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गगनचुंबी इमारतों का शहर न्यूयार्क

संदीप, स्मिति, वंदना तीनों बच्चे सपरिवार पिछले 24 वर्षों से अमेरिका के अलगअलग राज्यों में रहते आ रहे हैं. तीनों ने वहीं की नागरिकता ले ली है. हम दोनों पतिपत्नी यहां चंडीगढ़ में रहते हैं. 2-3 साल में बच्चों के पास अमेरिका चले जाते हैं. वे भी चंडीगढ़ आते रहते हैं. उन के साथ अमेरिका के कई सुंदर, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थानों को देखने का अवसर प्राप्त होता रहता है.
संदीप काम के सिलसिले में कुछ वर्ष के लिए सपरिवार न्यूयार्क में था. हम उस के पास न्यूयार्क गए थे. मिशिगन, इलिनाय, फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया के मनोहारी स्थलों के भ्रमण करने के बाद न्यूयार्क शहर ने चुंबक की भांति हमें अपने मोहपाश में बांध लिया. गगनचुंबी इमारतों की ऊपरी मंजिल से नीचे देखने पर दौड़तीभागती कारों, इंसानों की भीड़ ऐसे दिखती थी मानो चींटियां द्रुत गति से भागी जा रही हों. फिल्मों में, चित्रों में, पत्रपत्रिकाओं में न्यूयार्क के बारे में देख रखा था, पढ़ रखा था परंतु प्रत्यक्ष देखने पर मंत्रमुग्ध से रह गए.
न्यूयार्क संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रथम राजधानी था. यहीं 30 अप्रैल, 1789 को प्रथम राष्ट्रपति जौर्ज वाश्ंिगटन ने शपथ ग्रहण की थी. 
न्यूयार्क में 4 अन्य नगर हैं: बु्रकलीन, क्वीन्स, स्टेटन द्वीप तथा ब्रौंक्स. ये चारों नगर मुख्य रूप से आवासीय हैं. पर इन का अपना अलग ही आकर्षण है. पढ़ने, सुनने तथा देखने के बाद प्रस्तुत है न्यूयार्क के विशिष्ट दर्शनीय स्थलों की एक झलक :
मैनहटन द्वीप के 3 प्रमुख भाग हैं. मिडटाउन, डाउनटाउन और अपटाउन.मिडटाउन में हैं अनेक महंगे व सस्ते होटल व आवासीय स्थान. पैदल चलने के लिए हैं चौड़ी, पक्की साफसुथरी पगडंडियां. पानी पर बसा न्यूयार्क शहर 65 पुलों से आपस में जुड़ा है. 14 पुल मैनहटन द्वीप को दूसरे स्थानों से जोड़ते हैं. ब्रुकलीन ब्रिज से रात्रि के समय बिजली के प्रकाश से शहर का मुग्धकारी दृश्य दिखाई देता है. हडसन नदी पर निर्मित 1067 मीटर लंबा जौर्ज वाश्ंिगटन ब्रिज मैनहटन को न्यूजर्सी से जोड़ता है. 1298 मीटर लंबा वरजेनो नैरोस ब्रिज बु्रकलीन से स्टेटन द्वीप तक जाता है.
न्यूयार्क शहर ‘गगनचुंबी इमारतों के शहर’ के नाम से भी विश्वप्रसिद्ध है. कुछ विशिष्ट उल्लेखनीय इमारतें ये हैं :
एंपायर स्टेट बिल्डिंग
11 सितंबर, 2001 को आतंकी हमले में वर्ल्ड टे्रड सैंटर के युगल टावर्स ध्वस्त हो जाने के बाद ‘एंपायर स्टेट बिल्ंिडग’ न्यूयार्क की सर्वोच्च बिल्ंिडग बन गई. यह 10 लाख क्यूबिक मीटर क्षेत्र में फैली है. ऊपर औब्जर्वेशन डेक पर जाने के लिए बेसमैंट में टिकट मिलते हैं. लिफ्ट पलक झपकते ही
1 मिनट में 80वीं मंजिल पर पहुंचा देती है. 86वीं मंजिल पर खड़े हो कर सागर में तैरते जहाजों का मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है. नीचे 34वीं मंजिल में है विशाल मौल. वहां स्टोर्स में सभी लोकप्रिय, प्रसिद्ध ब्रैंड्स का सामान मिलता है.
रौकफेलर सैंटर
5वें और छठे एवेन्यू में 48वीं स्ट्रीट से 51वीं स्ट्रीट तक फैला रौकफेलर सैंटर न्यूयार्क शहर का सर्वोत्कृष्ट आकर्षण है. इंडियाना पत्थरों से निर्मित यहां की इमारतें समृद्धि, सद्भावना की प्रतीक हैं.
संयुक्त राष्ट्र संघ
प्रथम एवेन्यू में 42वीं से 48वीं स्ट्रीट पर संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्यालय स्थित है. जौन डी रौकफेलर ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों से न्यूयार्क में मुख्यालय स्थापित करने का आग्रह किया था. इस के लिए 18 एकड़ भूमि प्रदान की गई. अमेरिकी वास्तुकार वैलेस के हैरीसन तथा फ्रैंच वास्तुशिल्पी ली-कार्बूजिए की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय वास्तुशिल्पियों ने वर्ष 1950 में मुख्यालय का निर्माणकार्य पूरा करवाया. इस में 4 प्रमुख भवन हैं. 39 मंजिली यूएन सैक्रेटेरियट बिल्ंिडग, द जनरल असैंबली, द सिक्योरिटी काउंसिल और डौग हैमरशोल्ड लाइबे्ररी. लौबी में स्थित सूचना स्थल से अधिवेशन काल में जनरल असैंबली की कार्यवाही देखने व यूएन परिसर के भ्रमण के लिए टिकट लेने पड़ते हैं.
स्टैच्यू औफ लिबर्टी
पूरे विश्व में न्यूयार्क की विशिष्ट पहचान है ‘स्टैच्यू औफ लिबर्टी’. सागर के मध्यद्वीप पर खड़ी मानवजाति को आशा का संदेश सुना रही है यह प्रतिमा. आधारशिला से ऊपर मशाल की नोक तक यह 305 फुट ऊंची है. फ्रैंच मूर्तिकार आगस्ट बार्थोलदी तथा इंजीनियर गुस्ताव एफेल ने प्रतिमा की परिकल्पना एवं निर्माण किया. 4 जुलाई, 1884 को फ्रांस की जनता ने इसे उपहारस्वरूप अमेरिका को दिया. वर्ष 1886 में प्रतिमा को न्यूयार्क के द्वीप में स्थापित किया गया. प्रतिमा के निर्माण में 2 लाख 50 हजार डौलर खर्च हुए. यह धनराशि निजी व संयुक्त प्रयासों से एकत्रित की गई. फ्रांस की जनता ने प्रतिमा का जबकि अमेरिकी जनता ने आधारशिला का व्यय वहन किया था.
बैटरी पार्क से नौका में प्रतिमा तक पहुंचने में 15 मिनट लगते हैं. ऊपर जाने के लिए लिफ्ट तथा सीढि़यां बनी हैं. प्रतिमा के ताज पर पहुंचने पर जो रोमांचक अनुभूति होती है वह शब्दातीत है.
वाल स्ट्रीट
मैनहटन के दक्षिणी छोर पर एकदूसरे से सटी ऊंची इमारतें वैश्विक वित्त व्यवस्था की धुरी हैं. 24 डौलर में खरीदे गए मैनहटन द्वीप पर कहीं दोबारा आदिवासी कब्जा 
न कर लें, इस डर से अमेरिकियों ने द्वीप की लकड़ी से घेराबंदी कर दी थी. वित्तीय व्यवस्था की धुरी वाल स्ट्रीट पर न्यूयार्क स्टौक एक्सचेंज की बिल्ंिडग बनने के साथ यह अमेरिका के दिल की वित्तीय धड़कन बन गई. दर्शक 20 ब्रौड स्ट्रीट से इस के भीतर दर्शकदीर्घा में प्रवेश करते हैं. वहां शोरशराबे, हंगामे के बीच स्टौक शेयर की टे्रडिंग व लेनदेन की प्रक्रिया देख सकते हैं. वाल स्ट्रीट का इतिहास तथा न्यूयार्क स्टौक एक्सचेंज की कार्यपद्धति को दिखाने के लिए वृत्तचित्र व प्रदर्शनी की भी व्यवस्था है. 
