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देह व्यापार में अभिनेत्रियां

इन दिनों फिल्म अभिनेत्रियों के देह व्यापार में लिप्त होने के कई खुलासे हो रहे हैं. पिछले दिनों हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता बसु हैदराबाद पुलिस की गिरफ्त में आई थी. श्वेता पर आरोप है कि वह देह व्यापार करती है. श्वेता के साथ बतौर एजेंट काम कर रहे सहायक निर्देशक बालू को भी अरैस्ट किया गया है. श्वेता बसु का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि एक अन्य साउथ इंडियन अभिनेत्री सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार की गई. पुलिस के छापे में यह अभिनेत्री रंगेहाथों पकड़ी गई है. इस रैकेट को चलाने में अभिनेता पवन कुमार की भी अहम भूमिका थी. मनोरंजन उद्योग की स्याह तसवीर दिखाती ये खबरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

ऋतिक की पहल

जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ आपदा ने पूरे देश का ध्यान खींचा है. केंद्र सरकार समेत कई राज्य बाढ़ पीडि़तों की मदद के लिए सरकारी खजाने खोल चुके हैं. ऐसे में बौलीवुड भी अपनी दरियादिली दिखाने में पीछे नहीं रहा. अभिनेता ऋतिक रोशन ने एक खुला पत्र लिख कर अपील की है कि उन के चाहने वाले मिल कर फंड जमा करें. साथ ही, उन्होंने किट, जिस में कंबल, टूथपेस्ट, साबुन जैसे जरूरी सामान होंगे, के लिए पैसा जुटाने की अपील की है. खुद ऋतिक 200 किट डोनेट करेंगे. ऋतिक ने कश्मीर में कई दफा शूटिंग की है. वहां के लोगों के प्रति उन के मन में सहानुभूति है. ऋतिक का यह कदम काबिलेतारीफ है.

शाहरुख ने रोका रास्ता

शाहरुख खान का बंगला ‘मन्नत’ हमेशा किसी न किसी विवाद को ले कर सुर्खियों में बना रहता है. कभी जमीन विवाद को ले कर तो कभी मीडिया की दखलंदाजी को ले कर. इन दिनों ‘मन्नत’ के साथ वाली रोड को खोलने के लिए मुंबई नगर महापालिका में शिकायत की गई है. दरअसल मन्नत के बगल वाली रोड माउंट मैरी चर्च तक पहुंचने का शौर्टकट है, लेकिन शाहरुख की सुरक्षा के मद्देनजर इसे बंद रखा जाता है. लिहाजा, वाचडौग फाउंडेशन ने बीएमसी को लिखे पत्र में आम लोगों के लिए उक्त रोड को खोलने की मांग की है. वैसे भी इस रास्ते को जन साधारण के लिए बंद करना गैरकानूनी है. देखते हैं बीएमसी शाहरुख की सुरक्षा को ही तवज्जुह देती है या फिर आम जनता की सुनती है.

दीपिका की नाराजगी

दीपिका पादुकोण हिंदी फिल्मों की सब से सफल अभिनेत्री बन चुकी हैं. लगातार कई 100 करोड़ी फिल्में देने के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है. लेकिन पिछले दिनों उन की फिल्म फाइंडिंग फैनी को ले कर हुए विवाद से वे काफी खफा हैं. दरअसल, उन की फिल्म में वर्जिन शब्द के ऊपर सैंसर बोर्ड ने कैंची चला दी. जबकि दीपिका के मुताबिक, फिल्म के ट्रेलर को ‘वर्जिन’ शब्द के साथ पास किया गया है. अब ऐसा कैसे हो सकता है कि जो शब्द ट्रेलर में सैंसर न हो और फिल्म में उस पर कैंची चल जाए. लिहाजा, उन का नाराज होना स्वाभाविक है. बहरहाल, दीपिका की फाइंडिंग फैनी रिलीज हो चुकी है और वे दीवाली पर रिलीज हो रही शाहरुख के साथ बनी फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ को ले कर खासी उत्साहित हैं.

