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आखिर अनिल कपूर बुरी तरह से मात खा गए

इन दिनों अनिल कपूर कुछ ज्यादा ही परेशान नजर आ रहे हैं. अनिल कपूर की समझ में नहीं आ रहा है कि अब वह क्या करें? अनिल कपूर निर्मित और उनकी मुख्य भूमिका से सजे ‘‘कलर्स’’ चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘24’’ के दूसरे सीजन को दर्शकों ने एकदम से नकार दिया. अनिल कपूर का यह सीरियल इसी नाम के अमरीकन सीरियल का भारतीय संस्करण है. इसके पहले सीजन को जबरदस्त सफलता मिली थी. जिससे प्रेरित होकर अनिल कपूर इसका दूसरा सीजन पूरे अठारह माह बाद लेकर आए. मगर इस बार अनिल कपूर के सीरियल की बहुत दुर्गति हो रही है.

जबकि अनिल कपूर ने अपने इस सीरियल के लिए दर्शक जुटाने के लिए सारे प्रयास कर डाले. इस सीरियल के प्रचार के लिए अनिल कपूर ने कई स्टंट किए. वह मुंबई की लोकल ट्रेन में चढ़कर चलती ट्रेन से बाहर लटकते हुए नजर आए. ट्वीटर पर तस्वीरें डालीं. वह अपने इस सीरियल के प्रचार के लिए दुबई भी गए.

इसके अलावा वह ‘कलर्स’ चैनल के सीईओ राज नायक के साथ लंदन जाकर कुछ प्रेस काफ्रेंस करके वहां के पत्रकारों से अपने इस सीरियल के बारे में बातें करके आ गए. लेकिन वह इस सीरियल के दर्शक बढ़ाने के लिए इस देश से उस देश भाग रहे हैं या सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं, उतनी ही तेजी से उनके दर्शक कम होते जा रहे हैं. ‘बीएआरसी’ आंकड़ो के अनुसार 23 जुलाई को प्रसारित सीरयल ‘24’ के एपिसोड को तेरह लाख दर्शक मिले थे, जबकि 14 अगस्त को प्रसारित सीरियल ‘24’ के एपिसोड को महज छह लाख दर्शक मिले. अब तक के भारतीय टीवी के इतिहास में किसी भी सीरियल को इतने कम दर्शक नहीं मिले. मजेदार बात यह है कि 13 अगस्त को प्रसारित ‘झलक दिखला जा’ के एपिसोड को सत्ताइस लाख से अधिक दर्शक मिले. अब कहां 27 लाख और कहां 6 लाख.

अब एक तरफ ‘कलर्स’ चैनल की रचनात्मक टीम और अनिल कपूर के होश उड़े हुए है, उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह किस तरह सीरियल ‘‘24’’ के दर्शकों की संख्या बढ़ाए. उधर टीवी इंडस्ट्री में तमाम लोग जश्न मना रहे हैं. सूत्रों की माने तो अब टीवी इंडस्ट्री के कई प्रोड्यूसर्स को अनिल कपूर पर तंज कसने का अवसर मिल गया है. टीवी इंडस्ट्री में यह चर्चा भी काफी जोरों पर है कि अनिल कपूर जितना समय व पैसा दुबई या लंदल जाकर वहां के पत्रकारों के साथ मिलने के लिए बर्बाद कर रहे है, वही समय यदि वह अपने सीरियल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए रचनात्मक ढंग से सोचने पर खर्च करते,तो ज्यादा बेहतर होता.. काश अनिल कपूर सीरियल की गुणवत्ता को सुधारने के साथ ही भारतीय दर्शकों तक अपने इस सीरियल को पहुंचाने के लिए भारतीय पत्रकारों के साथ बैठकर गुफ्तगूं करते तो शायद स्थिति सुधर जाती. लेकिन भारतीय पत्रकारों से मिलने के लिए अनिल कपूर के पास समय का बड़ा अभाव है..उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया व विदशों में जाकर वहां की मीडिया से बात करके जंग जीत लेंगे…खैर,हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं…

38 करोड़ 50 लाख डॉलर में बिका टेन स्पोर्ट्स

मीडिया कंपनी जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज लिमिटेड (जील) ने अपने स्पोर्ट्स चैनल ‘टेन स्पोर्ट्स’ को पूर्ण नकदी करार के तहत सोनी पिक्चर्स को 38 करोड़ 50 लाख डॉलर (लगभग 2579 करोड़ रूपये) में बेच दिया है.

