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भारत-पाक: नफरत के रिश्ते पर अमन की उम्मीद

दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए, इसी तर्ज पर रिश्तों में कड़वाहट के बीच भारत और पाकिस्तान एक बार फिर बातचीत के लिए तैयार हुए हैं. इसलामाबाद में हार्ट औफ एशिया सम्मेलन के बाद दोनों देशों के बीच सहमति बनी है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की इसलामाबाद यात्रा के बाद दोनों देशों के विदेश सचिव वार्त्ता का ब्लूप्रिंट तैयार करने में जुट गए हैं.

अब सब का ध्यान दोनों देशों के बीच होने वाली बातचीत पर लगा है. भारत और पाकिस्तान के रिश्ते पिछले कई सालों से कड़वाहट भरे रहे हैं. मजहबी नफरत की बुनियाद पर टिके रिश्तों में शुरू से ही तल्खी रही है. 3 युद्धों को छोड़ कर बात की जाए तो मुंबई हमला, संसद पर हमला और आएदिन सीमा पर हो रही मौतें आपसी संबंधों में कड़वाहट को कम नहीं होने दे रही हैं.

आतंकियों की घुसपैठ, बारबार सीजफायर उल्लंघन, जम्मूकश्मीर पर पुराना रुख और कट्टरपंथी नेताओं के परस्पर विषवमन ने रिश्तों की दूरी और चौड़ी कर दी. कुछ समय पहले भारत में तैनात पाकिस्तानी राजदूत की कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ बैठक के बाद भारत ने कड़ा रुख अपना लिया और बातचीत से इनकार कर दिया था.

हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच एक टेबल पर आने के लिए बेताबी देखी गई. सितंबर माह में भारत व पाक के रेंजर्स की बातचीत हुई. नवंबर माह में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नजीर जंजुआ और अजीत डोभाल के बीच बैंकौक में वार्त्ता हुई. फिर पेरिस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ चुपकेचुपके मिले और अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान के विदेश मामले के सलाहकार सरताज अजीज व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से वार्त्ता किए जाने का निर्णय कर लौटी हैं.

भारत व पाकिस्तान पर आपस में बातचीत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव तो है ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विश्व नेता के तौर पर अपनी छवि बनाने के लिए पड़ोसी देशों से शांति के प्रयास में सक्रिय नजर आते हैं. भले ही वे अपने ही कट्टरपंथियों पर नियंत्रण रख पाने में नाकाम दिखाई दे रहे हों.

उधर, कहने को पाकिस्तान में चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार है पर उस देश की हकीकत यह है कि वहां लोकतंत्र सेना, आईएसआई और कट्टरपंथियों के यहां गिरवी रहा है.

अंतर्राष्ट्रीय दबाव
बहरहाल, वार्त्ता के मुद्दे चिरपरिचित हैं. कश्मीर, सियाचिन, सरक्रीक, तस्करी और आतंकवाद पर एक बार फिर चर्चा होगी. इन मुद्दों पर कभी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. पाकिस्तान का हर नेता यही कहता आया है कि कश्मीर उन की रगों में बह रहा है. वे कश्मीर मुद्दे को नहीं छोड़ सकते. उधर, भारत कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा मानता आया है. पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को शह देता रहा है. वह इसे कब्जाना चाहता है. दोनों देशों के पास परस्पर आरोपप्रत्यारोपों की लंबी फेहरिस्त है.

विश्व में आईएस के बढ़ते प्रभाव और बदलते हालात में दोनों देश वार्त्ता के लिए इस बार गंभीर दिखते हैं पर विपक्ष के साथसाथ दोनों देश अपनेअपने धार्मिक कट्टरपंथियों से भी जूझ रहे हैं. भारत में विपक्षी दलों द्वारा पाकिस्तान के आगे झुकने का सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि भारत पाकिस्तान को ले कर अपना रुख लगातार बदल रहा है. उधर, पाकिस्तानी सांसदों ने नवाज शरीफ को घेर रखा है. उन से पूछा जा रहा है कि किन शर्तों पर भारत के साथ बातचीत हो रही है. दोनों देशों के कट्टरपंथी भी कुलबुला रहे हैं.

बातचीत के विवादास्पद मुद्दों के बीच दोनों देशों में व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक समझौते गौण हो जाते हैं. कई वस्तुओं के कारोबार अब भी प्रतिबंधित हैं. विश्व के देश भारत व पाकिस्तान के बीच शांति, परस्पर सहयोग का आदानप्रदान देखना चाहते हैं पर यह लगभग असंभव दिखता है. दोनों देशों के बीच कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता. अमेरिका तो स्पष्ट कहता आया है कि भारत व पाकिस्तान मिलबैठ कर बातचीत के जरिए अपनी समस्याओं का हल खुद निकालें, हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने बिचौलिए की भूमिका निभाने के लिए खुद को तैयार बताया था.

