चीनी की दुनिया की कड़वाहट
सहकारी चीनी मिलों पर सूबे की सरकार का काबू नहीं
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे में चीनी उत्पादन और गन्ना मूल्य भुगतान ही किसानों का सब से खास मुद्दा है. सारे साल इसी बात को ले कर उठापटक मची रहती है. मुख्यमंत्री से ले कर प्रधानमंत्री तक को मामले में जबतब दखल देना पड़ता है, फिर भी चीनी के मामले की कड़वाहट खत्म नहीं हो पाती. फिलहाल गन्ना मूल्य भुगतान की उम्मीद लगाए बैठे तमाम किसानों को सहकारी चीनी मिलों ने करारा झटका दिया है. बीते चीनी सीजन में गन्ने की पेराई करने वाली 23 सहकारी मिलों ने उच्च न्यायालय को बताया कि वे कोर्ट के फरमान के मुताबिक 2 हफ्ते में बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं कर पाएंगी. इस के लिए उन्हें 31 दिसंबर यानी 2015 के अंत तक का वक्त चाहिए. इन मिलों ने अपने हलफनामे में दो टूक अंदाज में कहा है कि उन पर सूबे की सरकार का कोई काबू लागू नहीं होता. उन का संचालन स्वायत्त सहकारी समितियां करती हैं, जिन की स्थापना किसानों द्वारा की गई है. गौरतलब है कि पिछली बार 29 जुलाई, 2015 को उच्च न्यायालय ने गन्ना मूल्य भुगतान के मसले पर सख्ती बरतते हुए सूबे की सरकार के अधिकार वाली सहकारी चीनी मिलों को 2 हफ्ते में किसानों को भुगतान करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने आदेश का पालन न किए जाने की दशा में सख्त कार्यवाही करने की बात कही थी.
उच्च न्यायायल ने ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ के संयोजक वीएम सिंह की जिस याचिका पर 2 हफ्ते में भुगतान किए जाने का आदेश दिया था, उस में पक्षकार बनने के लिए 23 सहकारी मिलें उच्च न्यायालय जा पहुंचीं. उन्होंने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में साफ कहा कि उन की मिलें सूबे की सरकार की नहीं है. इस मसले पर याचिकाकर्त्ता वीएम सिंह का कहना है, सहकारी चीनी मिलों का नियंत्रण उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल संघ के अधीन है, मगर वह तसवीर से गायब है. ‘पहली दफे सहकारी चीनी मिलों को आगे कर के हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कराया गया है, जिस में बातों को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. ‘सूबे की सरकार के कहने पर यह कवायद निजी चीनी मिलों के हित में की जा रही है.’ सहकारी चीनी मिलों के महाप्रबंधकों का कहना है कि सहकारी चीनी मिलों पर 6855.37 करोड़ रुपए का कर्ज है. इस में राज्य सरकार की ब्याज सहित देनदारी 3880.11 करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि राज्य सरकार से जो कर्ज मिलता है, उस पर 15 फीसदी ब्याज देना पड़ता है. अब देखने वाली बात यह है कि मिलों के दावे पर कोर्ट क्या कहता है. क्या मिलों को साल के अंत तक का वक्त दिया जाता है? क्या इस के बाद भी भुगतान पूरी तरह निबट पाएगा? सारे सवालों के जवाब समय आने पर ही मिल पाएंगे. ठ्ठ
चीनी मिलों को मिलेगा कर्ज
नई दिल्ली : यकीनन सरकार अपनी तरफ से चीनी मिलों को राहत देने में कोताही नहीं बरतती, फिर भी मामले भले ही लटके रहें. पिछले दिनों सरकार द्वारा मंजूर किए गए 6000 करोड़ रुपए के कर्ज से जुड़ी शर्तों को मिलों के हित में और भी आसान कर दिया गया?है.
यह कर्ज उन चीनी मिलों के लिए है, जिन्होंने 30 जून, 2015 तक किसानों के बकाए का 50 फीसदी चुका दिया था. मगर अब 31 अगस्त 2015 तक किसानों का 50 फीसदी भुगतान करने वाली चीनी मिलों को?भी यह कर्ज मिलेगा. चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 15400 करोड़ रुपए का बकाया?है, लिहाजा सरकार ने किसानों की मदद के लिए चीनी मिलों को दिए जाने वाले कर्जों की शर्तों को काफी आसान कर दिया?है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगाई गई. दरअसल गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए सरकार पिछले कई महीनों से लगातार कोशिश कर रही?है. जून महीने में चीनी मिलों को पैसा मुहैया कराने के इरादे से सरकार ने 2015-16 सीजन के लिए जून में 6000 करोड़ रुपए मंजूर किए थे. इस रकम से किसानों के बकाया भुगतान को गति मिलने की उम्मीद की जा सकती है. पहले 30 जून तक किसानों का आधा भुगतान करने वाली मिलों को ही कर्ज दिए जाने की बात कही गई थी, जिस से तमाम मिलें इस मदद से महरूम रह जातीं. इसी बात को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने 31 अगस्त तक किसानों का आधा भुगतान करने वाली मिलों को?भी इस कर्ज का हकदार बना दिया. इस प्रकार कई मिलों को अनकहे अंदाज में 2 महीने का अच्छाखासा अरसा मिल गया. सरकार के सहयोग के इस आलम में तमाम चीनी मिलों का फर्ज है कि वे कर्ज की मदद की बदौलत किसानों का भुगतान करने में कोई कोताही न बरतें और खुद पर लगा लापरवाही का कलंक मिटा लें ताकि चीनी का माहौल मीठा हो जाए.
