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इन्हें भी आजमाइए

  1. टीनएजर्स की पार्टी में सभी को अलगअलग तरह की ज्वैलरी डिजाइन करने के लिए कहें. इस के लिए उन्हें स्ट्रा, फ्लावर्स, बीड्स व सीक्वैंस, स्वरोस्की, कलरफुल पेपर आदि सामान दें. इस से इयररिंग्स, नैकलेस, कंगन, ब्रेसलैट, टीका, करधनी, बैल्ट, अंगूठी आदि डिजाइन करने को कहें. जब वे डिजाइन बना चुकें तो बाद में उन्हें पहनने के लिए भी कहें.
  2. रैस्तरां में आप के किसी परिचित के मिल जाने पर उस से अभिवादन करें या औपचारिकता पूर्ति के लिए एकदो शब्द कहें. उस की मेज पर पहुंच जाना अनुचित है क्योंकि यह स्थिति उस व्यक्ति को बाध्य करेगी कि वह आप के लिए भी चायकौफी मंगाए.
  3. बच्चों की पार्टी में सिर्फ उन्हीं बच्चों को इनाम न दें जो पार्टी के दौरान खेलों में सफल रहे हैं बल्कि सभी मेहमान बच्चों को कोई न कोई उपहार अवश्य दें, जिस से वे खाली हाथ वापस न लौटें.
  4. कई बार देखने में आता है कि लोग जाते तो हैं अफसोस जाहिर करने परंतु संबंधित व्यक्ति के वहां से हटते ही इधरउधर की हांकने लगते हैं. यह बहुत ही अशिष्टतापूर्ण लगता है. भले ही आप वहां अधिक समय न रह कर थोड़ी देर ही रूकें, पर दूसरे प्रसंग न उठाएं.

मेरे पापा

बात उन दिनों की है जब मैं ने नौकरी करनी शुरू की थी. मैं औफिस के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए चला जाता था. इसलिए मुझे अकसर घर पहुंचने में देरी हो जाती थी. उन दिनों हमारे घर पर मैसेज देने के लिए टैलीफोन भी नहीं था. एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ घूम कर रात को 12:30 बजे घर पहुंचा तो देखा कि पापा घर के बाहर बेचैनी से इधरउधर घूम रहे हैं.

मुझे देख कर पापा ने पूछा, ‘‘अब तक कहां थे?’’

मैं ने बताया, ‘‘दोस्तों के साथ घूमने के लिए चला गया था लेकिन आप अभी तक क्यों जाग रहे हैं? आप को आराम करना चाहिए था.’’

तब पापा ने मुझ से कहा, ‘‘बेटा, मैं क्यों जाग रहा हूं, इस बात को तुम अभी नहीं समझोगे, जब खुद बाप बनोगे और तुम्हारी औलाद इतनी देर तक घर से बाहर रहेगी तब तुम समझोगे.’’

पापा की इस बात ने मुझे बेचैन कर दिया. अगले दिन सुबह उठ कर मैं ने पापा से माफी मांगी और समय पर घर वापस आने का वादा किया. उस दिन के बाद से मैं समय से घर आने लगा. आज पापा हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन जब भी मैं अपने बच्चों की फिक्र करता हूं तो मुझे पापा की कही हुई बात याद आती है कि ‘तुम इस बात को अभी नहीं समझोगे.’

उमेश कुमार शर्मा, गौतमबुद्धनगर (उ.प्र.)

 

बात 1974 की है. दिल्ली के बनियों, खत्रियों, ब्राह्मणों व रोहतगियों में यह रिवाज था कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु पर स्यापा बैठता था. अर्थात उस घर की स्त्रियां दोपहर लगभग डेढ़ बजे तक दरी बिछा कर बैठ जाती थीं. 2 बजे नातेरिश्ते की स्त्रियां भी आ कर बैठ जाती थीं. शाम के 5 बजे बाहर की स्त्रियां जब चली जाती थीं तब घर की स्त्रियां कुछ खापी सकती थीं. ऐसा बाहरवें दिन तक चलता था.

हमारे दादाजी का जब देहांत हुआ तब हम बहनें काफी छोटी थीं. मम्मी व चाचीजी भी अगर दादीजी के साथ स्यापे में बैठ जातीं तो हम बहनों को कौन देखता. यह सोच कर मेरे पापा व चाचाजी ने इस बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां स्यापा नहीं बैठेगा.’’

उस समय यह एक बहुत बड़ा फैसला था. रिश्तेदारी में हमारे परिवार की बहुत निंदा हुई. लेकिन दोनों भाई अपनी बात पर डटे रहे. कुछ साल बाद सभी ने इस बात को स्वीकार किया कि वह फैसला समय के साथ लेना आवश्यक था. उस दौरान परंपरा को तोड़ कर मेरे पापा ने समाज की परवा किए बगैर जो फैसला लिया वह सराहनीय था. ऐसे थे मेरे पापा.

अनुभा रोहतगी, प्रियदर्शनी विहार (दिल्ली)

भंवर

आज भंवर पांवों में लपेट लिए
बना के पायल उस ने
जिस ने, हाथों में,
सदियों को पहना था कंगन समझ

सपनों को गूंथ लिया था
चोटी में गजरे की तरह
औ जीवन के रंगों को समेटा था
हथेली में मेंहदी समझ

अश्कों ने जिस के कर दिया था
समंदर खारा
औ पी गई थी जो
रस्मोरिवाज जमाने के अमृत समझ

टूट कर बिखरने भी न दिया
जिस ने कभी
दिल को, संभाल लिया सीने से लगा
बच्चा समझ

कर के बेवफाई छोड़ गया कोई
उसे बहारों में खड़ा
जी रही है फिर भी वो
उस को कोई नई अदा समझ

न आइना दो हाथ में
भ्रम बना रहने दो
खेलने दो गर खेलती है
कटोरी को चांद समझ.

वंदना गोयल

गरीबी और अशिक्षा बड़ी समस्याएं – रूबी प्रसाद

रूबी प्रसाद, विधायक दुद्धी, विधानसभा क्षेत्र, सोनभद्र क्षेत्र की सियासी हालत, नक्सलवाद और जनता से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं. वे अंधविश्वास, गरीबी और अशिक्षा को क्षेत्र की गंभीर समस्याएं मानती हैं. पिछले दिनों शैलेंद्र सिंह ने इन्हीं मुद्दों पर रूबी प्रसाद से बातचीत की.