सैंट्रल पार्क
न्यूयार्कवासियों, पर्यटकों को प्राणवायु प्रदान करता है सैंट्रल पार्क. भीड़भाड़, दमघोंटू वातावरण से निकल कर नगरवासी यहां पर स्वच्छ, निर्मल वायु का सेवन कर नूतन ऊर्जा प्राप्त करते हैं.  मनोरम पार्क 1 किलोमीटर चौड़ा तथा 4 किलोमीटर लंबा है.
पार्क में 1 लाख से अधिक वृक्ष हैं. उन पर पक्षियों व  गिलहरियों के घोंसले हैं. पक्षियों की मधुर चहचहाहट से गूंजता यह पार्क पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है. पार्क में सैर करना, खेलना, पिकनिक मनाना सुरक्षित व सुखद है.
गरमियों में पार्क में नगरवासियों तथा पर्यटकों की चहलपहल रहती है. युवा खेल खेलते हैं. साइकिल चलाते हैं तथा जौगिंग करते हैं. सर्दियों में बर्फबारी व ठिठुरने वाली ठंड में यह संभव नहीं. तब पार्क टैनिस कोर्ट, आइस स्केटिंग रिंक तथा बच्चों के खेल के मैदान में बदल जाता है.
निचला पूर्वी क्षेत्र
सबवे से कैनाल स्ट्रीट स्टेशन पर उतरने के साथ रोमन तथा चीनी लिपि में बोर्ड दिखाई देते हैं. यह है न्यूयार्क का चाइना टाउन. यहां पर 1 लाख से अधिक चीनी प्रवासी रहते हैं. टैलीफोन बूथों की छतें पैगोडा की तरह हैं. दुकानों में चीनी हस्तशिल्प का सामान, जेड के आभूषण तथा चीन की विशिष्ट खाद्य वस्तुएं मिलती हैं. समग्र इतिहास, सभ्यता, संस्कृति की जानकारी के लिए 70 मलबरी स्ट्रीट पर ‘म्यूजियम औफ चाइनीज इन द अमेरिका’ है. सुपर मार्केट में मिलती है चीन की स्वादिष्ठ सुगंधित चाय व शानदार चीनी बरतन. 64 मोट स्ट्रीट पर बौद्ध मंदिर है.
चाइना टाउन के उत्तरपूर्व में यहूदी इलाका है. यहां पर पौलैंड, गैलिसिया और यूके्रन के विशिष्ट ब्रैंडेड कपड़े और आभूषण मिलते हैं.
प्रवासी भारतीय भी न्यूयार्क में बड़ी संख्या में हैं. कुछ उच्च पदों पर आसीन हैं तो कुछ व्यापार, व्यवसाय में हैं. इंडियन स्टोर स्थानस्थान पर हैं. इन में आवश्यकता के सभी भारतीय खाद्य पदार्थ व अन्य सामान मिलते हैं.
म्यूजियम
वैश्विक सभ्यता, कला व संस्कृति के अद्वितीय संरक्षक हैं न्यूयार्क शहर के 120 म्यूजियम. ये विश्व की पुरातन एवं आधुनिक कला व संस्कृति के संवाहक हैं. इन्हें देखने के लिए चाहिए असीमित समय. उल्लेखनीय म्यूजियम हैं : ‘मैट्रोपोलिटन म्यूजियम औफ आर्ट’, ‘म्यूजियम औफ मौडर्न आर्ट’, ‘अमेरिकन म्यूजियम औफ नैचुरल हिस्ट्री’, ‘म्यूजियम औफ द सिटी औफ न्यूयार्क’, ‘इंटरोपिड सी-एअर-स्पेस म्यूजियम’ आदि.
नियाग्रा जलप्रपात
न्यूयार्क शहर जाएं और प्रकृति के अनुपम सौंदर्य नियाग्रा जलप्रपात को न देखा तो क्या देखा. 200 फुट की ऊंचाई से दूध जैसे सफेद जल को नीचे गिरता देख कर पर्यटक स्तब्ध रह जाते हैं. उस रोमांचक सौंदर्य की केवल अनुभूति की जा सकती है, शब्दों में बांध पाना कठिन है. प्रौस्पैक्ट पौइंट से मिनी ट्राम गोट द्वीप 
तक जाती है. द्वीप नियाग्रा जलप्रपात के जल को 2 भागों में विभक्त कर देता है. पूर्व में 182 फुट ऊंचा व 1076 फुट चौड़ा अमेरिकी जलप्रपात तथा पश्चिम में 176 फुट ऊंचा और 2100 फुट चौड़ा ‘हौर्सशू’ कैनेडियन जलप्रपात है. गोट द्वीप पर हैलिकौप्टर उपलब्ध रहते हैं. इस में बैठ कर पूरे जलप्रपात की विहंगम दृश्यावली का आनंद लिया जा सकता है. लिफ्ट से दूधिया जल की धारा को नीचे नदी में गिरते देख सकते हैं. यहां के मनोरम दृश्य को देखने के लिए अनेक औब्जर्वेशन टावर बने हैं.
रात्रि के समय हौर्सशू (कैनेडियन) जलप्रपात से उत्पन्न 4 हजार मिलियन यूनिट मोमबत्तियों के बहुरंगी प्रकाश से पूरा क्षेत्र जगमगा उठता है.
अमेरिका तथा कनाडा संयुक्त रूप से नियाग्रा जलप्रपातों की अपार ऊर्जा शक्ति का दोहन कर रहे हैं. समीप ही 6.5 किलोमीटर उत्तर में है नियाग्रा पावर प्रोजैक्ट. यहां जलप्रपात से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के संसाधन हैं.
न्यूयार्क शहर में अनगिनत दर्शनीय स्थल हैं. उन को सीमाबद्ध कर पाना दुष्कर कार्य है. अनेक धर्मों, संप्रदायों, भाषाओं, भिन्न जीवनशैलियों के होते हुए भी न्यूयार्कवासी सुअवसरों, संकटों के बीच इस शहर में धैर्यपूर्वक, सौहार्द्रभाव से रहते हैं. गरमीसर्दी, यहां का राजनीतिक प्रदूषण तथा आपराधिक गतिविधियों का सामना सभी साहसपूर्वक करते हैं. धैर्य और जीवंतता न्यूयार्क शहर को विश्व का महानतम शहर बनाते हैं. वास्तव में न्यूयार्क शहर को देखे बिना अमेरिका की यात्रा अधूरी ही कहलाएगी.
कैसे जाएं : जे एफ कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट पर विश्व की सभी प्रमुख विमान सेवाएं आती हैं. यह शांत, स्वच्छ, सुव्यवस्थित एअरपोर्ट है. एअरपोर्ट से बाहर निकलने पर लिमोजिन कारें (टैक्सी), मिनी बस उपलब्ध हैं. शहर में घूमनेफिरने के लिए टैक्सी, बस व ‘सबवे’ आदि सुविधाजनक साधन हैं.
कब जाएं : मई से अगस्त सर्वोत्तम समय है. सितंबर में हलकीहलकी ठंड शुरू हो जाती है.
आवास : रहने के लिए न्यूयार्क में महंगेसस्ते सभी प्रकार के 400 से अधिक होटल हैं. इंटरनैट पर बुकिंग करवाई जा सकती है. भोजन : चाइनीज, मैक्सिकन, इटैलियन, थाई के साथसाथ अनेक भारतीय रैस्टोरैंट भी हैं.
शौपिंग : न्यूयार्क में विशाल शौपिंग मौल्स तथा स्टोर्स हैं. आम आदमी की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए वाल मार्ट, के मार्ट तथा मैसी, हैराड, ब्लूमिंग डेल जैसे स्टोर हैं. इन में विश्व के सभी प्रतिष्ठित ब्रैंड्स का सामान मिलता है. कुछ स्टोर्स रात को 12 बजे तक खुले रहते हैं.  उचित होगा कि वापसी से कुछ दिन पहले ही शौपिंग की जाए वरना जेब पहले ही खाली हो जाएगी.

