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ये पत्नियां

मेरी बीवी की आदत है कि जब भी वह बाजार से कोई साड़ी वगैरह लाती है तो घर आ कर पसंद न आने पर उसे बदलवाती जरूर है. मैं उस की इस आदत से परेशान हो गया था. एक दिन वह साड़ी ले कर आई और फिर वापस करने गई. जब वह घर आई तो मैं ने कहा, ‘तुम्हारी आदत में यह शामिल हो गया है, हर चीज को जरूर बदलवाती हो.’ इस पर वह तपाक से बोली, ‘मैं तो सिर्फ साडि़यां ही बदलवाती हूं, आप ने तो बीवी भी बदल ली.’ अब मेरा मुंह देखने लायक था. बस, इतना ही बोल पाया ‘उफ मेरी बीवी.’ असल में एक जगह सगाई हो जाने के बाद किसी कारणवश मैं ने रिश्ता तोड़ कर दूसरी जगह (अपनी इसी पत्नी से) शादी की थी.

विष्णुकांत अग्रवाल, फिरोजाबाद (उ.प्र.)

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मेरी शादी के बाद पहली होली आई. हम लोग होली की तैयारी में लगे थे कि अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, पड़ोस में रहने वाली 2 महिलाएं मेरे मुंह पर रंग लगाने के लिए झपटीं. मैं ने उन दोनों के हाथ पकड़ लिए. दोनों लाचार सी मुझे देखने लगीं. वे हाथ नहीं छुड़ा पाईं. यह दृश्य कालोनी के काफी लोगों ने देख लिया. वे लोग मेरे पति से बोले, ‘मिसेज गुप्ता, बड़ी ताकतवर हैं. 2-2 औरतों को एकसाथ अपने कब्जे में कर लिया.’ यह सुन कर मेरे पति गर्व से फूले नहीं समाए.   

आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

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कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए मेरे पति ने तसले में 7-8 लकड़ी रख कर जला दीं. कमरा गरम होने लगा. हम लोग उस के चारों तरफ बैठ कर चाय पीने लगे. उसी समय मेरी पड़ोसिन गुंजन आ गई. उस ने भी आग के सामने बैठ कर चाय पी, फिर चली गई. रात के 8 बजे, अचानक गुंजन की घबराहटभरी आवाज आई, ‘‘दीदी, आइए, देखिए, क्या हो गया?’’ हम लोग दौड़ते हुए उस के कमरे में पहुंचे तो देखा, उन का सनमाइका वाला मेज गोल आकृति में सुलगा पड़ा है और आग वाला तसला नीचे रखा है. उस ने बताया कि तसले में आग जला कर उस ने उसे मेज पर रख दिया था. उस की बेवकूफी पर मैं ने खीज कर कहा, ‘‘तुम ने देखा नहीं. मेरे घर में फर्श पर भी तसला ईंट के ऊपर रखा था. इतनी सावधानी तो तुम्हें बरतनी ही चाहिए थी,’’ उस की मूर्खता पर अफसोस हुआ. तभी कहते हैं नकल के लिए भी अक्ल चाहिए.

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

रसोई की गृहनीति

एक समय था जब महिलाएं घंटों सिलबट्टे पर मसाला घिस कर या इमामदस्ते से खड़ा मसाला कूट कर ताजे मसाले तैयार करतीं और बातों के चटखारों के साथ मिलजुल कर खाना बनाया करती थीं. तब रसोई का मतलब एक ऐसे कमरे से होता था जहां धुएं और गंध के बीच घर की औरतों को अपने हाथों से खाना तैयार करना होता था. जमाना बदलने के साथ रसोई अब फैले व बड़े कमरे से हट कर मौड्यूलर किचन में तबदील हो गई है. ओपन किचन आज घर का स्टेटस सिंबल भी बन गया है. आज के वक्त में कुछेक घर छोड़ दें तो सभी के किचन अब ओपन हो गए हैं. रसोई महज कुकिंग तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि वह अब घरों का आईना बनती जा रही है. ओपन और घर के सैंटर में होने की वजह से अब रसोई सभी को एक धागे में पिरोती महसूस होती है, जैसे बच्चों का होमवर्क कराना हो या पति के साथ हंसीठिठोली करनी हो या फिर सहेलियों के साथ बैठ कर गरम चाय की चुसकियों के साथ गप हांकनी हो आदि सभी कुछ यहां हो सकता है. यहां अब महिलाएं काम करते हुए बच्चों पर नजर रखती हैं तो अब अपना सीरियल भी मिस होने नहीं देतीं. वे वहीं से टीवी पर भी नजरें गड़ाए रहती हैं. ओपन किचन होने की वजह से पति भी बारबार जहां उन की मदद करते हैं, वहीं उन को प्यार करने का मौका नहीं चूकते.

आज की भागमभाग और एकल परिवारों के चलते किचन में काम अब 8 से 10 घंटे से घट कर 1 से 2 घंटे तक का ही रह गया है.

समय की बचत

प्रीति जौब करती है. उस के परिवार में कुल 3 सदस्य हैं. प्रीति का सुबह का शैड्यूल औफिस जाने के लिए पहले जल्दी उठ, फटाफट बच्चे का टिफिन, खुद व पति के लिए बे्रकफास्ट व लंच बना कर झटपट तैयार हो कर निकल जाना है. अब देखा जाए तो बाकी काम जैसे कपड़े धोना, नहाना, बच्चे को तैयार करना आदि में भले ही उस ने ज्यादा देर लगाई हो लेकिन किचन में उस को लगा सिर्फ 1 घंटा. प्रीति शाम को थकहार कर घर पहुंची और चायनाश्ता कर रात का डिनर तैयार किया. इस में लगा 1 घंटा. यानी पूरे दिन का किचन का टोटल टाइम हुआ 2 घंटे. हम कह सकते हैं कि रसोई का काम अब 8-10 घंटे से घट कर मात्र 2 घंटे का रह गया है. दूसरी तरफ एडवांस और वर्किंग महिलाओं की रसोई आप को अपडेटेड मिलेगी, जहां विभिन्न तरह के एप्लाइंसेंज मौजूद होंगे. फिर चाहे ये एप्लाएंसेज महीनों इस्तेमाल न हों. आजकल बाजार में या टीवी पर कोई भी किचन एप्लाएंस देखा नहीं कि झट से खरीद लाए या घर बैठे ही औनलाइन मंगवा लिया.

लुभाते हैं कई विज्ञापन

अंजू से मेरी मुलाकात औफिस से आते वक्त मेरे फ्लैट के नीचे हुई. एकदूसरे के हालचाल की बात जानने के बाद मिसेज सिंघल और मिसेज कपूर भी आ गईं. तिकड़ी के जमते ही मैं वहां से खिसक नहीं पाई. अब उन की बातें मुझे न चाहते हुए भी सुननी पड़ीं और उन की हां में हां मिलानी पड़ी. तभी अंजू ने टीवी पर आ रहे एअरफ्रायर के विज्ञापन का जिक्र किया. जिक्र जरा ऐसे किया कि आजकल मैं अपने बच्चों के टिफिन में हैल्दी रेसिपीज और बिना तेल का खाना दे रही हूं. सब चौंके, कैसे अंजू, हमें बता. अंजू लगी अपनी एअरफ्रायर का प्राइस टैग बताने, साथ ही यह जाहिर करने कि उन के यहां एअरफ्रायर आ गया है. अंजू ने सभी को बता डाला कि उन्होंने यह नया एप्लाएंस खरीदा है. टीवी पर किचन एप्लाएंस को ले कर ढेरों विज्ञापन आने लगे हैं. विज्ञापन इतने लुभावने होते हैं कि लगता है हैल्दी व फिट रहने के लिए फलांफलां आइटम हम भी खरीद लें. जरूरत के अनुसार तरहतरह के एप्लाएंसेज खरीदना भले ही अच्छी बात हो पर इन का सही व रोजाना इस्तेमाल नहीं हुआ तो किचन में एप्लाएंसेंजों की भरमार ही लगेगी. और यह समझदारी का परिचय नहीं है.