उत्तर प्रदेश के सब से बड़े जिले के रूप में सोनभद्र का नाम लिया जाता है. 7,388 वर्ग किलोमीटर में फैले सोनभद्र जिले का मुख्यालय रौबर्ट्सगंज है. सोनभद्र की सीमा 4 प्रदेशों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार की सीमाओं से मिली है. यहां की जनसंख्या का घनत्व 198 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है जो प्रदेश में सब से कम जनसंख्या घनत्व है. रूबी प्रसाद सोनभद्र जिले की दुद्धी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं. आजादी के बाद वे पहली महिला हैं जो इस क्षेत्र से विधायक चुनी गई हैं. बीएससी औनर्स की पढ़ाई कर चुकी रूबी प्रसाद फिजियोथेरैपिस्ट हैं. उन के पति डा. योगेश्वर प्रसाद भी डाक्टर हैं. रूबी प्रसाद मूलरूप से झारखंड के गिरिडीह जिले की रहने वाली हैं. शादी के बाद से वे यहां रहती हैं.

आप के क्षेत्र की सब से बड़ी समस्या क्या है?

दुद्धी विधानसभा क्षेत्र छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा है जिस के चलते नक्सलवाद यहां की सब से बड़ी परेशानी है. बेरोजगारी, गरीबी और शिक्षा का अभाव यहां के रहने वालों को अंधविश्वासी बनाने का काम करता है. अभी भी यहां औरतों को डायन बता कर मार देने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं. गरीबी और अशिक्षा के चलते लोग बीमारियों का इलाज नहीं कराते. इलाके के पानी में 84 प्रतिशत पारा (मरकरी) है जिस से पानी पीने वाले बीमार हो  जाते हैं.  

आप अपने क्षेत्र की जनता से कैसे संपर्क रखती हैं?

हर माह की 2 तारीख को हम क्षेत्र में खुली बैठक करते हैं, जहां लोग अपनी परेशानियां बताते हैं. इसी तरह हर सप्ताह डीसीएफ कालोनी, गोंडवाना में सोमवार और बुधवार को अपने क्षेत्र के लोगों से मिलते हैं. इस के अलावा टैलीफोन के जरिए भी हम अपने क्षेत्र की जनता से संपर्क में रहते हैं.

नक्सलवाद को जनता का समर्थन क्यों मिल रहा है?

पुलिस और वन विभाग के सरकारी नौकर गांव में रहने वालों को कानून का भय दिखा क र खूब परेशान करते हैं. इन से बचने के लिए ये लोग नक्सली लोगों के संपर्क में चले जाते हैं. ऐसे में नक्सलवाद बढ़ता जा रहा है. विकास के नाम पर जंगलों में रहने वाले इन लोगों की जमीनें छीन ली गईं. जो सरकारी पटट्े दिए गए उन पर या तो दबंगों का कब्जा है या फिर वह जमीन खेती के लायक ही नहीं है. इन गरीबों की लड़कियों के साथ अकसर बलात्कार होता है. पुलिस दबंगों का साथ देती है. ऐसे में नक्सली ही इन का सहारा बनते हैं.

राजनीति में कैसे आईं?  

राजनीति में मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कभी नहीं रहा. मेरे पति रौबर्ट्सगंज में डाक्टर हैं. मैं भी यहीं पर फिजियोथेरैपिस्ट के रूप में काम करने लगी. इस दौरान लोगों से मेलमिलाप बढ़ा, यहां की परेशानियां देखीं. कुछ लोगों से बात हुई तो विधानसभा का चुनाव लड़ने का मन बनाया. पति ने भी पूरा सहयोग दिया. वे मान रहे थे कि अगर हम इस क्षेत्र में रह रहे हैं तो यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए. हम से पहले कोई महिला यहां से चुनाव नहीं जीती थी. यह एक डर भी था. किसी पार्टी का वोटबैंक भी साथ नहीं था. क्षेत्र के लोगों का भरोसा और प्यार वोट में बदल कर मिला. इस तरह से मुझे क्षेत्र की पहली महिला विधायक बनने का मौका मिला.  

आप अमेरिका यात्रा पर गई थीं. कैसी रही वह यात्रा?

इंटरनैशनल विजिट्स लीडरशिप प्रोग्राम के तहत पूरे देश से 7 लोगों को 15 दिन के लिए अमेरिका बुलाया गया था. उस में मैं अकेली महिला सदस्य थी. हमें वहां की सुरक्षा, मशीनरी, खेती और संसद की कार्यवाही देखने का मौका मिला. बहुत अच्छा लगा. बहुत नईनई बातें सीखने और देखने को मिलीं.  

आप को घरपरिवार और बच्चों की देखभाल भी करनी पड़ती है, उस के लिए वक्त कैसे निकालती हैं?

वक्त तो निकालना ही पड़ता है. मेरे 2 बेटे और 1 बेटी हैं. बड़ा बेटा कक्षा 8 में है, बेटी कक्षा 6 में और सब से छोटा बेटा कक्षा 2 में पढ़ता है. इन को होमवर्क कराना, इन की स्कूल डायरी देखना और सुबह का टिफिन बना कर देना पड़ता है. जब बाहर रहती हूं तो घर के अन्य सदस्य यह करते हैं. बच्चों को मेरे हाथ का बना पास्ता खाने में बहुत अच्छा लगता है.

धर्म धर्म का चमकता बाजार

धर्म का कारोबार करने वालों ने अब त्योहारों को भी अपना निशाना बना लिया है. लक्ष्मी को मनाने के झूठे भरोसे दिलाने के लिए वे अब तकनीक का सहारा ले रहे हैं. त्योहारों की खुशियों की चमक पर धर्म कैसे अपने अंधकार का ग्रहण लगा रहा है, जानिए इस लेख में.

