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महान बनाए जाते हैं

हथेलियों पे सजा कर उठाए जाते हैं

महान होते नहीं हैं, बनाए जाते हैं

खुला है खेल ये गालिब, फरक्काबादी है

कि लेनदेन से सौदे पटाए जाते हैं

तुझे बुलंदी की हसरत, उसे शबाब तेरा

हवस में दोनों अदब को जलाए जाते हैं

जो बेच आते हैं शोहरत के भाव तन अपना

सितारे वही जगमगाए जाते हैं

जो लोग लेते हैं ठेका महान करने का

हमीं में, आप में शातिर वो पाए जाते हैं

कोई भी शै नहीं मिलती जहां में फोकट में

महानता के भी डौलर चुकाए जाते हैं.

                     –  राम मेश्राम

इन्हें भी आजमाइए

– अगर आप को अकसर सनबर्न हो जाता है तो खीरे का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें और खीरे को पीस कर चेहरे पर लगाएं. इस से त्वचा की लालिमा सही हो जाती है और खुजली भी नहीं होती.

– शकरकंद में कैलोरी और स्टार्च दोनों की मात्रा सामान्य होती है, जो वर्कआउट के बाद खाई जाए तो स्टैमिना और एनर्जी लेवल बढ़ता है.

– मछली को पकाने से पहले धोते वक्त पानी में हलदी और नमक मिला लें क्योंकि इन में मौजूद एंटी बैक्टीरियल एजेंट गंदगी को दूर कर कीटाणुओं को खत्म करते हैं.

– फटे दूध के पानी का प्रयोग उपमा बनाते समय कीजिए. अगर आप उपमा में टमाटर या दही मिलाती हैं तो उसे न मिला कर, फटे दूध का पानी ही मिलाएं.

– एक कप अदरक वाली ब्लैक टी पीने से आप की पूरे दिन की थकान दूर हो जाती है. यह चाय आप के अंदर ऊर्जा को बढ़ाती है और साथ ही तनाव से दूर रखती है.

– चेहरे को चमकाने के लिए स्क्रब सभी करते हैं लेकिन कौफी के पेस्ट से स्क्रब करने से काफी आराम मिलता है. स्किन में शाइन आ जाती है और चकत्ते भी दूर हो जाते हैं.

 

खेल से पहले राजनीति का खेल

खेल संघों में जो राजनेता कुंडली मार कर बैठे हुए हैं या बैठना चाहते हैं वे जब खेल की बात आती है तो एक बात जरूर कहते हैं कि खेल में राजनीति नहीं होनी चाहिए. यही कह कर वे अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहते हैं. जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच खेला जाना हो तो राजनेताओं की बाछें खिल जाती हैं. अपनी राजनीति चमकानी हो तो भारत और पाकिस्तान के बीच मैच होना चाहिए, दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधरने की बात हो तो मैच होना चाहिए. अगर दोनों देशों के बीच बातचीत हो रही है और उसे रुकवाना हो तो मैच का विरोध होना चाहिए. जैसा कि टी 20 विश्वकप में देखने को मिला.

टी 20 में दोनों देशों के बीच 19 मार्च को धर्मशाला के मैदान में होना था और बीसीसीआई के सचिव और भारतीय जनता पार्टी के नेता अनुराग ठाकुर चाहते थे कि यह मैच धर्मशाला में हो. बीसीसीआई में अपनी ताकत दिखाने के लिए अनुराग ठाकुर ऐसा चाहते थे पर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है जिस के मुखिया वीरभद्र सिंह हैं तो भला भाजपा नेताओं की जिद वे पूरी कैसे होने देते. वीरभद्र सिंह अनुराग ठाकुर की मंशा भांप गए और उन्हें सफल होने नहीं दिया. इस से अनुराग ठाकुर का हिमाचल प्रदेश में कद घटा.

दरअसल, इस बार दोनों देशों के मैच का विरोध पूर्व सैनिकों ने किया. वे विरोध इसलिए कर रहे थे क्योंकि सैनिकों का मानना था कि सीमापार से आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान का हाथ है और हाल के पठानकोट आतंकी हमले में हिमाचल से शहीद हुए जवानों के परिवार के साथ ये सैनिक खड़े दिखे. इसी का हवाला देते हुए वीरभद्र सिंह ने दोटूक यह कह दिया कि हम पाकिस्तान के खिलाडि़यों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते. चूंकि सुरक्षा का जिम्मा राज्य सरकार के पास होता है, इसलिए अनुराग ठाकुर की वीरभद्र सिंह के सामने एक न चली और यह मैच कोलकाता के ईडन गार्डन में शिफ्ट किया गया. कमोबेश यही डर अब खेल से पैसा बनाने वालों को सता रहा है. यदि सेमीफाइनल में पाकिस्तान की टीम पहुंचती है, जिसे मुंबई में खेला जाना है तो वहां शिव सैनिक क्या करेंगे, यह भी सभी को मालूम है.

