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समाचार

चीनी की दुनिया की कड़वाहट

सहकारी चीनी मिलों पर सूबे की सरकार का काबू नहीं

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे में चीनी उत्पादन और गन्ना मूल्य भुगतान ही किसानों का सब से खास मुद्दा है. सारे साल इसी बात को ले कर उठापटक मची रहती है. मुख्यमंत्री से ले कर प्रधानमंत्री तक को  मामले में जबतब दखल देना पड़ता है, फिर भी चीनी के मामले की कड़वाहट खत्म नहीं हो पाती. फिलहाल गन्ना मूल्य भुगतान की उम्मीद लगाए बैठे तमाम किसानों को सहकारी चीनी मिलों ने करारा झटका दिया है. बीते चीनी सीजन में गन्ने की पेराई करने वाली 23 सहकारी मिलों ने उच्च न्यायालय को बताया कि वे कोर्ट के फरमान के मुताबिक 2 हफ्ते में बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं कर पाएंगी. इस के लिए उन्हें 31 दिसंबर यानी 2015 के अंत तक का वक्त चाहिए. इन मिलों ने अपने हलफनामे में दो टूक अंदाज में कहा है कि उन पर सूबे की सरकार का कोई काबू लागू नहीं होता. उन का संचालन स्वायत्त सहकारी समितियां करती हैं, जिन की स्थापना किसानों द्वारा की गई है. गौरतलब है कि पिछली बार 29 जुलाई, 2015 को उच्च न्यायालय ने गन्ना मूल्य भुगतान के मसले पर सख्ती बरतते हुए सूबे की सरकार के अधिकार वाली सहकारी चीनी मिलों को 2 हफ्ते में किसानों को भुगतान करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने आदेश का पालन न किए जाने की दशा में सख्त कार्यवाही करने की बात कही थी.

उच्च न्यायायल ने ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ के संयोजक वीएम सिंह की जिस याचिका पर 2 हफ्ते में भुगतान किए जाने का आदेश दिया था, उस में पक्षकार बनने के लिए 23 सहकारी मिलें उच्च न्यायालय जा पहुंचीं. उन्होंने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में साफ कहा कि उन की मिलें सूबे की सरकार की नहीं है. इस मसले पर याचिकाकर्त्ता वीएम सिंह का कहना है, सहकारी चीनी मिलों का नियंत्रण उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल संघ के अधीन है, मगर वह तसवीर से गायब है. ‘पहली दफे सहकारी चीनी मिलों को आगे कर के हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कराया गया है, जिस में बातों को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. ‘सूबे की सरकार के कहने पर यह कवायद निजी चीनी मिलों के हित में की जा रही है.’ सहकारी चीनी मिलों के महाप्रबंधकों का कहना है कि सहकारी चीनी मिलों पर 6855.37 करोड़ रुपए का कर्ज है. इस में राज्य सरकार की ब्याज सहित देनदारी 3880.11 करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि राज्य सरकार से जो कर्ज मिलता है, उस पर 15 फीसदी ब्याज देना पड़ता है. अब देखने वाली बात यह है कि मिलों के दावे पर कोर्ट क्या कहता है. क्या मिलों को साल के अंत तक का वक्त दिया जाता है? क्या इस के बाद भी भुगतान पूरी तरह निबट पाएगा? सारे सवालों के जवाब समय आने पर ही मिल पाएंगे.                                               ठ्ठ

चीनी मिलों को मिलेगा कर्ज

नई दिल्ली : यकीनन सरकार अपनी तरफ से चीनी मिलों को राहत देने में कोताही नहीं बरतती, फिर भी मामले भले ही लटके रहें. पिछले दिनों सरकार द्वारा मंजूर किए गए 6000 करोड़ रुपए के कर्ज से जुड़ी शर्तों को मिलों के हित में और भी आसान कर दिया गया?है.

यह कर्ज उन चीनी मिलों के लिए है, जिन्होंने 30 जून, 2015 तक किसानों के बकाए का 50 फीसदी चुका दिया था. मगर अब 31 अगस्त 2015 तक किसानों का 50 फीसदी भुगतान करने वाली चीनी मिलों को?भी यह कर्ज मिलेगा. चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 15400 करोड़ रुपए का बकाया?है, लिहाजा सरकार ने किसानों की मदद के लिए चीनी मिलों को दिए जाने वाले कर्जों की शर्तों को काफी आसान कर दिया?है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगाई गई. दरअसल गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए सरकार पिछले कई महीनों से लगातार कोशिश कर रही?है. जून महीने में चीनी मिलों को पैसा मुहैया कराने के इरादे से सरकार ने 2015-16 सीजन के लिए जून में 6000 करोड़ रुपए मंजूर किए थे. इस रकम से किसानों के बकाया भुगतान को गति मिलने की उम्मीद की जा सकती है. पहले 30 जून तक किसानों का आधा भुगतान करने वाली मिलों को ही कर्ज दिए जाने की बात कही गई थी, जिस से तमाम मिलें इस मदद से महरूम रह जातीं. इसी बात को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने 31 अगस्त तक किसानों का आधा भुगतान करने वाली मिलों को?भी इस कर्ज का हकदार बना दिया. इस प्रकार कई मिलों को अनकहे अंदाज में 2 महीने का अच्छाखासा अरसा मिल गया. सरकार के सहयोग के इस आलम में तमाम चीनी मिलों का फर्ज है कि वे कर्ज की मदद की बदौलत किसानों का भुगतान करने में कोई कोताही न बरतें और खुद पर लगा लापरवाही का कलंक मिटा लें ताकि चीनी का माहौल मीठा हो जाए.    

     

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मुहिम

यूपी में लंदन जैसी फलसब्जियां

लखनऊ : जी हां, यह बात सच होने जा रही है कि उत्तर प्रदेश में भी लंदन जैसी फलसब्जियां मिलने लगेंगी. प्रदेश सरकार भी किसानों के लिए लंदन जैसी फलसब्जियों की क्वालिटी, उन के रखरखाव और ऐक्सपोर्ट पर काम करेगी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मंत्री राजेंद्र चौधरी ने लंदन यात्रा से लौटने के बाद इस बारे में जानकारी दी. मंत्री राजेंद्र चौधरी ने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लंदन से 50 मील दूर गांवों और खेतों के बीच गए. वहां उन्हें खेतों में खूब सारी सरसों दिखी. वहां गेहूं और धान के अलावा फलसब्जी की फसलें भी होती हैं. वहां फल और सब्जियों की क्वालिटी और उन के रखरखाव और वितरण नेटवर्क को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश में भी लागू करने की योजना बनाई है. इस से किसानों को काफी मदद मिलेगी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लंदन में गुजरात, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान के अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के तमाम लोगों से भी मिले. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वहां की संसद, शाही परिवार के निवास और ईस्ट इंडिया कंपनी के दफ्तर को नजदीक से देखा. वे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी गए, जहां उन्होंने छात्रों की पढ़ाईलिखाई के तौरतरीकों को देखा. साथ ही वे लंदन में शेक्सपीयर के गांव भी गए.

इस तरह लंदन से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने यहां के किसानों के लिए एक नया फार्मूला तो ले कर आए. खेती की कसौटी पर मुख्यमंत्री का यह लंदन दौरा कारगर कहा जा सकता?है. उम्मीद है कि जब भी मुख्यमंत्री विदेश जाएंगे तो कुछ खास ले कर लौटेंगे.

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इनाम

कृषि विज्ञान केंद्र को राष्ट्रीय पुरस्कार

रायपुर : केंद्रीय कृषि मंत्रालय से संबद्ध भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा. यह पुरस्कार साल 2014 के लिए कृषि केंद्र के बेहतरीन कामों पर दिया गया. कृषि विज्ञान केंद्र को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा संचालित किया जाता है. मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह और प्रदेश के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राज्य के किसानों के साथसाथ कृषि विज्ञान केंद्र, अंबिकापुर और कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के वैज्ञानिकों, अफसरों व मुलाजिमों को बधाई दी. केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने पटना में आयोजित कृषि विज्ञान केंद्रों की 2 दिनों की राष्ट्रीय संगोष्ठी में अंबिकापुर के कृषि विज्ञान केंद्र को जोन 7 के तहत बेहतर काम के लिए कृषि विज्ञान केंद्र पुरस्कार 2014 से नवाजा. इस समारोह का आयोजन पटना के श्रीकृष्णा मेमोरियल हाल में किया गया था.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डाक्टर एसके पाटील, आंचलिक परियोजना निदेशालय जोन 7 के डायरेक्टर डाक्टर अनुपम मिश्रा, डायरेक्टर विस्तार सेवाएं डाक्टर एमबी ठाकुर और कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम समन्वयक डाक्टर आरके मिश्रा ने यह खास पुरस्कार हासिल किया. उल्लेखनीय है कि अंबिकापुर के कृषि विज्ञान केंद्र का संचालन आदिवासी बहुल सरगुजा जिले में पिछले 20 सालों से लगातार किया जा रहा है.                      ठ्ठ

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मसला

प्याज पर सरकार की आंखें खुलीं

नई दिल्ली : सरकार की नानुकर के बीच प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी थीं. पिछले 2 महीने से दिल्ली और उस के आसपास के शहरों में जहां प्याज की कीमतों में 25 फीसदी तक का इजाफा हो चुका था, वहीं देश के दूसरे राज्यों में भी इस की कीमतें काफी बढ़ गई थीं. सरकार आखिरकार प्याज के दाम घटाने में कुछ हद तक कामयाब रही. बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने हेतु दिल्ली सरकार ने दिल्ली में प्याज के दाम तकरीबन 10 रुपए कम करने का फैसला लिया.

मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में प्याज आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही थी, वहीं सरकार का दावा था कि देश में प्याज की कोई कमी नहीं है. कालाबाजारी की वजह से कुछ जगहों पर परेशानी आ रही है. हालांकि सरकार बेशक जो दावे करे, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि प्याज के बढ़ते दामों ने आम आदमी की आंखों में आंसू लाने शुरू कर दिए थे. दिल्ली की थोक मंडी में प्याज की कीमतों में काफी उछाल देखा गया था. पिछले 2 महीने में ही प्याज की कीमत 36 रुपए से बढ़ कर 45 रुपए तक पहुंच चुकी थी. 2 सरकारी एजेंसियां नेफेड और एसएफएसी रोजाना दिल्ली में सप्लई के लिए सौ टन के करीब प्याज मुहैया कराती हैं.

जानकारी के मुताबिक दिल्ली में रोजाना 800 से 1000 टन प्याज की खपत होती है. ऐसे में इतनी खपत के बीच कीमतों को थामना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी. वैसे जानकारों की मानें, तो कीमत बढ़ने के पीछे इस की एक अहम वजह कम आपूर्ति भी है.हालांकि केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि देश में प्याज की कोई कमी नहीं है. प्याज का भरपूर भंडार है. राज्य सरकारों की ओर से कालाबाजारी पर कार्यवाही न करने के कारण प्याज का दाम बढ़ रहा है. वैसे उन्होंने इस बात को माना कि सरकार के पास प्याज को महफूज रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं.                                                                                                 

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कवायद

भुगतान के लिए भटकते किसान

पटना : बिहार के चंपारण जिले के लौरिया योगापट्टी में सब से ज्यादा गन्ने का उत्पादन होता है और इसी वजह से उस इलाके को गन्ने का ‘मायका’ कहा जाता है. गन्ने की भरपूर खेती करने के बाद भी गन्ना किसानों की माली हालत खराब है और वे गन्ने की खेती छोड़ने का मन बनाने लगे हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि चीनी मिलों द्वारा किसानों से गन्ना तो खरीद लिया जाता है, लेकिन उस के भुगतान के लिए किसानों को दरदर भटकना पड़ता है. लौरिया चीनी मिलों के अलावा बगहा, नरकटियागंज और मझौलिया चीनी मिलें किसानों से गन्ना खरीदती हैं. किसान रामसेवक बताता है कि गन्ने की कीमत लेने के लिए किसानों को हर साल भटकना पड़ता है और सड़कों पर उतरना पड़ता है. इस साल 12 जनवरी से ले कर अभी तक किसानों के करीब 25 करोड़ रुपए चीनी मिलों के पास बकाया हैं. ऐसी हालत में किसान गन्ने की खेती कर के पछता रहे हैं और उस से मुंह मोड़ने लगे हैं. बकाया भुगतान की मांग को ले कर किसान लौरिया के विधायक विनय बिहारी से ले कर मुख्यमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं. इस के बाद भी किसानों को दूरदूर तक भगुतान के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. विधायक कहते हैं कि किसानों के भुगतान के लिए कई दफे सरकार से मांग की गई है और चीनी मिलों के मालिकों और प्रबंधन पर भी पूरा दबाव बनाया जा रहा है. जागरूक किसान महेंद्र पांडे कहते हैं कि सरकार और चीनी मिलों को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि हर साल गन्ना किसानों को समय पर भुगतान मिल सके. हर साल अपने ही पैसों के लिए भटकने से किसान गन्ने की खेती छोड़ने का मन बनाने लगे हैं.               

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हौसला

महिला भिड़ी मगरमच्छ से

केंद्रपाड़ा : ओडिशा के केंद्रपाड़ा इलाके के सिंगिरी गांव की 37 साला सावित्री ने जो कारनामा कर दिखाया, वह काबिलेतारीफ है. आजकल सावित्री अस्पताल में भरती है. इस की वजह कोई बीमारी नहीं, बल्कि मगरमच्छ से लड़ाई में जिस्म पर हुए जख्म हैं. सावित्री पर मगरमच्छ ने उस समय हमला कर दिया, जब वह अपने घर के पास ही एक तालाब में अपने बरतन धो रही थी. सावित्री ने बताया, ‘‘यह हमला मेरे ऊपर अचानक हुआ था. उस समय वहां मुझे बचाने के लिए कोई नहीं था, लेकिन मैं ने मगरमच्छ से जूझते हुए एक कटोरे और चमचे से ही उस पर हमला कर दिया. अपने ऊपर हमला होते देख मगरमच्छ उलटे पैर भागा. तब जा कर मेरी जान बच सकी. ‘‘मगरमच्छ मेरे ऊपर अचानक कूदा था. वह मुझे पानी में दूर तक खींच ले गया. तब मैं ने उस के माथे व आंख पर चमचे से प्रहार किया, जो उसे जोर से लगा और वह मुझे छोड़ कर पीछे की ओर हटा.’’ 

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तरकीब

मछली, मखाना व सिंघाड़ा साथसाथ

पटना : अब तालाबों में किसान एकसाथ 3 चीजों का उत्पादन कर सकेंगे और ज्यादा फायदा उठा सकेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पिछले 4 सालों से उत्तर बिहार के किसानों को मखाने के साथसाथ मछली और सिंघाड़े का समेकित उत्पादन करने के लिए जागरूक कर रहा?है और ट्रेनिंग भी दे रहा है. इस दौरान केंद्र ने इस प्रयोग पर करीब 25 लाख रुपए खर्च किए, पर महज 23 हेक्टेयर जलक्षेत्र में ही समेकित खेती करने में कामयाबी मिल सकी है. कृषि वैज्ञानिकों का दावा?है कि अगर बिहार के सभी मखाना पैदा करने वाले किसान मखाने के साथ सिंघाड़े और मछली का उत्पादन शुरू कर दें, तो उन की आमदनी 2 गुनी हो सकती है. फिलहाल प्रयोग के तौर पर दरभंगा जिले और उस के आसपास के 23 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े का उत्पादन किया गया है. गौरतलब है कि उत्तर बिहार के 13 हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती की जाती?है. इन सभी तालाबों और पोखरों में समेकित खेती करने के लिए किसानों को जागरूक बनाया जा रहा?है. बिहार में कुल जलक्षेत्र 3लाख 61 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना सेंटर और दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बात उभर कर सामने आई?है कि 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में अगर केवल मखाने की खेती की जाती?है, तो प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपए की आमदनी होती है. इतने ही जलक्षेत्र में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े का उत्पादन भी किया जाए तो आमदनी की रकम 80 हजार रुपए तक हो सकती?है.          

