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नेताओं पर अदालती हथौड़ा

सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की एक धारा को असंवैधानिक करार देते हुए यह व्यवस्था की है कि जिन जनप्रतिनिधियों  को किसी आपराधिक मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा किसी अदालत से मिल चुकी हो, वह अपील के बावजूद जनप्रतिनिधि न रहेगा और उस की सीट खाली मानी जाएगी. राजनीति में पिछले वर्षों में बड़ी संख्या में अपराधी आए हैं क्योंकि अपराध साबित होने पर वे अपील कर देते थे और चूंकि अपीलें महीनों नहीं, सालों बाद सुनी जाती थीं, वे बारबार चुने जाते रहे हैं.

यह मांग जनता बहुत दिनों से कर रही है कि राजनीति में साफसुथरे लोग ही आएं तथा जिन लोगों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं वे न चुनाव लड़ सकें न पद पर बने रह सकें. अब तक चूंकि बहुत मामलों में अपीलों का सहारा था और अंतिम निर्णय नहीं आया हुआ होता है, जनप्रतिनिधि बच निकलते थे.

राजनीति में से अपराधी गायब होने चाहिए क्योंकि उन्होंने ही अफसरशाही से मिल कर प्रशासन को खराब किया है. अफसरशाही उस तरह के नेताओं का स्वागत करती है जिन पर दाग लगे हों क्योंकि उन के साए में भ्रष्टाचार करने पर दोष दागियों को लगता है पर मलाई अफसरों को मिल जाती है. अफसरशाही नहीं चाहती कि शरीफ नेता आएं क्योंकि तब उन्हें मनमानी करने का मौका नहीं मिलेगा.

जिस सरकारी अत्याचार व अनाचार से जनता कराह रही है वह नेताओं से ज्यादा अफसरशाही का है और अफसरशाही पर लगाम कसने के लिए जरूरी है कि नेता शरीफ, साफ छवि वाला हो जो निडर हो कर काम कर सके. लेकिन जब ऐसे नेताओं की बाढ़ आ जाए जो ऊपर से नीचे तक कोलतार से रंगे हों तो नौकरशाही तो उस का लाभ उठाएगी ही.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला नेताओं पर तो अंकुश लगाएगा ही, उस से ज्यादा यह अफसरशाही के पर कतरेगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मानना अब हर दल को अनिवार्य है क्योंकि आज माहौल ऐसा है कि कोई दल संविधान संशोधन की भी बात नहीं कर सकता. इसीलिए सभी दलों को, जिन्होंने बेईमानों और गुंडों को पनाह दे रखी है, इस फैसले का स्वागत करना पड़ा.

बस, कठिनाई यह है कि अब पहली अदालत अति शक्तिशाली हो गई है. हर नेता उसे खरीदने का प्रयास करेगा और जिलों या तहसीलों के जज इस दबाव को सह पाएंगे, इस में संदेह है. उच्च न्यायालय तक पहुंचतेपहुंचते न्यायाधीश पक्के हो जाते हैं पर अब अच्छेबड़े नेताओं की चाबी एक मजिस्ट्रेट के हाथ में रहेगी. अब राजनीति में विरोधी को पछाड़ने के लिए झूठे मामले दर्ज कराए जाने भी ऐसे बढ़ जाएंगे जैसे दहेज हत्याओं या बलात्कार के मामलों में हो रहे हैं. देश इस से ढंग से निबट पाएगा, इस में संदेह है.

 

मनोव्यथा

पलक झपकते ही मन में

तुम ने कैसी प्रीत जगा दी

मधुरमधुर मुसकरा कर तुम ने

तन में कैसी अगन लगा दी

 

इसे बुझाने का कितना भी

यत्न करूं, सब निष्फल होगा

 

शर्म से दहके गाल बन गए

वे सिंदूरी आम तुम्हारे

दो नटखट वे नैन बन गए

दो अंगूरी जाम तुम्हारे

 

नशा चढ़ा है, क्या उतरेगा?

यत्न करूं, सब निष्फल होगा.

