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‘शिवाय’ के प्रदर्शन से हताश हुए अजय देवगन

अजय देवगन पूरे आठ साल बाद फिल्म ‘‘शिवाय’’ से निर्देशन के क्षेत्र में उतरे थे. मगर फिल्म के प्रदर्शन के पहले ही दिन बाक्स आफिस पर इस फिल्म की जिस तरह से दुर्गति हुई है, उससे अजय देवगन काफी हताश हो गए हैं. बौलीवुड के सूत्रों की माने तो अजय देवगन की हताशा की मूल वजह यह है कि इसका असर उनके अभिनय करियर के साथ साथ फिल्म ‘‘गोलमाल 4’’ पर भी पड़ेगा. अजय देवगन के अति नजदीकी सूत्रों की माने तो अजय देवगन को अब इस बात का अहसास हो रहा है कि उन्होंने कुछ गलतियां अपनी निजी पीआर कंपनी की सलाह मानकर की है. उन्हें अब लग रहा है कि कमाल आर खान व करण जोहर के साथ विवाद कर उन्होंने अपनी फिल्म को चर्चा में लाने का जो प्रयास किया, वह उनके लिए ही उलटा पड़ गया.

सूत्रों के अनुसार 28 अक्टूबर को अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ भारत के 2800 से 2900 स्क्रीन्स के बीच तथा करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ भारत के 2700 से 2750 स्क्रीन्स में रिलीज हुई. इस तरह अब अजय देवगन यह रोना भी नहीं रो सकते कि उनकी फिल्म को कम थिएटर मिले. क्योंकि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ से ज्यादा स्क्रीन्स अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ को मिले. इसके बावजूद अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ ने बाक्स आफिस पर ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के मुकाबले काफी कम व्यापार कर रही है.

सूत्र बता रहे है कि ‘ऐ दिल है मुष्किल’ के पहले दिन की बाक्स आफिस कमाई करीबन 16 करोड़ और ‘शिवाय’ की कमाई 8 से दस करोड़ के बीच है. यहां इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के मुकाबले ‘शिवाय’ काफी महंगे बजट में बनी फिल्म है. अजय देवगन की समझ में आ रहा है कि दीवाली व उसके बाद यानी कि रविवार व सोमवार के दिन कम से कम उत्तर भारत में उनकी फिल्म को नुकसान ही होने वाला है. क्योंकि उत्तर भारत में लोग त्योहार के चलते घर से निकलकर फिल्म देखने नहीं जाएंगे.

यूं तो अजय देवगन ने ‘‘शिवाय’’ को हौलीवुड स्टाइल के एक्शन के साथ भव्य पैमाने पर बनाया है. फिल्म में जबरदस्त एक्शन सीन हैं, जिनकी हर कोई तारीफ कर रहा है. मगर निर्देशक व अभिनेता के तौर पर वह यह भूल गए कि महज एक्शन दृश्यों के बल पर दर्शकों को सिनेमा घर के अंदर नहीं बांधा जा सकता. फिल्म का कथानक, इंसानी भावनाएं व संवेदनाएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. तो वहीं अब बौलीवुड के सूत्र खुलकर कहने लगे हैं कि अजय देवगन ने कहानी की चोरी को छिपाने के प्रयास में फिल्म की आत्मा को तहस नहस कर डाला. बौलीवुड में यह जो नई चर्चा शुरू हुई है, उस पर बहुत जल्द लंबी चर्चा करेंगे.

तो वहीं अजय देवगन ने अपनी फिल्म ‘‘शिवाय’’ को दर्शकों के बड़े वर्ग तक पहुंचाने के लिए जो प्रयास किए जाने चाहिए थे, उन प्रयासों में वह बुरी तरह से असफल रहे. बौलीवुड के सूत्र तो दावा कर रहे है कि यदि ‘शिवाय’ बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खाती है, तो इसके लिए अजय देवगन के सलाहकार व उनकी पीआर टीम की गलत सोच ही दोषी होगी. अजय देवगन ने किसिंग सीन को लेकर जो बात प्रचारित की थी, वह भी उनके लिए प्रचार का गलत हथकंडा साबित हुआ. शायद अजय देवगन यह भूल गए कि मूर्ख दोस्त की बनिस्बत बुद्धिमान दुश्मन का साथ फायदे का सौदा होता है.

भाजपा एमपी के फैन हैं लालू यादव

भाजपा के धुर विरोधी राजद सुप्रीमो लालू यादव भाजपा की एक सांसद के इतने बड़े फैन हैं कि उन्होंने उनके नाम पर अपनी एक बेटी का नाम भी रखा था. पिछले दिनों जब वह सांसद पटना पहुंची, तो उन्हें देख कर लालू अपने पुराने रौ में बह निकले. लालू ने स्टेज पर भाजपा सांसद की खुल कर तारीफ की और मुस्कुराते हुए उनसे कह दिया- ‘हम आपसे और आपकी कला से बहुत प्यार करते हैं. आपसे मुझे इतना प्रेम है कि मैंने अपनी एक बेटी का नाम आपके नाम पर ही रखा है.’ लालू यादव के सरेआम इजहारे मोहब्बत पर सांसद महोदया खिलखिलाती रहीं और जबाब में उन्होंने भी कह डाला कि वह भी लालूजी की फैन हैं.

पटना जिला प्रशासन और बिहार चैंबर औफ कामर्स के द्वारा आयोजित दीपावली मिलन समारोह में लालू भाजपाई सांसद पर इस कदर फिदा रहे कि पूरा हौल ठहाकों से गूंजता रहा. दरअसल भाजपा सांसद और हीरोईन हेमा मालिनी समारोह में नृत्य नाटिका पेश करने पहुंची थीं. उन्हें रूबरू देखकर लालू के जेहन में बसी तमाम पुरानी यादें ताजा हो उठीं. उन्होंने हेमा को बताया कि उनके ही नाम पर उन्होंने अपनी एक बेटी का नाम हेमा यादव रखा था. नृत्य नाटिका खत्म होने के बाद लालू मंच पर पहुंच गए और माइक थाम लिया और ठेठ गवंई अंदाज में हेमा मालिनी की तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिये.