जील ने मुंबई स्टॉक एक्सचेंज को बताया, ‘‘कंपनी के बोर्ड निदेशकों ने कंपनी के खेल प्रसारण व्यवसाय की सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्‍स इंडिया (एसपीएन) को बिक्री और स्थानातंरण की स्वीकृति दे दी है. यह पूर्ण नकदी करार 38 करोड़ 50 लाख डॉलर का है.’’

जील ने कहा कि कंपनी और उसकी अधीनस्थ कंपनियों ने इस संबंध में जरूरी करार पूरा कर लिया है. कंपनी ने बताया कि फिलहाल उसका खेल प्रसारण व्यवसाय मॉरिशस की ताज टीवी लिमिटेड के अंतर्गत आता है जो टेलीविजन चैनलों के ‘टेन’ ब्रांड के टीवी चैनलों और ताज टेलीविजन (इंडिया) के जरिये सामग्री के वितरण और प्रसारण का व्यवसाय करता है.

ताज टेलीविजन (इंडिया) के पास मॉरिशस के ताज टीवी लिमिटेड के स्वामित्व वाले खेल चैनल के भारत में डाउनलिंकिंग, वितरण, विपणन और खेल चैनल पर विज्ञापन की बिक्री के एक्सक्लूसिव अधिकार हैं.

कंपनी के कुल राजस्व में खेल प्रसारण व्यवसाय का कुल हिस्सा 631 करोड़ रूपये था और 2015-16 में 37 करोड़ 20 लाख रूपये का नुकसान हुआ था. जील ने 2006 में दुबई के अब्दुल रहमान बुखातिर के ताज समूह से टेन स्पोर्ट्स को खरीदा था.

टेन स्पोर्ट्स के जिन चैनलों का अधिग्रहण किया गया है उनमें टेन 1, टेन 1एचडी, टेन 2, टेन 3, टेन गोल्फ एचडी, टेन क्रिकेट, टेन स्पोर्ट्स शामिल हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप सहित मालदीव, सिंगापुर, हांगकांग, कैरेबिया और पश्चिम एशिया के कई देशों में संचालन करता है.

किसे टक्कर देने आ रही हैं राखी सावंत?

आइटम गर्ल के रूप में मशहूर अभिनेत्री राखी सावंत इन दिनों काफी उत्साहित हैं. उनके इस उत्साह की वजह यह है कि वह अब आइटम गर्ल की बजाय फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ में हिरोईन बनकर आ रही हैं.

9 सितंबर को वह अपनी इस फिल्म के साथ कटरीना कैफ की फिल्म ‘बार बार देखो’ को टक्कर देने जा रही हैं. राखी सावंत को लग रहा है कि ‘फितूर’ और ‘फैंटम’ जैसी फिल्मों की असफलता के चलते वह कटरीना कैफ की फिल्म ‘बार बार देखो’ को पछाड़ देंगी.

ज्ञातब्य है कि अवध शर्मा निर्मित फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ शीना मर्डर कांड पर आधारित है. इसमें राखी सावंत ने इंद्राणी मुखर्जी का किरदार निभाया है.

एक खास मुलाकात में राखी सावंत ने कहा, ‘‘मगर मेरी दिली तमन्ना ‘लेडी सलमान खान’ बनने की है. सलमान खान बॉक्स आफिस के राजा हैं. विद्या बालन ने भी बॉक्स आफिस पर कमाल दिखाया है. 9 सितंबर को मेरी फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ के साथ ही कटरीना कैफ की फिल्म ‘बार बार देखो’ रिलीज होने वाली है. तो मैं भी कटरीना कैफ को जबदस्त टक्कर देना चाहती हूं. यही मेरा इरादा है.’’

राखी सावंत ने अगे कहा कि ‘‘शाहरुख खान, कपिल शर्मा, गोविंदा, टीवी कलाकार, क्रिकेटर, यह सभी सोशल मीडिया पर मुझे व मेरी फिल्म के लिए सपोर्ट कर रहे हैं. यह सभी कलाकार इस बात को लेकर खुश हैं कि मैं पहली बार ‘आइटम गर्ल’ से उपर उठकर किसी फिल्म में हिरोइन बनकर आ रही हूं. कभी कभी मुझे लगता है कि मेरा बहुत बड़ा सपना पूरा हुआ है. तो कभी कभी लगता है कि मैं तो हिरोइन बनने के काबिल ही नहीं हूं. लेकिन इन दिनों बॉलीवुड में इतनी आड़ी टेढ़ी हिरोइनें आ रही हैं कि मुझे भी लगा कि अब मुझे भी ‘आइटम गर्ल’ की बजाय हिरोइन बनना चाहिए.ऐसे में जैसे ही मुझे अवध शर्मा ने फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ में हिरोईन बनने का ऑफर दिया, मैंने तुरंत लपक लिया.’’ 

