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इन्हें भी आजमाइए

सफर के दौरान हैंड सैनिटाइजर, फेस वाइप्स व वैट टिश्यूज का प्रयोग करें क्योंकि हर जगह साबुन और पानी न मिलने से आप को चेहरा व हाथ साफ करने में आसानी होगी.

यात्रा के लिए बैग पैक करते समय हलका सामान नीचे व भारी चीजों को ऊपर रखें. ऐसा करने से पूरा सामान बैग में आसानी से आ जाएगा.

टाई पर सिलवटें न पड़ें, इस के लिए टाई को उलटी तरफ से रोल करें. रोल करने की शुरुआत पतले किनारे से करें. रोल करने के बाद टाई को जुराब में रखें.

यदि साक्षात्कार या नौकरी के लिए यात्रा कर रहे हों तो सभी कागजात पहले से ही चैक कर के फाइल में रख लें.

यात्रा की पैकिंग में बैल्ट को रोल कर के रखने के बजाय सूटकेस के घेरे में चारों तरफ रखें. इस से जगह बचेगी.

यात्रा के दौरान फर्स्टएड बौक्स से सिरदर्द, पेटदर्द, उल्टी, जुकाम, सर्दी, खांसी की दवा, ऐंटीसेप्टिक क्रीम व बैंडेड रखना न भूलें.

यात्रा के सामान में एक छोटे पाउच में सूईधागा व कुछ बटन अवश्य रखें ताकि जरूरत पड़ने पर उधड़ी सिलाई व टूटे बटनों को टांका जा सके.

ऐसा भी होता है

मेरी दोस्त अपने बेटे के लिए लड़की खोज रही थी. कई जगहों से रिश्ते आए. उन में से एक लड़की और उस का परिवार उस को व उस के बेटे को बहुत पसंद आया. बात आगे बढ़ी. एक बार मेरी सहेली और उस के पतिदेव उस लड़की के परिवार से जा कर मिल कर भी आ गए. वे लोग इंदौर में रहते थे. जब सबकुछ ठीक लगा तो यह तय हुआ कि लड़की चूंकि दिल्ली में ही नौकरी करती है और अपनी सहेली के साथ वहीं रहती है और लड़का गुड़गांव में है तो दोनों एक बार मिल लें.

मेरी सहेली ने अपने बेटे को फोन कर के बता दिया कि वह लड़की तुम से मिलेगी और उस का फोन नंबर भी दे दिया. नियत समय पर दोनों एक थ्री स्टार होटल में मिले.

यहां तक तो ठीक था पर मुश्किल तब हो गई जब उस मुलाकात के बाद वह लड़की अपने घर नहीं पहुंची. न घर वालों से उस ने बात की और न ही अपनी सहेली को कुछ बताया, बस गायब हो गई.

सब फिक्रमंद हो गए, सब से ज्यादा तो लड़का घबरा गया. उसे लगा, लोग उस के ऊपर उंगली न उठाएं कि कहीं उस ने कुछ कह तो नहीं दिया, कुछ कर तो नहीं दिया.

गनीमत हुई कि लड़की के परिवार वाले समझदार निकले और उन्होंने दोष लड़के वालों को नहीं दिया. शायद वे अपनी बेटी के बारे में कुछकुछ जानते थे. पूरे 4 दिन बाद उस लड़की ने अपने परिवार वालों को फोन किया और बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है और उस ने उस लड़के से कोर्ट में जा कर शादी भी कर ली है. मेरी सहेली और उस के पति ने सिर पकड़ लिया और खैर मनाई कि उन के बेटे की जिंदगी बच गई. अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

मेरे विद्यालय के पास एक सज्जन के यहां बेटी की शादी थी. उन्होंने पार्क में टैंट लगा कर शादी की व्यवस्था की थी. परंतु उस दिन अचानक इतना पानी बरसा व  हवा इतनी तेज चली कि टैंट गिर गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था क्या करें. बगल में विद्यालय के प्रधानाचार्य से उन्होंने बात की कि विद्यालय में एक रात बरात ठहरने दी जाए. प्रधानाचार्य ने मना किया लेकिन प्रशासनिक दबाव में आ कर उन्हें विद्यालय के कुछ कमरे व आंगन देना पड़ा.

शादी के बाद दूसरे दिन जब विद्यालय खुला तो पता लगा कि बरातियों ने काफी नुकसान किया हुआ था. नल वगैरह तोड़ दिए थे. जगहजगह पान खा कर थूका हुआ था. सिगरेट के टुकड़े व शराब की बोतलें इधरउधर बिखरी थीं. ब्लैकबोर्ड पर गालियां लिखी हुई थीं. यह सब देख कर मन क्षुब्ध हो गया कि शिष्ट शिक्षा स्थल में भी लोग अपनी अभद्रता दिखाने से बाज नहीं आते. उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)

बच्चों के मुख से

मेरा नाती विहान, जिसे हम सब प्यार से विहू कह कर बुलाते हैं, अभी 2 साल का नहीं हुआ है लेकिन बहुत बोलने लग गया है. उस की एक मजेदार आदत है, यदि उस को कोई भी चीज दिखा कर पूछो, विहान, यह किस का है? तो फौरन 2 बार बोलेगा, ‘विहू का है, विहू का है.’
एक दिन मेरी दीदी का बेटा विहान के लिए एक गेंद ले कर आया, जिस से दिनभर वह खेलता रहा. शाम को जब उस के पापा आए तो उन्होंने पूछा, ‘‘यह गेंद कौन लाया?’’