क्रिकेट मैचों को राजनीतिक रिश्तों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए पर यह तय है कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों का उतारचढ़ाव हमेशा आएगा क्योंकि दोनों देशों के नेता ऐसा चाहते हैं. इस देश में वही होता है जो नेता चाहते हैं हां, पाकिस्तान में केवल नेताओं की चलती हो, इस में संदेह है. पर क्या भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक रिश्तों में क्रिकेट इतना माने रखता है? क्या दोनों देशों के मुखिया इतने कमजोर हैं कि इन्हें खिलाडि़यों का सहारा लेना पड़ रहा है? अगर ऐसा है तो उन्हें खिलाडि़यों को सैल्यूट करना चाहिए क्योंकि उन के खेल के कारण इन की दुकानें चलती हैं.

मालामाल होते खिलाड़ी

सुपर इनसाइट ने इंडियन स्पोर्ट्स खिलाडि़यों को मिलने वाली सैलरी से जुड़ी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारतीय पहलवान योगेश्वर दत्त ने हर मिनट की कमाई में भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी, विराट कोहली और युवराज सिंह को भी पीछे छोड़ दिया है. प्रो कुश्ती लीग में योगेश्वर दत्त जहां हर मिनट में 1.65 लाख रुपए की कमाई करते हैं वहीं आईपीएल में महेंद्र सिंह धौनी और विराट कोहली 75-75 हजार रुपए प्रति मिनट के आसपास कमाते हैं जबकि युवराज सिंह 1.01 लाख रुपए प्रति मिनट कमाते हैं. सुपर इनसाइट के डायरैक्टर रमन रहेजा ने इस रिपोर्ट में भारत के 7 स्पोर्ट्स की 8 लीग्स का ब्योरा दिया है, जिन में इंडियन प्रीमियर लीग (क्रिकेट), प्रीमियर बैडमिंटन लीग, फुटबौल की इंडियन सुपर लीग, हौकी इंडिया लीग, चैंपियन टैनिस लीग, प्रो कबड्डी, प्रो कुश्ती लीग और लौन टैनिस की इंटरनैशनल प्रीमियर टैनिस लीग शामिल हैं.

आमतौर पर माना जाता है कि खेल के क्षेत्र में सब से ज्यादा सैलरी क्रिकेटर को मिलती है पर ऐसा नहीं है. स्विट्जरलैंड के टैनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर और स्पेन के राफेल नडाल अंतर्राष्ट्रीय टैनिस प्रीमियर लीग यानी आईपीटीएल में खेल कर 26-26 करोड़ रुपए सैलरी पाते हैं. आईपीएल में औसतन हर खिलाड़ी 2.48 करोड़ रुपए की कमाई करता है जबकि आईपीटीएल में टैनिस खिलाडि़यों की औसत सैलरी 5.5 करोड़ रुपए है. 5 करोड़ रुपए से ज्यादा वे  पाने वाले खिलाडि़यों में भारत के 13 खिलाड़ी हैं जबकि दक्षिण अफ्रीका के 4 और आस्ट्रेलिया के 6 खिलाड़ी हैं.

कर्जदारी के खेल में माल्या की लुकाछिपी

पिताजी कहते थे सरकारी कर्ज कभी मत लेना. इस सिद्धांत का पालन उन्होंने आजीवन किया. यह सिद्धांत मेरे गांव के कई बुजुर्गों का भी रहा है. काफी समय बाद मुझे उस सिद्धांत के रहस्य का पता चला. गांव के एक व्यक्ति ने सरकार से 300 रुपए का कर्ज लिया था. लौटा नहीं सका तो उस के घर को कुर्क किए जाने का आदेश आया था.

मतलब, सरकारी मुलाजिमों ने उस के घर को सील कर कब्जे में ले लिया था. उस के बाद वह व्यक्ति पूरे इलाके में इस कदर तिरस्कृत हुआ कि आखिर उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उसी समय से हमारे गांव में सरकारी कर्ज को गले की फांस कहा जाने लगा. मजबूर लोगों ने सेठसाहूकारों से कर्ज ले कर सूद दिया और अपना काम चलाया लेकिन कभी सरकार से कर्ज नहीं लिया.

आज मेरे गांव की कहानी उलट गई है. इस सिद्धांत के विपरीत कुछ लोगों ने कृषि और पशु के नाम पर कर्ज लेना शुरू किया तो उसे लौटाने की जरूरत नहीं पड़ी. कांगे्रस सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपए के किसान ऋण माफ कर दिए थे. उसी का फायदा मेरे गांव के इन लोगों को मिला. उसी आस में बैंकों से अब ज्यादा लोग कर्ज ले रहे हैं कि फिर माफ हो जाएगा. कुछ लोगों ने लौटाना भी शुरू नहीं किया और यह कर्ज उन के लिए अब चिंता की वजह बन रहा है. संभव है कि मानसिक तनाव में कोई इतिहास दोहराए.