शिक्षा और विज्ञान की चमक व तकनीकी रोशनी के बावजूद उत्सवों पर खुशियों की चमक के साथ धर्म का अंधकार कम नहीं हो रहा है. स्वार्थ का कारोबार करने वालों ने अब तकनीक को भी अपना सहारा बना लिया है.
दीवाली पर लोगों से धन ऐंठने के लिए इंटरनैट और संचार माध्यमों में धर्म का व्यापार नए रूप, नए रंग में नजर आ रहा है. धर्म का धंधा हाईटेक हो कंप्यूटर, टैलीविजन, मोबाइल के माध्यम से फैल रहा है.
लक्ष्मी को खुश करने के नाम पर इंटरनैट, मोबाइल, टैलीविजन चैनलों के जरिए बेवकूफ बना कर जेबों से मोटा पैसा निकलवाने की कोशिश की जा रही है. लोगों के मोबाइल पर एसएमएस, मेल, इंटरनैट और टैलीविजन पर लक्ष्मी प्राप्ति, सुखसमृद्धि, शांति पाने के भरपूर विज्ञापन देखे जा सकते हैं.
मोबाइल पर कौल कर के एक युवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए स्फटिक माला खरीदने का आग्रह करती है. माला की कीमत 2,501 रुपए बताती है और माला घर के पते पर भेजने की बात कहती है, वह गारंटी लेने को भी तैयार है कि माला से दरिद्रता दूर होगी ही.
लक्ष्मी, गणेश, काली माता की कथा की पुस्तकें इंटरनैट पर बिक रही हैं. सुखसमृद्धि के मंत्र, लक्ष्मी को प्रसन्न करने के मंत्र उपलब्ध हैं. धनवृद्धि योग, ऋणमुक्ति उपाय, उल्लू पूजा, गोवर्धन पूजा जैसे ढकोसले व इंटरनैट पर कुबेर यंत्र, लक्ष्मी यंत्र, गणेश यंत्र 2,100 रुपए से ले कर 5,100 रुपए तक के बेचे जा रहे हैं.
दीवाली की ज्यादातर उपहारों पर धर्म का ठप्पा लगा हुआ देखा जा सकता है. मजेदार बात यह है कि चीन ने गैर हिंदू देवीदेवताओं की मूर्तियों व तसवीरों के बाजार पर अपना आधिपत्य जमा लिया है. सुखसमृद्धि के लिए लाफिंग बुद्धा की मूर्तियां खूब खरीदी जा रही हैं. सैकड़ों धार्मिक कारोबारियों की वैबसाइटें दिनरात समृद्धि के ख्वाब दिखा कर लोगों को लूटने में लगी हैं.
लक्ष्मी, सुखसमृद्धि व शांति उपलब्ध कराने के लिए इंटरनैट व टीवी पर पंडित हाजिर हैं जो अपने फोन नंबर दे कर संपर्क करने को कहते हैं. दीवाली की रात लक्ष्मी को प्रसन्न करने का मंत्र और हवनयज्ञ कराने के लिए कौल करें. कर्ज मुक्ति, धन का अभाव, गड़ा धन पाने के लिए पंडितजी से संपर्क करें. सौभाग्यवर्द्धक तांबे का यंत्र, स्फटिक माला, पारद गणेश प्रतिमा घर में स्थापित करें.
चैनलों पर औनलाइन शौपिंग से देवीदेवताओं की मूर्तियां, अंगूठियां, सौभाग्यवर्द्धक रत्न व नगीने बेचे जा रहे हैं. आजकल एक विज्ञापन घरबैठे किसी भी देवीदेवता का प्रसाद मंगवाने के बारे में है. इस विज्ञापन में मोबाइल नंबर दिए गए हैं और केवल मिसकौल करने को कहा गया है. मिसकौल करने पर एक महिला की आवाज आती है और आप देश के किसी भी कोने में बैठे हों, घरबैठे हर देवीदेवता, बड़ेबड़े नामी मंदिरों से प्रसाद भेजने का दावा किया जाता है. प्रसाद
की कीमत 500, 1,000, 2,100, 3,100, 5,100 रुपए तक है.
दीवाली पर खानेपीने और मनोरंजन पर पैसा खर्च करना जायज है पर इस के बजाय लोग लक्ष्मी को मनाने जैसे पंडों के झूठे भरोसे पर ज्यादा धन खर्च कर रहे हैं.
समझना होगा कि धन मेहनत से आता है. हवनयज्ञ, तांत्रिक क्रिया, दानदक्षिणा देने, पत्थर, पारद की मूर्तियां स्थापित करने से नहीं. इस से तो जेब में रखा धन भी कम हो जाता है.

इस त्योहार सजे घरसंसार

फैस्टिव सीजन में हर कोई अपना घर खूबसूरत सजावट और रोशनी से गुलजार करना चाहता है. लेकिन डैकोर के सही तरीकों व तकनीकों के बिना घर की सजावट अधूरी ही रहती है. ऐसे में इस त्योहार पर अपने आशियाने में कैसे लगाएं चारचांद, बता रहे हैं राजेश कुमार.

घर की सजावट से जुड़ी 3 चीजें अहम हैं. आप की पसंद, घर का साइज और आप का बजट. मार्केट में ऐसे औप्शंस की कमी नहीं है जो आप को कन्फ्यूज कर देंगे. जरूरी नहीं है घर की सजावट में सिर्फ नई चीजें ही इस्तेमाल की जाएं, कुछ पुरानी और विंटेज कलैक्शन टाइप चीजें भी आप के घर को एकदम नया लुक दे सकती हैं. दीवाली के मौके पर सजावट के लिए जरूरी सामान की बात करें तो इस में कैंडल्स, फल, दीए, बंदनवार, रंगोली, लाइटिंग, मोटिफ्स, फ्लोटिंग कैंडल्स के अलावा घर के इंटीरियर के लिए रंगीन कुशंस, परदे, प्लांट्स और रंगबिरंगी इलैक्ट्रिक ?ालरें प्रमुख तौर पर काम आती हैं. इन के इर्दगिर्द ही घर की सारी साजसज्जा सिमटती है.

रोशनी से गुलजार आशियाना

दीवाली में सजावट की सब से अहम चीज है रोशनी. चूंकि यह त्योहार ही रोशनी का है इसलिए इस दिन दीप, कैंडल्स और इलैक्ट्रिक लाइट्स वगैरह हर घरमें जगमगाहट भरती हैं. लाइटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है, ध्यान रखें कि यह खूबसूरत तो हो लेकिन भारीभरकम रंगों व चुभने वाले प्रकाश वाली न हों. बैडरूम घर का मुख्य भाग होता है, वहां सफेद रोशनी ही करें. इस से आप रिलैक्स फील करेंगे.