लालू ने कहा कि हेमा मालिनी आज भाजपा की सांसद हैं, इसके बाद भी वह उनसे बेपनाह प्रेम करते हैं. लालू ने कबूल किया कि राजनीतिक रूप से भले ही वह हेमा का विरोध करते रहे हों, पर सांस्कृतिक स्तर पर वह हेमा मालिनी के बहुत बड़े फैन हैं. फैन ही नहीं एयर कंडीशनर हैं. लालू ने कहा कि उनके एक बुलावे पर हेमा पटना पहुंच गई. इसके साथ ही लालू ने अपने विरोधियों और बिहार में जंगलराज की दुहाई देने वालों पर जमक कर निसाना साधा. उन्होंने कहा कि कुछ लोग हल्ला मचा रहे हैं कि लालू यादव के सरकार में आने के बाद बिहार में जंगलराज आ गया हैं. हेमा मालिनी बिहार आई हैं और वह बताएंगी कि क्या उन्हें बिहार में जंगलराज जैसा माहौल लगता है. हेमा ने लालू के समर्थन में नहीं में अपनी गर्दन को हिलाया. लालू ने आगे कहा कि हेमा जी ने बिहार आकर जंगलराज की अफवाह को तोड़ दिया है. लालू माइक थामे लगातार बोलते रहे और हेमा मुस्कुराती रही और बीच-बीच में वह खिलखिला कर हंस पड़ती.

लालू के हेमा प्रेम को देखकर स्टेज पर मौजूद उनके बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने कहा कि हेमा जी से मुलाकात कराने के लिए वह अपने पिता का शुक्रिया अदा करते हैं. उनकी वजह से ही हेमा मालिनी जैसे बड़े सितारे को सामने से देख सके हैं. तेजस्वी ने कहा कि उनके पापा ने एक बार हेमा जी को पटना आने का न्यौता दिया और वह पहुंच गईं.

लालू का हेमा मालिनी के प्रति प्रेम काफी पुराना है. वह अकसर कहते रहते हैं कि वह हेमा मालिनी और उनकी फिल्मों को काफी पसंद करते रहे हैं. गौरतलब है कि जब लालू यादव साल 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, कहा था कि बिहार की तमामा सड़कों को वह हेमा मालिनी की गाल की तरह चिकना बना देंगे.

अडिग रहेंगे फरहान?

फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ को ठीक से प्रदर्शित करने के लिए करण जोहर ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे के साथ बैठक कर ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ देने के जिस निर्णय को शिरोधार्य किया था, उस निर्णय के खिलाफ कई बौलीवुड हस्तियां आवाज उठा चुकी हैं, मगर इस विरोध की आवाज उठाने वालों को कोई असर नहीं होने वाला, क्योंकि इनकी फिल्में रिलीज नहीं होनी है.

मगर मनसे की करतूतों से वाकिफ फरहान अख्तर ने अपनी कंपनी ‘‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’’ की फिल्म ‘रईस’ को प्रदर्शित करने में आने वाली रुकावटों की परवाह किए बगैर साफ साफ कह दिया है कि वह ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ नहीं देंगे.

फरहान अख्तर ने बयान दिया है- ‘‘करण जोहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को प्रदर्शित करने के लिए जो समझौता किया है, वह गलत परंपरा है. ‘आर्मी वेलफेअर फंड’ में पांच करोड़ देने का सवाल ही नहीं उठता, जब खुद वह इस तरह की रकम लेने से इंकार कर चुके हों.’’

फरहान के इस बयान के आने के बाद मनसे के सिनेमा विंग के अध्यक्ष अमेया खोपकर ने फरहान अख्तर को धमकी देते हुए कहा है- ‘‘फिल्म के प्रदर्शन की तारीख नजदीक आने दो, फिर देख लेंगे. यह लोग उस वक्त कहां थे, जब पांच करोड़ दान देने का निर्णय लिया गया था.’’ इस पर फरहान अख्तर ने कहा है-‘‘हम टैक्स देते हैं. हमारी सुरक्षा सरकार का दायित्व है. फिल्म रिलीज हो सके, यह सरकार का दायित्व है.’’

फरहान अख्तर की फिल्म ‘‘रईस’’ में शाहरुख खान के साथ पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान ने अभिनय किया है. मनसे ने उड़ी पर आतंकवादी हमले के बाद सबसे पहले कहा था कि पाकिस्तानी कलाकारों वाली फिल्में रिलीज नही होंने देंगे. इसके बावजूद फरहान अख्तर का बयान सही है. देश के सैनिकों की भलाई के लिए लोगों को स्वेच्छा व खुशी खुशी रकम या अन्य वस्तुएं दान करनी चाहिएं. पर किसी को दान करने के लिए मजबूर नही किया जाना चाहिए. यही मंशा देश के पूर्व सैनिकों की भी है.

पर जहां तक ‘‘रईस’’ में पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान के होने का सवाल है, तो इस पर बौलीवुड में आम राय है कि फरहान अख्तर को स्वयं अपने विवेक से देश और देश के मान सम्मान के साथ ही देश के आम लोगों की भावनाओं के मद्देनजर निर्णय लेना चाहिए कि उन्हे क्या करना है. यदि फरहान वर्तमान माहौल में ‘रईस’ को माहिरा खान के साथ प्रदर्शित करते हैं, तो देश के लोगों को सोचना चाहिए कि वह फिल्म देखें या न देखें, मगर उन्हें जबरन पांच करोड़ देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.

बौलीवुड की आम राय के बावजूद फरहान अख्तर के दिमाग में क्या चल रहा है, यह तो वही जाने, पर देखने वाली बात यह होगी कि फरहान अख्तर अपनी बात पर अडिग रहते हैं या नहीं? यदि वह सोच रहें हैं कि इस तरह की बयान बाजी कर वह खुद व अपनी फिल्म ‘रईस’ को चर्चा में बनाए रख सकते है, तो इस तरह के प्रचार का खामियाजा भी उन्हे झेलना पड़ सकता है.