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मुहिम
यूपी में लंदन जैसी फलसब्जियां
लखनऊ : जी हां, यह बात सच होने जा रही है कि उत्तर प्रदेश में भी लंदन जैसी फलसब्जियां मिलने लगेंगी. प्रदेश सरकार भी किसानों के लिए लंदन जैसी फलसब्जियों की क्वालिटी, उन के रखरखाव और ऐक्सपोर्ट पर काम करेगी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मंत्री राजेंद्र चौधरी ने लंदन यात्रा से लौटने के बाद इस बारे में जानकारी दी. मंत्री राजेंद्र चौधरी ने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लंदन से 50 मील दूर गांवों और खेतों के बीच गए. वहां उन्हें खेतों में खूब सारी सरसों दिखी. वहां गेहूं और धान के अलावा फलसब्जी की फसलें भी होती हैं. वहां फल और सब्जियों की क्वालिटी और उन के रखरखाव और वितरण नेटवर्क को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश में भी लागू करने की योजना बनाई है. इस से किसानों को काफी मदद मिलेगी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लंदन में गुजरात, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान के अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के तमाम लोगों से भी मिले. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वहां की संसद, शाही परिवार के निवास और ईस्ट इंडिया कंपनी के दफ्तर को नजदीक से देखा. वे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी गए, जहां उन्होंने छात्रों की पढ़ाईलिखाई के तौरतरीकों को देखा. साथ ही वे लंदन में शेक्सपीयर के गांव भी गए.
इस तरह लंदन से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने यहां के किसानों के लिए एक नया फार्मूला तो ले कर आए. खेती की कसौटी पर मुख्यमंत्री का यह लंदन दौरा कारगर कहा जा सकता?है. उम्मीद है कि जब भी मुख्यमंत्री विदेश जाएंगे तो कुछ खास ले कर लौटेंगे.
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इनाम
कृषि विज्ञान केंद्र को राष्ट्रीय पुरस्कार
रायपुर : केंद्रीय कृषि मंत्रालय से संबद्ध भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा. यह पुरस्कार साल 2014 के लिए कृषि केंद्र के बेहतरीन कामों पर दिया गया. कृषि विज्ञान केंद्र को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा संचालित किया जाता है. मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह और प्रदेश के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राज्य के किसानों के साथसाथ कृषि विज्ञान केंद्र, अंबिकापुर और कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के वैज्ञानिकों, अफसरों व मुलाजिमों को बधाई दी. केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने पटना में आयोजित कृषि विज्ञान केंद्रों की 2 दिनों की राष्ट्रीय संगोष्ठी में अंबिकापुर के कृषि विज्ञान केंद्र को जोन 7 के तहत बेहतर काम के लिए कृषि विज्ञान केंद्र पुरस्कार 2014 से नवाजा. इस समारोह का आयोजन पटना के श्रीकृष्णा मेमोरियल हाल में किया गया था.
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डाक्टर एसके पाटील, आंचलिक परियोजना निदेशालय जोन 7 के डायरेक्टर डाक्टर अनुपम मिश्रा, डायरेक्टर विस्तार सेवाएं डाक्टर एमबी ठाकुर और कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम समन्वयक डाक्टर आरके मिश्रा ने यह खास पुरस्कार हासिल किया. उल्लेखनीय है कि अंबिकापुर के कृषि विज्ञान केंद्र का संचालन आदिवासी बहुल सरगुजा जिले में पिछले 20 सालों से लगातार किया जा रहा है. ठ्ठ
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मसला
प्याज पर सरकार की आंखें खुलीं
नई दिल्ली : सरकार की नानुकर के बीच प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी थीं. पिछले 2 महीने से दिल्ली और उस के आसपास के शहरों में जहां प्याज की कीमतों में 25 फीसदी तक का इजाफा हो चुका था, वहीं देश के दूसरे राज्यों में भी इस की कीमतें काफी बढ़ गई थीं. सरकार आखिरकार प्याज के दाम घटाने में कुछ हद तक कामयाब रही. बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने हेतु दिल्ली सरकार ने दिल्ली में प्याज के दाम तकरीबन 10 रुपए कम करने का फैसला लिया.
मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में प्याज आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही थी, वहीं सरकार का दावा था कि देश में प्याज की कोई कमी नहीं है. कालाबाजारी की वजह से कुछ जगहों पर परेशानी आ रही है. हालांकि सरकार बेशक जो दावे करे, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि प्याज के बढ़ते दामों ने आम आदमी की आंखों में आंसू लाने शुरू कर दिए थे. दिल्ली की थोक मंडी में प्याज की कीमतों में काफी उछाल देखा गया था. पिछले 2 महीने में ही प्याज की कीमत 36 रुपए से बढ़ कर 45 रुपए तक पहुंच चुकी थी. 2 सरकारी एजेंसियां नेफेड और एसएफएसी रोजाना दिल्ली में सप्लई के लिए सौ टन के करीब प्याज मुहैया कराती हैं.
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में रोजाना 800 से 1000 टन प्याज की खपत होती है. ऐसे में इतनी खपत के बीच कीमतों को थामना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती थी. वैसे जानकारों की मानें, तो कीमत बढ़ने के पीछे इस की एक अहम वजह कम आपूर्ति भी है.हालांकि केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि देश में प्याज की कोई कमी नहीं है. प्याज का भरपूर भंडार है. राज्य सरकारों की ओर से कालाबाजारी पर कार्यवाही न करने के कारण प्याज का दाम बढ़ रहा है. वैसे उन्होंने इस बात को माना कि सरकार के पास प्याज को महफूज रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं.
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कवायद
भुगतान के लिए भटकते किसान
पटना : बिहार के चंपारण जिले के लौरिया योगापट्टी में सब से ज्यादा गन्ने का उत्पादन होता है और इसी वजह से उस इलाके को गन्ने का ‘मायका’ कहा जाता है. गन्ने की भरपूर खेती करने के बाद भी गन्ना किसानों की माली हालत खराब है और वे गन्ने की खेती छोड़ने का मन बनाने लगे हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि चीनी मिलों द्वारा किसानों से गन्ना तो खरीद लिया जाता है, लेकिन उस के भुगतान के लिए किसानों को दरदर भटकना पड़ता है. लौरिया चीनी मिलों के अलावा बगहा, नरकटियागंज और मझौलिया चीनी मिलें किसानों से गन्ना खरीदती हैं. किसान रामसेवक बताता है कि गन्ने की कीमत लेने के लिए किसानों को हर साल भटकना पड़ता है और सड़कों पर उतरना पड़ता है. इस साल 12 जनवरी से ले कर अभी तक किसानों के करीब 25 करोड़ रुपए चीनी मिलों के पास बकाया हैं. ऐसी हालत में किसान गन्ने की खेती कर के पछता रहे हैं और उस से मुंह मोड़ने लगे हैं. बकाया भुगतान की मांग को ले कर किसान लौरिया के विधायक विनय बिहारी से ले कर मुख्यमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं. इस के बाद भी किसानों को दूरदूर तक भगुतान के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. विधायक कहते हैं कि किसानों के भुगतान के लिए कई दफे सरकार से मांग की गई है और चीनी मिलों के मालिकों और प्रबंधन पर भी पूरा दबाव बनाया जा रहा है. जागरूक किसान महेंद्र पांडे कहते हैं कि सरकार और चीनी मिलों को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि हर साल गन्ना किसानों को समय पर भुगतान मिल सके. हर साल अपने ही पैसों के लिए भटकने से किसान गन्ने की खेती छोड़ने का मन बनाने लगे हैं.
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हौसला
महिला भिड़ी मगरमच्छ से
केंद्रपाड़ा : ओडिशा के केंद्रपाड़ा इलाके के सिंगिरी गांव की 37 साला सावित्री ने जो कारनामा कर दिखाया, वह काबिलेतारीफ है. आजकल सावित्री अस्पताल में भरती है. इस की वजह कोई बीमारी नहीं, बल्कि मगरमच्छ से लड़ाई में जिस्म पर हुए जख्म हैं. सावित्री पर मगरमच्छ ने उस समय हमला कर दिया, जब वह अपने घर के पास ही एक तालाब में अपने बरतन धो रही थी. सावित्री ने बताया, ‘‘यह हमला मेरे ऊपर अचानक हुआ था. उस समय वहां मुझे बचाने के लिए कोई नहीं था, लेकिन मैं ने मगरमच्छ से जूझते हुए एक कटोरे और चमचे से ही उस पर हमला कर दिया. अपने ऊपर हमला होते देख मगरमच्छ उलटे पैर भागा. तब जा कर मेरी जान बच सकी. ‘‘मगरमच्छ मेरे ऊपर अचानक कूदा था. वह मुझे पानी में दूर तक खींच ले गया. तब मैं ने उस के माथे व आंख पर चमचे से प्रहार किया, जो उसे जोर से लगा और वह मुझे छोड़ कर पीछे की ओर हटा.’’