मेरे छोटे से गांव के जरूरतमंद गरीब आदमी के लिए बैंक से लिया मात्र 900 रुपए का बैंककर्ज जानलेवा हो सकता है लेकिन, महिलाओं की नंगी तसवीर वाले महंगे कलैंडर छपवाने, करोड़ों रुपए में टीपू सुलतान की तलवार खरीदने, टी-20 क्रिकेट टीम के मालिक और ऊंचे दरजे की ऐयाशी के शौकीन शराब कारोबारी विजय माल्या के लिए सरकारी बैंकों का 9 हजार करेड़ रुपए का कर्ज लुकाछिपी का खेल है. वह बिना लौटाए कर्ज से मुक्ति पाने का हथकंडा अपना रहा है. उसे देश के सर्वोच्च सदन राज्यसभा का माननीय सदस्य होने के चलते वीवीआईपी श्रेणी की सुविधा प्राप्त है. ऐसे में महंगे शौक और ऊंचे लोगों की दोस्ती होना स्वाभाविक ही है. इसी दोस्ती के बल पर आज वह कर्ज लौटाने से बच रहा है और अपने इन्हीं संपर्कों की साख पर एक के बाद दूसरे सरकारी बैंक से कर्ज लेता रहा.

सामान्य आदमी को सिर छिपाने के लिए घर बनाने के वास्ते कर्ज लेने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. घर के कागजात गिरवी रखने पड़ते हैं. अपने बैंक खाते का विवरण देना पड़ता है. लौटाने की क्षमता है या नहीं, सैलरी स्लिप, आयकर आदि विवरण के साथ अपना शपथपत्र जमा कराना पड़ता है और साथ में 2 गारंटर भी खोजने पड़ते हैं. कर्ज नहीं लौटा सका तो गारंटर से उगाही होगी. माल्या को कर्ज देते समय बैंकों ने इस तरह के नियमों का कतई पालन नहीं किया.

आखिर किस आधार पर सरकारी क्षेत्र के एक नहीं, 17 बैंकों ने उसे कर्ज दिया? किस के दबाव में यह कर्ज दिया गया? देश को इस सवाल का जवाब चाहिए. आखिर विजय माल्या बैंकों का नहीं, आम जनता का पैसा लूट कर भागा है.

माल्या पर सियासत

विजय माल्या के विदेश भागते ही देश की राजनीति गरमा गई है. सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांगे्रस आमनेसामने हैं. आरोपप्रत्यारोप के बीच जम कर हंगामा कर के संसद का समय बरबाद किया जा रहा है. कांगे्रस का आरोप है कि माल्या को विदेश भेजने में सरकार ने मदद की है. सरकार की मशीनरी उस के विदेश जाने की घटना को नजरअंदाज करती रही जबकि केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने पिछले वर्ष सितंबर में उस को ले कर लुकआउट नोटिस, यानी माल्या दिखे तो तुरंत गिरफ्तार करो, सभी हवाई अड्डों को जारी कर दिया था. उस के बावजूद 2 मार्च को माल्या दोपहर 1 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचता है और लंदन के लिए रवाना हो जाता है.

कांगे्रस यह भी आरोप लगा रही है कि माल्या को सुरक्षित तरीके से और रणनीति के तहत विदेश भेजा गया है. पार्टी का यह भी आरोप है कि माल्या राज्यसभा का निर्दलीय सदस्य जरूर है लेकिन उसे इस सदन में पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी की अहम भूमिका रही है. भाजपा के 20 विधायकों के समर्थन की वजह से माल्या राज्यसभा में पहुंचा है. सदन में भी वह भाजपा का समर्थक था. यानी सांसद माल्या भाजपा की देन है.

कांगे्रस के साथ ही वामपंथी दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल जैसे अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार की माल्या को ले कर घेराबंदी कर रहे हैं. उन में कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सब से मुखर नजर आ रहे हैं. उन की पार्टी के लिए माल्या प्रकरण मोदी सरकार को निशाने पर ले कर अपनी राजनीति की खोई जमीन को फिर से तलाशने का अवसर है. स्वाभाविक रूप से राहुल गांधी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देंगे और पारदर्शिता, ईमानदारी तथा जिम्मेदार सरकार का दंभ भरने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