हिलेरी और ट्रंप

अमेरिका में इस बार चुनावी राजनीति बहुत ही रोचक, हास्यास्पद पर भयभीत करने वाला मोड़ ले चुकी है. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप बेहद बेहूदा और ऐयाश किस्म के ही नहीं, देशीविदेशी मामलों में सड़कछाप सोच रखने वाले नेता भी हैं. उन्हें हेरफेर कर के पैसा बनाने की आदत है. समाज को कोई नई दिशा देने की काबिलीयत उन में नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के आसार अब कम हैं. पर फिर भी अमेरिका ने एक ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना लिया कि जिस के मुंह में जो आए बक दे, आश्चर्यजनक है. वर्ष 2005 का डोनाल्ड ट्रंप का एक टेप हाल में सामने आया जिस में उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू के पहले औरतों के बारे में ऐसी भद्दी बात कही जो हम यहां नहीं लिख सकते पर अमेरिकी समाचारपत्र और टैलीविजन इसे हूबहू कह रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप का भड़काऊ रवैया उन्हें आतंक, बेकारी, अर्थव्यवस्था के ठहराव, कानूनी व गैरकानूनी विदेशियों से डरे गोरे व कट्टर अमेरिकियों का प्रिय बना रहा था. अमेरिकी हमेशा से अपने व्यवहार में मजदूरटाइप अक्खड़ रहे हैं और वहां गंवारू भाषा को एक तरह की मान्यता सी मिली हुई है और पैसा व क्लास आने के बाद भी सफल लोगों में से वह नहीं जाती. वे एक काले राष्ट्रपति के बाद एक महिला राष्ट्रपति की जगह गुंडईरूप वाले डोनाल्ड ट्रंप को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. इन्हीं के समर्थन के बल पर डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी का राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का टिकट पा लिया है.

दूसरी तरफ पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन हैं. वे डैमोक्रटिक पार्टी की उम्मीदवार हैं. उन के जीतने के आसार अब ज्यादा हैं. 8 नवंबर तक अगर क्ंिलटन का कोई कांड सामने नहीं आया तो अमेरिका ही नहीं, दुनिया के सभी देश राहत की सांस लेंगे कि उन्हें सिरफिरे ट्रंप से बात नहीं करनी पड़ेगी जो न्यूक्लियर बमों का बटन कब दबा दे, कहा नहीं जा सकता. हिलेरी मंझी खिलाड़ी हैं पर उन की कालीन के नीचे बहुत से रेंगते सांप हैं, जो समयसमय पर निकल कर उन की लोकप्रियता पर जहर उगलते रहते हैं. हिलेरी क्ंिलटन की उम्मीदवारी में केवल एक ही विशेषता है कि वे औरत हैं और पहली बार दुनिया के सब से शक्तिशाली देश को चलाने को तैयार हैं. इस के अलावा हिलेरी की सामाजिक, आर्थिक, विदेश, शांति, रक्षा नीतियों में कुछ ऐसा नहीं है कि चुनावों के परिणाम आएंगे तो अमेरिका में या दुनियाभर में आतिशबाजी की जाए. वे किसी परिवर्तन का संदेश ले कर नहीं आ रहीं. हां, डोनाल्ड ट्रंप की तरह विध्वंसक नहीं होंगी, यह तय है.

दोनों उम्मीदवारों का कीचड़ में सना होना अफसोस की बात है. यह बात अब दुनिया के बहुत देशों पर लागू हो रही है. दुनियाभर में राजनीति पैसे का खेल हो गई है. सुघड़, सौम्य दिखने वाले नेताओं का नितांत अभाव हो गया है. जिस देश में देखो भ्रष्ट राष्ट्राध्यक्ष दिखेगा. आदर्श लोगों ने तो राजनीति छोड़ ही दी है, ऐसा लगता है. अमेरिका में अगर हिलेरी क्लिंटन जीतती हैं तो कोई परिवर्तन होगा, इस की उम्मीद न करें. हां, अगर डोनाल्ड ट्रंप जीत गए तो अमेरिका का ही नहीं, दुनिया का बंटाधार होना तय समझो.

स्मार्टफोन ऐप हैं डायबीटीज मरीजों के लिए मददगार

एक नई रीसर्च ने दावा किया है कि स्मार्टफोन ऐप के प्रयोग से टाइप 2 डायबीटीज के मरीजों को अपना ध्यान रखने में काफी मदद मिलती है. पिछली स्टडी के रिव्यू से पता चला कि जो लोग ऐप का इस्तेमाल करते हैं उनके ब्लड ग्लूकोज में ऐप इस्तेमाल नहीं करने वालों के मुकाबले काफी कमी आई है. डायबीटीज मैनेजमेंट में मॉनीटरिंग और ब्लड ग्लूकोज को मैनेज करना शामिल है. इस स्टडी में टाइप 2 डायबीटीज के 1,360 मरीजों के डेटा का अध्ययन किया गया.

इस रिपोर्ट में यह भी बात कही गई है कि कम उम्र के मरीजों ने स्मार्टफोन ऐप के बारे में ज्यादा पॉजिटिव रिपोर्ट दी है. हालांकि, इस रीसर्च में टाइप 1 डायबीटीज के लिए ऐप कितने मददगार हैं, यह नहीं बताया गया है लेकिन रिसर्चर इस पर स्टडी कर रहे हैं.

इंग्लैंड की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉक्टर बेन कार्टर ने बताया, ‘साल 2030 तक पूरे विश्व में डायबीटीज के मरीजों की संख्या 500 मिलियन होगी ऐसा अंदाजा लगाया जाता है. इसलिए ऐसे मरीजों के लिए सेल्फ मैनेजमेंट टूल की सख्त जरूरत है. जैसे-जैसे हम अधिक से अधिक टेक्नॉलजी का प्रयोग करने लगे हैं उसके साथ हमारी लाइफस्टाइल में भी सुधार हो रहा है. स्मार्टफोन ऐप पहले ही फिजिकल ऐक्टिविटी को मॉनिटर कर रही हैं, ऐसे में पूरे विश्व में डायबीटीज के मरीजों के लिए ऐप जैसे टूल अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए सस्ते साधन हो सकते हैं.’

