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भूचाल से बेहाल नेपाल

भूकंप के बाद नेपाल की राजधानी  काठमांडू की सड़कों और गलियों के भयावह मंजर मानो चीखचीख कर कह रहे थे कि ‘अब भी चेत जाओ वरना जान और माल गंवाने के लिए तैयार रहो’. शहर के कोटेश्वर महल्ले के ज्यादातर घर कब्रमें तबदील हो चुके हैं. नेपाल के कई लोगों से बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि नेपालियों ने नेपाल की प्राकृतिक खूबसूरती का जम कर दोहन किया लेकिन उस के बदले में देश को कुछ दिया नहीं. जिस देश की 52 फीसदी कमाई प्राकृतिक नजारों, ऐतिहासिक इमारतों और विदेशी पर्यटकों से होती है,वहां उसे संजो कर रखने की न कोई मंशा है और न ही सरकार की कोई ठोस योजना. पहाड़ों और जंगलों के लिए दुनियाभर में मशहूर नेपाल आज कंक्रीट के बेतरतीब जंगल में बदल चुका है जिस का खमियाजा तो उसे भुगतना ही होगा.

काठमांडू, भक्तपुर, ललितपुर, पोखरा, लुम्बिनी, तिलोत्तमा, भैरवा, बुटवन आदि इलाकों में पर्यटकों की भरमार रहती है. हर साल 8 से 9 लाख विदेशी पर्यटक नेपाल घूमने आते हैं. इन पर्यटकों से नेपालियों को भारी कमाई होती है. लेकिन अब तसवीर बदल चुकी है. पोखरा घूमने आए नागपुर के पर्यटक संजीव कुमार कहते हैं कि वे पोखरा में बडे़ पैमाने पर छोटेछोटे गैस्टहाउस और पेइंग गैस्टहाउस खुले हुए हैं. वहां तकरीबन हर घर छोटा गेस्टहाउस बना हुआ है. गेस्टहाउस वाले पर्यटकों को ठगने और लूटने के धंधे में लगे हुए हैं.

ठगी और लूट

संजीव बताते हैं, ‘‘जब मैं पोखरा बस अड्डे पर उतरा तो सैकड़ों की तादाद में टैक्सी वालों ने घेर लिया. कोई 300 रुपए में गेस्टहाउस, कोई 200 रुपए में गैस्टहाउस…चिल्ला रहा था. बस से उतरे कई पर्यटकों का जबरन सामान ले कर वे अपनी टैक्सी में रख लेते हैं. मेरा भी सूटकेस ले कर एक टैक्सी वाले ने अपनी टैक्सी में रख लिया और मुझे गैस्टहाउस पहुंचा दिया. गैस्टहाउस में 3 दिन ठहरा और रात को जब वहां से निकलने लगा तो बिल लाने के लिए कहा. बिल देख कर तो मेरा सिर चकरा गया. 300 रुपए रोजाना किराए की बात हुई थी और बिल 800 रुपए रोज के हिसाब से बनाया गया था. इस बारे में पूछने पर गेस्टहाउस मालिक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. टैक्सी वाला ही मकानमालिक यानी गेस्टहाउस का मालिक था और वह शराब के नशे में था. जब मैं ने उस से कहा कि 300 रुपए किराया बताया गया था पर 800 रुपए का बिल क्यों बनाया, तो उस ने छूटते ही कहा, ‘‘अगर 800 रुपए किराया बताया जाता तो आप आते ही नहीं. यह तो बिजनेस ट्रिक है.’’

नेपालियों की इसी सोच ने नेपाल को चौपट कर रखा है. यह तो एक बानगी है. नेपाल में टैक्सी वाले और अपने घरों को गेस्टहाउस बना कर लोग पर्यटकों से मनमाना किराया वसूलते हैं. इस बारे में पोखरा में गेस्टहाउस चलाने वाला डुंगडुग उरांव कहता है कि पर्यटकों के लिए कोई पक्का रेट तय नहीं होता है. जैसा ग्राहक होता है उस से वैसा ही वसूला जाता है. काठमांडू से ले कर नेपाल के हर इलाके में मलबे के ढेर में तबदील सैकड़ों बड़े और छोटे मकानों की हर ईंट बताती है कि उस के मालिकमकान ने उस के बूते जेब तो खूब भरी पर मकान के रखरखाव पर फूटी कौड़ी भी कभी नहीं खर्च की. भूकंप का  झटका लगने के बाद ढह चुके मकानों ने अपने मालिकों को भूकंप से भी बड़ा  झटका दिया है. पोखरा में थापा गैस्टहाउस चलाने वाले अनिल थापा की मानो दुनिया ही उजड़ गई है. 7 लोगों के परिवार को चलाना उस के लिए सब से बड़ी मुसीबत बन गई है क्योंकि उस का गेस्टहाउस जमींदोज हो चुका है.

