जून महीने में भारत में तेज गरमी पड़ती है और इस गरमी से आप नजात पाना चाहते हैं तो न्यूजीलैंड चले जाइए. वहां रोटोरुआ शहर एक ऐसा शहर है जहां हरियाली, स्वच्छता और शांति का वातावरण है. वहां दिन का सामान्य तापमान 8 से 10 डिगरी के आसपास होता है और रात्रि का तापमान शून्य या उस से भी नीचे चला जाता है. वहां की दुकानें शाम 5 बजे ही बंद हो जाती हैं क्योंकि जून के महीने में वहां तेज सर्दी पड़ती है. आप भी जून के महीने में वहां जाएं तो ओवरकोट, स्वेटर व हैट ले जाना हरगिज न भूलें. वहां पर अनेक भारतीय रैस्टोरैंट हैं जो अकसर भारतीय परिवारों द्वारा चलाए जाते हैं. ये रैस्टोरैंट शाम को 3 से 4 बजे के बीच खुलते हैं और रात्रि 8 बजे बंद हो जाते हैं. वहां लंच की कोई व्यवस्था नहीं है. यदि ग्रुप में लंच या बे्रकफास्ट का और्डर हो तभी वे सुबह या दोपहर को खुलते हैं.
रिजर्व बैंक के आदेश पर एटीएम की सुरक्षा को ले कर इंडियन बैंक एसोसिएशन यानी आईबीए का पसीना छूट रहा है. कई दौर की वार्त्ता हो चुकी है लेकिन असहमति का ताला तोड़ना कठिन हो गया है. रिजर्व बैंक के कहने पर बैंकों का यह संगठन एटीएम में पैसा पहुंचाने के लिए आउटसोर्सिंग का तरीका निकाल चुका है और कामयाब भी है.
हालांकि आउटसोर्सिंग सेवा के बाद एटीएम में नकली नोटों की बाढ़ आई है, लेकिन इस की शिकायत करने पर इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है मगर बेंगलुरु के एटीएम में एक महिला पर हमले की घटना की पुनरावृत्ति न हो, इस मुद्दे पर संगठन के शीर्ष अधिकारियों के बीच फिलहाल किसी विकल्प पर सहमति बनती नजर नहीं आ रही है. इस मुद्दे पर माथापच्ची कर रहे बैंक अधिकारियों का कहना है कि बैठक में किसी ठोस विकल्प पर पहुंचना बहुत कठिन हो रहा है. सब से आसान तरीका था कि हर एटीएम पर बंदूकधारी तैनात कर के सीसीटीवी कैमरे लगें लेकिन इस पर एकराय नहीं बन सकी.
एक अधिकारी का कहना है कि देश में इस समय करीब सवा लाख एटीएम हैं जिन की संख्या अगले साल तक ढाई लाख से अधिक हो जाएगी. इस तरह से देश में सार्वजनिक स्थल पर बंदूकधारियों की संख्या बढ़ जाएगी. हथियारों की संख्या में इस तरह से इजाफा आपराधिक घटनाओं को बढ़ाएगा. फिर सुझाव आया कि शाखा पर आधारित एटीएम रखे जाएं लेकिन इस से आम आदमी को मिल रही सुविधा घट जाएगी, बैंक के नियमित काम पर दबाव बढ़ेगा. दूरस्थ क्षेत्रों के लिए सुझाव था कि 2 हजार की आबादी वाले गांव में माइक्रो एटीएम लगाए जाएं. इस तरह से कई और भी सुझाव आ रहे हैं लेकिन किसी भी सुझाव पर फिलहाल सहमति बनती नजर नहीं आ रही है.
