Download App

टीवी का सहारा

बौलीवुड अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे को भी छोटा परदा रास आने लगा है. तभी तो पिछले कुछ अरसे से वे कई रिऐलिटी शोज में सैलिब्रिटी गैस्ट के तौर पर नजर आ चुकी हैं. अब सोनाली एक टीवी सीरियल ‘अजीब दास्तां है ये’ में लीड भूमिका निभाती नजर आ रही हैं. अभिनेता अपूर्व अग्निहोत्री उन के अपोजिट महत्त्वपूर्ण भूमिका में हैं. यह सीरियल एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर आधारित है. कहा तो यह भी जा रहा है कि सोनाली को इस सीरियल में काम करने के लिए काफी मोटी रकम बतौर फीस दी गई है. बहरहाल, टीवी कई बड़ी अभिनेत्रियों के रिटायरमैंट को खुशनुमा बना रहा है फिर चाहे वे सोनाली हों या माधुरी दीक्षित.

विवादों में यसुदास

मशहूर गायक यसुदास यों तो दक्षिण भारतीय फिल्मों के गीत गाते हैं लेकिन हिंदी संगीतप्रेमी उन्हें राजश्री की फिल्मों में उन के गाए मधुर गीतों के लिए जानते हैं. यसुदास इन दिनों महिला विरोधी बयान दे कर विवादों में फंसते नजर आ रहे हैं. बीते 2 अक्तूबर यानी गांधी जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में वे मौजूद थे. उसी दौरान दिए गए एक बयान में उन्होंने कह दिया कि महिलाओं को जींस पहन कर दूसरों के लिए मुसीबत का कारण नहीं बनना चाहिए. अगर महिलाएं जींस पहनती हैं तो यह भारतीय संस्कृति के भी खिलाफ है. यसुदास अपने इस बयान पर फंस गए.

नेहा की पुरुषों को नसीहत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता मिशन को ले कर देशभर के जानेपहचाने सैलिब्रिटीज को न्योता दे रहे हैं कि वे आएं और भारत को स्वच्छ करें. इस लिस्ट में सलमान खान से ले कर सचिन तेंदुलकर जैसी दिग्गज हस्तियां शामिल हैं. लेकिन एक फिल्मी कलाकार ऐसा भी है जो पीएम के स्वच्छता अभियान पर तंज कसता दिखाई दे रहा है. यह फिल्मी कलाकार कोई और नहीं बल्कि अभिनेत्री नेहा धूपिया हैं. नेहा के मुताबिक, भारत स्वच्छ देश कैसे बन सकता है जब तक पुरुषों के दिमाग में औरतों के लिए गंदगी भरी रहती है. उन का कहना है कि देश को झाड़ू से साफसुथरा करने का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक पुरुष नारी को सम्मानपूर्वक न देखे. वैसे नेहा की बात तो सही है, भले ही उन्होंने पब्लिसिटी के लिए कही हो.

नैतिकता या दादागीरी

अभिनेत्री प्रीति जिंटा इन दिनों अभिनय के लिए  कम विवादों के चलते ज्यादा सुर्खियों में रहती हैं. पूर्व प्रेमी और बिजनैस पार्टनर नेस वाडिया से हुआ उन का विवाद भले ही अदालती प्रक्रिया में है लेकिन उन के तेवर कहीं से भी फीके पड़ते नहीं दिख रहे हैं. पिछले दिनों उन्होंने फिल्म देखने आए एक शख्स को थिएटर से बाहर निकलवा दिया. यह शख्स रितिक रोशन की फिल्म बैंगबैंग देखने आया था. संयोगवश उसी थिएटर में प्रीति भी मौजूद थीं. जैसे ही फिल्म की शुरुआत में थिएटर में राष्ट्रगान प्रसारित हुआ, सभी अपनी कुरसी से उठ खड़े हुए लेकिन वह शख्स बैठा रहा. प्रीति को गुस्सा आ गया और उन्होंने उसे थिएटर से बाहर का रास्ता दिखवा दिया. इस घटना के बाद कुछ लोग प्रीति को नैतिकतावादी कह रहे हैं तो कुछ उन की दादागीरी की आलोचना भी कर रहे हैं.