जंगलों का सफाया

पटना के बिल्डर ज्ञानमणि सहाय बताते हैं कि उन्होंने कुछ साल पहले नेपाल में अपार्टमैंट बनाने की कोशिश की थी, पर वहां के जमीन मालिकों की अजबगजब डिमांड की वजह से उन्होंने वह आइडिया छोड़ दिया. साल 2008-09 के बीच केवल काठमांडू में करीब 2 लाख प्लौटों की खरीद और बिक्री हुई थी. पिछले 10-12 सालों के बीच जमीनों और मकानों के भाव में 300 गुना का इजाफा हो चुका है. कमाई के चक्कर में पहाड़ तोड़े जा रहे हैं और जंगलों का सफाया किया जा रहा है. ऐसे में नेपाल में तबाही मचना हैरानी की बात नहीं है. नेपाल में हर साल करीब 8 लाख पर्यटक आते हैं. गाइड राम सिंह बताता है कि हर साल अप्रैल से ले कर अगस्त तक सैलानियों की भरमार रहती है. सैलानियों की वजह से ही नेपालियों की रोजीरोटी चलती है. भूकंप ने हजारों नेपालियों की रोजीरोटी छीन ली है. दरबार स्क्वायर, धरहरा टावर, जानकी मंदिर समेत नेपाल की 7 ऐतिहासिक इमारतें और धरोहर जमीन में मिल चुकी हैं. दरबार स्क्वायर को तो यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर रखा था. इस का असर नेपाल की माली हालत पर पड़ेगा और इस से उबरने में देश को पचासों साल लग जाएंगे. नेपाल के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था 1,178 अरब रुपए की है. इस में से 52.2 फीसदी पर्यटन, 33.7 फीसदी खेती और 14 फीसदी कैसीनों, बिजली व अन्य उत्पादनों से आता है. इस के अलावा 1 फीसदी नेपाल से बाहर रहने वाले नेपाली अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा नेपाल भेजते हैं.

काठमांडू के भृकुटिमंडपम महल्ले में स्थित नेपाल पर्यटन बोर्ड के दफ्तर का एक मुलाजिम नाम न छापने का भरोसा मिलने के बाद मायूस हो कर कहता है कि भूकंप की चोट से उबरने में नेपाल को 50 साल से ज्यादा का वक्त लग जाएगा. अप्रैल महीने में तो पर्यटन सीजन की शुरुआत ही हुई थी, और तुरंत भूचाल आ गया. इस से कई पर्यटनस्थल ध्वस्त हो गए हैं, वहीं पर्यटकों को अब यहां आने से डर भी लगेगा. पर्यटकों का भरोसा दोबारा बहाल होने में काफी समय लग जाएगा. ऐसी हालत में नेपाल की माली हालत का बद से बदतर होना तय है. अभी कुछ साल पहले ही तो नेपाल ने नए सिरे से अपना कदम जमाना शुरू किया था क्योंकि पिछले 10 सालों तक चले गृहयुद्ध और माओवादियों के आतंक से नेपाल बुरी तरह टूट चुका था. पर्यटक यहां आने से कतराने लगे थे. विदेशी पर्यटकों में भरोसा जगाने के लिए नेपाल सरकार ने वर्ष 2011 को पर्यटन वर्ष के रूप में मनाया था और 10 लाख पर्यटकों के नेपाल आने का लक्ष्य तय किया था. इस में नेपाल काफी हद तक कामयाब होने लगा था तो भूकंप ने उसे फिर से जीरो पर पहुंचा दिया है.

पर्यटन उद्योग पर चोट

नेपालियों से ज्यादा विदेशी पर्यटकों पर भूकंप की मार पड़ी है. अपने घर और देश से दूर ऐसी आपदा में फंस कर उन की मानसिक हालत डगमगा गई है. पटना के रमेश सिंह अपनी आपबीती सुनाते हुए बताते हैं कि वे अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने नेपाल पहुंचे थे. जिस समय भूकंप आया हम लोग काठमांडू के धरहरा टावर के पास थे. मेरी आंखों के सामने टावर ताश के पत्तों की तरह पलक  झपकते ही ढह गया. चारों ओर अफरातफरी मच गई. उन लोगों को कुछ सम झ में ही नहीं आया कि वे क्या करें. एक टैक्सी वाले से अपने होटल चलने की गुजारिश की तो उस ने 5 हजार रुपए किराया मांगा. नेपाल के पोखरा जिले में छोटा सा होटल चला कर अपने परिवार का गुजारा करने वाले विवेक पासवान कहते हैं कि 25 अप्रैल को आए भूकंप में उन का सबकुछ तबाह हो गया. होटल का भवन भूकंप की वजह से गिर गया और उस की बीबी प्रभा पासवान घायल हो गई. पोखरा के अस्पतालों में भारी भीड़ को देखते हुए वे इलाज के लिए काठमांडू के त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षण अस्पताल पहुंचे. विवेक आगे बताते हैं कि वे अपने सभी ग्राहकों के लिए दोपहर के खाने के इंतजाम में लगे हुए थे कि अचानक रसोई की एक दीवार तेज धमाके के साथ गिर गई. गरम खाने की वजह से वहां मौजूद 6 लोग जख्मी हो गए. ईंट की दीवार गिरने से 2 लोगों का सिर फट गया. काठमांडू का हर छोटाबड़ा अस्पताल घायलों और लाशों से पटा हुआ है. वे पिछले 25 सालों से नेपाल में रह रहे हैं पर ऐसी तबाही कभी नहीं देखी.