मोबाइल फोन का प्रचलन हमारे यहां जिस कदर बढ़ रहा है वह किसी क्रांति से कम नहीं है. हर हाथ पर मोबाइल है और हर नई तकनीक को अपनाने के लिए उपभोक्ता लालायित हैं. मोबाइल फोन उपकरण निर्माता कंपनियां भी तेजी से उभर रही हैं और भारी कंपीटिशन के बीच नईनई कंपनियां अत्याधुनिक तकनीक अपना कर स्थापित उपकरण निर्माता कंपनियों को चुनौती दे कर उन्हें पछाड़ रही हैं. बाजार में मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों और सेवा प्रदाता कंपनियों, दोनों की भीड़ है और उपभोक्ता के समक्ष हर दिन नए विकल्प पेश किए जा रहे हैं. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई भी उपभोक्ताओं के हितों के लिए अच्छा काम कर रहा है. वह मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के शोषण से उन्हें बचाने के लिए प्रयासरत है. मोबाइल कौल की कीमतें नियंत्रण में हैं. ट्राई की सख्ती के बावजूद कंपनियां ग्राहक को चंगुल में लेने से बाज नहीं आती हैं.
बहरहाल, ट्राई की बदौलत करीब 2 साल पहले उपभोक्ताओं को मनचाहे सेवा प्रदाता का चयन करने की छूट नंबर बदले बिना मिली है और इस पोर्टेबिलिटी सुविधा का लाभ अब तक लाखों उपभोक्ता बिना नंबर बदले उठा रहे हैं. अब सरकार की योजना आप का मोबाइल नंबर स्थायी रखने की है. मतलब कि आप देश में कहीं भी जाएं, मोबाइल नंबर बदलने की जरूरत नहीं रहेगी. शायद नए वित्त वर्ष से सरकार की यह योजना शुरू हो जाएगी. दूसरा फायदा उन सभी लोगों को होगा जो नौकरीपेशा हैं जिन के और दूसरे राज्यों में ट्रांसफर होते रहते हैं.
मतलब यह हुआ कि उपभोक्ता ने जो मोबाइल नंबर एक बार ले लिया है वह उस के लिए अमिट बन जाएगा और उसे जीवन में मोबाइल नंबर बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह अच्छा प्रयास है और उस का सभी को स्वागत करना चाहिए, अच्छी बात यह है कि नंबर पर राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी निर्धारित सीमा के भीतर करनी पड़ेगी.
राजनीतिक दलों के लिए कंपनियों से चंदा जुटाने की राह पर कंपनी मामलों के मंत्रालय ने लगाम कसी है. मंत्रालय ने यह कदम आम चुनाव की घोषणा होने से महज चंद दिन पहले उठाया है. राजनीतिक दल अब तक कंपनियों से सामाजिक दायित्व के तहत यानी कौर्पोरेट सोशल रिस्पौंसिबिलिटी यानी सीएसआर के तहत दी जाने वाली रकम का फायदा चुनाव खर्च के लिए उठाते थे. इस व्यवस्था के तहत कंपनियों को अपने शुद्ध लाभ का 2 फीसदी सामाजिक कार्यों में खर्च करना होता है जिस पर उन्हें कर में छूट मिलती है.
दरअसल, कंपनियां इस पैसे का इस्तेमाल सामाजिक कार्यों के बजाय राजनीतिक दलों को चंदा देने पर करती थीं और बदले में कर में छूट लेती थीं और सामाजिक लाभ उसे बोनस में मिलते थे. इधर आम चुनाव को देखते हुए इस पैसे की फुजूलखर्ची को रोकने के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय ने 27 फरवरी को एक अधिसूचना जारी की जिस में व्यवस्था है कि राजनीतिक दलों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से दिया गया पैसा सीएसआर के दायरे में नहीं आएगा. मतलब कि जो भी खर्च सीएसआर के तहत होगा वह शुद्ध सामाजिक कार्यों के लिए ही होगा. राजनीतिक दलों को समाज सेवा के नाम पर दिया गया चंदा सीएसआर खर्च नहीं माना जाएगा.
राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए कौर्पोरेट को विकल्प दिया गया है कि कंपनियां चाहें तो इलैक्ट्रोल ट्रस्ट बनाएं और राजनीतिक दलों का चंदा उस में डाल दें. कंपनियों से कहा गया है कि उन की कोई शाखा यदि देश से बाहर काम कर रही है तो उस से हुई कमाई का लाभ भारत में हुई कमाई से नहीं जोड़ा जाएगा. इस का मतलब यह कि कंपनियों ने भारत में जो लाभ कमाया है उस के 2 फीसदी हिस्से को भारत के सामाजिक सरोकारों पर ही खर्च करना पड़ेगा.