घर के किसी कोने को उभारने के लिए ट्रैक लाइट जबकि स्टाइलिश लुक के लिए फेयरी लाइट्स का विकल्प ठीक होता है. इस के अलावा घर के हर कोने में रोज जलने वाले दीए मिट्टी के बने हों और उन पर कुछ पेंट या ड्राइंग कर उन्हें नया लुक दें. दीए के साथसाथ कैंडल की जगमगाहट भी जरूरी है. इसलिए कई रंगों और डिजाइंस की कैंडल्स प्रयोग में लाएं, घर जगमगा उठेगा. लडि़यों और दीयों का कौंबिनेशन भी बनाया जा सकता है. इस का इफैक्ट अच्छा लगता है.

घर का बदलें इंटीरियर

दीवाली पर घर सिर्फ पेंट करने से ही नहीं चमकता. आप घर की दीवारों को कई तरह के वाल पेपर्स और सीनरी के जरिए भी नया लुक दे सकते हैं. फर्नीचर के साथ भी कई क्रिएटिव ऐक्सपैरीमैंट कर सकते हैं. मसलन, ऐंटीक लुक का फर्नीचर आजमाएं. कोई कलर थीम चुन लें और फिर उसी के अनुसार घर की साजसज्जा करें. मैचिंग का विशेष ध्यान रखें. नक्काशीदार सामान के जरिए भी घर को डिफरैंट लुक दे सकते हैं. कुछ और तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, मसलन, घर के पायदान बदल कर नए लगाएं, सोफों के कुशन कवर बदलें, फर्नीचर को रिअरेंज करें, घर के इनडोर प्लांट्स के गमले पेंट करें, परदों का कौंबिनेशन और कलर थीम बदलें, किचन को मौड्यूलर अंदाज में सजाएं.

फूलों से सजेमहके घर

रंग और रोशनी के अलावा फूल डैकोरेशन में नया आकर्षण जोड़ते हैं. दीए तो रात में ही जगमगाते हैं जबकि फूल तो घर को दिनरात सजाते व महकाते रहते हैं. फूलों को घर में कई तरह से सजाया जा सकता है. पानी के टब से ले कर थाली तक, फूल अपने रंग और खुशबू से घर का कोनाकोना महका देते हैं. स्टील के प्लैटर के किनारे पर ताजा फूल रखें और फिर मिठाइयां सजा दें या फिर बेंत की टोकरी ले कर उस में नीचे फूल सजा कर, अलगअलग तरह की ढेर सारी चौकलेट्स भर कर मेज पर रख सकते हैं.

किसी पानी भरे गुलदान में किनारों पर ही फूल या पंखडि़यां बिछा कर बीचोंबीच पानी पर तैरते दीए या कैंडल रखने से रोशनी, रंग और खुशबू से आप का आशियाना अलग ही रंगत में रोशन होगा. हां, सजाने से पहले फूलों को ताजा बनाए रखने के लिए फूलों की डंडियों को किसी गहरे बरतन में पानी में डुबो कर रखें, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा पानी सोख सकें. जब आप इन की डंडियों को अरेंजमैंट के लिए काटेंगी तो इन का नीचे से जल्दी सूखना शुरू हो जाएगा.

पुराने कांच के डिजाइनर गिलासों, पौट या होल्डर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. फूलों की सजावट के लिए रचनात्मकता और थोड़े से तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है. सजावट के बाद फूलों की नमी बनाए रखने के लिए उन पर पानी छिड़कते रहें.

रंग, रंगोली और शौपिंग

बिना रंगोली के दीवाली की हर सजावट अधूरी है. आमतौर पर रंगोली बनाने में कलई का सफेद रंग, गेरू का लाल रंग, पीली मिट्टी का पीला रंग व कई रंगबिरंगे गुलाल उपयोग में ला सकते हैं. आजकल बाजार में मिलने वाली रैडीमेड रंगोलियां भी इस्तेमाल की जा सकती हैं. मुख्यद्वार या फर्श का एक छोटा हिस्सा इस्तेमाल करें और गीली चौक से रंगोली का आकार बनाएं. इस के बाद गुलाल के विभिन्न रंगों व चावलों से उसे सजाएं. चावलों को कई रंगों में रंग कर भी रंगोली बना सकते हैं. समतल रंगोली बनाएं, स्थान को अच्छी तरह धो कर सुखा लें. अगर आप को रंगोली बनानी नहीं आती तो कोई बात नहीं, मार्केट में डिजाइनर खांचे मौजूद हैं.

रही बात खरीदारी की, तो शौपिंग लोकल मार्केट के बजाय थोक बाजारों से करें. इन जगहों से सस्ता और वैरायटी वाला सामान मिलेगा. सजावटी कैंडल्स जहां 50 से 350 रुपए के बीच मिलती हैं वहीं रंगोली के पैटर्न स्टिकर्स आप को महज 15 से 20 रुपए में मिल जाएंगे. इस के अलावा सजावट की ?ालरें और कैंडल भी 50 रुपए से शुरू हो कर 800 रुपए तक में मिल जाएंगी. दीवारों पर लगाने के लिए चाइनीज 3डी पेंटिंग्स भी 40 रुपए से ले कर 500 रुपए तक में खरीदी जा सकती हैं.

कुल मिला कर इस दीवाली पर आप अपने घर को बिना किसी इंटीरियर डिजाइनर की मदद के भी रंग, रोशनी, और फूलों से न सिर्फ महका व सजा सकते हैं बल्कि इस त्योहार को सजावट के खास अंदाज से कुछ अलग और यादगार भी बना सकते हैं.

सजें ऐसे कि नजर ठहरठहर जाए

दीवाली यानी सजनेसंवरने का पूरा मौका, तो फिर देर किस बात की, इस दीवाली पर सजें कुछ इस तरह कि सब की नजरें ठहर जाएं सिर्फ आप पर. कैसे, बता रही हैं गरिमा पंकज.

त्योहारों का मौका ऐसा समय होता है जब हम ऐथनिक और ट्रैडिशनल डै्रसेज पहनना पसंद करते हैं. नए स्टाइल मंत्रा के साथ आप इन कपड़ों में आकर्षक लुक पा सकती हैं.

साड़ी ऐसा परिधान है जो ट्रैडिशनल होने के साथसाथ आप को सब से ज्यादा गौर्जियस व सैंसुअस लुक देता है. ऐसी कई तरह की साडि़यां हैं जिन्हें इस मौके पर पहन कर आप लोगों के आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं.