राजा नटवरलाल

जिस तरह रात भर फ्रिज में रख कर सुबह उसी बासी खाने को तड़का लगा कर पेश किया जाए, उसी प्रकार इस फिल्म की कहानी को मसालों का छौंक लगा कर पाकिस्तानी अदाकारा, जो आईस कैंडी ज्यादा लगती है, के साथ पेश किया गया है. बात करें इमरान हाशमी की, तो अब उस के ‘किस’ करने से झुरझुरी पैदा नहीं होती बल्कि बू आने लगती है. इस फिल्म में भी उसे पाकिस्तान की इस अदाकारा को चूमने के कई मौके मिले हैं. कभी वह उसे लिफ्ट में चूमता है तो कभी रूम में. अगर उस की ऐक्ंिटग की बात करें तो पूरी फिल्म में उस ने बेमन से काम किया है.

इस फिल्म में कई फिल्मों की नकल है. फिल्म की कहानी क्रिकेट के आसपास घूमती है, साथ ही इस में ठगी की करतूतों को भी अंजाम दिया गया है. ठगी की जो ट्रिक्स अपनाई गई हैं वे इतनी बेकार हैं कि यकीन ही नहीं होता कि एक अरबपति आदमी भी इन ठगों की चाल में फंस सकता है फिल्म की कहानी 2 ठगों, राजा (इमरान हाशमी) और राघव (दीपक तिजोरी) की ठगी की करतूतों से शुरू होती है. राजा की एक प्रेमिका है जिया (हुमैमा मलिक) जो एक बार में डांसर है. एक दिन राजा और राघव करोड़पति वर्धा यादव (के के मेनन) के आदमियों से ठगी कर के 80 लाख रुपए लूट लेते हैं. वर्धा यादव के आदमी राघव को मार डालते हैं.

राजा वर्धा से बदला लेने के लिए योगी (परेश रावल) के पास धर्मशाला चला जाता है. दोनों मिल कर एक योजना बनाते हैं. वे केपटाउन पहुंच जाते हैं, जहां वर्धा रहता है और उसे 100 करोड़ रुपए में नकली टी-20 क्रिकेट टीम बेच देते हैं. वर्धा को उन की चाल पता चल जाती है लेकिन तब तक दोनों वर्धा के 15 हजार करोड़ रुपए अलगअलग 15 अकाउंटों में ट्रांसफर कर वर्धा को कंगाल बना देते हैं.

फिल्म की यह कहानी कमजोर है. पटकथा भी ढीली है. गाने ठूंसे हुए लगते हैं. नटवरलाल के कारनामे सिहरन पैदा करने के बजाय हंसी ज्यादा पैदा करते हैं. योगी की भूमिका में परेश रावल को जाया किया गया है. वह थकाथका सा लगा है. वर्धा यादव की भूमिका में के के मेनन नाटकीय लगा है. पाकिस्तानी अदाकारा हुमैमा मलिक खूबसूरत लगी है. ऐसा नहीं है कि उसे अभिनय नहीं आता. उस ने अंतरंग दृश्य देने के साथसाथ अपने अभिनय से भी दर्शकों को चौंकाया है.

फिल्म मध्यांतर से पहले बहुत धीमी है. मध्यांतर के बाद फिल्म में गति आ पाती है. क्लाइमैक्स में क्या होगा, इस का अंदाजा पहले ही लग जाता है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. फिल्म के अंत में डाला गया एक गाना अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है. केपटाउन की लोकेशनें अच्छी बन पड़ी हैं.

मैरी कोम

‘मैरी कोम’ भारत की एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कोम के जीवन संघर्ष पर आधारित है. सफल लोगों के संघर्ष पर बनने वाली फिल्मों में से यह एक है और प्रियंका चोपड़ा की परफौर्मेंस में उस का मैरी कोम के किरदार को जीवंत बनाने का जज्बा दिखता है.