नेपाल में आए भूकंप की वजह से भारत समेत पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार और चीन में  झटका दर  झटका लगा और वहां भी जान और माल का काफी नुकसान हो गया. नेपाल के 26 जिलों में भूकंप ने काफी नुकसान पहुंचाया जबकि पश्चिमी हिस्से में इस का खास असर नहीं हुआ. हजारों लोगों की जान गंवाने के बाद नेपाल के सामने सब से बड़ी चुनौती भूकंप के प्रकोप से बच गए लोगों और देश के पूरे सिस्टम को दोबारा पटरी पर लाने की है. नेपाल से लौट कर आए बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी प्रखंड का रहने वाला मजदूर विमल साहनी बताता है कि वहां खाने के सामान और पानी की बहुत कमी है. सारी दुकानें बंद हैं. बिजली नहीं रहने की वजह से रात में परेशानी कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है. भूकंप के कुछ देर बाद ही काठमांडू के बीर अस्पताल के सामने लाशों का ढेर लग गया और रोतेचीखते घायलों ने पूरे माहौल को दर्द से भर दिया था.

हिमालय के एवरेस्ट शिखर के आसपास बर्फ की चट्टानों के टूट कर गिरने से 22 पर्वतारोही बर्फ में दफन हो गए. इस के साथ ही सैकड़ों विदेशी पर्यटक और गाइड लापता हैं. भूकंप के समय 1 हजार पर्वतारोही बेस कैंप में थे. समुद्रतल से 17 हजार 500 फुट ऊपर बने बेस कैंप में सब से ज्यादा तबाही मची. 19 हजार 500 फुट ऊपर कैंप नंबर-1 में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. 29 मई, 1953 को सब से पहले एवरेस्ट फतह करने वाले न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी के बेटे पीटर हिलेरी भी अपने 12 लोगों की टीम के साथ एवरेस्ट पर चढ़ाई कर रहे थे. वे हिमालय के गोरक शेप क्षेत्र में सुरक्षित रहे.

सब से बड़ी तबाही

पिछले 81 सालों के दौरान नेपाल में भूकंप से इस बार सब से बड़ी तबाही हुई है.25 अप्रैल की दोपहर 11 बज क 56 मिनट पर आए पहले भूकंप के  झटके की तीव्रता 7.9 आंकी गई और उस के बाद आए 25  झटकों की तीव्रता 4.5 के आसपास रही. भूकंप की वजह से नेपाल में जान और माल के साथ वहां के पर्यटन स्थलों को भी भारी नुकसान हुआ है. नेपाल का कुतुबमीनार कहा जाने वाला सालों पुराना 9 मंजिला धरहरा टावर पल भर में जमींदोज हो गया. 1832 में बने इस टावर को 1934 के भूकंप में हलका नुकसान हुआ था. 203 फुट ऊंचा धरहरा टावर काठमांडू का मुख्य टूरिस्ट स्पौट था. उस में 213 घुमावदार सीढि़यां थीं और उस की 8वीं मंजिल की बालकनी से समूचे काठमांडू का नजारा मिलता था. नेपाल की करीब 100 ऐतिहासिक इमारतों समेत 15 हजार से ज्यादा मकान ध्वस्त हो गए और करीब 66 लाख लोग इस से प्रभावित हुए हैं. भूविज्ञानी बी एन सिंह कहते हैं कि नेपाल को दुनिया का सब से ज्यादा भूकंप वाली आशंका का देश माना जाता है. हिमालय की तराई में बसा नेपाल प्राकृतिक तौर पर तो धनी है लेकिन हिमालय ही उस के लिए सब से बड़ा खतरा भी है. उस क्षेत्र में पृथ्वी की इंडियन प्लेट (भारतीय भूगर्भ परत) यूरेशियन प्लेट के नीचे दबती जा रही है, जिस से हिमालय पर्वत ऊपर की ओर उठता जा रहा है. इस से चट्टानों में विचलन पैदा होती है जो भूकंप के रूप में दुनिया को दिखाई देती है. पटना के मौसम विभाग के निदेशक ए के सेन बताते हैं कि नेपाल के उत्तरपश्चिम में 75 किलोमीटर की दूरी पर भूकंप का केंद्र था. इस का लौंगिट्यूड 28.1 डिगरी उत्तर और लेटीट्यूड 84.6 डिगरी पूरब था. रिक्टर स्केल पर इस की तीव्रता 7.5 थी और इस का केंद्र जमीन के 10 किलोमीटर नीचे था.