 डा. महेंद्र कौशिक

इन्हें भी आजमाइए

  1. धुलाई करने के बाद अगर परदे में रौड डालने में असुविधा हो तो किसी पुराने बेकार प्लास्टिक के थैले का एक कोना काट कर रौड के सिरे पर लगा दें. ऐसा करने से रौड आसानी से परदे में पड़ जाती है.
  2. कांच के 2 गिलास एकदूसरे में फंस जाएं तो अंदर वाले गिलास में थोड़ा ठंडा पानी डाल कर दोनों गिलासों को गरम पानी में खड़ा कर दीजिए. गिलास निकल जाएगा.
  3. क्रेप के ब्लाउज या फ्रौक धोते समय उन में कलफ दे दीजिए. इस से उन पर प्रैस करना आसान होगा, साथ ही वे हैंगर में टंगे रहने पर भी ठीक रहेंगे.
  4. कपड़ों से पसीने का दाग हटाने के लिए पानी में एक चम्मच सिरका डाल कर उस में कपड़ों को भिगो दें. कुछ देर बाद साबुन से धो लें.
  5. सिलाई मशीन में तेल डालने के बाद एक ब्लौटिंग पेपर को 3-4 बार सी लें ताकि तेल से कपड़े खराब न हों.
  6. सच्चे मोतियों के हार आदि आभूषणों को साफ करने के लिए उन्हें चावल के आटे से मलिए.
  7. जूतों या सैंडिल पर पौलिश करते समय किसी पुराने मोजे का प्रयोग करना चाहिए ताकि हाथ खराब न हों.

सितारे बुलंदी पर

श्रीलंका मूल की बौलीवुड अदाकारा जैक्लीन फर्नांडिस के इन दिनों उत्साहित होने की कई वजहें हैं. पहले तो उन की पिछली रिलीज दोनों फिल्में ‘हाउसफुल’ और ‘रेस’ सुपरहिट साबित हुईं और अब वे टौप अदाकार सलमान खान के साथ फिल्म ‘किक’ की शूटिंग भी जल्द ही शुरू करने वाली हैं.

इस फिल्म का पहला शैड्यूल लंदन में शूट होगा. लिहाजा, वे सलमान के साथ ब्रिटेन जाने के लिए खूब उत्सुक हैं. यही नहीं, जैक्लीन का अभिनेता प्रभुदेवा के साथ आइटम सौंग ‘जादू की झप्पी’ भी खासा पौपुलर हो रहा है.  जैक्लीन मैडम, लगता है इन दिनों आप के सितारे वाकई बुलंदीं पर हैं.

रणवीर की मूंछें

रणवीर सिंह ने फिल्म ‘रामलीला’ के  किरदार के लिए हैंडलबार मूंछें रखी हैं. संजय लीला भंसाली निर्देशित इस फिल्म में उन के साथ दीपिका भी है. एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि वे खुश हैं कि हैंडलबार मूंछें एक बार फिर चलन में हैं. क्रिकेटर भी इसे रख कर अपना भविष्य चमका रहे हैं. मेरा कैरियर अगर मेरी मूंछों की वजह से चमकेगा तो मुझे खुशी होगी क्योंकि इस का चलन मैं ने ही शुरू किया है. गौरतलब है कि रणवीर सिंह इस से पहले अपनी किसी भी फिल्म में मूंछों में नजर नहीं आए हैं.

मूंछें कामयाबी दिलाने में समर्थ होंगी या नहीं, यह तो पता नहीं रणवीरजी, इतना जरूर है कि फिल्म हिट होगी तो ही आप की मूंछें प्रचलित होंगी.

 

नीतू की सोच

एक फिल्म में नीतू चंद्रा को पौर्नस्टार सनी लियोनी को ‘किस’ करना था. नीतू  ने यह कह कर इस सीन को ही नहीं बल्कि फिल्म को भी करने से इनकार कर दिया कि वे औनस्क्रीन किसी लड़की को ‘किस’ नहीं करेंगी. उन के इस फैसले का सम्मान करते हुए फिल्मकार ने यह फिल्म किसी और ऐक्ट्रेस की झोली में डाल दी है. हालांकि, नीतू ने पहले एक बिकनी शूट के दौरान एक लड़की के साथ लैस्बियन स्टाइल में फोटो खिंचवाए थे. खैर, नीतूजी, यह आप की मरजी है लेकिन क्या आप औफस्क्रीन किसी लड़की को ‘किस’ कर सकती हैं?

 

एनैमी

‘एनैमी’ 1980 के दशक में बनी फिल्मों की तरह ऐक्शन थ्रिलर क्राइम फिल्म है, जिस में शुरू से अंत तक बहुत ज्यादा खूनखराबा है. ऐक्शन के अलावा इस में और भी बहुत मसाले हैं.