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तबाही

कोमेन का कहर : हजारों मकान तबाह

कोलकाता : तेज बारिश और चक्रवाती तूफान के आने से एक तरफ लोगों का जीना मुहाल हो जाता है, वहीं रोटी खाने के भी लाले पड़ जाते हैं. मवेशी मरते हैं, सो अलग. पिछले दिनों आए कोमेन नामक चक्रवाती तूफान ने पश्चिम बंगाल में कहर बरपा दिया. हजारों लोग बेघर हो गए, वहीं पशुओं के लापता होने से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. पश्चिम बंगाल के गांगेय इलाकों में तेज हवाओं के साथ जम कर बारिश हुई. इस दौरान तमाम घर टूटे, हजारों पेड़ उखड़ने के साथ ही बिजली के खंभे भी उखड़ गए. इस वजह से सड़क व रेल यातायात भी काफी प्रभावित हुआ. चक्रवाती तूफान का असर बंगलादेश के अलावा पश्चिम बंगाल के हावड़ा, उत्तर 24 परगना व नदिया जिले में सब से ज्यादा हुआ. इस तूफान के चलते कई लोगों के मरने की खबर है.

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मुहिम

बिहार में जोरशोर से शुरू हुई समेकित खेती

पटना : बिहार में जैविक खाद के इस्तेमाल की मुहिम को कामयाबी मिलने के बाद अब उसी तर्ज पर समेकित खेती को ले कर भी मुहिम शुरू की गई है. गौरतलब?है कि 4-5 साल पहले भी राज्य सरकार ने समेकित खेती की शुरुआत की थी, पर इस की रफ्तार काफी धीमी रही. अब इसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर लिया गया है. कृषि मंत्री विजय चौधरी का दावा है कि समेकित खेती के जरीए 1 एकड़ खेत का मालिक भी खेती से अपने समूचे परिवार का पेट भर सकेगा और अपनी सुखसुविधाओं पर भी रकम खर्च कर सकेगा. लोकल जरूरतों के हिसाब के आधार पर खेती की जाएगी. जलजमाव वाले इलाकों में मछलीपालन के साथ बकरीपालन और मुरगीपालन के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा. किसानों को सिखाया जाएगा कि कम जमीन में भी ज्यादा से ज्यादा चीजों की खेती कर के बेहतर नतीजे कैसे हासिल किए जा सकते हैं. बिहार में श्री तकनीक के जरीए धान और गेहूं का रिकार्ड तोड़ उत्पादन करने के बाद खेती और पैदावा को बढ़ावा देने के लिए समेकित खेती को ले कर किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने की मुहिम शुरू की गई है. 

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मदद

300 करोड़ की राहत

नई दिल्ली : स्वतंत्रता दिवस से ऐन पहले केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 300 करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया. यह रकम किसानों को कम कीमत पर डीजल और बीज मुहैया कराने जैसे कामों पर खर्च की जाएगी. दरअसल केंद्र सरकार का यह कदम सूखे से खरीफ की फसल को बचाने की खातिर उठाया गया?है. सरकार की ऐसी राहतों से किसानों का काफी हद तक भला तो होता ही है, बशर्ते सब कुछ कायदे से किया जाए.

खोट

डोमिनोज के रेस्टोरेंट में गड़बड़ी

अमरोहा : खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफडीए) ने जुबिलेंट फूड वर्क्स लिमिटेड के गजरौला स्थित डोमिनोज पिज्जा रेस्टोरेंट पर जांच की कार्यवाही की. इस रेस्टोरेंट से लिया गया टोमैटो सास स्नैक्स ड्रेसिंग का सैंपल कोलकाता की प्रयोगशाला की जांच में असुरक्षित (गड़बड़) पाया गया. नतीजतन एफडीए ने रेस्टोरेंट का लाइसेंस सस्पेंड कर के बिक्री पर रोक लगा दी.

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गायब

फिर रुलाने लगा प्याज

पटना : बरसात का मौसम शुरू होते ही बिहार की मंडियों से प्याज गायब हो चुका?है, जिस से उस की कीमतों में जबरदस्त उछाल आ गया है. थोक मंडी में प्याज की कीमतों में प्रति क्विंटल 300 रुपए तक का इजाफा हो गया है. खुदरा बाजार में प्याज का भाव 20-22 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ कर 30-32 रुपए तक हो गया?है. प्याज के कारोबारी कहते हैं कि बरसात शुरू होते ही बड़े व्यापारी प्याज को गोदामों में बंद कर देते हैं और खेतों में पानी भरने के बाद मनमानी कीमतों पर प्याज बेचते हैं. पटना की नासिक से ट्रक के जरीए प्याज बिहार आता है और बरसात के मौसम में ज्यादा नमी होने से करीब 25 फीसदी प्याज रास्ते में ही सड़ जाता है. पटना और उस के आसपास के इलाकों में रोजाना 150 टन प्याज की खपत होती है और फिलहाल 100 टन प्याज ही बाजार में आ रहा है. आलूप्याज व्यवसायी संघ के सचिव शंभू प्रसाद कहते हैं कि मुजफ्फरपुर बाजार समिति में प्याज का थोक भाव 1700 से 1900 रुपए प्रति क्विंटल है. उसे मंडियों तक पहुंचाने में करीब 150 रुपए भाड़े पर खर्च होते हैं. इस के बाद भी प्याज का अधिकतम भाव 1850 से 2050 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए. लेकिन थोक बाजार में ही प्याज 2200 से 2350 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा रहा है.   

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चटपटा

बाजार में आया पारले नमकीन

मुंबई : आम लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए पारले कंपनी ने बाजार में पारले नमकीन भी उतारा है. पारले नमकीन अच्छी क्वालिटी का होने के साथसाथ खाने में बेहद स्वादिष्ठ है. इस की कीमत भी आम लोगों की सुविधा के अनुसार ही रखी गई है. पारले नमकीन 3 कैटीगरी में हैं यानी मिक्सचर, भुजिया और दाल. खट्टामीठा नमकीन और हौट एन मसालेदार मिक्सचर. दूसरी कैटेगरी में भुजिया है. इस की 2 तरह की किस्में?हैं, भुजिया सेव और आलू भुजिया. तीसरी कैटीगरी में मूंग की दाल है. पारले कंपनी ने मसाला मूंगफली इसी साल बाजार में उतारी है पारले प्रोडक्ट्स के डिप्टी मार्केटिंग मैनेजर बीके राव ने बताया कि हम भारत के बाजारों में अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचना चाहते हैं. भारत में यह किराना स्टोर और खुदरा दुकानों पर मुहैया है.    

 

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गलती

वेज की जगह भेजा नौनवेज पिज्जा

चंडीगढ़ : पिज्जा हट पर एक परिवार को गलत आर्डर के रूप में नौनवेज पिज्जा भेजना काफी महंगा सौदा साबित हुआ. चंडीगढ़ कंज्यूमर फोरम ने पिज्जा हट पर उस परिवार को 30 हजार रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. इस आदेश के बाद अब पिज्जा के शौकीनों को औनलाइन आर्डर भेजने से पहले अच्छी तरह सोचना पड़ेगा.चंडीगढ़ की अचल जैन ने 8 अक्तूबर, 2014 को कंज्यूमर फोरम में इस पिज्जा हट के खिलाफ  शिकायत की थी. शिकायत में लिखा था कि उन्होंने पिज्जा हट से औनलाइन और्डर कर वेज पिज्जा मंगवाया था. इसे सही समय पर भेज भी दिया गया, लेकिन पिज्जा खाने पर पता चला कि वह वेज नहीं नौनवेज पिज्जा है. मामले की सुनवाई के दौरान पिज्जा हट ने कई दलीलें दीं, लेकिन कंज्यूमर फोरम किसी भी बहस से सहमत नहीं हुआ. कंज्यूमर फोरम ने पिज्जा हट को आर्डर प्लेस करने वाले परिवार को वेज पिज्जा आर्डर करने के बाद उन से नौनवेज पिज्जा के वसूले गए 605 रुपए लौटाने और परिवार को 30 हजार रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.

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तरकीब

बंदूक के जरीए वसूला जाएगा कर्ज

भोपाल : ग्वालियरचंबल इलाके में जिस बंदूक को लोग अपनी शान मानते हैं, वही बंदूक अब उन की गले की फांस बनती नजर आ रही है. सहकारी बैंकों से कर्ज ले कर वापस न करने वाले बकायादारों पर ग्वालियर के जिला कलेक्टर ने अब सख्ती दिखाई है. ग्वालियर के कलेक्टर ने बैंकों का पैसा वापस दिलाने के लिए फरमान जारी किया है कि जिन लोगों ने सहकारी संस्थाओं का पैसा नहीं लौटाया है, उन के हथियारों के लाइसेंस निलंबित कर दिए जाएं.कलेक्टर के इस फरमान से उन लोगों में हड़कंप मच गया है, जो सहकारी संस्थाओं का पैसा ले कर डकार चुके हैं. कलेक्टर ने आदेश दिया है कि जिन लोगों ने कर्ज नहीं लौटाया है, उन के लाइसेंस तत्काल निलंबित कर दिए जाएं जानकारी के मुताबिक, हथियार लाइसेंसधारी बकायादारों को पहले कारण बताओ नोटिस भेजा जाएगा. अगर उन्होंने सही जानकारी नहीं दी और कर्ज की रकम नही लौटाई, तो उन के हथियार के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे. ग्वालियर के कलेक्टर का यह तरीका काबिलेतारीफ व अलग किस्म का है. यकीनन, इस तरीके का काफी माकूल असर बकायादारों पर पड़ेगा. कलेक्टर ने अपना पैना दिमाग लगा कर जो तरकीब निकाली है, वह वाकई कारगर साबित होगी. इस तरकीब से दूसरे अफसर भी नसीहत ले सकते हैं.          

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खोज

लाजवाब है ठंडा सोफा

अहमदाबाद : जी हां, यह बात सच है कि सपने दिन में देखने से ही पूरे होते हैं. रात में उन सपनों को सोचसोच कर नींद नहीं आती, जब तक मुकाम हासिल नहीं होता. यह कमाल कर दिखाया है गुजरात के एक मैकेनिक ने. उन्होंने एक ऐसा सोफा तैयार किया है, जिस में एयरकंडीशनर फिट है. ऐसे सोफे का इस्तेमाल घर से बाहर होने वाले जलसों में किया जा सकता है और यह कम बिजली की खपत करता है. गांधीनगर के रहने वाले दशरथ पटेल ने यह सपना साकार किया है. वे एयरकंडीशनर रिपेयरिंग का काम करते हैं. कुछ साल पहले उन के मन में ऐसा एयरकंडीशनर वाला सोफा तैयार करने का खयाल आया. नेशनल इंस्टीट्यूट आफ  डिजाइन नेउन की भरपूर मदद की. दशरथ पटेल के मुताबिक, पहली बार उन्होंने साल 2008 में सोफे में एयरकंडीशनर लगाने के बारे में सोचा. पहली बार जो सोफा बनाया, उस का वजन 175 किलोग्राम हो गया. इस के बाद उन्होंने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय की डिजाइन क्लिनिक योजना के डिजाइनर की मदद ली. उस के बाद जो सोफा तैयार हुआ, उस का वजन 35 किलोग्राम था.

एनआईडी के छात्र रहे अंकित व्यास ने दशरथ पटेल की इस काम में काफी मदद की. अंकित व्यास अहमदाबाद में एक डिजाइन स्टूडियो चलाते हैं. दशरथ पटेल ने बताया कि वे एयरकंडीशनर लगे सोफे को 1 लाख से सवा लाख रुपए तक में बेचेंगे. यह सोफा एक स्पिलिट एसी के तौर पर काम करेगा. सोफे के अंदर एक यूनिट पाइप के जरीए बाहर के एक यूनिट से जुड़ा होगा. इस में ठंडी हवा सोफे के हाथ रखने वाले हिस्से से निकलेगी. दशरथ व्यास ने जानकारी देते हुए बताया कि यह घरेलू एसी की ही तरह काम करता है, जो रिमोट कंट्रोल से चलता है. 

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तकनीक

कलेंडर बताएगा धान कब बोएं

कानपुर : सुनने में भले ही अटपटा लगे, पर सच यही है कि मौसम वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कलेंडर तैयार किया है, जो धान के बारे में सटीक जानकारी देगा. अगर किसान इस कलेंडर के मुताबिक धान की खेती करें, तो उन्हें नुकसान न के बराबर होगा.बता दें कि धान की फसल 7 चरणों में तैयार होती है. ये चरण हैं नर्सरी तैयार करना, रोपाई करना, कल्ले निकलना, बाली निकलना, फूल आना, दुग्धावस्था और पुख्तावस्था. जून से अक्तूबर तक के इन तमाम चरणों में तापमान, बारिश और नमी अलगअलग होनी चाहिए. कलेंडर के मुताबिक अगर किसान धान की खेती नहीं करेंगे, तो फसल का बरबाद होना तय है. इस के अलावा धान के खेत में बीमारी लगने व कीडे़ लगने की गुंजाइश ज्यादा रहती है. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विभाग ने मध्यम अवधि की धान की फसल के लिए एक कलेंडर बनाया है. हैदराबाद में बनाए गए इस कलेंडर में धान की फसल के लिए बारिश, तापमान व नमी की उचित मात्रा बताई गई है. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर किसानों को समय रहते सारी जरूरी बातों की खबर दे दी जाए, तो वे धान की फसल को बचा सकते हैं.                       

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फरेब

ईंट वाले सरकार को लगा रहे चूना

पटना : बिहार में फिलहाल ईंटभट्ठे को चलाने और उन पर नजर रखने के लिए सरकार की कोई ठोस नीति नहीं है, जिस से लगभग 50 फीसदी भट्ठे वाले सरकार को राजस्व का भुगतान नहीं करते हैं. राजस्व की चोरी करने वालों पर मुकदमा करने पर विभाग का काफी समय और पैसा बरबाद हो जाता है. ईंट बनाने वालों पर नकेल कसने के लिए सरकार पिछले 2 सालों से बालू नीति की तर्ज पर ईंट नीति बनाने की कवायद में लगी हुई?है, लेकिन अभी तक इस की फाइलें टेबलों के चक्कर ही लगा रही है. खनन एवं भूतत्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक विभाग ने नई ईंट नीति का खाका तैयार कर लिया है. इस नीति के लागू होने के बाद ईंट भट्ठे का कारोबार चालू करने से पहले खनन एवं भूतत्व विभाग से रजिस्ट्रेशन कराना होगा और इस के लिए करीब 5 हजार रुपए की फीस वसूली जाएगी. इस के अलावा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी भी लेनी पड़ेगी.