पर्यावरण मामलों के जानकार प्रोफैसर आर के सिन्हा बताते हैं कि भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन हिमालय का पुराना स्वभाव रहा है. हिमालय से इंसान को कई सुविधाएं और संपदाओं के साथसाथ कई खतरे भी मिले हैं. इंसान खतरों के प्रति लापरवा रह कर हिमालय का दोहनशोषण ही करता रहा है. हिमालय क्षेत्र में भेड़चाल की तरह बनती पनबिजली योजनाओं ने खतरे को कई गुना ज्यादा बढ़ा दिया है. पर्यावरण को बचाने की गुहार लगाने वाली संस्थाएं पिछले कई सालों से चिल्ला रही हैं कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान आदि देश हिमालय क्षेत्रों में कई बांध बना रहे हैं जिन से अगले कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र में करीब 400 विशाल जलाशय बन जाएंगे. इस में सब से ज्यादा 292 बांध भारत बना रहा है. इस के अलावा चीन 100, नेपाल 13, पाकिस्तान 9 और भूटान 2 बांध बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. इस से पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है, साथ में इंसानी जानमाल का खतरा भी बढ़ रहा है. इस से भी खतरनाक मसला यह है कि बांधों और पनबिजली योजनाओं को बनाने के लिए हिमालय के क्षेत्रों में जम कर विस्फोट कराए जा रहे हैं, जिस से पहाड़ों में हड़कंप मचना तय है. काठमांडू में प्रैक्टिस करने वाले चार्टर्ड अकाउंटैंट दुर्गा प्रसाद ने बताया कि भूकंप व भूकंप के बाद के 3 दिन नेपाल के लोगों ने भारी दहशत के बीच गुजारे हैं. सड़कों, मैदानों, पार्कों और तंबू के शिविरों में लोग दिनरात गुजार रहे हैं. जिन के घर तबाह हो गए हैं वे तो मजबूरी में खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, लेकिन जिन के घर बचे हुए हैं वे तबाही के खौफनाक मंजर को देखने के बाद अपने घरों के भीतर जाने से डर रहे हैं. इस तबाही से उबरने में नेपाल को कई साल लग जाएंगे. पिछले कई सालों से गृहयुद्ध और माओवादियों के आतंक को  झेलने के बाद अपने पैरों पर खड़ा होने की कवायद में लगे नेपाल को ताजा भूकंप ने फिर से औंधे मुंह गिरा दिया है.

नियमों से खिलवाड़

नेपाल से सटे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत समूचे भारत में भूकंप ने हलचल मचा दी है. बिहार में भूकंप से 63 लोगों की मौत हो गई.1 मिनट 57 सैकंड के भूकंप ने बिहार के बिल्डिंग एक्ट के हकीकत की पोलपट्टी खोल दी. इस के साथ ही, मकान बनाने को ले कर लोगों की लापरवाही व कानून को ठेंगा दिखाने की सोच एवं चलन की भी पोल खुल गई. राजधानी पटना समेत सूबे के हर शहर में बेतरतीब तरीके से बने मकान और नियमों की धज्जियां उड़ा कर बने अपार्टमैंट एक बड़ी तबाही को न्योता दे रहे हैं. इस भूकंप में बिहार में मकानों और अपार्टमैंटों को खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भीतर का इंजीनियर जबजब जागता है तो वे कई मौकों पर कहते रहे हैं कि अगर पटना में तेज भूकंप आया तो जान और माल का बड़ा नुकसान हो सकता है. गौरतलब है कि भूकंप की संवेदनशीलता के मामले में पटना जिला सिस्मिक जोन-4 में आता है, जो काफी जोखिम वाला क्षेत्र माना जाता है. ऐसे क्षेत्र में रिक्टर स्केल पर 8 या उस से ज्यादा आने वाला भूकंप बड़ी तबाही मचा सकता है. पटना के साथ सूबे के 38 में से 23 जिले सिस्मिक जोन-4 में आते हैं. रिटायर्ड इंजीनियर जे के भटनागर बताते हैं कि पटना समेत पूरे राज्य में शहरों को बसाने व बहुमंजिली इमारतों को बनने के नाम पर सरकारें केवल खानापूर्ति करती रही हैं. गलियों में खड़े अपार्टमैंट तबाही को दावत दे रहे हैं. पटना के 80 फीसदी इलाके भूकंप के लिहाज से हाई डैमेज रिस्क जोन में हैं. इस से तेज भूकंप आने पर बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. पटना नगर निगम की रोक के बाद भी अफसरों और बिल्डरों ने सांठगांठ कर गंगा नदी के किनारे कई अपार्टमैंट बना लिए हैं. भूकंप आने पर नरम और महीन बलुई मिट्टी के भरभराने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. इस के साथ ही भवन के भार से नींव के नीचे की मिट्टी दबने लगती है, जिस से भवन के गिरने का खरा रहता है. बिहार का दरभंगा, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, मधुबनी, अररिया, मधेपुरा और किशनगंज जिले नेपाल से सटे हुए हैं, जिस वजह से इन इलाकों में भूकंप का सब से ज्यादा असर और तबाही देखने को मिली. ये जिले सब से खतरनाक सिस्मिक जोन-5 के तहत आते हैं.  