मैं ने उन्हें बताया कि दीदी का बेटा आया था, वह ही लाया था. उन्होंने शायद ठीक से सुना नहीं पलट कर फिर से पूछा, ‘‘किस का बेटा?’’

विहान ने बस इतना सा सुना और बोलना शुरू कर दिया, ‘‘विहू का बेटा, विहू का बेटा.’’

उस का इतना कहना था कि हम सब खिलखिला कर हंस दिए.  अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

मेरा पोता मानिक साढ़े 3 साल का है. वह हाजिरजवाब है. वह जब भी मौल घूमने जाता तो खिलौनों की दुकान पर जिद कर के कुछ न कुछ ले लेता. एक दिन उस की मम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, हर बार खिलौने के लिए जिद नहीं करते, जब भी तुम खिलौने की दुकान देखो, अपनी आंखें बंद कर लिया करो.’’
हम सब मौल घूमने गए. मेरी बहू को एक नैकलैस पसंद आ गया और उसे खरीदने के लिए वह मेरे बेटे से बारबार कहने लगी. बेटे ने कहा, ‘‘इस बार नहीं, फिर कभी खरीद लेना.’’ इतने में मेरा पोता झट से बोला, ‘‘मम्मा, आप भी ज्वैलरी की दुकान आने पर अपनी आंखें बंद कर लिया करो, जिद मत किया करो.’’ उस की बात सुनते ही हम सब की हंसी छूट गई. परमजीत कौर, मोहाली (पंजाब)

मैं ने अपने 4 साल के बेटे राजू को अपने दोस्त को ‘उल्लू का पट्ठा’ बोलते सुना, तो मैं अचंभित हो गई. घर में तो ऐसे कोई बोलता नहीं, यह कहां से सीख आया? मैं ने उस से पूछा, ‘‘राजू, तू ने यह बोलना कहां से सीखा?’’
उस ने कहा, ‘‘बंटी रोज मुझे कहता है.’’
मैं ने उसे समझाया, ‘‘बेटा, उल्लू डरावना और गंदा दिखने वाला पक्षी है, इसलिए ‘उल्लू का पट्ठा’ बोल कर चिढ़ाने से दूसरों को बुरा लगता है.’’

‘‘तो फिर मैं क्या बोलूं, मिट्ठू का पट्ठा बोल सकता हूं क्या?’’ सुन कर मैं चकित हो गई. मैं ने उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘हां बेटा, जरूर कहना. मिट्ठू तो सब का प्यारा पक्षी है न.’’ शालिनी व्यास, उदयपुर (राज.)

सफर सुहाना अनजाना

एक बार हम अपने रिश्तेदार की शादी  में शामिल होने के लिए कार से गुहाना गए. हम काफी सारे लोग थे और सभी अपनीअपनी कार से चले. सभी कारें आगेपीछे होने के कारण ठीक से रास्ता पता न होने पर भी हम सही जगह पहुंच गए.
परंतु वापसी के समय काफी रात हो गई और जब चलने लगे तो पता चला कि सभी कारें अभीअभी निकल गईं. बस, हमारी ही कार रह गई. किसी तरह हम वहां से चले परंतु रास्ता न पता होने की वजह से हम भटक गए और ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर घर तो बहुत सारे थे परंतु गली अंदर से बंद थी. रात का 1 बज रहा था और हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम किधर की तरफ जाएं, किस से पूछें, डर भी बहुत लग रहा था.

तभी पता नहीं कहां से एक व्यक्ति अपनी कार से वहां से जा रहा था. इतनी रात को हमें देख कर रुक गया. जब हम ने उस से रास्ता भूल जाने की बात कही तो उस ने हमें जी टी रोड का रास्ता समझाया, जो काफी मुश्किल था. 