डैंजरस आलिया

अभिनेत्री आलिया भट्ट इंटरनैट यूजर्स के लिए बेहद खतरनाक हो चुकी हैं. अगर आप भी इस अभिनेत्री के के्रजी फैंस में से एक हैं और इंटरनैट पर उन्हें खोजते रहते हैं तो आप वायरस के जाल में फंस सकते हैं. दरअसल, इंटरनैट सुरक्षा मुहैया करने वाली एक ऐंटीवायरस कंपनी के मुताबिक, आलिया के बारे में इंटरनैट पर सर्च करने पर मोबाइल या कंप्यूटर पर वायरस का अटैक होता है. इस लिहाज से आलिया को सर्च करना काफी खतरनाक है. गौरतलब है कि यह ऐंटीवायरस कंपनी प्रतिवर्ष ऐसे अभिनेताओं को शौर्टलिस्टेड करती है जिन के नाम पर इंटरनैट पर खतरनाक वायरस फैल चुके हैं. इस लिस्ट में जहां आलिया शीर्ष पर हैं तो वहीं आमिर खान नंबर दो पर जमे हैं.

बलविंदर सिंह फेमस हो गया

इस फिल्म में बलविंदर सिंह का किरदार निभाया है गायक मीका सिंह ने. यह वही मीका सिंह है जिस ने एक पार्टी के दौरान राखी सावंत को दबोच कर चूम लिया था. जब कोई गायक गायन का क्षेत्र छोड़ कर अभिनय के क्षेत्र में अपनी टांग घुसाता है तो उस का हश्र वही होता है जो हिमेश रेशमिया का हो चुका है. जिस तरह हिमेश रेशमिया फेमस नहीं हो पाया उसी तरह मीका सिंह का फेमस हो पाना मुश्किल है.

‘बलविंदर फेमस हो गया’ बेसिरपैर की कहानी पर बनी फिल्म है. फिल्म में क्रिएट की गई कौमेडी एक तमाशा ही है. कहानी लुधियाना के डगरू गांव के बलविंदर उर्फ बल्लू (मीका सिंह) की है जो फेमस होने के लिए मुंबई आता है. मुंबई में जहां वह ठहरता है वहां एक और बलविंदर सिंह (शान) पटियाला वाला भी है.

कहानी में ट्विस्ट आता है. एक करोड़पति रामबहादुर सोढ़ी (अनुपम खेर) की कार का ऐक्सिडैंट होता है और एक औरत उस के जिंदा बचे एकमात्र पोते (बड़ा हो कर शान) को उठा कर भाग जाती है. 25 सालों बाद रामबहादुर को वह औरत मिलती है लेकिन उस की याददाश्त जा चुकी होती है. दोनों बलविंदरों के साथसाथ कई और बलविंदर राय साहब की जायदाद का वारिस बनने के लिए उन के पास पहुंचते हैं. आखिरकार उस औरत की याददाश्त लौट आती है और वह राय साहब को उन के असली पोते से मिलवाती है. दोनों बलविंदर बिना फेमस हुए अपनेअपने शहर लौट जाते हैं. फिल्म का निर्देशन बेहद कमजोर है. क्लाइमैक्स में सभी कलाकार महिला वेश धारण कर अस्पताल में भगदड़ मचाते. फिल्म के कुछ संवाद द्विअर्थी हैं. सभी गीत पंजाबी फ्लेवर के हैं. मीका सिंह के गाए. गीतों में दम नहीं है. छायांकन साधारण है.

अनुपम खेर जैसे कलाकार को जाया किया गया है. राजपाल यादव हंसाने में नाकामयाब रहा है. फिल्म के अंत में सनी लियोनी पर हौट आइटम सौंग फिल्माया गया है.

बैंग बैंग

‘बैंग बैंग’ ऐक्शन थ्रिलर है. इस फिल्म में आप को सलमान खान की फिल्मों ‘दबंग’, ‘एक था टाइगर’, ‘किक’, ‘वांटेड’ में देखे गए ऐक्शन सीन देखने को मिल जाएंगे. इस में कोई शक नहीं है कि निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने इन दृश्यों को फिल्माने में बड़ी मेहनत की है. फिल्म को विदेशों की लोकेशनों पर शूट किया है, फिर भी ‘बैंग बैंग’ में से फ्रिज में रात के बचे रखे खाने की सी स्मैल आती है. ऐसा लगा जैसे निर्देशक ने दीवाली के मौके पर ‘सेल’ का माल सजाधजा कर पेश किया है.

‘बैंग बैंग’ में रितिक रोशन और कैटरीना कैफ की औनस्क्रीन कैमिस्ट्री काफी अच्छी बन पड़ी है. कैटरीना कैफ की रितिक के साथ यह दूसरी फिल्म है. इस से पहले वह ‘जिंदगी मिलेगी न दोबारा’ में नजर आई थी. ‘बैंग बैंग’ में उसे आईज कैंडी की तरह दिखाया गया है. इस हौट बाला ने अपनी क्लीवेज दिखा कर दर्शकों को आंखें सेंकने का मौका दिया है. रितिक के साथ उस ने खुल कर रोमांटिक सीन किए हैं. फिर भी यह फिल्म न तो पूरी तरह रोमांटिक बन पाई है, न ही पूरी तरह से ऐक्शन थ्रिलर. निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने जितनी मेहनत रितिक के ऐक्शन सीन और विदेशी लोकेशनें दिखाने में की है उतनी मेहनत अगर वह कहानी और पटकथा पर करता तो फिल्म अच्छी बन सकती थी.

