?’’ मैं ने आश्चर्य से प्रश्न किया.

‘‘बाई मिस्टेक, आप की सास की फाइल की जगह पिछली बार आप किसी सुनीता की फाइल ले आए थे. उन की फाइल में जो रिपोर्ट देखी थी उसी का परहेज मैं ने बताया था. ओह, सो सौरी, मिस्टर? ‘‘कोई बात नहीं. इस बहाने इन का वजन कम हो गया. ये शेप में आ गईं. थैंक्यू,’’ मैं ने कहा. ‘‘लेकिन डाक्टरजी, मैं तो अब सब खा सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप एकदम भलीचंगी हैं, कोई बीमारी नहीं है,’’ डाक्टरनी ने चहक कर कहा.

उस के यह कहने पर सासूजी खुशी से होहो कर के हंस पड़ीं. दर्द तो रिपोर्ट सुन कर ही गायब हो गया था. हम माथा पकड़े हुए थे कि अब जितने दिनों तक ये रहेंगी रिकौर्डतोड़ बदपरहेजी करेंगी और गैस की बीमारी से हमें परेशान करेंगी. सब खुश थे लेकिन हमें एक चिंता खाए जा रही थी-यह रिपोर्ट जिस सुनीता की थी, जो बीमार थी, अस्पताल की एक गलती से बिना परहेज किए कहीं दुनिया से कूच न कर गई हों. हम किस से अपना दर्द कहते? सासूजी तो पूरे 10 दिनों के खाने का मैन्यू बनाए, पुरानी फिल्म का गीत गुनगुनाते आटोरिकशे में चढ़ गई थीं.

चंचल हवा

उन के पांवों का चुंबन

ले आ

चंचल हवा

तुझे सीने से अपने

लगा लूंगी मैं

उन के साए को

धीरे से छूना

नाजुक जिस्म है

छिल जाएगा

उन के दामन से

न उलझना कभी

वो हैं शर्मोहया की पाक अदा

तुम हो गरम हवा

एक पल भी ठहरना नहीं

उन की खुशबू

तुम में बिखर जाएगी

वो हैं नाजुक कली

दूर हूं आज उन से

पर गम नहीं, जख्म सीने पर है

पर आंखें नम नहीं

तेरे आने से

पता चल गया

मिलने से पहले

हाल उन का मिल गया.

– पूनम सिंह सेंग

अप्रिय सत्य

सच्ची और कड़वी बात कहने के लिए जितने इंच का मुंह चाहिए वह जिन गिनेचुने नेताओं के पास बचा है, लालू यादव उन के मुखिया ही माने जाएंगे. लखनऊ में सपा के रजत जयंती समारोह में लालू प्रसाद यादव की भूमिका बेहद संक्षिप्त थी जिसे उन्होंने यह कहते विस्तृत कर दिया कि हम यादवों से कोई नहीं लड़ता तो हम आपस में ही लड़ लेते हैं और फिर एक हो जाते हैं. द्वापर युग सरीखी बात कहतेकहते लालू ने आखिरकार भतीजे अखिलेश को चाचा शिवपाल के पैरों में झुका ही दिया. इस प्रक्रिया में अपनी जाति पर गर्व और हीनता दोनों ही उन की बातों में नजर आई जिस से बरबस ही भगवद्पुराण का स्मरण हो आया जिस में यादवों के आपसी युद्ध के किस्सेकहानियों की भरमार है.

दिग्विजय खान

भोपाल के चर्चित एनकाउंटर में सिमी के 8 कैदी मारे गए तो उम्मीद के मुताबिक कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने तुरंत एतराज यह कहते जता दिया कि कहीं यह घटना पूर्वनियोजित तो नहीं थी. इस की जांच होनी चाहिए. योजना यानी साजिश जिसे खुलेतौर पर दिग्विजय सिंह नहीं कह पाए पर इस बयान पर सोशल मीडिया में खासा हल्ला मच गया. व्हाट्सऐप ग्रुपों की तो यह हालत रही कि कई धर्मनिरपेक्ष एडमिनों को शांतिशांति कहते बहस में दखल देना पड़ा, क्योंकि मुद्दा सिमी के कैदी न रह कर हिंदूमुसलिम हो गए थे. हिंदुओं ने इसे मुसलमानों को सबक सिखाने वाला कदम बताया तो व्हाट्सऐप पर भी अल्पसंख्यक रहे मुसलमानों ने फरियाद की कि हर मुसलमान को आतंकी न समझा और कहा जाए. अब भला कैसे और किस मुंह से धर्मनिरपेक्षता की बात देश में की जाए समझ से परे है लेकिन एक सटीक बयान दिग्विजय को महंगा पड़ गया और कुछ व्हाट्सऐप प्रेमियों ने तो उन के नाम के ही आगे ‘खान’ जोड़ दिया.

मध्यस्थता की बेकरारी

दिल्ली में एक मेगा इवेंट के जरिए विवादों में आए आर्ट औफ लिविंग के आविष्कारक श्रीश्री रविशंकर को सभी ने नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. इस अनदेखी से दुखी रविशंकर अब बगैर किसी के आग्रह के राम मंदिर निर्माण के बाबत निशुल्क मध्यस्थता करने को तैयार हैं. बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के उठते बाजार से सिर्फ बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही नईनई रणनीतियां नहीं बना रही हैं, बल्कि आयुर्वेद की खाने वाली देशी कंपनियां भी अपने गोदामों में रखा माल देख कर दुखी हैं. रविशंकर उन में से एक हैं. अब सीधेसीधे तो वे रामदेव के बारे में कुछ कह नहीं सकते इसलिए टेढ़ा रास्ता राम मंदिर जैसे संवेदनशील और विवादित मुद्दे का चुन कर मीडिया में अपनी हाजिरी दर्ज करा कर आर्ट औफ बिजनैस का गुर पेश कर रहे हैं.

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