कुछ दूरी पर जा कर फिर अटक गए जहां 2 रास्ते थे. हमें समझ ही नहीं आया कि किधर जाएं परंतु शायद उस व्यक्ति को हमारी समस्या पता चल गई थी कि हम अच्छे से समझ नहीं सके हैं, इसलिए वह कार ले कर आ गया और बोला, ‘‘आप लोग मेरी कार के पीछेपीछे आओ, मैं आप को जी टी रोड तक छोड़ देता हूं.’’ उस ने हमें सही राह दिखाई. हम सभी ने उन सज्जन का बहुतबहुत धन्यवाद किया. आज भी उस सफर की याद आती है तो उस के लिए दिल से अनेक दुआएं निकलती हैं. पूनम जैन, पानीपत (हरियाणा)

हम लोग ग्वालियर से भोपाल आ रहे थे. ट्रेन विदिशा स्टेशन पर रुकी. हमारे सामने वाली सीट पर बैठे अंकल अपनी पत्नी के लिए अमरूद लेने ट्रेन से नीचे उतरे. ट्रेन बहुत कम समय के लिए रुकी थी. ट्रेन धीरेधीरे चलने लगी. अंकलजी अमरूद ले कर दौड़ते हुए चढ़ने लगे. उन का पैर ट्रेन की सीढ़ी से फिसल गया. सब लोग चिल्लाने लगे, ‘‘अरे, अंकलजी गिर गए.’’ आंटीजी भी बहुत घबरा गईं क्योंकि वे खिड़की से उन्हें देख रही थीं. तभी किसी ने ट्रेन की चैन खींच कर गाड़ी को रुकवा दिया.

अंकलजी प्लेटफार्म की दीवार और ट्रेन के बीच सकुशल खड़े थे. किसी ने ट्रेन रुकते ही कहा, ‘‘अरे, अंकलजी तो बिलकुल ठीक हैं.’’ और वहां उपस्थित सभी लोगों के चेहरों पर खुशी छा गई. हम लोग अपनी सीट पर वापस आए, देखा तो आंटीजी बेहोश थीं. हमारे ही कंपार्टमैंट में एक महिला ने ग्लूकोज का पानी उन्हें पिलाया. उन्होंने 2-3 मिनट बाद आंखें खोलीं और अंकलजी को खुद के सामने सुरक्षित पा कर खुश हो गईं.अल्पिता घोंगे, भोपाल (म.प्र.)

दिन दहाड़े

60 वर्ष की आयु होने पर मैं सेवानिवृत्त हो गया. उस के 3 महीने बाद राज्य सरकार ने आधे वेतन 15 हजार रुपए मासिक पर मुझे पुनर्नियुक्ति प्रदान कर दी और मेरा पदस्थापन मेरे निवास स्थान अजमेर शहर से 100 किलोमीटर दूर मालपुरा में कर दिया.
इस आयु में भी मैं ने कड़ी मेहनत से नौकरी कर 6 माह में 90 हजार रुपए जमा कर लिए, जिस में से 85 हजार रुपए नकद ले कर मैं बैंक में जमा करवाने गया. किसी कारणवश बैंक ने पैसे खाते में जमा करने से इनकार कर दिया. मैं मायूस हो कर बैंक से बाहर निकल आया.

घर लौटने के लिए अपनी बाइक के हैंडिल पर पैसों का बैग लटका कर मैं बाइक स्टार्ट करने ही वाला था कि मेरी जेब में रखे मोबाइल पर किसी का फोन आ गया. मैं बातें करने में व्यस्त था कि तभी सामने से एक लड़का आया और बोला, ‘‘बाबूजी, आप की जेब से पैसे गिर गए हैं.’’

मैं ने देखा तो मेरे दाएं पैर के पास 10-10 के 3 नोट पड़े थे. मैं ने सोचा कि जेब से मोबाइल निकालते समय नोट मेरी जेब से गिर गए होंगे.

मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए और उस लड़के की बातों में आ कर जैसे ही मैं उन नोटों को उठाने के लिए झुका और नोट जेब में रखने लगा तभी मेरी निगाह बाइक के हैंडिल पर पड़ी. देखा तो मेरा बैग और वह लड़का दोनों ही गायब थे. मुशर्रफ खान मेव, अजमेर (राज.)

मेरे पिताजी की मृत्यु हुई तो मैं ने एक प्रतिष्ठित दैनिक के राजस्थान संस्करण में शोक संदेश प्रकाशित करवाया.

कुछ दिनों बाद उस में प्रकाशित मेरे मोबाइल नंबर पर जयपुर से बड़े आत्मीय शब्दों में एक फोन आया. मैं ने उन सज्जन का परिचय पूछा तो उन्होंने कहा कि हम गीता प्रैस, गोरखपुर के जयपुर के प्रतिनिधि हैं. अगर आप शोक प्रकट करने वालों को गीता प्रैस की पुस्तक ‘गीता सार’ उपहार में देंगे तो अच्छा लगेगा. कीमत पूछने पर उन्होंने पुस्तक की कीमत 6 रुपए प्रति पुस्तक बताई. जब मैं ने उन से अपने बड़े भाई साहब से सलाह कर के निर्णय लेने की बात कही तो वे बारबार मुझ से पुस्तक खरीदने के लिए अनुरोध करने लगे. आखिरकार मैं ने उन्हें 200 पुस्तकों का और्डर दे दिया.

नियत दिन को सोडाला बस स्टैंड पर उन्होंने मेरे भतीजे अभिमन्यु को और्डर की गई पुस्तकों का पैकेट सौंप दिया. घर आने पर जब हम ने पैकेट खोला तो उस में 2 रुपए मूल्य की छोटी सी पुस्तिका ‘सत्संग की कुछ सार बातें’ निकलीं. और जब हम ने उन पुस्तकों की गिनती की तो वे सिर्फ 160 ही निकलीं.