फिल्म की कहानी मुंबई क्राइम ब्रांच के 4 जांबाज अफसरों, एकलव्य उर्फ भाऊ (सुनील शेट्टी), नईम शेख (के के मेनन), माधव सिन्हा उर्फ मैडी (महाअक्षय चक्रवर्ती) और एरिक (जौनी लीवर) की है. इन चारों को मुंबई में गैंगवार खत्म करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. चारों एक बड़े डौन मुख्तार (जाकिर हुसैन) को पकड़ कर जेल में डाल देते हैं.

केंद्र से एक राजनीतिक नेता आर जी (अक्षय कपूर) एक सीबीआई अफसर युगांधर (मिथुन चक्रवर्ती) को मुंबई भेजता है. युगांधर पता लगाता है कि मुख्तार के 500 करोड़ रुपए रामगढ़ ऐक्सप्रैस हाइवे पर लूट लिए गए थे. यह पैसा उसे आर जी को देना था. इसीलिए मुख्तार शहर में गैंगवार करा रहा है. वह यह भी पता लगाता है कि वह पैसा इन चारों पुलिस वालों के पास है.

पैसों के लिए खूब घमासान होता है. मुख्तार मारा जाता है. 500 करोड़ रुपए बरामद हो जाते हैं. फिल्म की यह कहानी कुरसी पर बैठे भ्रष्ट नेताओं की पोल खोलती है कि कैसे वे बिल्डर लौबी या तंबाकू लौबी से चुनाव में खर्च करने के लिए करोड़ों रुपए लेते हैं.

सुनील शेट्टी फुलफौर्म में है. मिथुन चक्रवर्ती अब बूढ़ा हो चला है. हां, उस के बेटे महाअक्षय ने अच्छा परफौर्म किया है. जौनी लीवर ने इस बार दर्शकों को बिलकुल नहीं हंसाया. गीतसंगीत साधारण है.       

घनचक्कर

हिंदी फिल्मों में पहले पुरुष किरदार ही गालियां बकते थे लेकिन अब महिला किरदारों से गालियां बकवा कर या छिछोरे संवाद बुलवा कर फिल्म निर्देशक दर्शकों का टेस्ट बदलने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में रिलीज फिल्म ‘फुकरे’ को ही देख लें. रिचा चड्ढा ने जम कर गालियां दी हैं.

इस से पहले ‘आमिर’ और ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने इस फिल्म को फनी बनाने के चक्कर में गोलगोल घुमाया है. फिल्म की कहानी में क्या होने वाला है, यह 10 मिनट में ही पता चल जाता है.

संजू (इमरान हाशमी) और नीतू (विद्या बालन) पतिपत्नी हैं. संजू तिजोरियां तोड़ने में माहिर है. पंडित (राजेश शर्मा) और इदरीस (नमित दास) उसे बैंक रौबरी का औफर देते हैं. तीनों बैंक का लौकर तोड़ कर करोड़ों रुपए ले उड़ते हैं. पंडित और इदरीस पैसे छिपाने के लिए सूटकेस संजू को दे देते हैं. संजू की याददाश्त चली जाती है. 3 महीने बाद जब पंडित व इदरीस अपना हिस्सा मांगते हैं तो संजू उन्हें नहीं पहचानता. पंडित व इदरीस संजू के घर डेरा जमा लेते हैं. संजू पैसों से भरे सूटकेस को ढूंढ़ने की कोशिश करता है परंतु उसे कुछ भी याद नहीं आता. अंत में डौन जैसा एक गुंडा पैसे न मिलने पर चलती लोकल टे्रन में पहले पंडित व इदरीस को मार डालता है, फिर संजू और नीतू को भी गोली मारता है. जातेजाते उस गुंडे के कानों में संजू के सैलफोन पर आ रही उस की मां की आवाज सुनाई पड़ती है कि बेटा, घर आ कर अपना सूटकेस ले जाओ. लेकिन तभी उस का पैर फिसलता है और संजू के हाथ में पकड़ा फोर्क उस के गले में घुस जाता है और वह मर जाता है. घायल अवस्था में भी संजू और नीतू मुसकरा देते हैं. यहीं फिल्म का द एंड हो जाता है. यानी नायक ने सभी किरदारों के साथसाथ दर्शकों को भी घनचक्कर बना दिया.

फिल्म की यह कहानी कहींकहीं आप को सिर धुनने पर मजबूर कर देगी. नायक का 2 गुंडों से पूरी फिल्म में पिटते रहना, इदरीस का अंडरवियर पहन कर घूमते रहना और फोन पर सैक्सी बातें कर उत्तेजना से भर जाना, करोड़ों की बैंक डकैती के बाद भी पुलिस का गायब होना, तिजोरी का आसानी से खुल जाना आदि बातें आप का सिर घुमा सकती हैं.