इराक व अफगानिस्तान युद्धों के बाद अमेरिका आतंकवाद को खत्म करने के लिए पाकिस्तान को करोड़ों डौलर की मदद देता है पर स्थिति जस की तस है. जैशे मोहम्मद, लश्करे तैयबा, तालिबान जैसे आतंकी संगठन पूर्व की तरह फलफूल रहे हैं.

पाकिस्तान में हर सरकार को आईएसआई, सेना तथा कठमुल्लों की कठपुतली बन कर शासन करना पड़ता है. दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्त्ता 2012 में संप्रग शासन के कार्यकाल में विदेश मंत्री एस एम कृष्णा की पाकिस्तान यात्रा के दौरान हुई थी. बातचीत को ना-ना करते हुए मोदी सरकार अब सहमत हुई है तो सवाल उठ रहे हैं कि एनडीए सरकार पूर्ववर्ती सरकारों से हट कर क्या ठोस परिणाम देगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले कह चुके हैं कि आतंकवाद और बातचीत साथसाथ नहीं चल सकते.

असल में भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे संबंध बनने के बीच सब से बड़ी बाधा धर्म है. भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ और पाकिस्तान की नींव धर्म पर पड़ी. तब से ले कर अब तक लाखों लोग मारे जा चुके हैं. तनावपूर्ण रिश्तों के चलते दोनों देशों के लोगों को बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ती है.

पाकिस्तान के सामंत, जमींदार आज भी उसी ठसक के साथ रह रहे हैं. गरीबी, पिछड़ेपन का आलम वहां यह है कि लोग भूखे मर जाएंगे पर मजहब के अमानवीय व्यवहार को नहीं छोड़ेंगे. पाकिस्तान का समाज हिंसक सांप्रदायिक दरार से जूझ रहा है. तालीम के नाम पर वहां अधिकांश बच्चों, युवाओं को मजहब के लिए जीनामरना सिखाया जाता है. वहां का समाज भारत व पश्चिम विरोधी पूर्वाग्रहों से इतना ग्रस्त है कि विश्वास पर आधारित शांति, प्रेम की फिलहाल कल्पना करना मुश्किल है.

वहां का राजनीतिक नेतृत्व कट्टरपंथियों के सामने बिलकुल बौना है जो देखने में असैन्य लोकतंत्र लगता है पर वास्तव में सभी मामलों में वहां सेना प्रमुख ही प्रमुख हैं. बातचीत सरकारों के बीच होती है पर पीठ पर दोनों ही देशों के कट्टरपंथी खड़े रहते हैं. कट्टरपंथियों का स्वार्थ किसी तरह प्रभावित न हो, इस बात का पूरा बंदोबस्त पहले ही कर दिया जाता है.

पड़ोसी चीन के साथ सीमा विवाद है पर वहां धर्म बीच में नहीं है. अगर दलाई लामा को छोड़ दिया जाए तो भारत व चीन के बीच कोई मजहबी दुश्मनी नहीं है. इसलिए चीन के साथ व्यापारिक, आर्थिक साझेदारी ने रिश्तों को ज्यादा बिगड़ने नहीं दिया. हालिया सालों में आर्थिक उदारीकरण के चलते छोटेमोटे विवादों को भुला कर कई देश करीब आए हैं पर भारत व पाकिस्तान के बीच कदमकदम पर मजहबी कट्टरता बीच में आ खड़ी होती है. मजहब ने खेल, सांस्कृतिक संबंधों से भी भारत और पाकिस्तान को दूर धकेल दिया है.

दुश्मनी की सियासत
पाकिस्तान मजहब से दूर नहीं जा सकता. अगर वह आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करता है तो समूचे देश में गृहयुद्ध होने का खतरा है. दशकों से बातचीत का सिलसिला चल रहा है. ज्योंज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया यानी वार्त्ताओं से हासिल कुछ नहीं हुआ, हालात और बिगड़ते रहे. जब तक दोनों देश संकीर्ण मजहबी सोच नहीं छोड़ देंगे तब तक अमन, तरक्की की उम्मीद करना बेमानी होगा.

दोनों देश पूर्व की सरकारों की नीतियों और सोच से हट कर संबंधों में सुधार कर पाएंगे, ऐसा नामुमकिन लगता है. राजनीतिबाजों को अपनीअपनी सियासत चलाने और उसे कायम रखने के लिए एक दुश्मन की जरूरत होती है. पाकिस्तान के सियासतदां वहां के लोगों में हिंदू, हिंदुस्तान का हौवा खड़ा करते हैं तो भारत में भाजपा जैसी धार्मिक पार्टियां हिंदुओं को एक रखने के लिए पाकिस्तान का भय खड़ा रखती हैं. ऐसे में रिश्ते कैसे सुधर पाएंगे?