नए नियम में पेंच यह फंसा कि नए सीएसआर नियम को 1 अप्रैल से लागू करने की व्यवस्था की गई और आम चुनाव की तारीखों का ऐलान 7 मार्च को ही हो गया. राजनीतिक दल कंपनियों से मिल कर 1 अप्रैल से पहले हेराफेरी कर सकते थे लेकिन मंत्रालय की सलाह पर सेबी यानी भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड ने राजनीतिक दलों को कंपनियों से मिलने वाले पैसे पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी.
सेबी ने एक और खुलासा किया है कि फर्जी निवेश के जरिए कुछ कंपनियां पैसा जुटा रही हैं और राजनीतिक दलों को लाभ दे रही हैं. सेबी ने करीब 500 ऐसी कंपनियों की पहचान भी की है. इस से साफ होता है कि राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच कितनी गहरी सांठगांठ है.
शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों की तरफ चढ़ रहा है. शेयर बाजार की रौनक से खरीदारों के चेहरे खिले हुए हैं. यूके्रन में तनाव के कारण बाजार में पहले दबाव का माहौल जरूर था लेकिन जैसे ही यूक्रेन संकट के धीमे पड़ने की खबर आई, बाजार को पंख लग गए. फरवरी के आखिरी सत्र में बाजार में खूब रौनक रही और बीएसई यानी बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 21000 अंक के स्तर को पार कर गया. इस की वजह से रुपए में सुधार का रुख देखने को मिला है.
बाजार में तेजी के माहौल के बीच 4 मार्च को सूचकांक में भारी तेजी देखी गई और बीएसई का सूचकांक 263 अंक उछल कर 5 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. अगले ही दिन आम चुनाव की तिथियां घोषित हुईं और कारोबार पर उस का असर देखने को मिला. संवेदी सूचकांक अपने रिकौर्ड स्तर 21,531 की ऊंचाई तक पहुंच गया और तेजी पर बंद हुआ. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में भी इसी तरह की तेजी देखने को मिली. निफ्टी भी 5 सप्ताह की ऊंचाई पर पहुंचा और उस का सूचकांक 6300 अंक पर पहुंचा. निफ्टी में 4 मार्च को 79 अंक की बढ़ोतरी रही जो इस साल 15 जनवरी के बाद पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है.मजबूती की ओर शेयर बाजार
शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों की तरफ चढ़ रहा है. शेयर बाजार की रौनक से खरीदारों के चेहरे खिले हुए हैं. यूके्रन में तनाव के कारण बाजार में पहले दबाव का माहौल जरूर था लेकिन जैसे ही यूक्रेन संकट के धीमे पड़ने की खबर आई, बाजार को पंख लग गए. फरवरी के आखिरी सत्र में बाजार में खूब रौनक रही और बीएसई यानी बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 21000 अंक के स्तर को पार कर गया. इस की वजह से रुपए में सुधार का रुख देखने को मिला है.
बाजार में तेजी के माहौल के बीच 4 मार्च को सूचकांक में भारी तेजी देखी गई और बीएसई का सूचकांक 263 अंक उछल कर 5 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. अगले ही दिन आम चुनाव की तिथियां घोषित हुईं और कारोबार पर उस का असर देखने को मिला. संवेदी सूचकांक अपने रिकौर्ड स्तर 21,531 की ऊंचाई तक पहुंच गया और तेजी पर बंद हुआ. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में भी इसी तरह की तेजी देखने को मिली. निफ्टी भी 5 सप्ताह की ऊंचाई पर पहुंचा और उस का सूचकांक 6300 अंक पर पहुंचा. निफ्टी में 4 मार्च को 79 अंक की बढ़ोतरी रही जो इस साल 15 जनवरी के बाद पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है.