सफर अनजाना

मैं नई दिल्ली से आंध्र प्रदेश ऐक्सप्रैस टे्रन से इटारसी आ रहा था. रास्ते में पता चला कि यह टे्रन अब इटारसी में नहीं रुकती. भोपाल से सीधे नागपुर जा कर रुकती है. इसीलिए मैं रात में 3 बजे उठ कर तैयार हो गया. टीटीई से पूछा, ‘‘भोपाल कब तक आ जाएगा?’’ उस ने बताया, ‘‘गाड़ी आधा घंटा देरी से चल रही है. 4 बजे के आसपास आ जाएगा.’’
मुझे झपकी आ गई. झपकी टूटी तो मैं फिर टीटीई के पास गया. पूछा, ‘‘भोपाल कब तक आ जाएगा?’’ 
वह बोला, ‘‘भोपाल तो गया. अब तो आधे घंटे बाद इटारसी आने वाला है. इटारसी तो टे्रन रुकती नहीं है, सीधे नागपुर स्टौपेज है. इटारसी आउटर पर टे्रन रुक जाए तो उतर जाना.’’
मैं सामान ले कर गेट के पास खड़ा हो गया. अचानक इटारसी आउटर पर गाड़ी धीमी हुई, फिर रुक गई. मैं आउटर पर उतर गया. कई दूसरे यात्री भी उतरे. इंजन से हमारा डब्बा चौथा था. हम पत्थरों पर चल कर जैसेतैसे इंजन तक पहुंचे. ड्राइवर से मिले. उस से रिक्वैस्ट की, ‘‘क्या आप इटारसी स्टेशन पर गाड़ी रोक देंगे?’’ जवाब में ड्राइवर ने कहा, ‘‘यदि रेड सिग्नल मिला तो रोक देंगे वरना नहीं. रिस्क है, वैसे तो रुक कर ही आगे जाती है.’’
कुछ लोग पैदल चलते रहे और कुछ इंजन से लगे बे्रक वाले डब्बे में बैठ गए. मैं भी बैठ गया. गार्ड डब्बे में नहीं था. टे्रन तुरंत चल पड़ी. इटारसी स्टेशन पर ड्राइवर ने गाड़ी नहीं रोकी. सभी इटारसी उतरने वाले यात्री घबरा गए. किसी ने कहा, चेन खींच कर गाड़ी रोक दो पर वहां चेन थी ही नहीं. इतनी भीड़ में एक रेलकर्मचारी भी था जो ड्यूटी पर इटारसी जा रहा था. उस ने हिम्मत दिखाई. उस ने बे्रक में लगे एअरप्रैशर को दोचार बार दबादबा कर ड्राइवर को गाड़ी रोकने का सिग्नल दिया.
ड्राइवर लगातार हौर्न बजाने लगा. गाड़ी धीमेधीमे रुक गई. 40-50 यात्री इटारसी स्टेशन से 2-3 किलोमीटर दूर उतर गए. सुबह के 6 बजने वाले थे. सर्द हवाएं चल रही थीं. रेलपटरी के आसपास बिछे पत्थरों पर सर्दी में चलते हुए सभी स्टेशन की ओर बढ़ रहे थे. 
तभी वहां एक पुलिस वाला आ गया. उसे देख यात्री इधरउधर से निकल भागने लगे. वह पूछता रहा, ‘‘चेन किस ने खींची?’’ जब चेन खींची ही नहीं गई थी तो कोई क्या बताता. कुछ कमजोर लोगों को पकड़ कर, धमका कर पुलिस वाला 1 हजार रुपए ऐंठ कर चलता बना. जैसेतैसे हम इटारसी स्टेशन पहुंचे.
सबक मिला कि सफर के दौरान सतर्क, सचेत व सावधान रहना चाहिए. नींद व झपकी का आना स्वाभाविक है. अपनेआप को होश में रखें. एअरप्रैशर का प्रयोग कर गाड़ी रोकना, चेन खींचना गुनाह है. सतर्कता हटी, दुर्घटना घटी. सफर सुहाना वही होता है जो सुरक्षित हो.
मुकेश बत्रा, भुसावल (महा.) 

दिल में बस जाए न्यूजीलैंड

जून महीने में भारत में तेज गरमी पड़ती है और इस गरमी से आप नजात पाना चाहते हैं तो न्यूजीलैंड चले जाइए. वहां रोटोरुआ शहर एक ऐसा शहर है जहां हरियाली, स्वच्छता और शांति का वातावरण है. वहां दिन का सामान्य तापमान 8 से 10 डिगरी के आसपास होता है और रात्रि का तापमान शून्य या उस से भी नीचे चला जाता है. वहां की दुकानें शाम 5 बजे ही बंद हो जाती हैं क्योंकि जून के महीने में वहां तेज सर्दी पड़ती है. आप भी जून के महीने में वहां जाएं तो ओवरकोट, स्वेटर व हैट ले जाना हरगिज न भूलें. वहां पर अनेक भारतीय रैस्टोरैंट हैं जो अकसर भारतीय परिवारों द्वारा चलाए जाते हैं. ये रैस्टोरैंट शाम को 3 से 4 बजे के बीच खुलते हैं और रात्रि 8 बजे बंद हो जाते हैं. वहां लंच की कोई व्यवस्था नहीं है. यदि ग्रुप में लंच या बे्रकफास्ट का और्डर हो तभी वे सुबह या दोपहर को खुलते हैं.

रैस्टोरैंट को चलाने वाले परिवारों के बच्चे सुबह से दोपहर तक अपने स्कूल या कालेज जाते हैं, फिर दोपहर बाद अपने रैस्टोरैंट में भोजन बनाने, परोसने आदि की ड्यूटी करते हैं. धनी परिवार भी स्वयं अपने रैस्टोरैंट इसी प्रकार चलाते हैं. पूरा परिवार वहां हर प्रकार का इंतजाम करता है.
 