जरमन कंपनी “मेसा” बनाएगी सोलर इनवर्टर

विंड टरबाइन बनाने वाली जरमनी की कंपनी मेसा भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की योजना बना रही है. उसे उम्मीद है कि भारत सरकार सौर ऊर्जा भारत सरकार को जिस तरह से बढ़ावा दे रही है उसे देखते हुए पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए टरबाइन बनाने के साथ ही सौर ऊर्जा क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कारोबार करने में वह सफल होगी.

कंपनी भारत में सोलर पैनल तैयार करने के पक्ष में नहीं है बल्कि कंपनी सोलर फार्म विकसित करने के साथ ऐसा इनवर्टर बनाना चाहती है जिस से सोलर पैनल करंट वैकल्पिक करंट के रूप में तबदील हो सके. उस कंपनी का विंड का वैश्विक स्तर पर बड़ा कारोबार है. वह ब्राजील, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका में विंड टरबाइन की बिक्री के कारोबार से लंबे समय से जुड़ी है और इस क्षेत्र में दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शामिल है.

कंपनी ने 5-6 साल पहले भारत में अपनी गतिविधियां शुरू की थीं और इस साल उस ने भारत में 900 मेगावाट की बिक्री कर ली. कंपनी का भरोसा भारत के सौर ऊर्जा कार्यक्रम पर है जिस को ले कर केंद्र सरकार बड़ीबड़ी घोषणाएं कर रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक मंच पर सौर ऊर्जा के उत्पादन की महत्ता और इसे भविष्य की ऊर्जा बता कर विश्व समुदाय को सौर ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में आने के लिए उत्साहित कर रहे हैं.

 

अमेरिका से प्रभावित हो रहे भारतीय शेयर बाजार

भारतीय शेयर बाजार अपने यहां होने वाली गतिविधियों से प्रभावित होता है तो यह स्वाभाविक है लेकिन वास्तविकता यह भी है कि अमेरिकी छींक का भी हमारे शेयर सूचकांक पर गहरा असर पड़ता है. यह सच है कि सभी शेयर बाजार विदेशी बाजारों के शेयर बाजारों की गतिविधियों से ज्यादा प्रभावित होते हैं लेकिन अमेरिकी बाजार का हमें कुछ ज्यादा ही गहरा झटका लगता है. इस बार भी यही हुआ.

अमेरिका में फैडरल रिजर्व के अध्यक्ष ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने की उम्मीद जताई है, जिस के कारण दिसंबर की शुरुआत में बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई लगातार 3 दिनों तक गिरावट पर बंद हुआ. सूचकांक 3 दिसंबर को 2 सप्ताह की सब से बड़ी गिरावट पर बंद हुआ और इस के अगले कारोबारी दिवस को फिर 250 अंक ढह गया और 25 हजार अंक की तरफ तेजी से लुढ़क गया. 

चेन्नई में बाढ़ के बाद लोगों को मिला सितारों का साथ

चेन्नई में भीषण जल आपदा ने वहां के जनजीवन को अस्तव्यस्त तो किया है साथ ही, फिल्म उद्योग को लाचार कर दिया. हाल में ‘सिंघम 3’ समेत कई फिल्मों की शूटिंग रद्द कर दी गई है और कई सितारे अपनी क्षमता के मुताबिक पीडि़तों की सहायता कर रहे हैं.

इधर, मुंबई में सलमान, शाहरुख और आमिर समेत कई सितारों ने धन दिया है. वहीं अभिनेता दिलीप कुमार ने इस मुश्किल घड़ी में इस साल 11 दिसंबर के दिन बड़े सितारों के साथ मनाए जाने वाले अपने जन्मदिन के जलसे को करने से मना कर दिया. देश या समाज में आई किसी मुसीबत पर राजनीति करने वाले नेताओं को इन सितारों के सार्थक प्रयासों से सबक लेने की दरकार है.

कुछ इस तरह कमबैक करने जा रहे हैं कबीर बेदी

अभिनेता कबीर बेदी कई हौलीवुड फिल्मों में काम कर चुके हैं. लेकिन सुपरहिट अंतर्राष्ट्रीय टीवी सीरीज ‘संदोकन’ से उन्हें बहुत शोहरत मिली. 70 के दशक में यह सीरीज यूरोप और लैटिन अमेरिका में बड़ी सराही गई थी. भारतीय दर्शकों के लिए अब इस 6 घंटे की सीरीज को हिंदी में डब कर के डीवीडी के रूप में रिलीज किया गया है.