डायट कंट्रोल से ब्लड शुगर पर पड़ने वाले प्रभाव से यह संभव है. डायबीटीज के कई मरीजों को सही समय पर दवा लेने से शुगर लेवल कंट्रोल करने में काफी मदद मिलती है. अभी अलग-अलग प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध ऐप में मरीजों को अपना डेटा डालना होता है जिससे बाद मिले फीडबैक से वह बेहतर डायबीटीज मैनेजमेंट कर पाते हैं. ऐप से कम कीमत में इंटरएक्टिव और डायनैमिक तारीके से मरीजों को सही समय पर दवा लेने, सही भोजन, डॉक्टर से अपॉइंटमेंट और ठीक समय पर ब्लड टेस्ट जैसी बातें जानने में मदद मिलती है.

14 टिप्स जो बढ़ाएं उत्सव की उमंग

दीवाली का त्योहार नजदीक आतेआते माहौल पूरी तरह उत्सवी हो जाता है. हरेक के मन में उत्साह भरा होता है. ऐसा लगता है मानो हर कोई अपने जीवन, अपने घर को दीवाली की रोशनी से जगमगा देना चाहता है. यह जोश दीवाली का त्योहार मनाने तक यों ही बना रहे, यह भी जरूरी है क्योंकि त्योहार की तैयारियां कर आप इतना थक जाते हैं कि सबकुछ बोझ लगने लगता है. हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि आप के साथ ऐसा कुछ हो, इसलिए चलिए करें कुछ ऐसा कि दीवाली का धूमधड़ाका आप पूरे जोश से मनाएं :

1      दीवाली का दिन मौजमस्ती का है. लंबीचौड़ी व्यर्थ की पूजापाठ और उस की तैयारियों में अपने को इतना व्यस्त और थका न दें कि उत्सव का आनंद उठाने का समय ही न बचे.

2      घर के काम कभी खत्म नहीं होते, यह आप की समझदारी है कि उन्हें कब और कैसे निबटाना है. यह क्या बात हुई, बच्चे आप को आतिशबाजी का मजा लेने के लिए बुलाते रहें और आप उन्हें टालती रहें.

3      प्रियजनों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों को मिठाई, गिफ्ट्स आदि बांटने का काम एक हफ्ते पहले ही निबटा दें.

4      दीवाली के नजदीक आने पर ट्रैफिक जाम से बचने के लिए आप चाहें तो दूर रहने वाले यारदोस्तों को औनलाइन गिफ्ट्स, फ्लावर, मिठाइयां भेज कर उन्हें अपनी शुभकामनाएं भेज सकते हैं.

5      मोबाइल, इंटरनैट के इस जमाने में बधाई, ग्रीटिंग सबकुछ औनलाइन भेजे जाते हैं, लेकिन इस चक्कर में मोबाइल से चिपके न रहें. इसलिए एक दिन पहले ही सब को बधाई संदेश मैसेज कर दें.

6      घर आने वाले मेहमान घर की साजसजावट की तारीफ न करें तो अधूरा सा लगता है, इसलिए कोशिश करें घर सजाने व साफसफाई का काम 3 दिन पहले कर लें. ?

7      घर का वातावरण संगीतमय बनाएं. संगीत से मिलता मानसिक सुकून शरीर की आधी थकान उतार देता है. इसलिए त्योहार के दिन टैलीविजन कीजिए बंद और लगाएं मधुर गीतसंगीत, जिसे चलतेफिरते आप सुनते रहें, गुनगुनाते रहें और तनावमुक्त मुद्रा में काम करते रहें.

8      जब जेब से ज्यादा पैसा खर्च होता है तो तनाव अपनेआप पास आ जाता है. यह तनाव दूर रहे, इस के लिए दीवाली की शौपिंग अपने बजट में ही करें. शौपिंग लिस्ट बना लें ताकि अनापशनाप खर्चों से बचा जा सके.

9      दीवाली सिर पर है और आप अब शौपिंग की सोच रहे हैं. ऐसा हरगिज मत कीजिएगा. शौपिंग कम से कम हफ्तेभर पहले कर लें. वरना फैस्टिवल के दिन आप थक कर चूर हो जाएंगे.

10    त्योहार के मौके पर काफी चीजों पर स्पैशल डिसकाउंट मिलता है, ऐसे औफर्स का फायदा उठाइए और अपने पैसे बचाइए.

11    कपड़ों का चयन पहले कर लें. जांच लें कि फिटिंग सही है या नहीं.

12    घर को सजाया है तो खुद को भी सजाएंसंवारें. दीवाली की रोशनी में चमकतादमकता आप का रंगरूप स्वयं आप को गुड फील करवाएगा.

13    दीवाली के दिन सभी अच्छे मूड में होते हैं. औफिस के काम से फ्री होते हैं. मेलजोल बढ़ाने, यारदोस्तों के संग बैठनेबिठाने का यह अच्छा मौका होता है. दोस्तों के घर जाइए या उन्हें अपने घर बुलाएं. फन पार्टी अरेंज की जा सकती हैं. सब एकएक डिश बना कर लाएं. वैराइटी हो जाएगी और काम भी हलका हो जाएगा.

14    घर से दूर हैं तो सोच क्या रहे हैं, टिकट बुक कराएं और घर जाइए. परिवार सब से पहले आता है, खास कर त्योहारों पर. वैसे भी, त्योहार का मजा अपनों के साथ है. खुशी का जो एहसास उन के साथ होता है वह औरों के साथ नहीं होता.

तो अगले साल तक मिलेगा जियो का फ्री प्लान!

रिलायंस जियो ने अपना वेलकम ऑफर मार्च तक बढ़ाने के संकेत दिए हैं. वॉइस कॉलिंग में कोई खास सुधार न होने पर कंपनी इस ऑफर को और बढ़ाना चाहती है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि उससे पहले ही यह प्रॉब्लम सॉल्व भी हो जाएगी.

इन तीन वजह से रिलायंस अपना वेलकम ऑफर मार्च तक बढ़ाना चाहता है.