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तरकीब
मछली, मखाना व सिंघाड़ा साथसाथ
पटना : अब तालाबों में किसान एकसाथ 3 चीजों का उत्पादन कर सकेंगे और ज्यादा फायदा उठा सकेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पिछले 4 सालों से उत्तर बिहार के किसानों को मखाने के साथसाथ मछली और सिंघाड़े का समेकित उत्पादन करने के लिए जागरूक कर रहा?है और ट्रेनिंग भी दे रहा है. इस दौरान केंद्र ने इस प्रयोग पर करीब 25 लाख रुपए खर्च किए, पर महज 23 हेक्टेयर जलक्षेत्र में ही समेकित खेती करने में कामयाबी मिल सकी है. कृषि वैज्ञानिकों का दावा?है कि अगर बिहार के सभी मखाना पैदा करने वाले किसान मखाने के साथ सिंघाड़े और मछली का उत्पादन शुरू कर दें, तो उन की आमदनी 2 गुनी हो सकती है. फिलहाल प्रयोग के तौर पर दरभंगा जिले और उस के आसपास के 23 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े का उत्पादन किया गया है. गौरतलब है कि उत्तर बिहार के 13 हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती की जाती?है. इन सभी तालाबों और पोखरों में समेकित खेती करने के लिए किसानों को जागरूक बनाया जा रहा?है. बिहार में कुल जलक्षेत्र 3लाख 61 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना सेंटर और दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बात उभर कर सामने आई?है कि 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में अगर केवल मखाने की खेती की जाती?है, तो प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपए की आमदनी होती है. इतने ही जलक्षेत्र में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े का उत्पादन भी किया जाए तो आमदनी की रकम 80 हजार रुपए तक हो सकती?है.
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तबाही
कोमेन का कहर : हजारों मकान तबाह
कोलकाता : तेज बारिश और चक्रवाती तूफान के आने से एक तरफ लोगों का जीना मुहाल हो जाता है, वहीं रोटी खाने के भी लाले पड़ जाते हैं. मवेशी मरते हैं, सो अलग. पिछले दिनों आए कोमेन नामक चक्रवाती तूफान ने पश्चिम बंगाल में कहर बरपा दिया. हजारों लोग बेघर हो गए, वहीं पशुओं के लापता होने से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. पश्चिम बंगाल के गांगेय इलाकों में तेज हवाओं के साथ जम कर बारिश हुई. इस दौरान तमाम घर टूटे, हजारों पेड़ उखड़ने के साथ ही बिजली के खंभे भी उखड़ गए. इस वजह से सड़क व रेल यातायात भी काफी प्रभावित हुआ. चक्रवाती तूफान का असर बंगलादेश के अलावा पश्चिम बंगाल के हावड़ा, उत्तर 24 परगना व नदिया जिले में सब से ज्यादा हुआ. इस तूफान के चलते कई लोगों के मरने की खबर है.
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मुहिम
बिहार में जोरशोर से शुरू हुई समेकित खेती
पटना : बिहार में जैविक खाद के इस्तेमाल की मुहिम को कामयाबी मिलने के बाद अब उसी तर्ज पर समेकित खेती को ले कर भी मुहिम शुरू की गई है. गौरतलब?है कि 4-5 साल पहले भी राज्य सरकार ने समेकित खेती की शुरुआत की थी, पर इस की रफ्तार काफी धीमी रही. अब इसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर लिया गया है. कृषि मंत्री विजय चौधरी का दावा है कि समेकित खेती के जरीए 1 एकड़ खेत का मालिक भी खेती से अपने समूचे परिवार का पेट भर सकेगा और अपनी सुखसुविधाओं पर भी रकम खर्च कर सकेगा. लोकल जरूरतों के हिसाब के आधार पर खेती की जाएगी. जलजमाव वाले इलाकों में मछलीपालन के साथ बकरीपालन और मुरगीपालन के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा. किसानों को सिखाया जाएगा कि कम जमीन में भी ज्यादा से ज्यादा चीजों की खेती कर के बेहतर नतीजे कैसे हासिल किए जा सकते हैं. बिहार में श्री तकनीक के जरीए धान और गेहूं का रिकार्ड तोड़ उत्पादन करने के बाद खेती और पैदावा को बढ़ावा देने के लिए समेकित खेती को ले कर किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने की मुहिम शुरू की गई है.
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मदद
300 करोड़ की राहत
नई दिल्ली : स्वतंत्रता दिवस से ऐन पहले केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 300 करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया. यह रकम किसानों को कम कीमत पर डीजल और बीज मुहैया कराने जैसे कामों पर खर्च की जाएगी. दरअसल केंद्र सरकार का यह कदम सूखे से खरीफ की फसल को बचाने की खातिर उठाया गया?है. सरकार की ऐसी राहतों से किसानों का काफी हद तक भला तो होता ही है, बशर्ते सब कुछ कायदे से किया जाए.
खोट
डोमिनोज के रेस्टोरेंट में गड़बड़ी
अमरोहा : खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफडीए) ने जुबिलेंट फूड वर्क्स लिमिटेड के गजरौला स्थित डोमिनोज पिज्जा रेस्टोरेंट पर जांच की कार्यवाही की. इस रेस्टोरेंट से लिया गया टोमैटो सास स्नैक्स ड्रेसिंग का सैंपल कोलकाता की प्रयोगशाला की जांच में असुरक्षित (गड़बड़) पाया गया. नतीजतन एफडीए ने रेस्टोरेंट का लाइसेंस सस्पेंड कर के बिक्री पर रोक लगा दी.