जैट बोट राइड
रोटोरुआ में ही एक बहुत बड़ी झील है जहां पर्यटकों के लिए अनेक आकर्षण हैं. जेट बोट राइड भी इन में से एक है. वास्तव में यह अत्यंत मजेदार और रोमांचक राइड होती है जिस में कमजोर दिल वाले आनंद नहीं ले सकते.
15 से 20 पर्यटकों को बिठाने की इस में जगह रहती है. पर्यटक विशेष रूप से बने कपड़ों को पहन कर शरीर को पूरी तरह ढक कर इस बोट का आनंद लेते हैं. विशेषकर, जब यहां सर्दी का मौसम हो तो कोई भी अंग खुला रह जाने पर बर्फ जैसा जमा हुआ प्रतीत होता है. ऐसे में जैट बोटिंग का मजा और भी अधिक रोमांचक बन जाता है क्योंकि सर्दी के मारे हाथपैर जमने को होते हैं. जैट बोटिंग के लिए पूरे शरीर पर प्लास्टिक जैसे मोटे वस्त्र पहने जाते हैं. हाथपैर, सिर सबकुछ भली प्रकार ढक लिया जाता है. यह पूरी ड्रैस वहीं दी जाती है.
पानी पर चलती हुई तेज जैट बोट पर्यटकों को खुशी भी देती है और रोमांच भी. जब अचानक जैट बोट का पायलट 100 किलोमीटर की गति पर दौड़ातेदौड़ाते बोट को यू टर्न देता है तो पूरी नाव इतनी गति से पलटती है कि पानी की बौछार के साथ पर्यटक रोमांचित हो उठते हैं. लगभग 30 मिनट की यह राइड मजेदार भी है और यादगार भी.
 
उड़ान भरते जहाज
यदि आप न्यूजीलैंड की सैर पर जाएं तो मजेदार फ्लोटप्लेन की सैर का आनंद जरूर लें. न्यूजीलैंड के रोटोरुआ नामक शहर में फ्लोटप्लेन विशेष रूप से टूरिस्टों के लिए आकर्षण. जिस प्रकार हवाई जहाज सीमेंट के बने पक्के रनवे पर तेज दौड़ लगाने के बाद हवा में उड़ान भरते हैं उसी प्रकार फ्लोटप्लेन पानी पर पानी के जहाज की भांति पहले धीमी गति से तैरते हुए फिर गति को बढ़ाते हुए सरपट दौड़ लगाने लगते हैं और कुछ ही मिनटों में पानी में दौड़ लगाने के बाद ये फ्लोटप्लेन हवा में उड़ जाते हैं.
ये फ्लोटप्लेन टूरिस्टों के लिए बहुत बड़ा आकर्षण हैं. हवा में उड़ने के बाद ये पर्यटकों को शहर का हवाई नजारा दिखाते हैं. ये काफी महंगे होते हैं. इन की 8 मिनट की राइड 60 से 80 न्यूजीलैंड डौलर की होती है. इस राइड में छोटे फ्लोटप्लेन में 4 लोग बैठते हैं. पायलट सभी पर्यटकों को हेड फोन दे देता है ताकि वह जिस भी जगह के बारे में बताए, पर्यटक आसानी से सुन सकें वरना इस प्लेन में शोर के कारण आपसी बातचीत संभव नहीं हो पाती. दूसरी राइड 15 मिनट की होती है जिस का प्लेन बड़ा होता है और जिस में 8 लोग बैठ सकते हैं. इस में पानी के ऊपर काफी देर सैर कराने के पश्चात फ्लोटप्लेन हवा में उड़ जाता है और शहर में अधिक दूर तक सैर करता है. यह प्लेन कई बार हवा में ही कम ऊंचाई तक नीचे आ कर भी शहर के दर्शन कराता है. इस राइड की कीमत है 125 न्यूजीलैंड डौलर. इस मजेदार और रोमांचक राइड को आप भूल नहीं पाएंगे.
 
अनोखा डस्टबिन
वहां का डस्टबिन यानी कूड़ेदान भी कम आकर्षक नहीं. यह देखने में बहुत सुंदर है. पर उस में एक न दिखने वाली आंख लगी रहती है. उस में कूड़ा, कागज डालने के लिए ज्यों ही आप हाथ बढ़ाएंगे, वह स्वयं खुल जाएगा और जैसे ही आप हाथ पीछे करेंगे, वह स्वयं ही बंद हो जाएगा. यानी यह एक ऐसा साफसुथरा मजेदार डस्टबिन है जिस में हाथ लगाए बिना आप दूर से कूड़ा फेंक सकते हैं.
कब जाएं : मई से जून तक का समय ही न्यूजीलैंड घूमने के लिए उपयुक्त समझा जाता है. क्योंकि उस वक्त वहां लगभग 8 से 10 डिगरी सैल्सियस तापमान रहता है. कुछ शहरों में तापमान 0 से 3 डिगरी के बीच रहता है. यदि आप सर्दियों में यानी दिसंबर या जनवरी के दिनों में वहां घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं तो वहां के अनुसार तो गरमी होगी और तापमान 20 से 30 डिगरी के बीच होगा. परंतु भारतीय मनोस्थिति के अनुसार वह बहुत सुहावना मौसम होगा.
कैसे पहुंचें : भारत के सभी प्रमुख शहरों से न्यूजीलैंड के लिए वायुसेवा उपलब्ध है, जिन से न्यूजीलैंड के नजदीकी हवाई अड्डे औकलैंड एअरपोर्ट या क्राइस्टचर्च एअरपोर्ट पहुंचा जा सकता है.
करैंसी : न्यूजीलैंड की करैंसी को डौलर कहते हैं परंतु यह विश्वव्यापी डौलर नहीं, न्यूजीलैंड डौलर है, जिस की कीमत भारतीय रुपए के अनुसार लगभग 40 रुपए है. यह कीमत घटतीबढ़ती रहती है.      

ऐसा भी होता है

एक बार मैं अपनी फैमिली के साथ  अपने दादाजी के यहां छुट्टियां मनाने जा रही थी. हम लोग निजी कार से झारखंड से बिहार जा रहे थे.
रास्ते में हमें एक स्कूटर वाले ने रोका और कहा कि अपना ड्राइविंग लाइसैंस और गाड़ी के कागजात दिखाइए. हमारे पास ड्राइविंग लाइसैंस तो था लेकिन गाड़ी के कागज नहीं थे. वह आदमी अपनेआप को पुलिस विभाग का कर्मचारी बता रहा था.
गाड़ी के कागज नहीं होने के कारण उस ने 2 हजार रुपए जुर्माने के नाम पर ले लिए और कहा कि गाड़ी आगे पार्क करें, तलाशी लेनी है. जब हम ने गाड़ी साइड की तो पाया कि वह आदमी रफूचक्कर हो चुका है.
सुरुचि प्रिया, रांची (झारखंड)
 
जाड़े की कुनकुनी धूप में एक दिन मैं अपने पति और बच्चों के साथ पार्क गई. पति पार्क के दूसरे छोर पर बच्चों को झूला झुला रहे थे. इधर, बैंच पर मैं अकेली बैठी थी, तभी 70-75 साल के बुजुर्ग अंकल आए और कहने लगे कि पार्क की सभी बैंचें भरी हुई हैं. अगर आप को आपत्ति न हो तो मैं बैठ जाऊं.
मैं किनारे खिसक गई. मुश्किल से 2 सैकंड बाद ही ‘बुजुर्गवार’ ने मुझ से मेरा नाम पूछा, फिर मैं कहां की रहने वाली हूं, पूछने लगे. फिर अचानक मेरी तरफ सरक कर बढ़ने लगे. मैं उन की मंशा समझ कर अपने पति को आगे बढ़ कर आवाज देने लगी तो पीछे से वे तेजी से खिसक लिए. जब बुजुर्ग ही ओछेपन की हरकत करने लगें तो आज की युवा पीढ़ी को वे क्या सिखाएंगे.
शालिनी बाजपेयी, चंडीगढ़ (पंजाब)
 