कैसा हो इंटीरियर

इंटीरियर डिजाइनर और आर्किटैक्ट अनुपम सक्सेना के मुताबिक घर का आईना होती है रसोई, जहां खाने के साथसाथ रिश्तों में मिठास घुलती है. घर का इंटीरियर कराएं तो लेआउट ऐसा होना चाहिए जिस में किचन कोने के बजाय केंद्र में हो और वह डाइनिंगरूम से ही अटैच हो. ऐसा होने से जहां आप हर एक चीज पर नजर रख सकेंगी, वहीं डाइनिंग एरिया में आराम भी कर सकेंगी. ओपन किचन होने से आप खाना पकातेपकाते कई काम एकसाथ कर सकती हैं. ओपन किचन के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें-

ओपन रसोई में कचरा इकट्ठा न होने दें क्योंकि यह दूर से ही नजर आ जाएगा. ऐसा करना न सिर्फ आप को बीमार करेगा बल्कि घर के अन्य सदस्य भी बीमार हो जाएंगे.

ओपन किचन में खाना बनाते वक्त परदे डाल कर खाना न बनाएं बल्कि खिड़कियां, परदे खोल दें वरना इस से सफोकेशन होगा. वैसे आजकल मौड्यूलर किचन में एक्जौस्ट फैन और चिमनी लगी रहती है.

किचन का वैंटिलेशन सही होना चाहिए. ध्यान रखें कि आप का किचन बंदबंद न हो. अगर ऐसा हो तो तुरंत वैंटिलेशन का इंतजाम करवाएं. नए घर में किचन इंटीरियर का खास ध्यान रखें.

किचन का वाल कलर कूलिंग होना चाहिए क्योंकि अगर भड़कीला होगा तो रोशनी कम रहेगी, जिस के लिए आप को काफी लाइट्स लगवानी पड़ेंगी, साथ ही आप को भड़कीले रंगों से नेगेटिविटी महसूस होगी.

किचन का हर सामान कैबिनेट्स में ही रखें, बिखरा कर नहीं क्योंकि यह दूर से ही फैला नजर आएगा.

इन बातों का ध्यान रख कर आप अपने किचन को अच्छा लुक दे सकती हैं. ऐसा करने से आप की रसोई सुंदर दिखेगी, केवल काम ही नहीं.

रसोई ही रसोई

आधुनिक दौर में जैसे सभी आधुनिकता की चकाचौंध देख बदलाव करते रहते हैं ठीक ऐसे ही घर में किचन का बदलना भी बहुत जरूरी है. इंटीरियर ऐक्सपर्ट के मुताबिक, किचन एरिया घर के बाकी हिस्सों से ज्यादा शानदार दिखना चाहिए. यह आधुनिक उपकरणों से लैस भी होना चाहिए. ओपन किचन के लिए हमेशा ध्यान रखें कि ओपन में होने की वजह से यहां फालतू सामान नहीं रखना चाहिए. किचन के लिए जरूरत अनुसार ही किचन एप्लाएंसेज खरीदें. इस समय हो न हो आप के किचन में एडवांस स्मार्ट चूल्हा, इंडक्शन माइक्रोवेव, चिमनी, हैंड ब्लैंडर, एअरफ्रायर, मिक्सर ग्राइंडर, जूसर, इलैक्ट्रिक तंदूर, मेजरिंग इक्विपमैंट, आइसक्रीम मेकर, रोटी मेकर, मौडर्न कुकर, इलैक्ट्रिक कैटल जैसे ढेरों अलगअलग इस्तेमाल होने वाले सामान मौजूद हों. ध्यान रखें कि इतने सब किचन एप्लाएंसेज से रसोई तो खूबसूरत दिखेगी लेकिन आप को इस की मैंटिनैंस का भी खास ध्यान रखना होगा.

पैसों और जगह की बरबादी

भले ही आप अपने किचन को आधुनिक दौर के मद्देनजर अपग्रेड करती हों पर उस का सही इस्तेमाल भी बेहद जरूरी है. यह जरूरी नहीं कि जो सामान या किचन एप्लाएंस देखा या सुना, रोब दिखाने के लिए उसे खरीद लाए. जाहिर है ऐसा करना आप की जेब पर तो भारी पड़ेगा ही, साथ ही आप को उसे रखने का इंतजाम भी करना होगा. अगर आप ने इंतजाम कर भी दिया तो क्या गारंटी है कि उस एप्लाएंस का इस्तेमाल होगा ही. अगर ऐसा नहीं हुआ तो किचन में वह महीनों पड़ा रहेगा. इसलिए इन चीजों की खरीदारी सोचसमझ कर करें.

स्टेटस सिंबल मान कर या आज की जरूरत व मेहनत लगा कर अगर आप ने स्मार्ट किचन बना ही लिया है तो कोशिश कीजिए सप्ताहभर का मैन्यू चार्ट बनाएं और उसे फौलो करें. इस से भले ही आप किचन को 2 घंटे दे रही हों पर आप को प्रौपर फूड मिलेगा साथ ही मैन्यू में स्पैशल डिशेज के चलते आप के किचन एप्लाएंसेज भी इस्तेमाल में आ जाएंगे. तब आप का किचन देखने योग्य दिखने के साथ ही उस में काम भी दिखता नजर आएगा.

महंगा नहीं बाहर का खाना

नेहा का 10 वर्षीय बेटा चेतन जब भी बाहर खाने की जिद करता तो वह हमेशा उसे बहलाफुसला कर मना कर देती कि बेटा, यह अच्छा नहीं है, यह ताजा बना हुआ नहीं है. मैं घर पर तुम्हें इस से भी अच्छा और स्वादिष्ठ खाना बना कर दूंगी. दरअसल, नेहा को लगता था कि बाहर का खाना घर के खाने की तुलना में महंगा होता है. अगर इसे घर में बनाया जाए तो यह सस्ता पड़ता है. इसलिए वह हमेशा हर चीज घर पर ही बनाती थी, बाजार से अलगअलग तरह की सामग्री खरीद कर लाती और किचन में घंटों मेहनत कर के बनाती. नेहा की तरह ही अधिकांश लोग सोचते हैं कि इतनी महंगाई में बाहर का खाना कौन खाए, इतने में तो घर में 10 चीजें बन जाएंगी और भरपेट भी खा लेंगे. पर क्या कभी आप ने घर पर बने खाने की कीमत को जोड़ कर देखा है कि उस की कीमत कितनी पड़ती है. पहले के समय में बात अलग थी, परिवार में ज्यादा सदस्य हुआ करते थे, एक बार में ही ज्यादा खाना बनता था, चीजें ज्यादा इस्तेमाल हुआ करती थीं.

पहले घर में जो बनता था, सब वही खाते थे, लेकिन अब परिवार छोटा हो चुका है, सब की पसंद भी अलग हो चुकी है. किसी को दाल में प्याज, टमाटर का तड़का चाहिए तो किसी को सिर्फ जीरे का. किसी को समौसे मीठी चटनी के साथ खाने हैं तो किसी को हरी चटनी के साथ. आज अगर घर पर दाल मक्खनी बनानी हो तो इस की कीमत लगभग 200 रुपए पड़ती है. इस के लिए दाल, क्रीम, मक्खन, मसाले इत्यादि चीजें खरीदनी पड़ती हैं. लेकिन अगर इसी दाल मक्खनी को बाहर खाया जाए तो 70-80 रुपए में 3 लोग आराम से खा सकते हैं.

घर पर बनाने पर 3 लोगों के हिसाब से सामग्री इतनी ज्यादा होती है कि सोचना पड़ता है कि इन बची हुई चीजों का इस्तेमाल किस में किया जाए. हफ्ते में 2 बार दाल मक्खनी भी नहीं बना सकते, क्योंकि बच्चे व पति कहने लगते हैं, ‘‘यह क्या है, कल ही आप ने दाल मक्खनी बनाई थी, आज फिर से.’’ एक के लिए खाना बनाया जाए या 2 लोगों के लिए मेहनत, समय व गैस उतनी ही लगती है जितनी 4 लोगों के लिए लगती है. अब आप समोसे का ही उदाहरण ले लीजिए. बाहर हम 16-20 रुपए में 2 समोसे आराम से खा सकते हैं, लेकिन अगर इसे घर पर बनाने की सोचें तो समौसे के लिए मैदा, आलू, तेल, मसाले, प्याज, मिर्ची के साथ गैस का खर्च मिला कर कई गुना ज्यादा पड़ेगा.

कहने का तात्पर्य है कि आज के समय में बाहर का खाना महंगा नहीं है बल्कि आप के बजट में है. आप आराम से परिवार के साथ बाहर का खाना खा सकते हैं.