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गायब
फिर रुलाने लगा प्याज
पटना : बरसात का मौसम शुरू होते ही बिहार की मंडियों से प्याज गायब हो चुका?है, जिस से उस की कीमतों में जबरदस्त उछाल आ गया है. थोक मंडी में प्याज की कीमतों में प्रति क्विंटल 300 रुपए तक का इजाफा हो गया है. खुदरा बाजार में प्याज का भाव 20-22 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ कर 30-32 रुपए तक हो गया?है. प्याज के कारोबारी कहते हैं कि बरसात शुरू होते ही बड़े व्यापारी प्याज को गोदामों में बंद कर देते हैं और खेतों में पानी भरने के बाद मनमानी कीमतों पर प्याज बेचते हैं. पटना की नासिक से ट्रक के जरीए प्याज बिहार आता है और बरसात के मौसम में ज्यादा नमी होने से करीब 25 फीसदी प्याज रास्ते में ही सड़ जाता है. पटना और उस के आसपास के इलाकों में रोजाना 150 टन प्याज की खपत होती है और फिलहाल 100 टन प्याज ही बाजार में आ रहा है. आलूप्याज व्यवसायी संघ के सचिव शंभू प्रसाद कहते हैं कि मुजफ्फरपुर बाजार समिति में प्याज का थोक भाव 1700 से 1900 रुपए प्रति क्विंटल है. उसे मंडियों तक पहुंचाने में करीब 150 रुपए भाड़े पर खर्च होते हैं. इस के बाद भी प्याज का अधिकतम भाव 1850 से 2050 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए. लेकिन थोक बाजार में ही प्याज 2200 से 2350 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा रहा है.
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चटपटा
बाजार में आया पारले नमकीन
मुंबई : आम लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए पारले कंपनी ने बाजार में पारले नमकीन भी उतारा है. पारले नमकीन अच्छी क्वालिटी का होने के साथसाथ खाने में बेहद स्वादिष्ठ है. इस की कीमत भी आम लोगों की सुविधा के अनुसार ही रखी गई है. पारले नमकीन 3 कैटीगरी में हैं यानी मिक्सचर, भुजिया और दाल. खट्टामीठा नमकीन और हौट एन मसालेदार मिक्सचर. दूसरी कैटेगरी में भुजिया है. इस की 2 तरह की किस्में?हैं, भुजिया सेव और आलू भुजिया. तीसरी कैटीगरी में मूंग की दाल है. पारले कंपनी ने मसाला मूंगफली इसी साल बाजार में उतारी है पारले प्रोडक्ट्स के डिप्टी मार्केटिंग मैनेजर बीके राव ने बताया कि हम भारत के बाजारों में अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचना चाहते हैं. भारत में यह किराना स्टोर और खुदरा दुकानों पर मुहैया है.
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गलती
वेज की जगह भेजा नौनवेज पिज्जा
चंडीगढ़ : पिज्जा हट पर एक परिवार को गलत आर्डर के रूप में नौनवेज पिज्जा भेजना काफी महंगा सौदा साबित हुआ. चंडीगढ़ कंज्यूमर फोरम ने पिज्जा हट पर उस परिवार को 30 हजार रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. इस आदेश के बाद अब पिज्जा के शौकीनों को औनलाइन आर्डर भेजने से पहले अच्छी तरह सोचना पड़ेगा.चंडीगढ़ की अचल जैन ने 8 अक्तूबर, 2014 को कंज्यूमर फोरम में इस पिज्जा हट के खिलाफ शिकायत की थी. शिकायत में लिखा था कि उन्होंने पिज्जा हट से औनलाइन और्डर कर वेज पिज्जा मंगवाया था. इसे सही समय पर भेज भी दिया गया, लेकिन पिज्जा खाने पर पता चला कि वह वेज नहीं नौनवेज पिज्जा है. मामले की सुनवाई के दौरान पिज्जा हट ने कई दलीलें दीं, लेकिन कंज्यूमर फोरम किसी भी बहस से सहमत नहीं हुआ. कंज्यूमर फोरम ने पिज्जा हट को आर्डर प्लेस करने वाले परिवार को वेज पिज्जा आर्डर करने के बाद उन से नौनवेज पिज्जा के वसूले गए 605 रुपए लौटाने और परिवार को 30 हजार रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.
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तरकीब
बंदूक के जरीए वसूला जाएगा कर्ज
भोपाल : ग्वालियरचंबल इलाके में जिस बंदूक को लोग अपनी शान मानते हैं, वही बंदूक अब उन की गले की फांस बनती नजर आ रही है. सहकारी बैंकों से कर्ज ले कर वापस न करने वाले बकायादारों पर ग्वालियर के जिला कलेक्टर ने अब सख्ती दिखाई है. ग्वालियर के कलेक्टर ने बैंकों का पैसा वापस दिलाने के लिए फरमान जारी किया है कि जिन लोगों ने सहकारी संस्थाओं का पैसा नहीं लौटाया है, उन के हथियारों के लाइसेंस निलंबित कर दिए जाएं.कलेक्टर के इस फरमान से उन लोगों में हड़कंप मच गया है, जो सहकारी संस्थाओं का पैसा ले कर डकार चुके हैं. कलेक्टर ने आदेश दिया है कि जिन लोगों ने कर्ज नहीं लौटाया है, उन के लाइसेंस तत्काल निलंबित कर दिए जाएं जानकारी के मुताबिक, हथियार लाइसेंसधारी बकायादारों को पहले कारण बताओ नोटिस भेजा जाएगा. अगर उन्होंने सही जानकारी नहीं दी और कर्ज की रकम नही लौटाई, तो उन के हथियार के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे. ग्वालियर के कलेक्टर का यह तरीका काबिलेतारीफ व अलग किस्म का है. यकीनन, इस तरीके का काफी माकूल असर बकायादारों पर पड़ेगा. कलेक्टर ने अपना पैना दिमाग लगा कर जो तरकीब निकाली है, वह वाकई कारगर साबित होगी. इस तरकीब से दूसरे अफसर भी नसीहत ले सकते हैं.