इस धोखाधड़ी के लिए जब हम ने जयपुर के नंबर पर फोन किया तो पहले तो उन्होंने रूखे स्वर में बात की और बाद में फोन ही नहीं उठाया. गिरधारी सिंह, गंगापुरसिटी (राज.)

आप के पत्र

सरित प्रवाह, मार्च (प्रथम) 2013

संपादकीय टिप्पणी ‘अपराध, अपराधी और मृत्युदंड’ पढ़ी. इस विषय पर आप ने काफी विस्तार में कानूनी प्रक्रिया और देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को समझाने की कोशिश की है. मेरा यह मानना है कि गुनाहगार को, चाहे वह आतंकवादी हो या रेपिस्ट, सजा तो मिलनी ही चाहिए. यदि फैसला ठीक और जल्दी सुना दिया जाता है तो इस का असर जरूर पड़ेगा और देश में अपराध कम होंगे. बच्चे को मांबाप गलती करने पर उसी समय सजा देते हैं, इसलिए बच्चा संभल भी जाता है.

कुछ अपराधों के लिए मृत्युदंड अत्यंत आवश्यक है. किसी की हत्या होने पर उस को वापस तो नहीं लाया जा सकता. किसी लड़की या औरत का रेप होने के बाद उस का जीवन तो बरबाद हो ही जाता है.

मानसिक रूप से वह हमेशा अपने को हीन समझती रहती है. अकसर मांबाप भी उस का साथ नहीं देते. ऐसे में बलात्कारी को सजाएमौत दिया जाना पीडि़त महिला के लिए बेकार साबित होता है. 16 दिसंबर के हादसे के बाद जिस से भी मेरी इस विषय पर चर्चा हुई है, सभी का यही कहना है कि अभी तक तो आरोपियों को फांसी लगा भी देनी चाहिए थी.

मैं आप की बात से सहमत हूं कि आपसी विवादों को सुलझाने के समाज ने काफी तरीके बना रखे हैं. लेकिन क्या ये तरीके अपने देश में कारगर साबित हुए हैं या हो सकते हैं? बातचीत करतेकरते हम ने इतना समय व्यतीत कर दिया कि अब हर अपराधी बलवान दिखाई देता है मेरी आप से विनती है कि हमें अब किसी भी हालत में अफजलों, कसाबों, वीरप्पनों जैसे अपराधियों के बचाव की सिफारिश नहीं करनी चाहिए.

आज हर प्रदेश अपने अफजलों को बचाने में लगा है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है. वैसे तो संसद में प्रधानमंत्री के 6 मार्च के बयान के बाद देश की हर महिला को चैन से बैठ जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने हर महिला के सम्मान और सुरक्षा की गारंटी स्वयं संभाली है. ओ डी सिंह, वडोदरा (गुजरात)

संपादकीय टिप्पणी ‘अपराध, अपराधी और मृत्युदंड’ में आप ने अफजल गुरू को फांसी की सजा से संबंधित कानूनी दांवपेंचों को बारीकी से कुरेदा है. डा. मनमोहन सिंह की सरकार को सुपर फास्ट टै्रक बना कर राजीव गांधी के हत्यारों के गरेबान तक तुरंत पहुंचना चाहिए. अपराध की दुनिया में कोई भी दोषी कितनी भी चतुराई से कानून को उलझा दे परंतु उस दोषी व्यक्ति को एक दिन सजा तो अवश्य मिलेगी.

यों तो 16 दिसंबर वाली घटना के अपराधियों को भी तुरंत प्रक्रिया में बांधना चाहिए. अभिव्यक्ति का अधिकार तो समस्त मानव जाति को मिल चुका है. देश ही नहीं, विदेशों में भी शोहरत पा चुके आशीष नंदीजी ने जातिपांति के अभिशप्त देश को बिना झेले ही उलटासीधा बता दिया.

गैरजिम्मेदारी की बयानबाजी कभीकभी इंसान को मूर्ख बना देती है. कहने को लोग कह ही देते हैं कि मीडिया वालों ने मेरे विचार को तोड़मरोड़ कर पेश किया. अरे भाई आशीष नंदीजी, आप को भ्रष्टाचार के तराजू से क्या मोलभाव करना है, बुद्धिमानी से साहित्य को पढ़ो और आगे की सुध लो. डा. जसवंत सिंह जनमेजय, (दिल्ली)

संपादकीय टिप्पणी ‘अपराध, अपराधी और मृत्युदंड’ पढ़ी. आतंकवाद से सारी दुनिया त्रस्त है. जहां तक भारत की बात है, महात्मा गांधी की हत्या के रूप में शुरू हुआ आतंकवाद आज चरमोत्कर्ष पर है.