TRAI का कोई डर नहीं

वेलकम ऑफर का दूसरी कंपनियों ने यह कहते हुए विरोध किया था कि फ्री सर्विस टेलिकॉम मार्केट पर बहुत बुरा असर छोड़ सकती है. वहीं, रेग्युलेटर्स का कहना यह है कि रिलायंस जियो के पास इतने भी कस्ट्मर्स नहीं है कि उससे मार्केट पर बुरा असर पड़े. मतलब यह कि अगर वेलकम फ्री ऑफर तीन और महीने बढ़ाया जाता है तो भी रिलायंस के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया जा सकेगा.

जियो टू जियो कॉलिंग सुधारने के लिए

रिलायंस जियो के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती अपने फ्री वॉइस कॉलिंग प्लान्स की क्वालिटी सुधारने की है. जियो यह प्लान इसलिए भी बड़ा सकता है कि इस बीच वह वॉइस कॉल क्वालिटी को सुधारे और कंज्यूमर्स की संख्या भी बढ़ाए.

10 करोड़ ग्राहकों तक पहुंच का टारगेट

कंपनी ने 10 करोड़ कस्टमर्स तक पहुंच बनाने का टारगेट रखा है. लेटेस्ट इन्फ़र्मेशन यह है कि जियो की पहुंच ढाई करोड़ लोगों तक हो गई है. कंपनी का दावा है कि यह अपने आप में एक वर्ल्ड रेकॉर्ड है लेकिन अब भी टारगेट पूरा होना बाकी है. वेलकम ऑफर और आगे बढ़ाकर कंपनी इस टारगेट को पूरा करने की कोशिश कर सकती है.

बेनामी संपत्ति कानून 1 नवंबर से होगा लागू

बेनामी सौदों को रोकने के लिए बनाया गया नया कानून एक नवंबर से प्रभाव में आ जाएगा. इस कानून के तहत बेनामी सौदों में लिप्त पाए जाने पर सात साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. कालेधन की बुराई को रोकने के लिए संसद ने अगस्त में बेनामी सौदा (निषेध) कानून पारित किया है.

हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस कानून को पारित कराते समय यह अश्वासन दिया था कि वास्तविक धार्मिक ट्रस्टों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाएगा. केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के यहां जारी वक्तव्य के अनुसार, ‘बेनामी सौदे (निषेध) कानून एक नवंबर 2016 को अमल में आ जाएगा. इसके प्रभाव में आने के बाद मौजूदा बेनामी सौदे (निषेध) कानून 1988 का नाम बदलकर बेनामी संपत्ति लेनदेन कानून 1988 कर दिया जाएगा.’

मौजूदा कानून में जहां बेनामी सौदे करने के मामले में तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है जबकि नए संशोधित कानून में सात साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. बेनामी कानून में ऐसे सौदों की परिभाषित किया गया है, उनका निषेध और कहा गया है कि इसके नियमों का उल्लंघन करने पर दंड दिया जायेगा जिसमें सजा और जुर्माना दोनों होंगे.

बेनामी संपत्ति का लेनदेन निषेध (पीबीपीटी) कानून में जिस संपत्ति को बेनामी करार दिया गया है उसे बेनामीदार से संपत्ति के वास्तविक मालिक द्वारा वापस लेने को भी निषेध ठहराया गया है. इस कानून के तहत एक अपीलीय व्यवस्था भी रखी गई है. इसमें ऐसे मामलों के निपटारे के लिये न्याय प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण होगा.

अमर सिंह की अमर चित्र कथा

मानना पड़ेगा, अमर सिंह ने तो राम जेठमलानी जैसे नामी वकील को भी पीछे छोड़ दिया. ये तो मुलायम सिंह यादव की पारखी नजर रही, जिन्होंने अमर सिंह में ऐसा फाजिल दोस्त देखा और भला हो उनका कि अमर सिंह की इस खूबी को उन्होंने शेयर किया, वरना किसी को पता भी न चलता. न तो कभी कोई डिग्री विवाद होता और न ही कोई ये पूछ पाता कि वकालत की ऐसी आला तालीम उन्होंने कब और कहां से ली – या ये कोई पैदाइशी हुनर है?

सोच कर ही ताज्जुब होता है इतनी बड़ी बड़ी बातें अमर सिंह आखिर अपने अति विनम्र हंसमुख चेहरे के पीछे छिपा कैसे लेते हैं?

दिल्ली की राजनीति में तो कानूनी जमात का जलवा जगजाहिर है, यूपी में तो लोग सिर्फ सतीश मिश्रा का ही नाम जानते रहे. उनके बारे में भी खास बातें तब पता चलीं जब मायावती ने उनके हमेशा साथ नजर आने की वजह साझा की. ज्यादा दिन नहीं हुए मायावती ने एक रैली में बताया कि सतीश मिश्रा को वो इसलिए साथ रखती हैं ताकि कहीं कोई कानूनी मुश्किल आ पड़े तो वो उन्हें बचा लें. सतीश मिश्रा को भी उसी दिन ये बात मालूम हुई होगी, वरना वो भी शिवपाल यादव की तरह कभी राजनीतिक विरासत को लेकर कुछ न कुछ गलतफहमी पाल रखे होंगे. ये सुन कर मन में एक सहज सवाल उठता है कि नेताओं का सिर्फ जेड प्लस सिक्योरिटी से ही काम नही चल पाता? इस तरह नसीबवाला बनने में माया और मुलायम से सिर्फ लालू प्रसाद ही पीछे नजर आते हैं – नहीं तो, जयललिता भी उबर चुकी हैं.

तो क्या मुलायम सिंह भी अमर सिंह को वैसे ही हमेशा साथ रखना चाहते हैं जैसे सतीश मिश्रा को मायावती. क्या अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में पुराना पद और पहले से ज्यादा प्रतिष्ठा दिये जाने की भी यही असल वजह है. क्योंकि पार्टी से बाहर होने पर अमर सिंह को हमेशा साथ रखना संभव न था. अब सवाल ये है कि क्या मुलायम सिंह सिर्फ पुराने अहसानों के चलते अमर सिंह की इतनी तारीफ कर रहे हैं या फिर कोई नया खतरा मंडरा रहा है, जिसके लिए अपने कानूनी कनेक्शन से संजीवनी बूटी सिर्फ अमर सिंह ही खोज सकते हैं.