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खोज
लाजवाब है ठंडा सोफा
अहमदाबाद : जी हां, यह बात सच है कि सपने दिन में देखने से ही पूरे होते हैं. रात में उन सपनों को सोचसोच कर नींद नहीं आती, जब तक मुकाम हासिल नहीं होता. यह कमाल कर दिखाया है गुजरात के एक मैकेनिक ने. उन्होंने एक ऐसा सोफा तैयार किया है, जिस में एयरकंडीशनर फिट है. ऐसे सोफे का इस्तेमाल घर से बाहर होने वाले जलसों में किया जा सकता है और यह कम बिजली की खपत करता है. गांधीनगर के रहने वाले दशरथ पटेल ने यह सपना साकार किया है. वे एयरकंडीशनर रिपेयरिंग का काम करते हैं. कुछ साल पहले उन के मन में ऐसा एयरकंडीशनर वाला सोफा तैयार करने का खयाल आया. नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डिजाइन नेउन की भरपूर मदद की. दशरथ पटेल के मुताबिक, पहली बार उन्होंने साल 2008 में सोफे में एयरकंडीशनर लगाने के बारे में सोचा. पहली बार जो सोफा बनाया, उस का वजन 175 किलोग्राम हो गया. इस के बाद उन्होंने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय की डिजाइन क्लिनिक योजना के डिजाइनर की मदद ली. उस के बाद जो सोफा तैयार हुआ, उस का वजन 35 किलोग्राम था.
एनआईडी के छात्र रहे अंकित व्यास ने दशरथ पटेल की इस काम में काफी मदद की. अंकित व्यास अहमदाबाद में एक डिजाइन स्टूडियो चलाते हैं. दशरथ पटेल ने बताया कि वे एयरकंडीशनर लगे सोफे को 1 लाख से सवा लाख रुपए तक में बेचेंगे. यह सोफा एक स्पिलिट एसी के तौर पर काम करेगा. सोफे के अंदर एक यूनिट पाइप के जरीए बाहर के एक यूनिट से जुड़ा होगा. इस में ठंडी हवा सोफे के हाथ रखने वाले हिस्से से निकलेगी. दशरथ व्यास ने जानकारी देते हुए बताया कि यह घरेलू एसी की ही तरह काम करता है, जो रिमोट कंट्रोल से चलता है.
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तकनीक
कलेंडर बताएगा धान कब बोएं
कानपुर : सुनने में भले ही अटपटा लगे, पर सच यही है कि मौसम वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कलेंडर तैयार किया है, जो धान के बारे में सटीक जानकारी देगा. अगर किसान इस कलेंडर के मुताबिक धान की खेती करें, तो उन्हें नुकसान न के बराबर होगा.बता दें कि धान की फसल 7 चरणों में तैयार होती है. ये चरण हैं नर्सरी तैयार करना, रोपाई करना, कल्ले निकलना, बाली निकलना, फूल आना, दुग्धावस्था और पुख्तावस्था. जून से अक्तूबर तक के इन तमाम चरणों में तापमान, बारिश और नमी अलगअलग होनी चाहिए. कलेंडर के मुताबिक अगर किसान धान की खेती नहीं करेंगे, तो फसल का बरबाद होना तय है. इस के अलावा धान के खेत में बीमारी लगने व कीडे़ लगने की गुंजाइश ज्यादा रहती है. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विभाग ने मध्यम अवधि की धान की फसल के लिए एक कलेंडर बनाया है. हैदराबाद में बनाए गए इस कलेंडर में धान की फसल के लिए बारिश, तापमान व नमी की उचित मात्रा बताई गई है. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर किसानों को समय रहते सारी जरूरी बातों की खबर दे दी जाए, तो वे धान की फसल को बचा सकते हैं.
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फरेब
ईंट वाले सरकार को लगा रहे चूना
पटना : बिहार में फिलहाल ईंटभट्ठे को चलाने और उन पर नजर रखने के लिए सरकार की कोई ठोस नीति नहीं है, जिस से लगभग 50 फीसदी भट्ठे वाले सरकार को राजस्व का भुगतान नहीं करते हैं. राजस्व की चोरी करने वालों पर मुकदमा करने पर विभाग का काफी समय और पैसा बरबाद हो जाता है. ईंट बनाने वालों पर नकेल कसने के लिए सरकार पिछले 2 सालों से बालू नीति की तर्ज पर ईंट नीति बनाने की कवायद में लगी हुई?है, लेकिन अभी तक इस की फाइलें टेबलों के चक्कर ही लगा रही है. खनन एवं भूतत्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक विभाग ने नई ईंट नीति का खाका तैयार कर लिया है. इस नीति के लागू होने के बाद ईंट भट्ठे का कारोबार चालू करने से पहले खनन एवं भूतत्व विभाग से रजिस्ट्रेशन कराना होगा और इस के लिए करीब 5 हजार रुपए की फीस वसूली जाएगी. इस के अलावा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी भी लेनी पड़ेगी.
