पिताजी कहते थे सरकारी कर्ज कभी मत लेना. इस सिद्धांत का पालन उन्होंने आजीवन किया. यह सिद्धांत मेरे गांव के कई बुजुर्गों का भी रहा है. काफी समय बाद मुझे उस सिद्धांत के रहस्य का पता चला. गांव के एक व्यक्ति ने सरकार से 300 रुपए का कर्ज लिया था. लौटा नहीं सका तो उस के घर को कुर्क किए जाने का आदेश आया था.
मतलब, सरकारी मुलाजिमों ने उस के घर को सील कर कब्जे में ले लिया था. उस के बाद वह व्यक्ति पूरे इलाके में इस कदर तिरस्कृत हुआ कि आखिर उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उसी समय से हमारे गांव में सरकारी कर्ज को गले की फांस कहा जाने लगा. मजबूर लोगों ने सेठसाहूकारों से कर्ज ले कर सूद दिया और अपना काम चलाया लेकिन कभी सरकार से कर्ज नहीं लिया.
आज मेरे गांव की कहानी उलट गई है. इस सिद्धांत के विपरीत कुछ लोगों ने कृषि और पशु के नाम पर कर्ज लेना शुरू किया तो उसे लौटाने की जरूरत नहीं पड़ी. कांगे्रस सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपए के किसान ऋण माफ कर दिए थे. उसी का फायदा मेरे गांव के इन लोगों को मिला. उसी आस में बैंकों से अब ज्यादा लोग कर्ज ले रहे हैं कि फिर माफ हो जाएगा. कुछ लोगों ने लौटाना भी शुरू नहीं किया और यह कर्ज उन के लिए अब चिंता की वजह बन रहा है. संभव है कि मानसिक तनाव में कोई इतिहास दोहराए.
मेरे छोटे से गांव के जरूरतमंद गरीब आदमी के लिए बैंक से लिया मात्र 900 रुपए का बैंककर्ज जानलेवा हो सकता है लेकिन, महिलाओं की नंगी तसवीर वाले महंगे कलैंडर छपवाने, करोड़ों रुपए में टीपू सुलतान की तलवार खरीदने, टी-20 क्रिकेट टीम के मालिक और ऊंचे दरजे की ऐयाशी के शौकीन शराब कारोबारी विजय माल्या के लिए सरकारी बैंकों का 9 हजार करेड़ रुपए का कर्ज लुकाछिपी का खेल है. वह बिना लौटाए कर्ज से मुक्ति पाने का हथकंडा अपना रहा है. उसे देश के सर्वोच्च सदन राज्यसभा का माननीय सदस्य होने के चलते वीवीआईपी श्रेणी की सुविधा प्राप्त है. ऐसे में महंगे शौक और ऊंचे लोगों की दोस्ती होना स्वाभाविक ही है. इसी दोस्ती के बल पर आज वह कर्ज लौटाने से बच रहा है और अपने इन्हीं संपर्कों की साख पर एक के बाद दूसरे सरकारी बैंक से कर्ज लेता रहा.
सामान्य आदमी को सिर छिपाने के लिए घर बनाने के वास्ते कर्ज लेने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. घर के कागजात गिरवी रखने पड़ते हैं. अपने बैंक खाते का विवरण देना पड़ता है. लौटाने की क्षमता है या नहीं, सैलरी स्लिप, आयकर आदि विवरण के साथ अपना शपथपत्र जमा कराना पड़ता है और साथ में 2 गारंटर भी खोजने पड़ते हैं. कर्ज नहीं लौटा सका तो गारंटर से उगाही होगी. माल्या को कर्ज देते समय बैंकों ने इस तरह के नियमों का कतई पालन नहीं किया.
आखिर किस आधार पर सरकारी क्षेत्र के एक नहीं, 17 बैंकों ने उसे कर्ज दिया? किस के दबाव में यह कर्ज दिया गया? देश को इस सवाल का जवाब चाहिए. आखिर विजय माल्या बैंकों का नहीं, आम जनता का पैसा लूट कर भागा है.