सरकार इस मुद्दे पर घिरी हुई नजर आ रही है. उस के बड़ेबड़े मंत्रियों के पास कांगे्रस के सवालों के जवाब नहीं हैं. इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली इटली के हथियार व्यापारी और बोफोर्स तोप सौदे के दलाल ओत्तावियो क्वात्रोची का नाम ले कर राहुल गांधी का मुंह बंद करने का प्रयास कर रहे हैं. उन का कहना है क्वात्रोची और माल्या के विदेश भागने में बुनियादी फर्क है. क्वात्रोची एक अपराधी था. क्वात्रोची कांगे्रस की कमजोर धमनी है और जेटली उसी पर हाथ रख कर कांगे्रस को करारा जवाब देना चाहते हैं. क्वात्रोची इटली का है और सोनिया गांधी का दोस्त है. बोफोर्स दलाली विवाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में हुआ और कांगे्रस पर तब आरोप लगाया गया था कि उस ने क्वात्रोची को देश से बाहर भेजने में मदद की थी ताकि वह कांगे्रस को मिली दलाली का राज न खोलने पाए. यह तर्क भी अजीब है जो भाजपा हर रोज देती है. हम यह गलत कर रहे हैं तो क्या हुआ तुम ने भी तो करा था. कांगे्रस को तो उस की गलतियों के लिए जनता ने सजा दे दी, भाजपा भी क्या उसी सजा का इंतजार कर रही है?

माल्या पर आरोप

माल्या शराब कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स तथा किंगफिशर एअरलाइंस सहित कई कंपनियों का मालिक है. किंगफिशर घाटे के कारण बंद है. इस कंपनी के कर्मचारी दरदर की ठोकरें खा रहे हैं. यह बात दूसरी है कि यही कर्जधारी पहले मोटी तनख्वाह लेते थे. माल्या पर आरोप है कि उस ने देश के लगभग सभी सरकारी बैंकों से कर्ज लिया है. सब से बडे़ स्टेट बैंक औफ इंडिया सहित 17 बैंकों से उस ने 9 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज लिया हुआ है. स्टेट बैंक से उस की कंपनी किंगफिशर ने सर्वाधिक ऋण लिया है. सरकारी क्षेत्र के ही पंजाब नैशनल बैंक, यूनाइटेड कमर्शियल बैंक तथा आईडीबीआई जैसे बैंकों से उस ने लगातार कर्ज लिया.

माल्या प्रभावशाली व्यक्ति है और उस की राजनीतिक पहुंच बहुत मजबूत थी, इसलिए बैंक उस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सके. जनवरी 2012 से माल्या की किसी कंपनी ने बैंकों का कर्ज नहीं चुकाया था लेकिन किसी बैंक ने उस पर कार्यवाही के लिए भी कदम नहीं उठाया. आखिर आईडीबीआई बैंक ने अपने 900 करोड़ रुपए के कर्ज की वसूली के लिए उस के खिलाफ कार्यवाही करने का साहस किया और उस के खिलाफ पहली बार कर्ज नहीं लौटाने को ले कर आरोप तय हुआ. फिर एसबीआई भी सामने आया और उस ने कर्ज वसूली न्यायाधिकरण में अपील की और माल्या का पासपोर्ट जब्त करने तथा उस की गिरफ्तारी की मांग की.

कानून का शिकंजा

माल्या पर कानून का शिकंजा कसना शुरू हुआ था. उस के खिलाफ न्यायाधिकरण का सख्त फैसला आया. सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई. याचिका पर 2 मार्च को सुनवाई हुई और न्यायालय से बैंक ने माल्या का पासपोर्ट जब्त करने का अनुरोध किया लेकिन तब तक माल्या भाग चुका था.

सीबीआई ने उस के खिलाफ पिछले वर्ष कार्यवाही शुरू कर दी थी और गोआ तथा मुंबई के उस के कार्यालयों में छापे मार कर बैंककर्ज से संबंधित 900 करोड़ रुपए के कर्ज के दस्तावेज जब्त किए थे. तब से उस के खिलाफ देश छोड़ने से रोकने की कार्यवाही नहीं हो सकी. उस के भागते ही वित्त मंत्री कहते हैं कि कानूनी स्तर पर आव्रजन विभाग उसे रोक नहीं सकता था. उस की संपत्ति दुनिया के कई देशों में है.

एक अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर फैली संपत्ति के मुकाबले भारत में उस की बहुत कम संपत्ति है. इसी वजह से उसे प्रवासी भारतीय का दरजा प्राप्त है. एनआरआई की हैसियत से वह विदेशों में जब चाहे आजा सकता है. कानून के हिसाब से वह वर्ष में 183 दिन तक विदेश में रह सकता है. इस के अलावा उस के पास 10 साल का बिजनैस वीजा भी है. उन दस्तावेजों के कारण आव्रजन विभाग उसे रोक नहीं सकता था. माल्या समझ गया था कि देश में वह कानून से बच नहीं सकता, इसलिए उस ने विदेश का रुख किया.

जातेजाते उस ने संसद के नियमों का भी उल्लंघन किया है. 1 मार्च को राज्यसभा की कार्यवाही में उस ने हिस्सा लिया और 2 मार्च को देश छोड़ कर भाग गया जबकि नियम के अनुसार उसे सत्र के दौरान विदेश जाने के लिए पीठासीन अधिकारी की अनुमति लेनी चाहिए थी. उस हिसाब से उस की राज्यसभा की सदस्यता भी जा सकती है लेकिन अरुण जेटली का कहना है कि किस सदस्य की सदस्यता रद्द की जानी है, यह संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है.