निर्माता मनोज वाजपेयी

कमाई में हिस्सेदारी किसे नहीं पसंद. लिहाजा, एक्टर भी निर्माता बनने लगे हैं. इसी कड़ी में आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार और रणबीर कपूर शामिल हैं. अब मनोज वाजपेयी भी बतौर निर्माता तब्बू के साथ एक फिल्म बना रहे हैं. निर्देशक मुकुल अभयंकर के साथ बन रही इस फिल्म की कहानी थ्रिलर जोनर की है. फिल्म निर्माण बड़ा जोखिम भरा कदम है. फिल्म हिट तो वारेन्यारे वरना कई निर्माताओं के घर, बंगले तक बिक गए. कला को पूंजी के साथ जोड़ कर सफलतापूर्वक निबाह लेना हर एक के वश की बात नहीं. फिर भी मनोज को बधाई.

 

धार्मिक संतों की नौटंकी

जब बाबा रामरहीम की प्रचार की तरह बनाई गई फिल्म एमएसजी रिलीज हुई तो लोगों को लगा कि तथाकथित साधुसंतों और चमत्कारी बाबाओं पर बनी फिल्म में शायद कोई सार्थक संदेश मिलेगा लेकिन फिल्म देखी तो किस्सा वही ढाक के तीन पात वाला. जो धर्म का प्रवचन और चमत्कारों का चूरन समागम सभा व प्रवचन शिविर में दिया जाता है वही फिल्म में करोड़ों रुपए फूंक कर दिया गया. सिलसिला यहीं नहीं थमा, इस के कुछ महीनों बाद ‘गुरु नानक शाह फकीर’ भी रिलीज हुई. अब खबर है कि 1984 दंगे पर आधारित ‘ब्लड स्ट्रीट’, जो अब तक सैंसर में अटकी थी, रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म में संत बलजीत सिंह डादूवाल भी नजर आएंगे. धार्मिक प्रसंगों से भरी ऐसी फिल्में समाज को फिर से जाति, धर्म, कुप्रथाओं की दुनिया में वापस ले जाती दिखती हैं जिस से बाहर आने के लिए कई पीढि़यों ने संघर्ष किया है. अब धर्म के दुकानदार प्रचार का हर हथकंडा अपनाने में लगे हैं. वे फिल्मों, इंटरनैट, ट्विटर, फेसबुक का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं.

विवाद का विज्ञापन

अभिनेत्री ऐश्वर्या राय ने एक ज्वैलरी ब्रैंड के लिए विज्ञापन शूट किया था. विज्ञापन में ऐश के पीछे छतरी लिए एक अश्वेत बालक खड़ा है. विज्ञापन के बाजार में आते ही कुछ संगठनों ने इसे नस्लवादी बताते हुए इसे बैन करने की मांग की. कंपनी ने अपनी साख बचाते हुए न सिर्फ माफी मांग ली बल्कि विज्ञापन भी वापस ले लिया. ऐश्वर्या राय का कहना है कि उस ने जो शूट कराया था उस में अश्वेत बच्चा व छतरी नहीं थी. दरअसल पहले ऐश्वर्या का फोटो शूट हुआ. उस के बाद तकनीकी टीम ने पृष्ठभूमि में उस बच्चे वाली तसवीर लगा कर ऐश्वर्या की तसवीर से जोड़ दिया. यह मामला छोटा है पर इस पर आपत्ति उठाई जानी सही है क्योंकि इस गुलामी प्रथा को महिमामंडित करना और जानेमाने चेहरे के साथ ऐसा करना गलत ही है.

तस्करी मामले में फंसी नीतू

फिल्मजगत का अपराध, अदालत और पुलिस से कोई आज का नाता नहीं है. गाहेबगाहे किसी न किसी कलाकार को गिरफ्तार होते या अदालतों के चक्कर काटते देखा है हम ने. ताजा मामला है कि तेलुगू अभिनेत्री नीतू अग्रवाल का, जिन्हें तस्करी के मामले में संलिप्तता के चलते कुर्नूल जिले से गिरफ्तार कर लिया गया है. मामला कीमती लकडि़यों की तस्करी का है. नीतू पर आरोप है कि उन्होंने तस्करों की मदद की है. इतना ही नहीं, अभिनेत्री ने चंदन तस्करों के खाते में अपने बैंक अकाउंट से 1.05 लाख रुपए की रकम भी ट्रांसफर की थी. लिहाजा, उन के खिलाफ कई धाराओं के तहत न सिर्फ मामला दर्ज किया गया बल्कि अरेस्ट भी कर लिया गया है.

 

सबक सिखाती माधुरी

अभिनेत्री माधुरी दीक्षित शादी के बाद अमेरिका शिफ्ट हो गई थीं. वापसी के लिए इक्कादुक्का फिल्में भी कीं लेकिन बात नहीं बनी. फिर टीवी में रिऐलिटी शोज का रुख किया. यहां आ कर माधुरी को डांस की दुनिया में नई पहचान मिली और अब खबर है कि उन्होंने कोरियोग्राफर टेरेंस लुइस के साथ मिल कर जुगनी नाम से डांस महोत्सव शुरू किया है. इस में नए प्रतिभाशाली डांसरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस में जो कलाकार या डांसर टीवी पर नहीं आना चाहते, उन को प्राथमिकता दी गई. इतना ही नहीं, विजेता को डांस सीखने के लिए स्कौलरशिप की भी सुविधा है. रिटायरमैंट के नाम पर घर बैठने से बेहतर है कुछ न कुछ करते रहना. इस में पहचान व पैसा दोनों मिलता है.     