हौसलों में उड़ान होती है: प्रेमलता अग्रवाल

साल 2011 में एवरेस्ट पर विजयी पताका लहरा कर प्रेमलता अग्रवाल निश्चिंत होकर नहीं बैठ गई हैं. अब वह दक्षिण अफ्रीका के किलीमंजारो पर्वत और अंटार्कटिका पर फतह पाने के सपने को साकार करने की तैयारियों में लगी हुई हैं. एवरेस्ट फतह करने वाली सबसे ज्यादा आयु की महिला होने का विश्व रिकार्ड उनके नाम है. वह कहती हैं- ‘मजबूत इरादों से हर उम्र में हर मुश्किल पर जीत हासिल की जा सकती है. उम्र चाहे जो भी हो संघर्ष से हर जंग जीती जा सकती है.’

ऊंचे पहाड़ों के शिखरों को छूने की उनकी कोशिश एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद खत्म नहीं हुई, बल्कि एक के बाद एक दुनिया के तमाम ऊंची शिखरों पर कदम रख डाला. दक्षिण अफ्रीका के तंजानिया के किलिमंजारो (5895 मीटर), अमेरिका के माउंट एकानकरगुआ (6962 मीटर), यूरोप के माउंट एल्ब्रस (5642 मीटर), आट्रेलिया के कासेंस पिरामिड (4884 मीटर) और अंर्टाटिका के माउंट विन्सन (4897 मीटर) की चोटियों पर जीत का झंडा फहरा चुकी हैं. अब वह उत्तर अमेरिका के 6196 मीटर ऊंची  चोटी माउंट मैकिनले पर चढ़ाई करने की तैयारियों में लग गई हैं.

1963 में सिलीगुड़ी में जन्मी प्रेमलता बताती हैं कि बेटी को स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग दिलवाते-दिलवाते उनमें भी स्पोर्ट्स में दिलचस्पी पैदा हो गई. उन्हीं दिनों टाटा में वाकिंग कॉम्पीटिशन में हिस्सा लिया और उसी दौरान मशहूर पर्वतारोही और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की प्रमुख बछेंद्री पाल से मिलने का मौका मिला. उनकी औफिस में लगी मांउंटेनिंग की तस्वीरें देख कर उनमें माउंटेनिंग करने और उंचे पहाड़ों को फतह करने का सपना देख लिया. उसके बाद अपने सपने को साकार करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और 6 साल की कड़ी मेहनत के बाद 45 साल की आयु में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली उम्रदराज महिला बन गई.

उसके बाद एक के बाद एक कई चोटियों पर विजयी पताका लहरा कर उन्होंने  साबित कर दिया कि कामयाबी हासिल करने के लिए उम्र कोई रूकावट नहीं बनती है, सपना, मेहनत और लगन से हर मंजिल की राह आसान बन जाती है. पिछले दिनों इस माउंटेन वूमेन को भारत सरकार ने पद्मश्री के खिताब से नवाजा.

झारखंड के जमशेदपुर शहर में रहने वाली प्रेमलता कहती हैं कि जज्बे से ही जीत मिलती है. अकसर लोग कहते मिल जाते हैं कि उनकी उमर हो गई है अब क्या काम करें? घर-गृहस्थी में फंसने की दुहाई दी जाती है. यह सब बहानाबाजी ही होता है. जिस चीज के प्रति आदमी का इंटरेस्ट होता है उसके लिए वह किसी न किसी तरह से समय निकाल ही लेता है. बछेंद्री पाल की देखरेख और उनसे ट्रेनिंग लेकर प्रेमलता ने 20 मई 2011 को 8848 मीटर ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा दिया.

सिलीगुड़ी के व्यवसायी रामावतार अग्रवाल और शारदा अग्रवाल के घर पैदा हुई प्रेमलता बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें पढ़ने से ज्यादा खेलकूद में मन लगता था. बड़ा परिवार होने और पिता की व्यस्तताओं की वजह से वह अपने खेलकूद के शौक को आगे नहीं बढ़ा सकी. मां-बाप के 9 संतानों में दूसरे नंबर की प्रेमलता कहती हैं कि बड़ा परिवार होने के कारण परिवार का खर्च कापफी मुश्किल से चल पाता था. विमल अग्रवाल से विवाह होने के बाद वह जमशेदपुर आ गई.