टौम कू्रज और कैमरून डियाज की 2010 में आई फिल्म ‘नाइट ऐंड डे’ की रीमेक है ‘बैंग बैंग’. फिल्म में दिखाए गए स्टंट सीन हौलीवुड की फिल्मों की कमजोर नकल भर लगते हैं. फिल्म की कहानी कोहिनूर हीरे को चुराने की है लेकिन यह चोरी की कहानी दर्शकों के दिमाग से फुर्र होती जाती है, दर्शक रितिक के स्टंट दृश्यों में खोते चले जाते हैं.

कहानी की शुरुआत लंदन के एक म्यूजियम से कोहिनूर हीरे की चोरी से होती है. इस चोरी से भारत में भी हलचल मची है. उधर, शिमला में चोर राजवीर (रितिक रोशन), हामिद (जावेद जाफरी) की प्यादों के साथ सौदेबाजी कर रहा है. सौदेबाजी नहीं हो पाती तो राजवीर वहां से भाग निकलता है. हामिद के साथी हाथ मलते रह जाते हैं. राजवीर की मुलाकात शिमला के एक बैंक में काम करने वाली हरलीन (कैटरीना कैफ) से होती है. अब हामिद के आदमी राजवीर के साथसाथ हरलीन की भी जान के पीछे पड़ जाते हैं. राजवीर हरलीन को ले कर एक अनजान टापू पर पहुंचता है. अब राजवीर द्वारा उमर जफर (डैनी) की तलाश शुरू होती है जो कोहिनूर हीरे का मालिक बनना चाहता है. राजवीर उमर जफर को मार डालता है. तभी रहस्य खुलता है कि राजवीर को एक खुफिया मिशन पर भारत सरकार द्वारा भेजा गया था. अब उस की पोस्टिंग किसी गुप्त जगह पर की जाएगी. लेकिन हरलीन राजवीर को छिपतेछिपाते उस के मातापिता के पास पहुंचा देती है.

फिल्म की इस कहानी में कब क्या क्यों हो रहा है, इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है. मारधाड़, गोलीबारी, गाडि़यों का हवा में उड़ना, नायकनायिका का एक देश से दूसरे देश में बिना पासपोर्ट के पहुंच जाना, फिर वापस लौट आना जैसी सिर धुनने वाली बातें हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स भी जानापहचाना है. फिल्म की गति तेज है. रितिक ने ‘कृष’ और ‘धूम’ फिल्मों जैसे ऐक्शन सीन किए हैं. कैटरीना कैफ हौट लगी है. मगर वह हिंदी में संवाद ठीक ढंग से नहीं बोल पाई. डैनी की भूमिका और ज्यादा होती तो अच्छा था. फिल्म की लंबाई ज्यादा है. इसे कम किया जा सकता था. गीतसंगीत कामचलाऊ है. रितिक और कैटरीना के डांस अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म के अंत में फिल्माया गया गाना भी अच्छा है. छायांकन अच्छा है.

हैदर

शेक्सपियर के नाटक ‘हेमलेट’ से प्रेरित और कश्मीर की पृष्ठभूमि पर बनाई गई फिल्म ‘हैदर’ काफी सीरियस फिल्म है. फिल्म 90 के दशक में कश्मीर घाटी में फैले आतंकवाद के हालात को बयां करती है, साथ ही घाटी में लंबे समय तक फौजों की मौजूदगी, नागरिकों की तलाशी और हर वक्त उन के पास आइडैंटिटी कार्ड होने की अनिवार्यता के बावजूद वहां के हजारों नौजवानों का गायब हो जाना और फिर उन की लाशों का झेलम में मिलना जैसे मुद्दों को भी ईमानदारी से उठाती है. निर्देशक विशाल भारद्वाज इस से पहले शेक्सपियर के ही नाटकों ‘मैकबैथ’ और ‘ओथेलो’ पर क्रमश: ‘मकबूल’ और ‘ओमकारा’ जैसी फिल्में बना चुके हैं. ‘हैदर’ की पृष्ठभूमि एक ज्वलंत क्षेत्र की है जबकि ‘मकबूल’ और ‘ओमकारा’ की पृष्ठभूमि में अपराधजगत था. यह जोखिम का काम था और निर्देशक ने बखूबी उसे निभाया है