‘संदोकन’ एशियाई राजकुमार की कहानी है जो अपने देश और प्रेमिका को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त कराने के लिए समुद्री डाकू बन जाता है, जिस की भूमिका कबीर बेदी ने निभाई है. इस शो के लिए कबीर बेदी को रोम फिक्शन टीवी फैस्टिवल में सम्मानित किया जा चुका है.

‘सरबजीत’ में कुछ इस अंदाज में नजर आएंगी रिचा चड्ढा

अभिनेत्री रिचा चड्ढा इन दिनों अपनी आगामी फिल्म ‘सरबजीत’ की शूटिंग में जीजान से जुटी हैं. ‘सरबजीत’ में रिचा सरबजीत की पत्नी का किरदार निभा रही हैं. अपने किरदार को विश्वसनीय तरीके से निभाने के लिए रिचा पंजाबी भाषा बोलना सीख रही हैं. पंजाबी भाषा के उच्चारण सीखने के लिए रिचा खास ट्रेनिंग ले रही हैं. साथ ही, पंजाबी वेशभूषा और संस्कृति समझने के लिए रिचा रोजाना पंजाबी फिल्में देख रही हैं.

फिल्म में सरबजीत की बहन का किरदार जहां ऐश्वर्या राय निभा रही हैं वहीं सरबजीत के रोल के लिए निर्देशक ओमंग कुमार ने अभिनेता रणदीप हुड्डा को साइन किया है. उम्मीद है कि ओमंग कुमार मेरी कौम जैसी बायोपिक के बाद एक और शानदार बायोपिक पेश करेंगे.

रानी के घर आई नन्ही परी, ये रखा है बच्ची का नाम

अभिनेत्री रानी मुखर्जी फिल्म ‘मर्दानी’ के बाद घर पर ही आराम कर रही थीं. पैपेराजी के शौकीन कुछ फोटोग्राफरों ने चोरीछिपे उन के प्रैग्नैंट होने की खबरें और तसवीरें भी प्रकाशित कीं. लेकिन रानी के पति आदित्य चोपड़ा मीडिया से दूर ही रहते हैं और कोई भी प्रैस कौन्फ्रैंस या मीडिया इंटरव्यू के लिए सामने नहीं आते. शायद इसलिए रानी ने भी इस विषय पर ज्यादा बात नहीं की.

लेकिन अब खबर है कि रानी मुखर्जी एक बेटी की मां बन गई हैं. ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया है. रानी ने अपनी बेटी का नाम आदिरा रखा है. अंदाजा है कि आदिरा नाम को आदित्य और रानी के नाम के शुरुआती अक्षरों को मिला कर बनाया गया है. बहरहाल, रानी मुखर्जी के फैंस उन से एक बार फिर मर्दानी जैसी फिल्म का इंतजार कर रहे हैं.

कानूनी शिकंजे में किराएदारी, आप हो सकते हैं परेशान

हर उस काम, जिस में सरकार और उस की एजेंसियों को लोगों से पैसा झटकने की गुंजाइश रहती है, में सरकार टांग फंसाने से चूकती नहीं जिस का खमियाजा उन आम लोगों को भुगतना पड़ता है जिन्होंने कोई जुर्म नहीं किया होता, न टैक्स चोरी की होती है. कानून व्यवस्था और सुरक्षा के नाम पर जिन मसलों को ले कर सरकार आम लोगों की जिंदगी दुशवार करने से चूक नहीं रही, किराएदारी उन में से एक है. बढ़ते शहरीकरण ने किराएदारों की संख्या बढ़ाई है. हैरत की बात यह है कि अब किराएदार और मकानमालिकों के बीच मुकदमों व विवादों की तादाद पहले के मुकाबले कम हो चली है. असल में अब पहले की तरह किराए का भवन, दुकान या मकान हड़पना आसान नहीं रहा. भवनमालिक सजग हैं और किराएदारों को भी समझ आने लगा है कि बेवजह की कानूनी कवायदों और पुलिस वालों के झंझट में फंसने से बेहतर है कि भवन बदल लिया जाए और विवाद से जितना हो सके, बचा जाए.