बाहर का खाना कैसे सस्ता

घर पर अगर हमें कोई स्पैशल डिश बनानी हो जैसे चिकन बनाना हो तो इस की सारी सामग्री प्याज, टमाटर, चिकन, लहसुन, अदरक से ले कर गरम मसाले तक सभी चीजें खरीदनी पड़ती हैं, गैस का खर्च अलग आता है. लेकिन बाहर लगभग 150-200 रुपए में आराम से चिकन खाया जा सकता है. बाहर खाने का फायदा यह होता है कि खाने में सलाद व चटनी साथ में मिल जाती है, घर पर इस के लिए भी सभी चीजों को खरीदना पड़ता है और इसे बनाना पड़ता है. बाहर खाना खाने पर न तो बरतन धोने का झंझट होता है और न ही किचन साफ करने व कूड़ा फेंकने की समस्या होती है.

बाहर खाने के फायदे

बोरियत से मिलता है बदलाव : हर दिन एक ही तरह का खाना खा कर बच्चे ऊब जाते हैं, बाहर के खाने से उन्हें एक बदलाव मिलता है. आप घर पर उन का पसंदीदा खाना कितना भी अच्छा क्यों न बनाएं पर उन्हें जो खुशी बाहर के खाने में मिलती है, वह घर के खाने में नहीं मिलती. बजट का रहता है ध्यान : हम सोचते हैं कि घर के खाने में हम बजट में रहते हैं और बाहर खाने पर खर्च ज्यादा होता है, लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि हम बाहर के खाने में ज्यादा अच्छे से बजट में रहते हैं. घर पर खाना बनाने में जरूरत से ज्यादा खर्च करते हैं, ज्यादा खाना बना लेते हैं. सोचते हैं बच गया तो क्या हुआ, फ्रिज में रख देंगे. चाहे बाद में खाएं चाहे न खाएं, पर बना जरूर लेते हैं. खाते समय भूख से ज्यादा खाना खा लेते हैं. लेकिन जब हम बाहर खाते हैं तब कम खाना और्डर करते हैं. सोचते हैं–पहले इतना खा लेते हैं, कम पड़ेगा तो फिर और्डर करेंगे. अगर घर में खाते समय दाल खत्म हो जाती है तो हम फिर से एक कटोरी दाल ले लेते हैं, भले ही प्लेट में सब्जी हो. लेकिन जब हम बाहर खाते हैं तो ऐसा नहीं करते. आधी रोटी के लिए फिर से दाल या सब्जी नहीं लेते, क्योंकि हमें अपना बजट पता होता है, इसलिए यह कभी न सोचें कि बाहर के खाने से आप का बजट बढ़ सकता है.

परिवार के लिए समय : कामकाजी महिलाओं के लिए संभव नहीं होता है कि दिनभर के औफिस के बाद वे बच्चों को पढ़ाएं, घर का कामकाज करें, सब की पसंद का कुछ बनाएं. ऐसे में जब रविवार आता है तो बच्चे व पति जिद करने लगते हैं कि आज कुछ स्पैशल खाना है और छुट्टी वाले दिन भी आप परिवार के साथ समय बिताने के बजाय किचन में व्यस्त रहती हैं. लेकिन बाहर खाना खाने से आप को किचन के कामों से छुट्टी मिलती है. आप को इस बात की टैंशन नहीं रहती है कि खाना बनाना है, किचन साफ करना है, बरतन धोने हैं. बल्कि आप अपने परिवार को समय दे पाती हैं, अपने बच्चों के साथ खेल सकती हैं, पति से बातें कर सकती हैं, रविवार का पूरा दिन परिवार के साथ बिता सकती हैं.

कब खाएं बाहर का खाना

किटी पार्टी में किफायती : आप अपने घर पर किट्टी पार्टी कर रही हैं तो सुबह से ही अलगअलग वैराइटी बनाने के बजाय बाहर से टिफिन मंगवा लें. आजकल टिफिन वाले टिफिन में स्नैक्स भी देने लगे हैं, जिस की कीमत 50-60 रुपए तक होती है. आप इस में अपनी सुविधानुसार चीजें रखवा सकती हैं. इस से आप को न तो सामग्री खरीदने व बनाने का झंझट होता है और न ही बरतन धोने की टैंशन. इस से आप का समय भी बचता है और पार्टी भी बजट में आसानी से हो जाती है.

पिकनिक पर खाएं बाहर का खाना: अगर आप परिवार व दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रही हैं तो आप के लिए संभव नहीं है कि आप इतने सारे लोगों का खाना अकेले बना कर ले जाएं. बच्चों की पसंद और बड़ों की पसंद अलगअलग होती है और ऐसे में किसी को खाना पसंद न आए या बच्चे यह कहने लगें कि मुझे यह नहीं खाना तो सारा मूड खराब हो जाता है. पिकनिक पर मस्ती करने का मन ही नहीं करता. हमें लगता है कि हम ने इतनी मेहनत कर के बनाया, लेकिन फिर भी किसी को पसंद नहीं आया. इसलिए पिकनिक के लिए घर से खाना बना कर ले जाने के बजाय बाहर के खाने का मजा लें. 

मनाएं बर्थडे पार्टी बाहर : आज के बच्चों को घर पर कितना भी स्वादिष्ठ खाना बना कर क्यों न दिया जाए, उन्हें बाहर के बर्गर के आगे फीका ही लगता है. बच्चे बर्थडे पार्टी में पावभाजी या छोलेभठूरे देने पर कहते हैं, ‘‘आंटी, मेरी मम्मी इस में ये नहीं डालतीं, मैं ये नहीं खाऊंगा. इस में शिमला मिर्च है.’’ सारा खाना बरबाद होता है. पैसे भी खर्च होते हैं और बच्चे एंजौय भी नहीं करते. लेकिन अगर वहीं उन्हें बाहर का बर्गर या पिज्जा दिया जाए तो मना नहीं करते, बल्कि अच्छे से खाते हैं. आजकल तो इन जगहों पर आसानी से बर्थडे पार्टी की जा सकती है, यहां न तो सर्व करने की, घर गंदा होने की टैंशन होती है और न ही पार्टी के बाद कूड़ा फेंकने का झंझट होता है. घर पर सामान खरीद कर बनाने में जितना खर्च आता है, बाहर आराम से बर्गर व कोल्ड डिं्रक के साथ पार्टी की जा सकती है.

पौष्टिकता का रखें ध्यान : जब भी बाहर खाएं तो पौष्टिकता का ध्यान रखें. हमेशा वैसी ही चीजें खाएं जिस में पौष्टिकता ज्यादा हो और हैल्दी भी. कुछ भी और्डर करने से पहले मैन्यू को अच्छी तरह से देखें और उस में से ऐसी डिशेज को चुनें जिस में प्रचुर मात्रा में पौष्टिक तत्त्व हों.

आधा घर का आधा बाहर का

 आप चाहें तो आधा घर का और आधा बाहर के खाने का अनुपात रख सकती हैं. जैसे हर चीज को घर पर बनाने के बजाय कुछ रेडीमेड चीजों का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से आप का समय भी बचेगा और मेहनत भी कम लगेगी. जैसे आप को सूप बनाना है और आप इसे घर पर बनाती हैं तो आप को सारी सब्जियों को खरीदना पड़ेगा, उन्हें धो कर काटना पड़ेगा. इस में काफी समय लगता है. आप इन सब्जियों को थोड़ाथोड़ा भी खरीदेंगी तो भी वे ज्यादा हो जाएंगी. इसलिए आधा घर का और आधा बाहर का मिला कर खाना बनाएं. इस से समय भी बचेगा और पैसा भी. सूप बनाने के लिए आप सूप पैकेट ले कर आइए और बस पानी में सूप पाउडर डाल कर उबाल लें. मिनटों में गरमागरम सूप तैयार. आज तो मसाले भी गे्रवी वाले आने लगे हैं. बस, गे्रवी को गरम कीजिए और इस में पनीर या सब्जियां मिलाइए. आप की मनपसंद सब्जी तैयार.