हमारे देश में स्पोर्ट्स पर बहुत ही कम फिल्में बनी हैं. ‘चक दे इंडिया’ हौकी पर थी पर नकली कहानी थी. ‘भाग मिल्खा भाग’ असल बायोपिक पर थी. ये दोनों फिल्में खूब चलीं और इन्होंने वाहवाही लूटी. ‘मैरी कोम’ में इन दोनों फिल्मों की तरह तीखापन तो नहीं है पर इस में मैरी कोम के जीवन की सचाई को सामने सफलता से लाया गया है. निर्देशक ओमंग कुमार ने लगभग 2 घंटे की इस फिल्म में मणिपुर की मुक्केबाज मैरी कोम की बचपन से ले कर विश्व चैंपियन बनने तक की कहानी बयां की है. ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है.

‘मैरी कोम’ में सिर्फ बौक्ंसग ही नहीं है, इमोशंस भी हैं, पतिपत्नी का प्यार भी. नायिका को हालात से लड़ते हुए ऊंचाइयों तक पहुंचते हुए दिखाया गया है. उस का पिता उसे बाप और बौक्ंिसग में से किसी एक को चुनने को कहता है तो वह अपने पिता के बजाय बौक्ंिसग को चुनती है.

पूरी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने बहुत मेहनत की है. नैचुरल लगने के लिए उस ने बौक्ंसग सीखी और जिम में जा कर कईकई घंटों तक रोजाना वर्कआउट किया. नतीजा यह है फिल्म को देखते वक्त दर्शकों के दिमाग पर मुक्केबाज मैरी कोम ही हावी रहती है. ठीक है कि प्रियंका चोपड़ा की बौडी लैंग्वेज ऐसी है कि वह मैरी कोम की तरह हार्ड नहीं लगती पर वह मैरी कोम को परदे पर सदा के लिए अमर कर गई है. फिल्म को प्रियंका चोपड़ा की परफौर्मेंस के कारण देखा जाना चाहिए कि साधारण घर की लड़की संघर्ष कर के क्या नहीं कर सकती.

मुक्केबाजी में 5 बार वर्ल्ड चैंपियन रही मुक्केबाज मैरी कोम की कहानी इंफाल से शुरू होती है. शहर दंगों की चपेट में है. मैरी कोम का पति ओनलर (दर्शन कुमार) अपनी पत्नी को डिलीवरी के लिए अस्पताल ले कर जा रहा है.

यहां कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. मैरी कोम के स्कूली दिनों से ले कर पिता से विद्रोह कर के बौक्ंसग कोच थापा (सुनील थापा) की एकेडमी तक पहुंचने की कहानी है. वह सफल मुक्केबाज बन जाती है और कई पदक पा लेती है. मुक्केबाज बनने का उस का सपना पूरा होता है. एक दिन उस का दोस्त ओनलर उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है तो वह ना नहीं कर पाती. उस की शादी हो जाती है और वह 2 जुड़वां बच्चों की मां बन जाती है. अब उस में वह ऊर्जा नहीं रह पाती. उस का पति उसे दोबारा मुक्केबाजी के लिए प्रेरित करता है. वह कमबैक करती है. परंतु खेल प्रशासन की बेरुखी के कारण उसे बारबार अपमान का सामना करना पड़ता है. आखिरकार वह खेल प्रशासन से माफी मांगती है और वर्ल्ड चैंपियनशिप मुकाबले में भाग लेती है. वह यह चैंपियनशिप जीत कर स्वर्ण पदक विजेता बनती है.

फिल्म की कहानी कुछ हद तक दर्शकों को बांधे रखती है. निर्देशक ने मैरी कोम की जीवनी को सीधेसीधे फिल्माया है. उस ने सिनेमेटिक लिबर्टी नहीं ली है. प्रियंका चोपड़ा के कैरियर के लिए यह एक अहम फिल्म है. इस से पहले उस ने ‘बरफी’ फिल्म में दर्शकों की वाहवाही लूटी थी. इस फिल्म में फाइटिंग सीन्स में उस ने डुप्लीकेट का इस्तेमाल नहीं किया है.

फिल्म में फाइट सीन काफी लंबे खींचे गए हैं. मध्यांतर से पहले फ्लैशबैक से आए सीन कहानी में ब्रेक लगाते प्रतीत होते हैं. मध्यांतर से पहले का भाग काफी धीमा है और कुछ ऊब पैदा करता है. लेकिन मध्यांतर के बाद का हिस्सा फिल्म में तेजी लाता है. हां, क्लाइमैक्स में वह जोश पैदा नहीं हो पाता जो ‘चक दे इंडिया’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ में क्रिएट हुआ था.

फिल्म में मैरी कोम के किरदार के माध्यम से भारतीय खेल प्रशासन द्वारा की जा रही धांधलियों और बेईमानियों का परदाफाश करते हुए दिखाया गया है. आज ऊंचेऊंचे पदों पर बैठे ऊंची जातियों के खेल अधिकारी किस तरह निचले व पिछड़े वर्ग से आए खिलाडि़यों का शोषण करते हैं, उस की पोल खोली गई है. खिलाडि़यों को सिर्फ चाय और केला दिया जाता है और डोरमेट्री में सोने की जगह दी जाती है जबकि अधिकारी खुद फाइवस्टार होटलों में लजीज खाना खाते हैं और ठाट से रहते हैं, इस का खुलासा भी है. शाबाश मैरी कोम.

यूएस ओपन के नए बादशाह बने मारिन सिलिच

क्रोएशिया के 14वीं वरीय खिलाड़ी मारिन सिलिच ने यूएस ओपन के पुरुष एकल फाइनल मुकाबले में जापान के केई निशिकोरी को हरा कर अपने कैरियर का पहला ग्रैंड स्लैम खिताब जीत लिया. सिलिच सेमीफाइनल में रोजर फेडरर को हरा कर यहां पहुंचे थे. वर्ष 2002 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब शीर्ष 10 से बाहर के किसी खिलाड़ी ने यूएस ओपन का खिताब जीता हो. वर्ष 2002 में पीट सैंप्रास ने 17वें वरीय खिलाड़ी के तौर पर यह खिताब जीता था. 25 वर्षीय सिलिच ने 13 वर्ष बाद क्रोएशिया को ग्रैंड स्लैम का खिताब दिलाया. इस से पहले 2001 में गोरान इवनिसेविच ने यह खिताब दिलाया था. अब वे सिलिच के कोच हैं. बचपन से ही टैनिस के प्रति उन का लगाव था और 5-6 वर्ष से ही उन्होंने टैनिस खेलना शुरू कर दिया था. पिछले ही वर्ष सिलिच विंबलडन के दौरान ड्रग्स सेवन के आरोपी पाए गए थे जिस के कारण उन्हें अमेरिकी ओपन से हटना पड़ा था.

जीत के बाद उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से, खासकर पिछले वर्ष से मैं ने काफी मेहनत की थी. 6 फुट 6 इंच लंबे और 82 किलोग्राम के सिलिच और 5 फुट 10 इंच लंबे और 68 किलोग्राम के निशिकोरी के बीच विपरीत शैली का यह मुकाबला था. निशिकोरी ने भी स्वीकार किया कि सिलिच ने खेल के हर विभाग में हराया और वास्तव में वे बहुत अच्छा खेले और मैं अच्छा टैनिस नहीं खेल पाया. यह मेरी कड़ी हार थी लेकिन उम्मीद है कि मैं अगली बार ट्रौफी जरूर हासिल करूंगा.

क्रिकेट की पिच पर धर्म परिवर्तन!

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तानी बल्लेबाज अहमद शहजाद और श्रीलंका के खिलाड़ी तिलकरत्ने दिलशान के बीच हुई आपसी बातचीत में धार्मिक टिप्पणी की जांच के लिए एक समिति बनाई है. हुआ यों था कि दंबुला में श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच एकदिवसीय मैच चल रहा था. जैसे ही मैच खत्म हुआ तो ड्रैसिंगरूम की ओर लौटते समय अहमद शहजाद ने तिलकरत्ने से कहा कि अगर कोई गैर मुसलिम इसलाम कुबूल कर लेता है तो वह सीधा जन्नत में जाता है. लेकिन इस के जवाब में तिलकरत्ने ने कहा कि नहीं, मुझे अपना धर्म नहीं बदलना है. इस पर शहजाद ने कहा कि तो फिर तैयार रहो आग में जलने के लिए.

बात जांच की नहीं है, सोच की है. अब तक खेलों में राष्ट्र भावना देखी गई है लेकिन शहजाद के इस रवैए से खेलों में धार्मिक कट्टरता की मानसिकता रोपित होती दिख रही है. हर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी का इस तरह मजहबी दखलंदाजी करना आम जनता को नकारात्मक संदेश भेजेगा. धार्मिक कट्टरता से दुनिया के बड़ेबड़े मुल्क मारकाट के शिकार हुए हैं. सीरिया व इराक इस बात के गवाह हैं जो शहजाद को या फिर दिलशान को अपना रोल मौडल मानते होंगे. भला वे क्या सीखेंगे इन से? अगर खिलाड़ी इस तरह धर्म की पैरवी करने लगे तो न खेल बच पाएगा और न ही खिलाड़ी. आज पिच पर धर्म के नाम पर सिर्फ जिरह हो रही है. कल को लव जिहाद की तर्ज पर खेल जिहाद का गंदा खेल शुरू हो जाए तो आश्चर्य कैसा. दरअसल, तिलकरत्ने दिलशान मुसलमान पिता और बौद्ध मां के बेटे हैं. इस से पहले उन का नाम तुआन मोहम्मद दिलशान था.

लेकिन बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया. इस के पहले जब उन्हें मुसलिम नाम दिया गया तब भी वे अपनी मां के धर्म का पालन करते थे. दिलशान ने वर्ष 1999 में जब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत की थी तब अपना नाम तिलकरत्ने मुदियांसेलगे दिलशान रख लिया था.

23 वर्षीय अहमद शहजाद पाकिस्तान के टौप और्डर के बैट्समैन हैं और अपने आक्रामक खेल के लिए जाने जाते हैं. लाहौर में जन्मे शहजाद और दिलशान के बीच इस से पहले लड़ाई भी हो चुकी है. शहजाद ने दिलशान का बैट पकड़ लिया था और शाहिद अफरीदी ने उस वक्त बीचबचाव किया था. इस के लिए शहजाद को आईसीसी ने जुर्माना भी ठोका था.

मेरे पापा

जब मैं कक्षा 4 में थी तब मैं ने अपने पापा से नई साइकिल की मांग की. मेरे पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम इस बार कक्षा में प्रथम आईं तो नई साइकिल दिलवा दूंगा.’’ मैं ने खूब मेहनत की और वार्षिक परीक्षा में मैं प्रथम आई. मेरे पापा को भी शायद यकीन न था कि मैं उन की यह शर्त जीत जाऊंगी. उन्होंने नई साइकिल खरीद कर देते हुए कहा, ‘‘यह जनून जीवनभर रखना.’’ उन की यह बात मेरी प्रेरणा बनी. सच ही तो कहा मेरे पापा ने कि आदमी अपनी लगन से क्या कुछ नहीं कर सकता.

सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

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मैं 5 भाईबहनों में तीसरी हूं. सब से छोटा भाई है. हमारा परिवार सामान्य आर्थिक स्थिति वाला था. ऐसे में एक छोटे शहर की मानसिकता के साथ कभीकभी कच्ची उम्र की कुंठा भी मन में घर करती थी. बात तब की है जब मैं उम्र के 15वें साल से गुजर रही थी. मैं बाबूजी के पास बैठी थी. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे जैसा बदनसीब कौन होगा, जिस की 4 बेटियां हैं.’’ ऐसा सुनते ही मेरे चेहरे पर हीनभावना, डर और उपेक्षा के भाव एकसाथ उभर आए परंतु बाबूजी की बात अभी जारी रही, ‘‘ऐसा इसलिए कह रहा हूं बेटा, क्योंकि इतनी प्यारी बेटियों को शादी कर के दूर भेजना है और मुझे 4 बार हृदयाघात जैसा कष्ट सहना है.’’ मेरे मनोभाव तुरंत बदल गए और अपने पिता की स्नेहसिक्त बातों से न सिर्फ उन के लिए श्रद्धा बढ़ गई बल्कि मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया.

सीमा ओझा, बक्सर (बिहार)

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मेरे पापा अपने पूरे परिवार में पहले युवक थे जिन्होंने मैट्रिक पास की थी और उन्हें तुरंत बैंक में नौकरी भी मिल गई. हमारे परिवार वाले राजस्थान के एक गांव में रहते थे और खेतीबाड़ी करते थे. उस जमाने में पढ़ाईलिखाई का इतना चलन नहीं था. लेकिन पापा को शौक था इसलिए उन्होंने अपने बच्चों यानी हम पांचों भाईबहनों को खूब पढ़ाया. पढ़ाई के अलावा उन्होंने हम सभी को अच्छी पुस्तकें, पत्रिकाएं, अखबार पढ़ने को भी प्रेरित किया.

बच्चों की पत्रिकाएं जैसे सुमन सौरभ, चंदामामा, पराग, नंदन इत्यादि नियमित रूप से हमारे लिए पापा खरीदते और जैसेजैसे हम बड़े हुए उसी हिसाब से पत्रिकाएं भी बदलती रहीं लेकिन बचपन की यह आदत आज भी हम सभी में ज्यों की त्यों है. कंप्यूटर के युग के बावजूद हम और हमारे बच्चे आज भी पत्रिकाएं पढ़ने का आनंद उठाते हैं. आज पापा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ऐसी अच्छी आदत डालने के लिए, जिस से मेरी जिंदगी बदल गई, उन्हें मेरा सलाम.

विमला गुगलानी, चंडीगढ़ (पंजाब)

पाठकों की समस्याएं

मैं 45 वर्षीय विवाहिता, 3 बच्चों की मां हूं. मेरे पति बहुत अच्छे हैं. घर में सबकुछ ठीक है पर अचानक कुछ समय से मुझे अपने से काफी छोटे उम्र के लड़के से प्यार हो गया है और मैं उस के साथ पतिपत्नी वाले रिलेशनशिप में हूं. हमारे इस रिश्ते को मेरी बेटी भी जानती है. मैं बहुत परेशान हूं. क्या करूं?

आप एक परिपक्व आयु की होते हुए भी छिछोरे मन की महिला हैं. घर में सबकुछ ठीक और व्यवस्थित है, फिर भी आप एक कम आयु के लड़के से प्यार करने की गलती कर बैठीं. हैरानी होती है कि आप की बेटी भी ये सब जानती है, फिर भी आप इस रिलेशनशिप में हैं. खुद सोचिए कि आप की बेटी आप की इस हरकत से क्या सबक लेगी. कल को वह भी ऐसा कुछ करने लगे तो आप क्या कुछ कहने की स्थिति में होंगी? आप को इतने अच्छे पति व बच्चे मिले हैं. उन की सज्जनता का गलत फायदा उठा रही हैं आप. अपने इस असामाजिक रिश्ते पर फौरन पूर्णविराम लगा दीजिए वरना आप कहीं की न रहेंगी.

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मैं 35 साल का विवाहित, 2 बेटियों का पिता हूं. पत्नी 28 साल की है. इधर कुछ समय से उसे सैक्स की बातों व सैक्स में अरुचि हो गई है. वह सैक्स पर बात तक करना पसंद नहीं करती. मुझे उस का सामीप्य बहुत पसंद है, क्या करूं कि वह सैक्स में रुचि लेने लगे?

अकसर कुछ स्त्रियों में सैक्स को ले कर अरुचि हो जाती है. इसे मनोवैज्ञानिक रूप से देखें. पत्नी से सीधे सैक्स की बात न कर के पहले फोरप्ले करें. पत्नी को जो पसंद है, वही करिए. हो सकता है आप उस समय वे बातें करते हैं जब वैसा माहौल बना ही न हो. पत्नी को खुश रखें, सैक्स के अनुकूल माहौल बनाइए, हो सकता है कि पहल आप की पत्नी की ओर से ही हो जाए.

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मैं 24 वर्षीय अविवाहिता हूं और 40 वर्षीय पुरुष से मेरा विवाह होने वाला है. क्या यह विवाह ठीक रहेगा? क्या वे इस उम्र में पिता बन सकते हैं? कृपया बताइए, बहुत तनाव में हूं, क्या करूं?

पुरुष काफी उम्र तक पिता बन सकते हैं, मेनोपौज होने के बाद स्त्री मां नहीं बन सकती. आप के होने वाले पति आने वाले 30-35 साल तक भी बाप बन सकते हैं. यह निर्भर करता है पुरुष की सक्षमता पर. सब सोचविचार कर विवाह करें.