आजकल किराए के मकानों में रहने वाले अधिकतर लोग भी पैसे वाले हो चले हैं और किराया वक्त पर चुकाते हैं क्योंकि उन की मंशा सुकून से रहने की होती है, नीयत खराब करने की नहीं. एक और बदलाव यह आया है कि अधिकतर किराएदार घरगृहस्थी वाले कम, छात्र और नौकरीपेशा ज्यादा हैं जिन्हें शहरों में 5-7 साल के लिए मकान चाहिए होता है. इस के बाद वे खुद का मकान, जो उन का सपना होता है, बना या खरीद लेते हैं और ऐसा न कर पाए तो हर 2 साल में ठिकाना बदल लेते हैं. किराएदारी अब पहले की तरह जानपहचान या रिश्तों पर आधारित न हो कर शुद्ध व्यावसायिक हो चली है. पहले की तरह मौखिक करार शायद ही कोई करता हो. अब 11 महीने का अनुबंध चलन में है जिस से दोनों पक्ष सहमत होते हैं और अनुबंध समाप्ति पर कोई परेशानी एकदूसरे को न हो तो अनुबंध बढ़ा लेते हैं. कोई दिक्कत पेश आए तो किराएदार खुद मकान छोड़ दूसरा ढूंढ़ लेता है. वजह, अब किराए के मकानों, भवनों या दुकानों का पहले की तरह टोटा नहीं है. ज्यादातर लोग अब मकानों, दुकानों में निवेश अतिरिक्त आमदनी के लिए कर रहे हैं क्योंकि इस से एक स्थायी संपत्ति भी बनती है और दूसरे किसी निवेश के मुकाबले इस में ज्यादा पैसा मिलता है. देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में जान कर हैरत होती है कि 2 कमरों के एक फ्लैट का किराया औसतन 30 हजार रुपए होता है और मकान हासिल करने के लिए इस का चारगुना किराए के लिए  डिपौजिट की शक्ल में जमा कराना पड़ता है. दूसरे शहर भी इस नए चलन से अछूते नहीं हैं. शहरों में बढ़ती भीड़ ने भवनमालिकों को आर्थिक राहत दी है लेकिन अब सभी जगह दिक्कतें सरकारी विभागों की तरफ से खड़ी की जा रही हैं जिस का खमियाजा ज्यादातर मकानमालिकों को भुगतना पड़ रहा है.

सत्यापन है बड़ा जंजाल

कानूनी अनुबंध दोनों पक्षों के लिए काफी सहूलियत और सुकून देने वाला साबित हुआ. उस में दोनों पक्ष बेफिक्र रहते हैं. आमतौर पर अनुबंध 100 रुपए के स्टांपपेपर पर किया जाता है जिस में किराएदारी का सारा प्रचलित विवरण और शर्तों का उल्लेख होता है. भोपाल जैसे बी श्रेणी के शहर में किराएदारों की संख्या लगभग 3 लाख आंकी जाती है. इन में 2 लाख के करीब दूसरे शहरों से पढ़ने आए छात्र हैं. इन में से 60 फीसदी छात्रावासों में रहते हैं और बाकी कालेज या कोचिंग के नजदीक के फ्लैट्स और भवनों में रहते हैं. जाहिर है इन से छात्रावास संचालकों और मकानमालिकों को कोई खतरा नहीं सिवा इस के कि कुछ छात्र हुड़दंगी होते हैं. लेकिन मकानमालिक इसे बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं मानते. एक बड़ा बदलाव बीते 5 सालों में व्यावसायिक इलाकों में देखने में आ रहा है. इन्हीं छात्रों और नौकरीपेशा लोगों की तरह अब व्यवसाय करने के लिए कंपनियां और ब्रोकर भी आने लगे हैं. व्यावसायिक इलाकों में किराए की दरें कहीं ज्यादा हैं. भोपाल के व्यावसायिक इलाके एम पी नगर में 1 या 2 कमरों वाले औफिस का औसत किराया 20 हजार रुपए है. दफ्तर खोलने और चलाने वाले लोग अलगअलग व्यवसाय संचालित करने वाले होते हैं. कोई मैरिज ब्यूरो चला रहा है तो किसी ने फाइनैंस कंपनी खोल रखी है और कोई किसी न किसी तरह की सर्विस एजेंसी चला रहा है.