हमारी बेडि़यां

मेरे एक रिश्तेदार का बेटा बीमार था. शायद उसे सर्दी लग गई थी. बेटे की मां बहुत रूढि़वादी थीं. उन के मन में वहम था कि किसी पड़ोसी ने उन के बेटे को नजर लगा दी है जिस के कारण वह बीमार हो गया है. उन्होंने शाम होते ही बहुत सारी मिर्चों को अपने बेटे के सिर से वारा (नजर उतारी) और कमरा बंद कर के उन मिर्चों को आग पर रख कर उन की धूनी जलाई मिर्चों की गंध से उन के बेटे की हालत बहुत खराब हो गई. उस रात को पड़ोसियों ने बच्चे को स्थानीय अस्पताल में ले जाने का आग्रह किया. परंतु बेटे की मां नहीं मानीं और अपनी जिद पर अड़ी रहीं. डाक्टर के इलाज के बजाय उस की अपने तरीके से ही झाड़फूंक करती रहीं. कुछ दिनों बाद वे अपने बेटे से हाथ धो बैठीं. मां की रूढि़वादिता ने अपने ही बेटे की जान ले ली.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

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गांव में एक पहलवान थे. जब भी कोई दंगल होता वे जरूर जाते और जीत कर इनाम लाते. तमाम लोग उन से जलते थे. एक बार वे सावन के महीने में किसी दंगल में कुश्ती लड़ने गए थे. लौटने में अंधेरा हो गया. वे अकेले आ रहे थे. रास्ते में बारिश होने लगी. गांव आने से पहले एक बड़े बाग को पार करना पड़ता है. बाग में खूब अंधेरा था. वातावरण में दहशत थी. एक व्यक्ति, जो उन से जलता था, उस बाग की एक नीची डाल पर सिर नीचे और पैर ऊपर कर के लटक गया, देखने से दूर से वह भूत नजर आ रहा था. पहलवान उसे देख कर भूतभूत चिल्ला कर भागे और गांव आ कर डर के मारे बेहोश हो गए. काफी रात गए उन्हें होश आया लेकिन उन के दिलोदिमाग में भूत का खौफ बैठा था. वे किसी को भी देख कर भूतभूत चिल्लाने लगते थे. वे बीमार रहने लगे. घर वालों ने तमाम ओझा व भूत उतारने वाले बुलवाए. कई दिन तक भूत उतारने के लिए थाली बजी, लेकिन भूत न उतरा. कुछ पढ़ेलिखे लोगों ने कहा कि पहलवान को किसी अच्छे डाक्टर या मनोचिकित्सक को दिखाओ तो घर वाले कहने लगे कि भूतप्रेत के बारे में डाक्टर क्या जानें. धीरेधीरे पहलवान महोदय की हालत बिगड़ती गई और एक दिन वे दुनिया से चल बसे. काश, पहलवान के घर वालों ने पढ़ेलिखे लोगों की बात मान ली होती और किसी अच्छे डाक्टर को दिखाया होता तो शायद पहलवान की जान बच जाती.

एस पी सिंह, लखनऊ (उ.प्र.)

कम बजट में अधिक बचत

महंगाई बढ़ती जा रही है तो पैसा भी ज्यादा खर्च हो रहा है. मिडिल क्लास की सब से बड़ी चिंता है कि आमदनी उतनी ही है जबकि खर्च ज्यादा हो रहा है. लेकिन थोड़ी सी समझदारी और प्लानिंग के साथ आप पैसे को अपने इशारे पर नचा सकते हैं. बस, आप पैसों को खर्च करने के मामले में ही नहीं बल्कि बचत के मामलों में भी रुचि लेना शुरू कर दें. आप होममेकर हैं, दिन भर काम में ऐसी उलझी रहती हैं कि दूसरी चीजों पर ध्यान ही नहीं जाता. कभी फुरसत मिले तो बस एक ही बात की चिंता लगी रहती है, घर का बजट और थोड़ी सी बचत. हां, पति भी इन बातों का ध्यान रखते हैं लेकिन आप भी इस कोशिश में उन का हाथ बंटाएं. हम जो सोचते हैं उस में असल में कामयाब नहीं हो पाते. इस की वजह बड़ी न हो कर छोटीछोटी बातों में छिपी है. कभी जानकारी की कमी तो कभी फैसले लेने की क्षमता का अभाव हमारी योजनाओं पर ब्रेक लगा देते हैं.

आज के युवा जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए गाड़ी, बंगला और शोहरत सबकुछ फास्ट ट्रैक पर डाल देते हैं. ईएमआई से उन्हें परहेज नहीं, यही कारण है कि वे कर्ज की राशि की तरफ ध्यान नहीं देते, बल्कि ईएमआई कितनी आ रही है उस ओर देखते हैं. इस का मतलब यह भी नहीं कि केवल बचत ही की जाए, बल्कि समय के अनुसार और परिस्थितियों को भांपते हुए बचत की ओर ध्यान देना चाहिए. आगे की सोच आप को परिस्थितियों से लड़ने के लिए पहले से तैयार करनी है. परिस्थितियों की नब्ज पर आप का हाथ हो तो यह निश्चित है कि आप किसी भी तरह के खतरे को पहले से भांप सकते हैं और उस के अनुसार निर्णय ले सकते हैं.

चलन विदेशों का

विदेशों में चलन है कि वहां पर सप्ताहभर नौकरी करने के बाद शुक्रवार की शाम पैसे मिल जाते हैं और ये पैसे शनिवार और रविवार को मौजमस्ती में उड़ाए जाते हैं. सोमवार से युवा फिर से मेहनत कर पैसे कमाने के लिए नौकरी पर जाते हैं, इस विदेशी संस्कृति की छाया हम पर भी पड़ती जा रही है. हम भी उन्हीं की देखादेखी पैसे उड़ाने में मशरूफ हो जाते हैं जबकि बचत के नाम पर कुछ नहीं सोचते. चाहे कम तनख्वाह हो, ज्यादा बचत सभी को अच्छी लगती है और सभी अपनेअपने अनुसार बचत करना चाहते हैं व करते भी हैं. इस के लिए जरूरी है कि बचत की शुरुआत आज से ही की जाए. हर महीने अपने खर्च की समीक्षा करनी चाहिए. साथ ही गैर जरूरी खर्च को नजरअंदाज करना चाहिए.

खर्चों में कटौती और इस के लेखाजोखा के लिए एक मासिक बजट तैयार करें, फिर उस बजट के दायरे में रह कर खर्च करें. इस से यह जानने में आसानी हो जाएगी कि पैसा कहां और कितना खर्च हो रहा है और इस पर कैसे नियंत्रण रखा जा सकता है. ज्यादातर विकसित देशों ने ऐसी योजनाएं शुरू की हैं, जिन के तहत नागरिकों को बचत के लिए बढ़ावा दिया जाता है. इस मकसद से खास वित्तीय संस्थाएं भी संचालित हैं. दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनौमी जापान की हैसियत के पीछे उस के नागरिकों की बचत की आदत ही है.

कम बजट, ज्यादा बचत

बजट कम होते हुए भी बचत का स्तर बढ़ाया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि आमदनी ज्यादा होने पर ही आप बचत कर सकते हैं. हम ने कुछ परिवारों में जा कर उन की बचत का तरीका देखा.

(बौक्स में देखें साहिल के खर्चे)

साहिल व कीर्ति के मुताबिक, हर महीने हाथ इतना तंग रहता है कि 1 रुपया तक नहीं बचता. कभीकभी तो उधार तक लेने की स्थिति आ जाती है. परिणामत: आगे बजट बिगड़ता ही चला जाता है.

साहिल व कीर्ति बजट में रह कर ऐसे काम करें :

खर्च    रु. प्रतिमाह

राशन   7,000

शिक्षा   4,000

अन्य खर्चे      2,000

आनेजाने का भाड़ा      2,000

मनोरंजन व संचार      1,000

सागसब्जी, फल 2,000

पानी/बिजली बिल 1,000

कुल खर्च       19,000

बचत   1,000

यानी 20 हजार रुपए प्रतिमाह कमाई हो तो 1 हजार रुपए प्रतिमाह कम से कम बचाया जा सकता है. रही बात उधारी की तो आप की चादर जितनी हो उतने ही पैर फैलाएं. अगर आप मनोरंजन व शाही शौक आदि में चीजों पर गलत खर्च करेंगे तो बचत कभी नहीं हो सकेगी. ऐसे में कभीकभार चलता है मान कर खर्च करें तब तो सही अन्यथा बचत की मत सोचिए.

(बौक्स में देखें अभिषेक के खर्चे)

अभिषेक द्वारा कमाई के कुछ हिस्से को किसी आकस्मिक घटना, बीमारी या घर बनाने के लिए धीरेधीरे जोड़ना चाहिए. बुरे व अच्छे वक्त में यह बचत काम आ सकती है. अभिषेक पूरे महीने की कमाई को पूरा ही खर्च कर देता है. हालांकि यह सारे खर्च जरूरी हैं पर अगर इन में कुछ खर्चों को कुछ हद तक कम कर दिया जाए तो बचत आसानी से की जा सकती है. आइए, अभिषेक की कमाई को प्रतिशत में दर्शाएं कि वह कैसे अपने वेतन का कुछ हिस्सा बचा सकता है.
इस के 2 तरीके हैं :

अगर औफिस के चायपानी, कपड़े व मनोरंजन के खर्चे कुछ हद तक अभिषेक कम करे तब अभिषेक आराम से अपनी कमाई से 1 हजार रुपए प्रतिमाह तक बचत कर सकता है और सीमित आय में अधिक बचत के उद्देश्य को पूरा कर सकता है.