मैं जयपुर से दिल्ली ट्रेन से लौट रहा था. जिस डब्बे में मैं बैठा था वह काफी खाली था इसलिए मैं जूता उतार कर बर्थ पर लेट गया. शीघ्र ही मुझे नींद आ गई. जब मेरी नींद टूटी तो मैं उठ कर बैठ गया.
डब्बे में काफी लोग आ गए थे. मैं ने अपने जूते जो उतार कर बर्थ के नीचे रखे थे, पहनने चाहे तो वे जूते गायब थे. तभी मेरी सामने वाली सीट पर एक नौजवान लड़के के पैरों पर नजर गई तो मैं ने क्या देखा कि मेरे जूते उस के पांव में थे. मैं यह सोच कर हैरान था कि मेरे जूते उस के पांव में कैसे पहुंचे. वह लड़का भी निश्ंिचत हो कर मेरे जूते पहने सामने वाली सीट पर बैठा हुआ था.
मैं गुस्से में चिल्ला कर बोला, ‘‘मेरे जूते उतारो. तुम ने मेरे जूते क्यों पहन रखे हैं?’’ उस लड़के ने अपने पांव से जूते उतार कर मुझे दे दिए. मैं ने तुरंत पहन लिए. मैं समझ गया कि मेरे जूते उस ने चोरी करने के इरादे से पहन लिए थे और वह वहां से खिसकने की तैयारी में था.
मेठाराम धर्मानी, राजौरी गार्डन (न.दि.) 
  

एटीएम की सुरक्षा पर माथापच्ची

रिजर्व बैंक के आदेश पर एटीएम की सुरक्षा को ले कर इंडियन बैंक एसोसिएशन यानी आईबीए का पसीना छूट रहा है. कई दौर की वार्त्ता हो चुकी है लेकिन असहमति का ताला तोड़ना कठिन हो गया है. रिजर्व बैंक के कहने पर बैंकों का यह संगठन एटीएम में पैसा पहुंचाने के लिए आउटसोर्सिंग का तरीका निकाल चुका है और कामयाब भी है.

हालांकि आउटसोर्सिंग सेवा के बाद एटीएम में नकली नोटों की बाढ़ आई है, लेकिन इस की शिकायत करने पर इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है मगर बेंगलुरु के एटीएम में एक महिला पर हमले की घटना की पुनरावृत्ति न हो, इस मुद्दे पर संगठन के शीर्ष अधिकारियों के बीच फिलहाल किसी विकल्प पर सहमति बनती नजर नहीं आ रही है. इस मुद्दे पर माथापच्ची कर रहे बैंक अधिकारियों का कहना है कि बैठक में किसी ठोस विकल्प पर पहुंचना बहुत कठिन हो रहा है. सब से आसान तरीका था कि हर एटीएम पर बंदूकधारी तैनात कर के सीसीटीवी कैमरे लगें लेकिन इस पर एकराय नहीं बन सकी.

एक अधिकारी का कहना है कि देश में इस समय करीब सवा लाख एटीएम हैं जिन की संख्या अगले साल तक ढाई लाख से अधिक हो जाएगी. इस तरह से देश में सार्वजनिक स्थल पर बंदूकधारियों की संख्या बढ़ जाएगी. हथियारों की संख्या में इस तरह से इजाफा आपराधिक घटनाओं को बढ़ाएगा. फिर सुझाव आया कि शाखा पर आधारित एटीएम रखे जाएं लेकिन इस से आम आदमी को मिल रही सुविधा घट जाएगी, बैंक के नियमित काम पर दबाव बढ़ेगा. दूरस्थ क्षेत्रों के लिए सुझाव था कि 2 हजार की आबादी वाले गांव में माइक्रो एटीएम लगाए जाएं. इस तरह से कई और भी सुझाव आ रहे हैं लेकिन किसी भी सुझाव पर फिलहाल सहमति बनती नजर नहीं आ रही है.    

अब मोबाइल फोन नंबर अमिट हो जाएगा

मोबाइल फोन का प्रचलन हमारे यहां जिस कदर बढ़ रहा है वह किसी क्रांति से कम नहीं है. हर हाथ पर मोबाइल है और हर नई तकनीक को अपनाने के लिए उपभोक्ता लालायित हैं. मोबाइल फोन उपकरण निर्माता कंपनियां भी तेजी से उभर रही हैं और भारी कंपीटिशन के बीच नईनई कंपनियां अत्याधुनिक तकनीक अपना कर स्थापित उपकरण निर्माता कंपनियों को चुनौती दे कर उन्हें पछाड़ रही हैं. बाजार में मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों और सेवा प्रदाता कंपनियों, दोनों की भीड़ है और उपभोक्ता के समक्ष हर दिन नए विकल्प पेश किए जा रहे हैं. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई भी उपभोक्ताओं के हितों के लिए अच्छा काम कर रहा है. वह मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के शोषण से उन्हें बचाने के लिए प्रयासरत है. मोबाइल कौल की कीमतें नियंत्रण में हैं. ट्राई की सख्ती के बावजूद कंपनियां ग्राहक को चंगुल में लेने से बाज नहीं आती हैं.

बहरहाल, ट्राई की बदौलत करीब 2 साल पहले उपभोक्ताओं को मनचाहे सेवा प्रदाता का चयन करने की छूट नंबर बदले बिना मिली है और इस पोर्टेबिलिटी सुविधा का लाभ अब तक लाखों उपभोक्ता बिना नंबर बदले उठा रहे हैं. अब सरकार की योजना आप का मोबाइल नंबर स्थायी रखने की है. मतलब कि आप देश में कहीं भी जाएं, मोबाइल नंबर बदलने की जरूरत नहीं रहेगी. शायद नए वित्त वर्ष से सरकार की यह योजना शुरू हो जाएगी. दूसरा फायदा उन सभी लोगों को होगा जो नौकरीपेशा हैं जिन के और दूसरे राज्यों में ट्रांसफर होते रहते हैं.

मतलब यह हुआ कि उपभोक्ता ने जो मोबाइल नंबर एक बार ले लिया है वह उस के लिए अमिट बन जाएगा और उसे जीवन में मोबाइल नंबर बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह अच्छा प्रयास है और उस का सभी को स्वागत करना चाहिए, अच्छी बात यह है कि नंबर पर राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी निर्धारित सीमा के भीतर करनी पड़ेगी.

राजनीतिक दलों की आय के स्रोत पर नकेल

राजनीतिक दलों के लिए कंपनियों से चंदा जुटाने की राह पर कंपनी मामलों के मंत्रालय ने लगाम कसी है. मंत्रालय ने यह कदम आम चुनाव की घोषणा होने से महज चंद दिन पहले उठाया है. राजनीतिक दल अब तक कंपनियों से सामाजिक दायित्व के तहत यानी कौर्पोरेट सोशल रिस्पौंसिबिलिटी यानी सीएसआर के तहत दी जाने वाली रकम का फायदा चुनाव खर्च के लिए उठाते थे. इस व्यवस्था के तहत कंपनियों को अपने शुद्ध लाभ का 2 फीसदी सामाजिक कार्यों में खर्च करना होता है जिस पर उन्हें कर में छूट मिलती है.