फिल्म समीक्षा

मार्गरीटा विद अ स्ट्रा

यह फिल्म हिंदीअंगरेजी में मिश्रित है और विदेशी फिल्म समारोहों में फिल्में देखने वालों के लिए सटीक है. फिल्म की नायिका मार्गरीटा मस्तिष्क के पक्षाघात से पीडि़त है. हर वक्त व्हीलचेयर पर बैठी रहती है, ठीक ढंग से बोल नहीं पाती. कुछ भी पीने के लिए उसे स्ट्रा का प्रयोग करना पड़ता है. इसीलिए इस फिल्म का टाइटल ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ रखा गया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ फिल्म की निर्देशिका शोनाली बोस ने 10 साल पहले एक फिल्म बनाई थी- ‘अमु’. उस फिल्म में अभिनेत्री कोंकणा सेन के अभिनय की जम कर तारीफ हुई थी. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ की नायिका कल्की कोचलिन है. वह एक बेहतरीन और उम्दा एक्ट्रैस है, इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए. उस ने कई फिल्मों में यादगार अभिनय किया है. ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रा’ कल्की की अब तक रिलीज हुई फिल्मों से अलग है. जिस तरह ‘ब्लैक’ में रानी मुखर्जी ने अभिनय की ऊंचाइयों को छुआ था, ठीक उसी प्रकार इस फिल्म में कल्की ने कर दिखाया है. मस्तिष्क पक्षाघात के पीडि़त इस किरदार में कल्की ने व्हीलचेयर पर बैठेबैठे संवाद बोल कर अपने चेहरे के भावों को खूबसूरती से दर्शाया है.

फिल्म की कहानी लैला (कल्की कोचलिन) की है जो मानसिक पक्षाघात की शिकार है. वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती है. उस के परिवार में पिता (कुलजीत सिंह), मां (रेवथी) और भाई मोनू (मल्हार खुशू) हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही लैला को गाने लिखने का शौक है. उस की कालेज के ही धु्रव और नीमा से दोस्ती है. उस का ऐडमिशन न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में हो जाता है. न्यूयौर्क में उस की मुलाकात पाकिस्तान मूल की युवती खानुम (सयानी गुप्ता) से होती है. दोनों में दोस्ती हो जाती है. खानुम समलैंगिक है. उसे लैला से इश्क हो जाता है. जब लैला अपने और खानुम के रिश्तों के बारे में मां को बताती है तो मां को बहुत बुरा लगता है. अचानक लैला की मां की कैंसर से मौत हो जाती है और लैला समलैंगिक व पारिवारिक रिश्तों की कशमकश में फंस जाती है. समलैंगिक रिश्तों पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं लेकिन शोनाली बोस ने जिस तरह से धीरेधीरे मानसिक पक्षाघात की रोगी युवती में सैक्स की भावना को उभारा है, वह अलग किस्म की है. निर्देशिका ने लैला के 2 रूप दिखाए हैं. एक तरफ तो वह अपनी बीमारी से जू झ रही होती है वहीं उस के अंदर जब सैक्स की भावनाएं उमड़ती हैं तो उस की खुशी देखने लायक होती है. निर्देशिका ने लैला के परिवार को हर पल खुशमिजाज दिखाया है. लैला के पिता पंजाबी के सिंगर सुखबीर के गानों के कायल हैं तो मां घर के कामकाज के साथसाथ बाहर के काम भी संभालती हैं. यह फिल्म इमोशनल जरूर है परंतु इस पर भावुकता हावी नहीं होने दी गई है. निर्देशन अच्छा है. कल्की की ऐक्टिंग तो अच्छी है ही, सयानी गुप्ता ने भी नैचुरल ऐक्ंिटग की है. कल्की और सयानी गुप्ता के इंटीमेट सीन को विस्तार से फिल्माया गया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. फिल्म का पार्श्व संगीत ठीकठाक है. छायांकन अच्छा है. इस फिल्म की खामी या विशेषता, चाहे जो भी कहें यह अपंगों की यौन इच्छाओं पर आधारित है. जिन के शरीर में भले ही कुछ कमी हो लेकिन उन की यौन भूख भी उतनी ही बलवती होती है जितना खाना, पहनना और सुरक्षात्मक तरीके से रहना. निर्देशक ने केवल एक पहलू रख कर फिल्म को अधूरा कर दिया पर यह पहलू भी दमदार मानना होगा.