सिल्क साडि़यां : मूल रूप से तमिलनाडु में मिलने वाली, ट्रैडिशनल कांजीवरम सिल्क साडि़यां त्योहारों में बेहद चार्मिंग व ग्रेसफुल लुक देती हैं. मैसूर सिल्क साडि़यां लाइटवेट होती हैं और वे प्योर सिल्क से बनाई जाती हैं. इन के बेहतरीन टैक्सचर और जीवंत रंगों के साथ आप अपने को विशेष लुक दे सकती हैं.

चिकनकारी साडि़यां : लखनऊ की ये साडि़यां हर किसी को लुभाती हैं. पहले इन में ऐंब्रौयडरी के लिए सफेद धागों का ही प्रयोग होता था मगर आजकल विभिन्न रंगों के धागों का इस्तेमाल होने लगा है. गहरे शोख रंग वाली सीक्वेंस वर्क से सजी ये साडि़यां दीवाली के लिए परफैक्ट चौइस हैं.

बांधानी साडि़यां : सिल्क और कौटन के मिक्स फैब्रिक में मिलने वाली ये साडि़यां गुजरात और राजस्थान की खास साडि़यां हैं, टाई ऐंड डाई वर्क के साथ ब्राइट व नैचुरल कलर्स में स्टाइलिश ब्लौक पिं्रट्स वाली ये साडि़यां आर्टिस्टिक लुक लिए होती हैं. बांधानी साडि़यां कौटन, जौर्जेट, के्रप, सैटिन और सिल्क में भी मिलती हैं. जरी, ब्रोकेड व हैंड ऐंब्रौयडरी बौर्डर्स के साथ ये त्योहारों के मौकों पर जंचती हैं.

बालुचारी साडि़यां : भारी पल्लू और फूलों के मोटिफ वाली इन साडि़यों के लिए बंगाल का विष्णुपुर मशहूर है. इन का पल्लू बड़ा होता है, जिन पर नृत्य करते पुरुष व महिलाओं की विभिन्न मुद्राएं बनी होती हैं. जाहिर है ये सब फैस्टिव मूड के लिए उपयुक्त हैं.

जानीमानी फैशन डिजाइनर सपना ढींगरा कहती हैं, ‘‘महिलाएं चाहें तो पुरानी साड़ी को नए अंदाज में पहन सकती हैं. इस के लिए जरूरी है साड़ी के साथ डिजाइनर ब्लाउज का कौंबिनेशन. आजकल कंट्रास्ट ब्लाउज चलन में हैं, जैसे ग्रीन साड़ी के साथ सिल्वर या गोल्डन ऐंब्रौयडर्ड ब्लाउज.’’

फैस्टिव सीजन में लहंगाचोली, लहंगासाड़ी और अनारकली सूट भी अच्छे लगते हैं. रैडीमेड लहंगासाड़ी आज का हौटैस्ट ट्रैंड है. लहंगों में ब्राइट कलर जैसे रोजबेरी, वाइन और ब्लडरैड जैसे शेड्स खास हैं. थे्रड वर्क, जरीदार कुंदन वर्क व मिरर वर्क से सजे ये लहंगे दीवाली की पार्टी में नया रंग भरते हैं. नैट और ब्रोकेड वर्क इन कपड़ों को रिच लुक देता है.

अनारकली सूट दीवाली के लिए पौपुलर आउटफिट हैं. टाइट चूड़ीदार और दुपट्टे के साथ फैस्टिव सीजन में यह खूब फबते हैं. ये कई तरह के स्टाइल, डिजाइन और पैटर्न में उपलब्ध हैं.

आप दीवाली पर इंडोवैस्टर्न टच वाले सलवारकमीज भी चुन सकते हैं. प्लेन सलवारकमीज पर कंट्रास्ट ब्रोकेड बौर्डर और हाई कौलर्ड लुक, लौंग स्लीव्स के साथ हैल्दी लेडीज के लिए अच्छा है तो स्लिम लड़कियों के लिए स्किन फिटेड मुमताज लुक के सूट अच्छे लगते हैं.

डिजाइनर सपना ढींगरा कहती हैं, ‘‘दीवाली के मौके पर कम उम्र की लड़कियां नैट की घेर वाली स्कर्ट के साथ कोर्सैट का स्मार्ट कौंबिनेशन भी पहन सकती हैं.’’ वे कहती हैं, ‘‘दबका, क्रिस्टल्स या सीक्वेंस वर्क और ऐंब्रौयडरी से सजे कंट्रास्ट बौर्डर वाले हैवी दुपट्टे आप की किसी भी ड्रैस को फैस्टिव लुक देंगे. नीलेंथ कुरते के साथ पटियाला या धोती सलवार और काफ्तान के साथ हैरम पैंट का कौंबिनेशन भी स्टाइलिश लुक है.’’

दीवाली पर पुरुषों पर ब्लैक, मिडनाइट ब्लू, औफवाइट, स्काई ब्लू जैसे कलर्स के अचकन, शेरवानी, कुरते आदि अच्छे लगते हैं. इन कपड़ों पर लाइट ऐंब्रौयडरी हो तो सोने पर सुहागा. पुरुषों के साथ ही छोटे बच्चों के लिए भी मार्केट में फैस्टिवल के हिसाब से रंगबिरंगे ड्रैसेज और लड़कों के लिए शेरवानी और कुरते तो लड़कियों के लिए लहंगाचोली, सलवारसूट और प्यारेप्यारे कलरफुल फ्रौक्स मिलते हैं.

क्या न पहनें

डिजाइनर सपना ढींगरा कहती हैं, ‘‘दीवाली में सिंथैटिक कपड़े न पहनें. ये स्किन के लिए तो खराब हैं ही, इन्हें पहन कर जलने की दुर्घटना होने का खतरा भी ज्यादा रहता है. बेहतर है कि आप दीवाली के लिए सिल्क के कपड़े खरीदें. सिल्क कई प्रकार के हो सकते हैं, जौर्जेट, शिफौन, क्रेप, बनारसी, ब्रोकेड वगैरह.

दीवाली तक माहौल में थोड़ी ठंडक आ चुकी होती है. ऐसे में नैट के कपड़ों को वैल्वेट के साथ कौंबिनेशन बना कर पहन सकते हैं या फिर उन पर जैकेट, शेरवानी वगैरह पहन कर स्टाइल बना सकते हैं. प्योर नैट के अलावा कौटन भी पहना जा सकता है.’’