गौरतलब है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन विभाग ने ईंट भट्ठों के संचालन के लिए कई नियम बना रखे?हैं, पर उन का सही तरीके से पालन नहीं हो पाता है. ईंट के लिए 2 मीटर से ज्यादा मिट्टी नहीं खोदनी चाहिए और खनन के बाद गड्ढे को?भरवाने का काम भी करना होता?है. जिस जगह पर मिट्टी खोदने का काम करना हो, उसे चारों तरफ से घेरना जरूरी?है. भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के इलाज का पूरा इंतजाम भी होना चाहिए. संरक्षित स्थानों से 1 किलोमीटर के दायरे में ईंटभट्ठा नहीं होना चाहिए. सार्वजनिक जगहों से मिट्टी खनन क्षेत्र की दूरी कम से कम 15 मीटर होनी चाहिए. हालात को देखते हुए ईंट नीति को जल्दी से जल्दी बना कर लागू किया जाना बेहद जरूरी?है, तभी ईंट बनाने वालों की मनमानी पर लगाम लगेगी. 

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योजना

कृषि उत्पाद बेचने की नई नीति

पटना : बिहार के किसानों की कमाई को बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों की मार्केटिंग की नई नीति बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. इस नीति के बनने के बाद राज्य के किसान देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने उत्पादों को बेच सकेंगे. नई नीति बनाने का जिम्मा बिहार एग्रीकल्चर मैनेजमेंट एंड एक्सटेंशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (बामेति) को सौंपा गया?है.

बामेति माहिरों से बात कर के और सेमिनारों का आयोजन कर के इस मसले पर लोगों की राय ले रही है. राज्य में कृषि उत्पादन बाजार समितियों को भंग करने के बाद कृषि उत्पादों को बाजार मुहैया कराने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. पिछले कुछ सालों से जैव उत्पादों की पैदावार में भी तेजी से इजाफा हुआ है, लेकिन उन की मार्केटिंग का कोई पक्का इंतजाम नहीं?है. मिसाल के तौर पर मशरूम और बेबीकार्न जैसे उत्पादों की अच्छी कीमत किसानों को नहीं मिल रही है. अच्छी कीमत न मिलने की वजह से कई किसान तो बेबीकार्न का उत्पादन करना छोड़ चुके हैं. पटना के संपतचक गांव के किसान पुलक राम कहते?हैं कि 4 साल पहले उन्होंने बेबीकौर्न का उत्पादन करना शुरू किया, लेकिन वह बाजार में बिक ही नहीं पाता था, जिस से उन की काफी पूंजी डूब गई. सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया?था कि पारंपरिक फसलों के बजाय बेबीकौर्न की खेती से किसानों को काफी मुनाफा होगा. बामेति के निदेशक गणेश राम ने बताया कि जल्द ही बिहार के कृषि उत्पादों को स्थानीय बाजार के साथसाथ राष्ट्रीय बाजार भी मुहैया कराया जाएगा. इस के साथ ही 11 जिलों में नई सुविधाओं से लैस कृषि बाजार बनाए जाएंगे.             

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रोक

मिडडे मील में दूध बंद

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मिडडे मील योजना के तहत हर बुधवार को तमाम परिषदीय स्कूलों के बच्चों को 200 मिलीलीटर दूध बांटने का ऐलान किया था. उसी के मुताबिक यह योजना चालू कर दी गई थी. लेकिन दूध पीने से जबतब इन स्कूलों के बच्चों के बीमार होने की शिकायतें मिलने लगीं. कई स्कूलों में दूध की जगह कोई दूसरी चीज बांट कर खानापूरी की जा रही?है.

इन्हीं गड़बडि़यों और शिकायतों की वजह से यह दूध योजना बंद होने की कगार पर पहुंच गई?है. अब दूध की जगह पर छाछ, दही, मक्खन, केला या कोई दूसरा पौष्टिक पदार्थ देने के बारे में विचार किया जा रहा?है. जल्दी ही शासन को इस बारे में नया प्रस्ताव भेजा जाएगा. सूत्रों के मुताबिक उच्च स्तर पर हुई बैठक में बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से कहा गया? कि वे दूध की जगह दूसरी पौष्टिक चीजों के बारे में विचार कर के सुझाव पेश करें. इस के बाद मुख्यमंत्री से इजाजत ले कर दूध की योजना बंद कर के उस की जगह दूसरी चीजों को बांटा जाएगा.    

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झटका

बिहार में तेल कारोबार को लगा चूना

पटना : बिहार में हर साल 12 लाख टन खाद्य तेलों की खपत होती?है और राज्य के तेल कारखानों में 9 लाख टन तेल का उत्पादन होता है. इस के बाद भी बिहार में बने तेल की खपत केवल 3 लाख टन ही हो पाती?है, जिस से तेल के कारखानों पर बंदी की तलवार लटकने लगी है. तेल उत्पादकों का कहना है कि बिहार में इतने तेल का उत्पादन होता?है कि राज्य में उस की खपत आसानी से हो सकती है, लेकिन दूसरे राज्यों से तेल की आवक से राज्य के तेल कारोबार पर काले बादल मंडरा रहे?हैं. पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से बड़े पैमाने पर खाद्य तेल बिहार आते हैं. बिहार इंडस्ट्री एसोसएिशन के अध्यक्ष अरुण अग्रवाल कहते हैं कि पश्चिम बंगाल ने दूसरे राज्यों से आने वाले तेल पर इंट्री टैक्स नहीं लगता?है. इस से वहां का तेल बिहार के तेल के मुकाबले सस्ता होता?है और बिहार का तेल इंट्री टैक्स दे कर महंगा हो जाता है. बिहार में तेल सड़क या रेल के जरीए आता है, जिस से लागत बढ़ जाती है.

सरकार से मांग की गई है कि दूसरे राज्यों से आने वाले तेल पर 2 फीसदी इंट्री टैक्स लगाया जाए, नहीं तो बिहार का तेल उद्योग ठप हो सकता है.    

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सलाह

सोयाबीन उगाएं भरपूर पैसा कमाएं

चंडीगढ़ : हरियाणा में किसानों की माली हालत सुधारने के लिए उन का सोयाबीन जैसी फसलों के प्रति रुझान बढ़ाया जाएगा. यह जानकारी प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ ने मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान केंद्र में दी. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ का यह दौरा हरियाणा में सोयाबीन फसल की ज्यादा से ज्यादा पैदावार की संभावना तलाशने के लिए था. उन्होंने बताया कि हरियाणा के दक्षिणी हिस्से में सिंचाई के लिए पानी की कमी है. अगर खरीफ  के मौसम में सोयाबीन की खेती की जाए, तो जहां पानी की बचत होगी, वहीं सोयाबीन का अच्छा भाव मिलने से किसानों की माली हालत में भी सुधार होगा. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ ने बताया कि सोयाबीन की खेती में पारंपरिक फसलों से कई गुना ज्यादा फायदा होगा.  अगर प्रदेश के लोग सोयाबीन खाएंगे, तो वे सेहतमंद भी रहेंगे.              

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योजना

धान के खेतों की मेंड़ों पर दलहन

पटना : खेतों में धान की फसलें लहलहाएंगी और खेतों की मेंड़ों पर दालें उगाई जाएंगी. दलहनी फसलों के घटते उत्पादन को ध्यान में रखते हुए बिहार के कृषि विभाग ने नई योजना बना कर दलहनी फसलों की पैदावार को बढ़ाने की कसरत शुरू की है. इस के लिए मेंड़ों पर खेती के लिए अरहर और उड़द की फसलों को चुना गया है. विभाग का दावा है कि इस से जहां समेकित खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दाल के पौधों पर चिडि़यों के बैठने से फसलों का कीटों से बचाव हो सकेगा. इस साल 1 करोड़ टन धान के उत्पादन का लक्ष्य पाने के लिए 25 लाख एकड़ में श्री विधि से धान की खेती की जाएगी. कृषि मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि इस बार खेतों की मेंड़ों पर 2 लाइनों में अरहर और उड़द की दालों की खेती की जाएगी. इस साल इस योजना को प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया?है और इस के कामयाब होने के बाद इसे विस्तार से शुरू किया जाएगा.

श्री विधि से खेती करने और मेंड़ों पर दलहनी फसलों को लगाने वाले समझदार किसानों को प्रति एकड़ 3 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा.

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योजना

खत्म होगी मछली की किल्लत

पटना : बिहार में रोहू मछली की नई किस्म जयंती रोहू से मछलीपालकों की आमदनी में कई गुने का इजाफा होगा और राज्य में मछली उत्पादन तेजी से बढ़ सकेगा. मछली उत्पादन बढ़ने से दूसरे राज्यों से मछली मंगाने की मजबूरी भी काफी कम हो सकेगी. केंद्रीय मीठाजल मत्स्य अनुसंधान संस्थान की ताजा रिसर्च का परीक्षण कामयाब रहा है. परीक्षण में पाया गया कि साधारण रोहू मछली के मुकाबले उस की नई किस्म यानी जयंती रोहू बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ती है. सामान्य रोहू की तुलना में इस का वजन डेढ़ गुना ज्यादा होता है. राज्य सरकार किसानों को इस नई किस्म की मछली के बीज मुहैया कराएगी. इस मछली का रंग सुनहरा होता है और स्वाद सामान्य रोहू से काफी अच्छा होता है. मत्स्य महकमे के निदेशक निशात अहमद ने बताया कि राज्य के सभी इलाकों के तालाबों में जयंती रोहू का उत्पादन किया जा सकता है. साधारण रोहू के मुकाबले इस का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है और महाशीर मछली की नई किस्में विकसित करने का काम भी चल रहा है. देश में मछली उपलब्धता का राष्ट्रीय औसत 8.54 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 7.7 किलोग्राम ही?है.  

मधुप सहाय, अक्षय कुलश्रेष्ठ और बीरेंद्र बरियार

कृषि जगत से जुड़े सितंबर के खास काम

बरसात का कहर और धमाचौकड़ी थमने के बाद सितंबर महीने का आगाज होता है. खेतीकिसानी के लिहाज से यह खासा खुशगवार महीना होता है. बारिश के चहबच्चों से राहत पा कर किसान सुकून के आलम में दोगुने जोश से काम करते हैं. खेतीबारी के लिहाज से सितंबर महीने का भी अच्छाखासा वजूद होता है. गन्ने व चावल की अहम फसलों के बीच सितंबर में आलू की बुनियाद भी डाली जाती है. इस माह मटर व टमाटर का भी जलवा रहता है.

आइए गौर करते हैं सितंबर महीने में होने वाली खेतीकिसानी संबंधी गतिविधियों पर :

* यों तो सितंबर तक बरसात का जोश हलका पड़ जाता है, पर थोड़ीबहुत बारिश गन्ने की सिंचाई के लिहाज से ठीक रहती है. अगर बारिश न हो तो गन्ने की सिंचाई का खयाल रखें.

* अगर ज्यादा पानी बरस जाए और खेतों में पानी भर जाए, तो उसे निकालना बेहद जरूरी है, वरना गन्ने की फसल पर बुरा असर पड़ेगा.

* इस बीच गन्ने के पौधे खासे बड़े हो जाते हैं, लिहाजा उन का ज्यादा खयाल रखना पड़ता है. ये मध्यम आकार के पौधे तीखी हवाओं को बरदाश्त नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें गिरने से बचाने का इंतजाम करना चाहिए. पौधों की अच्छी तरह बंधाई करने से वे सही रहते हैं.

* सितंबर के दौरान गन्ने के तमाम पौधों को चेक करें और बीमारी की चपेट में आए पौधों को जड़ से उखाड़ दें. इन बीमार पौधों को या तो जमीन में गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दें या फिर उन्हें जला कर नष्ट कर दें.

* धान के खेतों की जांच करें और पानी न बरसने की हालत में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

* अगर पानी ज्यादा बरसे और धान के खेतों में भर जाए तो बगैर लापरवाही के उसे निकालने का इंतजाम करें.

* कीटों के लिहाज से धान के खेतों की गहराई से जांच करें. अगर गंधी बग कीट का प्रकोप नजर आए तो रोकथाम के लिए 5 फीसदी मैलाथियान के घोल को फसल पर कायदे से छिड़कें.

* कीटों के अलावा रोगों के लिहाज से भी धान की देखभाल जरूरी होती है. अगर धान में भूरा धब्बा रोग का हमला दिखाई दे, तो बचाव के लिए 0.25 फीसदी वाली डायथेन एम 45 दवा का छिड़काव पूरे खेत में करें.

* इस दौरान धान में झोंका यानी ब्लास्ट बीमारी का भी खतरा रहता है. इस से बचाव के लिए डेढ़ किलोग्राम जीरम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. जीरम न हो तो 1 किलोग्राम कार्बंडाजिम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

* देर से तैयार होने वाली धान की किस्मों के खेतों में अभी तक नाइट्रोजन की बची मात्रा नहीं डाली गई हो, तो उसे जल्दी से जल्दी डालें.

* अपने अरहर के खेतों का जायजा लें. अगर फाइटोपथोरा झुलसा बीमारी का असर नजर आए तो बचाव के लिए रिडोमिल दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा काफी पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करें.

* कीटों के लिहाज से भी अरहर के खेतों की जांच करें. यदि फलीछेदक कीट का हमला दिखाई दे, तो रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी वाली दवा की 2 लीटर मात्रा 1 हजार लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* सोयाबीन के खेतों का जायजा लें और देखें कि खेत की सतह सूखी तो नहीं है. अगर ऐसा हो तो खेत की बाकायदा सिंचाई करें. दरअसल फसल में फूल आने व फलियां तैयार होने के दौरान खेत में नमी होना जरूरी है.

* यह भी देखना जरूरी है कि कहीं ज्यादा बरसात की वजह से सोयाबीन के खेत में ज्यादा पानी तो नहीं भर गया. ऐसा होने पर उसे निकालने का माकूल इंतजाम करें.

* यह भी देखना जरूरी है कि कहीं सोयाबीन की फसल में फलीछेदक व गर्डिल बीटल कीटों का हमला तो नहीं हुआ. ऐसा होने पर बचाव के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी वाली दवा की डेढ़ लीटर मात्रा काफी पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़कें. कीटों का असर इस के बाद भी खत्म न हो, तो 2 हफ्ते बाद दवा की इतनी ही मात्रा दोबारा फसल पर छिड़कें.

* सितंबर में आमतौर पर मूंगफली के पौधों में फूल निकलते हैं और उस दौरान खेत में नमी होना जरूरी है. अगर खेत सूखा लगे तो फौरन सिंचाई का इंतजाम करें, लेकिन ज्यादा बरसात की वजह से अगर खेत में पानी जमा हो गया हो, तो उसे निकालने का जुगाड़ करें.

* मूंगफली के खेत में अगर दीमक का असर नजर आए तो रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी वाली दवा की 4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के वक्त पानी के साथ डालें.

* मक्के के खेतों का जायजा लें. अगर नमी कम महसूस हो तो जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. अगर इस बीच ज्यादा बरसात  होने से मक्के के खेत में फालतू पानी भर गया हो, तो उसे निकालने का इंतजाम करें.