गुल्लक से निवेश का सफर

बचत का सब से पुराना तरीका गुल्लक है. कहानियों, फिल्मों या असल जीवन में भी हम ने गुल्लक से बचत की शुरुआत देखी और की है. आज बचत का तरीका पोस्ट औफिस, बैंक, शेयर मार्केट से होते हुए गोल्ड और प्रौपर्टी में निवेश तक जा पहुंचा है. बचत और निवेश में अंतर यह है कि जहां बचत से आप अपनी पूंजी को सुरक्षित रखते हैं वहीं निवेश का इस्तेमाल लोग अपनी जमापूंजी को बढ़ाने के लिए करते हैं. हालांकि रोजाना चढ़तेउतरते शेयर बाजार से जमापूंजी के कम होने का खतरा बना रहता है. लेकिन जमा रकम को बैंक या दूसरी सरकारी सेवाओं की मदद से न केवल सुरक्षित रखा जा सकता है बल्कि उसे बढ़ाया भी जा सकता है. क्रैडिट कार्ड का भुगतान जल्दी कर देना चाहिए, क्योंकि इस में भुगतान में देरी होने पर उच्च दर से ब्याज भी देना पड़ता है.

कम बजट में हैल्दी कुकिंग

सीजनल सब्जियों का प्रयोग करें, डंठल न फेंकें. ब्रोकली, गोभी, मशरूम के डंठलों को अच्छी तरह छील व काट कर उन के पकौड़े या फिर सब्जी बनाई जा सकती है. प्याज महंगी हो तो कसूरी मेथी का प्रयोग करें. टमाटर की जगह कैचप और क्रीम की जगह दूध का प्रयोग करें. जरूरी नहीं कि महंगी चीजों से ही हैल्दी कुकिंग की जाए. लैफ्टओवर खाने से नया खाना तैयार करें जैसे सब्जियों की बिरयानी, कटलेट, स्टफ्ड परांठा आदि. चावल बनाने के बाद उस का बचा पानी फेंकने के बजाय उस का प्रयोग अन्य डिशेज बनाने में करें.

क्यों जरूरी है बचत

मुश्किल वक्त कभी बता कर नहीं आता. क्या आप ने अपने मुश्किल दिनों के लिए पैसे बचाए हैं? अगर कोई स्वास्थ्य संबंधी आपातस्थिति आए तो आप कैसे मैनेज करेंगे? अपने बच्चों की ऊंची शिक्षा के लिए आप के पास रकम होगी या नहीं? किसी भी अस्पताल में मरीज की भरती कराने से पहले एकमुश्त बड़ी रकम की जरूरत होती है. इस के अलावा परिवार बढ़ने पर बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए भी रकम होनी जरूरी है. अगर कोई मुकदमा चल रहा हो तो वहां पर बचत के रुपयों से सहायता मिलेगी. अगर शुरुआत से ही कुछ बचत की गई होगी तो आकस्मिक खर्चे आने पर किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी. आप सोच रहे होंगे कि बंधीबंधाई आमदनी में से आप अपने खर्चे पूरे कर लें, यही बहुत है. ऐसे में बचत कैसे होगी. आप को हैरानी होगी कि दक्षता और अनुशासन में इस का जवाब छिपा है. सब से पहले देखें कि आप का खर्च कहां हो रहा है. हर महीने के खर्च के लिए एक डायरी रखें, कौफी ब्रेक से ले कर घर के सामान पर खर्च हुए 1-1 पैसे का हिसाब रखें. आप को हैरानी होगी कि इन्हीं मदों से आप को सब से ज्यादा पैसा बचाने की प्रेरणा मिलेगी. खर्चों के लिए लक्ष्य बना कर चलें. जो तय खर्चे हैं जैसे कि घर का किराया, विभिन्न बिल, कार लोन, होम लोन की किस्तें, क्रैडिट कार्ड के बिल आदि में तो काटछांट नहीं हो सकती, लेकिन घर के सामान और कपड़ों के लिए खर्च की सीमा रखें, साथ ही मनोरंजन और यात्राओं के लिए भी तयशुदा सीमा से ज्यादा खर्च न करें.

दरअसल, बजट बनाने का मतलब यह नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं. यह आप की आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए न कि कोई वित्तीय बंधन. अच्छा बजट आप को पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है. इस के जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं और चिंताओं को बढ़ाने के बजाय आनंद उठा सकते हैं. बजट आप को आर्थिक समस्याओं से लड़ने की ताकत देता है.

पूंजी बाजार

भारी बिकवाली से बाजार में निराशा की स्थिति

बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक 30 हजार अंक के स्तर को छूने के लिए तत्पर है. इस मनोवैज्ञानिक स्तर तक पहुंचने में कई बार यह गहरा गोता भी लगा रहा है तो कई बार ऊंची छलांग लगा रहा है. इस ऊहापोह के बीच 29 जनवरी को सूचकांक ने सर्वाधिक ऊंचाई हासिल की लेकिन अगले ही सत्र में 500 अंक का गोता लगा गया. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी औसतन इसी स्तर पर आगेपीछे हो रहा है. इन सब स्थितियों के बावजूद निवेशकों में देश की आर्थिक तरक्की को ले कर विश्वास का भाव है और उन का उत्साह लगातार बाजार को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए बना हुआ है. हालांकि फरवरी के पहले दिन से ही बाजार में गिरावट का माहौल रहा और प्रथम सत्र में ही सूचकांक एक सप्ताह के निचले स्तर पर पहुंच गया. फरवरी की शुरुआत से सूचकांक लगातार 7 सत्र तक गिरावट के साथ बंद होता रहा. सप्ताह के आखिरी दिन यानी 5 फरवरी को बाजार रिजर्व बैंक के नीतिगत दरों में कटौती नहीं करने की वजह से निवेशकों में निराशा का माहौल बना और सूचकांक बिकवाली के भारी दबाव में 2 सप्ताह के निचले स्तर पर आ गया और 29 हजार के मनोवैज्ञानिक स्तर से उतर गया. बावजूद इस के, जानकारों को उम्मीद है कि बाजार उठेगा और इस का संकेत रुपए का मजबूत होता रुख दे रहा है. हालांकि राजनीतिक समीकरणों के बदले रुख के अनुमान से फरवरी के दूसरे सप्ताह की शुरुआत जोरदार झटके के साथ हुई और सूचकांक करीब 5 अंक टूट गया.

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कुशल कामगारों की कमी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति कितनी कारगर होगी यह अनुमान लगाना फिलहाल आसान नहीं है. लेकिन इस बहाने देश के 10 करोड़ युवकों के लिए विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है उस से बेरोजगार युवकों में उत्साह है. इस के ठीक विपरीत स्थिति विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियों की है. इस की वजह कौशल के आधार पर कामगारों की व्यवस्था पर नजर रखने वाले नैशनल एक्युपेशनल क्लासिफिकेशन कोड का वह डाटा है जिस में कहा गया है कि देश में विनिर्माण क्षेत्र के लिए कुशल कामगारों की भारी कमी है.

कोड का कहना है कि इस क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए 90 फीसदी कामगारों का कुशल होना आवश्यक है जबकि 90 फीसदी युवक कालेजों से सीधे निकल कर नौकरी मांग रहे हैं. उन युवकों में ज्ञान, विज्ञान की अच्छी समझ है लेकिन विनिर्माण क्षेत्र के लिए जिस कौशल की आवश्यकता है उस का अभाव है. देश में 4 करोड़ लोग संगठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं लेकिन इन में मात्र 2 फीसदी ही व्यावसायिक प्रशिक्षणप्राप्त हैं. इसी तरह से 70 फीसदी कामगार प्राथमिक अथवा उस से कम स्तर तक पढ़ेलिखे हैं. मुश्किल से 10 प्रतिशत ही व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल किए हुए हैं जबकि निर्माण क्षेत्र में 10 में से एक ही कुशल श्रमिक है. इस की बड़ी वजह है कि आईटीआई कौशल विकास के उचित प्रबंध नहीं हैं. वहां से सर्टिफिकेट तो मिल जाता है लेकिन युवकों को व्यावहारिक ज्ञान उपकरणों की कमी आदि की वजह से नहीं हो पाता है.

राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद का हाल ही में एक सर्वेक्षण आया है जिस में कहा गया है कि हालात नहीं सुधरे तो 2022 तक आटोमोबाइल क्षेत्र में 3.50 करोड़, निर्माण क्षेत्र में 1.5 करोड़ तथा ज्वैलरी क्षेत्र में 5 करोड़ कुशल कामगारों की कमी हो जाएगी. सरकार को उस कमी को पूरा करने के लिए सरकारी के साथ ही निजी क्षेत्र के प्रशिक्षण संस्थानों को महत्त्व देने की जरूरत है.

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डिजिटल इंडिया का ‘कमजोर’ सिगनल

देश में इंटरनैट और मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या जिस गति से बढ़ रही है उस रफ्तार से उन्हें यह सेवा उपलब्ध नहीं हो पा रही है. सिगनल्स बहुत ही कमजोर हैं, उपभोक्ता इस से बेहद आहत है. संचार मंत्री और प्रधानमंत्री इस समस्या से अवगत हैं. प्रधानमंत्री ने तो देश में इंटरनैट की गति धीमी होने की वजह जानने के लिए संचार सचिव को रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा था, इसी तरह से संचार मंत्री भी मोबाइल कनैक्टिविटी के कमजोर होने से परेशान हैं. संचार मंत्री का दावा है कि उन्होंने सेवा प्रदाताओं को सेवा में सुधार के लिए सख्त आदेश दिए हैं और जल्द ही उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलनी शुरू हो जाएगी. उन का कहना है कि ब्रौडबैंड का सीधा संबंध सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से है और इस के स्तर पर समझौता नहीं किया जा सकता है.

मंत्री का कहना है कि संचार क्षेत्र में अरबों का कारोबार हो रहा है और उस से 10 लाख लोगों को सीधे और 30 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल रहा है. देश में 90 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता और 30 करोड़ लोग इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे हैं. इतने बड़े स्तर पर जिस सेवा की सेवाएं ली जा रही हैं उस में सुधार किया जाना समय की जरूरत है. लेकिन दिक्कत यह है कि इस सेवा क्षेत्र पर निगरानी रखने वाले दूरसंचार नियामक यानी ट्राई के द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार सेवा उपलब्ध कराई जा रही है. इस स्थिति में या तो सेवा प्रदाता के स्तर पर कुछ गड़बड़ी है या फिर ट्राई ने उचित स्तर पर मानक तय नहीं किए हैं. स्थिति जो भी हो, जब सरकार ही इस क्षेत्र की सेवा से खुश नहीं है तो आम उपभोक्ता के संतुष्ट होने की जगह ही नहीं बचती है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो सिगनल्स मिलते ही नहीं हैं. उपभोक्ता को बात करने के लिए छतों पर या ऊंचे स्थान पर जाना पड़ता है. सरकारी क्षेत्र के उपभोक्ता तो महानगरों में भी परेशान हैं. पोर्टिबिलिटी में यदि यही स्थिति रही तो डिजिटल इंडिया का सपना किस तरह पूरा हो सकता है.

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जनधन योजना का ‘आधार’ चरण

केंद्र सरकार जनधन योजना को अपनी उपलब्धि की अब तक की सब से सफल योजना बता रही है. यह सचाई भी है. इस से गरीबों के खातों में पैसा भले ही नहीं हो लेकिन उस के हाथ में पासबुक है. इस से कई गरीबों का बैंक खाता होने का सपना पूरा हुआ है. रिकौर्ड समय में रिकार्ड खाते खुले. योजना को कम समय में सर्वाधिक खाता खोलने के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में भी जगह मिली. जीरो बैलेंस के इन खातों में सूखापन नहीं रहे इसलिए विभिन्न सरकारी योजनाओं में मिलने वाली सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी डीवीटी के जरिए इस योजना से जोड़ दिया गया. मतलब कि रसोई गैस का सिलेंडर दोगुनी कीमत पर खरीदिए और सब्सिडी का पैसा डीवीटी में आ जाएगा. इस का तात्पर्य यह हुआ कि आप का बटुआ तत्काल भरा होना चाहिए. इस से गरीब परेशान है.

बहरहाल, सरकार का कहना है कि योजना का पहला चरण पूरा हो चुका है और दूसरे चरण में इन खातों का उपयोग अब खाताधारक को कर्ज देने, उस के बीमा करने और यहां तक कि उस की पैंशन योजना के लिए भी किया जाएगा. इस के लिए जनधन योजना के सभी खातों को आधार से जोड़ा जा रहा है. ठीक है कि गरीब के लिए आधार नया प्लेटफौर्म होगा लेकिन जरूरत योजनाओं के क्रियान्वयन की है. वृद्धावस्था पैंशन अथवा विधवा पैंशन समय पर मिले, इस के लिए गरीब को तंग नहीं होना पडे़. पैसा आधार से जुड़े या पोस्ट औफिस के जरिए पहुंचे, उस से फर्क नहीं पड़ता. कर्ज मिले अथवा पैंशन, वह समय पर गरीब को उपलब्ध हो, उसे इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. गरीब के लिए योजनाएं तब ही फायदेमंद हैं जब जरूरत के समय उसे उन का लाभ मिले. लाभ तब ही मिलेगा जब समय पर उस के पास पैसा पहुंचेगा.

भारत भूमि युगे युगे

अवसाद में राव

हमारे देश में वैज्ञानिकों की खास पूछपरख नहीं है. वे कभी किसी के, खासतौर से युवा वर्ग के रोल मौडल नहीं रहे. भारतरत्न से सम्मानित वैज्ञानिक सीएनआर राव की भड़ास आखिरकार फूट ही पड़ी कि देश में वैज्ञानिक अगर कुछ गलत कर दें तो हर कोई उन की खिंचाई के लिए तैयार रहता है, इसलिए वे अवसाद में रहते हैं. बात सच है. कुछ भी गलत करने की छूट व अधिकार लोगों ने राजनेताओं और खिलाडि़यों को दे रखे हैं. वे गलती न करें तो लोगों को हैरानी होने लगती है. अवसाद बुरी चीज है और अगर विज्ञान जगत में हो तो बात चिंतनीय हो जाती है. सो, वैज्ञानिकों को जिस प्रोत्साहन और प्रशंसा की खुराक चाहिए वह उन्हें दी जानी चाहिए. यह सम्मानों से पूरी नहीं होती. तो कैसे पूरी होगी यह, राव ही बताते तो बेहतर होता.

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जेटली का विजन

केंद्र सरकार आमदनी से ज्यादा खर्च कर रही है तो इस के जिम्मेदार वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं जिन्हें अब समझ आ रहा होगा कि अपने कार्यकाल के उत्तरार्ध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गलत नहीं कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते. खर्च चलाने के लिए अरुण जेटली ने सब्सिडी खैरात की तरह न बांटने और मंत्रालयों के खर्चों में 20 फीसदी की कटौती की जो घोषणा की है उस से ही लोगों ने अंदाजा लगा लिया कि एनडीए सरकार का पहला बजट जेटली की बातों की तरह गोलमोल और फ्लौप होगा. खर्च में कटौती कोई आमदनी नहीं होती, यह तो सियासी शिगूफा और टैक्स बढ़ाने की पूर्व सूचना होती है और इस से लोगों का कोई भला नहीं होता.

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फिर से अन्ना

मुकम्मल आराम और चिंतन के बाद अन्ना हजारे फिर आंदोलन के मूड और मोड़ पर आ गए हैं. मुद्दे पुराने कालाधन और भ्रष्टाचार हैं पर इस दफा निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे. राजनीति की भेंट चढ़े चेलों-अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी की जगह नए शिष्य हिंदूवादी चिंतक गोविंदाचार्य दिखेंगे जो बीते दिनों रालेगण सिद्धी में अन्ना से खासतौर से मिलने गए थे. ये दोनों भूमि अधिग्रहण पर भी हल्ला मचा सकते हैं. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुरसी तक पहुंचाने में अन्ना आंदोलन का बड़ा रोल था जिस ने बदलाव की प्रस्तावना लिखी थी. तकनीकी दिक्कत अन्ना खेमे को यह पेश आ रही है कि आंदोलन की मार्केटिंग कैसे की जाए. माहौल और समर्थन पहले जैसे तो मिलने से रहे. वजह, लोग घरबार छोड़ आंदोलनों को तीजत्योहार सरीखा नहीं मान सकते, दूसरे, गोविंदाचार्य आए हुए नहीं भेजे हुए लग रहे हैं. मुमकिन है कल को वे हिंदुत्व के जरिए कालाधन लाने और भ्रष्टाचार मिटाने जैसी काल्पनिक बातें करने लगें तो अन्ना की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.