दीवाली में सब से बेहतर है प्योर सिल्क के कपड़े पहनना. सिल्क के बहुत से विकल्प उपलब्ध हैं जिन्हें पहन कर आप खूबसूरत भी लगेंगी और कंफर्टेबल भी रहेंगी.

फर्नीचर चमके तो घर दमके

मौका दीवाली का हो, घर को खूबसूरत दिखाने की बात हो तो फर्नीचर की साफसफाई को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है. इस दीवाली अपने घर के फर्नीचर को सही साफसफाई से कैसे दें नए जैसा लुक, बता रही हैं अनुराधा गुप्ता.

प्रकाशोत्सव के नजदीक आते ही हर कोई अपने आशियाने की साफसफाई में जुट जाता है. दीवारों पर रंगरोगन के साथ ही लोग घर के फर्नीचर की सफाई कर उसे ब्रैंड न्यू लुक देने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस कोशिश में वे अकसर अपने फर्नीचर की सूरत बिगाड़ लेते हैं. इस बाबत दिल्ली के लक्ष्मीनगर स्थित वुड विला फर्नीचर ऐंड इंटीरियर के मालिक अशोक कहते हैं, ‘‘हर घर में तरहतरह का फर्नीचर होता है. यदि फर्नीचर की सफाई सही तरीके से न की जाए तो वह कम समय में ही पुराना सा लगने लगता है.’’

आइए जानें इस दीवाली पर विभिन्न प्रकार के फर्नीचर की सफाई किस तरह करें कि वह नयानया सा लगने लगे.

लैदर फर्नीचर

लैदर फर्नीचर दिखने में जितना अच्छा लगता है, उस की देखभाल करना उतना ही कठिन होता है. खास बात यह है कि लैदर फर्नीचर की उचित देखभाल न करने से वह जगहजगह से क्रैक हो जाता है.

फर्नीचर पर किसी तरह का तरल पदार्थ गिर जाए तो उसे तुरंत साफ कर दें क्योंकि लैदर पर किसी भी चीज का दाग चढ़ते देर नहीं लगती. यहां तक कि पानी की 2 बूंद से भी लैदर पर सफेद निशान बन जाते हैं. फर्नीचर को किसी भी तरह के तेल के संपर्क में न आने दें, क्योंकि इस से फर्नीचर की चमक तो खत्म होती ही है, साथ ही उस में दरारें भी पड़ने लगती हैं.

फर्नीचर की रोज डस्ंिटग करें जिस से वह लंबे समय तक सहीसलामत रहे. फर्नीचर को सूर्य की रोशनी और एअरकंडीशनर से दूर रखें. इस से फर्नीचर फेडिंग और क्रैकिंग से बचा रहेगा.फर्नीचर को कभी भी बेबी वाइप्स से साफ न करें, इस से उस की चमक चली जाती है.

वुडन फर्नीचर

वुडन फर्नीचर की साफसफाई में अकसर लोग लापरवाही बरतते हैं जिस से वह खराब हो जाता है. ध्यान से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई सी चमक आ जाती है. महीने में एक बार अगर नीबू के रस से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई चमक आ जाती है. पुराने फर्नीचर को आप मिनरल औयल से पेंट कर के भी नया बना सकते हैं और अगर चाहें तो पानी में हलका सा बरतन धोने वाला साबुन मिला कर उस से फर्नीचर को साफ कर सकते हैं.

लकड़ी के फर्नीचर में अकसर वैक्स जम जाता है जिसे साफ करने के लिए सब से अच्छा विकल्प है कि उसे स्टील के स्क्रबर से रगड़ें और मुलायम कपड़े से पोंछ दें. कई बार बच्चे लकड़ी पर के्रयोन कलर्स लगा देते हैं. इन रंगों का वैक्स तो स्टील के स्क्रबर से रगड़ने से मिट जाता है लेकिन रंग नहीं जाता. ऐसे में बाजार में उपलब्ध ड्राई लौंडरी स्टार्च को पानी में मिला कर पेंटब्रश से दाग लगे हुए स्थान पर लगाएं और सूखने के बाद गीले कपड़े से पोंछ दें.

माइक्रोफाइबर फर्नीचर

माइक्रोफाइबर फर्नीचर को साफ करने से पहले उस पर लगे देखभाल के नियमों के टैग को देखना बेहद जरूरी है. क्योंकि कुछ टैग्स पर डब्लू लिखा होता है. यदि टैग पर डब्लू लिखा है तो इस का मतलब है कि उसे पानी से साफ किया जा सकता है और जिस पर नहीं लिखा है उस का मतलब है कि अगर फर्नीचर को पानी से धोया गया तो उस पर पानी का दाग पड़ सकता है. सब से सौफ्ट ब्रश से माइक्रोफाइबर फर्नीचर की पहले डस्ंिटग करें.

इस के बाद ठंडे पानी में साबुन घोलें और तौलिए से फर्नीचर की सफाई करें. ध्यान रखें कि तौलिए को अच्छे से निचोड़ कर ही फर्नीचर की सफाई करें ताकि ज्यादा पानी से फर्नीचर गीला न हो. तौलिए से पोंछने के बाद तुरंत साफ किए गए स्थान को हेयरड्रायर से सुखा दें.सुखाने के बाद उस स्थान पर हलका ब्रश चलाएं ताकि वह पहली जैसी स्थिति में आ सके.बेकिंग सोडा में पानी मिला कर गाढ़ा सा घोल बना लें. अब इस घोल को दाग लगे हुए स्थान पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें. फिर उसे हलके से पोंछ दें.फर्नीचर पर लगे दाग को पानी से साफ करने के स्थान पर बेबी वाइप्स से साफ करें. ध्यान रखें कि दाग लगे स्थान को ज्यादा रगड़ें नहीं.

यदि फर्नीचर पर ग्रीस जैसा जिद्दी दाग लग जाए तो उसे हटाने के लिए बरतन धोने वाला साबुन और पानी का घोल बनाएं और दाग वाले स्थान पर स्प्रे करें. कुछ देर बाद गीले कपडे़ से उस स्थान को पोंछ दें.