रिहायशी और व्यावसायिक किराएदारी में दिक्कत अब से 5 साल पहले उठ खड़ी हुई जब शहर में अपराध बढ़ने लगे और पुलिस को अपराधियों की शिनाख्त करना मुश्किल हो गया क्योंकि वे किराए के मकान या दफ्तर में रहते थे. अपराधियों को धरदबोचने में पुलिस नाकाम रहने लगी तो अपनी फजीहत होने से बचने के लिए उस ने यह फरमान जारी कर दिया कि मकानमालिक किराएदार की पहचान व सत्यापन करें और कागजात को नजदीकी थाने में जमा करें. यह अनुबंध एक सहूलियत था जिस में सिर्फ औपचारिक लिखापढ़ी होती थी. मकानमालिकों ने किराएदारों से पहचान के लिए प्रमाण मांगने शुरू कर दिए, यह कोई खास दिक्कत वाली बात नहीं थी. किराएदार अपनी पहचान वाले कागज की फोटोकौपी मकानमालिक को सौंपने लगे जो वोटर आईडी, आधार कार्ड, पैन कार्ड या ड्राइविंग लाइसैंस की शक्ल में होती थी. ज्यादातर मकानमालिकों ने इस काम में दिलचस्पी नहीं ली. वजह, उन्हें कागज और किरायानामा ले कर थाने जा कर जमा करना बेकार का और अव्यावहारिक काम लग रहा था. लेकिन पुलिस की सख्ती बढ़ी, इस बाबत बाकायदा चेतावनियां दी जाने लगीं और अभियान चलाए जाने लगे तो घबराए मकानमालिक थानों की तरफ दौड़ने को मजबूर हुए जहां यह काम दूसरे कामों की तरह आसानी से नहीं होता. घंटों दारोगा या संबंधित पुलिस कर्मचारी का इंतजार करने के बाद ही कागज जमा होते लेकिन एवज में कोई रसीद उन्हें नहीं दी जाती थी. इन मकानमालिकों को उस वक्त तकलीफ होने लगी जब संबंधित कर्मचारी ने लापरवाही से कागज ले कर कुरसी के पीछे की तरफ फेंके या फिर अलमारी में रद्दी की तरह ठूंस दिए.

अपनी तरफ से नैतिक और कानूनीतौर पर तो मकानमालिक बेफिक्र होने लगे लेकिन बड़ी परेशानी उस वक्त खड़ी होने लगी जब पुलिस विभाग ने यह फरमान भी जारी कर दिया कि चूंकि सभी मकानमालिक ऐसा नहीं कर रहे हैं इसलिए सभी पर कार्यवाही की जाएगी. किराएदार की सूचना प्रमाण सहित पुलिस को न देना एक तरह से कानूनी अपराध हो गया तो मकानमालिकों की नींद उड़ गई. उधर, जब भी जुर्म की कोई वारदात घटी और अपराधी पकड़ में नहीं आए तो पुलिस वाले अपने बचाव में दलील यह देने लगे कि चूंकि मकानमालिक सूचना नहीं देते हैं, इसलिए मुजरिम को पकड़ना मुश्किल हो रहा है. पुलिस थाने में जा कर यह पूछने की जुर्रत कौन करता कि सभी अपराधों में तो ऐसा नहीं होता, रोजाना तो गंभीर वारदातें होती नहीं और जो होती हैं उन में से सभी तो किराए के मकानों में नहीं रहते. भोपाल में इस साल ठगी की कोई 2 दर्जन वारदातें हुईं जिन में अधिकांश व्यावसायिक क्षेत्र एम पी नगर की थीं. गिरोहबद्ध तरीके से ठगी करने वालों ने किराए के दफ्तर लिए, ठगी की और फरार हो गए. इन में फाइनैंस कंपनी वाले थे, दलाल थे और मैरिज ब्यूरो वाले थे. पुलिस की गाज भवनमालिकों पर इस तरह गिरी कि अगर किराएदार की खबर थाने में नहीं दी तो मकानमालिक को आरोपी बनाते हुए उस के खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही की जाएगी.

व्यावहारिक दिक्कतें

पुलिसिया फरमान से हड़कंप मचना स्वाभाविक था. तमाम मकान, भवनमालिकों को ऐसा लगने लगा मानो वे किराएदार नहीं रख रहे बल्कि पैसे ले कर गुनाहगार को पनाह दे रहे हों. एम पी नगर के एक चैंबर्स मालिक का कहना है कि एक अपार्टमैंट में 10 से 200 तक दफ्तर या दुकानें होती हैं. हम किराएदारों से कागजात मांगते हैं तो वे देते भी हैं जिन्हें हम थाने ले जा कर जमा कर देते हैं लेकिन यह दिक्कत वाला काम है. सभी किराएदारों के पास कागज नहीं होते और जो होते भी हैं वे उन की मूल पहचान साबित नहीं करते. मिसाल के तौर पर हम ने किसी एजेंसी को किराए पर दफ्तर दिया तो वह रजिस्ट्रेशन के कागज देती है, जोर देने पर एजेंसी का एक शख्स फोटो आईडी भी दे देता है.