* मक्के की फसल में अगर पत्ती झुलसा या तुलासिता रोगों का असर दिखाई दे, तो रोकथाम के लिए जिंक मैंगनीज कार्बामेट दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा काफी पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें.

* अगर तोरिया बोनी हो, तो उस की बोआई का काम सितंबर के दूसरे हफ्ते यानी 15 सितंबर तक निबटा लें.

* तोरिया की बोआई के लिए पीटी 30 या पीटी 303 जैसी उम्दा किस्मों का चयन करें.

* तोरिया की बोआई में 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई से पहले बीजों को थायरम से उपचारित करें. बोआई 4 सेंटीमीटर गहराई पर करें.

* सितंबर महीने में आलू की अगेती बोआई की जाती है. अगेती बोआई के लिए आलू की कुफरी बहार, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अशोका, कुफरी सूर्या या कुफरी पुखराज किस्मों का चुनाव करें.

* इसी महीने टमाटर की भी नर्सरी डाली जाती है. पिछले महीने डाली गई नर्सरी के पौधे तैयार हो गए होंगे, लिहाजा उन की रोपाई करें.

* टमाटर की रोपाई से पहले निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालकर खेत की अच्छी तरह तैयारी करना जरूरी है.

* अगेती मटर, मूली व शलजम की बोआई भी सितंबर में की जाती है. बोआई से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करना बहुत जरूरी है.

* अदरक के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सूखे नजर आएं तो सिंचाई का इंतजाम करें और कहीं उन में बारिश का पानी भर गया हो तो उसे निकालने का इंतजाम करें.

* हलदी के खेतों का भी जायजा लें और नमी कम लगे तो सिंचाई करें. लेकिन अगर खेतों में बरसात का पानी भर गया हो, तो उसे निकालने का इंतजाम करें.

* अदरक के पौधों पर ध्यान दें. अगर उन में झुलसा रोग के लक्षण दिखाई दें, तो रोकथाम के लिए जल्दी से जल्दी इंडोफिल एम 45 दवा के 0.2 फीसदी घोल को फसल पर छिड़कें.

* हलदी के पौधों में भी इस दौरान झुलसा रोग का खतरा रहता है, लिहाजा जांच कर के जरूरत के मुताबिक इंडोफिल एम 45 दवा के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* अपने बेर के बगीचे पर नजर डालें. अगर चूर्णिल आसिता रोग का प्रकोप दिखाई दे तो कैराथेन दवा का छिड़काव करें.

* आम के पेड़ों पर भी इस दौरान बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है, लिहाजा उन की देखभाल बेहद जरूरी है. यदि उन में एंथ्रेकनोज या गमोसिस रोगों का असर दिखाई दे, तो कापर आक्सीक्लोराइड दवा की 600 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़कें.

* सितंबर के दौरान अकसर लीची के पेड़ों पर तनाछेदक कीटों का हमला हो जाता है. ऐसी हालत में रुई को पेट्रोल में डुबो कर कीटों द्वारा बनाए गए छेदों में भर दें. इस के बाद छेदों को गीली मिट्टी से कायदे से ढक दें.

* गुणकारी बेल के पेड़ अकसर सितंबर के आसपास शाटहोल बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. ऐसी नौबत आने पर ब्लाइटाक्स 50 दवा का छिड़काव कारगर रहता है.

* जाती बारिश के इस महीने में अपने तमाम मवेशियों की जांच माहिर पशु चिकित्सक से कराएं ताकि वे स्वस्थ व महफूज रहें.

* जांच के बाद चिकित्सक द्वारा बताए गए टीके वगैरह लगवाने में लापरवाही न बरतें.

* मुरगी व मुरगे वगैरह की हिफाजत का पूरा खयाल रखें. बचीखुची बारिश में उन्हें भीगने न दें.

* इस सूखेगीले महीने में भी सांप, गोह व नेवले जैसे जानवरों का जोर रहता है, लिहाजा अपने पशुपक्षियों को उन से बचा कर रखें.

* खुद भी खेतों में मोटे व अच्छे किस्म के जूते पहन कर जाएं ताकि कीड़ेमकोड़ों से सुरक्षित रहें.

* रात के वक्त अपने साथ टार्च व डंडा जरूर रखें व मोबाइल पर संगीत बजाते रहें ताकि खतरनाक जानवर शोर सुन कर नजदीक न आएं.

आलू की उन्नत खेती

आलू की फसल कम समय में किसानों को ज्यादा फायदा देती है, पर पुराने तरीके से खेती कर के किसान इस से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने से चूक जाते हैं. आलू किसानों की खास नकदी फसल है. अन्य फसलों की तुलना में आलू की खेती कर के कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर किसान आलू की परंपरागत तरीके से खेती को छोड़ कर वैज्ञानिक तरीके से खेती करें तो पैदावार और मुनाफे को कई गुना बढ़ाया जा सकता है. वैज्ञानिक तकनीक से आलू की खेती करने पर प्रति एकड़ 4-5 लाख रुपए की सालाना आमदनी हो सकती है. आलू की अगेती फसल सितंबर के आखिरी सप्ताह से ले कर अक्तूबर के दूसरे सप्ताह तक और मुख्य फसल अक्तूबर के तीसरे सप्ताह से ले कर जनवरी के पहले सप्ताह तक लगाई जा सकती है. इस की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी काफी मुफीद होती है. अप्रैल से जुलाई बीच मिट्टी पलट हल से 1 बार जुताई कर ली जाती है. उस के बाद बोआई के समय फिर से मिट्टी पलट हल से जुताई कर ली जाती है. उस के बाद 2 या 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद बोआई की जाती है.

जल्दी तैयार होने वाली किस्में : कुफरी अशोक, कुफरी पुखराज और कुफरी सूर्या आलू की उन्नत किस्में हैं और ये बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं. कुफरी अशोक के कंदों का रंग सफेद होता है और ये करीब 75 से 85 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है. इस की उत्पादन कूवत 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. कुफरी पुखराज प्रजाति के आलू के कंदों का रंग सफेद और गूदा पीला होता है. इस की फसल 70 से 80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. 1 हेक्टेयर खेत में 350 से 400 क्विंटल फसल पाई जा सकती है. कुफरी सूर्या किस्म के आलू का रंग सफेद होता है और यह किस्म 75 से 90 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है. इस में प्रति हेक्टेयर करीब 300 क्विंटल की पैदावार होती है.

मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्में : कुफरी ज्योति, कुफरी अरुण, कुफरी लालिमा, कुफरी कंचन और कुफरी पुष्कर मध्यम अवधि में तैयार होने वाली आलू की किस्में हैं. कुफरी ज्योति 90 से 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस आलू के कंद सफेद रंग के अंडाकार और उथली आंखों वाले होते हैं. 1 हेक्टेयर में करीब 300 क्विंटल फसल मिलती है. कुफरी अरुण के कंदों का रंग लाल होता है और यह पकने में 100 दिनों का समय लेती है. इस की उपज 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

कुफरी लालिमा के कंदों का रंग लाल होता है और यह 90 से 100 दिनों में पक जाती है. 1 हेक्टेयर में 300 से 350 क्विंटल फसल मिल जाती है. कुफरी कंचन किस्म का रंग लाल होता है और यह 100 दिनों में  पक जाती है. इस से प्रति हेक्टेयर करीब 350 क्विंटल आलू पाया जा सकता है. कुफरी पुष्कर की आंखें गहरी और गूदे का रंग पीला होता है. इस किस्म की खेती से प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल आलू मिलता है.

देर से तैयार होने वाली किस्में : कुफरी बादशाह और कुफरी सिंदूरी की फसलें तैयार होने में काफी ज्यादा समय लेती हैं. कुफरी बादशाह का रंग सफेद होता है और इस की फसल 110 से 120 दिनों में पकती है. इस की उपज 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. कुफरी सिंदूरी प्रजाति का रंग लाल होता है और यह भी पकने में 110 से 120 दिनों का समय लेती है.

ऐसे करें बोआई : कृषि वैज्ञानिक वेदनारायण सिंह बताते हैं कि आलू की बोआई करने से पहले बीज को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर 10-15 दिनों तक छायादार जगह में रखें. सड़े और अंकुरित नहीं हुए कंदों को अलग कर लें. खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोद कर उस में बीज डालें और उस के ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें. लाइनों की दूरी 50-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौधों से पौधों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : खेत की जुताई के वक्त खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 15 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए. रासायनिक खादों का इस्तेमाल जमीन की उर्वरा शक्ति, फसल चक्र और प्रजाति पर निर्भर होता है, इसलिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर इन का इस्तेमाल करें.आलू की बेहतर फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 से 20 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. फास्फोरस व पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के वक्त ही खेत में डालनी होती है. बची हुई नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में डाला जाता है.

आलू का भी समर्थन मूल्य तय हो

हर साल आलू उत्पादकों का रोना होता है कि आलू की खेती में किसानों की जितनी पूंजी लगती है, उस के लिहाज से आलू की कीमत नहीं मिल पाती है. पिछले साल आलू के अच्छे भाव मिलने से उत्साहित किसानों ने इस साल कर्ज ले कर पिछली बार के मुकाबले बड़े पैमाने पर आलू की खेती की थी. सब्जियों के थोक व्यापारियों का कहना है कि इस साल पश्चिम बंगाल सरकार ने दूसरे राज्यों से आलू मंगाने पर पाबंदी लगा दी है, जिस से बिहार के बाजार में काफी आलू जमा हो गया है. इस के अलावा बिहार में बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से आलू आ रहा है, जिस से बिहार के आलू उत्पादकों को अच्छे भाव नहीं मिल रहे हैं. दानापुर प्रखंड के जागरूक किसान दिलीप यादव का कहना है कि हर राज्य की सरकारें धान और गेहूं के साथ आलू का मूल्य भी तय करती हैं, पर बिहार में ऐसा नहीं होता है. आलू की खेती करने में प्रति बीघा 25 से 30 हजार रुपए का खर्च आता है और आलू का भाव गिरने से किसानों को प्रति बीघा 15 हजार रुपए तक का नुकसान हो रहा है.

अनीता ने दी शहद उत्पादन को नई मिठास

बचपन में हमेशा शहद खाने की जिद करने वाली बच्ची आज मधुमक्खीपालन कर के शहद के कारोबार में अपना खूंटा गाड़ चुकी है. ‘हनी गर्ल’ के नाम से मशहूर हो चुकी अनीता की कामयाबी की कहानी एनसीईआरटी की चौथी क्लास की किताब ‘इनवायरमेंटल स्टडीज आफ लुकिंग अराउंड’ के जरीए बच्चों को पढ़ाई जा रही है. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बोचहा प्रखंड के पिछड़े गांव पटियासी में अनीता का जन्म हुआ था. बचपन में बकरी चरा कर कुछ पैसे कमा कर अपने परिवार की मदद करने वाली अनीता को 14-15 साल की उम्र में ही यह महसूस होने लगा था कि इस तरह से उन के परिवार की जिंदगी की गाड़ी नहीं चल सकती. स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही अनीता ने गरीब बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. उस से होने वाली कमाई से वे अपनी पढ़ाई के साथसाथ घर की जरूरतों को भी पूरा करने लगीं. शहद के प्रति दीवानगी ने उन्हें साल 2002 में शहद का रोजगार करने की राह दिखाई.

मधुमक्खी के 2 बक्से खरीद कर अनीता ने अपना करोबार शुरू किया. उन के पिता जनार्दन सिंह ने उन का पूरा साथ दिया और आज वे अपनी बिटिया की कामयाबी को देख फूले नहीं समाते हैं. अनीता बताती हैं कि ‘अनीता महिला किसान क्लब’ बना कर वे मधुमक्खीपालन में 400 से ज्यादा महिलाओं को जोड़ चुकी हैं. सभी जीतोड़ मेहनत कर के बिहार में शहद उत्पादन को नई दिशा देने में लगी हुई हैं. मधुमक्खीपालन के कारोबार को बढ़ाने के लिए नई तकनीक को अपनाना जरूरी था, इस के लिए उन्होंने समस्तीपुर जिले के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय (पूसा) से मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ली. मेहनत और लगन की वजह से उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ मधुमक्खीपालक का अवार्ड भी मिला था.

पहले साल में अनीता को शहद उत्पादन से 10 हजार रुपए का मुनाफा हुआ. कई लोगों ने कहा कि यह बिजनेस बेकार है, इस में ज्यादा मुनाफा नहीं है, पर उन्होंने हार नहीं मानी और पूरी मेहनत के साथ मधुमक्खीपालन के काम में लगी रहीं. आज की तारीख में अनीता हर साल 300 क्विंटल शहद का उत्पादन कर रही?हैं और उस से हर साल करीब 4 लाख रुपए का फायदा हो रहा है. 28 साल की हनी गर्ल कहती?हैं कि पहले मधुमक्खीपालन को मौसमी कारोबार माना जाता था, पर ट्रेनिंग के बाद पता चला कि इसे पूरे साल चलाया जा सकता?है. इस रोजगार को अपनाने वालों के लिए वे कहती हैं कि चाहे मधुमक्खीपालन हो या किसी भी तरह का रोजगार हो, उसे चालू करने से पहले उस के बारे में पूरी जानकारी और ट्रेनिंग जरूर लें. उन के क्लब की महिलाएं बिहार के अलावा झारखंड के करंच, उत्तर प्रदेश के बस्ती व आजमगढ़ और मध्य प्रदेश के कई जिलों में सरसों के खेतों में मधुमक्खी के बक्से लगाती?हैं.

शहद उत्पादन के?क्षेत्र में बिहार सब से तेजी से आगे बढ़ रहा?है और इसी का नतीजा है कि बिहार में पिछले 5 सालों के दौरान मधुमक्खीपालन और शहद के उत्पादन में काफी तेजी आई?है, जिस से बिहार शहद उत्पादन के मामले में छलांग लगाते हुए देश में 5वें पायदान से नंबर 2 पर पहुंच गया?है. राज्य में हर साल 16 हजार मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है और इस का सालाना कारोबार 40 करोड़ रुपए का?है. बिहार के उद्यान विभाग के उपनिदेशक नीतेश राय ने बताया कि साल 2011 में बिहार में 11 हजार मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ था. राज्य में मुजफ्फरपुर और वैशाली जिलों के लीची के बागों में सब से?ज्यादा शहद का उत्पादन हो रहा है. इस के अलावा पटना, गया, औरंगाबाद, पूर्वी चंपारण और पश्चिम चंपारण जिलों में सरसों, कटहल और सहजन के खेतों में शहद तैयार किया जा रहा है. शहद उत्पादक उमेश कुमार बताते?हैं कि बिहार में खेती में कीटनाशकों और केमिकल खादों के इस्तेमाल में कमी आने की वजह से शहद की क्वालिटी और उत्पादन दोनों बढ़ रहा?है. जैविक खादों का इस्तेमाल बढ़ने से इंटरनेशनल बाजार में बिहार में बने शहद की मांग तेजी से बढ़ी है. जर्मनी और साउदी अरब में बिहार का शहद खूब पसंद किया जा रहा?है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना?है कि घटती जोत की जमीन का उम्दा विकल्प मधुमक्खीपालन ही है. कृषि वैज्ञानिक ब्रजेंद्र मणि कहते?हैं कि किसान 1 बक्से में 60 किलोग्राम तक शहद का उत्पादन कर के अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ा सकते हैं. अगर किसान वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खीपालन करें तो वे 5 गुना ज्यादा शहद का उत्पादन कर सकते?हैं. घरों में रहने वाली औरतें भी मधुमक्खीपालन का काम आसानी से कर के अपने परिवार की कमाई बढ़ा सकती?हैं.