क्या वो आय से अधिक संपत्ति का मामला है? फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता? पहले यूपीए सरकार और अब मोदी सरकार मुलायम सिंह पर सीबीआई के जरिये नकेल कसे रहती है या कोई और मामला. बिहार चुनाव और फिर संसद सत्र में मुलायम के विपक्ष का साथ न देने पर तो यही सवाल खड़े किये जा रहे थे. क्या अमर सिंह ने ऐसे ही किसी मामले में मुलायम की कोई मदद की?

पब्लिक लाइफ में भी पर्सनल मामलों को निजता की दुहाई देकर इग्नोर करने पर ही जोर दिया जाता रहा है. यही वजह है कि सोनिया गांधी की बीमारी और अमेरिका में उसके इलाज पर कोई सवाल नहीं पूछता. लेकिन जब खुद ही कोई निजी बातें सार्वजनिक करे तो कोई क्या कर सकता है? फिर तो लोगों की राजनीतिक हस्तियों में भी वैसी ही दिलचस्पी पैदा होती है जैसी फिल्मी सितारों में.

मुलायम सिंह ने भी माना है कि वाजपेयी से लेकर कल्याण सिंह तक कड़े विरोधी होने के बावजूद कभी उनके निजी मामले नहीं उठाये. मुलायम सिंह अपने समर्थकों में मसीहा माने जाते हैं. समर्थकों को भी तो लग रहा होगा उनके नेता को किन किन हालात से गुजरना पड़ा? कितना संघर्ष करना पड़ा? कुछ संघर्ष तो दिखता है, लेकिन कुछ ऐसे भी होतें हैं जिसे नेता नीलकंठ बन कर चुपचाप पी लेते हैं.

अगर समर्थक इस उधेड़बुन में लगते हैं तो स्वाभाविक है. आखिर मामला क्या था? क्या मुलायम सिंह किसी हादसे की वजह से किसी मामले में फंसे? या किसी ने साजिश रच कर ऐसा मामला बनाया और फिर जैसे तैसे मुलायम सजा से बाल बाल बच पाये.

समर्थक तो समर्थक, क्या लालू प्रसाद को नहीं लगा होगा कि इतने करीब और फिर रिश्तेदारी होने के बावजूद मुलायम सिंह ने क्यों नहीं बताया कि उनके अमर सियासी ही नहीं, कानूनी पेंचों की बारीकियों से भी उतने ही वाकिफ हैं. मायावती तो निश्चिंत रहती हैं कि उनके पास सतीश मिश्रा हैं. लेकिन लालू? राम जेठमलानी को तो अभी अभी उन्होंने राज्य सभा भेजा है. अगर मुलायम थोड़ा भी हिंट दे देते तो लालू चारा घोटाले में अमर सिंह को सेट कर सकते थे.

लेकिन क्या पता अमर सिंह सिर्फ सात साल की सजा वाले अपराधों से ही बचाने में माहिर हों!

सोशल मीडिया पर टाटा संस और यादव संस के दबदबे की बात चल रही है – दोनों की ताकत की तुलना की जा रही है. फिर भी मिस्त्री को लेकर मिस्ट्री कम नहीं हो रही. ऐसे में मुलायम ने एक नयी मिस्ट्री पेश कर दी है.

ध्यान उन अपराधों की ओर जाने लगा है जिनमें कम से कम या फिर ज्यादा से ज्यादा सात साल की सजा होती है. आम लोगों के मन में बड़ा सवाल ये है कि ऐसे कौन कौन से अपराध हैं जिनमें सात साल की सजा होती है. जिनके मन में ये ख्याल आये वो चाहें तो कानून के जानकारों से मशवरा कर सकते हैं. हर किसी के पास अमर सिंह तो हो नहीं सकते, लेकिन उनका कोई न कोई अमर सिंह तो होगा ही. ऐसा नहीं तो दोस्तों में किसी ने कानून की जरूर की होगी. अब तो डरने की बात भी नहीं जिसका कोई नहीं उसके लिए गूगल तो है ना.

उनके इरादे लोहा हैं – और वो मन से जितने मुलायम बड़ों के लिए हैं उतने ही बच्चों के लिए भी. वो तो इतने उदार हैं कि संगीन से संगीन जुर्म का इल्जाम लगने पर भी कहते हैं – बच्चे हैं बच्चों से गलती हो जाती है. 'तो क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?' लेकिन ऐसा क्या है अपने बच्चे को लेकर वो इतने सख्त हो जाते हैं. अमर सिंह के लिए तो तारीफों के पुल बांधते हैं लेकिन अपने ही बेटे को बात बात पर कोसते और फटकार लगाते हैं. वो भी तब जब उनके कहते ही किसी भी मंत्री को वो कैबिनेट से निकाल बाहर करता है – और जब वो उनकी घर वापसी का एलान कर देते हैं तो चुपचाप मान भी लेता है.

मुलायम सिंह के सात साल की सजा वाले बयान के बाद समर्थक और विरोधी दोनों ही खेमों में चर्चा इसी बात की है कि आखिर इसका रहस्य क्या है? सवाल ये है कि जो अमर सिंह मुलायम सिंह को जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत से हंसते खेलते उबार लेते हैं वो आखिर उनकी समाजवादी पार्टी को इतने बड़े संकट में क्यों डालेंगे? ऐसा कैसे हो सकता है कि जो शख्स पिता को मुश्किल से बचाये वही बेटे पर मुसीबतें उड़ेल दे. जरूर अखिलेश को कोई न कोई गलतफहमी है. जिस तरह मुलायम ने अखिलेश को सजा वाली बात बताई उसी तरह उनकी गलतफहमी भी खत्म कर देते तो कितना अच्छा होता.

कहीं अमर सिंह से अखिलेश के नाराज रहने और मुलायम के अहसानमंद रहने का कारण एक ही तो नहीं है. क्या मालूम जिस बात से मुलायम सिह अमर सिंह के शुक्रगुजार है – अखिलेश भी उसी बात से सबसे ज्यादा खफा हों?