गौरतलब है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन विभाग ने ईंट भट्ठों के संचालन के लिए कई नियम बना रखे?हैं, पर उन का सही तरीके से पालन नहीं हो पाता है. ईंट के लिए 2 मीटर से ज्यादा मिट्टी नहीं खोदनी चाहिए और खनन के बाद गड्ढे को?भरवाने का काम भी करना होता?है. जिस जगह पर मिट्टी खोदने का काम करना हो, उसे चारों तरफ से घेरना जरूरी?है. भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के इलाज का पूरा इंतजाम भी होना चाहिए. संरक्षित स्थानों से 1 किलोमीटर के दायरे में ईंटभट्ठा नहीं होना चाहिए. सार्वजनिक जगहों से मिट्टी खनन क्षेत्र की दूरी कम से कम 15 मीटर होनी चाहिए. हालात को देखते हुए ईंट नीति को जल्दी से जल्दी बना कर लागू किया जाना बेहद जरूरी?है, तभी ईंट बनाने वालों की मनमानी पर लगाम लगेगी.
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योजना
कृषि उत्पाद बेचने की नई नीति
पटना : बिहार के किसानों की कमाई को बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों की मार्केटिंग की नई नीति बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. इस नीति के बनने के बाद राज्य के किसान देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने उत्पादों को बेच सकेंगे. नई नीति बनाने का जिम्मा बिहार एग्रीकल्चर मैनेजमेंट एंड एक्सटेंशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (बामेति) को सौंपा गया?है.
बामेति माहिरों से बात कर के और सेमिनारों का आयोजन कर के इस मसले पर लोगों की राय ले रही है. राज्य में कृषि उत्पादन बाजार समितियों को भंग करने के बाद कृषि उत्पादों को बाजार मुहैया कराने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. पिछले कुछ सालों से जैव उत्पादों की पैदावार में भी तेजी से इजाफा हुआ है, लेकिन उन की मार्केटिंग का कोई पक्का इंतजाम नहीं?है. मिसाल के तौर पर मशरूम और बेबीकार्न जैसे उत्पादों की अच्छी कीमत किसानों को नहीं मिल रही है. अच्छी कीमत न मिलने की वजह से कई किसान तो बेबीकार्न का उत्पादन करना छोड़ चुके हैं. पटना के संपतचक गांव के किसान पुलक राम कहते?हैं कि 4 साल पहले उन्होंने बेबीकौर्न का उत्पादन करना शुरू किया, लेकिन वह बाजार में बिक ही नहीं पाता था, जिस से उन की काफी पूंजी डूब गई. सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया?था कि पारंपरिक फसलों के बजाय बेबीकौर्न की खेती से किसानों को काफी मुनाफा होगा. बामेति के निदेशक गणेश राम ने बताया कि जल्द ही बिहार के कृषि उत्पादों को स्थानीय बाजार के साथसाथ राष्ट्रीय बाजार भी मुहैया कराया जाएगा. इस के साथ ही 11 जिलों में नई सुविधाओं से लैस कृषि बाजार बनाए जाएंगे.
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रोक
मिडडे मील में दूध बंद
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मिडडे मील योजना के तहत हर बुधवार को तमाम परिषदीय स्कूलों के बच्चों को 200 मिलीलीटर दूध बांटने का ऐलान किया था. उसी के मुताबिक यह योजना चालू कर दी गई थी. लेकिन दूध पीने से जबतब इन स्कूलों के बच्चों के बीमार होने की शिकायतें मिलने लगीं. कई स्कूलों में दूध की जगह कोई दूसरी चीज बांट कर खानापूरी की जा रही?है.
इन्हीं गड़बडि़यों और शिकायतों की वजह से यह दूध योजना बंद होने की कगार पर पहुंच गई?है. अब दूध की जगह पर छाछ, दही, मक्खन, केला या कोई दूसरा पौष्टिक पदार्थ देने के बारे में विचार किया जा रहा?है. जल्दी ही शासन को इस बारे में नया प्रस्ताव भेजा जाएगा. सूत्रों के मुताबिक उच्च स्तर पर हुई बैठक में बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से कहा गया? कि वे दूध की जगह दूसरी पौष्टिक चीजों के बारे में विचार कर के सुझाव पेश करें. इस के बाद मुख्यमंत्री से इजाजत ले कर दूध की योजना बंद कर के उस की जगह दूसरी चीजों को बांटा जाएगा.