‘हैदर’ की विशेषता है शाहिद कपूर का अभिनय. शाहिद को इस फिल्म में अलगअलग अंदाज में देखा जा सकता है. अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पढ़ कर लौटा सीधासादा शाहिद, लाल चौक पर राजनीति की खिल्ली उड़ाता शाहिद, अपने पिता से प्यार करता शाहिद, अपनी मां और चाचा से नफरत करता शाहिद, साथ ही अपनी प्रेमिका अर्शिया को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाला शाहिद. शाहिद कपूर ने एकएक सीन में जान डाल दी है. इस के अलावा ‘हैदर’ के अन्य किरदार, चाहे वह हैदर की मां गजाला (तब्बू) का किरदार हो या चाचा खुर्रम (के के मेनन) का या फिर हैदर की प्रेमिका अर्शिया (श्रद्धा कपूर) का, सब के सब बिना बोले ही अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते हैं.

फिल्म की पटकथा जबरदस्त है. इसे विशाल भारद्वाज ने कश्मीर के पत्रकार बशारत पीर की किताब ‘कर्फ्यूड नाइट्स’ से प्रेरित हो कर लिखा है. विशाल भारद्वाज ने ‘हेमलेट’ की कहानी में कुछ बदलाव कर उस में बदले की कहानी को भी जोड़ा है.

कहानी अलीगढ़ में पढ़ कर अपने घर लौटे युवक हैदर (शाहिद कपूर) की है. हैदर को पता चलता है कि उस के पिता को सुरक्षा एजेंसियों वाले जांच के लिए पकड़ कर ले गए हैं और उस की मां गजाला (तब्बू) पर उस का चाचा खुर्रम (के के मेनन) डोरे डाल रहा है. अपने पिता की तलाश में हैदर का मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है. इसी दौरान उसे पता चलता है कि उस के पिता की मौत हो चुकी है और उस की मां उस के चाचा से निकाह करने वाली है. उसे यह भी पता चलता है कि उस के पिता की गिरफ्तारी और मौत के पीछे अब नेता बन चुके उस के चाचा खुर्रम की ही साजिश थी. वह अपने चाचा से इंतकाम लेना चाहता है. उधर, उस की प्रेमिका अर्शिया का पुलिस कप्तान पिता डबल गेम खेल कर शाहिद को मरवाना चाहता है परंतु शाहिद उसे मार डालता है. खुर्रम अपने लावलश्कर के साथ हैदर को मारने के लिए पहुंचता है परंतु गजाला वहां पहुंच कर खुद को बम से उड़ा लेती है. बम धमाके में खुर्रम भी गंभीर रूप से घायल हो कर मर जाता है.

फिल्म में नायक का अपनी मां के प्रति अगाध प्रेम दिखाया गया है जो मनोवैज्ञानिकों की भाषा में ओडीपस कौंप्लैक्स कहा जाता है. नायक अपने पिता के हत्यारे से तो बदला लेना चाहता ही है, साथ ही पिता के अलावा किसी और की बांहों में मां को देख नहीं सकता. इसलिए उस ने चाचा को मार कर दोनों बदले लेने की कोशिश की है. यह एक अछूता विषय है और हमारे यहां इस पर फिल्म बनाने की बात तो दूर, कहानी लिखने की हिम्मत भी कम ही लोग कर पाएंगे. अच्छी कहानी के साथ फिल्म में शूटिंग का जबरदस्त योगदान है. कश्मीर की छवि भी जोरदार है. फिल्म की लंबाई ज्यादा है. श्रद्धा कपूर और शाहिद कपूर के रोमांस के दृश्यों ने ही थोड़ी राहत दी है वरना फिल्म शुरू से आखिर तक दर्शक के मन पर अपने सीरियसपन के साथ छाई रहती है.

फिल्म का निर्देशन बढि़या है. विशाल भारद्वाज ने कश्मीर घाटी की सुंदरता को सुंदर तरीके से दिखाया है. बहुत दिनों बाद किसी फिल्म में कश्मीर में बर्फ से ढकी घाटियां देखने को मिलीं. क्लाइमैक्स में बर्फ से ढके कब्रिस्तान में खूनी होली का खेल काफी खूंखार बन पड़ा है. फिल्म के बहुत से सीन डार्क हैं तो बहुत से सीन जगमग करते हुए दिखते हैं. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. फिल्म के गीत गुलजार ने लिखे हैं. एक गीत ‘बिस्मिल बिस्मिल बुलबुल’ अच्छा बन पड़ा है, बाकी कोई गाना याद नहीं रहता. फिल्म का छायांकन अच्छा है. फिल्म देखने पर ही पता चलता है कि आखिर शेक्सपियर को क्यों महान नाटककार माना गया है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें