कुछ अरसे पहले एक फिल्म ‘बागबान’ आई थी, जिस में फिल्म का हीरो बैंक का मैनेजर होता है तथा जिस के 4 लड़के पढ़लिख कर अपनीअपनी गृहस्थी में मस्त रहते हैं. मैनेजर रिटायर होने पर खुश होता है कि अब वह आराम से बाकी जिंदगी अपने बच्चों के साथ गुजारेगा. लेकिन हालात कुछ ऐसे होते हैं कि चारों लड़के 6-6 महीने के लिए एक लड़का मां को तथा दूसरा 6 महीने अपने बाप को रखने का फैसला करते हैं.
हीरो, हीरोइन के अलगअलग रहने से दोनों का बुरा हाल हो जाता है तथा तंग आ कर हीरो, जो अबतक एक महान लेखक बन चुका होता है, हीरोइन को ले कर अलग रहने लगता है.
बूढ़े हीरोहीरोइन का बुढ़ापे का समाधान तो हो जाता है लेकिन जब इन दोनों में से एक नहीं रहेगा तो दूसरे का क्या होगा? मजबूरन बचे हुए साथी को अपने किसी न किसी बेटे के पास रहना पड़ेगा. उस की बची हुई जिंदगी कैसे बीतेगी, अंदाजा लगाया जा सकता है.
इसी के मद्देनजर कई लोगों से मुलाकात हुई जिन में से कुछ या तो अपनी पत्नी खो चुके थे या फिर कोई पति खो चुकी थी. उन में से हर एक की अपनीअपनी कहानी थी. जीवनसाथी के जाने के बाद हर कोई जीवन से विरक्त नजर आया, किसी को अपने बेटेबहुओं से शिकायत थी, तो कोई अपने को अपने ही घर में पराया महसूस करता था, तो कोई अपनी जिंदगी से इतना परेशान था कि उसे दुनिया को अलविदा कहने की जल्दी थी.
इन मुलाकातों में 1-2 लोग ऐसे भी थे जो जिंदादिल थे. पहली मुलाकात जिन साहब से हुई वे विधुर थे. उन की पत्नी को गुजरे हुए कुछ ही महीने हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पत्नी के गुजरने के बाद वे बहुत उदास और खोएखोए से रहने लगे. औलाद होते हुए भी वे अपने को काफी अकेला महसूस करते थे. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने एक दिन अखबार में इश्तिहार दे दिया कि वे 60 साल के विधुर हैं तथा तकरीबन इसी उम्र की विधवा के साथ अपना शेष जीवन बिताना चाहते हैं. उत्तर में उन्हें 2 पत्र प्राप्त हुए जिन में एक को उन्होंने अपना साथी चुन लिया. लेकिन वे दोनों विवाह नहीं करना चाहते थे. दोनों ने तय किया कि क्योंकि दोनों इकट्ठे रहेंगे तो कभी भी कुछ ऊंचनीच भी हो सकती है, जिस के लिए वे बाकायदा शादी न कर के गंधर्व विवाह कर लेते हैं जिस की न कोई कानूनी मान्यता होगी और न ही दोनों, कोई ऐसी बात होने पर, अपनेआप को कोस पाएंगे. वे दोनों दुनिया की अंटशंट बातों से बचने के लिए कसौली (हिमाचल) नाम के एक पहाड़ी स्थल पर साथसाथ रहने लगे. दोनों रिटायर्ड थे तथा पैंशन पाते थे, जिस से उन्हें रुपएपैसे की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता था.
कसौली में ही उन साहब से मुलाकात हुई थी. मैं ने उन से कहा कि आप ने अपने (दोनों के) एकाकी जीवन का बहुत अच्छा हल निकाला है, लेकिन क्या आप के बच्चे आप की इस बात को मान गए? उत्तर में बोले, हमारे दोनों के बच्चे इस बात को सुन कर सकपकाए जरूर, परंतु जब हम दोनों के समझाने पर कि यह केवल बाकी बची जिंदगी के अकेलेपन को दूर करने का एक बहाना है, और हम दोनों बाकायदा शादी नहीं कर रहे, तो दोनों परिवार मान गए. गरमी की छुट्टियों में अकसर कभी मेरे बच्चे तथा कभी इन के बच्चे 8-10 दिन को आ जाते हैं और हंसीखुशी रह कर चले जाते हैं.
उन का मानना था कि जब तक हम दोनों का साथ है तब तक तो कम से कम सकारात्मक सोच के साथ जीवन जिएं और मजे में जिएं. बाकी हम कोई अपने बच्चों से लड़ कर तो अलग रह नहीं रहे हैं. जो बच जाएगा वह अपनी शेष जिंदगी अपने बच्चों के साथ गुजारेगा.
दूसरी मुलाकात मनाली में हुई, जहां मुझे अपने दफ्तर के कुछ काम से जाना पड़ा था. काम खत्म हो जाने पर घूमतेघूमते मुझे प्यास लगी. मैं ने देखा कि एक बुजुर्ग अपने बरामदे में बैठे अखबार पढ़ रहे हैं. अंदर जाने के लिए मैं ने बाहर का गेट खटखटाया तो वे साहब बोले, ‘‘कहिए?’’ मैं ने कहा, ‘‘एक गिलास पानी मिल सकता है?’’ ‘‘जरूरजरूर.’’ वे साहब बोले और उन्होंने अंदर आने को कहा. बैठेबैठे ही आवाज लगाई, ‘‘अलका बेटे, अपनी मम्मी से कहो, 2 गिलास पानी दे जाएं.’’ जो स्त्री पानी लाई, वह मध्यम उम्र की थी.
वह पानी देने के बाद चली गई. उस स्त्री के जाने के बाद बातचीत का सिलसिला चल रहा था. इस बीच मैं ने उन साहब से पूछा, ‘‘सर, अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक बात पूछूं?’’ ‘‘पूछिए.’’ ‘‘अभी आप ने छोटी लड़की को अलका कह कर बुलाया, क्या वह आप की पोती है या दोहती?’’ मुसकराते हुए उन्होंने कहा, ‘‘न तो यह मेरी पोती है और न ही दोहती. दरअसल, तकरीबन 3 साल पहले मेरी पत्नी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद ही मैं रिटायर हो गया. मेरा बेटा अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ जरमनी में रहता है.
‘‘पत्नी के देहांत के बाद मैं अपने इकलौते बेटे के साथ कुछ समय जरमनी में रहा. मेरा मन वहां बिलकुल नहीं लगा. तकरीबन 6 महीने के बाद मैं भारत में वापस दिल्ली आ गया. लेकिन दिल्ली भी मुझे रास नहीं आई क्योंकि उन की याद दिल्ली के हर हिस्से में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में बसी हुई थी. तब मैं यहां मनाली आ गया.
‘‘यहां मेरी मुलाकात एक जरूरतमंद महिला से हुई जो काफी उदास थी. पूछने पर वह बोली, ‘सर, मकानमालिक कमरा खाली करने को कह रहा है, कहता है या तो कमरा खाली कर दे या किराया बढ़ाए. सर, आप को तो पता ही है कि मैं स्कूल में एक आया हूं, 5 हजार रुपए मिलते हैं, 1 हजार रुपए का कमरा ले रखा है तथा बाकी पैसों से जैसेतैसे अपना और बच्ची का गुजारा कर रही हूं.’
‘‘‘ठीक है,’ मैं ने कहा, ‘देखता हूं, तुम्हारे लिए अगर मैं कुछ कर सकता हूं, तुम कल स्कूल के बाद शाम को तकरीबन इसी समय मुझ से मेरे घर पर मिलना.’
‘‘अगले दिन कई जानपहचान वालों से बात की पर कोई इतने कम पैसों में घर देने को राजी नहीं हुआ. मैं चिंतित हो गया कि अब इस बेचारी की कैसे मदद करूं. तभी खयाल आया कि मेरे घर के पीछे एक कमरा है जिस में फालतू के कुछ सामान पड़े हुए हैं. अगर उसे खाली करवा कर साफसफाई कर दी जाए तो शायद कुछ बात बन सकती है. दूसरे दिन मैं ने उस से कहा, ‘देखो, अगर तुम्हें कोई एतराज न हो तो मेरे घर का पीछे वाला कमरा तकरीबन खाली है, अगर चाहो तो वहां रह सकती हो.’
‘‘‘ठीक है, सर, मैं कल ही सामान ले आऊंगी. लेकिन सर, मैं 1 हजार रुपए से अधिक किराया नहीं दे सकूंगी.
‘‘‘नहीं, किराया मैं एक पैसा भी नहीं लूंगा. तुम जब तक चाहो, यहां रहो, और न ही तुम अपना खाना अलग से बनाओगी. घर की रसोई में ही तुम भी अपना खाना बनाओगी, और न ही तुम अपना राशनपानी अलग से लाओगी.’
‘‘‘सर, ऐसे कैसे हो सकता है, किराया भी नहीं लेंगे, खाना खाने का सामान भी नहीं लाने देंगे. तो सर, ठीक है, आप की बात मैं मान लेती हूं लेकिन आप को भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी. आप झाड़ूपोंछे वाली को हटा देंगे तथा आप का चायनाश्ता और खाना भी मैं ही बना दूंगी और आप को मेरी सारी तन्ख्वाह हर महीने लेनी पड़ेगी. क्योंकि जब सबकुछ मुझे और मेरी बेटी को आप के यहां से मिल जाएगा तो मैं रुपएपैसे का क्या करूंगी.’
‘‘‘सवाल ही नहीं उठता. इस का मतलब तो तुम मेरी नौकरानी हो गईं. नौकर रखना होता तो मैं कभी का रख चुका होता. नाश्ता, खाना बनाना और बागबानी करना ही तो मेरा समय काटने का साधन है. चलो ठीक है, ताकि तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे, तुम मुझे अपनी तन्ख्वाह से हर महीने 2 हजार रुपए दे दिया करो, बाकी रुपए तुम अपने तथा अपनी बेटी पर खर्च करना.’ फिर उस के द्वारा दिए गए रुपए मैं चुपचाप उस की बेटी के नाम डाकखाने में जमा करवा दिया करता.’’
बातोंबातों में पता चला कि उस औरत का नाम चारू है तथा वह बंगाल में 24 परगना की रहने वाली है. शादी एक मिलिटरी जवान से हुई थी, परंतु लड़ाई के दौरान उस का आदमी मारा गया. अलका, जो उस की लड़की है, उन दिनों उस के पेट में थी. पति की मृत्यु के बाद चारू को सरकार से पैसे मिले, तब तक तो तकरीबन उस के ससुराल वालों ने उसे ठीकठाक रखा, लेकिन अलका के होने के बाद उन का व्यवहार बिलकुल बदल गया, क्योंकि वे लड़के की उम्मीद रखे हुए थे.
इन्हीं दिनों इस के आदमी का कोई जानपहचान वाला, जोकि इस का दूर का रिश्तेदार भी था, इस की दुखभरी जिंदगी देख कर उसे यहां मनाली में ले आया तथा अपने अफसरों से कह कर एक तिब्बती स्कूल में नौकरी लगवा दी.
बहरहाल, समाज में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जिन्हें उस औरत का वहां रहना खलता होगा, तरहतरह की बातें करते होंगे लेकिन बिना परवा किए उन्होंने अपनी बेटी की तरह उन्हें रखा और उस की मदद की. या यों कहिए कि उन्होंने अपने एकाकी जीवन का पूरा समाधान निकाल लिया.
यही समाधान दूसरे लोग भी अपना लें (जिन के हालात इजाजत देते हों) तो न केवल उन का एकाकी जीवन का पूरा समाधान हो जाएगा बल्कि किसी बेसहारा औरत की जिंदगी भी कुछ हद तक तो संवर ही जाएगी. पति या पत्नी की मौत के बाद इंसान को बाकी बचे हुए पल गुजारने में बहुत मुश्किल होती है और जिंदगी दूभर हो जाती है. हालात से समझौते के अलावा इस समस्या का कोई पूरा समाधान नहीं है.