सब से ज्यादा दिक्कतों का सामना होस्टल संचालकों को करना पड़ रहा है. एक होस्टल में 20 से 500 तक छात्र रहते हैं. इन सभी के पहचान वाले कागजात इकट्ठा कर थाने में जमा करना सिरदर्दी वाली बात है, वह भी उस सूरत में जब आमतौर पर छात्र अपराध नहीं करते. एक होस्टल संचालक का रोना है कि यहां तो रोज कोई न कोई छात्र होस्टल छोड़ कर जाता है और उस की जगह दूसरा आ जाता है. ऐसे में हमें रोज अपराधियों की तरह थाने में हाजिरी देने को मजबूर होना पड़ रहा है. बेहतर तो यह होगा कि सरकार ‘किराया थाना’ खोल ले जिस में भोपाल आने वाला हर नया शख्स अपनी आमद के पहचानपत्र दर्ज कराए. इस बेवजह की कागजी अनिवार्यता से फर्क किराए की रकम पर भी पड़ रहा है. जिन के पास कागज हैं वे किराया कम करवा लेते हैं और जिन के पास नहीं हैं वे मुंहमांगी रकम देते हैं. लेकिन दोनों ही वजहों से किराएदारी दिक्कत में है.

एक होस्टल संचालक की मानें तो कारगर यह होगा कि सुबूत इकट्ठा करने का काम खुद पुलिस वाले करें. वे अकसर कम अमले का रोना रोते रहते हैं तो इस में हमारा क्या कुसूर. मदद उन्हें चाहिए तो पहल और कवायद भी उन्हें ही करनी चाहिए. यकीन मानें इस के  लिए सरकार जो फीस तय करेगी वह मकानमालिक परेशानी से छुटकारा पाने के लिए सहर्ष देंगे. एक दूसरा रास्ता इस व्यवस्था को औनलाइन करने का है. मकानमालिक किराएदार की पहचान के कागजात ईमेल के जरिए दें तो भी बात हर्ज की नहीं. इस पर भी बात न बने तो बेहतर यह होगा कि इस काम का जिम्मा किसी प्राइवेट एजेंसी को दे दिया जाए. इन उपायों पर भी बात न बने तो किराएदारी, जो मकानमालिक के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया और किराएदारों को एक सहूलियत है, के सत्यापन के कागजात पुलिस को सौंपने का जिम्मा किराएदार को ही दिया जाए. मकानमालिक क्यों यह जिम्मेदारी उठाए जिस का किराएदार की चालचलन से कोई लेनादेना नहीं होता. वह क्यों किसी अनजान के बेगुनाह होने की गारंटी ले.

इस परेशानी से एक बात यह भी साफ होती है कि सरकार बेवजह तरहतरह के नियमकायदे बना कर आम लोगों की रोजमर्राई जिंदगी कठिन बना रही है. किराएदारी के मामले में तो उजागर है कि इस का एक फीसदी भी अपराधों से कोई लेनादेना नहीं होता.   

सलमान पर फैसला, सोशल मीडिया में उबाल

जैसे ही मुंबई हाईकोर्ट ने सलामान खान को हिट ऐंड रन केस में बाइज्जत बरी किया, सोशल मीडिया में इस अदालती फैसले और सलमान का मजाक उड़ाते चुटकुलों की बाढ़ सी आ गई.

– राहुल गांधी अपने लैपटौप पर कुछ देख रहे हैं. उन की मां सोनिया गांधी पूछती हैं, ‘क्या देख रहे हो?’

राहुल गांधी : सलमान के वकील का पता.

– जब सलमान को छोड़ दिया तो उस बेचारे आसाराम को भी छोड़ दो. उस से तो किसी की मौत भी नहीं हुई थी.

– अच्छा है कि पैसों में इतनी ताकत नहीं है वरना काला हिरण भी कह देता कि उस ने खुद आत्महत्या की है. किसी ने उस को मारा नहीं है. 

इंसाफनामा

एक तोता अपनी पत्नी तोती के साथ वीरान इलाके से गुजर रहा था.

तोती : कितना वीरान गांव है?

तोता : यहां से कोई उल्लू गुजर गया होगा.

जब तोता और तोती बात कर रहे थे तो एक उल्लू वहां से गुजर रहा था. उस ने तोते की बात सुनी और रुक कर बोला, ‘तुम लोग गांव में अजनबी हो. आज रात मेरे यहां गुजारा कर लो. सुबह चले जाना.’

उल्लू की प्यारभरी बात सुन कर तोता, तोती इनकार नहीं कर सके. वे उस के घर में रुक गए. अगली सुबह जब वे दोनों जाने लगे तो उल्लू ने तोते की पत्नी तोती पर हाथ रखते कहा, ‘तुम तो मेरी पत्नी हो, इस के साथ कहां जा रही हो?’