दीवाली पर कबाड़ निकाल फेंकें

कहने को ही हम भारतीय साफसफाई से परहेज नहीं करते लेकिन पुराने सामान से हमारा मोह जगजाहिर है जिस का आधार उस का उपयोगी या अनुपयोगी कतई नहीं रहता. खरीदी गई किसी भी चीज की पूरी कीमत वसूलने की मानसिकता ने हर एक घर को एक तरह से कबाड़खाना बना रखा है. रेलवे स्टेशन पर देख लें, स्टेशन से निकलते समय पानी की खाली बोतल कम ही लोग फेंकते हैं. वे उसे घर ले जाते हैं जहां धीरेधीरे वह कबाड़ की शक्ल में स्टोररूम का स्थायी हिस्सा बन जाती है. किसी भी घर का मुखिया या गृहिणी अगर ईमानदारी से अनुपयोगी सामान यानी कबाड़े की लिस्ट बनाने बैठे तो पाएगा कि घर में 40 फीसदी सामान बेकार पड़ा है. कई बेकार चीजें तो सालों से घर की शोभा बढ़ा रही हैं, बस फेंकी नहीं गईं. फिर कभी काम आएगा, यह सोच कर उसे बारबार अनुपयोगी सामान की सूची से बाहर कर घर में रख लिया जाता है. यह कबाड़ की परिभाषा भी है और उदाहरण भी कि हर दीवाली लोग सोचते हैं कि कुछ भी हो जाए, इस बार जरूर बेकार की सारी चीजें बाहर फेंक देंगे, कबाड़ी को या ओएलएक्स पर बेच देंगे लेकिन…

…लेकिन होता यह है कि जैसे ही बेकार का कोई सामान, मसलन पुराना बेकार और खराब हो गया बटन वाला मोबाइल फोन हाथ में आ जाए तो उसे बेचते या फेंकते नहीं बनता. वह फिर वापस रख लिया जाता है. घरों में पुराने अनुपयोगी सामान का भंडार इसी व्यर्थ मोह के चलते बढ़ता जाता है और दीवाली की साफसफाई के नाम पर लोग फिर पुरानी चीजों का भंडार लगा लेते हैं.

स्वच्छ भारत अभियान राजनीतिक स्वार्थों की बलि भर नहीं चढ़ा है बल्कि इस के पीछे शाश्वत भारतीय मानसिकता का भी हाथ है. लोग सोचते हैं कि जब ऐसे भी काम चल रहा है तो साफसफाई की जरूरत क्या है. साफसफाई का मतलब सिर्फ झाड़ू लगाना नहीं है बल्कि यह भी है कि लोग कम से कम सामान में काम चलाएं जिन की कोई उपयोगिता हो. दवाई की 4 साल पुरानी बोतल, जिस की एक्सपायरी डेट कब की निकल चुकी है, घर में क्यों रखी है? इस का तार्किक जवाब शायद ही कोई दे पाए सिवा इस कुतर्क के कि रखने की जगह है तो क्या फर्क पड़ता है.

फर्क पड़ता है

सामानों को संग्रहित करने का फर्क हमारी मानसिकता पर भी पड़ता है और सेहत पर भी. फ्रिज के कार्टन पर धूलमिट्टी जमती जा रही है लेकिन उसे फेंकने का मन नहीं कर रहा. बापदादों के जमाने का टूटाफूटा फर्नीचर यह खोखली दलील देते कबाड़ी को नहीं दिया जाता कि इस की लकड़ी कीमती है और पूर्वजों की निशानी है. फिलहाल रख देते हैं, फिर कभी देखेंगे. यह ‘फिर कभी’ दीवाली दर दीवाली निकलता जाता है और कबाड़ा ज्यों का त्यों पड़ा मुंह चिढ़ाता रहता है. आजकल घर बहुत बड़े नहीं रह गए हैं. मध्यवर्गियों को 900 से 1,200 वर्गफुट के मकान से काम चलाना पड़ रहा है. जिस में हरेक कमरे में सामान है. ड्राइंगरूम में एलसीडी आ गया है पर पुराना खराब पड़ा टीवी  कबाड़ी को नहीं दिया जा रहा. वह मुद्दत से कोने की शोभा बढ़ा रहा है. तब 15 हजार रुपए में लिया था और अब कौड़ी के दाम में ही बिकेगा. पर लोगों से बरदाश्त नहीं होता और वे फिर उस टीवी को यथास्थान पर रखा रहने देते हैं. यही हाल कल तक उस को ढोने वाली प्लास्टिक की ट्राली या स्टैंड और बेकार हो चुके उस के रिमोट का भी है.

किचन को गौर से देखें तो वहां स्टील, प्लास्टिक के पुराने डब्बे खाली पड़े हैं और जगह घेर रहे हैं. पुराने चम्मच शान बढ़ा नहीं रहे, बल्कि घटा रहे हैं. ऊपर लाफ्ट में गैस के 2 पुराने चूल्हे रखे हैं. सालों पुराने टूटेफूटे पीतल के बरतन भी विरासती धरोहर के नाम पर रखे हैं. किचन में आरओ लग गया है पर जाने क्यों, खराब और कबाड़ हो चुके वाटर फिल्टर को कोने में सहेज कर रखा गया है. बैडरूम का नजारा भी अलग नहीं. अलमारियों में कपड़े ठुंसे पड़े हैं. रद्दी और भद्दी हो चले कपड़ों की मानो सेल लगी हुई है और साडि़यों की तो बात ही करना बेकार है, जिन का काम महज संख्या बढ़ाना भर रह गया है. बच्चा अब बड़ा हो गया है लेकिन उस के छोटे कपड़े करीने से रखे गए हैं. गनीमत है डायपर सहेज कर नहीं रखे जा सकते वरना वे भी घर के कबाड़ को बढ़ा रहे होते. शादी के बाद खरीदी गई बैडशीट्स भी फोल्ड कर रख दी गई हैं, उन्हें भी फेंकने की इच्छा नहीं होती.