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मि. एक्स

जब हम बच्चे थे तो सुनते थे कि आदमी गायब भी हो जाता है और फिर पलक  झपकते वापस अपने स्वरूप में आ जाता है. तब इस तरह की बातें सुन कर रोमांच होता था. और जब इंसान के गायब होने की घटना परदे पर देखी तो हैरानी और बढ़ गई. लेकिन उस वक्त बचपन में यह नहीं सम झ पाए कि यह सब कपोलकल्पित है, इंसानी दिमाग का फितूर है. आदमी गायब नहीं हो सकता. इन्हीं सुनीसुनाई कहानियों पर फिल्मकारों ने कुछ फिल्में भी बनाईं. रामगोपाल वर्मा की ‘गायब’ और अनिल कपूर अभिनीत ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी फिल्में बनीं. विदेशों में भी ‘हौलो मैन’ जैसी फिल्में बनीं. दर्शकों को इस प्रकार की फिल्मों में मजा आने लगा. 60 के दशक में किशोर कुमार की ‘मिस्टर एक्स’ फिल्म ने अच्छा पैसा कमाया. उसी लीक पर चल कर अब विक्रम भट्ट ने ‘मिस्टर एक्स’ बनाई है. इस फिल्म में बिलकुल भी नयापन नहीं है, न ही कोई तकनीकी विशेषता है. फिल्म शुरू होते ही दर्शकों को पता चल जाता है कि क्लाइमैक्स में क्या होगा.

कहानी रघुराम राठौड़ (इमरान हाशमी) और सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) की है. दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और ऐंटी टैररिस्ट डिपार्टमैंट में काम करते हैं. एसीपी भारद्वाज (अरुणोदय सिंह) चीफ मिनिस्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी रघु को देता है, साथ ही वह षड्यंत्र रच कर रघु को चीफ मिनिस्टर को मारने के लिए मजबूर करता है. मजबूरन भरी सभा में रघु चीफ मिनिस्टर को मार डालता है. वह पकड़ कर एक कैमिकल फैक्टरी में लाया जाता है जहां एसीपी और उस के आदमी उस फैक्टरी को उड़ा देते हैं. रघु को मरा जान कर सब वहां से चले जाते हैं परंतु रघु बच जाता है. बुरी तरह जले रघु में एक कैमिकल का रिऐक्शन होता है और वह गायब हो जाता है. वह सिर्फ सूर्य की रोशनी में ही नजर आ सकता है. अब रघु अदृश्य हो कर अपने दुश्मनों का सफाया करता है. विक्रम भट्ट ने अब तक हौरर फिल्में ही ज्यादा बनाई हैं. ‘राज’, ‘हौंटेड’, ‘क्रीचर’ जैसी उस की फिल्में लगभग एक जैसी ही थीं. ‘मि. एक्स’ को 3डी तकनीक में बनाया गया है. हालांकि फिल्म के 3डी इफैक्ट्स अच्छे हैं फिर भी घिसीपिटी कहानी की वजह से फिल्म निराश करती है.

इमरान हाशमी ने फिर से किसिंग सीन दिए हैं. अमायरा दस्तूर इस से पहले एक फिल्म में आ चुकी है. इस फिल्म में उस ने बस काम चला लिया है. अरुणोदय सिंह के चेहरे पर एक्सप्रैशन आ ही नहीं पाते. फिल्म का निर्देशन कमजोर है. विक्रम भट्ट ने सिर्फ 3डी इफैक्ट्स पर ही ध्यान केंद्रित किया है. एनिमेशन दृश्य अच्छे बन पड़े हैं. केपटाउन में कार रेस के दृश्य अच्छे बन पड़े हैं. गीतसंगीत कमजोर है.

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जय हो डैमोके्रसी

जिन दर्शकों ने ‘पीपली लाइव’ फिल्म देखी होगी उन्हें मालूम होगा कि खबरिया चैनल किस प्रकार एक छोटी सी घटना को बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं. ‘जय हो डैमोक्रेसी’ में भी यही सब दिखाया गया है. फिल्म में खबरिया चैनलों पर व्यंग्य किया गया है, साथ ही राष्ट्रीय विपदा के वक्त हमारे राजनेता किस तरह सत्ता की राजनीति करते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला गया है. फिल्म में कौमेडी की काफी गुंजाइश थी, जिसे निर्देशक दिखा पाने में असफल रहा है. फिल्म की शुरुआत तो दिलचस्प तरीके से होती है लेकिन शीघ्र ही सीन दर सीन दोहराव नजर आने लगता है. ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ फिल्म में भी एक छोटी सी घटना को राई का पहाड़ बनाते हुए बौर्डर पर भारतपाक सैनिकों के बीच तनाव और गोलीबारी दिखाई गई थी. इस फिल्म में निर्देशक रंजीत कपूर ने ठीक उसी प्रकार की एक बेवकूफी भरी घटना को काल्पनिक तरीके से फिल्माया है. फिल्म की कहानी बौर्डर पर भारतीय चौकी के पास घटी एक अजीब सी घटना की है. चौकी पर तैनात एक रसोइए की मुरगी पाकिस्तान के क्षेत्र में घुस जाती है. अफसर का हुक्म होता है कि जवान उस मुरगी को ले कर आए. जवान विवादित क्षेत्र में जाता है तो दूसरी ओर से फायरिंग शुरू हो जाती है. खबरिया चैनलों को इस घटना की जानकारी मिलती है तो लाइव प्रसारण शुरू हो जाते हैं.