विजय माल्या पिछले दिनों उस समय ज्यादा फंसे जब उन्होंने ब्रिटेन की शराब कंपनी डियाजियो को अपनी शराब कंपनी के शेयर बेचे थे. कंपनी के शेयर 515 करोड़ में बेचे गए. एसबीआई को जैसे ही खबर मिली, अपने कर्जदार से वसूली के लिए वह सब से पहले आगे आया.

बैंकों के कर्जदार

सरकारी बैंकों का करीब 404 लाख करोड़ रुपए एनपीए यानी गैर निष्पादित राशि के रूप में फंसा हुआ है. यह बैंकों से लिए गए कर्ज की राशि है लेकिन उन के इस कर्ज के लौटाए जाने की संभावना नहीं है. इस में कई लोग जानबूझ कर कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. माल्या भी इसी तरह का कर्जदार है. फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक से कहा था कि वह कर्ज नहीं लौटाने वाले लोगों की सूची उसे सौंपे. इस सूची के अनुसार, देश के 30 लोगों के पास 40 फीसदी एनपीए है. उन में ज्यादातर कौर्पोरेट हैं और उन के पास बैंकों के 121 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े हैं. बैंकों की 31 मार्च, 2015 तक की सूचना के अनुसार, 51,442 करोड़ रुपए का कर्ज नहीं लौटाने वाले 7,035 डिफौल्टर ऐसे हैं जो जानबूझ कर बैंकों का कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. उन में 1 हजार लोगों के पास 11,510 करोड़ रुपए अकेले एसबीआई के फंसे हुए हैं.

औल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन यानी एबीआईए ने भी कर्ज ले कर चुप बैठी कुछ कंपनियों की सूची जारी की है. इस सूची के अनुसार, 50 बड़े कर्जदार हैं जिन के पास बैंकों के 40,528 करोड़ रुपए फंसे हैं. सूची के अनुसार, पहले नंबर पर किंगफिशर है जिस के पास बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपए हैं. टेक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी मोजर बेयर के पास बैंकों के 581 करोड़ रुपए फंसे हैं जबकि सैंचुरी कम्युनिकेशंस के पास 624 करोड़ रुपए, आईसीएसए के पास 646 करोड़ रुपए, सूर्या फार्मा के पास 726 करोड़ रुपए, स्पाइस ट्रेडिंग कौर्पोरेशन के पास 860 करोड़ रुपए, सूर्या विनायक इंडस्ट्री के पास 7,446 करोड़ रुपए, एस कुमार टेक्सटाइल के पास 1,692 करोड़ रुपए हैं. इस तरह की कुल 50 कंपनियां हैं जो बैंकों का पैसा दबाए बैठी हैं.

बैंक कर्मचारियों के संगठन के अतिरिक्त मीडिया में आई खबरों के अनुसार कई सांसदों तथा राजनेताओं की कंपनियों के पास भी बैंकों का पैसा डूबने के कगार पर है. इस क्रम में कांगे्रस के एक लोकसभा सांसद की कंपनी के पास 2014 तक 3,400 करोड़ रुपए का कर्ज था. इसी तरह से टीडीपी के एक राज्यसभा सदस्य की कंपनी तथा उसी पार्टी के एक लोकसभा सांसद की कंपनी पर भी बैंकों के 500 करोड़ रुपए के कर्ज हैं और वे नहीं लौटा रही हैं.

इसी तरह से डैक्कन हैराल्ड समूह के राजनेता मालिक पर 400 करोड़ रुपए, बीजू जनता दल के लोकसभा सदस्य की कंपनी आईसीसीएल पर 2,300 करोड़ रुपए का कर्ज बाकी है. इन कर्जदार राजनेताओं में ज्यादा लोग शीर्ष 20 डिफौल्टरों में शामिल हैं और वे अपने बचाव के लिए अपनी राजनीतिक हैसियत का बखूबी इस्तेमाल करते हैं.

भगोड़ों की ऐशगाह लंदनसब से रोचक बात यह है कि हमारे यहां जन सामान्य अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए बैंक से कर्ज लेने के लिए दिनरात एक करता है लेकिन फिर भी बैंक उसे आसानी से कर्ज नहीं देते. जबकि बडे़ उद्योगपति बैंकों से आसानी से करोड़ों रुपए के कर्ज ले कर या कहें कि देश को लूट कर लंदन में शरण ले लेते हैं. केवल भारत के ही नहीं, अन्य देशों के घपलेबाजों के लिए भी लंदन अच्छा शरणस्थली बन गया है. ललित मोदी से ले कर विजय माल्या तक सब लंदन ही भाग रहे हैं. स्वाभाविकरूप से उन की संपत्ति भी लंदन में होती है और देश को लूट कर जितना पैसा एकत्र किया है, उसे ले कर भी लंदन गए होंगे और वहां इन पैसों का इस्तेमाल करेंगे. इसीलिए ब्रिटेन की राजधानी दुनिया और खासकर भारत के भगोड़े व भ्रष्टाचारियों की शरणस्थली बना हुआ है.