गौरतलब है कि मधुमक्खीपालन कृषि और वन आधारित बेहतरीन व्यवसाय है. खेती करने वाले किसान अगर इस कारोबार को अपनाते हैं, तो उन्हें दोहरी आमदनी मिलती है और कई तरह से फायदा होता?है. मधुमक्खीपालन से शहद व मोम के अलावा मधुमक्खी परिवार मिलता है. ,इस के अलावा जिस फसल में मधुमक्खी परिवार को रखा जाता?है, उन के परागमन की वजह से फसल उत्पादन 20 फीसदी तक बढ़ जाता है. इस के साथ ही अगर किसान उस फसल को बीज के रूप में इस्तेमाल करता है तो वह हाईब्रिड बीज की तरह काम करता?है. मधुमक्खीपालन का काम शुरू करने से पहले उस के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेना और सभी बातें समझ लेना काफी जरूरी है.

कब और कैसे करें मधुमक्खीपालन

मधुमक्खीपालन का काम 10 से 12 हजार रुपए से 2 बक्सों के साथ शुरू किया जा सकता है. 1 बक्से की कीमत 1 हजार रुपए के करीब होती है. 2 बक्सों में मधुमक्खी परिवार को रखा जाता है. मधुमक्खी परिवार के प्रति फ्रेम की कीमत 400 रुपए के करीब आती है. 1 बक्से में 5 फ्रेम रखे जाते हैं. इस हिसाब से मधुमक्खी परिवार को खरीदने में 4 हजार रुपए खर्च होंगे. शहद निकालने वाली छोटी मशीन 3 हजार रुपए में मिल जाती है. नकाब, बैग, चाकू, तार, प्लायर, स्मोकर, स्टैंड, कटोरा, दवा वगैरह पर 1500 रुपए की लागत आती है. पिछले 12 सालों से मधुमक्खीपालन का कारोबार कर रहे बिहार के नालंदा जिले के कथौली गांव के उमेश कुमार बताते हैं कि मधुमक्खीपालन का काम अक्तूबरनवंबर महीने में शुरू किया जा सकता है.

इस कारोबार को काफी कम लागत में चालू कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता?है. इस काम में रोज देखरेख नहीं करनी पड़ती है. सीजन शुरू होने पर 4-6 दिनों के अंतराल पर देखरेख करनी पड़ती है. सीजन नहीं होने पर 20-25 दिनों पर देखभाल करनी होती है. इस रोजगार को पार्ट टाइम के रूप में भी किया जा सकता?है. इस काम को महिलाएं काफी आराम से कर सकती?हैं.

अब फूलगोभी शहद का उत्पादन

अब फूलगोभी शहद भी बनने लगा?है. फूलगोभी के खेत में जाल लगा कर उस के अंदर ही फूलगोभी का शहद बनाने की कवायद शुरू की गई?है. इस के बारे में दावा किया जा रहा है कि यह बिल्कुल ही कीटाणुमुक्त होगा और किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा देगा. 5-6 कट्ठे में लगे फूलगोभी के खेत को जाल लगा कर अच्छी तरह से घेर दिया जाता है. उस के भीतर मधुमक्खी का बक्सा लगाने में 20 से 30 हजार रुपए तक का खर्च आता?है. खेत के इस छोटे से?टुकड़े में मधुमक्खी का बक्सा लगा कर किसान शहद के साथ उम्दा किस्म के बीज भी पा सकेंगे. इन बीजों से फूलगोभी का उत्पादन भी ज्यादा हो सकेगा. 5-6 कट्ठे खेत में फूलगोभी का शहद बनाने से 3 फायदे होते हैं. इस से फूलगोभी की फसल, शहद और बीज किसानों को मिलते हैं, यानी 1 ही खेत से किसान 3 उपजें हासिल कर सकते हैं. इस से किसानों को कम से कम 60 से 70 हजार रुपए तक का मुनाफा हो सकता है. कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि फूलगोभी के बीज उत्पादन में मधुमक्खियां काफी मददगार साबित होती हैं. इस से परागण बढ़ता है. इस से उपजे बीज ठोस और सुनहरे रंग के होते?हैं. इन बीजों से उम्दा फूलगोभी का उत्पादन होता है.

आखिर ठगी के शिकार क्यों होते हैं किसान

मंडी हो या बाजार हर कदम पर किसान ठगे जाते हैं. नेतागण किसानों के लिए सिर्फ घडि़याली आंसू बहाते हैं, क्योंकि उन्हें किसानों के वोट लेने होते हैं. असल में किसान अपनी परेशानियों से तंग रहते हैं. जब तक उन के बस में होता है तब तक वे हर किस्म की मार सहते हैं. कई बार खुद जान गवां देते हैं, लेकिन ठगने, लूटने व सताने वालों की जान नहीं लेते. खेती से होने वाली कमाई बढ़ाने के सरकारी हथियार भोथरे हैं. किसानों से जुड़ी यह जमीनी हकीकत ओहदेदारों को नजर नहीं आती. लिहाजा किसानों के हालात नहीं सुधरते. प्रधानमंत्री ने किसानों की खातिर ठोस स्कीमें चलाने की हिदायत दी थी, लेकिन मातहत नहीं मानते. जब रसोईगैस की छूट खातों में जाने लगी, तो खाद की छूट किसानों के खातों में क्यों नहीं भेजी जाती? गन्नाकिसानों का बकाया क्यों नहीं मिल रहा? ऐसे और भी कई मामले  हैं.

बरबादी की वजहें

गरीबी : साल 2014 के दौरान खुदकुशी करने वालों में 70 फीसदी की माली हालत कमजोर थी. नई तकनीकें गरीबी दूर करने में कामयाब हैं, लेकिन तालीम, जानकारी व जागरूकता की कमी से किसानों की आमदनी कम है. ऊपर से कम उपज, मंडी में लूट व उपज के वाजिब दाम न मिलने से ज्यादातर किसान तंगहाल रहते हैं.

कर्ज : रोटी, कपड़ा, मकान व खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान सिर से पांव तक कर्ज में डूबे रहते हैं. वक्त पर कर्ज की अदायगी नहीं हो पाती और?ब्याज का बोझ बढ़ता रहता है. कई राज्यों में किसान कपास जैसी फसलों को बचाने के लिए महंगे कीटनाशक कर्ज ले कर खरीदते हैं, लेकिन नकली दवाओं से कीड़े नहीं मरते.

घूस : देश में 85 फीसदी छोटे किसान हैं. पटवारी, बाबू, काननूगो, सूदखोर, मंडी, चकबंदी वाले उन की कमजोरी का फायदा उठाते हैं. जराजरा से काम के लिए उन्हें धक्के खिलाते हैं और तगड़ी घूस लेते हैं. गरीबों को कर्ज व छूट पाने के लिए ही नहीं अपने हर काम के लिए सरकारी मुलाजिमों को घूस देनी पड़ती है. इस से उन की जेब कटती है.

मौसम : कीड़ों व बीमारियों से फसलें बचाना आसान नहीं है, ऊपर से मौसम की मार किसान की कमर तोड़ देती है. मौसम पर किसी का जोर नहीं चलता. अकसर मौसम के वैज्ञानिकों के अनुमान भी गलत साबित होते हैं.

मुआवजे का मजाक : सभी किसान बीमे से कवर होने चाहिए, ताकि फसल खराब होने पर उन्हें मुआवजे से राहत मिले, लेकिन ऐसा नहीं है. कुछ रकम गरीब किसानों के बीमा प्रीमियम पर लगे तो किसान बरबाद होने से बच सकते हैं. मौसम की तबाही का मुआवजा भी किसानों को कायदे से नहीं मिल पाता. सूखे व ओलों की मार पर राहत के लिए सौ रुपए तक के चेक किसानों को लंबे इंतजार के बाद मिलते हैं, क्योंकि सरकारी फाइलें चींटी की चाल चलती हैं. बारिश व ओले मार्च में पड़े थे, माली इमदाद जुलाई के आखिर में दी गई.

ठगी : बाजार से खाद, बीज, दवा, मशीन व घरेलू सामानों की खरीदारी करते वक्त सब से ज्यादा किसान ठगे जाते हैं. उन से ज्यादा कीमत ले कर भी उन्हें नकली, घटिया व मिलावटी माल भिड़ा दिया जाता है. तगड़ी कीमत चुकाने के बावजूद बाजार में उन की जेब कटती है. इस तरह की ठगी से किसानों का माली नुकसान होता है.

लूट : किसान जब अपनी उपज बेचने के लिए निकलते हैं, तो उन की मुश्किलों का दौर फिर शुरू हो जाता है. मंडियों पर काबिज आढ़ती, बिचौलिए, दलाल व मंडी समितियों के मुलाजिम किसानों को अपना शिकार समझ कर झपटते हैं. तरहतरह से उन्हें लूटतेखसोटते हैं. इस तरह किसान की मेहतन की कमाई भी उसे पूरी नहीं मिलती.

घटतौली : मंडियों में घूमते इनसानी चूहे व घुन किसानों की उपज में खूब धड़ल्ले से कतरब्योंत करते हैं. गन्ना खरीद सेंटरों पर खुल कर करोड़ों रुपए की घटतौली की जाती है और खोखले व दिखावटी कायदेकानूनों की वजह से बेईमानों का कुछ नहीं बिगड़ता. नुकसान किसानों का होता है और गड़बड़ी करने वालों को बढ़ावा मिलता है.

जोरजबरदस्ती : किसानों द्वारा दिए गए गन्ने की कीमत के करोड़ों रुपए हर साल चीनी मिलों के मालिक दबा लेते हैं. किसानों को इस बकाए पर कानूनन 15 फीसदी ब्याज देना चाहिए, लेकिन धन्नासेठ मामलों को कोर्टकचहरी में उलझा देते हैं. ऐसे में ब्याज मिलना तो दूर, मूल भी वक्त पर नहीं मिलता. यह किसानों के साथ जोरजुल्म व जबरदस्ती है.

भेदभाव : खानेपीने की चीजों में मिलावट पकड़े जाने पर दोषियों को जेल व जुर्माने की सजा की खबरें अकसर आती रहती हैं, लेकिन नकली खाद, बीज, दवा और मशीन बेचने व बनाने वालों के खिलाफ कहीं कोई सख्त कार्यवाही सुननेदेखने को नहीं मिलती. किसी बेईमान मुलाजिम के वेतन से किसानों के नुकसान की वसूली भी नहीं होती. यह किसानों के साथ ज्यादती है.

छीनझपट : खेती किसानों की कमाई का इकलौता जरीया है. अकसर खेती की जमीनें सरकारें जबरदस्ती छीन लेती हैं और मुआवजा कम देती हैं. वह भी घूस दे कर बहुत देर से मिलता है. कई बार भूमाफिया व दबंग जमीन कब्जा लेते हैं. किसान धक्के खाते हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं होती. गरीब किसान मुकदमा भी नहीं लड़ सकते. ऐसे में किसान यदि मरें न तो क्या करें?

ज्यादती : सरकारी मुलाजिमों का वेतन 15-20 फीसदी सालाना बढ़ जाता है. सांसद, विधायक खुद अपने वेतन, पेंशन व सहूलियतों में मनचाहा इजाफा कर लेते हैं. डाक्टर, वकील व कारखानेदार भरपूर कमाई करते हैं. लेकिन खेती की लागत लगातार बढ़ने के बावजूद किसानों की आमदनी बढ़ने की कहीं कोई गारंटी नहीं है. साल 2003-04 में फार्म इनकम इंश्योरेंस स्कीम आई थी, जिस में बीमित किसानों की उपज पर तय फायदे की गारंटी थी, लेकिन यह स्कीम सिर्फ 1 साल में ही दम तोड़ गई थी.

भेदभाव : तरक्की की दौड़ में शहरी आगे व ग्रामीण पीछे हैं. इसी तरह खेती में भी पढ़े व बड़े किसान सहूलियतें पाने में छोटों से आगे रहते हैं. राष्ट्रीय कृषि मंडी व ई मंडी में आनलाइन उपज बेचने का फायदा भी बड़े किसानों को ही मिलेगा. छोटे किसानों की उपज वाजिब कीमत पर नजदीकी सेंटरों में खरीदने का पुख्ता इंतजाम नहीं है.

परदेदारी : सूचना के साधन बढ़ने के बावजूद आज भी गांवों में सूचना व जानकारी की बहुत कमी है. यह पता चल सकता है कि खाद, बीज, दवा व कर्ज कहां मिलेगा, लेकिन सही जानकारी कहां मिलेगी, यह पता करना मुश्किल है. दफ्तरों के बाहर सरकारी स्कीमें नहीं लिखी जातीं, छूटों के बारे में किसानों को पता नहीं चलता.

गहरी खाई : सरकारी स्कीमों व किसानों में गैप रहने से उन का पूरा फायदा आम किसानों को नहीं मिलता. मसलन पूर्वी उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार, राज्य सरकार व इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंश कंपनी ने खरीफ 2015 में धान, गन्ना, मक्का, बाजरा, उड़द, तिल, मूंगफली व अरहर वगैरह की बीमा स्कीम चलाई, लेकिन ज्यादातर किसानों को पता ही नहीं चला.

गरीब पीछे : किसानों के लिए टीवी चैनल खुला, लेकिन 28 करोड़ गरीबों के घरों में बिजली व टीवी नहीं हैं. छोटे किसानों को बदलाव व सुधार की ज्यादा जरूरत है, लेकिन वही पीछे छूट जाते हैं. जानकारी न होने से उन के मसले हल नहीं होते. उन की आमदनी नहीं बढ़ती. लिहाजा मुसीबतों में फंसे किसान रोज तिलतिल कर मरते रहते हैं

आखिर इस दर्द की दवा क्या है?

कारगर उपायों से किसानों की खुदकुशी रोकी जा सकती है, बशर्ते सरकारी सोच व इच्छाशक्ति किसानों को मरने से बचाने के हक में हो. छोटे किसानों की गरीबी दूर हो सकती है, बशर्ते स्कीमें ऐसी हों जिन से किसानों का वाकई भला हो, उन्हें राहत मिले. उन्हें फार्म से फूड तक की नईनई तकनीकें सिखाई जाएं ताकि उन की आमदनी बढ़े. किसानों को जरूरत के मुताबिक छूट व सहूलियतें दी जाएं. छत्तीसगढ़ की तरह सभी राज्यों में किसानों को बिना ब्याज के फसली कर्ज मुहैया कराए जाएं. छोटे किसानों को रियायती दरों पर खाद, बीज, दवा, औजार व मशीनें मिलें. सिंचाई व ढुलाई के साधन, बोआई  व कटाई की मशीनें कम किराए पर दी जाएं. खाद बनाने वाली इफ्कोकृभको की तरह फूड प्रोसेसिंग के भी सहकारी कारखाने लगाए जाएं, ताकि किसान आलू के चिप्स व दूसरी उपजों से नएनए उत्पाद बना कर कमाई बढ़ा सकें. साथ ही मंडी, तहसील, चकबंदी, ब्लाक, पंचायत व खेतीबागबानी महकमों में किसानों के साथ हो रही लूट, ठगी व घूसखोरी पर सख्ती से लगाम लगे. नकली खाद, बीज, दवा वगैरह बनाने व बेचने वालों व उपज में घटतौली करने वालों को सख्त सजा दी जाए. फसल खराब होने पर सभी किसानों को तुरंत बीमे से वाजिब राहत मिले. बाढ़, सूखे व ओले जैसे हालात में राहत व मुआवजे के फैसले जल्द किए जाएं. मुआवजे के चैक बांटने के बजाय राहत की रकम सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जाए. सरकारी स्कीमों के परचे व पोस्टर पंचायतों, ब्लाक, बैंक, सोसायटी, मंडी, तहसील व कृषि विज्ञान केंद्रों वगैरह पर चिपकाना जरूरी किया जाए. किसानों की दुनिया व उन की सोच बदलने, काम के तरीके सुधारने के लिए किसानों को 90 फीसदी छूट पर ट्रांजिस्टर दिए जाएं, ताकि वे मौसम का हाल और मंडी के भाव सुन सकें और अपनी जानकारी बढ़ा सकें.

सफेद मूसली की खेती के तकनीकी पहलू

सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है. इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है. सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल वगैरह हैं. सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है. खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है. सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं. इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है.

सफेद मूसली में खास तरह के तत्त्व सेपोनिन और सेपोजिनिन पाए जाते हैं और इन्हीं तत्त्वों की वजह से ही सफेद मूसली एक औषधीय पौधा कहलाता है. सफेद मूसली एक सालाना पौधा है, जिस की ऊंचाई तकरीबन 40-50 सेंटीमीटर तक होती है और जमीन में घुसी मांसल जड़ों की लंबाई 8-10 सेंटीमीटर तक होती है. यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं सफेद मूसली की जड़ों से ही बनती हैं. तैयार जड़ें भूरे रंग की हो जाती हैं. सफेद मूसली की खेती के लिए गरम जलवायु वाले इलाके, जहां औसत सालाना बारिश 60 से 115 सेंटीमीटर तक होती हो मुनासिब माने जाते हैं. इस के लिए  दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है. उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक ठीक रहता है. ज्यादा पीएच यानी 8 पीएच से ज्यादा वैल्यू वाले खेत में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चहिए. सफेद मूसली के लिए ऐसे खेतों का चुनाव न करें, जिन में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा हो.

अच्छी पैदावार और उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत का समतल यानी एकसार होना जरूरी होता है ताकि सिंचाई और बारिश का पानी ज्यादा समय तक खेत में न भरा रहे. खेत से फालतू पानी निकलने का भी माकूल इंतजाम होना चाहिए, जो खेत समतल नहीं होते हैं, उन में सिंचाई के लिए 30-50 फीसदी तक ज्यादा पानी की जरूरत होती है. ऐसे खेत में फसल भी अच्छी नहीं होती है. खेत को एकसार करने के लिए लेजर लैंड लेवलर यानी कंप्यूटर का मांझा का इस्तेमाल करना चाहिए. लेजर लैंड लेवलर खेत को पूरी तरह समतल कर देता है. खेत में अगर दीमक की समस्या हो, तो गरमी के मौसम में ऐसे खेतों की गहरी जुताई कर के 1 महीने के लिए उन्हें खाली छोड़ दें. ऐसा करने से खेत में मौजूद दीमक और नुकसानदायक कीड़ेमकोड़े तेज धूप और गरम हवा से खुदबखुद मर जाएंगे. गहरी जुताई से जमीन के अंदर बनी कठोर परत भी टूट जाती है, जिस से सफेद मूसली की जड़ें ज्यादा गहराई तक चली जाती हैं और उम्दा क्वालिटी की लंबीमोटी जड़ें हासिल होती हैं. गहरी जुताई करने से खेत में पानी ज्यादा समय तक भरा नहीं रहता है, यानी खेत की पानी सोखने की ताकत में इजाफा होता है. उम्दा क्वालिटी की ज्यादा जड़ें पैदा करने के लिए खेत का उपजाऊ होना भी जरूरी होता है. खेत की उपजाऊ ताकत मिट्टी में मौजूद जरूरी पोषक तत्त्व यानी जीवाश्म की मात्रा पर निर्भर होती है. जीवाश्म ही पौधों का खाना होता है. जीवाश्म में ही जरूरी पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, लोहा, कापर व जिंक वगैरह मौजूद होते हैं और पौधे इन्हें ही अपनी खुराक के तौर पर खेत की मिट्टी से हासिल करते हैं और मजबूत बने रहते हैं. अगर किसी खेत की मिट्टी में इन पोषक तत्त्वों यानी जीवाश्म की मात्रा कम है, तो अच्छी पैदावार मिलने की उम्मीद कम हो जाती है. इसलिए फसल की बोआई से पहले खेत की मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए, जिस से पता चल सके कि खेत में किस पोषक तत्त्व की कमी है. उस तत्त्व की कमी मुनासिब खाद डाल कर पूरी की जाती है. खेत की उपजाऊ ताकत बढ़ाने के लिए अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 20-30 टन प्रति हेक्टेयर रकबे के हिसाब से डालें. गोबर की सड़ी खाद डालने से जीवाश्म की मात्रा तो बढ़ती ही है, साथ ही खेत की मिट्टी भी भुरभुरी हो जाती है, जिस से सफेद मूसली की जड़ें अच्छी तरह से बढ़ती हैं. सफेद मूसली खेत में डोलियां बना कर उन पर उगाते हैं. डोलियों की ऊंचाई 15-20 सेंटीमीटर तक रखते हैं.

सफेद मूसली की कारोबारी खेती के लिए एमसीवी 405 किस्म उम्दा मानी गई है. अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर के अपने इलाके और आबोहवा के मुताबिक किस्म के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें. सफेद मूसली की खेती बीजों से नहीं करते हैं, क्योंकि इस के बीजों की जमाव की कूवत बहुत कम यानी 20-30 फीसदी तक होती है. इसलिए बीजों से बोआई कमाई के नजरिए से सही नहीं मानी जाती है. सफेद मूसली की कारोबारी खेती जड़ों से की जाती है. 1 हेक्टेयर रकबे की बोआई के लिए 6-10 क्विंटल मांसल जड़ों की जरूरत होती है. फसल पर किसी तरह की बीमारी का हमला न हो, इस के लिए बोआई से पहले जड़ों को बाविस्टीन और स्ट्रेप्टोसाक्लीन के घोल में उपचारित कर लेना चाहिए. सफेद मूसली की जड़ों की खेत में बनी डोलियों पर जुलाई महीने यानी बरसात शुरू होने पर रोपाई करते हैं. रोपाई के फौरन बाद हलकी सिंचाई कर देने से जड़ें जल्द ही मिट्टी में सेट हो जाती हैं. सफेद मूसली बरसात के मौसम में उगने वाली फसल है, इसलिए अलग से सिंचाई की खास जरूरत नहीं पड़ती है. अगर बारिश समय पर नहीं हो रही हो और फसल को पानी की जरूरत महसूस हो रही हो, तो ऐसी हालत में सिंचाई कर दें. जड़ों की रोपाई के 8-10 दिनों बाद उन में अंकुरण शुरू हो जाता है. पौधा बढ़ने के साथसाथ मिट्टी के अंदर सफेद मूसली की उपयोगी जड़ें तैयार होना शुरू हो जाती हैं. अच्छी जड़ें हासिल करने के लिए जरूरी है कि फसल में किसी भी तरह के खरपतवार न उगें. खरतपतवारों को काबू में रखने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करते रहें. जड़ों को मजबूती देने और उन की क्वालिटी बढ़ाने के लिए पौधों पर थोड़ीथोड़ी मिट्टी चढ़ा दें.

रोपाई के 4-5 महीने बाद यानी अक्तूबरनवंबर महीने तक फसल की सभी पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं और जमीन के अंदर जड़ें तैयार हो जाती हैं. जड़ों की क्वालिटी बढ़ाने के लिए उन्हें 2-3 महीने तक खेत में ही रहने देते हैं. मार्चअप्रैल में जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए. जड़ों की खुदाई के समय खेत में माकूल नमी मौजूद रहनी चाहिए ताकि जड़ों को आसानी से मिट्टी से निकाला जा सके. जड़ों की क्वालिटी और औषधीय गुण को बरकरार रखने के लिए खुदाई के बाद उन्हें अच्छी तरह प्रोसेस करना चाहिए. बाजार की मांग के मुताबिक जड़ों की प्रोसेसिंग करने के बाद उन्हें बेच देना चाहिए. सफेद मूसली की खेती की तकनीकी बारीकियों को जानने के लिए भारत सरकार के इस संस्थान से संपर्क करें:

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, इंदिरा नगर, कुकरैल पिकनिक स्पाट के पास, लखनऊ : 226016. फोन :0522 271 9083. 

सफेद मूसली के फायदे

* सफेद मूसली का उपयोग सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवाएं बनाने में किया जाता है.

* सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल टानिक के तौर पर भी किया जाता है.

* सफेद मूसली में सामान्य कमजोरी को दूर करने की भी खासीयत होती है.

* सफेद मूसली का इस्तेमाल गठिया, अस्थमा, बवासीर और डायबिटीज जैसी बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है

 

.* सफेद मूसली में स्पर्मेटोनिक गुण होता है, इसलिए नपुंसकता के उपचार में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है.

गंगा से गायब होती डाल्फिन और देसी मछलियां

गंगा नदी से गायब होती जा रही डाल्फिनों और देसी मछलियों को बचाने के लिए अब बिहार सरकार की नींद टूटी है. पर्यावरण विज्ञानी और कृषि वैज्ञानिक पिछले कई सालों से सरकार पर दबाव बना रहे थे कि गंगा नदी को बचाने के लिए उस में परही डाल्फिन और देसी मछलियों को बचाना जरूरी है. राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डाल्फिन की गिनती का काम केंद्र सरकार के नेशनल गंगा मिशन के तहत शुरू होना है. गिनती का काम करने वाले वन और पर्यावरण विभाग का अनुमान है कि भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उस की सहायक नदियों में पाई जाने वाली डाल्फिनों की आधी से ज्यादा संख्या बिहार में है. फिलहाल बिहार की नदियों में डाल्फिनों की संख्या का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है, जिस से डाल्फिनों को बचाने और बढ़ाने की योजना को ठीक तरीके से अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है.

डाल्फिन मैन के नाम से मशहूर पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आरके सिन्हा की किताब ‘द गैंगेटिक डाल्फिन’ में बिहार में गंगा नदी में डाल्फिनों की संख्या 1214 बताई गई है. वेटनरी डाक्टर सुरेंद्र नाथ ने बताया कि बिहार में उत्तर प्रदेश की सीमा से ले कर पश्चिम बंगाल की सीमा तक गंगा में डाल्फिनों की गिनती करने काम शुरू किया जाना है. गंगा की सहायक नदियों समेत सोन, महानंदा, गंडक, कोसी व कमला नदियों में गिनती का काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि सोन नदी में सब से ज्यादा डाल्फिनों के होने की उम्मीद है. गिनती करने के लिए ट्रेंड लोगों को जीपीएस से लैस बोट के साथ लगाया जाएगा. डाल्फिन मछलियां हर 2 मिनट पर सांस लेने के लिए पानी से बाहर आती हैं, उसी दौरान गिनती का काम किया जाएगा.

पिछले दिनों वन एवं पर्यावरण विभाग ने गंगा के दियारा इलाके में मछुआरों के साथ मिल कर वर्कशौक का आयोजन किया. वैज्ञानिकों ने कहा कि डाल्फिन राष्ट्रीय धरोहर है और इसे मछुआरे ही बचा सकते हैं. गंगा में बक्सर से ले कर मनिहारी के बीच 500 किलोमीटर क्षेत्र में 808 डाल्फिन पाई गई हैं. मछुआरों के जालों और नावों से चोट खा कर डाल्फिन जख्मी होती हैं और गहरा जख्म होने की हालत में उन की मौत भी हो जाती है. इस के अलावा बंगलादेश में 450 और नेपाल में 40 डाल्फिनों का पता चला है. वर्कशाप में मछुआरों को बताया गया कि वे किस तरह से थोड़ी सी सावधानी बरत कर डाल्फिनों की जान बचाने में मददगार हो सकते हैं. डाल्फिन मछलियों के साथ गंगा नदी में हजारों सालों से रह रही देसी किस्म की तमाम मछलियां भी गायब हो रही हैं. गंगा समेत बिहार की बाकी नदियों में पाई जाने वाली रोहू, कतला, नैनी, पोठिया, गरई, मांगुर, बचबा वगैरह देसी किस्म की मछलियों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.

अफ्रीकन, दक्षिण अमेरिकन और चाइनीज मछलियां गंगा की देसी मछलियों को चट कर रही हैं. बाढ़ के दौरान तालाबों और झीलों से निकल कर विदेशी किस्म की मछलियां गंगा समेत बाकी नदियों में आसानी से पहुंच जाती हैं. बिहार में बड़े पैमाने पर विदेशी किस्म की मछलियों का पालन तालाबों और झीलों में किया जाता है. इस से किसानों और मछलीपालकों को काफी माली फायदा तो हो रहा है, लेकिन बाढ़ के समय जब सारी झीलें और तालाब पानी से लबालब हो जाते हैं, तो विदेशी मछलियां उन से निकल कर नदियों तक पहुंच जाती हैं. डाल्फिन मैन डाक्टर आरके सिन्हा बताते हैं कि सही और ठोस मैनेजमेंट न होने की वजह से कई विदेशी किस्म की मछलियां गंगा नदी में पहुंच चुकी हैं. अफ्रीका की थाई मांगुर और पिलपिया, दक्षिण अमेरिका की सेलफिनफिश और चीन की सिल्वर कौर्प, कौमन कौर्प और ग्रास मछलियां देसी मछलियों को खा जाती हैं.

डाल्फिनों और देसी मछलियों को बचाने के लिए बिहार सरकार ने कई ऐलान किए हैं. मत्स्य संसाधन मंत्री वैद्यनाथ साहनी ने बताया कि सब से पहले प्रयोग के तौर पर गंगा नदी में इस की शुरुआत की जाएगी. गंगा के किनारे 12 जिलों में मत्स्य सहयोग समितियों के सदस्यों को मछलीपालन के लिए मुफ्त में केज दिए जाएंगे. इस के अलावा मछली बीज और चारा भी 50 फीसदी कम कीमत पर मुहैया किए जाएंगे. गंगा में इस योजना के कामयाब होने के बाद कोसी और गंडक समेत बाकी नदियों में भी मछलीपालन का काम चालू किया जाएगा. इस योजना के पहले फेज के लिए 10 करोड़ रुपए की मंजूरी की गई है. पटना, भोजपुर, बक्सर, छपरा, सिवान, वैशाली, भागलपुर, मुंगेर और कटिहार जिलों के मछलीपालक इस योजना का फायदा उठा सकते हैं. जो मछलीपालक मुफ्त में केज लेना चाहेंगे, उन्हें मत्स्यजीवी सहयोग समिति से सिफरिश करानी होगी. केज 18 फुट लंबा, 12 फुट चौड़ा और 12 फुट गहरा होगा. नदी के किनारे 6 से 8 फुट की गहराई में केज को रखा जाएगा. नदियों के पानी में मछलीपालन करने से जहां नदियों के किनारे बसे लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं मछली उत्पादन के मामले में भी बिहार आत्मनिर्भर हो सकेगा.

गौरतबल है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति मछली की खपत सालाना 8.5 किलोग्राम है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 5.5 किलोग्राम ही?है. सूबे में फिलहाल 3 लाख 44 हजार टन मछली का उत्पादन होता है, जबकि खपत 5 लाख टन के करीब है.

घडि़यालों की भी खोज शुरू

दुनिया भर में गायब हो रहे घडि़यालों की बिहार की गंडक नदी में खोज शुरू की गई है. घडि़यालों की संख्या में तेजी से हो रही कमी को ले कर वैज्ञानिक और पर्यावरणविद काफी चिंतित हैं. वैज्ञानिकों को बिहार की गंडक नदी में उम्मीद की किरण नजर आई है और गंडक में घडि़यालों के सर्वे का काम शुरू किया गया?है. इस सर्वे को मल्टी स्पीसिज सर्वे का नाम दिया गया है.  घडि़यालों के अलावा अन्य जलीय जीवों व नदी के पानी की रासायनिक स्थिति का भी पता लगाया जाएगा. देश के कई नामचीन संगठनों के प्रतिनिधि और वैज्ञानिक इस काम में लगे हैं. सर्व टीम की अगवाई विक्रमशिला जैव विविधता शोध संस्थान कर रहा?है. वैज्ञानिकों का मानना है कि नेपाल से निकलने वाली 380 किलोमीटर लंबी गंडक नदी में काफी तादाद में घडि़याल मौजूद?हैं, जबकि दुनिया भर में इन की तादाद महज 100 के आसपास ही है.

पोल्ट्री फार्म को बनाएं फायदे का सौदा

हमारे देश में पूरे साल अंडों की बहुत मांग रहती है और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रीशन की राय के तहत भी हर इनसान को 1 साल में 180 अंडे और 11 किलोग्राम चिकन मीट खाना चाहिए, जबकि हमारे देश में साल भर में हर इनसान केवल  53 अंडे और 2.5 किलोग्राम चिकन मीट ही खा पाता है. अब आप इस आंकड़े से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे देश में पोल्ट्री इंडस्ट्री के विकास की कितनी गुंजाइश है. गांव के बहुत से बेरोजगार नौजवान पोल्ट्री बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, पर वे जानकारी न होने की वजह से इस कारोबार में हाथ डालने से घबराते हैं. कोई व्यक्ति इस काम में हाथ डाल भी देता है, तो पोल्ट्री बिजनेस की पूरी जानकारी नहीं होने की वजह से उस का पोल्ट्री कारोबार कामयाब नहीं होता. पोल्ट्री का बिजनेस शुरू करने से पहले इस बिजनेस की हर बारीकी को जान लेना चाहिए, जैसे कौन सी नस्ल (स्ट्रेन) को पाल कर कम खर्चे पर ज्यादा अंडे पैदा किए जा सकते हैं.

हमारे देश के गांवों में ज्यादातर किसान बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग कर के अंडे और चिकन मीट पैदा करते हैं, जिस का इस्तेमाल वे अपने परिवार के खाने में ही कर लेते हैं. अगर ये किसान अपनी बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग को कमर्शियल लेयर/ब्रायलर प्रोडक्शन की यूनिट में बदल दें, तो घर के खाने के अलावा कमाई का एक अच्छा जरीया बना सकते हैं. किसानों के पास खुद की जमीन होती है और शेड बनाने में ज्यादा खर्च भी नहीं होता. अंडा एक बहुत ही पौष्टिक खाना है, सुबह नाश्ते में 1 या 2 अंडे खाए जाएं तो दोपहर तक भूख नहीं लगेगी यानी नुकसानदायक चीजें जैसे परांठे, ब्रेडपकौड़े, समोसे वगैरह खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि आप को भूख नहीं लगेगी. वैसे भी ब्रेडपकौड़े व समोसे वगैरह हर इनसान को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर इस की जगह अंडे खाए जाएं, तो  शरीर को जरूरी विटामिन व मिनरल की पूर्ति कम दामों में होगी और सेहत भी अच्छी बनी रहेगी.

हमारे देश में अंडे पैदा करने के लिए बहुत सी मुरगियां यानी स्ट्रेन (ब्रीड) उपलब्ध हैं, पर हमारे देश की आबोहवा ऐसी नहीं है कि कोई भी स्ट्रेन कम खर्च पर ज्यादा अंडे पैदा करने की कूवत रखती हो. इसलिए ऐसी नस्ल का चुनाव करें जो आप के इलाके की आबोहवा में अच्छा उत्पादन कर सके. अंडे पैदा करने के लिए  बीवी 300 स्ट्रेन और चिकन मीट पैदा करने के कोब्ब 400 स्ट्रेन बढि़या मानी गई हैं. ये दोनों स्ट्रेन हमारे देश के सभी राज्यों में गरमी, सर्दी व बरसात सभी मौसमों में कम खर्च पर ज्यादा उत्पादन देने की कूवत रखती हैं. सामान्य मैनेजमेंट पर भी इन दोनों स्ट्रेनों में ज्यादा गरमी, ज्यादा बरसात, ज्यादा ठंड और ज्यादा नमी में मौत दर भी कम है. बीवी 300 मुरगी 18 हफ्ते की होने के बाद अंडे देना शुरू कर देती है और 80 हफ्ते तक 374 अंडे देती है. ये 374 अंडे पैदा करने के लिए (19 से 80 हफ्ते तक) यह मुरगी कुल 46.6 किलोग्राम दाना (फीड) खाती है और पहले दिन से ले कर 18 हफ्ते तक 5.60 किलोग्राम दाना खाती है. यह मुरगी अंडा देना शुरू करने के बाद 80 हफ्ते तक रोजाना औसतन 111 ग्राम दाना खाती है. पहले दिन से ले कर 18 हफ्ते तक डेप्लेशन यानी मोर्टेलिटी व कलिंग 3-4 फीसदी तक ही होती है और 19 हफ्ते से 80 हफ्ते तक डेप्लेशन 7 फीसदी तक होता है.

वेनकोब्ब 400 ब्रायलर दुनिया में जानीमानी कमर्शियल ब्रायलर की उम्दा स्ट्रेन (नस्ल) है. यह हमारे देश के सभी हिस्सों में अच्छे नतीजे देती है. ज्यादा गरमी और ठंड या बरसात के मौसम में इस स्ट्रेन में मोर्टेलिटी बहुत कम होती है और बढ़वार अच्छी होती है. बड़े पैमाने पर ब्रायलर फार्मिंग करने वाले किसान वेनकोब्ब 400 ब्रायलर को ही पालना पसंद करते हैं. वेनकोब्ब 400 ब्रायलर स्ट्रेन 35 दिनों में तकरीबन 3 किलोग्राम फीड खा कर 2 किलोग्राम तक यानी 1900-2000 ग्राम तक वजन हासिल करने की कूवत रखती है. फार्म पर मैनेजमेंट अच्छा हो तो 35 दिनों में केवल 2.75 फीसदी की मौत दर देखी गई है. कमर्शियल लेयर (अंडे देने वाली मुरगी) को केज और डीपलिटर सिस्टम और कमर्शियल ब्रायलर को केवल डीपलिटर सिस्टम से पालते हैं. मुरगी पालने के शेड हमेशा साइंटिफिक स्टैंडर्ड के मुताबिक ही बनाने चाहिए. अगर आप ने पोल्ट्री शेड गलत दिशा और गलत तरीके से बना दिया है, तो आप का सारा पैसा बरबाद होगा ही और गलत तरीके से बनाए गए शेड में आप मुरगी से उस की कूवत के मुताबिक उत्पादन नहीं ले पाएंगे. गलत बने शेड में मुरगियों की मौतें भी ज्यादा होती हैं. मुरगियों को जंगली जानवरों, कुत्ते व बिल्ली वगैरह से बचाने के लिए शेड की चैन लिंक (जाली) अच्छी क्वालिटी की होनी चाहिए. सर्दी के मौसम में शेड को गरम रखने और गरमी के मौसम में शेड को ठंडा रखने के लिए कूलर, पंखे, फागर वगैरह का भी इंतजाम रखें. शेड को थोड़ी ऊंचाई पर बनाएं जिस से बरसात का पानी शेड के अंदर नहीं घुसे. शेड के अंदर गरमीसर्दी के असर को कम करने के लिए शेड की छत पर 6 इंच मोटा थैच (घासफूस का छप्पर) डाल देना चाहिए. पर थैच को आग से बचाने के लिए शेड की छत पर स्प्रिंकलर लगा देना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर उसे चलाया जा सके. शेड की छत पर थैच डालने पर गरमी के मौसम में शेड के अंदर 7-10 डिगरी तापमान कम हो जाता है. सर्दी के मौसम में भी थैच शेड के अंदर का तापमान ज्यादा नीचे तक नहीं जाने देता है.

चिकन मीट और अंडा उत्पादन के कुल खर्च का 60 से 70 फीसदी दाने पर खर्च होता है. इसलिए दाने की क्वालिटी एकदम अच्छी होनी चाहिए. पोल्ट्री फीड उम्र, स्ट्रेन, मौसम, प्रोडक्शन स्टेज, फीडिंग मैनेजमेंट वगैरह के पैमाने पर खरा उतारना चाहिए. पोल्ट्री फीड संतुलित नहीं है तो मुरगी कम अंडे पैदा करेगी और पोषक तत्त्व और विटामिन की कमी से होने वाली बीमारियां भी मुरगियों को होने लगेंगी, जैसे फैटी लिवर सिंड्रोम, पेरोसिस, डर्मेटाइटिस, रिकेट्स, कर्लटाय पेरालिसिस वगैरह. अंडे देने वाली मुरगी को लगातार अंडे देने के लिए 2500 से 2650 किलोग्राम कैलोरी वाले फीड की जरूरत होती है, उम्र और अंडे के वजन के मुताबिक ही फीड की कैलोरी तय की जाती है. 1 से 7 हफ्ते के चूजे को 2900 किलोग्राम कैलोरी का फीड, जबकि ग्रोवर को 2800 किलोग्राम कैलोरी का फीड देना चाहिए. मुरगी दाने और फीड बनाने वाले इंग्रेडिएंट (मक्का वगैरह) में नमी कभी भी 10-11 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अगर मक्के में नमी ज्यादा होती है, तो फंगस लग सकता है और फंगस लगा मक्का फीड में इस्तेमाल करने से उस में अफ्लाटाक्सिन (एक प्रकार का जहर) की मात्रा बढ़ जाएगी, जो मुरगी की इम्युनिटी (बीमारी झेलने की कूवत) को कमजोर कर देगी और मुरगी जल्द ही बीमारी की चपेट में आ जाएगी. बेहतर होगा कि पोल्ट्री फीड प्राइवेट कंपनी से खरीदा जाए ताकि फीड से जुड़ी किसी भी तरह की परेशानी से बचा जा सके. उत्तरा फीड कंपनी देश में बड़े पैमाने पर उम्दा क्वालिटी का पोल्ट्री फीड बेचती है. इस कंपनी की सेल्स टीम से संपर्क कर के फीड खरीदें. मुरगियों के लिए रोशनी सब से खास चीज है. अंडे देने वाली कमर्शियल मुरगी को 16 घंटे लाइट देते हैं और चूजे को ब्रूडिंग के दौरान 24 घंटे, ग्रोवर/पुलेट को 12 घंटे  लाइट (नेचुरल लाइट) देते हैं. लाइट मौसम व स्ट्रेन वगैरह पर निर्भर करती है और इसी आधार पर ही लाइट का मैनेजमेंट करते हैं. कमर्शियल लेवल पर पीली, लाल, आरेंज रंग की लाइट से अच्छे नतीजे मिलते हैं. ब्रायलर को 24 घंटे लाइट दी जाती है. लाइट देने में किसी तरह की कोई कंजूसी न करें. लाइट 1 वाट प्रति 4 वर्ग फुट के हिसाब से दें. अपने  फार्म  की  मुरगियों (फ्लाक) को समय पर टीके दें. सामान्य वैक्सीनेशन शिड्यूल इलाके और फार्म के मुताबिक पोल्ट्री चूजा बेचने वाली कंपनी से लें और उसे अपनाएं.

फार्म की मुरगियों से लगातार अच्छे अंडे लेने और उन को बीमारी से बचाने के लिए पानी भी सब से अहम चीज है. फार्म की मुरगियों को हमेशा ताजा व साफ पानी यानी जो इनसानों के लिए भी पीने लायक हो, देना चाहिए.  ई कोलाई, साल्मोनेला बैक्टीरिया, पीएच, हार्डनेस, कैल्शियम वगैरह की जांच के लिए पानी की जांच समयसमय पर कराते रहें. अगर जांच में पानी में कोई कमी मिलती है, तो उसे फौरन दुरुस्त करें. सब से अच्छा होगा कि पोल्ट्री फार्म पर आरओ प्लांट लगा कर मुरगियों को उस का पानी दें, इस से मुरगियों की अंडा पैदा करने की कूवत में काफी इजाफा होगा और वे ज्यादा अंडे देंगी और पानी से जुड़ी बीमारियों से भी बची रहेंगी. 3000 लीटर प्रति घंटा आरओ का पानी तैयार करने के लिए आरओ प्लांट पर तकरीबन 5-6 लाख रुपए का खर्च आएगा.

फार्म पर नया फ्लाक डालने से पहले फार्म और शेड की साफसफाई तय मानकों के अनुसार करना जरूरी होता है. शेड के सभी उपकरण (दानेपानी के बरतन, परदे, ब्रूडर, केज) व परदे वगैरह को अच्छी तरह साफ करना चाहिए. पहले फ्लाक के पंख, खाद, फीड बैग वगैरह को जला दें. शेड को साफ पानी से अच्छी तरह धो कर साफ करने के बाद शेड और उपकरणों की सफाई के लिए डिसइन्फेक्टेंट का इस्तेमाल करें. शेड की छत, पिलर वगैरह पर वाइट वाश (चूना) करने के बाद फिर से डिसइन्फेक्टेंट का स्प्रे करें. शेड का फर्श पक्का है तो उसे अच्छी तरह से लोहे के ब्रश से रगड़ कर साफ करें और फिर उस की साफ पानी से अच्छी तरह सफाई कर के उस पर 10 फीसदी वाले फार्मलीन के घोल का छिड़काव करें. खाली शेड में एक्स 185 डिसइन्फेक्टेंट की 4 मिलीलीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर 25 वर्ग फुट रकबे में अच्छी तरह छिड़काव करें. शेड का फर्श कच्चा हो तो शेड के फर्श की 2 इंच तक मिट्टी की परत खरोंच कर निकाल दें और उस जगह पर दूसरे खेत की साफ ताजी मिट्टी डाल दें. अगर पिछले फ्लाक में किसी खास बीमारी का हमला हुआ था, तो पोल्ट्री कंपनी के टेक्निकल डाक्टर से शेड की सफाई का शेड्यूल लें और उसी के अनुसार ही शेड की साफसफाई करें. फार्म पर बायो सिक्योरिटी अपनाएं मतलब फार्म पर बाहर के किसी भी शख्स को न आने दें. आप के फार्म पर बायोसिक्योरिटी जितनी अच्छी होगी तो फार्म की मुरगियों को बीमारी लगने की संभावना उतनी ही कम होगी. इसलिए बायोसिक्योरिटी बनाए रखने के लिए फार्म के गेट पर फुटबाथ बनाएं. सभी वर्कर, सुपरवाइजर, डाक्टर, विजिटर को नहला कर और फार्म के कपड़े पहना कर ही फार्म में घुसने दें. जंगली पक्षी भी बायोसिक्योरिटी को तोड़ते हैं और फार्म पर बीमारी फैलाने में खास रोल अदा करते हैं. इसलिए फार्म पर लगे पेड़ों पर अगर जंगली पक्षियों का बसेरा है, तो उन को खत्म कर दें. अपने मुरगी फार्म से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए सभी मुरगीपालकों को बायोसिक्योरिटी पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. फार्म माइक्रो लेवल पर साइंटिफिक मैनेजमेंट अपनाना जरूरी है, तब जा कर पोल्ट्री फार्म से अच्छे मुनाफेकी उम्मीद की जा सकती है. बीवी 300 और कोब्ब 400 के 1 दिन के चूजे, दाना, दवा, वैक्सीन वगैरह खरीदने के लिए इन कंपनियों में संपर्क करें :

*      वैंकीस इंडिया लिमिटेड.

*      वेंकटेश्वर रिसर्च एंड ब्रीडिंग फार्म प्राइवेट लिमिटेड.

*      बीवी बायो कार्प प्राइवेट लिमिटेड.

*      उत्तरा फूड्स एंड फीड प्राइवेट लिमिटेड.                        ठ्ठ

ध्यान देने लायक बातें

अंडों को लंबे समय तक खाने लायक बनाए रखने के लिए उन्हें फ्रिज में रखें. अंडे से बनी डिश को फौरन खा कर खत्म कर दें. अंडे से बनी डिश को फ्रिज में कतई स्टोर न करें. वर्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन और पान अमेरिका हेल्थ आर्गनाइजेशन की सलाह के मुताबिक अंडे रोज खाने चाहिए. अंडे में सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स जैसे आयरन और जिंक वगैरह अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं.

पोल्ट्री फार्म ऐसे शुरू करें

पोल्ट्री फार्म खोलने से पहले पोल्ट्री एक्सपर्ट से सलाहमशवरा करें. इस के नफेनुकसान पर गौर करें. तैयार माल को बेचने की पहले से प्लानिंग तैयार करें. पोल्ट्री एक्सपर्ट या पोल्ट्री चूजादाना बेचने वाली कंपनी के टेक्निकल सर्विस के डाक्टर से बात कर के ट्रेनिंग लें और उन्हीं की देखरेख में ब्रायलर फार्म चलाएं. अगर इस काम को बड़े लेवल पर करना हो, तो प्रोजेक्ट बना कर बैंक से लोन ले सकते हैं. प्रोजेक्ट बनाने में पोल्ट्री कंपनी के टेक्निकल डाक्टर और बैंक के एग्रीकल्चर डेवलपमेंट अफसर से मदद लें.

बनाएं कुछ ऐसा जो दिलाए ज्यादा पैसा

फार्म से फूड तक यानी खेती की उपज से खानेपीने की चीजें बनाने तक का दायरा बहुत बड़ा है. नई तकनीकों से इस में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है. खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए अब जरूरी है कि किसान वक्त की नब्ज पहचानें, खेती के सहायक उद्योगधंधों में उतरें व अपनी इकाई लगाएं. आजकल भागदौड़ से भरी जिंदगी में वक्त की कमी का असर खानपान व रसोई पर भी पड़ा है. मर्दों के अलावा कामकाजी औरतों की गिनती तेजी से बढ़ने के कारण पुराने तरीकों से खाना पकाने का चलन घटा है. उन के पास इतना वक्त नहीं बचता कि वे चक्की, चकला बेलन, इमामदस्ता व सिलबट्टे का झंझट पालें. लिहाजा अब खाना बनाने का नहीं खाने के लिए तैयार चीजें खरीदने का जमाना है. वक्त बचाने की गरज से ज्यादातर लोग खाने लायक व जल्दी तैयार होने वाली चीजें खरीदना पसंद करते हैं. लिहाजा अपनी जमीन पर खेती की उपज से खाने की नई उम्दा चीजें बनाई जा सकती हैं. खाने का सामान बनाने का तैयार मिक्स बनाने की इकाई लगा कर खासी कमाई की जा सकती है, लेकिन इस केलिए पूरी तैयारी, ट्रेनिंग, पैकिंग व मार्केटिंग वगैरह की जानकारी जरूरी है.

तुरतफुरत

खेती बागबानी की उपज से बहुत सी खाने लायक चीजें बनाई जा सकती हैं. खाने की चीजें बनाने का दायरा बहुत बड़ा है. इस में बहुत से सुधार व बदलाव हुए हैं और आए दिन हो रहे हैं. एमटीआर व गिट्स जैसी बहुत सी कंपनियां रेडी टू कुक यानी अधबने व रेडी टू ईट यानी खानेपीने को तैयार चीजें बना कर बेच रही हैं. ,नाश्ते के लिहाज से इडली, डोसा, सांभर, वड़ा, पोहा, ओट्स व उपमा मिक्स खूब बिकते हैं. मिठाई मिक्स में गुलाबजामुन, रबड़ी, हलवा व बेसन के लड्डू बनाने की पैकेटबंद सामग्री की काफी मांग है. इन के अलावा बादाम, केसर व चाकलेट ड्रिंक्स, नूडल्स, पास्ता, मोमोज, मैक्रोनी, मंचूरियन व सिवइयां वगैरह चीजें बाजार में खूब बिक रही हैं. अब कई तरह के सूप पाउडर भी पैकेटबंद मिलते हैं, यानी पैकेट खोलो, घोलो व झटपट बना लो. इन के अलावा मसाला मिक्स, मसाला पाउडर, मसाला पेस्ट, रसम, सांभर, ढोकला, पकौड़ी व चटनी के पाउडर, आलू व केले के चिप्स, मसाला चना, पापकार्न, पावभाजी व भुजिया वगैरह की भी खूब मांग है.

यह खाने की चीजों को महफूज रखने वाले करामाती प्रिजरवेटिव्स, फूड टैक्नोलाजी व उम्दा पैकेजिंग का कमाल है कि अब खाने के लिए तैयार चने, राजमा, पालक पनीर, कढ़ी, पुलाव, आलू की टिक्की, चपाती, पूड़ी व सरसों का तैयार साग जैसी बहुत सी पैकेटबंद चीजें बन कर बिक रही हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने कुलथी ज्वार के फुल्ले, तुरंत खाने लायक सोयाबीन के भुने फ्लैक्स, गेहूं, चावल, चने का चोकर मिले कार्न चिप व कद्दू पाउडर मिला बाल आहार सहित तमाम ऐसी चीजें बनाने की तरकीबें निकाली हैं, जिन्हें अपना कर किसान नए मोर्चे पर उतर कर फतह हासिल कर सकते हैं.

पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलाजी

उपज की कीमत बढ़ाना व उस से खानेपीने की चीजें बनाना पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलाजी यानी कटाई के बाद की तकनीक में आता है. फूड आइटम बना कर खेती से ज्यादा कमाने की तकनीकें किसानों को सीखनी होंगी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत बीते 25 सालों से फसल कटाई के बाद की इंजीनियरिंग व टैक्नोलाजी का केंद्रीय संस्थान सीफैट के नाम से लुधियाना (पंजाब) में चल रहा है. सीफैट का मकसद कटाई के बाद उपज के बेहतर इस्तेमाल की तकनीक सीखना, उस पर खोजबीन करना, खेती से जुड़े उद्योगधंधों को बढ़ावा देना, कटाई के बाद का नुकसान घटाना, खेती की उपज की कीमत बढ़ाना है, ताकि  फल, सब्जी, दूध, मांस व अनाज से उम्दा उत्पाद बनाए जा सकें और सहउत्पादों व खेती के कचरे का बेहतर इस्तेमाल व किसानों की आमदनी में इजाफा हो. सीफैट के माहिरों ने भंडारित अनाज में कीटों का पता लगाने की मशीन, जैसी तमाम चीजें तैयार की हैं और तमाम बेहतरीन तकनीकें निकाली हैं.

उम्दा औजार

मूंगफली, मक्का व ग्वार वगैरह के दाने हाथों से निकालना व आंवले को गोदने जैसे काम आसान नहीं हैं, लेकिन सीफैट के माहिरों ने ऐसी तमाम मुश्किलें हल कर दी हैं. उन्होंने फसल की कटाई के बाद व फूड प्रोसेसिंग में काम आने वाली बहुत सी मशीनें, औजार, प्लांट व उपकरण बनाए हैं. इन से वक्त बचता है. सीफैट के माहिरों द्वारा मिश्रण मिलाने, पीसने, छीलने, गूदा निकालने व फलसब्जी छांटने के लिए, बेहतर व किफायती मिक्सर, ग्राइंडर, पीलर, पल्पर व ग्रेडर सहित मीटमछली व पोल्ट्री के धंधे में काम आने वाले बहुत से औजार बनाए गए हैं. इन से कम वक्त में ज्यादा व बेहतर काम होता है. साथ ही साथ थकान भी कम होती है. सीफैट में खेती से जुड़ी इकाइयां लगाने व कमाने लायक तकनीक निकालने पर बहुत काम हुआ है, मसलन मोबाइल एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट व आंवला प्रोसेसिंग प्लांट जैसी 41 किफायती तकनीकें कारोबारीकरण के लिए व 28 खोजों के पेटेंट लाइसेंसिंग के लिए तैयार हैं. जरूरत ऐसी जानकारी से फायदा उठाने की है. कटाई के बाद की तकनीक, इंसटेंट फूड प्रोडक्ट्स बनाने व उस में काम आने वाली मशीनों वगैरह के बारे में ज्यादा जानकारी के इच्छुक किसान व उद्यमी इस पते पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक,

केंद्रीय फसल कटाई उपरांत अभियांत्रिकी व प्रोद्योगिकी संस्थान, सीफैट, लुधियाना 141004, पंजाब.                      ठ्ठ

इंसटेंट फूड का निर्यात

देश में इंसटेंट फूड बनाने वाले बहुत से कारोबारियों ने एक्सपोर्ट करने की गरज से अपने उत्पादों के इश्तहार इंटरनेट पर कई वेबसाइटों के जरीए रखे हैं. इन पैकेटबंद उत्पादों में से कुछ अहम नाम हैं: इडली मिक्स, बाजरा इडली मिक्स, रवा इडली मिक्स, वड़ा मिक्स, रसम मिक्स, डोसा मिक्स, पोहा मिक्स, मूंगदाल पकौड़ा मिक्स, मूंगदाल भुजिया मिक्स, पोंगल मिक्स, उपवास मिक्स, वेज पुलाव मिक्स, चीज कार्न चावल मिक्स, टेस्टी सीरियल मिक्स, गुलाबजामुन मिक्स, पायस मिक्स, खम्मन मिक्स, बासुंडी मिक्स, काजू करी मिक्स, साबूदाना डिशेस, फिरनी मिक्स, मेथी परांठा मिक्स, पुदीना चटनी पाउडर, मल्टी ग्रेन पाउडर, भटूरे का पाउडर.

चावल के मीठे नमकीन पकवान

काकटेल क्रंची राइस स्केअर्स

सामग्री : 1 कप चावल का आटा, आधा कप सूजी, 1 कप बारीक कटी मिक्स सब्जियां (शिमला मिर्च, बींस, हरा प्याज, गाजर व फूलगोभी वगैरह), 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, आधा कप कटी हरीधनिया, 1 बड़ा चम्मच कसा मोजरेला चीज, 1 चम्मच चिली फ्लेक्स, स्वादानुसार कटी हरीमिर्च व नमक, तलने के लिए तेल, थोड़ा सा कार्नफ्लेक्स.

विधि : ढाई कप पानी उबलने रखें. जैसे ही पानी गरम होने लगे, तो उस में कटी सब्जियां, चावल का आटा व सूजी मिला दें. धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए पकाएं. अदरकलहसुन का पेस्ट, नमक, हरीधनिया व हरीमिर्च मिलाएं. यदि मिश्रण जल्दी सूखने लगे, तो गरम पानी मिला लें. 8-10 मिनट पकाएं, फिर गैस बंद कर के उस में मोजरेला चीज मिलाएं. एक चिकनी प्लेट पर फैला कर चौकोर टुकड़े काटें. कार्नफ्लेक्स का चूरा कर लें. तेल गरम होने के लिए गैस पर रख दें. अब हर चौकोर टुकड़े को कार्नफ्लेक्स में डिप कर के मध्यम आंच पर सुनहरा भूरा होने तक?तलें. गरमागरम स्केअर्स को?टोमैटो कैचअप के साथ खाएं और खिलाएं.

राइस खीर बाल्स विद चाकलेट सौस

सामग्री : 1 कप भीगे चावल, 600 मिलीलीटर दूध, आधा कप कंडेंस्ड मिल्क, आधा कप मिल्क पाउडर, आधा छोटा चम्मच इलायची पाउडर, स्वादानुसार चीनी, 1 चम्मच घी, सजाने के लिए चाकलेट सौस, अनार के दाने, चाकलेट चिप्स व कद्दूकस किया नारियल.

विधि : एक पैन में घी गरम करें. भीगे चावल डाल कर गुलाबी होने तक भूनें. फिर दूध डाल कर चावल गलने तक पकाएं. अब उस में मिल्क पाउडर व कंडेंस्ड मिल्क मिलाएं. इस के बाद चीनी मिलाएं. खीर जब गाढ़ी हो कर बाल्स बनाने लायक हो जाए, तो इलायची पाउडर डालें और गैस बंद करें. ठंडी होने पर खीर को फ्रीजर में रखें. खूब ठंडी होने पर आइसक्रीम स्कूपर से खीर के बाल्स बनाएं और चाकलेट सौस, कद्दूकस किए नारियल व अनार के दानों से सजा कर पेश करें.

आरेंज राइस रिसोतो

सामग्री : 1 कप चावल, 1 बड़ा चम्मच कटा व बीज निकला मुनक्का, आधा कप कार्नफ्लेक्स, 1 कप संतरे का रस, 1 चुटकी खाने वाला आरेंज कलर, 1 छोटा चम्मच कद्दूकस किया संतरे का छिलका, 1 कप क्रीम, 1 बड़ा चम्मच प्रोसेस्ड चीज, स्वादानुसार पिसी चीनी.

विधि : चावलों को धो कर उबालें और आधा ही पकाएं. फिर उन को छान कर ठंडा करें. इस के बाद चावलों में क्रीम, चीज, मुनक्का, संतरे का रस, पिसी चीनी, आरेंज कलर व संतरे का छिलका मिलाएं एक बेकिंग डिश को चिकना करें. उस में थोड़ा सा कार्नफ्लेक्स मसल कर डालें. फिर चावल डालें. उस के ऊपर बाकी कार्नफ्लेक्स डालें और पहले से गरम ओवन में 150 डिगरी पर 20-25 मिनट बेक करें. फिर संतरे की फांकों से सजा कर पेश करें.

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