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या, पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वैद्य की हत्या, मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के अलावा संसद पर हमला, कारगिल युद्ध, मुंबई हमला आदि में जानमाल की भीषण क्षति के बीच वी पी सिंह सरकार में गृहमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया की रिहाई स्पष्ट रूप से आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ावा देना साबित हुई. इस के अलावा न्याय में विलंब व सरकार की इच्छाशक्ति में कमी के कारण तो जनता में निराशा की स्थिति घर करने लगी है.

ऐसी स्थिति में पहले मुंबई हमले का दोषी अजमल कसाब, फिर संसद हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरू को फांसी देर से ही सही, राष्ट्रहित में उचित कदम है. इस के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चल रही संप्रग-2 की सरकार बधाई की पात्र है. कटु सत्य है जहर को जहर से ही मारा जा सकता है.

कानून के तहत विधि व्यवस्था बनाए रखने हेतु अपराधियों में खौफ पैदा करने के लिए कठोर कानून के रूप में फांसी जरूरी है. उम्मीद है राष्ट्रपति प्रणब दा कसाब व गुरू की तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों के साथसाथ दिल्ली कार बम विस्फोट के दोषियों को भी शीघ्र ही फांसी दिए जाने की इजाजत देंगे. कृष्णकांत तिवारी, भोजपुर (बिहार)

‘अपराध, अपराधी और मृत्युदंड’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी अत्यंत रोचक, सामाजिक, सामयिक व ज्ञानवर्द्धक है. यह बिलकुल सत्य है कि अपराध की तैयारी करते समय अपराधी को न अपराध करने के दौरान मौत का भय रहता है और न अपराध के बाद दंड का. अपराधी को जेल केवल आम आदमी को सुरक्षा देने के लिए होती है कि अपराधी अब समाज से दूर है, उसे जेल में ही रखा जाए या मृत्युदंड दे दिया जाए, इस का कोई असर दूसरे अपराधी पर नहीं पड़ता. क्योंकि जब वे आतंक या अपराध को अंजाम देने निकलते हैं तब ही से मरने को तैयार होते हैं.

कितनों को अपराध के दौरान मार डाला जाता है, इस की गिनती करना कठिन है क्योंकि अपराधियों में जब आपसी रंजिश के कारण हत्याएं होती हैं तो अधिकांश मामलों में लाश का पता तक नहीं होता और मृत अपराधी के रिश्तेदार मुंह बंद रखते हैं.

अपराधियों को किसी भी तरह का दंड का भय नहीं होता. उन में केवल अपने कुकृत्य से मिलने वाले आनंद को पाने की इच्छा प्रबल रहती है. अगर उन के मन में किसी तरह का भय होता तो 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली गैंगरेप घटना या जो आएदिन इस तरह की घटनाएं देश में हो रही हैं, न घटतीं. अपराधी अगर पहले से सोच ले कि मुझे अमुक अपराध करने पर कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी तो वह अपराध करने का दुस्साहस नहीं करेगा. कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)

आलोचना किसलिए

मार्च (प्रथम) अंक के अग्रलेख ‘नेता और नौकरशाह, भ्रष्टाचार का अटूट गठबंधन’ में आप ने कैग की भ्रष्टाचार और वित्तीय करप्शन रोकने में भूमिका पर अच्छा प्रकाश डाला है. कैग अपनी रिपोर्ट सरकार यानी मंत्रिपरिषद को नहीं, संसद को राष्ट्रपति के माध्यम से सौंपता है. सरकार का दखल न होने से कैग औडिट रिपोर्ट सटीक और विश्वसनीय होती है. संविधान के नियमों के अनुरूप जारी कैग अडिट रिपोर्ट का मुख्य लक्ष्य जनधन का अपव्यय उजागर करना ही होता है. राजनीतिक दल मीडिया में कैग की आलोचना कर जनता के बीच इमेज खराब कर के क्या हासिल करना चाहते हैं? कैग नहीं, राजनीतिक दलों को तो जनता के वोट चाहिए. इसलिए सरकार ऐसे काम क्यों नहीं करती जिस से औडिट विभाग को औब्जैक्शन ही न मिले.  संजय समयक, जबलपुर (म.प्र.)

पद की जरूरत क्या है

मार्च (प्रथम) अंक में प्रकाशित कहानी ‘गोधूलि में घुप अंधेरा’ में पढ़ा कि किस तरह कहानी के मुख्य पात्र को उस के पिता ने 12-13 साल की आयु में ही अपनी तनख्वाह पकड़ाते हुए कहा, ‘घर संभालो, मेरे बस का नहीं है ये सब’ और इसी अंक में छपे लेख ‘भाजपा का मिशन 2014’ के ये शब्द, ‘रामभक्त भाजपा में’ एक स्वर भी ऐसा नहीं उठा, जिस ने पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण अडवाणी का नाम पीएम पद हेतु लिया हो. सभी दूसरे नामों को ही प्रस्तुत करते रहे.