दरअसल, कंपनियां इस पैसे का इस्तेमाल सामाजिक कार्यों के बजाय राजनीतिक दलों को चंदा देने पर करती थीं और बदले में कर में छूट लेती थीं और सामाजिक लाभ उसे बोनस में मिलते थे. इधर आम चुनाव को देखते हुए इस पैसे की फुजूलखर्ची को रोकने के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय ने 27 फरवरी को एक अधिसूचना जारी की जिस में व्यवस्था है कि राजनीतिक दलों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से दिया गया पैसा सीएसआर के दायरे में नहीं आएगा. मतलब कि जो भी खर्च सीएसआर के तहत होगा वह शुद्ध सामाजिक कार्यों के लिए ही होगा. राजनीतिक दलों को समाज सेवा के नाम पर दिया गया चंदा सीएसआर खर्च नहीं माना जाएगा.

राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए कौर्पोरेट को विकल्प दिया गया है कि कंपनियां चाहें तो इलैक्ट्रोल ट्रस्ट बनाएं और राजनीतिक दलों का चंदा उस में डाल दें. कंपनियों से कहा गया है कि उन की कोई शाखा यदि देश से बाहर काम कर रही है तो उस से हुई कमाई का लाभ भारत में हुई कमाई से नहीं जोड़ा जाएगा. इस का मतलब यह कि कंपनियों ने भारत में जो लाभ कमाया है उस के 2 फीसदी हिस्से को भारत के सामाजिक सरोकारों पर ही खर्च करना पड़ेगा.

नए नियम में पेंच यह फंसा कि नए सीएसआर नियम को 1 अप्रैल से लागू करने की व्यवस्था की गई और आम चुनाव की तारीखों का ऐलान 7 मार्च को ही हो गया. राजनीतिक दल कंपनियों से मिल कर 1 अप्रैल से पहले हेराफेरी कर सकते थे लेकिन मंत्रालय की सलाह पर सेबी यानी भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड ने राजनीतिक दलों को कंपनियों से मिलने वाले पैसे पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी.

सेबी ने एक और खुलासा किया है कि फर्जी निवेश के जरिए कुछ कंपनियां पैसा जुटा रही हैं और राजनीतिक दलों को लाभ दे रही हैं. सेबी ने करीब 500 ऐसी कंपनियों की पहचान भी की है. इस से साफ होता है कि राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच कितनी गहरी सांठगांठ है.

मजबूती की ओर शेयर बाजार

शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों की तरफ चढ़ रहा है. शेयर बाजार की रौनक से खरीदारों के चेहरे खिले हुए हैं. यूके्रन में तनाव के कारण बाजार में पहले दबाव का माहौल जरूर था लेकिन जैसे ही यूक्रेन संकट के धीमे पड़ने की खबर आई, बाजार को पंख लग गए. फरवरी के आखिरी सत्र में बाजार में खूब रौनक रही और बीएसई यानी बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 21000 अंक के स्तर को पार कर गया. इस की वजह से रुपए में सुधार का रुख देखने को मिला है.

बाजार में तेजी के माहौल के बीच 4 मार्च को सूचकांक में भारी तेजी देखी गई और बीएसई का सूचकांक 263 अंक उछल कर 5 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. अगले ही दिन आम चुनाव की तिथियां घोषित हुईं और कारोबार पर उस का असर देखने को मिला. संवेदी सूचकांक अपने रिकौर्ड स्तर 21,531 की ऊंचाई तक पहुंच गया और तेजी पर बंद हुआ. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में भी इसी तरह की तेजी देखने को मिली. निफ्टी भी 5 सप्ताह की ऊंचाई पर पहुंचा और उस का सूचकांक 6300 अंक पर पहुंचा. निफ्टी में 4 मार्च को 79 अंक की बढ़ोतरी रही जो इस साल 15 जनवरी के बाद पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है.मजबूती की ओर शेयर बाजार

शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों की तरफ चढ़ रहा है. शेयर बाजार की रौनक से खरीदारों के चेहरे खिले हुए हैं. यूके्रन में तनाव के कारण बाजार में पहले दबाव का माहौल जरूर था लेकिन जैसे ही यूक्रेन संकट के धीमे पड़ने की खबर आई, बाजार को पंख लग गए. फरवरी के आखिरी सत्र में बाजार में खूब रौनक रही और बीएसई यानी बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 21000 अंक के स्तर को पार कर गया. इस की वजह से रुपए में सुधार का रुख देखने को मिला है.

बाजार में तेजी के माहौल के बीच 4 मार्च को सूचकांक में भारी तेजी देखी गई और बीएसई का सूचकांक 263 अंक उछल कर 5 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. अगले ही दिन आम चुनाव की तिथियां घोषित हुईं और कारोबार पर उस का असर देखने को मिला. संवेदी सूचकांक अपने रिकौर्ड स्तर 21,531 की ऊंचाई तक पहुंच गया और तेजी पर बंद हुआ. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में भी इसी तरह की तेजी देखने को मिली. निफ्टी भी 5 सप्ताह की ऊंचाई पर पहुंचा और उस का सूचकांक 6300 अंक पर पहुंचा. निफ्टी में 4 मार्च को 79 अंक की बढ़ोतरी रही जो इस साल 15 जनवरी के बाद पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है.

गुड फूड भी हो जाते हैं बैड फूड

आज के लेटेस्ट ट्रैंड हैल्दी फूड खाने के चक्कर में कहीं आप भी आधीअधूरी जानकारी के साथ गुड फूड के एडिक्ट तो नहीं हो रहे. अगर ऐसा है तो संभल जाइए क्योंकि गुड फूड भी परिवर्तित हो सकते हैं बैड फूड में. कैसे? बता रहे हैं डा. भारत भूषण.
 