माल्या पर सियासत
विजय माल्या के विदेश भागते ही देश की राजनीति गरमा गई है. सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांगे्रस आमनेसामने हैं. आरोपप्रत्यारोप के बीच जम कर हंगामा कर के संसद का समय बरबाद किया जा रहा है. कांगे्रस का आरोप है कि माल्या को विदेश भेजने में सरकार ने मदद की है. सरकार की मशीनरी उस के विदेश जाने की घटना को नजरअंदाज करती रही जबकि केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने पिछले वर्ष सितंबर में उस को ले कर लुकआउट नोटिस, यानी माल्या दिखे तो तुरंत गिरफ्तार करो, सभी हवाई अड्डों को जारी कर दिया था. उस के बावजूद 2 मार्च को माल्या दोपहर 1 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचता है और लंदन के लिए रवाना हो जाता है.
कांगे्रस यह भी आरोप लगा रही है कि माल्या को सुरक्षित तरीके से और रणनीति के तहत विदेश भेजा गया है. पार्टी का यह भी आरोप है कि माल्या राज्यसभा का निर्दलीय सदस्य जरूर है लेकिन उसे इस सदन में पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी की अहम भूमिका रही है. भाजपा के 20 विधायकों के समर्थन की वजह से माल्या राज्यसभा में पहुंचा है. सदन में भी वह भाजपा का समर्थक था. यानी सांसद माल्या भाजपा की देन है.
कांगे्रस के साथ ही वामपंथी दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल जैसे अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार की माल्या को ले कर घेराबंदी कर रहे हैं. उन में कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सब से मुखर नजर आ रहे हैं. उन की पार्टी के लिए माल्या प्रकरण मोदी सरकार को निशाने पर ले कर अपनी राजनीति की खोई जमीन को फिर से तलाशने का अवसर है. स्वाभाविक रूप से राहुल गांधी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देंगे और पारदर्शिता, ईमानदारी तथा जिम्मेदार सरकार का दंभ भरने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.
सरकार इस मुद्दे पर घिरी हुई नजर आ रही है. उस के बड़ेबड़े मंत्रियों के पास कांगे्रस के सवालों के जवाब नहीं हैं. इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली इटली के हथियार व्यापारी और बोफोर्स तोप सौदे के दलाल ओत्तावियो क्वात्रोची का नाम ले कर राहुल गांधी का मुंह बंद करने का प्रयास कर रहे हैं. उन का कहना है क्वात्रोची और माल्या के विदेश भागने में बुनियादी फर्क है. क्वात्रोची एक अपराधी था. क्वात्रोची कांगे्रस की कमजोर धमनी है और जेटली उसी पर हाथ रख कर कांगे्रस को करारा जवाब देना चाहते हैं. क्वात्रोची इटली का है और सोनिया गांधी का दोस्त है. बोफोर्स दलाली विवाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में हुआ और कांगे्रस पर तब आरोप लगाया गया था कि उस ने क्वात्रोची को देश से बाहर भेजने में मदद की थी ताकि वह कांगे्रस को मिली दलाली का राज न खोलने पाए. यह तर्क भी अजीब है जो भाजपा हर रोज देती है. हम यह गलत कर रहे हैं तो क्या हुआ तुम ने भी तो करा था. कांगे्रस को तो उस की गलतियों के लिए जनता ने सजा दे दी, भाजपा भी क्या उसी सजा का इंतजार कर रही है?
माल्या पर आरोप
माल्या शराब कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स तथा किंगफिशर एअरलाइंस सहित कई कंपनियों का मालिक है. किंगफिशर घाटे के कारण बंद है. इस कंपनी के कर्मचारी दरदर की ठोकरें खा रहे हैं. यह बात दूसरी है कि यही कर्जधारी पहले मोटी तनख्वाह लेते थे. माल्या पर आरोप है कि उस ने देश के लगभग सभी सरकारी बैंकों से कर्ज लिया है. सब से बडे़ स्टेट बैंक औफ इंडिया सहित 17 बैंकों से उस ने 9 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज लिया हुआ है. स्टेट बैंक से उस की कंपनी किंगफिशर ने सर्वाधिक ऋण लिया है. सरकारी क्षेत्र के ही पंजाब नैशनल बैंक, यूनाइटेड कमर्शियल बैंक तथा आईडीबीआई जैसे बैंकों से उस ने लगातार कर्ज लिया.
माल्या प्रभावशाली व्यक्ति है और उस की राजनीतिक पहुंच बहुत मजबूत थी, इसलिए बैंक उस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सके. जनवरी 2012 से माल्या की किसी कंपनी ने बैंकों का कर्ज नहीं चुकाया था लेकिन किसी बैंक ने उस पर कार्यवाही के लिए भी कदम नहीं उठाया. आखिर आईडीबीआई बैंक ने अपने 900 करोड़ रुपए के कर्ज की वसूली के लिए उस के खिलाफ कार्यवाही करने का साहस किया और उस के खिलाफ पहली बार कर्ज नहीं लौटाने को ले कर आरोप तय हुआ. फिर एसबीआई भी सामने आया और उस ने कर्ज वसूली न्यायाधिकरण में अपील की और माल्या का पासपोर्ट जब्त करने तथा उस की गिरफ्तारी की मांग की.
कानून का शिकंजा
माल्या पर कानून का शिकंजा कसना शुरू हुआ था. उस के खिलाफ न्यायाधिकरण का सख्त फैसला आया. सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई. याचिका पर 2 मार्च को सुनवाई हुई और न्यायालय से बैंक ने माल्या का पासपोर्ट जब्त करने का अनुरोध किया लेकिन तब तक माल्या भाग चुका था.
सीबीआई ने उस के खिलाफ पिछले वर्ष कार्यवाही शुरू कर दी थी और गोआ तथा मुंबई के उस के कार्यालयों में छापे मार कर बैंककर्ज से संबंधित 900 करोड़ रुपए के कर्ज के दस्तावेज जब्त किए थे. तब से उस के खिलाफ देश छोड़ने से रोकने की कार्यवाही नहीं हो सकी. उस के भागते ही वित्त मंत्री कहते हैं कि कानूनी स्तर पर आव्रजन विभाग उसे रोक नहीं सकता था. उस की संपत्ति दुनिया के कई देशों में है.
एक अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर फैली संपत्ति के मुकाबले भारत में उस की बहुत कम संपत्ति है. इसी वजह से उसे प्रवासी भारतीय का दरजा प्राप्त है. एनआरआई की हैसियत से वह विदेशों में जब चाहे आजा सकता है. कानून के हिसाब से वह वर्ष में 183 दिन तक विदेश में रह सकता है. इस के अलावा उस के पास 10 साल का बिजनैस वीजा भी है. उन दस्तावेजों के कारण आव्रजन विभाग उसे रोक नहीं सकता था. माल्या समझ गया था कि देश में वह कानून से बच नहीं सकता, इसलिए उस ने विदेश का रुख किया.
जातेजाते उस ने संसद के नियमों का भी उल्लंघन किया है. 1 मार्च को राज्यसभा की कार्यवाही में उस ने हिस्सा लिया और 2 मार्च को देश छोड़ कर भाग गया जबकि नियम के अनुसार उसे सत्र के दौरान विदेश जाने के लिए पीठासीन अधिकारी की अनुमति लेनी चाहिए थी. उस हिसाब से उस की राज्यसभा की सदस्यता भी जा सकती है लेकिन अरुण जेटली का कहना है कि किस सदस्य की सदस्यता रद्द की जानी है, यह संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है.
विजय माल्या पिछले दिनों उस समय ज्यादा फंसे जब उन्होंने ब्रिटेन की शराब कंपनी डियाजियो को अपनी शराब कंपनी के शेयर बेचे थे. कंपनी के शेयर 515 करोड़ में बेचे गए. एसबीआई को जैसे ही खबर मिली, अपने कर्जदार से वसूली के लिए वह सब से पहले आगे आया.
बैंकों के कर्जदार
सरकारी बैंकों का करीब 404 लाख करोड़ रुपए एनपीए यानी गैर निष्पादित राशि के रूप में फंसा हुआ है. यह बैंकों से लिए गए कर्ज की राशि है लेकिन उन के इस कर्ज के लौटाए जाने की संभावना नहीं है. इस में कई लोग जानबूझ कर कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. माल्या भी इसी तरह का कर्जदार है. फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक से कहा था कि वह कर्ज नहीं लौटाने वाले लोगों की सूची उसे सौंपे. इस सूची के अनुसार, देश के 30 लोगों के पास 40 फीसदी एनपीए है. उन में ज्यादातर कौर्पोरेट हैं और उन के पास बैंकों के 121 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े हैं. बैंकों की 31 मार्च, 2015 तक की सूचना के अनुसार, 51,442 करोड़ रुपए का कर्ज नहीं लौटाने वाले 7,035 डिफौल्टर ऐसे हैं जो जानबूझ कर बैंकों का कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. उन में 1 हजार लोगों के पास 11,510 करोड़ रुपए अकेले एसबीआई के फंसे हुए हैं.