दरअसल, 21वीं सदी में आज सभी राजनीतिक दल युवाओं का गुणगान ही नहीं, बल्कि अपनेअपने परिजनों को ही युवाओं के नाम पर वारिस तक घोषित कर रहे हैं, ऐसे में भी लालकृष्ण आडवाणी का नाम उक्त पद के लिए घोषित किया जाना क्या अनुचित न होता? सही तो यही होता कि समय की मांग के अनुसार, अब स्वयं आडवाणी को ही कहानी के पात्रों के अनुसार आगे कहना चाहिए था कि अब तो भाजपा को भी किसी युवा या उपयुक्त उम्र के किसी योग्य कार्यकर्ता को ही पीएम पद हेतु आगे लाना चाहिए.

लालकृष्ण आडवाणी या लेखक को यह नहीं भूलना चाहिए कि महात्मा गांधी ने कांग्रेस में सरकार बनने के बाद भी कोई पद नहीं लिया था, तो क्या उन का पद घट गया था? नहीं, बल्कि ठीक उसी तरह उन की उपयोगिता और महत्ता बाकी रही थी. यों भी आडवाणीजी की उम्र अब पथ प्रदर्शक या फिर संरक्षक बनने की है, प्रधानमंत्री बनने की नहीं. टी डी सी गाडेगावलिया (न.दि.)

चीनी छात्र

मार्च (प्रथम) अंक में प्रकाशित लेख ‘अमेरिकी कालेजों में बढ़ते चीनी छात्र’ पढ़ा. पता चला इन दिनों यूएसए में सब से अधिक चाइनीज स्टूडैंट्स ऐडमिशन ले रहे हैं. ऐसे लोग यह सोच रहे हैं कि चीन सुपर रिच हो गया है. मुझे लगता है चीन को इस पर गर्व नहीं शर्म करनी चाहिए. मैं ने हिस्ट्री में पढ़ा है कि पिछली सदी में चाइनीज स्टूडैंट्स जापान में उच्च शिक्षा के लिए जाते थे. पर वहां उन से पैसा ऐंठा जाता था. ठीक वैसा अभी भी हो रहा है. चाइनीज कोई भी काम नया नहीं करते बल्कि वैस्टर्न की मात्र नकल करते हैं. नकल, पैसे व बल से चाइना कभी सुपर पावर नहीं बन सकता. इतना पैसा होने के बाद भी चीन ने कोई बड़ा आविष्कार नहीं किया है, जैसे हम भारतीय जीरो के आविष्कार पर गर्व करते हैं.

चीन में फर्स्ट कंप्यूटर अबैकस के अतिरिक्त कुछ नहीं. पड़ोसी देशों की जमीन पर बुरी नजर बैठाए चाइना के शैतान होने के नाते उस से सभी डरते हैं. कुल मिला कर यह साबित हो जाता है कि चीन हो या एशियाई देश, पश्चिमी देशों के सामने सभी नतमस्तक हैं.

भ्रष्ट और भ्रष्टाचार

मार्च (प्रथम) अंक का अग्रलेख ‘नेता और नौकरशाह, भ्रष्टाचार का अटूट गठबंधन’ और एक लेख ‘शिक्षक भरती घोटाला, बुरे फंसे चौटाला’ पढ़े. देखा जाए तो दोनों एक ही तसवीर के 2 रूप हैं. ऐसे घोटालों के कारण ही हमारा देश, जो कभी ‘सोने की चिडि़या’ कहलाता था, ‘लुटेरों के देश’ के नाम से जाना जाता है. बेशक हमारे देशवासियों की याददाश्त कमजोर है, जो एक के बाद दूसरे घोटाले के आते ही, पिछले सभी घोटाले उन के मनमस्तिष्क से लुप्त हो जाते हैं.

इसी का फायदा ये घोटालेबाज उठाते रहते हैं और बिना किसी भी डर या दंडात्मक खौफ के वे और भी दुस्साहस के साथ और बड़े घोटालों में संलिप्त हो जाते हैं. इस सभी के लिए हमारी कानून (दंड) व न्यायिक प्रक्रिया कम दोषी नहीं, क्योंकि गंभीर से गंभीर लूट के मामले में भी धीमी गति वाली प्रक्रिया अपनाई जाती है.

‘कैसे कम हो भ्रष्टाचार’ के शीर्षक वाले बौक्स के अंतिम पैरे में जिन सुझावों का उल्लेख किया गया है उन्हें वास्तव में अमलीजामा पहनाया जाए तो निसंदेह भ्रष्टाचार की जड़ों में मट्ठा डाल कर, भ्रष्टाचारियों की नाकों में नकेल डाली जा सकती है.