अति हर चीज की बुरी होती है. यह बात उन चीजों पर भी लागू होती है जिन के बारे में प्रचारित किया जाता है कि वे स्वास्थ के लिए लाभदायक हैं. मसलन, रविंद्र यादव का ही किस्सा लें. इस 44 वर्षीय व्यवसायी को किसी ने बता दिया कि अगर वह विटामिंस और अन्य सप्लीमैंट नियमित लेता रहेगा तो हमेशा स्वस्थ और जवान बना रहेगा. इसलिए वह विटामिंस व सप्लीमैंट्स की 8 गोलियां सुबह को और इतनी ही शाम को लेने लगा. कुछ ही दिनों बाद इस का नतीजा यह निकला कि यादव को हृदय रोगों और मधुमेह की शिकायतें होने लगीं.
जी हां, अगर आप विटामिंस भी अधिक और लंबे समय तक लेंगे तो वे भी आप के शरीर को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचाएंगी. विटामिन ए, डी, ई और के जब शरीर में अधिक मात्रा में एकत्र हो जाते हैं तो वे टौक्सिक या जहरीले स्तर तक पहुंच जाती हैं. सीधी सी बात यह है कि अगर आप सही से भोजन कर रहे हैं और आप को किसी बीमारी की शिकायत नहीं है तो आप को मल्टीविटामिंस की आवश्यकता नहीं. उन्हें डाक्टर की सलाह पर ही लें.
रेखा शर्मा अपने स्कूटर से जा रही थीं, सामने एक ठेला आ गया जिसे देख कर उन्होंने ब्रेक लगाए और अपना दाहिना पांव संतुलन बनाए रखने के लिए जमीन पर टिका दिया. लेकिन पांव पर थोड़ा सा जोर पड़ा और उस में फ्रैक्चर हो गया. डाक्टर ने डैंसिटोमेट्री टैस्ट कराया तो मालूम हुआ कि रेखा शर्मा औस्टियोपोरोटिक हैं यानी उन की हड्डियां कमजोर हैं. 
डाक्टर को भी हैरानी हुई कि 26 वर्ष की उम्र में कोई लड़की औस्टियोपोरोटिक कैसे हो सकती है, ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, रेखा शर्मा अपने फिगर को मैंटेन करने के लिए इतनी अधिक ऐक्सरसाइज कर रही थीं कि उन का बोन मास लगातार कम होता जा रहा था.
गौरतलब है कि ऐक्सरसाइज तो ठीक है लेकिन ओवर ऐक्सरसाइज हानिकारक है और इस के लक्षण हैं थकान, वजनका कम होना, नींद न आना, हड्डियोंके घनत्व में कमी, मासिक चक्र का समय पर न होना, पानी की कमी, चोट, ऐक्सरसाइज के बाद दर्द आदि. ध्यानरहे कि सप्ताह में 5 बार 30 मिनट से 60 मिनट तक की ऐक्सरसाइज ही पर्याप्त होती है.
रूबीना खातून को ओर्थोरेक्सिया नर्वोसा है यानी उन्हें हैल्दी फूड खाने की जबरदस्त लत है. वे यह फूड इसलिए खाती हैं ताकि उन की हैल्थ ठीक रहे, लेकिन यह लत एक डिसऔर्डर है. जिन लोगों को यह रोग होता है उन का व्यवहार एनोरेक्सिया या बुलीमिया जैसा ही होता है. बस, इस फर्क के साथ कि उन्हें फूड की मात्रा की लत होती है और आर्थोरेक्सिया रोगियों को फूड की गुणवत्ता की.
अध्ययनों से मालूम हुआ है कि यह डिसऔर्डर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होता है और 30 वर्ष की आयु के बाद यह गंभीर रूप धारण कर लेता है. साथ ही, उच्च वर्ग के उच्च शिक्षित लोग इस का अधिक शिकार होते हैं. ऐसे रोगियों को चाहिए कि वे अपने डायटीशियन से मिलें ताकि अपने मेन्यू में अधिक किस्म के फूड शामिल कर सकें और अगर आवश्यकता पड़े तो मनोवैज्ञानिक से भी बात करें.
अधूरी जानकारी
सवाल यह है कि सप्लीमैंट्स, ऐक्सरसाइज या हैल्थ फूड को ले कर इतनी समस्याएं क्यों खड़ी हो रही हैं? दरअसल, अत्यधिक जानकारी का होना भी बुरा है. आज फूड को ले कर बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध है. 
दरअसल, फूड के बारे में जानकारी का सैलाब आ गया है. लेकिन अधिकतर  जानकारी संदिग्ध स्रोतों से आ रही है. इस जानकारी से हम समझ बैठते हैं कि इस विषय में हमें संपूर्ण या पर्याप्त ज्ञान हो गया है कि हमें क्या खाना चाहिए. लेकिन यह इतना आसान नहीं है जितना कि समझा जाता है.
क्या अच्छा क्या बुरा
दरअसल, फूड्स को ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ कहना गलत है. फूड्स इतने साधारण तरीके से काम नहीं करते हैं. मसलन, आमतौर से फैट्स को बैड फूड समझा जाता है लेकिन शरीर के कामकाज के लिए इन का होना भी आवश्यक है मगर कम मात्रा में. इसी प्रकार शलजम को अच्छा बल्कि सुपर हैल्दी फूड समझा जाता है लेकिन अगर इसे अधिक मात्रा में खाया जाए तो यह घातक हो सकता है क्योंकि इस में सोरालैंस होते हैं जिन से कैंसर होता है. यही बात पालक पर भी लागू होती है.
अब सवाल उठता है कि फूड्स के बारे में जो लगातार जानकारियां आ रही हैं उन का क्या किया जाए? सब से पहली बात तो यह जान लें कि कोई भी ‘तथ्य’ केवल उसी समय तक तथ्य रहता है जब तक अगला अध्ययन उस की धज्जियां न उड़ा दे. 
गौरतलब है कि फैट्स को पहले तो पूरी तरह मना किया जाने लगा और अब कहा जा रहा है कि कुछ फैट्स बहुत आवश्यक हैं. मसलन, ओमेगा-3 फैटी एसिड्स. इसलिए जो भी कोई नया रिसर्च या दावा सामने आता है उस की अंधभक्ति नहीं करनी चाहिए. जानकारी हासिल करें, लेकिन अपना विवेक भी प्रयोग करें.
अत्यधिकता अच्छी नहीं
दरअसल, फूड्स उस समय बैड होते हैं जब उन्हें जरूरत से अधिक मात्रा में खाया जाए. मात्रा वास्तव में बहुत महत्त्वपूर्ण है. विशेषज्ञ तो सिर्फ एक ही मूल मंत्र बताते हैं, कम मात्रा में सब चीजें खाएं तो आप कभी गलत नहीं होंगे. इस तरह शोध किसी भी चीज को प्रकट करे या दफन करे, आप हमेशा स्वस्थ रहेंगे. दूसरे शब्दों में, आप के लिए यह सही नहीं है कि आप हर समय फल ही खाते रहें या प्रोटीन ही लेते रहें और बाकी फूड समूहों को अपनी डाइट से बाहर निकाल कर फेंक दें. जब आप चंद फूड्स पर निर्भर हो जाते हैं और उन्हें ही अधिक मात्रा में लेने लगते हैं तब गुड फूड भी बैड फूड बन जाता है. ऐसे में अच्छी चीज भी अधिक मात्रा में अच्छी नहीं रह पाती और नुकसान करने लगती है.
ये खतरे शाकाहारियों, कच्चा भोजन खाने वाले दीवानों और जो फाइबर सप्लीमैंट के साथ बड़ी मात्रा में फल खाते हैं, उन को अधिक होते हैं. गौरतलब है कि हमें रोजाना 25 से 35 ग्राम फाइबर चाहिए यानी लगभग 5 कप फल या सब्जी प्रतिदिन. इसलिए कभी फल लें और कभी सब्जी.
मांसपेशियां बनाने और रिपेयर करने के लिए शरीर को प्रोटीन की आवश्यकता होती है लेकिन अत्यधिक प्रोटीन लेने से यह काम कोई ज्यादा अच्छा नहीं हो जाएगा. आप को जितनी रोजाना कैलरी की जरूरत होती है उस का 30 प्रतिशत ही प्रोटीन होना चाहिए. इस से अधिक होगा तो शरीर में जहरीले कीटोंस जमा होने लगेंगे और नतीजतन गुर्दे पर अधिक जोर पड़ेगा उन्हें फ्लश करने के लिए. साथ ही, इस से शरीर में पानी व कैल्शियम की कमी हो जाएगी और व्यक्ति को डिहाइड्रेशन व बोन लौस का सामना करना पड़ेगा. 
इस स्थिति के लक्षण में शामिल हैं कमजोरी व खुमारी, सूखी त्वचा, बालों का झड़ना, भूख कम लगना, मितली आना और सांस में दुर्गंध. लंबे समय में इस से गुर्दों, जिगर और दिल पर दबाव अधिक बढ़ जाता है. साथ ही, अतिरिक्त प्रोटीन फैट में बदल जाता है जिस से व्यक्ति का वजन बढ़ जाता है. 
एक अन्य समस्या यह है कि प्रोटीन को कार्बोहाइड्रेट या फैट में बदलने की प्रक्रिया में शरीर प्रोटीन के नाइट्रोजन को यूरिया या यूरिक एसिड में बदल देता है. इसलिए बड़ी मात्रा में यह आप के गुर्दों पर असर डालता है और जोड़ों में दर्द व सूजन पैदा करता है. इसलिए प्रोटीन शेक से सावधान रहें. 
शरीर 1 घंटे में केवल 4 या 5 ग्राम प्रोटीन ही प्रोसैस कर सकता है. अधिकतर लोगों को 50 से 70 ग्राम प्रोटीन ही दिन में चाहिए होता है. लगभग 200 ग्राम चिकन या फिश या 150 ग्राम मटन से 40 ग्राम प्रोटीन मिल जाता है. एक अंडे से 5 ग्राम प्रोटीन और 250 एमएल दूध से 9 ग्राम प्रोटीन मिलता है. अगर आप इस से अधिक ले रहे हैं तो आप जरूरत से ज्यादा प्रोटीन ले रहे हैं.
कुछ भ्रांतियां
चाय से हमारा हृदय स्वस्थ रहता है और तनाव भी दूर होता है. लेकिन चाय की लत ठीक नहीं. ऐसा न हो कि आप दिन में 4 कप की जगह 10 कप पीने लगें. चाय के एक कप में 40 एमजी कैफीन होती है जो आयरन और कुछ विटामिंस को हजम करने में रुकावट बनती है. ज्यादा चाय पीने से सिरदर्द, अनियमित हृदय गति और नींद न आना जैसी बीमारियां हो सकती हैं. जो लोग कैफीन के प्रति संवेदनशील होते हैं उन्हें चाय से एसिडिटी होने लगती है. टी बैग ज्यादा जल्दी से कैफीन चाय में घोलते हैं, इसलिए अगर आप दिन में 5 कप से ज्यादा चाय पीते हैं तो कैफीनरहित चाय पिएं. अपने चाय के कप को भी देखें कि वह इतना बड़ा न हो कि 1 कप में 2 कप की चाय आती हो. मधुमेह व हाई ब्लडप्रैशर के रोगी चाय से बचें.
हालांकि मछली में स्वस्थ ओमेगा-3 फैटी एसिड्स होते हैं जिन से हृदय रोग और संभवत: एल्जाइमर से बचा जा सकता है लेकिन मछली में जहरीले धातु जैसे मरकरी भी होते हैं. खासकर टूना, सोडाफिश और शार्क में. अत्यधिक मछली खाने से स्वास्थ्य संबंधी कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे याददाश्त व एकाग्रता में कमी. इसलिए रोजाना 20-25 ग्राम से अधिक मछली नहीं खानी चाहिए या सप्ताह में 2 बार. 
वे मछली खाएं जिन में मरकरी कम होती है, जैसे श्र्ंिप, सालमन, कैटफिश, कार्प आदि. फिश औयल सप्लीमैंट भी दिन में 3 से 5 ग्राम ही सुरक्षित हैं. 
सोया के लाभ अनगिनत हैं लेकिन इस की अधिकता नपुंसकता और हारमोनल परिवर्तन ला सकते हैं. इसलिए केवल दिन में 25-30 ग्राम सोया फूड ही सुरक्षित हैं.
इस तरह यह साफ है कि किसी भी फूड की अधिकता यानी ओवरडोज उसे बैड फूड बना देता है.
 