मजबूत इरादों, हिम्मत और जुनून का दूसरा नाम है प्रेमलता अग्रवाल. उनकी एक बेटी की विवाह हो चुकी है और दूसरी बेटी नौकरी कर रही है. प्रेमलता का विवाह 18 साल की उम्र में ही हो गया था. विवाह के बाद वह परिवारिक काम-काज में पूरी तरह से रम गई थी. बछेंद्री पाल से मिलने के बाद तो प्रेमलता के सपनों और हौसलों को मानो पंख लग गए. पति बिमल अग्रवाल से उन्होंने जब एवरेस्ट पर चढ़ने की बात कही तो पहले वह हैरान हुए, पर बाद में उनकी लगन को देखकर प्रोत्साहन देने लगे. उसके बाद से प्रेमलता ने लगातार 12 सालों तक माउंटेनिंग की ट्रेनिंग ली, जिसमें बछेन्द्री पाल ने काफी मदद और हौसला आफजाई की. 25 मार्च 2011 को आखिर वह दिन आया जिस दिन उन्होंने 8848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई शुरू की थी.

वह बताती हैं कि शरीर को बेधने वाली बर्फीली हवाएं, चारों ओर फैला बर्फ ही बर्फ, पीठ पर लादा भारी सामान, बर्फ का तेज तूफान, ऊंची- ऊंची चढ़ाई, जीरो से 20 डिग्री कम टेम्प्रेचर के बीच भी एवरेस्ट को छूने का हौसला कमजोर नहीं हुआ. बर्फीले सफर का खौफनाक दास्तान बताते हुए वह कहती हैं- ‘25 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची थी तो अचानक मौसम बहुत ज्यादा खराब हो गया. ज्यादातर लोग वापस लौटने लगे, पर हमने हिम्मत नहीं हारी. मौसम के ठीक होते ही फिर चढ़ाई चालू की. 27 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची तो ऑक्सीजन मशीन खराब हो गया. उसे ठीक करने के लिए दायें हाथ का गलव्स खोला तो वह तेज हवा में उड़ गया. हाथ ठंड से जड़ होने लगा. तभी पास में एक पुराना गलव्स गिरा हुआ मिल गया तो उससे राहत मिली.’

आगे वह बताती हैं कि मौसम जब ज्यादा खराब हो जाता था तो साथ चल रहे शेरपा उनका मजाक उड़ाते और फब्तियां कसते थे. वे कहते थे कि जिस उमर में लोग घर में आराम करते हैं. नाती और पोतों को खिलाते हैं, उस उमर में पता नहीं क्या सूझा कि एवरेस्ट पर चढ़ने चली आई. कभी शेरपा कहते थे कि  तुम्हें अपने घर परिवार, पति और बच्चों से प्यार नहीं है क्या? इन सबके बाद भी प्रेमलता का हौसला कमजोर नहीं हुआ और वह सबसे ज्यादा उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बन गईं.

प्रेमलता के कोच निर्मल पांडे कहते हैं कि प्रेमलता मजबूत इरादों वाली महिला हैं. उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कामयाबी पाने के लिए कोई उम्र नहीं होती है. इंसान में हिम्मत, हौसला, लगन और मेहनत करने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं हैं.

शिक्षा को बीमारू बना रहा ‘मुफ्त पब्लिसिटी’ का रोग

बिहार की रूबी राय के बाद लखनऊ का अनन्या वर्मा प्रकरण शिक्षा के बाजारीकरण पर नये सवाल उठा रहा है. जिससे साफ लगता है कि मुफ्त की पब्लिसिटी का रोग शिक्षा को बीमारू बना रहा है.

जिस कॉलेज के बच्चे सबसे ज्यादा टॉप करते है वहां प्रवेश के लिये सबसे लंबी लाइन लगती है. वह स्कूल मनमानी फीस वसूलने लगता है. इस तरह की सफलता से स्कूल को मुफ्त का प्रचार मिलता है. स्कूल नये-नये प्रयोग करते है.

बिहार में टॉप करने वाली रूबी राय के बाद उत्तर प्रदेश में 4 साल 7 माह की बच्ची अनन्या वर्मा का प्रकरण चर्चा में है. उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग और समाजसेवियों की दखल से पता चला कि अनन्या वर्मा को 4 साल 7 माह की उम्र में 9वीं कक्षा में प्रवेश देने का फैसला सही नहीं था.

उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग अब अनन्या का आईक्यू टेस्ट कराकर देखेगा कि वह किस कक्षा में प्रवेश के लायक है. यही नही कक्षा 9 में अनन्या के प्रवेश की अनुमति देने वाले लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक को भी नोटिस जारी कर 5 सितम्बर तक जवाब देने को कहा गया है.

अनन्या वर्मा लखनऊ के रहने वाले तेज प्रताप वर्मा की बेटी है. उसकी उम्र 4 साल 7 माह है. पिता तेज प्रताप के मुताबिक अनन्या एक बहुत प्रतिभाशाली बच्ची है. इस बात की जानकारी तेज प्रताप ने सेंट मीराज स्कूल को दी. स्कूल ने इस संबंध में लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक को जानकारी देते हुए अनन्या के 9 वी कक्षा में प्रवेश दिये जाने की अनुमति मांगी.

जिला विद्यालय निरीक्षक की अनुमति के बाद अनन्या का मामला सुर्खियों में आ गया. दरअसल इसकी एक वजह और भी है. अनन्या की बड़ी बहन सुषमा वर्मा के साथ भी पहले ऐसा हो चुका है. सुषमा वर्मा ने सेंट मीराज स्कूल से ही 7 साल 3 माह में हाईस्कूल पास किया. 15 साल की उम्र में एमएससी करने के बाद 16 साल में वह पीएचडी कर रही है. सुषमा ने 7 साल में 10 वीं पास करने और फिर एमएससी पीएचडी करने के चलते सेंट मीराज स्कूल और सुषमा वर्मा दोनो सुखियों में छाये रहे. उन्हें कई तरह के पुरस्कार भी मिले.

अनन्या के पिता का कहना है कि इतने ही गुण सुषमा में भी थे स्कूल के गाइडेंस के बाद वह कम उम्र में ही सफल हो गई. जब एक ही परिवार की सगी बहनों के प्रतिभाशाली होने की खबरों ने मामले को संदिग्ध बना दिया तब उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग को दखल देनी पड़ी.

आयोग की अध्यक्ष जूही सिंह और समाजसेवी डॉक्टर पूजा अवस्थी और विनिका करौली ने अनन्या वर्मा की जांच की तो उनको यह लगा कि अनन्या दूसरे बच्चों से बेहतर है पर ऐसा नहीं कि उसका प्रवेश कक्षा 9 में दे दिया जाये. 4 साल 7 माह की उम्र में सामान्य बच्चा कक्षा 1 तक भी नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में अनन्या को कक्षा 9 में प्रवेश दिया जाना सवालों के घेरे में है. शिक्षा विभाग के साथ ही साथ सेंट मीराज स्कूल भी सवालों के घेरे में है.

उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष जूही सिंह ने कहा कि अनन्या वर्मा का आईक्यू टेस्ट कराने के बाद एक्सपर्ट की राय पर यह तय होगा कि उन्हें किस कक्षा में दाखिला दिया जायेगा. मगर अब वह सेंट मीराज इंटर कालेज में नहीं पढेगी.

अगर स्कूल और परिवार बच्चों के साथ इस तरह की व्यवहार करेगे तो बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो सकते है. अनन्या के पिता मीडिया की भूमिका से खुश नहीं है. उनका कहना है कि जिस तरह से अनन्या से सवाल पूछे जा रहे है उससे उनको धक्का लगा है. अनन्या अपनी बड़ी बहन सुषमा की ही तरह प्रतिभाशाली है.

मुलायम का ‘अयोध्या प्रलाप’

राजनीति मुद्दों को सफलता की सीढ़ी बनाकर कुर्सी हासिल करती है और फिर मुद्दों को वहीं छोड़ देती है. उत्तर प्रदेश की अयोध्या इसकी सबसे बड़ी मिसाल है.

पिछले 30 सालों में उत्तर प्रदेश का कोई भी चुनाव अयोध्या पर बयान के बिना पूरा नहीं हुआ. केवल भाजपा ही नहीं सपा और दूसरे दल भी अयोध्या के वोटबैंक का लाभ लेने में चूकते नहीं.

अब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार के समय अयोध्या गोलीकांड को सही ठहराकर मुद्दे को हवा देने की शुरूआत की है. आज मुलायम सिंह को इस बात का भी मलाल है कि अयोध्या के नायक कल्याण सिंह को सपा में शामिल करने की गलती की थी.