तोती बोली, ‘मैं अपने पति के साथ जा रही हूं.’ उल्लू यह मानने को तैयार नहीं था. उस ने तोती को अपनी पत्नी बताना शुरू कर दिया. इस पर तोता और उल्लू में तकरार होने लगी. तब उल्लू ने तोते के सामने एक प्रस्ताव रखा, ‘ऐसा करते हैं, हम लोग काजी के पास चलते हैं. वे जो फैसला देंगे वह माना जाएगा.’ तीनों काजी के पास गए. काजी ने अदालत में तीनों की बात सुनी और तर्क की रोशनी में फैसला देते कहा, ‘तोती उल्लू की ही पत्नी है.’ फैसले के बाद अदालत बर्खास्त हो गई. तोता रोता हुआ अपनी राह पर जाने लगा. उल्लू ने उसे आवाज दे कर रोका और कहा, ‘भाई, अकेलेअकेले कहां चल दिए. अपनी पत्नी को साथ नहीं ले जाओगे.’ 

तोता बोला, ‘मेरे जख्मों पर नमक क्यों छिड़क रहे हो. अब यह मेरी पत्नी कहां. अदालत ने तुम्हारे हक में फैसला कर दिया है.’ उल्लू ने तोते की बात नरमी से सुनी और बोला, ‘दोस्त, तोती मेरी नहीं, तुम्हारी ही पत्नी है. मैं तो तुम को यह बताना चाहता था कि बस्तियां उल्लू वीरान नहीं करते, बस्तियां तब वीरान होती हैं जब वहां से न्याय उठ जाता है.’  

क्या है हिट ऐंड रन केस

फिल्म अभिनेता सलमान खान के एक मामले में मुंबई हाईकोर्ट के आए फैसले के बाद सोशल मीडिया पर उबाल आ गया. 2002 के हिट ऐंड रन केस से मुंबई हाईकोर्ट ने सलमान खान को बाइज्जत बरी कर दिया. इस पर सलमान खान के कुछ प्रशंसकों ने उन के घर के सामने नाचगाने के बाद जश्न मनाया. प्रशंसकों से कहीं अधिक संख्या में सोशल मीडिया में लोगों ने अदालत के फैसले की आलोचना शुरू कर दी. सोशल मीडिया पर यह सवाल बुरी तरह से वायरल हो गया कि मरने वाला मरा कैसे? मजाकिया अंदाज में ही सही लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए सलमान खान को निर्दोष छोडे़ जाने को ले कर कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. ऐसा पहले भी हुआ कि अदालत के फैसले पर सवाल उठे हैं पर इतनी बड़ी तादाद में आलोचना पहली बार किसी फैसले की हुई है. घटना 28 सितंबर, 2002 को हुई. सलमान खान की सफेद लैंड क्रूजर कार बांद्रा में हिल रोड स्थित ऐक्सप्रैस बेकरी के पास फुटपाथ पर चढ़ गई, जिस से 1 आदमी की मौत और 4 लोग घायल हो गए. सलमान के खिलाफ आईपीसी की धाराओं और मोटर वाहन कानून 1988 की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

कानूनी पेंच

मुंबई पुलिस ने सलमान खान पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया जिस में 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. केस की सुनवाई में तमाम तरह के उतारचढ़ाव आए. कभी 28 मार्च, 2015 को सलमान खान का ड्राइवर अशोक सिंह अदालत के सामने फिल्मी अंदाज में आता है और कहता है कि हादसे के समय वह गाड़ी चला रहा था. 6 मई, 2015 को सत्र न्यायाधीश डी डब्लू देशपांडे ने सलमान खान को 5 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई. मुंबई हाईकोर्ट ने सलमान खान की अंतरिम याचिका मंजूर कर ली. इस के बाद मुंबई हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई और 10 दिसंबर, 2015 को उस ने सलमान खान को पूरे मामले से बरी कर दिया. बात केवल सोशल मीडिया की ही नहीं है, कानूनी मामलों के कई जानकार भी मानते हैं कि यहां न्याय होता दिख नहीं रहा है. कोर्ट के फैसले में कहा गया कि सलमान के खिलाफ सारे आरोप साबित नहीं हो सके. सुबूतों में भी विरोधाभास था. जांच में ऐसी कमियां छोड़ दी गईं जिन का लाभ आरोपी को मिला. अदालत ने माना कि सलमान को सजा दिलाने के लिए अदालत के सामने पेश किए गए सुबूत काफी नहीं थे. कार सलमान ही चला रहे थे, यह साबित नहीं हुआ. उस समय सलमान ने शराब पी रखी थी, इसे भी साबित नहीं किया जा सका. अदालत ने सलमान के बौडीगार्ड व पूर्व पुलिस सिपाही रवींद्र पाटिल की गवाही को संदेहास्पद माना. अदालत ने बांद्रा पुलिस को आदेश दिया कि वह सलमान का पासपोर्ट वापस कर दे. सलमान से अदालत ने 2 सप्ताह में 25 हजार रुपए का निजी बौंड जमा करने को कहा है.

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