हम मात्र दंड व न्याय प्रक्रिया पर दोषारोपण कर के भी तो नहीं बैठ सकते क्योंकि जो भी कुछ करवाना है वह निर्भर तो आखिर उसी गठबंधन यानी ‘नेता और नौकरशाह’ पर करता है, जो ‘चोरचोर मौसेरे भाई’ बन कर एकदूसरे का साथ निभाते नजर आते हैं. ऐसे में जब यह पढ़ने को मिलता है कि ‘ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेता किसी नेता को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया है’ तो अब तो ‘ऊंट की अपनी ऊंचाई का पता चल ही जाएगा.’ यहां अगर यह मान लिया जाए कि यह हमारी न्याय व्यवस्था ही है, जो किसी भी गठबंधन पर अपना हथौड़ा चलाने में सक्षम है, तो गलत नहीं होगा. ताराचंद देव रैगर, श्रीनिवासपुरी (दिल्ली)
शैलेश पवार

भारत भूमि युगे युगे

गहलोत की गफलत

नरेंद्र मोदी, शीला दीक्षित, नीतीश कुमार, शिवराज सिंह चौहान, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और जे जयललिता जैसे मुख्यमंत्रियों के सुर्खियों में रहने की कुछ वजहें होती हैं. नहीं होतीं तो ये खुद ही पैदा कर लेते हैं. लेकिन इस मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दुख सहज समझा जा सकता है कि बेवजह मीडिया उन का बयान तक नहीं छापता. यह दीगर बात है कि छपने लायक बयान उन्होंने बीते 4 सालों में दिया ही नहीं.

अवसाद में डूबे सूखे प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश का बजट पारित करने के बाद उस का तकरीबन 5वां हिस्सा इश्तिहारों में ही फूंक डाला. देशभर के अखबारों में उन के फोटो सहित बजटीय उपलब्धियों के इश्तिहार छपे. इस का मतलब यह नहीं कि उन के खाते में कोई उपलब्धि दर्ज हो गई हो बल्कि उन की भड़ास पर जम कर चांदी उस मीडिया ने काटी जो तगड़ी रकम डकारने के बाद भी उन्हें भाव नहीं दे रहा.

नीतीश का भड़ास शो

हजारों बिहारियों की भीड़ दिल्ली ले जा कर नीतीश कुमार ने वाहवाही तो लूट ली पर हकीकत में उन के इस भड़ास शो की वजह नरेंद्र मोदी थे. लिहाजा, इस का श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए. पिछले साल बिहार में ही नीतीश का जम कर सार्वजनिक विरोध हुआ था और इस साल गुजरात में मोदी को जबरदस्त समर्थन मिला.

यह लड़ाई अधिकारों की नहीं है, विकास के मौडल्स की भी नहीं है और न ही राजनीतिक है, बल्कि व्यक्तिगत है जिस में नीतीश मात खा रहे हैं. बेहतर तो तब होता जब नीतीश अपने और बिहार के संसाधनों के बूते पर बिहार को चमकाएं. दिल्ली जा कर हल्ला मचाने से कुछ नहीं होने वाला.

जनता का पैसा बरबाद

मार्च के महीने में तरहतरह के टैक्स भरते कराहते लोगों ने संसद की तरफ ध्यान तो दिया कि वहां गरमागरम बहस चल रही है कि बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम सिंह यादव को फिर उलटासीधा कुछ कह दिया, जिस पर सियासी माहौल बिगड़ गया है और हमेशा की तरह एक बार फिर यूपीए सरकार दिक्कत में पड़ गई है.

इस तरह की बहस जब संसद में होती है तो उस का खर्च भी आम आदमी ही उठाता है जिस के दिए टैक्स से सरकार चलती है. जागरूकता का अभाव ही इसे कहा जाएगा कि लोग कभी सरकार को इस बाबत नहीं कोसते कि हमारे पैसे का दुरुपयोग मत करो. बेनी व मुलायम जैसे मुद्दों पर संसद में चर्चा हो तो उस वक्त का संसद का खर्च इन नेताओं से ही वसूला जाना चाहिए.

देवता बनाने की कवायद

अभी से अंबेडकर जयंती मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. दलितों के अलावा इस बार सवर्ण हिमायती दल भी भीमराव अंबेडकर को भगवान की तरह पूजते दिखेंगे. एक खतरनाक साजिश देश में पनप रही है जिस के तहत 15-20 साल बाद अंबेडकर आदमी न रह कर देवता बना दिए जाएंगे.

इस साजिश के माने साफ हैं कि दलितों को अंबेडकर के नाम पर इतना बरगला दो कि वे अपनी बदहाली भूल अंबेडकर की प्रतिमाओं को पूजते पहले की तरह सवर्णों की ज्यादती को प्रसाद मान लें.

मायावती ने नोएडा और लखनऊ में तो उन के बुद्धनुमा विशाल मंदिर बनवा ही लिए हैं. सवर्ण भी खुश हैं और इस में भाग भी इसलिए लेते हैं कि उन के भगवान की मूर्तियां अछूतों के स्पर्श से बची रहेंगी. रैदास, कबीर, फुले जैसे कई दलित दार्शनिक भी इसी साजिश के तहत देवता बनाए जा रहे हैं और जयंतियों की भव्यता में इन चिंतकों का मूल दर्शन लोग भूलते जा रहे हैं.