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मझधार में मांझी

बजाय सलीके से बिहार चलाने के जीतनराम मांझी दलित होने का रोना रोते अगड़ों को कोसने का अपना पसंदीदा काम करते सहानुभूति बटोरने में जुटे रहे, जो काफी फ्लौप शो साबित हो चुका है. न मानने पर जदयू ने उन्हें ससम्मान बाहर का रास्ता दिखा दिया तो वे बहुमत और नीतीश की सत्तालोलुपता का राग अलापने लगे. इस से उन की अक्षमता ही सामने आई. दरअसल, मांझी रबरस्टैंप सीएम ही थे जो मजबूती का भ्रम पाल बैठे और समझ नहीं पाए कि लोकतंत्र में भी खड़ाऊं शासन चलता है. फर्क छोटेबड़े सिंहासन का है. असली शासक सामने नहीं आता बल्कि परदे के पीछे से कठपुतलियों की तरह नचाता रहता है. बहरहाल, राजनीति के अपने ज्ञान व तजरबे के मुताबिक मांझी ने नीतीश के सब से बड़े राजनीतिक दुश्मन व देश के सब से ताकतवर राजनेता नरेंद्र मोदी की शरण में दस्तक दे दी.

जनता से किए वादे पूरे करेंगे

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में ऐतिहासिक जीत से न सिर्फ भाजपा को शिकस्त दी बल्कि कांगे्रस को दिल्ली से साफ कर दिया. दिल्ली की जनता को ‘आप’ से बहुत उम्मीदें हैं कि दिल्ली में अब सबकुछ ठीक होगा. करप्शन खत्म होगा, बिजलीपानी के बिलों में राहत मिलेगी. आइए जानते हैं दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया इस बारे में क्या कहते हैं :

आज तक किसी भी सरकार ने अपने मैनिफेस्टो में किए गए वादे पूरे नहीं किए. क्या ‘आप’ से यह उम्मीद कर सकते हैं कि यह ट्रैंड बदलेगा?

हम तो राजनीति में आए ही इसलिए हैं कि काम करना है. आज की राजनीति जीत में जश्न मनाती है. मेरे पास जितने भी लोग आते हैं वे माला ले कर आते हैं पर मैं कोशिश करता हूं कि यह माला आप खुद पहनिए. यह आप की जीत है क्योंकि जीते आप हैं. हम बारबार कहते थे कि हम राजनीति को बदलने आए हैं अगर राजनीति करने लगे तो फिर पहले जीत का जश्न मनाएंगे, फिर शपथ लेंगे और फिर 15-20 दिन उस का जश्न मनाएंगे. हनीमून पीरियड मांगेंगे, उस के बाद काम करना शुरू करेंगे, यही तो राजनीति की दिक्कत है. सबकुछ बहुत लेट हो गया है. बहुत सारी समस्याएं हैं. अब किसी के घर के आगे सीवर की समस्या है. उस से परेशानी हो रही है तो हम हनीमून पीरियड तक इंतजार नहीं कर सकते. उस समस्या का निवारण तुरंत होना चाहिए. हम अपने वादों को ले कर बेहद गंभीर हैं और उन्हें पूरा करने की दिशा में हम लोग काम करने में जुट गए हैं. हमारा पहला लक्ष्य सस्ती बिजली और पानी मुहैया कराना है. इस के अलावा गरमी के दौरान फलों और सब्जियों के दाम काबू में रहें, इस के लिए सारी व्यवस्था तय कर ली गई है. किसी भी चीज के लिए हम ने अभी टाइम फिक्स नहीं किया है. हम ने अपने हिसाब से कैलकुलेशन किए हैं. जनता ने हमें 5 साल दिए हैं काम करने के लिए.

आप ने नए स्कूलकालेज खोलने की बात कही है. क्या बिल्डिंग्स बनाने पर जोर देना रहेगा या फिर शिक्षा के स्तर को सुधारने में फोकस रहेगा?

इसे एक लाइन में नहीं बताया जा सकता. क्वालिटी में हमें बहुत काम करना होगा. टीचर और पेरैंट्स को प्रोत्साहन देना होगा. कंटैंट को बदलना होगा. पढ़ाई के प्रति बच्चों में इंटै्रस्ट जगाना होगा. एजुकेशन को इंट्रैस्ट का विषय बनाना है. कई ऐसे विषय हैं जिन्हें पढ़ कर बच्चा बोर हो जाता है. इसलिए जब तक उन्हें इंट्रैस्टिंग नहीं बनाया जाएगा तब तक वह पढ़ नहीं सकता.

दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से अभिभावकों को राहत नहीं मिल पा रही है, खासकर नर्सरी ऐडमिशन के दौरान अभिभावक परेशान रहते हैं. क्या इस से उन को नजात मिलेगी?

इस वर्ष तो ऐडमिशन लगभग पूरे हो चुके हैं. बतौर मिनिस्टर अब हम देखेंगे कि लास्ट मिनट तक हम कितना काम कर पाते हैं लेकिन अगले साल इस प्रोसैस को पूरी तरह ठीक कर लिया जाएगा.

अवैध कालोनियों को केवल वैध कर देने से क्या समस्या का हल हो जाएगा और कितना समय लग जाएगा?

इस के लिए मैप बनाना पड़ेगा. मैप के बाद उन को दिल्ली के मास्टर प्लान में शामिल कराना पड़ेगा. उस मास्टर प्लान को पार्लियामैंट से अमेंड कराना पड़ेगा. तब समस्या का समाधान होगा. अलगअलग कालोनियों के लिए अलगअलग समय लगेगा पर दिल्ली सरकार जितना जल्दी हो सके मैपिंग का काम करवा लेगी.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दरजा मिल जाने से क्या वाकई में दिल्ली की तसवीर बदल जाएगी?

हम तो पूर्ण राज्य का दरजा मांग ही रहे हैं. इस के लिए जो भी जरूरी होगा रेगुलेशन से ले कर स्ट्रैटिजी तक करेंगे. प्रधानमंत्री ने भी इस पर विचार करने का भरोसा दिया है.

क्या आप को लगता है यह सब आसान होगा? आप कई फैसले तो ले लेंगे पर कई फैसलों में आप का टकराव केंद्र सरकार से होगा, फिर आप क्या करेंगे?

केंद्र सरकार को जोजो देना है वह हम केंद्र सरकार से मांगेंगे. दिल्ली के लोगों ने हमें 67 विधायक दिए हैं. इस का मतलब साफ है कि जो दिल्ली सरकार के हाथ में है वह धड़ल्ले से करो और अगर नहीं है तो सभी विधायकों के साथ मांग करो.

महिला सुरक्षा की बात करें तो क्या केवल सीसीटीवी लगा देने से महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी?

सीसीटीवी बहुत जरूरी हैं लेकिन इस के लिए कई कानूनों में बदलाव लाना होगा. एजुकेशन सिस्टम को ठीक करना होगा. एक 4 साल का बच्चा जब स्कूल जाता है तब वह महिलाएं नहीं छेड़ रहा होता लेकिन वह बच्चा जब 24 साल का हो कर जैसे ही एजुकेशन सिस्टम से बाहर आता है तो यह शिक्षा की गारंटी होगी कि वह आगे महिलाओं के लिए खतरा नहीं होगा. वह शिक्षा हमें उन्हें देनी होगी.

दिल्ली में चलने वाली आरटीवी बसों के लिए कोई नियमकानून नहीं है. वे ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर के अपनी मनमानी करते हैं जिस से आम आदमी बहुत परेशान है?

अब यह नहीं चलेगा. इन सभी को रेगुलेट करेंगे ताकि ये नियमों का ध्यान रखें और आम जनता को परेशानी न हो.

इस के अलावा रेहड़ीपटरी से भी लोग परेशान हैं. जहांतहां लगाने से अकसर लोगों को जाम से जूझना पड़ता है?