मसले को हल करने के लिए एक राजनीतिक कमेटी का गठन होता है जिस में पांडेजी (ओमपुरी), राम लिंगम (अन्नू कपूर), मोहिनी देवी (सीमा बिस्वास), मेजर बरुआ (आदिल हुसैन), चौधरी (सतीश कौशिक), मिसेज बेदी (रजनी गुजराल) जैसे नेता शामिल हैं. रक्षा मंत्री दुलारी देवी (ग्रूशा कपूर) देश से बाहर हैं. जवान और मुरगी को बचाने के लिए क्या पाकिस्तान पर हमला कर दिया जाए, इस पर मंत्रणा होती है. कमेटी के सदस्यों के बीच वाक्युद्ध होने लगता है.

उधर, जवान और मुरगी दोनों मुसीबत में हैं. क्या किया जाए? ऐसे में सेना का एक सिपाही, जो रसोइया है, एक रास्ता निकालता है. फिल्म की कहानी पर निर्देशक की पकड़ ठीक उसी तरह ढीली पड़ गई है जैसे फिल्म में मुरगी को पकड़ने के लिए जवान की पकड़ ढीली पड़ जाती है. निर्देशक ने कमेटी की बैठक में हंसी का वातावरण बनाया है. कमेटी के सदस्यों की बातों से हंसी आती है लेकिन शीघ्र ही बोरियत होने लगती है. फिल्म में जानेमाने कलाकार हैं लेकिन सभी ने ओवरऐक्ंिटग की है. सीमा बिस्वास को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरीखा दिखाया गया है. अन्नू कपूर और सतीश कौशिक दोनों ने ही शोर ज्यादा मचाया है. फिल्म का क्लाइमैक्स काल्पनिक है. इस से अच्छा क्लाइमैक्स तो ‘क्या दिल्ली क्या लाहौर’ फिल्म का था. क्लाइमैक्स में एक गाना है जो हाल से बाहर आते ही दिमाग से फुर्र हो जाता है. छायांकन अच्छा है.द्य

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बरखा

बौलीवुड की फिल्मों में 80-90 के दशक में तवायफों और उन के कोठों को खूब दिखाया जाता था, जहां हीरो तवायफ का डांस देखने जाता था. धीरेधीरे तवायफों का दौर खत्म हुआ तो बार गर्ल्स परदे पर अपनी अदाएं बिखेरती नजर आईं. इन बार गर्ल्स पर कई फिल्में बनीं और चलीं. मधुर भंडारकर की ‘चांदनी बार’ फिल्म ने काफी नाम कमाया. ‘बरखा’ भी डांस बार गर्ल पर बनी फिल्म है. फिल्म में पोस्टरों में नायिका सारा लारेन की नंगी पीठ को बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया है. फिल्म में सारा लारेन ने हालांकि अपनी मस्त अदाएं दिखाई हैं, फिर भी यह एडल्ट फिल्म दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाती. वजह, फिल्म की सुस्त कहानी और प्रेजैंटेशन है. यह बरखा दर्शकों के तनमन को भिगो नहीं पाएगी. फिल्म थकीथकी सी लगती है. निर्देशक शादाब मिर्जा डांस बार्स के माहौल को दिखाने में नाकामयाब ही रहा है.

कहानी एक नामी वकील (पुनीत इस्सर) के बेटे जतिन (लाहा शाह) की है जिसे पहली नजर में एक डांस बार गर्ल बरखा (सारा लारेन) से इश्क हो जाता है. बार में आने वाला एक युवक आकाश (प्रियांशु चटर्जी) भी बरखा से प्यार करता है. वह बरखा से शादी कर के अपने बंगले पर ले जाता है. इस बीच बरखा बार मालिक को बर्थडे विश करने के लिए बार में आती है. तभी वहां पुलिस का छापा पड़ जाता है. पुलिस दूसरी लड़कियों के साथ बरखा कोभी पकड़ लेती है. बरखा पुलिस स्टेशन से आकाश को फोन कराती है, परंतु आकाश उसे पहचानने से इनकार कर देता है. परिस्थितियां इस प्रकार घटती हैं कि जतिन फिर से बरखा से संपर्क करता है और दोनों एकदूसरे का हाथ थाम लेते हैं. फिल्म का यह विषय बहुत ही घिसापिटा है. निर्देशन भी कमजोर है. सारा लारेन बु झीबु झी सी लगी. लाहा शाह प्रभावित नहीं करता. केवल प्रियांशु चटर्जी, जिस ने ‘भूतनाथ’ और ‘तुम बिन’ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, ने थोड़ाबहुत प्रभावित किया है. फिल्म की अवधि कम जरूर है, फिर भी फिल्म बो िझल लगती है. फिल्म का गीतसंगीत सामान्य है. 2 गाने ‘तू इतनी खूबसूरत है’ और ‘पहली दफा…’ कुछ अच्छे बन पड़े हैं. छायांकन अच्छा है. छायाकार ने हिमाचल की खूबसूरत लोकेशनों पर शूटिंग की है.

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