प्लास्टिक फर्नीचर

अकसर देखा गया है कि जब बात प्लास्टिक के फर्नीचर को साफ करने की आती है तो उसे या तो स्टोररूम का रास्ता दिखा दिया जाता है या फिर कबाड़ में बेच दिया जाता है. लेकिन वास्तव में अगर प्लास्टिक के फर्नीचर की सही तरह से सफाई की जाए तो उसे भी चमकाया जा सकता है. ब्लीच और पानी बराबरबराबर मिला कर एक बोतल में भर लें और फर्नीचर पर लगे दागों पर स्प्रे करें. स्प्रे करने के बाद फर्नीचर को 5 से 10 मिनट के लिए धूप में रख दें.

ट्यूब और टाइल क्लीनर से भी प्लास्टिक का फर्नीचर चमकाया जा सकता है. इस के लिए ज्यादा कुछ नहीं, बस दाग लगी जगह पर स्प्रे कर के 5 मिनट बाद पानी से धो दें. दाग साफ हो जाएंगे.

बरतन धोने वाला डिटरजैंट भी प्लास्टिक के फर्नीचर में लगे दाग को छुड़ाने में सहायक होता है. इस के लिए 1:4 के अनुपात में डिटरजैंट और पानी का घोल बना लें. इस घोल को फर्नीचर पर स्प्रे कर के 5 से 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इस के बाद कपड़े से फर्नीचर को पोंछें. नई चमक आ जाएगी.

प्लास्टिक पर लगे हलके दागों को बेकिंग सोडा से भी धोया जा सकता है. इस के लिए स्पंज को बेकिंग सोडा में डिप कर के दाग वाली जगह पर गोलाई में रगड़ें. दाग हलका हो जाएगा.

नौन जैल टूथपेस्ट से प्लास्टिक फर्नीचर पर पड़े स्क्रैच मार्क्स हटाए जा सकते हैं.

यह सच है कि घर की रंगाईपुताई तब तक अधूरी ही लगती है जब तक घर के फर्नीचर साफसुथरे न दिखें. उपरोक्त तरीकों से घर के सभी प्रकार के फर्नीचर को चमका लिया जाए तो दीवाली की खुशियों का मजा कहीं ज्यादा हो जाएगा.

दिन दहाड़े

शहर की एक पौश कालोनी की महिलाओं की किट्टी पार्टी एक सुरक्षित समझी जाने वाली गेटबंद कालोनी में थी. किट्टी में 20 महिलाएं थीं तथा
2 लाख रुपए की किट्टी थी. स्वाभाविक है कि सभी संपन्न घराने की महिलाएं थीं तो गहने भी कीमती पहने हुए थीं.
अभी तंबोला चल ही रहा था कि मुंह पर कपड़ा लपेटे 3 लड़के हाथ में तमंचे लिए घुसे. किट्टी का बैग कब्जे में करने के साथ ही उन्होंने सब की ज्वैलरी, मोबाइल कब्जे में लिए, पर्स खाली कराए, थैलों में डाले और चलते बने.
न चौकीदार कुछ समझ पाया न अन्य कोई. लुटेरों को हर बात की पक्की जानकारी थी. किट्टी पार्टी के लिए सामान ले कर आए हैं, यह कह कर वे घर में घुसे थे. सामान दिखाने के लिए उन्होंने थैलों में रद्दी अखबार भर रखे थे.

 डा. शशि गोयल, आगरा (उ.प्र.)

एक दिन मुझे एक शादी में जाने का  मौका मिला. वहां वर पक्ष की तरफ से एक पंडितजी आए हुए थे. लोगों ने बताया कि वे व्यक्ति का माथा पढ़ कर उस के बारे में बताते हैं.
पंडितजी ने कई लोगों को कुछ न कुछ बताया. एक सज्जन से कहा कि वे पारिवारिक कलह के कारण परेशान रहेंगे. किसी से कहा कि तुम्हारी शादी टूट जाएगी, किसी से कहा कि तुम्हारा बेटा तुम्हें तंग करेगा. इस तरह वे कुछ न कुछ कहते रहे. इस कारण शादी में आए लोग अपने बारे में जान कर तनाव में आ गए थे और उन से उपाय का कारण जानना चाह रहे थे. शादी के माहौल में पंडितजी के पास समय न था इसलिए वे सभी को 15 दिन बाद का मिलने का समय और अपना मोबाइल नंबर दे रहे थे. कुछ इस तरह पंडितजी लोगों को तनाव में डाल कर अपने ठगी के धंधे का प्रचार कर रहे थे.

उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)

घटना 24 मई की है. मैं गया की सर्राफा मंडी में 3 बजे एक ज्वैलरी की दुकान में पहुंचा. यह दुकान मेरे एक करीबी दोस्त की है. दुकान में ग्राहकों की काफी भीड़ थी.
ग्राहक के भेस में एक युवक ने दुकानदार से सोने की एक चेन दिखाने को कहा. दुकानदार ने एक ट्रे में सोने की दर्जनभर चेन देखने को दीं. युवक ने
1 चेन को पसंद कर उसे तौलने के लिए कहा. दुकानदार जब तक चेन का वजन करता, युवक टे्र ले कर दुकान से बाहर निकल गया.
दुकान के बाहर मोटरसाइकिल पर सवार उस का साथी गाड़ी स्टार्ट कर उस का इंतजार कर रहा था. वह युवक मोटरसाइकिल पर बैठा और दोनों रफूचक्कर हो गए.
इस प्रकार दिन दहाड़े दुकानदार को लाखों का चूना लग गया.

देवेंद्र प्रसाद गुप्त, गया (बिहार)

बैंक के दायरे में सभी परिवार

किस देश की कितनी आबादी बैंकिंग सुविधा का प्रयोग करती है, इस से उस देश की आर्थिक स्थिति परिलक्षित होती है. इसी मापदंड को ध्यान में रखते हुए सरकार देश की ऐसी आबादी को भी बैंकिंग सुविधा पहुंचाने के लिए प्रयासरत है जो अभी तक इस के दायरे में नहीं है. जानकारी दे रहे हैं एस सी ढल.