मुलायम ने अयोध्या का जिक्र यूंही नहीं किया है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में वोटो के धार्मिक ध्रुवीकरण के लिये यह कवायद की है. मुलायम सिंह यह भूल गये हैं कि वोटो का धार्मिक ध्रुवीकरण कई बार बैक फायर कर जाता है.

लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने हैं. मुलायम का ‘अयोध्या प्रलाप’ अखिलेश यादव के विकास के मुददे को प्रभावित कर सकता है.   

अयोध्या में राममंदिर के समर्थन और विरोध की राजनीति करने वाले सभी दलों ने उसे वोट बैंक बनाकर सत्ता की कुर्सी हासिल की, पर अयोध्या की सुध लेने वाला कोई नहीं हुआ.

अयोध्या के राममंदिर विवाद के बाद वहां के हालात दिन-ब-दिन लगातार खराब ही होते गये हैं. पहले जहां अयोध्या के हर मंदिर में रौनक रहती थी इनमें अब ज्यादातर मंदिर सूने दिखते है. ज्यादातर मंदिरों में संपत्ति और जायदाद को लेकर झगड़े हो रहे हैं. कई मंदिरों में यह झगड़े हत्या तक पहुंच गये हैं. राम मंदिर आन्दोलन के बाद हुये विवाद के चलते अयोध्या की रौनक खो गई है.

अब यहां घुसते ही सुरक्षा कर्मी दिखते हैं. राम मंदिर के आसपास वीरानी सी छाई रहती है. यह मंदिर न दिखकर किसी जंगल में बना टीला सा दिखता है.

यह हालत केवल राममंदिर की ही नहीं है. यहां के दूसरे छोटे बड़े मंदिर भी इसी तरह बेहाली का शिकार हो गये हैं. लखनऊ गोरखपुर हाईवे से नीचे उतरते ही अयोध्या की बदहाली दिखने लगती है. अयोध्या को खूबसूरत बनाने और पर्यटन का बढ़ावा देने के लिये सरकार ने काम तो बहुत किये पर सब बेमानी दिखते है.

हरिद्वार में हरी की पैडी की तरह ही अयोध्या में राम की पैडी सरयू नदी के किनारे बनाया गया था. यहां के घाट दुर्दशा का शिकार हो गये है. सरयू का पानी गंदगी से भरा दिखता है. अयोध्या के अंदर बनी गलियां पक्की नजर आती है पर इसके चारो तरफ अव्यवस्था साफ नजर आती है.

यही वह अयोध्या है जिसकी राजनीति करके भारतीय जनता पार्टी से 2 सांसदो से संसद में अपना सफर तय करके बहुमत की सरकार बना ली.

समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी बनाकर सत्ता हासिल कर ली. इसके पहले मुलायम सिंह यादव लोकदल और दूसरी पार्टी में सामान्य नेता की तरह राजनीति करते थे.

अयोध्या आंदोलन के समय ही समाजवादी पार्टी का गठन हुआ और प्रदेश की सत्ता हासिल की. आज भी अयोध्या में समाजवादी पार्टी के विधायक पवन पांडेय है. अखिलेश सरकार में वह मंत्री भी बने. अयोध्या में राम मंदिर के आसपास रहने वाले अब अपने पैत्रक आवास छोड़ने को मजबूर है. यह लोग न अपने घर में नया निर्माण करा सकते है और न ही गिर रहे मकानों को सही करा सकते हैं.

कुछ भी निर्माण करने से पहले जिला प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ती है. इनके घर आने वाले लोगों की निगरानी होती है और हर आने वाले को अपनी तलाशी भी देनी पड़ती है. 

एक करोड़ घरों में आज दिवाली

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक 31 अगस्त को 50 लाख के करीब केंद्रीय कर्मचारियों के खाते में बढ़ा हुआ वेतन और सात महीने का बकाया आएगा. सरकार ये भी कोशिश में है कि 50 लाख के करीब पेंशनर्स को भी नई व्यवस्था के हिसाब से बढ़ा हुआ पेंशन और बकाया पहली सितम्बर तक मिल जाए.

केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनधारकों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें पहली जनवरी से लागू मानी गई है. हर दस साल के बाद लागू होने वाली नयी वेतन व्यवस्था में केंद्रीय कर्मियों के मूल वेतनमान में 14.2 फीसदी से 23.4 फीसदी के बीच बढ़ोतरी है. हालांकि अभी तमाम भत्ते पुरानी व्यवस्था के हिसाब से ही मिलते रहेंगे, क्योंकि इनमें फेरबदल पर सुझाव देने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है जिनकी सिफारिशें आने के बाद ही इस बारे में कोई फैसला होगा.