भारत और ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि जरूर हुई थी लेकिन कोई भारतीय इस संधि के तहत अब तक भारत नहीं भेजा गया, जबकि गुजरात बम धमाकों के आरोपी हनीफ टाइगर, गुलशन कुमार हत्याकांड के आरोपी नदीम सैफी तथा खालिस्तान के कई समर्थक वहां शरण लिए हुए हैं. भारत की तरफ से हाना फोस्टर हत्याकांड आरोपी का प्रत्यर्पण हुआ है. इस इतिहास को देखते हुए माल्या जब तक खुद नहीं लौटता, उस के भारत आने के आसार कम हैं. वैसे कानूनी पंजा कुछ ज्यादा कर सकता है, इस के आसार कम हैं. सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ साल से सहारा के सुब्रतो राय को जेल में बंद कर रखा है पर उस से पैसा नहीं निकल सका है. सहारा के व्यापार धड़ल्ले से चल रहे हैं. विजय माल्या अगर भारत आ गया तो भी बैंकों को पैसा तो मिलने से रहा.

स्टौक मार्केट में उथल पुथल का सिलसिला

कंपनियों के शेयर में निवेश करने वालों के लिए मार्च खुशियों का वसंत ले कर आया. हालांकि मध्य मार्च में बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक पिछले 6 सप्ताहों की ऊंचाई से फिसला भी. फरवरी में औंधेमुंह गिरे बाजार ने रेल बजट और आम बजट जैसे अहम मौकों पर भी निराश किया लेकिन मार्च के शुरू होते ही पूंजी बाजार में दीवाली सा माहौल शुरू हो गया, बीएसई का सूचकांक कुलांचें भरने लगा. वैश्विक बाजारों से मिले सकारात्मक संकेतों और विदेशी संस्थागत निवेशकों की जबरदस्त लिवाली के दम पर बाजार में तूफानी तेजी आ गई और सूचकांक एक दिन में ढाई साल की सब से ऊंची छलांग लगा गया. सूचकांक में 777.35 अंकों की उछाल दर्ज की गई. इस से पहले सितंबर 2013 में सूचकांक में 920 अंकों की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी.

इधर, वैश्विक बाजारों के कमजोर संकेतों से बीएसई का संवेदी सूचकांक 15 मार्च को 6 सप्ताह की ऊंचाई से फिसलता हुआ 253.11 अंक गिर कर 24,551.17 अंक पर आ गया. कारोबारियों की मुनाफा वसूली से नैशनल स्टौक एक्सचेंज का निफ्टी भी 7,500 अंक से नीचे लुढ़क गया. कारोबार की समाप्ति पर निफ्टी 78.15 अंक गिर कर 7,460.60 अंक पर आ गया. बाजार के ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि सीरिया में शांति को ले कर चल रहे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम के सकारात्मक नतीजे आते प्रतीत होते हैं. जिन के परिणामस्वरूप दुनियाभर के शेयर बाजारों में रौनक लौटेगी और निवेश में बढ़ोतरी होती रहेगी.

आध्यात्मिक नहीं, औद्योगिक स्पर्धा वाले ‘बाबा’

खाद्य पदार्थों के उत्पादन में सब से ज्यादा शुद्धता का दावा बाबाओं की कंपनियों के उत्पाद में किया जा रहा है. इस तरह के उत्पाद का दावा सब से ज्यादा रामदेव की कंपनी पंतजलि योगपीठ में हो रहा है. उन के उत्पाद के मानकों पर सवाल उठ भी रहे हैं लेकिन रामदेव उन सवालों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साजिश बता कर खारिज कर रहे हैं.

रामदेव, जिन्हें कुछ लोग बाबा रामदेव कहते हैं, के उत्पादों को टक्कर देने के लिए हरियाणा के सिरसा में एक अन्य बाबा गुरमीत रामरहीम ने एमएसजी नाम से अपने उत्पाद शुरू किए हैं. उन की कंपनी में 100 से ज्यादा उत्पाद तैयार हो रहे हैं और उन का दावा है कि एमएसजी के उत्पाद सब से ज्यादा शुद्ध हैं. एमएसजी मतलब मस्ताना सतनाम गुरमीत, जो फिल्मी दुनिया में भी हाथ आजमा चुके हैं, का दावा है कि उन के 5 करोड़ से ज्यादा समर्थक हैं और वे ही उन की कंपनी के उत्पादों के सब से बड़े ग्राहक हैं. इस से पहले इसी तरह का दावा यौन शोषण के आरोप में दोढाई साल से जेल की हवा खा रहे आसाराम भी किया करते थे. करोड़ों समर्थक होने का दावा करने वाले आसाराम खुद कई उत्पाद बाजार में बेच रहे थे. इन बाबाओं का अरबों रुपयों का कारोबार है. रामदेव अकूत संपत्ति के मालिक हैं तो रामरहीम भी धनकुबेर हैं और अब दोनों के बीच आध्यात्मिक चेतना जगाने के बजाय औद्योगिक विकास को ले कर स्पर्द्धा है.