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मैं 16 वर्षीय अविवाहित छात्रा हूं. एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है पर जब भी उस से शादी की बात करती हूं तो उस का व्यवहार बदल जाता है. कहता है कि पहले कैरियर बनाऊंगा, वह पहले जरूरी है. मैं उस के बिना जी नहीं सकती, क्या करूं?

आप जैसी कम उम्र लड़कियां दोस्ती होते ही जीनेमरने तक पहुंच जाती हैं. आप का बौयफ्रैंड एकदम ठीक ही तो कह रहा है कि पहले कैरियर बनाना जरूरी है. कैरियर ही न बना तो शादी कर के भी क्या करेंगी आप. पहले जीवन में सैटिल हो जाइए, अभी विवाह के लिए काफी समय है. कैरियर बनने के बाद सब स्पष्ट हो ही जाएगा.

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मैं 25 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी को 5 वर्ष हो गए. 1 साल हम दोनों में अच्छी बनी. फिर ये बदल से गए, कहते हैं, तुम्हें खाना बनाने और एक पत्नी का फर्ज निभाने के लिए ही लाया हूं. इस बीच, हमारा एक परिचित लड़का काफी दिनों से मुझे पसंद कर रहा है, मैं भी उसे पसंद करती हूं. वह मुझ से दोस्ती करना चाहता है. मैं बहुत अकेली हूं, क्या करूं?

आप दोनों पतिपत्नी में 1 साल अच्छी बनी, उसी तर्ज पर फिर कोशिश कीजिए निभाने की, यह समझ लीजिए कि निभाना बेशक मुश्किल होता है और तोड़ना बहुत आसान. उस परिचित लड़के की ओर कभी ध्यान न दें वरना घर तो उजड़ेगा ही, पति से अलग होंगी सो अलग. यह परिचित सिर्फ आप से फायदा उठाना चाहता है. आप के पति ने यदि बातोंबातों में कह भी दिया कि पत्नीधर्म निभाने को आप को लाए हैं तो क्या हो गया, अपने विवाहित जीवन पर ध्यान दे कर पति के साथ निभाने की कोशिश कीजिए.

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मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं और नौकरी करती हूं. आजकल पति बेरोजगार हैं. वे दिन में सोना पसंद करते हैं और मुझे रात में भी नींद नहीं आती, क्या करूं?

चूंकि आप के पति कहीं काम नहीं करते तो दिन में उन्हें सोना अच्छा लगता है और चूंकि आप काम करती हैं तो जाहिर है आप को कई तरह की फिक्र भी रहती होगी. नींद न आने की समस्या ज्यादा हो तो डाक्टर से पूछ कर दवा ले सकती हैं. एक बार पति की कहीं नौकरी लग जाएगी तो उन का सोना भी व्यवस्थित हो जाएगा.

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मैं 20 वर्षीय अविवाहिता हूं. एक लड़का और मैं, दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. हम दोनों का ही कैरियर अभी तक ढंग से बन नहीं पाया है. उस के मांबाप हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं.
इधर, 1 महीने से हम दोनों में बहुत ज्यादा लड़ाईझगड़ा हो रहा है. उसे मेरा कहीं आनाजाना बिलकुल पसंद नहीं है. यह बात मुझे बहुत बुरी लगती है. हम दोनों के बीच जरा सी भी अंडरस्टैंडिंग नहीं बची. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

आप दोनों में ही जब अंडरस्टैंडिंग नहीं बची और उस के घर वाले भी आप लोगों की शादी के खिलाफ हैं तो आप को अपने इस फैसले के बारे में फिर से सोचना जरूरी है. वैसे भी आप दोनों का कैरियर ढंग से नहीं बना है और आप लोगों में झगड़ा भी बहुत होता है. ऐसे में आपसी सहमति से अपनी राहें जुदा कर लेना ही विकल्प रह जाता है. लड़ाईझगड़े में शादी की बुनियाद भी कमजोर ही होती है, सोचसमझ कर ही निर्णय लें.

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