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झटका
बिहार में तेल कारोबार को लगा चूना
पटना : बिहार में हर साल 12 लाख टन खाद्य तेलों की खपत होती?है और राज्य के तेल कारखानों में 9 लाख टन तेल का उत्पादन होता है. इस के बाद भी बिहार में बने तेल की खपत केवल 3 लाख टन ही हो पाती?है, जिस से तेल के कारखानों पर बंदी की तलवार लटकने लगी है. तेल उत्पादकों का कहना है कि बिहार में इतने तेल का उत्पादन होता?है कि राज्य में उस की खपत आसानी से हो सकती है, लेकिन दूसरे राज्यों से तेल की आवक से राज्य के तेल कारोबार पर काले बादल मंडरा रहे?हैं. पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से बड़े पैमाने पर खाद्य तेल बिहार आते हैं. बिहार इंडस्ट्री एसोसएिशन के अध्यक्ष अरुण अग्रवाल कहते हैं कि पश्चिम बंगाल ने दूसरे राज्यों से आने वाले तेल पर इंट्री टैक्स नहीं लगता?है. इस से वहां का तेल बिहार के तेल के मुकाबले सस्ता होता?है और बिहार का तेल इंट्री टैक्स दे कर महंगा हो जाता है. बिहार में तेल सड़क या रेल के जरीए आता है, जिस से लागत बढ़ जाती है.
सरकार से मांग की गई है कि दूसरे राज्यों से आने वाले तेल पर 2 फीसदी इंट्री टैक्स लगाया जाए, नहीं तो बिहार का तेल उद्योग ठप हो सकता है.
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सलाह
सोयाबीन उगाएं भरपूर पैसा कमाएं
चंडीगढ़ : हरियाणा में किसानों की माली हालत सुधारने के लिए उन का सोयाबीन जैसी फसलों के प्रति रुझान बढ़ाया जाएगा. यह जानकारी प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ ने मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान केंद्र में दी. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ का यह दौरा हरियाणा में सोयाबीन फसल की ज्यादा से ज्यादा पैदावार की संभावना तलाशने के लिए था. उन्होंने बताया कि हरियाणा के दक्षिणी हिस्से में सिंचाई के लिए पानी की कमी है. अगर खरीफ के मौसम में सोयाबीन की खेती की जाए, तो जहां पानी की बचत होगी, वहीं सोयाबीन का अच्छा भाव मिलने से किसानों की माली हालत में भी सुधार होगा. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनकड़ ने बताया कि सोयाबीन की खेती में पारंपरिक फसलों से कई गुना ज्यादा फायदा होगा. अगर प्रदेश के लोग सोयाबीन खाएंगे, तो वे सेहतमंद भी रहेंगे.
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योजना
धान के खेतों की मेंड़ों पर दलहन
पटना : खेतों में धान की फसलें लहलहाएंगी और खेतों की मेंड़ों पर दालें उगाई जाएंगी. दलहनी फसलों के घटते उत्पादन को ध्यान में रखते हुए बिहार के कृषि विभाग ने नई योजना बना कर दलहनी फसलों की पैदावार को बढ़ाने की कसरत शुरू की है. इस के लिए मेंड़ों पर खेती के लिए अरहर और उड़द की फसलों को चुना गया है. विभाग का दावा है कि इस से जहां समेकित खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दाल के पौधों पर चिडि़यों के बैठने से फसलों का कीटों से बचाव हो सकेगा. इस साल 1 करोड़ टन धान के उत्पादन का लक्ष्य पाने के लिए 25 लाख एकड़ में श्री विधि से धान की खेती की जाएगी. कृषि मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि इस बार खेतों की मेंड़ों पर 2 लाइनों में अरहर और उड़द की दालों की खेती की जाएगी. इस साल इस योजना को प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया?है और इस के कामयाब होने के बाद इसे विस्तार से शुरू किया जाएगा.
श्री विधि से खेती करने और मेंड़ों पर दलहनी फसलों को लगाने वाले समझदार किसानों को प्रति एकड़ 3 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा.
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योजना
खत्म होगी मछली की किल्लत
पटना : बिहार में रोहू मछली की नई किस्म जयंती रोहू से मछलीपालकों की आमदनी में कई गुने का इजाफा होगा और राज्य में मछली उत्पादन तेजी से बढ़ सकेगा. मछली उत्पादन बढ़ने से दूसरे राज्यों से मछली मंगाने की मजबूरी भी काफी कम हो सकेगी. केंद्रीय मीठाजल मत्स्य अनुसंधान संस्थान की ताजा रिसर्च का परीक्षण कामयाब रहा है. परीक्षण में पाया गया कि साधारण रोहू मछली के मुकाबले उस की नई किस्म यानी जयंती रोहू बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ती है. सामान्य रोहू की तुलना में इस का वजन डेढ़ गुना ज्यादा होता है. राज्य सरकार किसानों को इस नई किस्म की मछली के बीज मुहैया कराएगी. इस मछली का रंग सुनहरा होता है और स्वाद सामान्य रोहू से काफी अच्छा होता है. मत्स्य महकमे के निदेशक निशात अहमद ने बताया कि राज्य के सभी इलाकों के तालाबों में जयंती रोहू का उत्पादन किया जा सकता है. साधारण रोहू के मुकाबले इस का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है और महाशीर मछली की नई किस्में विकसित करने का काम भी चल रहा है. देश में मछली उपलब्धता का राष्ट्रीय औसत 8.54 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 7.7 किलोग्राम ही?है.
मधुप सहाय, अक्षय कुलश्रेष्ठ और बीरेंद्र बरियार