भारत भूमि युगे युगे

शीला चलीं केरल
केरल वाकई खूबसूरत प्रदेश है. वहां नारियल के झूलते पेड़ हैं, अठखेलियां करती समुद्र की लहरें हैं और आकूत प्राकृतिक संपदा है. ऐसी और भी कई खूबियों के चलते दुनियाभर के पर्यटक वहां खिंचे चले जाते हैं.
शीला दीक्षित वहां खुद नहीं गई हैं, राज्यपाल बना कर भेजी गई हैं जिस से 5 साल सुकून से कभी समुद्र किनारे तो कभी राजभवन में बैठ कर चिंतनमनन कर पाएं कि 2003 से 2013 की सत्ता कैसे हाथ से छिन गई. करारी हार के बाद उन्हें कांग्रेस यानी सोनिया गांधी ने लाटसाहबी बख्शी है तो जाहिर है, इनाम है, सजा नहीं. कांग्रेस शीला दीक्षित को सूनी आंखों से कुरसी निहारते नहीं देखना चाहती. पटखनी तो अरविंद केजरीवाल ने ऐसी दी है जिस की कसक उन्हें जिंदगीभर रहेगी.
 
बाप रे बाप
नारायणदत्त तिवारी ने ठीक वैसे ही रोहित शेखर को बेटाबेटा कह कर गले लगा लिया जैसे प्रकाश मेहरा अभिनीत फिल्म लावारिस में अमजद खान ने अमिताभ बच्चन को लगाया था. अब एन डी तिवारी रोहित को नाम, दौलत और शोहरत सब देने को तैयार हैं. इसे बजाय हृदय परिवर्तन या पश्चात्ताप के मजबूरी कहना बेहतर होगा.
सुखांत हमेशा अच्छा होता है लेकिन इस से रोहित की संघर्षक्षमता भी उजागर हुई है. उस ने अदालती लड़ाई लड़ी पर हार नहीं मानी. इस खूबी का फायदा राजनीति में अगर वह आया तो वहां भी उसे मिलेगा. अब इस फिल्मी कहानी में दिलचस्पी इस बात भर की है कि क्या एन डी तिवारी उज्ज्वला शर्मा को भी पत्नी का दरजा देंगे?
 
दोहराने की चुनौती
चुनावी ढोलनगाड़े 16 मई तक गूंजते रहेंगे. इन के शोरशराबे के बीच आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी किसी राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी से कम दौरे नहीं कर रहे. उन के सामने दिल्ली के नतीजे दोहराने की चुनौती है.
आम मतदाता के नजरिए से देखें तो अब केजरीवाल परिपक्व हो रहे हैं. वे टुटपुंजिए और छुटभैये नेताओं के बजाय सीधे दोनों पार्टी के भावी प्रधानमंत्रियों– नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी पर प्रहार करते हैं, आचारसंहिता उल्लंघन के तो वे विशेषज्ञ होते जा रहे हैं और सियासी सौदेबाजी का बहीखाता भी समझने लगे हैं. दूसरी तरफ खासतौर से भाजपा अंदरूनी प्रचार यह कर रही है कि आप के पास न कार्यकर्ता हैं न संगठन, जो दिल्ली नहीं चला पाई वह देश क्या चलाएगी. अब वोटर की बारी है कि वह आप और अरविंद को ले कर क्या निष्कर्ष निकालता है.
 
एक और भगवा आइटम
धारावाहिक रामायण की सीता या सासबहू सीरियल की बहनजी छाप बहू होती तो जरूर भाजपा राखी सावंत को हाथोंहाथ ले लेती. बिंदास और उन्मुक्त राखी सावंत के आगे लोकप्रियता के मामले में दीपिका चिखलिया या स्मृति ईरानी कहीं नहीं ठहरतीं. भगवा खेमे में घबराहट उस वक्त मच गई जब खुद आइटम गर्ल राखी सावंत दिल्ली स्थित भाजपा के दफ्तर जा पहुंचीं. बकौल राखी सावंत, वे भाजपा की बेटी हैं और नरेंद्र मोदी की मुरीद हैं.
वे पहली अभिनेत्री हैं जिन का नाम कटाक्ष करने ही इसी राजनीति में सब से ज्यादा इस्तेमाल किया गया. उन की इमेज भगवा खेमे के उसूलों से मेल नहीं खाती, इसलिए राजनाथ सिंह ने चतुराई से उसे टरका दिया पर भूल यह गए कि यह वही बोल्ड लड़की है जिस ने रामदेव से शादी करने की अपनी ख्वाहिश छिपाई नहीं थी.
 
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