देश के हर परिवार को बैंकिंग सुविधा मिले, सरकार इस के लिए प्रयासरत है. वित्तीय समावेश का अर्थ देश की ऐसी आबादी तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाना है जो अभी तक इस के दायरे में नहीं हैं. इस का उद्देश्य विकास क्षमता को बढ़ाना और गरीब लोगों को वित्त उपलब्ध कराना है. स्वतंत्रतादिवस पर दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि ‘हमारा प्रयास होगा कि हम अगले 2 वर्षों में सभी परिवारों के लिए बैंक खातों के लाभ को सुनिश्चित करें.’ इस के मद्देनजर स्वाभिमान योजना के तहत बैंक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
 

बैंक शाखाओं का नैटवर्क
31 मार्च, 2012 तक देश में काम करने वाले अधिसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल 93,659 शाखाएं हैं. इन में से 34,671 यानी 37.02 प्रतिशत शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में, 24,133 यानी 25.77 प्रतिशत शाखाएं कसबों में, 18,056 यानी 19.28 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में और 16,799 यानी 17.93 प्रतिशत शाखाएं महानगरीय क्षेत्रों में काम कर रही हैं.
 

बैंक शाखाएं खोलना
वित्तीय समावेश और बैंक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए सरकार ने अक्तूबर, 2011 में वित्तीय समावेश के संबंध में बैंकों को सलाह दी थी कि ऐसे सभी कम आबादी वाले क्षेत्रों में, जिन की आबादी 5 हजार या उस से अधिक है और अन्य सभी जिलों में जिन की आबादी 10 हजार या उस से अधिक है, वहां शाखाएं खोली जाएं. जून 2012 के अंत तक इन सभी क्षेत्रों में 1,237 शाखाएं (अति लघु शाखाओं सहित) खोली गईं.

शाखाओं की विस्तार योजना
वित्तीय समावेशी योजना को प्रभावशाली बनाने और बिना बैंक/कम बैंक वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बनाने के लिए आरआरबी यानी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को वर्ष 2011-12 और 2012-13 के लिए शाखा विस्तार के लिए काम करना आवश्यक हुआ. वर्ष 2011-12 के दौरान आरआरबी ने 1247 शाखाएं खोलने का लक्ष्य तय किया था. इस लक्ष्य के अनुरूप आरआरबी ने 913 शाखाएं खोली हैं. वर्ष 2012-13 के लिए 1,845 नई शाखाएं खोलने का लक्ष्य तय किया गया है.

शाखाओं को खोलने की नीति
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने 1 अगस्त, 2012 को जारी सर्कुलर में आरआरबी की ब्रांच लाइसैंसिंग नीति को उदार बना दिया है और उस ने आरआरबी को अनुमति दे दी है कि वह टीयर 2-6 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जिन केंद्रों की आबादी 99,999 हो) में शाखाएं खोले और इस के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी. इस के लिए आवश्यक है कि वे कतिपय शर्तों को पूरा करें. जो आरआरबी शर्तों को पूरा नहीं करते हैं उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक/ नाबार्ड से अनुमति लेनी होगी. टीयर-1 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार जहां आबादी 1 लाख या उस से अधिक हो) वहां शाखाएं खोलने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी होगी.

वित्तीय समावेशी अभियान
बैंकिंग की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने के लिए बैंकों को वाणिज्यिक एजेंटों-बीसीए के माध्यम से शाखारहित बैंकिंग सहित विभिन्न मौडलों और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने को कहा गया है. स्वाभिमान नाम का यह समावेशी अभियान सरकार द्वारा औपचारिक रूप से फरवरी, 2011 में शुरू किया गया था. इस अभियान के तहत मार्च, 2012 तक 74,194 गांवों में बैंकिंग सुविधा मुहैया कराई गई है और लगभग 3 करोड़ 16 लाख वित्तीय खाते खोले गए हैं.

अत्यंत लघु शाखाएं
संबंधित बैंकों द्वारा वाणिज्यिक एजेंटों के कार्यों पर निगरानी रखने और निर्दिष्ट गांवों में बैंकिंग सुविधा सुनिश्चित करने के लिए बीसीए के माध्यम से अत्यंत लघु बैंकिंग शाखाएं यानी यूएसबी स्थापित करने का फैसला किया गया है. ये शाखाएं 100 से 200 वर्गफुट में होंगी, जहां बैंकों द्वारा निर्दिष्ट किए गए अधिकारी पहले से तय किए गए दिनों में लैपटौप के साथ उपलब्ध रहेंगे. नकदी की सुविधा बैंकिंग एजेंटों द्वारा दी जाएगी जबकि बैंक अधिकारी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे.

बिना बैंक वाले प्रखंड
बिना बैंक वाले प्रखंडों में बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जुलाई, 2009 में 129 ऐसे प्रखंडों की पहचान की थी. इन में से 91 प्रखंड पूर्वोत्तर राज्यों में हैं और 38 अन्य राज्यों में हैं. सरकार के निरंतर प्रयासों से 31 मार्च, 2011 तक बिना बैंक वाले प्रखंडों की संख्या घट कर 71 रह गई है और मार्च, 2012 तक बैंकिंग सुविधाएं सभी गैरबैंकिंग प्रखंडों में स्थायी बैंकों या बैंकिंग एजेंटों या मोबाइल बैंकिंग के जरिए उपलब्ध कराई जा रही हैं.

सलाहकार समिति
भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय समावेशन के प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए उच्च स्तरीय वित्तीय समावेशी सलाह समिति यानी एफआईएसी गठित की है. समिति के सदस्यों से यह उम्मीद की जाती है कि वे बैंकिंग नैटवर्क से बाहर के ग्रामीण व शहरी उपभोक्ताओं के लिए वहन करने योग्य वित्तीय सेवाओं पर केंद्रित टिकाऊ बैंकिंग सुविधा की ओर ध्यान देंगे और समुचित नियामक व्यवस्था का ढांचा सुझाएंगे.
लब्बोलुआब यह है कि वित्तीय समावेशन बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय लेकिन धीमी प्रगति हो रही है. सच यह भी है कि भारत के सभी 6 लाख गांवों
में वहन करने योग्य वित्तीय सेवाएं सुनिश्चित कराना एक ब३हुत बड़ा कार्य है. इस के लिए सभी संबंधित पक्षों-भारतीय रिजर्व बैंक, अन्य सभी क्षेत्रों के नियामकों जैसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, पेंशन को नियामक और विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, बैंकों, राज्य सरकारों सामाजिक संगठनों व गैरसरकारी संगठनों के बीच एक साझेदारी कायम किए जाने की आवश्यकता है.

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