दुनिया का अजूबा पेट्रा

वास्तुकला के शौकीन पर्यटकों के लिए दुनिया के 7 अजूबों में शामिल जौर्डन का ऐतिहासिक प्राचीन शहर पेट्रा एक विश्व विरासत स्थल के रूप में प्रसिद्ध है.  इस के दीदार के लिए दुनियाभर से पर्यटक यहां का रूख करते हैं. पेश हैं कुछ झलकियां :

बैंकों पर टेढ़ी नजर

निजी क्षेत्र के 3 बड़े बैंकों पर गैरकानूनी ढंग से काला धन रख कर उसे सफेद बनाने का आरोप एक स्टिंग औपरेशन में लगाया गया है. स्टिंग औपरेशन में बैंक काली करतूत में किस तरह से लिप्त हैं, इस का जोरदार ढंग से खुलासा हुआ है. जिस से ये तीनों बैंक भारत के स्विस बैंक बन गए हैं. 

इन में से एक बैंक कहता है कि उस पर बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं और उस ने रिजर्व बैंक के किसी नियम को नहीं तोड़ा है. उस ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है. लेकिन असली बात यह है कि हर चोर पकड़े जाने पर इसी तरह की सफाई देता है. सोचिए कि दशकों से काम कर रहे कई सरकारी बैंक जस के तस पड़े हैं. वहां ईमानदारी है लेकिन जो कंपनियां मुश्किल से एकडेढ़ दशक पहले बैंकिंग क्षेत्र में उतरीं, उन की बल्लेबल्ले हो रही है. उलटेसीधे काम किए बिना इतनी ऊंचाई इतने कम समय में ईमानदारी से असंभव सी लगती है. खैर, स्टिंग औपरेशन ने सब को असलियत का दर्पण दिखा दिया है.

बैंकों से ऋण लेने वाले रघु भंडारी का कहना है कि उस ने एक बैंक से ऋण लिया था लेकिन वह बैंक के हाइड यानी अदृश्य चार्जेज भरतेभरते तंग आ गया और आखिरकार उस ने दूसरी जगह से कर्ज ले कर बैंक से 3 साल में मुक्ति पाई. इस दौरान उस का मूलधन सिर्फ कुछ ही हजार जमा हुआ था. ऐसे हजारों ग्राहक होंगे जो बैंकों से परेशान हैं. ऐसे बैंकों पर रिजर्व बैंक को बराबर नजर रखने की जरूरत है.

2013 की वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

वर्ष 2013 में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हाल ही में एक अध्ययन आया है. इस अध्ययन में यह बताया गया है कि इस साल वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में किस तरह की चुनौतियां होंगी और ये चुनौतियां किन क्षेत्रों से ज्यादा होंगी. वैश्विक अर्थव्यवस्था क्रम में भारत को भी जोखिम के रूप में देखा गया है. कहा गया है कि देश में अगले वर्ष आम चुनाव है, सो सरकार लोकप्रिय आर्थिक निर्णय लेगी और विपक्ष चाह कर भी लोकप्रिय निर्णयों का विरोध नहीं कर सकेगा. इस में क्षेत्रीय दल कमजोर स्थिति में होंगे और छोटे मुद्दे भी उन के सामने बड़ी चुनौती होंगे. कमजोर आर्थिक नीतियों को समर्थन मिलेगा तो उस से वित्तीय नीति पर असर पड़ेगा और कमजोर भारतीय वित्तीय नीति आखिरकार वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बनेगी.

वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए इस अध्ययन में जोखिम के लिहाज से भारत 9वें स्थान पर है. इस क्रम में दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए सब से बड़ा जोखिम उभरते बाजारों में अस्थिरता का माहौल है. उभरते बाजार अचानक जमीन से आसमान और आसमान से जमीन पर उतर रहे हैं. दूसरा बड़ा जोखिम चीन से है. वह देश सूचनाओं के बढ़ते प्रवाह से परेशान है और सूचना का यह प्रवाह उस की खुद की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक है. वाशिंगटन की नीतियां और अरब देशों के जारी संघर्ष भी इस क्रम में महत्त्वपूर्ण बताए गए हैं.

यूरोपीय देशों की कुछ कमजोर कडि़यों को भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से चुनौतीपूर्ण माना गया है. पिछले वर्ष इन देशों को बचाने के लिए पूरे यूरोप में जद्दोजहद का दौर जारी रहा. पूर्वी एशिया में कुछ देशों, खासकर चीन और जापान, के बीच विवादित क्षेत्र को ले कर अकसर होने वाली तकरार को भी महत्त्वपूर्ण माना गया है.

भारत से पहले 8वें स्थान का जोखिम ईरान को बताया गया है. ईरान पश्चिम देशों के लिए परमाणु कार्यक्रम की वजह से संकट बना हुआ है. ईरान कहता है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरत के लिए परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है जबकि पश्चिम देशों का कहना है कि वह परमाणु हथियार बना रहा है. दोनों पक्षों में यह तकरार घटी नहीं तो ईरान पर और आर्थिक प्रतिबंध लगेंगे जो वैश्विक कार्यव्यवस्था के विकास के लिए प्रतिकूल होगा.

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