नए मूल वेतन में महंगाई भत्ते को मिला दिया गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो नए वेतनमान में महंगाई भत्ता शून्य हो गया है. महंगाई भत्ते में हर साल दो बार फेरबदल होता है, एक, पहली जनवरी से और दूसरा पहली जुलाई से. पहली जनवरी से लागू होने वाले महंगाई भत्ते में फेरबदल का ऐलान आम तौर पर होली के समय और जुलाई वाले का दुर्गापूजा के ऐन पहले होता है. अब उम्मीद है कि अगले महीने नए महंगाई भत्ते का ऐलान कर दिया जाए जिससे त्यौहारों के समय कर्मचारियों को अतिरिक्त पैसा मिल सके.

वैसे तो केंद्रीय कर्मियों को सात महीने का एकमुश्त बकाया दिया जा रहा है, लेकिन छठे वेतन आयोग से तुलना करे तो बकाया काफी कम बनता है. चूंकि छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट आने और सिफारिशों पर अमल आने में दो साल से भी ज्यादा का वक्त लग गया था, इसीलिए केंद्रीय कर्मियो को लाखों रुपये बकाया मिले थे.

इस बार शुरुआती स्तर के केंद्रीय कर्मचारियों का बकाया 15750 रुपये और सचिव स्तर का बकाया 31500 रुपये बनता है. बहरहाल, जो-जो कर्मचारी इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं, उन्हें बकाये का भुगतान 10 से लेकर 30 फीसदी की दर पर इनकम टैक्स काटने के बाद ही बकाया मिलेगा.

जो केंद्रीय कर्मी जनरल प्रॉविडेंट फंड यानी जीपीएफ में योगदान करते हैं, उनके लिए ये देखा जाएगा कि हर महीने नए मूल वेतन का कम से कम छह फीसदी जरुर जमा हो. नियमों के मुताबिक केद्रीय कर्मी 100 फीसदी तक मूल वेतन जीपीएफ में जमा करा सकते हैं और सरकार का अनुमान है कि ज्यादातर केंद्रीय कर्मी स्वेच्छा से छह फीसदी से कहीं ज्यादा जीपीएफ में जमा करते रहे हैं, लिहाजा ऐसे कर्मचारियों के बकाये से कोई पैसा जीपीएफ में नहीं जाएगा. वहीं दूसरी ओर 1 जनवरी 2004 से केंद्र सरकार की नौकरी में शामिल होने वालों को मूल वेतन का कम से कम 10 फीसदी न्यू पेंशन फंड यानी एनपीएस में जमा कराना जरुरी होता है. ऐसे लोगों के लिए बकाये का कुच हिस्सा एनपीएस में जमा होगा.

बाजार की नजर

इस बीच, टी वी, फ्रिज और एसी जैसे उपभोक्ता सामान के बाजार की नजर केंद्रीय कर्मियों पर है. बकाये की रकम को देखते हुए उम्मीद यही है कि केंद्रीय कर्मी ऐसे ही नए सामान खरीदने की कोशिश करेंगे. वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल के बाद कार की बिक्री में तेजी आने के ज्यादा आसार नहीं. गौरतलब है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल के बाद कार की बिक्री काफी तेजी से बढ़ी थी, क्योंकि 2008 में लाखों रुपये बकाया के तौर पर मिले थे.

वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल से केद्र सरकार का सालाना खर्च 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ जाएगा. दूसरी ओर केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें और दूसरी संस्था अपने अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाती हैं. इसीलिए अनुमान है कि बाजार में कुल मांग चार लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो सकती है, वहीं सरकार को इनकम टैक्स के तौर पर 30 हजार करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त कमाई हो सकती है.

अब इन ऐप्स की मदद से ढूढ़ें साइलेंट फोन

फोन साइलेंट रखकर कहीं भूल जाना कई लोगों की आदत है. काफी समय तक फोन ढूढते रहते हैं. अगर आप भी फोन साइलेंट रखकर परेशान होते रहते हैं तो परेशान बिल्कुल मत होइए आज हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे ऐप्स जो आपके साइलेंट फोन को ढूढने में आपकी मदद करेंगे.

क्लैप टू फाइंड ऐप

इस ऐप की मदद से आप अपने साइलेंट फोन को ताली बजाकर ढूढ सकते हैं. ये ऐप ऑफलाइन काम करता है. इस ऐप को आप गूगल प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं.