पतंजलि का खेल राष्ट्रीय स्तर का हो चुका है जबकि एमएसजी अभी शुरुआती दौर में है. दोनों तथाकथित बाबाओं ने जनता का पैसा लूट कर उद्योग खड़े किए हैं. उन की परंपरा औद्योगिक घरानों की नहीं है. पैसे वाला जोगी नहीं बनता है लेकिन अब जोगी की परिभाषा बदल गई है. जोगी बनिए और बिना परिश्रम के पैसा अर्जित कर के उद्योगपति बन जाइए.

छोटी बचत योजनाओं पर फिर चली कैंची

सरकार छोटी बचत योजनाओं पर कैंची चला रही है. छोटे उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करने के बजाय उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है. छोटी बचत के लिए गांवगांव तक फैले डाकघरों के नैटवर्क का ग्रामीण खासा इस्तेमाल करते थे लेकिन डाकघर अब अनुपयोगी हो गए हैं और यह नैटवर्क लगातार घट रहा है. डाकघरों की घटती संख्या के साथ ही सरकार ने डाकघर बचत योजनाओं पर भी कैंची चलानी शुरू कर दी है. इस क्रम में छोटी बचत के लिए लोकप्रिय रहे राष्ट्रीय विकास पत्र, किसान विकास पत्र जैसी लघु बचत की योजनाओं को हतोत्साहित करने के लिए उन की ब्याज दरों में कटौती की गई और उस का यह क्रम लगातार जारी है. हाल ही में सरकार ने किसान विकास पत्र की 1 से 3 साल तथा अन्य बचत योजनाओं में 5 साल की अवधि की बचत लघु योजना की ब्याज दर पर एकचौथाई कटौती की है.

सरकार का यह कदम संकेत देता है कि लघु बचत का अब कोई महत्त्व नहीं रह गया है. लोगों की आय बढ़ रही है और उन के लिए बैंक ज्यादा सुविधाजनक हैं. इसीलिए इन बचत योजनाओं की ब्याज दरों में लगातार कटौती की जा रही है. पहले 5 साल में जमा राशि के दोगुना होने वाली छोटी बचत योजनाएं अत्यधिक लोकप्रिय थीं. धीरेधीरे यह अवधि 7-8 साल की हुई और फिर इस में ब्याज दरें और घटा दी गईं. अब ये योजनाएं जनसामान्य के लिए नाममात्र की रह गई हैं. सरकार को लोगों में बचत को प्रोत्साहित करने की ईमानदार योजनाएं जारी रखनी चाहिए. इन योजनाओं के बंद होने से लोग छोटीमोटी बचत का पैसा शेयर बाजार अथवा जमीन की खरीद पर लगा रहे हैं जिन में फंस कर सामान्य आदमी दिवालिया भी हो रहा है.

त्वरित टिप्पणी: कोलकाता के बड़ा बाजार में फ्लाईओवर गिरा

मध्य कोलकाता के जोड़ासांकू में निर्माणाधीन विकेकानंद फ्लाईओवर अचानक गिर पड़ा. दोपहर 12 बजे अचानक शक्तिशाली बस फटने की-सी आवाज आयी. कुछ समझने से पहले भयावह नजारा देख कर लोगों के होश उड़ गए. फ्लाईओवर दुर्घटना का नजारा बड़ा भयावह है. इलाके के चश्मदीदों के अनुसार फ्लाईओवर गिरने के साथ पूरा इलाका भूकंप के जोरदार झटकों की तरह कांप गया था. इसके बाद चारों तरफ फैले धूल के गुब्बार के बीच लाखों और घायलों का ढेर से जाहिर है स्थानीय लोगों के बीच आतंक का माहौल है. माना जा रहा है, इतने बड़े पुल के गिरने से आसपास के घरों पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. गौरतलब है कि यह इलाका घनी आबादी वाला है और रिहाइशी घरों के साथ थोक बाजार की दुकानें भी हैं. फिलहाल 15 लाशे निकाली गयी हैं. फ्लाईओवर के नीचे सैंकड़ों लोगों के दबे होने की आशंका जताई जा रही है.