औल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन यानी एबीआईए ने भी कर्ज ले कर चुप बैठी कुछ कंपनियों की सूची जारी की है. इस सूची के अनुसार, 50 बड़े कर्जदार हैं जिन के पास बैंकों के 40,528 करोड़ रुपए फंसे हैं. सूची के अनुसार, पहले नंबर पर किंगफिशर है जिस के पास बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपए हैं. टेक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी मोजर बेयर के पास बैंकों के 581 करोड़ रुपए फंसे हैं जबकि सैंचुरी कम्युनिकेशंस के पास 624 करोड़ रुपए, आईसीएसए के पास 646 करोड़ रुपए, सूर्या फार्मा के पास 726 करोड़ रुपए, स्पाइस ट्रेडिंग कौर्पोरेशन के पास 860 करोड़ रुपए, सूर्या विनायक इंडस्ट्री के पास 7,446 करोड़ रुपए, एस कुमार टेक्सटाइल के पास 1,692 करोड़ रुपए हैं. इस तरह की कुल 50 कंपनियां हैं जो बैंकों का पैसा दबाए बैठी हैं.
बैंक कर्मचारियों के संगठन के अतिरिक्त मीडिया में आई खबरों के अनुसार कई सांसदों तथा राजनेताओं की कंपनियों के पास भी बैंकों का पैसा डूबने के कगार पर है. इस क्रम में कांगे्रस के एक लोकसभा सांसद की कंपनी के पास 2014 तक 3,400 करोड़ रुपए का कर्ज था. इसी तरह से टीडीपी के एक राज्यसभा सदस्य की कंपनी तथा उसी पार्टी के एक लोकसभा सांसद की कंपनी पर भी बैंकों के 500 करोड़ रुपए के कर्ज हैं और वे नहीं लौटा रही हैं.
इसी तरह से डैक्कन हैराल्ड समूह के राजनेता मालिक पर 400 करोड़ रुपए, बीजू जनता दल के लोकसभा सदस्य की कंपनी आईसीसीएल पर 2,300 करोड़ रुपए का कर्ज बाकी है. इन कर्जदार राजनेताओं में ज्यादा लोग शीर्ष 20 डिफौल्टरों में शामिल हैं और वे अपने बचाव के लिए अपनी राजनीतिक हैसियत का बखूबी इस्तेमाल करते हैं.
भगोड़ों की ऐशगाह लंदनसब से रोचक बात यह है कि हमारे यहां जन सामान्य अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए बैंक से कर्ज लेने के लिए दिनरात एक करता है लेकिन फिर भी बैंक उसे आसानी से कर्ज नहीं देते. जबकि बडे़ उद्योगपति बैंकों से आसानी से करोड़ों रुपए के कर्ज ले कर या कहें कि देश को लूट कर लंदन में शरण ले लेते हैं. केवल भारत के ही नहीं, अन्य देशों के घपलेबाजों के लिए भी लंदन अच्छा शरणस्थली बन गया है. ललित मोदी से ले कर विजय माल्या तक सब लंदन ही भाग रहे हैं. स्वाभाविकरूप से उन की संपत्ति भी लंदन में होती है और देश को लूट कर जितना पैसा एकत्र किया है, उसे ले कर भी लंदन गए होंगे और वहां इन पैसों का इस्तेमाल करेंगे. इसीलिए ब्रिटेन की राजधानी दुनिया और खासकर भारत के भगोड़े व भ्रष्टाचारियों की शरणस्थली बना हुआ है.
भारत और ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि जरूर हुई थी लेकिन कोई भारतीय इस संधि के तहत अब तक भारत नहीं भेजा गया, जबकि गुजरात बम धमाकों के आरोपी हनीफ टाइगर, गुलशन कुमार हत्याकांड के आरोपी नदीम सैफी तथा खालिस्तान के कई समर्थक वहां शरण लिए हुए हैं. भारत की तरफ से हाना फोस्टर हत्याकांड आरोपी का प्रत्यर्पण हुआ है. इस इतिहास को देखते हुए माल्या जब तक खुद नहीं लौटता, उस के भारत आने के आसार कम हैं. वैसे कानूनी पंजा कुछ ज्यादा कर सकता है, इस के आसार कम हैं. सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ साल से सहारा के सुब्रतो राय को जेल में बंद कर रखा है पर उस से पैसा नहीं निकल सका है. सहारा के व्यापार धड़ल्ले से चल रहे हैं. विजय माल्या अगर भारत आ गया तो भी बैंकों को पैसा तो मिलने से रहा.