बरामदे में 20 साल पहले खरीदा गया टिन का कूलर स्टैंड दरवाजे के पीछे अंगद की तरह पांव जमाए खड़ा है. उस के साथ ही मौजूद है एक सैंट्रल टेबल और उस पर रखे 4 टूटे पौट, 3 दीवार घडि़यां जो वक्त नहीं बतातीं पर उन्हें देख याद किया जाता है कि वे किस वक्त, कहां से और कितने में खरीदी गई थीं. त का हाल तो और बेहाल है जहां विकलांग गमलों की भरमार है. 3 नग पुराने सूटकेस दर्जनों बारिश झेलने के बाद सड़ने के कगार पर हैं. उन पर फफूंद पल रही है, रैगजीन उखड़ चुकी है और हैंडल के अतेपते नहीं हैं. ऐसा दर्जनों सेवानिवृत्त सामान छत के माने खत्म कर रहा है पर उन्हें कबाड़े में बेचते नहीं बन रहा. किसी न किसी रूप में घर का यह हाल है जिस से उसे खासा यूनिक कहा जा सकता है. कोई नहीं सोचता कि बेवजह जगह घेरता यह कबाड़ा आखिर क्यों नुमाइश के लिए रखा गया है जो जगह भी घेरता है और तरहतरह की बीमारियों के बैक्टीरिया और वाइरस भी पालता है.

ऐसा नहीं है कि लोगों के पास नया सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं है बल्कि ऐसा है कि कबाड़ा फेंकने की हिम्मत लोगों में नहीं. जबकि च्चों और नई पीढ़ी को इस कबाड़ प्रेम या मोह पर सख्त एतराज है. उन्हें समझा दिया जाता है कि हमारे जिंदा रहने तक रहने दो. जब हम न हों तो इसे भी ठिकाने लगा देना. इस इमोशनल ब्लैकमेलिंग के शिकार युवा अस्तव्यस्त घर देख झल्ला उठते हैं कि ये प्लास्टिक की दर्जनों थैलियां और पन्नियां क्यों संभाल कर रखी गई हैं, इन्हें क्यों कबाड़ी को नहीं दे देते.

इस बार निकाल ही दें

यह ठीक है कि कबाड़ का कुछ सामान अभावों और संघर्ष के दिनों की याद दिलाता है लेकिन कबाड़ के दर्शन के तहत यह भी खयाल रखना चाहिए कि जिस तरह पुराने विचार नए विचार के आगमन में बाधक हैं, वही हालत पुराने सामान की भी है. व्यावहारिक बात यह भी है कि अब घर छोटे हो चले हैं जिन में एक सीमा तक ही सामान को रखा जा सकता है. उस से ज्यादा में वे अजायबघर लगने लगते है जो आनेजाने वालों को आप पर हंसने और तरस खाने का मौका देते हैं. तमाम बड़े शहरों में रह रहे नए दंपती कम से कम सामान में ज्यादा से ज्यादा काम चला रहे हैं. वे वक्त की मांग पर न केवल खरे उतर रहे हैं बल्कि साफसफाई से भी रह रहे हैं और जगह की बचत करते कबाड़ से होने वाले नुकसानों जैसे बीमारियों आदि से बचे भी रहते हैं.

30 साल पुरानी टूटी मिक्सी या टेबल फैन को रखने की कोई तुक नहीं है, न ही दीवार से टिके लोहे के जंग खाए पलंग किसी काम के हैं. इसलिए इस दीवाली खुद से सख्ती करें और ऐसा कूड़ाकरकट, कबाड़ खरीदने वाले को दे दें, वह जो कीमत देगा यकीन मानें वही उस का वास्तविक मूल्य बचा था. व्यवस्थित तरीके से रहने के लिए जरूरी है कि घर में बेकार का पुराना सामान न हो जो रोजमर्राई कामों में व्यवधान पैदा करता हो. बाथरूम में पुराने प्लास्टिक के टंगे स्टैंड बेकार हो चले हैं, उन्हें निकालें और लेटेस्ट डिजाइन के लाएं जिस से बाथरूम की खूबसूरती बढ़े, यही बात पूरे घर पर लागू होती है. जिन चीजों का कोई मूल्य नहीं होता वे अकसर अनुपयोगी होती हैं और अनुपयोगी आइटम मूल्य रहित होते हैं जिन्हें महज कबाड़ प्रेम के सनातनी मोह के तहत रखना, खुद की जिंदगी में खलल पैदा करना है. घर साफसुथरा और अनावश्यक चीजों से रहित हो तो ज्यादा सुंदर दिखेगा और आप भी सुकून महसूस करेंगे. बेहतर होगा इस दीवाली पुराना उपयोगी सामान, जो आप इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, नौकरों या जरूरतमंदों को दे दें. जरूरत इस बात की है कि लोग सामान को अखबार की तरह देखना शुरू करें जिस की उपयोगिता या जरूरत बहुत जल्द खत्म हो जाती है. कुछ महत्त्वपूर्ण आइटम पत्रिकाओं की तरह सहेज कर रखे जा सकते हैं पर खयाल रखें वे भी बहुत ज्यादा न हों.

तो आइए बाहर ठेले या लोडिंग आटो में घूमघूम कर चिल्ला रहे कबाड़ी, पुराना सामान दे दो, को वाकई कबाड़ा दे दें और यह संकल्प भी लें कि अब भविष्य में कबाड़ा इकट्ठा नहीं करेंगे. इस के लिए जरूरी है कि गैरजरूरी खरीदारी से बचें खासतौर से महिलाएं जो इन दिनों औनलाइन शौपिंग के जरिए अनापशनाप खरीदारी कर भविष्य का कबाड़ इकट्ठा कर रही हैं. याद रखें, कूड़ाकबाड़ा न सिर्फ घरों में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है बल्कि धूलमिट्टी व बैक्टीरिया की शक्ल में कई अनचाही बीमारियों को आमंत्रण भी देता है. इसलिए सफाई के दौरान इस त्योहार आप की पहली प्राथमिकता घर को कबाड़ से मुक्त करने की हो.

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