मौके पर पुलिस, फायर ब्रिगेड और आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद हैं. लेकिन इस घनी आबादी वाले इलाके में राहत कार्य के लिए पूरा इंतजाम न होने के कारण फायर ब्रिगेड और पुलिस ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. इसके बाद राज्य सरकार ने सेना बुलाने का फैसला किया है. दोपहर तीन बजे की खबर है कि फोर्ट विलियवम से सेना की तीन टुकड़ी राहत कार्य के लिए अत्याधुनिक साज-सामान लेकर रवाना हो चुकी है.

बहरहाल, स्थानीय लोगों की मदद से लाश निकालने का काम जारी है. कुछ घायलों को कोलकाता मेडिकल कौलेज अस्पताल में भरती किया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है. यह इलाका कोलकाता का प्रख्यात थोक बाजार बड़ा बाजार का हिस्सा है. सालों से फ्लाईओवर का निर्माण अधूरा पड़ा था. 2009 से फ्लाईओवर बनाने का काम शुरू हुआ था, लेकिन पिछले 4-5 सालों से यह काम अधूरा पड़ा है. जबकि 2012 में इसे पूरा हो जाना था.

यह रास्ता वनवे है और हावड़ा की ओर जाने वाली मिनी बस, कार और राज्य परिवहन विभाग की बस चल रही थी. इस समय कई बसें फ्लाईओवर के नीचे दबीं पड़ीं हैं. इन बसों में कुछ लोग दब कर मर गए हैं वहीं बहुत सारे लोग जिंदा भी है. इन बसों में स्कूली बच्चे भी हैं, जो कोलकाता के स्कूलों में पढ़कर हावड़ा घर लौट रहे थे. घटना के दो घंटे के बाद गैस कटर मौके पर पहुंचा है. इलाके लोगों में जबरदस्त रोष है.

बीच चुनाव के मद्देनजर राजनीति भी शुरू हो गयी है. विपक्षी पार्टियों के नेता इलाके में पहुंच रहे हैं. कोलकाता कारपोरेशन के मेयर शोभनदेव चटर्जी का लोगों ने घेराव किया. इस फ्लाईओवर का निर्माण वाम मोर्चा शासनकाल में शुरू हुआ था. लेकिन 2011 में तृणमूल के सत्ता में आने से पहले ही काम रुका पड़ा है. ममता बनर्जी ने महानगर के अन्य हिस्सों में फ्लाईओवर का काम युद्धस्तर पर पूरा किया. लेकिन बड़ा बाजार के इस इलाके के फ्लाईओवर का काम क्यों रुका पड़ा था, इस बारे में अभी कोई जानकारी ‍नहीं मिल पा रही है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आज मेदिनीपुर में चुनावी सभा को संबोधित करना था. लेकिन सभा को बीच में ही छोड़ कर ममता बनर्जी कोलकाता के लिए रवाना डो गयी हैं.

 

 

सड़क निर्माण के नए मौडल

केंद्र सरकार देश में सड़कों का जाल बिछाने तथा मौजूदा सड़कों पर यातायात को आसान बनाने के लिए कई तरह के मौडल्स पर काम कर रही है. इस के लिए ऐक्सप्रैसवे, पूर्वोत्तर सीमांत सड़क योजना तथा हाइब्रिड जैसे मौडल्स पर काम चल रहा है. इन सब का मकसद देश के हर कोने में सड़क का व्यापक और आरामदायक जाल बिछाना है. 

दिल्ली-मेरठ ऐक्सप्रैसवे देश में 14 लेन की पहली सड़क परियोजना है. इस का मकसद जाम की समस्या से छुटकारा पाना है. इस के अलावा, पूर्वोत्तर में सीमांत क्षेत्रों तक सड़क पहुंचाना और उत्तराखंड में भूस्खलन से बाधित सड़कमार्ग विकसित करना सरकार की प्राथमिकता है. सड़कों का निर्माण तेजी से हो, इस के लिए ‘हाइब्रिड मौडल’ को हाल में ही मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है.

सरकार का लक्ष्य प्रतिदिन 30 किलोमीटर सड़क के निर्माण का है और उस के लिए हाइब्रिड जैसे मौडल विकसित किए जा रहे हैं. सड़क निर्माण का काम तेजी से हो, इस के लिए हाइब्रिड योजना के तहत निर्माण कार्य पर 40 प्रतिशत राशि सरकार उपलब्ध कराएगी जबकि शेष राशि डैवलपर को खर्च करनी होगी.

सरकारी-निजी क्षेत्र (पीपीपी) मौडल सड़कों के निर्माण के लिए ठीक तो है लेकिन चूंकि इस में अच्छा मुनाफा है, इसलिए ज्यादा भ्रष्टाचार होने की आशंका भी है. पिछले दिनों सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने जम्मूकश्मीर की एक परियोजना का ठेका अपने एक नजदीकी व्यक्ति की फर्म को दिया है. इस फर्म में उन का बेटा भी हिस्सेदार है.                                                

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