निर्देशन साधारण है. इमरान हाशमी ने किसर की इमेज से हट कर अभिनय किया है. विद्या बालन ने कौमेडी करने की कोशिश की है. गीतसंगीत साधारण है.

 

लुटेरा

‘लुटेरा’ ओ हेनरी की कहानी ‘द लास्ट लीफ’ पर आधारित है. लव स्टोरी पर बनी यह फिल्म सादगी से भरी है. इस प्रेम कहानी में छिछोरापन नहीं है बल्कि ऐसा प्रेम दिखाया गया है जिस में आंखों ही आंखों में बातें की जाती हैं. इस फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा जैसी नायिका आप को चटकमटक रंगों वाले कपड़े पहन कर बागों में नायक से रोमांस करती नजर नहीं आती बल्कि हलकेफुलके मेकअप में साड़ी पहने हुए दिखती है और अच्छी लगती है.

‘लुटेरा’ में बौक्स औफिस के फार्मूले भी नहीं हैं. भले ही फिल्म की गति धीमी हो लेकिन फिल्म का ट्रीटमैंट काफी अच्छा है. संजय लीला भंसाली के सहायक रह चुके विक्रमादित्य मोटवानी ने भंसाली की तरह ही अपनी इस फिल्म का कैनवास काफी बड़ा रखा है. उस ने पटकथा लिखने से पूर्व काफी रिसर्च की है, ऐसा फिल्म देख कर लगता है. भले ही फिल्म में कमर्शियल वैल्यू न हो लेकिन फिल्म दिल को छू जाती है.

फिल्म की कहानी 1953 की है. वरुण (रणवीर सिंह) खुद को पुरातत्त्व विभाग का अफसर बता कर माणिकपुर के एक जमींदार के घर आता है. वह जमींदार से मंदिर के आसपास की जमीन की खुदाई की आज्ञा लेता है. जमींदार उसे और उस के साथी को अपने घर में रहने की जगह देता है. जमींदार की बेटी पाखी (सोनाक्षी सिन्हा) को वरुण से प्यार हो जाता है.

इधर, देश में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू हो जाता है. वरुण जमींदार से पाखी के साथ शादी करने की बात कहता है. जमींदार मान जाता है. लेकिन सगाई से पहले ही वरुण जमींदार के मंदिर से कीमती मूर्तियां और खुदाई में मिला कीमती सामान ले कर गायब हो जाता है. दरअसल, वह एक ऐसे गिरोह से जुड़ा है जो पुरातत्त्व विभाग की कीमती वस्तुओं को चुरा कर विदेशों में बेचता है. इस सदमे से जमींदार की मौत हो जाती है. पिता की मौत के बाद पाखी डलहौजी आ कर रहने लगती है. वह वरुण को भुला नहीं पाती. अचानक एक दिन वरुण लौट आता है. पाखी उसे माफ नहीं कर पाती. पुलिस वरुण को ढूंढ़ते हुए डलहौजी पहुंचती है. मुठभेड़ में पहले वरुण का दोस्त मारा जाता है, बाद में निराश हो कर जब वरुण डलहौजी से भागना चाहता है तो पुलिस की गोलियों से मारा जाता है.

आज के फास्ट रोमांटिक दौर में 1950 के दशक की ‘आंखों आंखों में बात होने दो’ जैसी प्रेम कहानी पर बनी इस फिल्म की पटकथा बेहतरीन है. मध्यांतर से पहले का भाग दर्शकों को बांधे रखता है, मगर क्लाइमैक्स कुछ निराश करता है.

2 घंटे 20 मिनट की इस फिल्म को अभी और छोटा किया जा सकता था. मध्यांतर के बाद वरुण और उस के पीछे पुलिस का भागना काफी लंबा खिंच गया है.

फिल्म में पाखी को दमे के दौरे पड़ते दिखाया गया है. दौरों के समय उस का चेहरा नीरस और नौन ग्लैमरस लगता है मगर परफौर्मेंस की दृष्टि से सोनाक्षी का काम बहुत बढि़या है. रणवीर सिंह मध्यांतर से पहले शांत दिखा है, लेकिन मध्यांतर के बाद उस ने ऐक्शन सीन किए हैं.

फिल्म की विशेषता उस का संगीत है. गीतों के बोल सुंदर हैं. अमित त्रिवेदी ने गीतों को गुनगुनाने लायक धुनें दी हैं. छायाकार ने डलहौजी की ढलानों पर खूब सारी बर्फ दिखा कर आंखों को ठंडक प्रदान की है.

 

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