इसे भी रेगुलेट करने की जरूरत है. देखिए, रेगुलेट करने की कोशिश नहीं होती. नगरनिगम वाले, पुलिस वाले, जिन की दुकान के आगे ये लगाते हैं वे भी इन से पैसा लेते हैं. इन सभी को रेगुलेट कर देने और परची काटने से न तो पुलिस वाले और न ही नगरनिगम वाले वसूली कर पाएंगे. इस के बावजूद ये इधरउधर रेहड़ीपटरी लगाएंगे तब उन पर सख्ती की जाएगी.

आप ये सब जितनी बातें करते हैं कि पूरी दिल्ली में वाईफाई फ्री होगा या सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे या फिर बिजलीपानी सस्ती कर देंगे. खर्चों का आप ने तो कैलकुलेशन कर रखा है पर इतने पैसे आएंगे कहां से?

40 हजार करोड़ रुपए हर साल दिल्ली सरकार खर्च करती है. बहुत सारा फुजूलखर्ची में जाता है. बहुत सारा करप्शन में जाता है, इसे रोकेंगे. हमारा मुख्य लक्ष्य सब्सिडी के बजाय बिजली कंपनियों का औडिट करवाना है ताकि सचाई सामने आ सके और सब्सिडी दिए बगैर बिजली के बिल कम आएं.

जनलोकपाल बिल कब आएगा?

कोशिश करेंगे कि विधानसभा के पहले सत्र में आ जाए. यह हमारी प्राथमिकता है. 47 दिनों की सरकार में जो लोकपाल और स्वराज बिल का मसौदा था वही पेश किया जाएगा.

क्या आप मानते हैं कि दिल्ली की जनता ने कट्टरता को नकार दिया है?

कौन हारा कौन जीता, यह आप देखिए. मेरा काम है कि दिल्ली की जनता ने हमें 67 विधायक दिए हैं काम करने के लिए.

क्या गारंटी है कि आप लोगों में अहंकार नहीं आएगा?

जिस में अहंकार आएगा और जो गलत काम करेगा उसे सजा मिलेगी, इस की गारंटी है.

बिखरता समाज

भारत ही नहीं, विश्व के सभी देशों में जीवन एक पहेली बनता जा रहा है. आतंकवाद के फैलते पांव ने जानमाल को असुरक्षित कर डाला है तो आर्थिक संकट के चलते अर्थव्यवस्थाएं लोगों का जीवन दूभर कर रही हैं. यह आशा थी कि 21वीं सदी विज्ञान और तकनीक के सहारे सुखदायी होगी पर इस में चारों ओर हत्याएं, बमबारी, विध्वंस, बेकारी, डांवांडोल होते परिवार, अकेलापन, महंगी चिकित्सा आदि दिख रहे हैं. सभ्य समाज के दिन आने से पहले ही लद गए लग रहे हैं. दुनिया के शासक एक बार फिर शीत युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं. और तकनीक ने जिन जमीनी सीमाओं को मिटा दिया था उन्हें बैंकरों, शक्ति के पुजारियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने फिर से खींच दिया है.

नागरिक फिर से असुरक्षा, संदेह, भय, सरकार की बढ़ती ताकत, विचारों की स्वतंत्रता को रौंदे जाने का गवाह बन रहा है. अब नौन स्टेट यानी शासकों के अतिरिक्त शक्तियां सरकारों से शक्ति का मुकाबला करने लगी हैं. इसलामिक स्टेट, बोको हरम, हिंदू अतिवादी, ईसाई कू क्लक्स क्लान फिर से सिर उठा ही नहीं रहे, सरकार और जनता को चुनौतियां भी दे रहे हैं. सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि लाखों युवा बेचैन हो रहे हैं कि कैसे शक्ति की खातिर अपने हाथों की खुजली तोपों, बंदूकों, हिंसा से मिटाएं. वर्षों की शिक्षा, समान अधिकारों के पाठ, प्रकृति से लड़ने का जज्बा दुनिया के रहस्यों को खोलने के संकल्प फीके पड़ने लगे हैं. मैं और मेरा गुट देश, समाज और विश्व से ऊपर होने लगा है और शातिर शासक, शक्ति के दलाल, धर्म के ठेकेदार इस का लाभ उठा रहे हैं.

इस का कारण यह मोबाइल क्रांति तो नहीं जिस ने तकनीक के पीछे से भद्दे, अश्लील, भड़काऊ, अपशब्द कहने की कला को उजागर कर दिया है? अब जो चाहे, जिसे चाहे गाली दे सकता है, मारने को उकसा सकता है. नया सोशल मीडिया, ऐंटीसोशल बनता जा रहा है जिस में अपने से भिन्न लोगों को गालियों की बौछारों से रंगा जा सकता है, अपनों के जीवन के रहस्यों को सार्वजनिक किया जा सकता है आदि. आज का ज्ञानअर्जन केवल 140 कैरेक्टर तक रह गया है जिस में गाली दी जा सकती है, समझदारी नहीं. लोग 10 मिनट में 20 समाचार सुन कर अपने को समझदार समझने लगे हैं. नारों की नीतियां समझना शुरू कर दिया गया है. बहस का मतलब विचारों का आदानप्रदान नहीं, चीखचिल्लाहट हो गया है जिस में विजडम गायब हो गई है. जिस तकनीक की वकालत की जा रही है वह हर नागरिक को स्क्रीन का गुलाम बनाएगी, आजाद नहीं करेगी. और गुलामों के अधिकार नहीं होते, उन के लिए हुक्म होते हैं. फिर क्या फर्क पड़ता है कि हुक्म देने वाला लोकतंत्र से चुन कर आया हो या टैंकतंत्र से या इंटरतंत्र से.

करे कोई भरे कोई

बरसात में सड़क का पानी घर में न घुसे, इस के लिए देशभर में सड़कों से 1-2 फुट ऊंची जमीन पर मकान बनाए जाते हैं. ऐसे में मकान में जाने के लिए सड़क पर रैंप या सीढि़यां बनाना जरूरी हो जाता है. कहीं कोई मकान ज्यादा ऊंचाई पर होता है क्योंकि बरसात का पानी वहां इतना हो जाता है कि नालियों से निकल नहीं पाता और मकान में घुसने का डर रहता है. शाहरुख खान ने अपने बांद्रा के मकान में कुछ ऐसा ही किया जो देशभर में किया भी जा रहा है. चूंकि इस सैलिब्रिटी को निशाना बनाना आसान है, उस पर जम कर आरोप लग रहे हैं और रैंप तोड़ने की मांग की जा रही है. इस बाबत तरहतरह के तर्क दिए जा रहे हैं. और लगता है करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले शाहरुख खान को कुछ मुट्ठी भर लोगों की मांग पर झुकना ही पड़ेगा. वैसे, यह गलती नगर निकायों की है जो बिना पूरी योजना के सड़कें बनाती हैं, नालियां प्लान करती हैं. देशभर में सड़कों, गलियों पर पानी जमा होना आम बात है और निचले घरों में पानी का घुस जाना भी अनजाना नहीं है. बहुत मकान वालों को निचली मुंडेर, दीवार, सीढि़यां केवल पानी को रोकने के लिए बनानी होती हैं पर इन मामलों में नगर निकायों के इंजीनियरों को कोई दोष नहीं दिया जाता क्योंकि हमारा सिद्धांत है ‘किंग कैन डू नो रौंग’, सरकार गलती कर ही नहीं सकती. हमारे यहां तो नियम है कि आम आदमी हमेशा गलत होता है और वह सांस भी ले तो कोई कानून जरूर भंग कर रहा होगा.

हमारी सरकार और उस के अफसर आम आदमी को परेशान करने व उन्हें कानून की छड़ी से मारने से कभी पीछे नहीं हटते. अपने कर्तव्यों का कभी खयाल नहीं रखते. उन्होंने जो किया, गलत किया पर वह कभी गैरकानूनी हो ही नहीं सकता, जबकि आम नागरिक कभी सही हो ही नहीं सकता, यह कैसी व्यवस्था है? रैंप अगर कोई बनाता है तो जबरन बनाता है क्योंकि तभी वह मकान को सुरक्षित रख सकता है. एक्शन तो उन इंजीनियरों पर लिए जाने चाहिए जिन्होंने नालियां छोटी बनाईं, उन्हें साफ करने का इंतजाम नहीं किया, उन की निकासी का खयाल नहीं किया और सड़कों व मकानों के बीच पर्याप्त जगह नहीं छोड़ी कि रैंप बिना सड़क पर आए बन सकें.

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