व्हिसल फोन फाइंडर प्रो ऐप

अगर ये ऐप आप डाउनलोड करते हैं तो सीटी बजाकर आप अपना साइलेंट फोन ढूढ सकते हैं. जैसे ही आप ताली बजाएंगे अपना फोन बजने लगेगा. इसे भी आप गूगल प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं.

रिंग माइ ड्रॉयड

अगर आपको आप साइलेंट फोन रखकर भूल जाने की आदत है तो ये ऐप आपकी बहुत मदद कर सकता है. इसके लिए आपको अपने फोन पर मैसेज करना होगा. आपका फोन बजने लगेगा.

क्लैप फोन फाइंडर

इस ऐप को आप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं. साइलेंट फोन ढूढने के लिए बस आपको क्लैपिंग करनी होगी.

मेसी के विश्व कप क्वालीफायर में खेलने पर संशय

अर्जेंटीना फुटबॉल टीम के करिश्माई स्ट्राइकर लियोनल मेस्सी के स्पेनिश क्लब बार्सिलोना ने इस बात की पुष्टि की है मेस्सी मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या से जूझ रहे हैं.

मेस्सी को चोटिल होने की पुष्टि के साथ उनके विश्व कप क्वालिफायर मुकाबले में अर्जेंटीना के लिए खेलने की संभावना क्षीण हो गई है.

हाल ही में अपने संन्यास के फैसले को पलटते हुए मेस्सी ने अर्जेंटीना की राष्ट्रीय टीम में वापसी की पुष्टि तो कर दी है, लेकिन चोटिल होने के कारण वह अगले कुछ मुकाबले नहीं खेल पाएंगे.

बार्सिलोना क्लब ने ट्वीट किया, ‘‘मेस्सी मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या से गुजर रहे हैं, लेकिन वह अर्जेंटीना जाएंगे और अपनी राष्ट्रीय टीम के साथ जुड़ेंगे, जहां वह अपनी चोट की जांच भी करवाएंगे.’’

अर्जेंटीना को उरुग्वे और वेनेजुएला के खिलाफ विश्व कप क्वालिफायर मुकाबले खेलने हैं. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वह उरुग्वे के खिलाफ होने वाले मुकाबले में टीम के साथ शामिल हो सकते हैं.

फेसबुक पता कर सकता है आपका बैंक बैलेंस

फेसबुक और व्हाट्सऐप अब एक दूसरे से अपना डेटा शेयर करेंगे. इस खबर से दुनिया भर की मीडिया में खलबली मच गई है.

फेसबुक की दलील है कि इससे आपको जो दोस्त बनाने के सुझाव मिलते हैं उन्हें और बेहतर बनाया जा सकेगा.

इससे विज्ञापन दिखाने में भी उसे आसानी होगी और हो सकता है आपके मतलब के विज्ञापन वो दिखा पाएगा.

इस बदलाव के बाद व्हाट्सऐप अब लोगों की जगह कंपनियों से पैसे लेकर पैसे बनाने की कोशिश कर रहा है.

फेसबुक ने व्हाट्सऐप को 2014 में 19 बिलियन डॉलर यानि करीब सवा लाख करोड़ रुपये से कुछ ज़्यादा में खरीदा था.

फेसबुक के खरीदने के बाद व्हाट्सऐप के प्रमुख यान कूम ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि कुछ डेटा फेसबुक के साथ शेयर किया जाएगा.

फेसबुक के पास आपकी बैंक डिटेल

फेसबुक अब चाहता है कि वो ऐसे तरीके ढूंढें जिससे कंपनियां व्हाट्सऐप इस्तेमाल करके अपने ग्राहकों तक पहुंच सकती हैं.

हो सकता है बैंक अपने ग्राहकों को किसी फ्रॉड ट्रांसेक्शन के बारे में पहले से ही बताएं या फिर कोई एयरलाइन अपनी लेट हो रही फ्लाइट के बारे में बताए. ऐसा करने के लिए व्हाट्सऐप को अपनी प्राइवेसी पॉलिसी में बदलाव करना पड़ेगा.

लेकिन अगर बैंक आपके मैसेज व्हॉट्सऐप के जरिये भेजेगा तो ये बात साफ है कि फेसबुक को आपके बैंक के बैलेंस और बैंक बैलेंस के अलावा दूसरी जानकारी भी मिल जाएगी.

आम लोगों के बारे में जिस तरह की जानकारी फेसबुक इकठ्ठा कर रहा है उसे देखते हुए इसके लिए शायद सभी लोग तैयार नहीं होंगे.

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